NIRF रैंकिंग में खामियाँ
प्रिलिम्स के लिये:बिब्लियोमेट्रिक्स, NIRF रैंकिंग मानदंड मेन्स के लिये:NIRF रैंकिंग- कार्यप्रणाली, खामियाँ, नतीज़े और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institution Ranking Framework- NIRF) ने हाल ही में विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय रैंकिंग की घोषणा की, जिसे विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा त्रुटिपूर्ण बताया गया है।
NIRF रैंकिंग की प्रक्रिया और इससे संबद्ध समस्या:
- NIRF विभिन्न श्रेणियों में रैंकिंग जारी करता है, जैसे- 'समग्र' (Overall), 'अनुसंधान संस्थान' (Research Institutions), 'विश्वविद्यालय' और 'कॉलेज' (Universities and Colleges), तथा इंजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मेसी, कानून आदि जैसे विशिष्ट विषय।
- NIRF द्वारा संस्थानों की रैंकिंग उनके कुल अंकों के आधार पर की जाती है, इस स्कोर/अंक को निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित पाँच संकेतकों का उपयोग किया जाता है:
- शिक्षण, शिक्षा और संसाधन (Teaching, Learning and Resources- TLR)- भारांक 30 फीसदी।
- अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices- RP)- भारांक 30 फीसदी।
- स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes- GO)- भारांक 20 फीसदी।
- पहुँच और समावेशिता (Outreach and Inclusivity- OI)- भारांक 10 फीसदी।
- समकक्ष अनुभूति (Peer Perception)- भारांक 10 फीसदी।
- NIRF रैंकिंग से जुड़े मुद्दे:
- इस मूल्यांकन में अनुसंधान और पेशेवर/व्यावसायिक प्रथाओं को प्राथमिकता दी जाती है, यह अन्य प्रकार के बौद्धिक योगदानों की अनदेखी करता है जिसमें पुस्तकें, पुस्तक अध्याय, मोनोग्राफ, गैर-पारंपरिक प्रकाशन जैसे- लोकप्रिय लेख, कार्यशाला रिपोर्ट आदि एवं अन्य प्रकार के ग्रे साहित्य शामिल हैं।
- उन्होंने तर्क दिया है कि बिब्लियोमेट्रिक्स संकेतक (Bibliometric Indicators) वैज्ञानिक प्रदर्शन की जटिलता को पूरी तरह से पकड़ नहीं पाते हैं तथा एक अधिक व्यापक मूल्यांकन पद्धति की आवश्यकता है।
- विषय विशेषज्ञों द्वारा किये गए गुणात्मक आकलन की तुलना में अनुसंधान परिणाम का आकलन करने के लिये एक उपकरण के रूप में बिब्लियोमेट्रिक्स का आकर्षण इसकी दक्षता और सुविधा में निहित है जो अधिक संसाधन-गहन एवं समय लेने वाला है।
- इस मूल्यांकन में अनुसंधान और पेशेवर/व्यावसायिक प्रथाओं को प्राथमिकता दी जाती है, यह अन्य प्रकार के बौद्धिक योगदानों की अनदेखी करता है जिसमें पुस्तकें, पुस्तक अध्याय, मोनोग्राफ, गैर-पारंपरिक प्रकाशन जैसे- लोकप्रिय लेख, कार्यशाला रिपोर्ट आदि एवं अन्य प्रकार के ग्रे साहित्य शामिल हैं।
- नोट:
- बिब्लियोमेट्रिक्स अनुसंधान के मापने योग्य पहलुओं को संदर्भित करता है जैसे- प्रकाशित पत्रों की संख्या, उनके उद्धृत किये जाने की संख्या, पत्रिकाओं के प्रभाव कारक आदि।
दोषपूर्ण रैंकिंग के परिणाम:
- संस्थानों की गुणवत्ता एवं प्रतिष्ठा के बारे में भावी छात्रों और अभिभावकों को गुमराह करना।
- प्रणाली के स्तर को बनाए रखने के लिये संस्थानों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और प्रोत्साहन।
- रैंकिंग फ्रेमवर्क की विश्वसनीयता एवं उपयोगिता में गिरावट लाना।
- संस्थागत उत्कृष्टता के अन्य पहलुओं जैसे- नवाचार, विविधता, सामाजिक प्रभाव आदि की उपेक्षा करना।
- यदि विदेशी संस्थाएँ भारत में अपने परिसर स्थापित करती हैं तो वे शिक्षण संस्थानों की धारणा, प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
NIRF रैंकिंग में सुधार हेतु प्रयास:
- पर्याप्त संसाधन, प्रोत्साहन और मान्यता प्रदान करके संकाय अनुसंधान परिणाम को बढ़ावा देना चाहिये।
