विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डार्क मैटर आकाशगंगाओं को आकार देता है
प्रिलिम्स के लिये:डार्क मैटर, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, डार्क एनर्जी, ब्लैक होल मेन्स के लिये:डार्क मैटर, डार्क एनर्जी, ब्लैक होल, ब्रह्मांड का विस्तार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने जाँच में पाया है कि कुछ आकाशगंगाओं (stellar bars) के केंद्र में सितारों की गति से डार्क मैटर का आकार कैसे प्रभावित होता है साथ ही उन्होंने पाया कि इससे वर्जित आकाशगंगाओं में डार्क मैटर हेलो (dark matter halos) के माध्यम से अक्ष के बाहर की ओर झुकने को समझाया जा सकता है।
- ‘वर्जित आकाशगंगाओं’ या तारों से बनी केंद्रीय छड़ के आकार की संरचना में छड़ का समतल से बाहर की ओर झुकने से एक दुर्लभ छड़ की मोटाई बढने की क्रियाविधि को बकलिंग के रूप में जाना जाता है।
- एक गहरा प्रभामंडल अदृश्य सामग्री (डार्क मैटर) का अनुमानित प्रभामंडल होता है जो आकाशगंगाओं के समूहों को घेरता है।
नोट:
- एक वर्जित सर्पिल आकाशगंगा में तारों से बनी एक केंद्रीय छड़ के आकार की संरचना होती है।
- उदाहरण के लिये मिल्की वे तारों से बनी एक डिस्कनुमा आकाशगंगा है जो एक चपटी डिस्क के केंद्र के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में घूमती है, जिसके केंद्र में तारों का घना संग्रह होता है जिसे उभार कहा जाता है।
- इन उभारों का आकार लगभग गोलाकार से लेकर आकाशगंगा डिस्क जितना सपाट हो सकता है। आकाशगंगा के केंद्र में एक सपाट बॉक्सी या मूंगफली के आकार का उभार होता है।
- आकाशगंगाओं में तारकीय छड़ें के मोटे होने के कारण इस तरह के उभार बनते हैं।
- यह एक प्रबल स्थूलन बकलिंग है, जहाँ आकाशगंगा डिस्क के सपाट होने के कारण तारकीय छड़ों में झुकाव होता है।
- तारकीय छड: आकाशगंगाओं में तारों का एक छड़ के आकार का संचय।
प्रमुख बिंदु:
- डार्क मैटर के बारे में:
- डार्क मैटर का हालाँकि कभी पता नहीं चला लेकिन माना जाता है कि यह पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ है।
- यह माना जाता है कि पुराने ब्लैक होल, जो ब्रह्मांड के प्रारंभिक युग में बने थे, डार्क मैटर का स्रोत हैं। यह प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग द्वारा कहा गया था।
- ऐसा माना जाता है कि डार्क एनर्जी के साथ मिलकर यह ब्रह्मांड के 95% से अधिक भाग का निर्माण करता है।
- इसका गुरुत्वाकर्षण बल हमारी आकाशगंगा में तारों को दूर जाने से रोकता है।
- हालाँकि भूमिगत प्रयोगों या दुनिया के सबसे बड़े त्वरक, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) सहित त्वरक अन्य प्रयोगों का उपयोग करके ऐसे डार्क मैटर कणों का पता लगाने के प्रयास अब तक विफल रहे हैं।
- ब्रह्मांड में डार्क मैटर की उपस्थिति:
- गुरुत्त्वाकर्षण के नियम यह उम्मीद पैदा करते हैं कि तारों की तुलना में तेज़ी से घूमते हुए आकाशगंगाओं के केंद्र के करीब देख पाएंगे।
- हालाँकि अधिकांश आकाशगंगाओं में केंद्र के करीब के तारे और आकाशगंगाओं के किनारे के तारे एक चक्कर लगाने में लगभग समान समय लेते हैं।
- इसका तात्पर्य यह था कि कुछ अदृश्य आकाशगंगाओं के माध्यम से बाहरी तारों पर अतिरिक्त दवाब लग रहा था, जिससे वे गति कर रहे थे।
- यह इकाई 1930 के दशक से ब्रह्मांड विज्ञान में अनसुलझी पहेली बनी हुई है। इसे 'डार्क मैटर' नाम दिया गया था।
- इस सामग्री को 'पदार्थ' माना जाता है क्योंकि इसमें गुरुत्वाकर्षण होता है और यह अंधेरे से युक्त होता है क्योंकि यह प्रकाश (या विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के किसी भी भाग) के साथ संबंधित नहीं होता है।
- गुरुत्त्वाकर्षण के नियम यह उम्मीद पैदा करते हैं कि तारों की तुलना में तेज़ी से घूमते हुए आकाशगंगाओं के केंद्र के करीब देख पाएंगे।
- डार्क मैटर और डार्क एनर्जी:
- डार्क मैटर आकाशगंगाओं को एक साथ आकर्षित (Attracts) और धारण (Holds) करता है, जबकि डार्क एनर्जी हमारे ब्रह्मांड के विस्तार का कारण बनती है।
- दोनों घटकों के अदृश्य होने के बावजूद डार्क मैटर के बारे में बहुत कुछ ज्ञात है, क्योंकि 1920 के दशक में डार्क मैटर के अस्तित्व के बारे में बताया गया, जबकि 1998 तक डार्क एनर्जी की खोज नहीं की गई थी।
- डार्क एनर्जी:
- बिग बैंग की उत्पत्ति एवं इसका विस्तार लगभग 15 अरब वर्ष पहले हुआ। पूर्व में खगोलविदों का मानना था कि गुरुत्वाकर्षण के कारण ब्रह्मांड का विस्तार धीमा हो जाएगा और फिर अंततः इसका लोप (Recollapse) हो जाएगा।
