UNSC 1267 समिति के तहत आतंकवादी की सूची
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी आतंकवादी संगठन, भारत-केंद्रित आतंकवादी संगठन। मेन्स के लिये:यूएनएससी 1267 समिति और सूचीकरण की प्रक्रिया। |
चर्चा में क्यों?
भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL) प्रतिबंध समिति (जिसे यूएनएससी 1267 समित के रूप में भी जाना जाता है) के तहत एक शीर्ष लश्कर -ए-तैयबा आतंकवादी मक्की को सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव रखा।
- लेकिन, चीन ने मक्की को सूचीबद्ध करने के प्रस्ताव पर "तकनीकी रोक" लगाई और यह रोक एक बार में छह महीने तक चल सकती है।
- इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवेंट (ISIL), जिसे इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (ISIS) भी कहा जाता है, एक इस्लामिक स्टेट है, जो मुख्य रूप से पश्चिमी इराक और पूर्वी सीरिया में सक्रिय सुन्नी विद्रोही समूह है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
- परिचय:
- सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
- संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में शामिल हैं- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय।
- यह मुख्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने हेतु उत्तरदायी है।
- सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
- मुख्यालय:
- परिषद का मुख्यालय न्यूयॉर्क में स्थित है।
- सदस्य:
- सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं: पाँच स्थायी सदस्य और दो वर्षीय कार्यकाल हेतु चुने गए दस अस्थायी सदस्य।
- पाँच स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
- भारत ने पिछले वर्ष (2021) आठवीं बार एक अस्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रवेश किया था और दो वर्ष यानी वर्ष 2021-22 तक परिषद में रहेगा।
- प्रतिवर्ष महासभा दो वर्ष के कार्यकाल के लिये पाँच अस्थायी सदस्यों (कुल दस में से) का चुनाव करती है। दस अस्थायी सीटों का वितरण क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है।
- सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं: पाँच स्थायी सदस्य और दो वर्षीय कार्यकाल हेतु चुने गए दस अस्थायी सदस्य।
UNSC 1267 समिति:
- परिचय:
- यह पहली बार वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था और सितंबर, 2001 के हमलों के बाद मज़बूत हुआ। इसे अब इस्लामिक स्टेट समूह और अल कायदा प्रतिबंध समिति के रूप में जाना जाता है।
- इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सभी स्थायी और गैर-स्थायी सदस्य शामिल हैं।
- आतंकवादियों की 1267 सूची एक वैश्विक सूची है, जिसमें UNSC द्वारा प्रमाणित होती है। यह सूची पाकिस्तानी नागरिकों और निवासियों से भरी हुई है।
- यह आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रयासों पर काम कर रहे सबसे महत्त्वपूर्ण और सक्रिय संयुक्त राष्ट्र सहायक निकायों में से एक है, विशेष रूप से अल कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह के संबंध में।
- यह आतंकवादियों की आवाजाही विशेष रूप से यात्रा प्रतिबंधों से संबंधित, संपत्ति की जब्ती और आतंकवाद के लिए हथियारों पर प्रतिबंध, को सीमित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों पर चर्चा करता है।
- भारत ने पिछले दशक में वर्ष 2009, 2016 और 2017 में कम से कम तीन प्रयास किये हैं ताकि जैश प्रमुख को "वैश्विक आतंकवादी" के रूप में सूचीबद्ध किया जाए। पाकिस्तान के इशारे पर चीन ने सभी कोशिशों को रोक दिया है.
- सूचीकरण की प्रक्रिया:
- कोई भी सदस्य देश किसी व्यक्ति, समूह या संस्था को सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है।
- प्रस्ताव में उन कृत्यों या गतिविधियों को शामिल किया जाना चाहिये जो यह दर्शाते हैं कि प्रस्तावित व्यक्ति / समूह / इकाई ने "ISIL (जैश-ए-मुहम्मद), अल-कायदा या किसी भी सेल से संबद्ध समूह या उसके व्युत्पन्न से जुड़े "कार्यों या गतिविधियों के वित्तपोषण, योजना, सुविधा, तैयारी, या संचालन में" भाग लिया हो।
- सूचीबद्ध करने तथा सूची से बाहर रखने पर निर्णय सर्वसम्मति से अपनाए जाते हैं। प्रस्ताव सभी सदस्यों को भेजा जाता है, और यदि कोई सदस्य पांच कार्य दिवसों के भीतर आपत्ति नहीं करता है, तो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है।
- एक "आपत्ति" का अर्थ प्रस्ताव के लिये आवरण से है।
- समिति का कोई भी सदस्य प्रस्ताव पर "तकनीकी रोक" लगा सकता है और प्रस्तावक सदस्य देश से अधिक जानकारी मांग सकता है। इस दौरान अन्य सदस्य भी अपना सुझाव दे सकते हैं।
- मामला समिति की "लंबित" सूची में तब तक बना रहता है जब तक कि सदस्य देश ने अपने निर्णय को "आपत्ति" में बदलने का फैसला नहीं किया है, या जब तक कि जिन लोगों ने निर्णय नही किया है, वे उन्हें समिति द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर रोक हटा नहीं देते हैं। .