- ग्रंथसूची (Bibliometrics) का उपयोग किसी भी मूल्यांकन के उद्देश्य हेतु एकमात्र मानदंड के रूप में नहीं किया जाना चाहिये। उचित निर्णय लेने के लिये उसे हमेशा मूल्यांकन के अन्य रूपों के साथ शामिल किया जाना चाहिये, जैसे- सहकर्मी समीक्षा।
- अनुसंधान के प्रकाशन और प्रभाव को प्रदर्शित करने और प्रसारित करने हेतु संस्थागत भंडार स्थापित करना।
- परिणाम-आधारित पाठ्यक्रम तैयार करना, नवीन शिक्षाशास्त्र का उपयोग और छात्र प्रतिक्रिया तथा संतुष्टि सुनिश्चित करके शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया में सुधार करना।
- प्लेसमेंट, उद्यमशीलता और छात्रों हेतु उच्च शिक्षा के अवसरों में सुधार करके स्नातक परिणामों को बढ़ाना।
- छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की विविधता को बढ़ाकर एवं स्थानीय तथा वैश्विक समुदायों के साथ जुड़कर पहुँच व समावेशिता को बढ़ावा देना।
- NIRF रैंकिंग को पारदर्शी होना चाहिये जैसे- वे कौन सा डेटा एकत्र करते हैं, इसे कैसे एकत्र करते हैं और यह डेटा कुल स्कोर का आधार कैसे निर्मित करता है।
स्रोत: द हिंदू
बलात्कार का अपराध
प्रिलिम्स के लिये:बलात्कार का अपराध, आईपीसी की धारा 375, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013, POCSO, सुप्रीम कोर्ट मेन्स के लियेबलात्कार का अपराध, संबंधित चुनौतियाँ और समाधान के उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापान द्वारा एक विधेयक पारित किया गया है जो बलात्कार और यौन अपराधों के संबंध में नाबालिगों के लिये कानूनी सुरक्षा बढ़ाने हेतु महत्त्वपूर्ण उपाय प्रस्तुत करता है।
नए उपायों के प्रमुख बिंदु:
- बलात्कार की नई परिभाषा:
- जापान ने बलात्कार की परिभाषा को "बलपूर्वक यौन-संबंध बनाने " से "गैर-सहमति वाले यौन-संबंध" तक विस्तारित किया है, जिसका लक्ष्य उन परिदृश्यों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करना है जहाँ पीड़ित यौन संबंध में शामिल होने की अपनी सहमति को अस्वीकार करने या व्यक्त करने में असमर्थ हो सकते हैं।
- सहमति की आयु:
- सहमति की उम्र को 13 वर्ष से बढ़ाकर 16 वर्ष कर दिया गया है (G-7 देशों में सबसे कम), जो कि यूके, फिनलैंड और नॉर्वे सहित कई अमेरिकी राज्यों और यूरोपीय देशों के समान है।
- सहमति की उम्र उस न्यूनतम उम्र को संदर्भित करती है जिस पर कानूनी रूप से यौन गतिविधि की अनुमति है, उस उम्र से कम किसी भी गतिविधि को वैधानिक रूप से बलात्कार माना जाता है।
- सहमति की उम्र को 13 वर्ष से बढ़ाकर 16 वर्ष कर दिया गया है (G-7 देशों में सबसे कम), जो कि यूके, फिनलैंड और नॉर्वे सहित कई अमेरिकी राज्यों और यूरोपीय देशों के समान है।
- मुलाकात अनुरोध अपराध:
- कानून "मुलाकात अनुरोध अपराध" नामक एक नया अपराध प्रस्तुत करता है, जो उन व्यक्तियों को लक्षित करता है जो 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन उद्देश्यों के लिये मिलने की धमकी, प्रलोभन या धन का उपयोग करते हैं।
- इस अपराध का उल्लंघन करने वालों को एक वर्ष तक की कैद या 500,000 येन (3,500 अमेरिकी डॉलर) का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
- कानूनी संशोधन "फोटो वॉयेरिज़्म" गुप्त रूप से लोगों की यौन तस्वीरें लेना और बच्चों की ऑनलाइन ग्रूमिंग को भी अपराध की श्रेणी में रखता है।
- कानून "मुलाकात अनुरोध अपराध" नामक एक नया अपराध प्रस्तुत करता है, जो उन व्यक्तियों को लक्षित करता है जो 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन उद्देश्यों के लिये मिलने की धमकी, प्रलोभन या धन का उपयोग करते हैं।
भारतीय संदर्भ में बलात्कार के विरुद्ध प्रावधान:
- विषय:
- बलात्कार को महिला के शरीर के अंगों जैसे योनि, मूत्रमार्ग, मुंँह या गुदा में महिला की सहमति के बिना किसी भी अनैच्छिक और जबरदस्ती प्रवेश (Penetration) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अनुसार, बलात्कार एक पुरुष द्वारा तब किया जाता है जब वह निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति में किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है:
- उसकी इच्छा के विरुद्ध।
- उसकी सहमति के विरुद्ध।
- उसके या उसकी देखभाल करने वाले किसी व्यक्ति के खिलाफ मौत या चोट पहुँचाने का भय दिखाकर प्राप्त उसकी सहमति से।
- उसकी सहमति से यह जानते हुए कि वह विवाहित है या स्वयं को कानूनी रूप से विवाहित मानती है और वह उसका पति नहीं है।
- जब वह मानसिक विकार, नशा या बेहोश करने वाले या अस्वास्थ्यकर पदार्थों के सेवन के कारण सहमति देने की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ हो, ली गई उसकी सहमति।
- उसकी सहमति के साथ या उसके बिना, जब वह 18 वर्ष से कम आयु की हो।
- जब वह सहमति संप्रेषित करने में असमर्थ हो।
- बलात्कार का अपराध और दंड:
- बलात्कार के दौरान अगर आरोपी द्वारा महिला को इतनी बुरी तरह से घायल कर दिया जाता है कि वह मर जाती है या कोमा में चली जाती है, तो ऐसे मामले में आरोपी को मृत्युदंड या आजीवन कारावास दिया जा सकता है।
- यदि एक महिला का एक ही समय में लोगों के एक समूह द्वारा बलात्कार किया जाता है, तो उनमें से प्रत्येक को अपराध के लिये दंडित किया जाएगा (धारा 376D IPC)।
- IPC की धारा 376E मृत्युदंड देने की अनुमति देती है, जब किसी व्यक्ति को बलात्कार हेतु दूसरी बार दोषी ठहराया जाता है।
भारत में बलात्कार होने के कारण:
- लैंगिक असमानता: लैंगिक असमानता की गहरी जड़ें और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण महिलाओं के वस्तुकरण एवं अधीनता में योगदान करते हैं, साथ ही ऐसा वातावरण निर्मित करते हैं जहाँ यौन हिंसा हो सकती है।
- सामाजिक मानदंड और दृष्टिकोण: महिलाओं के प्रति प्रतिगामी सामाजिक मानदंड तथा दृष्टिकोण, जैसे पीड़ित-दोष वाली मानसिकता एवं "महिलाओं के सम्मान" की धारणा, यौन हमले के संबंध में चुप्पी तथा कलंक की संस्कृति को कायम रखती है।
- यह पीड़ितों को घटनाओं की रिपोर्ट करने और न्याय मांगने से हतोत्साहित कर सकता है।
- जागरूकता की कमी: लैंगिक समानता, सहमति और यौन अधिकारों के बारे में अपर्याप्त जागरूकता, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यौन हिंसा को रोकने एवं उजागर करने के प्रयासों को बाधित करती है।
- अतः गलत धारणाओं को चुनौती देने और सम्मानजनक व्यवहार को बढ़ावा देने हेतु व्यापक यौन शिक्षा एवं जागरूकता अभियान महत्त्वपूर्ण हैं।
- अपर्याप्त कानून प्रवर्तन: कानून प्रवर्तन और आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर भ्रष्टाचार, लापरवाही/उपेक्षा तथा असंवेदनशीलता के उदाहरण बलात्कार के मामलों की प्रभावी जाँच, अभियोजन एवं दोषसिद्धि में बाधा डालते हैं।
- जवाबदेही की कमी अपराधियों को अधिक साहस दे सकती है, साथ ही पीड़ित लोगों को कानूनी सहारा लेने से हतोत्साहित कर सकती है।
- धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ: लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रियाएँ, अधिक लंबित मामले अक्सर देरी से न्याय मिलने के कारण हैं तथा पीड़ितों को कानूनी कार्रवाई करने से हतोत्साहित कर सकती हैं।
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना और न्यायिक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से बलात्कार के मुकदमों को तेज़ी से निपटाने में मदद मिल सकती है।