- हालाँकि हबल टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा के अनुसार, ब्रह्मांड का तेज़ी से विस्तार हो रहा है।
- खगोलविदों का मानना है कि तेज़ी से विस्तार की यह दर उस रहस्यमय डार्क फोर्स या एनर्जी के कारण है जो आकाशगंगाओं को अलग कर रही है।
- 'डार्क' (Dark) शब्द का प्रयोग अज्ञात को दर्शाने हेतु किया जाता है।
- निम्नलिखित चित्र 15 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड के जन्म के बाद से उसके विस्तार की दर में परिवर्तन को दर्शाता है।
- बिग बैंग की उत्पत्ति एवं इसका विस्तार लगभग 15 अरब वर्ष पहले हुआ। पूर्व में खगोलविदों का मानना था कि गुरुत्वाकर्षण के कारण ब्रह्मांड का विस्तार धीमा हो जाएगा और फिर अंततः इसका लोप (Recollapse) हो जाएगा।
ब्लैक होल:
- यह अंतरिक्ष में एक ऐसे बिंदु को संदर्भित करता है जहांँ संकुचन के कारण इतना अधिक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उत्पन्न होता है जिससे प्रकाश भी नहीं बच सकता।
- इस अवधारणा को 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित किया गया था और 'ब्लैक होल' शब्द को 1960 के दशक के मध्य में अमेरिकी भौतिक विज्ञानी जॉन आर्चीबाल्ड व्हीलर द्वारा गढ़ा गया था।
- आमतौर पर ब्लैक होल की दो श्रेणियों होती है:
- एक श्रेणी तारकीय ब्लैक होल की है जो कुछ सौर द्रव्यमानों से बनती है। ऐसा माना जाता है कि बड़े तारों के मृत होने से ब्लैक होल बनते हैं।
- दूसरी श्रेणी सुपरमैसिव ब्लैक होल की है। ये सौरमंडल के सूर्य की संख्या की तुलना में हज़ारों गुना की संख्या में हैं। ऐसा माना जाता है कि जब दो या दो से अधिक ब्लैक होल आपस में मिल जाते हैं तो इनका निर्माण होता है।
- अप्रैल 2019 में इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल (अधिक सटीक रूप से इसकी छाया की) की पहली छवि जारी की।
- इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप विश्व के विभिन्न हिस्सों में स्थित 8 रेडियो टेलीस्कोप (अंतरिक्ष से रेडियो तरंगों का पता लगाने के लिये प्रयुक्त) का एक समूह है।
- गुरुत्वाकर्षण तरंगें तब उत्पन्न होती हैं जब दो ब्लैक होल एक दूसरे की परिक्रमा करते हुए विलीन हो जाते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय इतिहास
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
प्रिलिम्स के लिये:भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेन्स के लिये:आधुनिक भारतीय इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम, आज़ाद हिंद फौज और सुभाष चंद्र बोस, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाने और वर्ष भर चलने वाले समारोह के हिस्से के रूप में इंडिया गेट पर उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- अलंकरण समारोह के दौरान वर्ष 2019, वर्ष 2020, वर्ष 2021 और वर्ष 2022 के लिये ‘सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार’ भी प्रदान किये जाएंगे।
सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार
- आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा प्रदान किये गए अमूल्य योगदान एवं निस्वार्थ सेवा को पहचानने व सम्मानित करने हेतु वार्षिक ‘सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार’ की स्थापना की गई है।
- पुरस्कार की घोषणा प्रतिवर्ष 23 जनवरी को की जाती है।
- इसमें संस्था के मामले में 51 लाख रुपए का नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र तथा एक व्यक्ति के मामले में 5 लाख रुपए एवं प्रमाण पत्र दिया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- जन्म:
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
- उनकी जयंती 23 जनवरी को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाई जाती है।
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
- शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
- वर्ष 1919 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की थी। हालाँकि बाद में बोस ने इस्तीफा दे दिया।
- वह विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
- उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।
- वर्ष 1921 में बोस ने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र 'फॉरवर्ड' के संपादन का कार्यभार संभाला।
- कॉन्ग्रेस के साथ संबंध:
- उन्होंने बिना शर्त स्वराज (Unqualified Swaraj) अर्थात् स्वतंत्रता का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (Motilal Nehru Report) का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन के दर्जे की बात कही गई थी।
