सामाजिक न्याय
लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना
प्रीलिम्स के लिये:लघु वनोत्पाद (MFP) योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य मेन्स के लिये:लघु वनोत्पाद योजना के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 16 राज्यों में लघु वनोत्पाद (Minor Forest Produce-MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के तहत चल रही सरकारी खरीद के अंतर्गत 79.42 करोड़ रुपए की रिकॉर्ड खरीद हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- इसी के साथ वर्तमान वर्ष में लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत कुल खरीद (सरकारी और निजी व्यापार दोनों) 2000 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है।
- COVID -19 महामारी के इस संकटपूर्ण समय में, जिसने आदिवासियों के जीवन और आजीविका को बाधित किया है, यह योजना बहुत आवश्यक सिद्ध हुई है।
हाल ही में क्या-क्या उत्पाद किये गए हैं शामिल?
- 26 मई, 2020 को जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) ने लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के तहत तहत 23 नई वस्तुओं को शामिल करने की भी सिफारिश की थी। इस योजना में शामिल कृषि और बागवानी उत्पाद आदिवासियों द्वारा एकत्रित किये जाते हैं।
- अप्रैल 2020 के बाद पिछले दो महीनों से केंद्र सरकार वन धन योजना के माध्यम से राज्यों को एक उत्प्रेरक और सक्रिय भागीदारी साबित करने के लिये प्रेरित कर रही है।
योजना के अंतर्गत राज्यों की स्थिति:
- लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ 52.80 करोड़ रुपए के 20270 मीट्रिक टन लघु वनोत्पाद की खरीद के साथ प्रथम स्थान पर है।
- ओडिशा और गुजरात ने क्रमशः 21.32 करोड़ रुपए की 9908 मीट्रिक टन लघु वनोत्पाद और 1.61 करोड़ रुपए मूल्य की 155 मीट्रिक टन लघु वनोत्पाद की खरीद की है।
- विशेष रूप से, छत्तीसगढ़ अपने सराहनीय प्रयासों के माध्यम से एक चैंपियन राज्य के रूप में उभरा है।
- छत्तीसगढ़ सरकार ने लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के कार्यान्वयन में संपूर्ण प्रयास किये हैं, खरीद की व्यवस्था और प्रक्रिया पूरे ज़िलों में लागू है।
- छत्तीसगढ़ में 866 लघु वनोत्पाद खरीद केंद्र हैं और राज्य ने 139 वन धन केंद्रों के विशाल नेटवर्क के माध्यम से वन धन स्वयं सहायता समूहों का प्रभावी रूप से उपयोग किया है।
योजना से लाभ:
- COVID-19 महामारी के कारण अभूतपूर्व परिस्थितियों ने चुनौतियों को जन्म दिया , जिसके परिणामस्वरूप जनजातीय आबादी के बीच एक गंभीर संकट पैदा हो गया। युवाओं में बेरोज़गारी, आदिवासियों के विपरीत प्रवास से पूरी आदिवासी अर्थव्यवस्था पर पटरी से नी चे आने का खतरा उत्पन्न हो गया। ऐसे परिदृश्य में लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना ने सभी राज्यों को एक अवसर प्रदान किया।
- वन धन योजना के सफल क्रियान्वयन में 22 राज्यों में 3.6 लाख आदिवासी लाभार्थी शामिल हैं और वन धन के योजना के तहत ट्राइफेड ( TRIFED) के साथ राज्यों के निरंतर जुड़ाव और लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना के कार्यान्वयन ने उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है।
- आदिवासी अर्थव्यवस्था में 2000 करोड़ रुपए से अधिक की खरीद के साथ लघु वनोत्पाद (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना आदिवासी पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन और आदिवासी लोगों को सशक्त बनाने की दिशा में नेतृत्त्व कर सकती है।
- अप्रैल-जून के महीनों में लघु वन उत्पादों के संग्रह के मामले में अपने शिखर पर स्थित यह योजना, सरकारी हस्तक्षेप और खरीद के बिना, आदिवासियों के लिये लाभदायक नहीं हो पाती।
- जनजातीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिये, लघु वन उत्पादों से संबंधित दिशा-निर्देशों में 1 मई 2020 को संशोधित न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया गया था, जिसने कीमतों में 90% तक की वृद्धि की और इस तरह से आदिवासी समुदाय को उच्च आय प्रदान करने में मदद मिली।
स्रोत-पीआईबी
शासन व्यवस्था
21 जून: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में क्यों?