- सामाजिक कलंक/स्टिग्मा और पीड़िता को दोषी ठहराना: बलात्कार पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक कलंक, दोषारोपण एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें अधिक आघात पहुँचा सकता है तथा रिपोर्टिंग को हतोत्साहित कर सकता है।
- इस चक्र को तोड़ने हेतु पीड़ित के प्रति दोषपूर्ण व्यवहार को उजागर करना और बलात्कार पीड़ित को सहायता सेवाएँ प्रदान करना आवश्यक है।
भारत में यौन शोषण/बलात्कार से संबंधित कानून:
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013:
- इस अधिनियम के तहत बलात्कार की न्यूनतम सज़ा को सात वर्ष से बढाकर दस वर्ष कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त पीड़ित की मृत्यु के मामले में न्यूनतम सज़ा को विधिवत बढ़ाकर बीस वर्ष कर दिया गया है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो):
- इस अधिनियम को बच्चों को यौन अत्याचार, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य से बचाने के लिये लाया गया था।
- POCSO अधिनियम के तहत सहमति की आयु बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई (जो वर्ष 2012 तक 16 वर्ष थी) और 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिये सभी यौन गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में सूचीबद्ध कर दिया गया, भले ही दो नाबालिगों के बीच तथ्यात्मक रूप से सहमति हो।
- बच्चे की रक्षा, सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न अपराधों के लिये सज़ा बढ़ाने के प्रावधान करने के लिये इस अधिनियम में वर्ष 2019 में भी संशोधन किया गया था।
- बलात्कार पीड़िता के अधिकार:
- ज़ीरो FIR का अधिकार: इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा सकता है, भले ही घटना का अधिकार क्षेत्र कोई भी हो।
- मुफ्त चिकित्सा उपचार: आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 357C के अनुसार, कोई भी निजी अथवा सरकारी अस्पताल बलात्कार पीड़ितों के इलाज के लिये शुल्क नहीं ले सकता है।
- टू-फिंगर टेस्ट का प्रावधान खत्म: चिकित्सीय जाँच करते समय किसी भी चिकित्सक को टू फिंगर टेस्ट करने का अधिकार नहीं होगा।
- मुआवज़े का अधिकार: CrPC की धारा 357A के रूप में एक नया प्रावधान पेश किया गया है, यह पीड़ित के लिये मुआवज़े से संबंधित है।
भारत में बलात्कार से संबंधित प्रमुख निर्णय:
- तुकाराम और गणपत बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1972 (मथुरा बलात्कार मामला):
- ट्रायल कोर्ट के फैसले ने आरोपी के पक्ष का समर्थन किया, जिसमें कहा गया कि यौन-संबंध की आदी होने के कारण मथुरा की सहमति स्वैच्छिक थी। हालाँकि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को कारावास की सज़ा सुनाई।
- सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में अभियुक्तों को बरी कर दिया, जिससे जनता में आक्रोश फैल गया। इस मामले के बाद बलात्कार कानूनों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई।
- पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह, 1984:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निचली न्यायपालिका को सलाह दी कि पीड़िता को चरित्रहीन के रूप में नहीं वर्णित किया जाना चाहिये, भले ही वह यौन-संबंध की आदी हो। यह फैसला मामले की जाँच के दौरान बलात्कार के कृत्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, न कि पीड़िता के चरित्र पर।
- दिल्ली की घरेलू कामकाजी महिलाएँ बनाम भारत संघ, 1995:
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अहम दिशा-निर्देश दिये:
- यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायतकर्त्ता को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करना।