- उन्होंने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया।
- वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वाम राजनीति में संलग्न रहे।
- बोस वर्ष 1938 में हरिपुरा में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
- वर्ष 1939 में त्रिपुरी (Tripuri) में उन्होंने गांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या (Pattabhi Sitaramayya) के खिलाफ फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव जीता।
- उन्होंने एक नई पार्टी 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। इसका उद्देश्य अपने गृह राज्य बंगाल में राजनीतिक वामपंथ और प्रमुख समर्थन आधार को मज़बूत करना था।
- भारतीय राष्ट्रीय सेना:
- वह जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ जारी किया और 21 अक्तूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।
- भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इविची फुजिवारा (Iwaichi Fujiwara) के नेतृत्त्व में किया गया था तथा इसमें मलायन (वर्तमान मलेशिया) अभियान के दौरान सिंगापुर में जापान द्वारा कैद किये गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के युद्ध बंदियों को शामिल किया गया था।
- साथ ही इसमें सिंगापुर की जेल में बंद भारतीय कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीय नागरिक भी शामिल थे। इसकी सैन्य संख्या बढ़कर 50,000 हो गई थी।
- INA ने वर्ष 1944 में इम्फाल और बर्मा में भारत की सीमा के भीतर मित्र देशों की सेनाओं का मुकाबला किया।
- नवंबर 1945 में ब्रिटिश सरकार द्वारा INA के सदस्यों पर मुकदमा चलाए जाने के तुरंत बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।
- मृत्यु:
- वर्ष 1945 में ताइवान में विमान दुर्घटनाग्रस्त में उनकी मृत्यु हो गई। हालाँकि अभी भी उनकी मृत्यु के संबंध में कई राज छिपे हुए हैं।
स्रोत: पी.आई.बी
भारतीय राजव्यवस्था
स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:ओबीसी आरक्षण, शहरी स्थानीय निकाय। मेन्स के लिये:स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण का महत्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने दिसंबर 2021 के आदेश को वापस लेने का फैसला किया, जिसके माध्यम से स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण देने की ज़िम्मेदारी पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपी है।
- महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहाँ स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाई गई थी। दिसंबर 2021 में, शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार के लिये एक समान आदेश पारित किया, जिसमें ओबीसी सीटों को तीन-परीक्षण मानदंडों (जैसा कि 2010 के फैसले में कहा गया है) का पालन करने में विफल रहने पर सामान्य श्रेणी के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- इसी तरह मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसी तरह का एक आवेदन किया है, जिसमें राज्य में 51% ओबीसी आबादी होने का दावा किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- मार्च 2021 में SC ने राज्य सरकार को तीन शर्तों का पालन करने के लिये कहा था- ओबीसी आबादी से संबंधित अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने के लिये एक समर्पित आयोग की स्थापना, आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना और यह सुनिश्चित करना कि आरक्षित सीटों का संचयी हिस्सा कुल सीटों में से 50% का उल्लंघन न करे।
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने ओबीसी के अनुभवजन्य डेटा के लिये समर्पित आयोग की नियुक्ति की और 50% आरक्षण की सीमा को पार किये बिना स्थानीय निकायों में ओबीसी को 27% तक आरक्षण देने के लिये एक अध्यादेश भी जारी किया।
- हालाँकि शीर्ष अदालत ने दिसंबर 2021 में यह कहते हुए रोक लगा दी कि इसे अनुभवजन्य डेटा के बिना लागू नहीं किया जा सकता है और राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को ओबीसी सीटों को सामान्य श्रेणी में रखकर चुनाव कराने को कहा है।
- दलील:
- महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया कि शीर्ष अदालत द्वारा दिये गए दिसंबर के आदेश के दो प्रतिकूल प्रभाव होंगे।
- ओबीसी से संबंधित व्यक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्वाचित पदों पर चुने जाने के अवसर से वंचित होंगे, जो न केवल ओबीसी समुदाय के निवासियों की आकांक्षाओं को पूरा बल्कि अन्य सभी समुदायों के विकास में मदद करते थे।