प्रीलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, आयुष मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का वर्तमान संदर्भ में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘ग्रीष्मकालीन संक्रांति’ (Summer Solstice) के साथ 21 जून, 2020 को विश्व स्तर पर 6 वें ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’( International Yoga Day) का आयोजन किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शरुआत कब से?
- विश्व स्तर पर सर्वप्रथम वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया था। इस वर्ष यह छठा अवसर है जब पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया है।
- 11 दिसंबर 2014 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ के 69 वें सत्र के दौरान एक प्रस्ताव पारित करके 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस/विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने के लिये मान्यता दी गई थी।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व में योग को पहचान दिलाने एवं योग की महत्ता से विश्व को अवगत कराते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र में विश्व योग दिवस घोषित किये जाने से संबंधित प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
- प्रधानमंत्री की इस अपील के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा के 123 सदस्यों की इस बैठक में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को रखा गया जिसमे 177 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर इस प्रस्ताव को मज़ूरी दी गई थी।
- 21 जून ही क्यों?
- भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार, ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है, जिसके बाद 21 जून वर्ष का सबसे बड़ा दिन माना जाता है।
- 21 जून को सूर्य कुछ शीघ्र उगता है तथा देर से डूबता है।
- भारतीय परंपरा में दक्षिणायन के समय को आध्यात्मिक विद्या प्राप्त करने के लिये बेहद अनुकूल समय माना जाता है।
- 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस/विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने को मान्यता दी थी।
- वर्ष 2020 अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम?
- वर्ष 2020 के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम ‘स्वास्थ्य के लिये योग- घर पर योग’ (Yoga for Health-Yoga at Home) दी गई।
- इस वर्ष COVID-19 महामारी के चलते लोगों को ऐसी थीम दी गई है, जो सेहत और स्वास्थय को बढ़ावा दे।
- क्या है योग?स्वास्थ
- ‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है इसके अर्थ है- किसी व्यक्ति के शरीर एवं चेतना का मिलन या एकजुट होना।
- योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी।
- आयुष मंत्रालय एवं योग:
- वर्ष 2019 में ‘आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी’ (आयुष) (Ministry of Ayurveda, Yoga & Naturopathy, Unani, Siddha and Homoeopathy- AYUSH) मंत्रालय द्वारा अपने 'कॉमन योग प्रोटोकॉल' में, यम, नियमा, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, बन्ध और मुद्रा, सत्कर्म, युक्ताहार, मंत्र-जाप, युक्ता-कर्म जैसे लोकप्रिय योग 'साधना' को सूचीबद्ध किया गया है।
- आयुष प्रोटोकॉल योग दिवस को ‘फोल्डिंग हैंड लोगो’ (Folding-Hands Logo) के साथ वर्णित करता है
- हाथों की यह मुद्रा सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का मिलन, मन एवं शरीर, मनुष्य एवं प्रकृति के बीच एक परिपूर्ण सामंजस्य, स्वास्थ्य और कल्याण के लिये एक समग्र दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती है।
- लोगो में प्रयुक्त भूरे रंग के पत्ते पृथ्वी तत्व, हरे पत्ते-अग्नि तत्व के तथा नीला रंग सूर्य की ऊर्जा एवं प्रेरणा के स्रोत का प्रतीक है।
- योग का महत्त्व:
- योग को प्राचीन भारतीय कला के एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- जीवन को सकारात्मक और ऊर्जावान बनाए रखने में योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वर्तमान समय में जब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से संपूर्ण विश्व त्रस्त है ऐसे समय में भी लोग अनुलोम-विलोम, प्राणायाम जैसी योग-विधियों के माध्यम से अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहे हैं।
- इसके अलावा शरीर के किसी हिस्से में दर्द हो या फिर मानसिक तनाव इन सभी को बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के ठीक करने में योग एक बहेतर विकल्प है, जिसे संपूर्ण विश्व विश्व द्वारा स्वीकारा जा रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
गुप्त मतदान प्रणाली