- पुलिस स्टेशन में एक वकील द्वारा कानूनी सहायता और मार्गदर्शन सुनिश्चित करना।
- बलात्कार के मुकदमों में पीड़िता की गुमनामी/गोपनीयता बनाए रखना।
- एक आपराधिक चोट मुआवज़ा बोर्ड की स्थापना करना।
- बलात्कार पीड़ितों को अंतरिम मुआवज़ा प्रदान करना।
- यदि बलात्कार के कारण पीड़िता गर्भवती हो जाती है तो चिकित्सा सहायता प्रदान करना और गर्भपात की अनुमति देना।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अहम दिशा-निर्देश दिये:
- बी गौतम बनाम सुभ्रा चक्रवर्ती, 1996:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अंतरिम मुआवज़ा के रूप में रेप पीड़िताओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह की सहायता दी जाए।
- अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड बनाम चंद्रिमा दास, 2000:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बलात्कार पीड़ितों को संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर घरेलू न्यायशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के आधार पर मानवाधिकार न्यायशास्त्र के आधार पर मुआवज़ा दिया जा सकता है।
आगे की राह
- बलात्कार के अपराधियों के लिये सख्त कानून और कठोर सज़ा की आवश्यकता है। यह कथन अपराध की गंभीरता को प्रतिबिंबित करता है और एक निवारक के रूप में कार्य करना चाहिये। न्यायिक प्रणाली को पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये बलात्कार के मामलों का समय पर एवं उचित निपटान सुनिश्चित करना चाहिये।
- शिक्षा एवं जागरूकता अभियानों के माध्यम से लैंगिक समानता, सम्मान और सहमति को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। महिलाओं के अधिकारों के लिये सहमति और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु व्यापक यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये।
- बलात्कार पीड़ितों को समर्थन और सशक्तीकरण प्रदान करना आवश्यक है। इसमें कानूनी सहायता, परामर्श एवं पुनर्वास सेवाएँ शामिल हैं। पीड़ितों की गोपनीयता बनाई रखी जानी चाहिये तथा सामाजिक कलंक के डर को कम करउनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये।
- पुलिस और न्यायिक कर्मियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम संवेदनशीलता, लैंगिक संवेदनशीलता तथा पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण पर आधारित होने चाहिये। उचित जाँच प्रक्रियाओं और पीड़ितों के अनुकूल अदालती प्रक्रियाओं को लागू किया जाना चाहिये।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
बॉन जलवायु सत्र
प्रिलिम्स के लिये:बॉन जलवायु सत्र, पेरिस समझौता, COP 28, UNFCCC, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल स्टॉकटेक मेन्स के लिये:बॉन जलवायु सत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पेरिस समझौते के प्रतिनिधियों ने जर्मनी स्थित बॉन में एक सत्र का आयोजन किया, इसमें वर्ष 2023 में दुबई में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP 28) को लेकर कुछ प्रमुख निर्णय लिये गए।
- दुबई में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP 28) को बॉन सत्र के अंत में साझा किये गए "अनौपचारिक नोट" द्वारा निर्देशित किया जाएगा।
सत्र के प्रमुख बिंदु:
- ग्लोबल स्टॉकटेक:
- ग्लोबल स्टॉकटेक पर तकनीकी चर्चा में स्टॉकटेक अभ्यास में शामिल किये जाने वाले तत्त्वों की एक संक्षिप्त रूपरेखा तैयार की गई।
- ग्लोबल स्टॉकटेक वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा अनिवार्य की गई एक प्रक्रिया है, यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने हेतु उपायों का मूल्यांकन करती है और फंडिंग गैप/वित्तीयन अंतर को भरने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को मज़बूत करने हेतु रणनीतियाँ तैयार करती है।