- ओबीसी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व या गैर-प्रतिनिधित्त्व संवैधानिक योजना के उद्देश्य व मंशा के बिल्कुल विपरीत है।
- राज्य ने यह भी दावा किया कि उसने पहले ही एक आयोग नियुक्त करके और डेटा एकत्र करके तीन परीक्षण दिशा निर्देशों में से दो का पालन किया था।
- महाराष्ट्र के कुछ ज़िलों में आरक्षण ओबीसी की जनसंख्या के अनुपात पर आधारित है और पूरे महाराष्ट्र राज्य के सभी ज़िलों में 27% का समग्र आरक्षण नहीं है।
- स्थानीय निकायों में 27% ओबीसी कोटा को सही ठहराने हेतु एक मध्यवर्ती उपाय के रूप में राज्य ने एक नमूना सर्वेक्षण का उल्लेख किया जिसमें कहा गया कि नमूना आकार में ओबीसी का वितरण 48.6% पाया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को ‘महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग’ (MSCBC) द्वारा ओबीसी डेटा की जांँच करने और स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें करने का निर्देश दिया।
- निहितार्थ:
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा बहाल करने की संभावना को बढ़ा दिया है।
- सरकारी आंँकड़ों में राज्य के ग्रामीण विकास विभाग और शहरी विकास विभाग के गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्रों हेतु स्थानीय निकायों द्वारा विभिन्न सर्वेक्षण शामिल हैं।
- सरकार पूर्व पिछड़ा वर्ग आयोग के आंँकड़ों और वर्ष 2011 की जनगणना के आंँकड़ों का भी हवाला दे सकती है।
- सरकार को MSCBC और राज्य चुनाव आयोग के साथ उचित समन्वय सुनिश्चित करना होगा और स्थानीय निकायों में ओबीसी कोटा बहाल करने हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये।
वर्ष 2010 का निर्णय
- के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ वाद (2010) में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की थी, जो कानून के अधिनियमन द्वारा क्रमशः पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की अनुमति देते हैं। इसमें सर्वोच्च न्ययालय ने यह माना था कि राजनीतिक भागीदारी की बाधाएँ, शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान नहीं हैं।
- समान अवसर देने हेतु आरक्षण को वांछनीय माना जाता है, जैसा कि उपरोक्त अनुच्छेदों द्वारा अनिवार्य है जो कि आरक्षण के लिये एक अलग संवैधानिक आधार प्रदान करते हैं, जबकि अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) के तहत शिक्षा व रोज़गार में आरक्षण की परिकल्पना की गई है।
- यद्यपि स्थानीय निकायों को आरक्षण की अनुमति है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि यह आरक्षण स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन के अनुभवजन्य डेटा के अधीन है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
बाघ संरक्षण पर चौथा एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:बाघ की संरक्षण स्थिति, सुनिश्चित संरक्षण, टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS), ग्लोबल टाइगर समिट, प्रोजेक्ट टाइगर मेन्स के लिये:बाघ संरक्षण और इससे संबंधित पहल का महत्त्व, जैव विविधता के नुकसान के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बाघ संरक्षण पर चौथा एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया है।
- भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने बाघों के पुनरुत्पादन के लिये दिशा निर्देश जारी करने का निर्णय लिया है जिनका उपयोग अन्य बाघ रेंज वाले देशों द्वारा किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम की प्रगति और बाघ संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धताओं की समीक्षा के लिये यह सम्मेलन महत्त्वपूर्ण है।
- इसका आयोजन मलेशिया और ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF) द्वारा किया गया था।
- भारत इस वर्ष (2022) के अंत में रूस में होने वाले ग्लोबल टाइगर समिट के लिये नई दिल्ली घोषणा को अंतिम रूप देने की दिशा में बाघ रेंज वाले देशों को सुविधा प्रदान करेगा।
- वर्ष 2010 में नई दिल्ली में एक "प्री-टाइगर समिट" आयोजित की गई थी, जिसमें ग्लोबल टाइगर समिट के लिये बाघ संरक्षण के मसौदा को अंतिम रूप दिया गया था।
- भारत, बाघ रेंज वाले देशों के अंतर-सरकारी मंच ग्लोबल टाइगर फोरम के संस्थापक सदस्यों में से एक है।
- पिछले कुछ वर्षों में GTF ने भारत सरकार, भारत में बाघ राज्य और बाघ रेंज वाले देशों के साथ मिलकर कार्य करते हुए कई विषयगत क्षेत्रों पर अपने कार्यक्रम का विस्तार किया है।