प्रीलिम्स के लियेगुप्त मतदान प्रणाली मेन्स के लियेगुप्त मतदान प्रणाली को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी, इस प्रणाली का महत्त्व और इससे संबंधित समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में स्पष्ट किया है कि गुप्त मतदान का सिद्धांत (Principle of Secret Ballot) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की आधारशिला है।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, किसी भी लोकतंत्र में गुप्त मतदान प्रणाली यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि मतदाता का चुनाव पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो।
पृष्ठभूमि
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद आया है, जिसमें 25 अक्तूबर, 2018 को प्रयागराज ज़िला पंचायत की बैठक के निर्णय को रद्द कर दिया था, जिसमें पंचायत अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित किया गया था।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध हुए मतदान के दौरान निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया जिससे मतदान की गोपनीयता भंग हुई थी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी जाँच में पाया था कि पंचायत के कुछ सदस्यों ने मतदान की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया था।
उच्च न्यायालय के विरुद्ध याचिकाकर्त्ताओं का तर्क
- सर्वोच्च न्यायालय में अपीलकर्त्ताओं ने तर्क दिया था कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत एक पूर्ण सिद्धांत नहीं है और इस विशेषाधिकार की स्वैच्छिक छूट अनुज्ञेय है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 94 का उल्लेख करते हुए कहा कि मतदाता स्वैच्छिक रूप से मतपत्र की गोपनीयता के विशेषाधिकार को छोड़ सकता है, इस प्रकार मतदाता को इस सिद्धांत का पालन करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण शर्त है, जो कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के उद्देश्यों की प्राप्ति में काफी लाभदायक है।
- न्यायालय के अनुसार, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 94 मतदाता के पक्ष में एक विशेषाधिकार का प्रावधान करती है, जिसके तहत कोई भी उसे यह खुलासा करने के लिये मज़बूर नहीं कर सकता है कि उसने किसके पक्ष में मतदान किया था, किंतु तब यह विशेषाधिकार समाप्त हो जाता है जब मतदाता विशेषाधिकार का प्रयोग न करने का फैसला करता है और स्वयं ही इस बात का खुलासा करता है कि उसने किसके पक्ष में मतदान किया है।
गुप्त मतदान प्रणाली
- गुप्त मतदान प्रणाली का अभिप्राय मतदान की उस विधि से होता है जो यह सुनिश्चित करती है कि सभी मत गुप्त रूप से डाले जाएँ, ताकि मतदाता किसी अन्य व्यक्ति से प्रभावित न हो और मतदान के समय किसी को भी यह ज्ञात न हो कि विशिष्ट मतदाता ने किसे वोट दिया है।
- सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि गुप्त मतदान वह मतदान पद्धति है जिसमें मतदाता की पसंद गोपनीय होती है।
- भारत में गुप्त मतदान की शुरुआत वर्ष 1951 में पेपर बैलेट के साथ हुई थी।
गुप्त मतदान प्रणाली का महत्त्व
- भारतीय राजनीतिक प्रणाली, जिसमें चुनाव अभियानों के दौरान धन और ‘बाहुबल’ का प्रयोग एक आम बात हो गई है, में गुप्त मतदान प्रणाली उन लोगों के लिये एक मात्र रास्ता होता है, जो स्वतंत्र रूप से बिना किसी हस्तक्षेप के अपने मताधिकार का प्रयोग करने के इच्छुक हैं।
- गुप्त मतदान धन और बल की शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है, ध्यातव्य है कि कई बार राजनेताओं द्वारा एक विशिष्ट व्यक्ति के पक्ष में मतदान करने के लिये मतदाताओं को मज़बूर किया जाता है और उन्हें धमकी दी जाती है कि यदि ऐसा नहीं होता है तो उन्हें भविष्य में किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होगा।
- इस प्रकार मतपत्र की गोपनीयता सुनिश्चित करके हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रत्येक मतदाता किसी अन्य व्यक्ति से प्रभावित होकर अपने मताधिकार का प्रयोग न करे।
भारत में गुप्त मतदान प्रणाली से संबंधित समस्याएँ
- चुनाव संचालन नियम-1961 के नियम 59A में यह निर्धारित किया गया था मतगणना शुरू होने से पूर्व विभिन्न बूथों से आए पेपर मतपत्र मतगणना केंद्रों पर बड़े पैमाने पर एक साथ मिला दिये जाएंगे, जिससे किसी एक विशिष्ट बूथ से संबंधी सूचना प्राप्त करना संभव नहीं था।
- किंतु वर्ष 2008 से EVM की शुरुआत के साथ ही इस तरह का भौतिक मिश्रण संभव नहीं था अतः बूथ-स्तरीय डेटा प्राप्त करना अपेक्षाकृत काफी आसान हो गया।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर कर चुनाव में ‘टोटलाइज़र’ (Totaliser) मशीन के उपयोग का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था जिससे मतपत्र की गोपनीयता बनी रहती, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने बिना सुनवाई किये ही इस याचिका को खारिज कर दिया।
- ध्यातव्य है कि ‘टोटलाइज़र’ (Totaliser) मशीन मतगणना के समय एक निर्वाचन क्षेत्र के सभी EVMs से प्राप्त मतों को एक साथ मिला देती है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
सांसद आदर्श ग्राम योजना
प्रीलिम्स के लिये:सांसद आदर्श ग्राम योजना मेन्स के लिये:सांसद आदर्श ग्राम योजना |
चर्चा में क्यों?