- पेरिस समझौते के अनुसार, वर्ष 2023 से GST की बैठक प्रत्येक पाँच वर्ष में होनी चाहिये। GST को लेकर वास्तविक बैठक COP28 में होगी।
- वर्ष 2030 के बाद की महत्त्वाकांक्षा को आगे बढ़ाना:
- पार्टियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने बैठक का उपयोग वर्ष 2030 के बाद की महत्त्वाकांक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिये किया है जो विशेष रूप से ग्लोबल स्टॉकटेक पर काम को आगे बढ़ाने पर केंद्रित थी।
- यह विकासशील देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने तथा वित्तीय एवं तकनीकी संसाधन जुटाने के प्रयासों को सुदृढ़ करना चाहता है।
- हानि और क्षति के लिये धन की व्यवस्था:
- जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति (L&D) को संबोधित करने हेतु संतुलित वित्तपोषण व्यवस्था को लागू करने पर चर्चा हुई विशेष रूप से कमज़ोर समुदायों के लिये।
- सैंटियागो नेटवर्क के परिचालन में हानि और क्षति के बावजूद नेटवर्क होस्ट का मुद्दा अनसुलझा रहा।
- सैंटियागो नेटवर्क का उद्देश्य प्रासंगिक संगठनों, निकायों, नेटवर्क और विशेषज्ञों की तकनीकी सहायता को उत्प्रेरित करना है जो विकासशील देशों में स्थानीय, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर हानि तथा क्षति को टालने, कम करने तथा संबोधित करने में प्रासंगिक दृष्टिकोणों के कार्यान्वयन हेतु विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव के कारण कमज़ोर हैं।
- जलवायु वित्त संरेखण:
- यूरोपीय संघ पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ वैश्विक वित्तीय प्रवाहों को संरेखित करने की आवश्यकता पर बल देता है।
- इसमें दाताओं के पूल की जाँच करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वित्तीय सहायता का पैमाना जलवायु संकट को दूर करने की आवश्यकताओं से मेल खाता हो।
- यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने COP28 में जलवायु वित्त को संबोधित करने के महत्त्व पर बल दिया।
- वर्ष 2025 के बाद का जलवायु वित्त लक्ष्य और धन की व्यवस्था:
- वर्ष 2025 के बाद के जलवायु वित्त लक्ष्य में हानि और क्षति के लिये फंड सहित धन की व्यवस्था के संबंध में तकनीकी विशेषज्ञ संवादों में रचनात्मक एवं ठोस चर्चा हुई।
- अनुकूलन की तत्परता:
- यूरोपीय संघ सहित विकसित देश अनुकूलन आवश्यकताओं को संबोधित करने को तात्कालिक रूप से स्वीकार करते हैं।
- वे कमज़ोर समुदायों की सहायता करने में प्रमाणित अनुभव और विशेषज्ञता के साथ वर्तमान व्यवस्थाओं एवं संस्थानों को मज़बूत करके समर्थन बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP):
- यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) सम्मेलन का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है।
- प्रत्येक वर्ष COP की बैठक संपन्न होती है, COP की पहली बैठक मार्च 1995 में जर्मनी के बर्लिन में आयोजित की गई थी।
- यदि कोई पार्टी सत्र की मेज़बानी करने की पेशकश नहीं करती है तो COP का आयोजन बॉन, जर्मनी में (सचिवालय) में किया जाता है।
- COP अध्यक्ष का कार्यकाल सामान्यतः पांँच संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय समूहों के मध्य निर्धारित किया जाता है जिनमें - अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, मध्य और पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप शामिल हैं।
- COP का अध्यक्ष आमतौर पर देश का पर्यावरण मंत्री होता है जिसे COP सत्र के उद्घाटन के तुरंत बाद चुना जाता है।