- GTF में बाघ रेंज वाले देश: बांग्लादेश, भूटान, भारत, कंबोडिया, नेपाल, म्याँमार और वियतनाम।
- बाघ संरक्षण का महत्व:
- पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण:
- बाघ एक अनूठा जानवर है जो किसी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वनों को स्वच्छ हवा, पानी, परागण, तापमान विनियमन आदि जैसी पारिस्थितिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये जाना जाता है।
- बाघ एक अनूठा जानवर है जो किसी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- खाद्य शृंखला बनाए रखना:
- यह खाद्य शृंखला का एक उच्च उपभोक्ता है जो खाद्य शृंखला में शीर्ष पर है और जंगली (मुख्य रूप से बड़े स्तनपायी) आबादी पर नियंत्रण रखता है।
- इस प्रकार बाघ शिकार द्वारा उन शाकाहारी जंतुओं और उस वनस्पतियों के मध्य संतुलन बनाए रखने में मदद करता है जिन पर वह भोजन के लिये निर्भर होता है।
- पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण:
- बाघ संरक्षण की स्थिति:
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट: लुप्तप्राय
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट- I
- भारत की बाघ संरक्षण स्थिति:
- भारत वैश्विक स्तर पर बाघों की 70% से अधिक आबादी का घर है।
- भारत के 18 राज्यों में कुल 53 बाघ अभयारण्य हैं और वर्ष 2018 की अंतिम बाघ गणना में इनकी आबादी में वृद्धि देखी गई।
- गुरु घासीदास (छत्तीसगढ़) 53वाँ टाइगर रिज़र्व है।
- भारत ने बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा (St. Petersburg Declaration) से चार वर्ष पहले बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल किया।
- भारत की बाघ संरक्षण रणनीति में स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया गया है।
- उठाए गए कदम:
- कंज़र्वेशन एश्योर्ड|टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS):
- भारत में 14 टाइगर रिज़र्व को पहले ही कंज़र्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS) से सम्मानित किया जा चुका है तथा अधिक से अधिक टाइगर रिज़र्व को (CA|TS) के तहत लाने के लिये प्रयास जारी हैं।
- प्रोजेक्ट टाइगर:
- यह वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों को आश्रय प्रदान करती है।
- बजटीय आवंटन:
- बाघों के संरक्षण के लिये बजटीय आवंटन वर्ष 2014 में 185 करोड़ रुपए था जिसे वर्ष 2022 में बढ़ाकर 300 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
- फ्रंटलाइन स्टाफ की मदद करना:
- फ्रंटलाइन स्टाफ जो कि बाघ संरक्षण का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है, के लिये श्रम और रोजगार मंत्रालय की हालिया पहल ई-श्रम के तहत प्रत्येक संविदा/अस्थायी कार्यकर्त्ता को 2 लाख रुपए का जीवन कवर और आयुष्मान योजना के तहत 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य कवर प्रदान किया गया है।
- कंज़र्वेशन एश्योर्ड|टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS):
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
बेटियों की विरासत पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
प्रिलिम्स के लिये:अधिकारों से संबंधित मुद्दे, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, सर्वोच्च न्यायालय, मिताक्षरा कानून, दयाभाग कानून मेन्स के लिये:विरासत में बेटियों की हिस्सेदारी से संबंधित भारतीय कानून, हिंदू कानून, भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला सुनाया है कि वर्ष 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) के तहत कानून के लागू होने से पहले की संपत्तियों पर भी बेटियों को समान अधिकार होगा।
- इस निर्णय में एक ऐसे व्यक्ति की संपत्ति का विवाद शामिल था, जिसकी वर्ष 1949 में मृत्यु हो गई थी और वह अपने पीछे एक बेटी छोड़ गया था, जिसकी 1967 में मृत्यु हो गई थी।
- इससे पूर्व ट्रायल कोर्ट ने माना था कि चूँकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले उस महिला की मृत्यु हो गई थी और याचिकाकर्त्ता और उसकी अन्य बहनें उस महिला की मृत्यु की तारीख को वारिस नहीं बनी थीं और इसलिये संपत्ति में हिस्से के विभाजन की हकदार नहीं थीं। बाद में उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के खिलाफ अपील खारिज कर दी।
प्रमुख बिंदु
- विरासत में बेटियों की हिस्सेदारी: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक ऐसे व्यक्ति की संपत्ति, जो बिना वसीयत किये मर गया और उसकी केवल एक बेटी हो तो उसकी बेटी को संपत्ति में समग्र अधिकार प्राप्त होगा, न कि परिवार के किसी अन्य सदस्य को।