‘ग्रामीण विकास मंत्रालय’ (Ministry of Rural Development) द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ (Sansad Adarsh Gram Yojana- SAGY) सांसदों की पर्याप्त रुचि के अभाव तथा धन की कमी से प्रभावित हो रही है।
प्रमुख बिंदु:
- यह अध्ययन पाँचवें 'सामान्य समीक्षा मिशन’ (Common Review Mission- CRM) के एक भाग के रूप में किया गया है।
- ‘सामान्य समीक्षा मिशन’ ग्रामीण विकास मंत्रालय के विभिन्न कार्यक्रमों तथा योजनाओं की प्रगति की स्वतंत्र रूप से समीक्षा करने का कार्य करता है।
- इस अध्ययन टीम में सेवानिवृत्त नौकरशाह, शिक्षाविद, और विभिन्न अनुसंधान संगठनों के सदस्य शामिल होते हैं।
सांसद आदर्श ग्राम योजना
(Saansad Adarsh Gram Yojana- SAGY):
- वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र-निर्माण के हिस्से के रूप में सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की गई थी।
- इस योजना के तहत लोकसभा सांसदों को वर्ष 2016 तक अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक आदर्श ग्राम को विकसित करना है तत्पश्चात वर्ष 2019 तक तीन और वर्ष 2024 तक पाँच आदर्श ग्रामों का निर्माण करना था।
योजना के उद्देश्य:
- इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक ज़िले में न्यूनतम एक आदर्श ग्राम का विकास करना था ताकि निकटवर्ती ग्राम पंचायतों को उन उपायों को अपनाने के लिये प्रेरित कर सके।
- इस योजना का उद्देश्य चयनित ग्रामों को कृषि, स्वास्थ्य, साफ-सफाई, आजीविका, पर्यावरण, शिक्षा आदि क्षेत्रों में सशक्त बनाना था।
योजना के तहत गतिविधियाँ:
योजना की प्रगति:
- इस योजना में शुरुआत के कुछ महीनों के बाद से ही संसद के सदस्यों की भागीदारी में कमी देखी गई है। अब तक योजना के पाँच चरणों के तहत केवल 1,855 ग्राम पंचायतों का चयन किया गया है, जिसमें पाँचवें चरणों में केवल सात ग्राम पंचायतों का चयन किया गया है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- अध्ययन के अनुसार, योजना का वर्तमान प्रारूप वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं है तथा ग्रामीण अवसंरचना पर इस योजना का कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव दिखाई नहीं दिया है।
- अनेक क्षेत्रों में ‘सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ ( Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) योजना के तहत आवंटित निधि का बहुत कम उपयोग किया गया है।
- अनेक ग्राम पंचायतों में अवसंरचना कार्य धन की कमी से जूझ रहे हैं।
- यह विडंबना है कि अभी तक अनेक ग्राम जिनका आदर्श ग्राम के रूप में चयन किया गया है, उन्हें अभी तक ‘खुले में शौच मुक्त’ (Open Defication Free- ODF) घोषित नहीं किया गया है।
- कुछ क्षेत्रों में MPLAD तथा मनरेगा योजना का अभिसरण SAGY योजना के साथ किया गया है जबकि अन्य क्षेत्रों में इस प्रकार का अभिसरण देखने को नहीं मिलता है।
आगे की राह:
- योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिये योजना की समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है।
- सांसद आदर्श ग्राम योजना न केवल ग्रामीण विकास के अवसर प्रदान करती है बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है, इसलिये वर्तमान समय में इस बात की बहुत आवश्यकता है कि ग्रामीण विकास की नवीन योजनाओं की परिकल्पना के साथ ही उनके क्रियान्वन पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
पोखरण में कुम्हारों के सशक्तीकरण का प्रयास
प्रीलिम्स के लिये:खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, कुम्हार सशक्तीकरण योजना मेन्स के लिये:कुम्हारों के समक्ष समस्याएँ एवं उनके सशक्तीकरण हेतु प्रयास |
चर्चा में क्यों?