- इससे पहले वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में पुरुष उत्तराधिकारियों के समान शर्तों पर हिंदू महिलाओं के लिये पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकारी और सहदायक (संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी) के अधिकार का विस्तार किया है।
- प्राचीन ग्रंथ और न्यायिक घोषणाएँ: सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न प्राचीन ग्रंथों (स्मृति), प्रसिद्ध विद्वानों की टिप्पणियों और यहाँ तक कि न्यायिक घोषणाओं का उल्लेख किया है, जिन्होंने कई महिला उत्तराधिकारी के रूप में, पत्नियों और बेटी के अधिकारों को मान्यता दी है।
- विरासत पर प्रथागत हिंदू कानून के स्रोतों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मिताक्षरा कानून’ पर चर्चा की।
- SC ने श्यामा चरण सरकार विद्या भूषण द्वारा हिंदू कानून के एक डाइजेस्ट, ‘व्यवस्था चंद्रिका’ को भी देखा जिसमें 'वृहस्पति' को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि 'पत्नी को उसके पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी घोषित किया जाता है तथा उसकीअनुपस्थिति में एक पुत्र के रूप में बेटी उसके वंश को आगे बढ़ाती हैं।
- SC ने यह भी नोट किया कि पुस्तक में मनु द्वारा कहा गया है कि "एक आदमी का बेटा उसका उतराधिकारी होता है और बेटी बेटे के बराबर होती है। फिर कोई अन्य उसकी संपत्ति का वारिस कैसे बन सकता है, उसके जीवित रहने के बावजूद, जो कि जैसा है, वैसा ही है”.
- पुराना कानून: एक विधवा या बेटी का स्व-अर्जित संपत्ति का उत्तराधिकार या एक हिंदू पुरुष की सहदायिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त हिस्से का अधिकार पुराने प्रथागत हिंदू कानून के तहत अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है।
- यदि एक मृत हिंदू पुरुष की निर्वसीयत संपत्ति एक स्व-अर्जित संपत्ति है या एक सहदायिक या पारिवारिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त संपत्ति है तो वह उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित होगी न कि उत्तरजीविता द्वारा, और ऐसे हिंदू पुरुष की बेटी हकदार होगी कि इस तरह की संपत्ति में उसे अन्य की अपेक्षा वरीयता प्राप्त हो।
- महिला की मृत्यु के बाद संपत्ति: न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर एक हिंदू महिला बिना किसी उत्तराधिकारी के मर जाती है, तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों के पास जाएगी, जबकि उसके पति से प्राप्त संपत्ति ससुर के वारिसों के पास जाएंगी।
भारत में भूमि अधिकार और महिलाएँ
- संबंधित डेटा: भारत में संपत्ति बड़े पैमाने पर पुरुष उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित करने के इच्छुक हैं। यह बदले में महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता और उद्यमिता से वंचित करता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, 43% महिला उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके पास अकेले या संयुक्त रूप से घर/भूमि है, लेकिन वास्तव में संपत्ति तक पहुँच और महिलाओं की नियंत्रण क्षमता के बारे में संदेह बना हुआ है।
- वास्तव में, मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के 2020 के एक वर्किंग पेपर में ग्रामीण जमींदार घरों में बमुश्किल 16% महिलाओं के पास अपनी ज़मीन है।
- पितृसत्ता: गहरे पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों और ग्रामीण-कृषि व्यवस्था में संपत्ति, जिसे धन के प्राथमिक स्रोत के रूप में देखा जाता है, का अधिकार काफी हद तक पुरुष उत्तराधिकारियों को दिया जाता है।
- राज्य कानून: कृषि भूमि के लिये विरासत कानूनों में केंद्रीय व्यक्तिगत कानूनों और राज्य कानूनों में परस्पर विरोध है।
- इस संबंध में, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश (यूपी) और यहाँ तक कि दिल्ली जैसे राज्यों में प्रतिगामी उत्तराधिकार प्रावधान हैं।
- वास्तव में हरियाणा ने दो बार HSA, 1956 के माध्यम से महिलाओं को दिये गए प्रगतिशील अधिकारों को छीनने की कोशिश की, जबकि यूपी में वर्ष 2016 से विवाहित बेटियों को प्राथमिक उत्तराधिकारी नहीं माना जाता है।
- ज़मीनी स्तर पर विरोधः कई उत्तर भारतीय राज्यों में महिलाओं के लिये ज़मीन के पंजीकरण का जमीनी स्तर पर विरोध भी हो रहा है. इस प्रकार महिला सशक्तीकरण और संपत्ति का अधिकार एक अधूरी परियोजना बनी हुई है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956:
- परिचय:
- हिंदू कानून की मिताक्षरा धारा को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया, संपत्ति के वारिस एवं उत्तराधिकार को इसी अधिनियम के तहत प्रबंधित किया गया, जिसने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को मान्यता दी।
- यह उन सभी पर लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं। बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायियों को भी इस कानून के तहत हिंदू माना गया हैं।
- एक अविभाजित हिंदू परिवार में कई पीढ़ियों के संयुक्त रूप से कई कानूनी उत्तराधिकारी मौजूद हो सकते हैं। कानूनी उत्तराधिकारी परिवार की संपत्ति की संयुक्त रूप से देख-रेख करते हैं।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम [Hindu Succession (Amendment) Act], 2005:
- 1956 के अधिनियम को सितंबर 2005 में संशोधित किया गया और वर्ष 2005 से संपत्ति विभाजन के मामले में महिलाओं को सह्दायक/कॉपर्सेंनर के रूप में मान्यता दी गई।
- अधिनियम की धारा 6 में संशोधन करते हुए एक कॉपर्सेंनर की पुत्री को भी जन्म से ही पुत्र के समान कॉपर्सेंनर माना गया।
- इस संशोधन के तहत पुत्री को भी पुत्र के समान अधिकार और देनदारियाँ दी गई।
- यह कानून पैतृक संपत्ति और व्यक्तिगत संपत्ति में उत्तराधिकार के नियम को लागू करता है, जहाँ उत्तराधिकार को कानून के अनुसार लागू किया जाता है, न कि एक इच्छा-पत्र के माध्यम से।
हिंदू कानून से संबंधित विधियाँ/नियम |
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मिताक्षरा कानून |
दयाभागा कानून |
मिताक्षरा पद की उत्पत्ति याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखित एक टीका के नाम से हुई है। |
दयाभाग पद जिमुतवाहन द्वारा लिखी गई, समान नाम की पुस्तक से लिया गया है। |
भारत के सभी भागों में इसका प्रभाव देखने को मिलता है और यह बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र एवं द्रविड़ शैली में उप-विभाजित है। |
बंगाल और असम में इसका प्रभाव देखने को मिलता है। |
जन्म से ही संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति में पुत्र की हिस्सेदारी होती है। |
पुत्र का संपत्ति पर जन्म से कोई स्वामित्व/अधिकार नहीं होता है, परंतु वह अपने पिता की मृत्यु के बाद स्वतः ही इस अधिकार को प्राप्त कर लेता है। |
एक पिता के संपूर्ण जीवनकाल के दौरान परिवार के सभी सदस्य को कॉपर्सनरी का अधिकार प्राप्त होता है। |
पिता के जीवनकाल में पुत्र को कॉपर्सनर का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। |
इसमें कॉपर्सनर का भाग परिभाषित नहीं है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। |
प्रत्येक कॉपर्सनर के हिस्से को परिभाषित किया गया है और इसे समाप्त किया जा सकता है। |
पत्नी बँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और पुत्रों के बीच किसी भी बँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार प्राप्त है। |
यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि पुत्र बँटवारे की मांग नहीं कर सकता हैं और यहाँ पिता ही पूर्ण मालिक होता है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
खाद्य सुरक्षा पर भारत और ब्रिटेन के बीच सहयोग
प्रिलिम्स के लिये:विभिन्न क्षेत्रों में भारत-ब्रिटेन साझेदारी। मेन्स के लिये:भारत-ब्रिटेन संबंध और चुनौतियों का महत्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने "पर्यावरणीय तनाव के तहत सतत् खाद्य उत्पादन" पर संयुक्त भारत-ब्रिटेन बैठक को संबोधित किया और खाद्य सुरक्षा एवं शून्य भूख के लक्ष्यों को प्राप्त करने जैसे पारस्परिक चिंता के मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग का आह्वान किया।
प्रमुख बिंदु
- विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक सहयोग का आह्वान:
- भारत और ब्रिटेन को कृषि, चिकित्सा, खाद्य, फार्मा, इंजीनियरिंग या रक्षा और विज्ञान के विभिन्न आयामों में वैश्विक सहयोग को आमंत्रित करना चाहिये।
- भारत-ब्रिटेन संयुक्त सहयोग में छात्र आदान-प्रदान, बुनियादी अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास, उत्पाद विकास के साथ-साथ उत्पाद/प्रक्रिया प्रदर्शन और संयुक्त सहयोग में उनके कार्यान्वयन जैसे कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
- संकुचित कृषि योग्य भूमि का मुद्दा:
- सतत् खाद्य उत्पादन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हुए दक्षिण एशियाई क्षेत्र वैश्विक जलवायु परिवर्तन की समस्या के अलावा कृषि योग्य भूमि के संकुचन का सामना कर रहा है, जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया में कृषि योग्य भूमि वर्ष 2018 में 43.18% बताई गई थी जो वर्ष 1970 के दशक की शुरुआत से स्थिर रही है और हाल ही में घट रही है।
- उपज और भूमि का अधिक गहन उपयोग फसल उत्पादन में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होगा और कृषि योग्य भूमि क्षेत्र में नुकसान की भरपाई भी करेगा।
- सतत् खाद्य उत्पादन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हुए दक्षिण एशियाई क्षेत्र वैश्विक जलवायु परिवर्तन की समस्या के अलावा कृषि योग्य भूमि के संकुचन का सामना कर रहा है, जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है।
- पोषाहार व खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार:
- राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (National Agri-Food Biotechnology Institute) दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के तहत राष्ट्रों की पोषण सुरक्षा को संबोधित करने की आवश्यकता को गति प्रदान कर सकता है।
- NABI एक प्रमुख संस्थान है जो कृषि-खाद्य और पोषण जैव प्रौद्योगिकी के लिये कार्य करता है।
- राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (National Agri-Food Biotechnology Institute) दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के तहत राष्ट्रों की पोषण सुरक्षा को संबोधित करने की आवश्यकता को गति प्रदान कर सकता है।
- चुनौतियों का समाधान करने के लिये संयुक्त अनुदान:
- खाद्य उत्पादन और वितरण के वैश्विक पैटर्न को जलवायु परिवर्तन की प्रगति के रूप में महत्त्वपूर्ण रूप से स्थानांतरित करने की आवश्यकता हो सकती है।
- एक सुसंगत और हितधारक-प्रासंगिक अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) कार्यक्रम विकसित करने के लिये संयुक्त वित्तपोषण की आवश्यकता है जो इस चुनौती का समाधान करेगा।
भारत-ब्रिटेन साझेदारी:
- भारत-ब्रिटेन साझेदारी के बारे में:
- साझा इतिहास और समृद्ध संस्कृति पर बनी साझेदारी के साथ भारत और यूके जीवंत लोकतंत्र हैं।
- यूके में विविध भारतीय डायस्पोरा, जो "लिविंग ब्रिज" के रूप में कार्य करता है, दोनों देशों के बीच संबंधों को गतिशीलता प्रदान करते हैं।
- G20 देशों में यूके भारत के सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
- हाल ही में दोनों देशों ने एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत करने की घोषणा की है जिसमें प्रारंभिक लाभ देने के लिये एक अंतरिम व्यापार समझौते पर विचार करना शामिल है।
- भारत-प्रशांत क्षेत्र की ओर ब्रिटेन के झुकाव के हिस्से के रूप में यूके कैरियर स्ट्राइक ग्रुप सिंगापुर, कोरिया गणराज्य, जापान और भारत के साथ सहभागिता कर रहा है।
- रोडमैप 2030:
- द्विपक्षीय संबंधों को "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाने के लिये दोनों देशों ने वर्ष 2021 में रोडमैप 2030 को अपनाया है।
- यह स्वास्थ्य, जलवायु, व्यापार, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा रक्षा क्षेत्र में ब्रिटेन-भारत संबंधों के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
- सुरक्षा और रक्षा:
- समुद्री क्षेत्र में जागरूकता पर सहयोग:
- इसमें गुरुग्राम स्थित भारत के सूचना संलयन केंद्र में शामिल होने हेतु ब्रिटेन को निमंत्रण और एक महत्त्वाकांक्षी अभ्यास कार्यक्रम शामिल है।
- लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 2:
- ब्रिटेन, भारत के स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 2 (Light Combat Aircraft Mark-2) के विकास में सहायता करेगा।
- अभ्यास:
- वायु सेना अभ्यास 'इंद्रधनुष'।
- नौसेना अभ्यास कोंकण।
- थल सेना अभ्यास 'अजय योद्धा'।
- समुद्री क्षेत्र में जागरूकता पर सहयोग:
- जलवायु परिवर्तन:
- भारत और ब्रिटेन ने संयुक्त रूप से ग्लासगो में COP26 वर्ल्ड लीडर्स समिट में एक नई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहल शुरू की, जो 80 से अधिक देशों द्वारा समर्थित है, जिसका उद्देश्य एक स्वच्छ विश्व की ओर वैश्विक ट्रांज़ीशन को गति प्रदान करना है।
- 'ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव - वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड' (GGI-OSOWOG) नामक इस नई पहल का उद्देश्य महाद्वीपों, देशों और समुदायों में परस्पर बिजली ग्रिड के विकास एवं तैनाती में तेज़ी लाना तथा गरीबों के लिये ऊर्जा तक पहुँच में सुधार करना है।