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) ने पोखरण की एक समय सबसे प्रसिद्ध रही बर्तनों की कला की पुनःप्राप्ति तथा कुम्हारों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये प्रयास प्रारंभ किये हैं।
प्रमुख बिंदु:
- पोखरण में कुम्हारों के परिवारों को इलेक्ट्रिक पॉटर चाकों (Electric Potter Wheels) का वितरण किया गया है।
- इलेक्ट्रिक चाकों के अलावा, KVIC ने 10 कुम्हारों के समूह में 8 अनुमिश्रक मशीनों (Blunger Machines) का भी वितरण किया है।
- अनुमिश्रक मशीनों का इस्तेमाल मिट्टी को मिलाने के लिये किया जाता है।
- यह मशीन केवल 8 घंटे में 800 किलो मिट्टी को कीचड़ में बदल सकती है जबकि व्यक्तिगत रूप से मिट्टी के बर्तन बनाने के लिये 800 किलो मिट्टी तैयार करने में लगभग 5 दिन का समय लगता है।
- KVIC ने गाँव में 350 प्रत्यक्ष रोज़गार का भी सृजन किया है।
- KVIC द्वारा किये जा रहे प्रयासों का उद्देश्य कुम्हारों को सशक्त बनाना, स्व-रोज़गार का सृजन करना और मृतप्राय हो रही मिट्टी के बर्तनों की कला को पुनर्जीवित करना है।
- इसके अलावा इस गाँव के कुम्हारों को कुम्हार सशक्तीकरण योजना से भी जोड़ा गया है।
- उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम से राजस्थान के कई ज़िलों जैसे जयपुर, कोटा, झालावाड़ और श्री गंगानगर सहित एक दर्जन से अधिक ज़िलों को लाभ प्राप्त हुआ है।
- KVIC अध्यक्ष द्वारा राजस्थान में KVIC के राज्य निदेशक को बाड़मेर और जैसलमेर रेलवे स्टेशनों पर मिट्टी के बर्तनों के उत्पादों का विपणन करने और उसकी बिक्री के लिये सुविधा प्रदान करने का निर्देश भी जारी किया गया है, जिससे कुम्हारों को विपणन में सहायता प्रदान की जा सके।
- 400 रेलवे स्टेशनों पर केवल मिट्टी/टेराकोटा के बर्तनों में खाद्य पदार्थों की बिक्री होती है जिनमें से राजस्थान के दो जैसलमेर और बाड़मेर शामिल हैं, दोनों प्रमुख रेलमार्ग पोखरण के सबसे नज़दीक हैं।
- KVIC की राज्य इकाई इन शहरों में पर्यटकों के उच्च स्तर को देखते हुए इन रेलवे स्टेशनों पर अपने मिट्टी के बर्तनों की बिक्री में सुविधा प्रदान करेगी।
कुम्हार सशक्तीकरण योजना
(Kumhar Sashaktikaran Yojana)
- KVIC द्वारा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, तेलंगाना और बिहार जैसे राज्यों के कई दूरदराज़ इलाकों में कुम्हार सशक्तीकरण योजना की शुरुआत की गई है।
- कुम्हार सशक्तीकरण योजना का मुख्य उद्देश्य कुम्हार समुदाय को मुख्यधारा में वापस लेकर आना है।
- इस योजना के अंतर्गत, KVIC द्वारा बर्तनों के उत्पाद का निर्माण करने के लिये उपयुक्त मिट्टी को मिलाने के लिये अनुमिश्रक मशीनों और पग मिल्स जैसे उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं।
- इन मशीनों ने मिट्टी के बर्तनों के निर्माण की प्रक्रिया में लगने वाले कठिन परिश्रम को भी समाप्त कर दिया है और इसके कारण कुम्हारों की आय 7 से 8 गुना ज्यादा बढ़ गई है।
कुम्हारों के सशक्तीकरण की आवश्यकता:
- पोखरण में 300 से अधिक कुम्हार परिवार रहते हैं जो कई दशकों से मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के कार्य से जुड़े हुए हैं, लेकिन काम में कठिन परिश्रम और बाज़ार का समर्थन नहीं मिलने के कारण कुम्हारों ने अन्य रास्तों को तलाश करना शुरू कर दिया था।
आगे की राह:
- पोखरण (जहाँ पर भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था) को अब तक केवल परमाणु परीक्षणों के स्थल के रूप में जाना जाता था, लेकिन बहुत जल्द ही उत्कृष्ट मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी इसकी पहचान बनेगा।
- कुम्हारों को आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करना उन्हें समाज के साथ जोड़ने और उनकी कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग
(Khadi and Village Industries Commission):
- यह 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम (Khadi and Village Industries Commission Act) 1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है।
- यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत एक मुख्य संस्था है।
उद्देश्य:
- सामाजिक उद्देश्य: रोज़गार देना।
- आर्थिक उद्देश्य: बिक्री योग्य वस्तुओं का उत्पादन करना।
- व्यापक उद्देश्य: गरीबों को आत्मनिर्भर बनाना एवं एक मज़बूत ग्रामीण सामुदायिक भावना का निर्माण करना।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
व्यापार परिदृश्य में सुधार के लिये आवश्यक कदम
प्रीलिम्स के लिये:व्यापार सुगमता सूचकांक मेन्स के लिये:व्यापार सुगमता सूचकांक |
चर्चा में क्यों?
'भारतीय उद्योग परिसंघ' (Confederation of Indian Industry- CII) ने भारत के व्यापार परिदृश्य को आसान बनाने के लिये प्रमुख क्षेत्रों में आवश्यक उपायों की पहचान की है ताकि आत्मनिर्भर भारत का निर्माण किया जा सके।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान देश को संबोधित करते हुए 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की चर्चा की गई थी।
- भारतीय उद्योग परिसंघ ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण के लिये व्यापार सुगमता परिदृश्य में आवश्यक सुधारों पर बल दिया है।
‘व्यापार सुगमता सूचकांक’:
- विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease Of Doing Business) किसी भी देश के व्यापार परिदृश्य की सुगमता को मापता है।
- व्यापार सुगमता सूचकांक में व्यवसाय शुरू करना, निर्माण परमिट, विद्युत, संपत्ति का पंजीकरण, ऋण उपलब्धता, अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा, करों का भुगतान करना, सीमा-पार व्यापार, अनुबंध लागू करना, दिवालियापन होने पर समाधान आदि मानक शामिल हैं।
भारत की रैंकिंग में सुधार:
- विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता रिपोर्ट- 2020 में भारत 190 देशों में 63वें स्थान पर है। सरकार के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत पिछले 5 वर्षों (वर्ष 2014-19) में ’व्यापार सुगमता सूचकांक’ में अपनी रैंकिंग में 79 पायदानों का उल्लेखनीय सुधार करने में सफल रहा है।
- ’व्यापार सुगमता सूचकांक’-2020 में भारत की रैंकिंग में निम्नलिखित मापदंडों में सुधार देखने को मिला है:
मानक |
स्थानों का सुधार |
संपत्ति का पंजीकरण |
12 |
निर्माण परमिट |
25 |
सीमा-पार व्यापार करना |
12 |
दिवालियापन का समाधान करना |
56 |
नवीन सुधारों की आवश्यकता:
स्व-प्रमाणन मार्ग की आवश्यकता:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, small and medium enterprises- MSMEs) को विशेष मदद की ज़रूरत है। इन उद्यमों को तीन वर्ष के लिये मंज़ूरी तथा निरीक्षण आवश्यकताओं से छूट दी जानी चाहिये।
- अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले MSMEs के लिये स्व-प्रमाणन मार्ग का उपयोग किया जा सकता है।
ऑनलाइन एकल खिड़की प्रणाली:
- उत्पादों के आयात-निर्यात प्रक्रिया संबंधी जानकारी के लिये विभिन्न मंत्रालयों की वेबसाइटों पर अनेक अधिसूचनाएँ हैं, परंतु वैश्विक आपूर्तिकर्त्ताओं को इनसे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- इस समस्या को दूर करने के लिये ऑनलाइन एकल विंडो प्रणाली बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिये।
संपत्ति पंजीकरण तथा भूमि अधिग्रहण कानून
- संपत्ति पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाने की आवश्यकता है तथा उद्योगों को किसानों से सीधे भूमि खरीदने की अनुमति दी जानी चाहिये।
व्यावसायिक विवाद समाधान प्रक्रिया:
- भारत में पर्याप्त व्यावसायिक न्यायालयों तथा बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण अनुबंधों को लागू करना एक चुनौती है। अत: न्यायालयों में प्रमुख डिजिटल सुधारों जैसे कि आभासी अदालती कार्यवाही, ई-फाइलिंग, घर से कार्य करना आदि को लागू किया जाना चाहिये।
- 'वैकल्पिक विवाद समाधान संस्थानों' (Alternative Dispute Resolution Institution) को स्थापित करने के साथ ही मध्यस्थता तथा सुलह केंद्रों का विस्तार किया जाना चाहिये।
लॉजिस्टिक सुधारों की आवश्यकता:
- भारत में लॉजिस्टिक लागत अधिक होने के कारण व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होती है। लॉजिस्टिक लागत में कमी लाने के लिये मध्यम अवधि की कार्रवाई पर बल देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- रेलवे एवं जलमार्ग की परिवहन में हिस्सेदारी बढ़ाना;
- प्रथम-मील तथा अंतिम-मील कनेक्टिविटी (first-mile and last-mile connectivity) में सुधार करना;
- बंदरगाह पर वाहनों को माल के लोडिंग तथा अनलोडिंग के समय को कम करना;
परिणाम-उन्मुख कार्रवाई:
- परिणाम-उन्मुख कार्रवाई को अपनाने की आवश्यकता है। ज़मीनी स्तर के परिणाम निवेशकों की धारणा में परिवर्तन लाने तथा आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करते हैं।
अन्य आवश्यक कदम:
- श्रम विनियमों के अनुपालन में तेज़ी लाना;
- संयुक्त उपक्रमों को समायोजन।
निष्कर्ष:
- वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान समस्याओं का संधारणीय समाधान निकाला जाना चाहिये। व्यापार सुगमता सूचकांक में भारत की स्थिति में सुधार से न केवल बाहरी निवेश बढ़ेगा अपितु घरेलू उद्यमों को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
स्रोत: बिज़नेस इनसाइडर
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 जून, 2020
GI टैग
मलीहाबादी दशहरी आम की बिक्री में भौगोलिक संकेतक अथवा जीआई (Geographical Indication-GI) टैग के महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (Central Institute for Subtropical Horticulture-CISH) ने आम की अन्य किस्मों जैसे गौरजीत, बनारसी लंगड़ा, चौसा तथा रटौल आदि के लिये GI टैग प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। ध्यातव्य है कि यदि आम की इन किस्मों को आगामी समय में GI टैग प्राप्त हो जाता है तो इससे इनके लिये एक विशिष्ट बाज़ार के निर्माण में मदद मिलेगी। GI टैग प्राप्त करने के पश्चात् इस प्रकार की किस्मों के आम उत्पादकों को अपनी उपज की अच्छी कीमत मिल सकेगी और अन्य क्षेत्रों के किसान किस्म के नाम का दुरुपयोग कर अपनी फसल का विपणन नहीं कर सकेंगे। ध्यातव्य है कि मलीहाबादी दशहरी आम को सितंबर 2009 में GI टैग प्राप्त हुआ था। एक भौगोलिक संकेतक अथवा जीआई (Geographical Indication-GI) टैग का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएँ एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI टैग का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है। GI टैग प्राप्त करने का अर्थ होता है कि कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार अधिकृत उपयोगकर्त्ता के अतिरिक्त इस उत्पाद के प्रसिद्ध नाम का उपयोग नहीं कर सकती है।
मुख्यमंत्री श्रमिक योजना
भारत सरकार के सामाजिक कल्याण कार्यक्रम मनरेगा (MGNREGA) की तर्ज पर झारखंड सरकार भी शहरी अकुशल श्रमिकों के लिये 100-दिवसीय रोज़गार योजना लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। जहाँ एक ओर मनरेगा का मुख्य लक्ष्य अकुशल श्रम करने के इच्छुक ग्रामीण वयस्क सदस्यों को कम-से-कम 100 दिन का रोज़गार उपलब्ध कराना है, वहीं इसके विपरीत झारखंड सरकार की इस योजना में मुख्य रूप से शहरी गरीबों को लक्षित किया गया है। शहरी गरीबों के लिये आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की जा रही इस योजना का नाम मुख्यमंत्री श्रमिक (SHRAMIK- Shahri Rozgar Manjuri For Kamgar) योजना रखा जाएगा। इस योजना के कार्यान्वयन के साथ ही शहरी गरीबों के लिये रोज़गार गारंटी योजना शुरू करने वाला झारखंड देश का दूसरा राज्य बन जाएगा, जबकि इससे पूर्व केवल केरल सरकार द्वारा इस प्रकार की व्यवस्था की गई थी। ध्यातव्य है कि केरल में ‘अय्यनकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना’ (Ayyankali Urban Employment Guarantee Scheme) का कार्यान्वयन किया जा रहा है। संबंधित सूचना के अनुसार, मनरेगा के समान ही झारखंड की इस योजना में भी बेरोज़गारी भत्ते का प्रावधान किया गया है। यह योजना शहरी विकास एवं आवास विभाग (Urban Development & Housing Department) द्वारा राज्य शहरी आजीविका मिशन के माध्यम से संचालित की जाएगी। विभिन्न विशेषज्ञों ने झारखंड सरकार की इस योजना को प्रवासी श्रमिकों को रोज़गार उपलब्ध कराने की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण योजना बताया है।
विश्व हाइड्रोग्राफी दिवस
प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व हाइड्रोग्राफी दिवस (World Hydrography Day) का आयोजन किया जाता है, इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य मौजूदा समय में हाइड्रोग्राफी के महत्त्व और उसकी प्रासंगिक को रेखांकित करना है। हाइड्रोग्राफी (Hydrography) का अभिप्राय विज्ञान की उस शाखा से है, जिसमें पृथ्वी की सतह के नौगम्य भाग और उससे सटे तटीय क्षेत्रों की भौतिक विशेषताओं को मापा जाता है एवं उसका वर्णन किया जाता है। इसके अंतर्गत महासागरों, समुद्रों, तटीय क्षेत्रों, झीलों और नदियों आदि को मापने के साथ-साथ आगामी समय में इनमें आने वाले विभिन्न परिवर्तनों की व्याख्या की जाती है। ध्यातव्य है कि हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण के अभाव में जहाज़ों या मछली पकड़ने वाली नौकाओं के लिये नेवीगेशन काफी कठिन हो जाता है। विश्व हाइड्रोग्राफी दिवस मोनाको (Monaco) स्थित अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन (International Hydrographic Organization-IHO) की पहल पर मनाया जाता है। यह दिवस सर्वप्रथम वर्ष 2006 में आयोजित किया गया था। वर्ष 2020 के लिये इस दिवस का थीम ‘स्वायत्त प्रौद्योगिकियों को सक्षम करती हाइड्रोग्राफी’ (Hydrography enabling autonomous technologies) रखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक संगठन (IHO) वर्ष 1921 में गठित एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विश्व के सभी समुद्रों, महासागरों और नौगम्य जल क्षेत्रों के सर्वेक्षण का कार्य करता है।
विश्व संगीत दिवस
प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस (World Music Day) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य संगीत के माध्यम से शांति और सद्भावना को बढ़ावा देना है। विश्व संगीत दिवस सर्वप्रथम 21 जून, 1982 को फ्रांँस में मनाया गया था। इस दिवस के आयोजन की कल्पना सर्वप्रथम वर्ष 1981 में फ्रांँस के तत्कालीन संस्कृति मंत्री द्वारा की गई थी। तभी से इस दिन को प्रत्येक वर्ष विश्व संगीत दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत समेत विश्व के तमाम देशों में इस अवसर पर जगह-जगह संगीत प्रतियोगिताओं और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वर्तमान समय में संगीत एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया है, जिसका प्रयोग वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्ति को मानसिक रोगों व व्याधियों से मुक्ति प्रदान करने के लिये किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि एक कैरियर के रूप में भी संगीत का क्षेत्र असीम संभावनाओं से भरा हुआ है और मौजूदा समय में विभिन्न युवा संगीत को अपना रहे हैं।