- लंबित मुद्दों को छह महीने में हल किया जाना चाहिये, लेकिन जिस सदस्य राज्य ने रोक लगाई है वह अतिरिक्त तीन महीने मांग सकता है। इस अवधि के अंत में, यदि आपत्ति नहीं रखी जाती है, तो मामले को स्वीकृत माना जाता है।
विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO):
- FTO विदेशी संगठन हैं जिन्हें यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा नामित किया जाता है।
- यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आतंकवादी गतिविधियों और समूहों पर आतंकवाद के कारोबार से बाहर निकलने के लिये दबाव बनाने हेतु समर्थन को कम करने का एक प्रभावी साधन है।
पाकिस्तान में भारत-केंद्रित प्रमुख आतंकवादी संगठन |
||||
नाम |
गठन |
एफटीओ पद |
परिचय |
गैरकानूनी गतिविधियांँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के अनुसार भारत में स्थिति |
लश्कर-ए-तैयबा (LET) |
1980 के दशक के अंत में |
2001 |
यह मुंबई में वर्ष 2008 के प्रमुख हमलों के साथ-साथ कई अन्य हाई-प्रोफाइल हमलों के लिये ज़िम्मेदार था। |
प्रतिबंधित |
जैश-ए-मोहम्मद (JEM) |
2000 |
2001 |
LET के साथ मिलकर यह अन्य हमलों के अलावा, वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले के लिये ज़िम्मेदार था। JEM ने भी खुले तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका पर युद्ध की घोषणा की है। |
प्रतिबंधित |
हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी (HUJI) |
1980 |
2010 |
प्रारंभ में इसका गठन सोवियत सेना से लड़ने के लिये किया गया था, हालाँकि वर्ष 1989 के बाद, इसने भारत की ओर अपने प्रयासों को पुनर्निर्देशित किया, हालाँकि इसने अफगान-तालिबान को लड़ाकों की आपूर्ति की। HUJI वर्तमान में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में सक्रिय है और कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मांग करता है। |
प्रतिबंधित |
हरकत-उल-मुजाहिदीन (HUM) |
1985 |
1997 |
यह अपनी गतिविधियों को मुख्य रूप से पाक अधिकृत कश्मीर और कुछ पाकिस्तानी शहरों से संचालित करता है। |
प्रतिबंधित
|
हिज़बुल मुजाहिद्दीन |
1989 |
2017 |
यह पाकिस्तान के सबसे बड़े इस्लामी राजनीतिक दल की उग्रवादी शाखा है तथा जम्मू और कश्मीर में सक्रिय सबसे बड़े एवं सबसे पुराने आतंकवादी समूहों में से एक है। |
प्रतिबंधित |
अल कायदा |
1988 |
1999 |
यह मुख्य रूप से पूर्व संघ प्रशासित जनजातीय क्षेत्रों और कराची के मेगासिटी, साथ ही साथ अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियों को संचालित करता है। |
प्रतिबंधित |
विश्व व्यापार संगठन का 12वांँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, विश्व व्यापार संगठन में कृषि से संबंधित मुद्दा। मेन्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन के सुधार एवं विकासशील देशों पर इसके प्रभाव। विश्व व्यापार संगठन के सुधारों पर भारत के सुझाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) का 12वांँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन संपन्न हुआ।
- सम्मेलन में चर्चा के प्रमुख क्षेत्रों में महामारी के प्रति विश्व व्यापार संगठन की प्रतिक्रिया, मत्स्य पालन सब्सिडी वार्ताएँ, खाद्य सुरक्षा के लिये सार्वजनिक स्टॉक होल्डिंग सहित कृषि मुद्दे, WTO सुधार और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क का स्थगन शामिल हैं।
- 164 सदस्यीय विश्व व्यापार संगठन द्वारा कोविड-19 के बाद लगभग पांँच वर्षों में अपने पहले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु
12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के प्रमुख परिणाम:
- WTO के सुधार:
- सदस्यों देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन के मूलभूत सिद्धांतों की पुष्टि की गई और विचार-विमर्श से लेकर बातचीत तक अपने सभी कार्यों में सुधार के लिये एक खुली और समावेशी प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- विशेष रूप से सदस्यों देशों द्वारा वर्ष 2024 तक सभी सदस्यों के लिये एक अच्छी तरह से कार्य कर रहे विवाद निपटान प्रणाली को सुलभ बनाने की दिशा में कार्य करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को सुनिश्चत की।
- प्रतिकूल मत्स्य पालन सब्सिडी को कम करने पर समझौता:
- यह समझौता वैश्विक मछली स्टॉक की बेहतर सुरक्षा के लिये अगले चार वर्षों के लिये अवैध, गैर-सूचित और अनियमित तरीके से मछली पकड़ने पर 'प्रतिकूल' सब्सिडी पर अंकुश लगाएगा।
- वर्ष 2001 से ही सदस्य देशों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ने को बढ़ावा देने वाली सब्सिडी पर प्रतिबंध लगाने पर बातचीत की जा रही है।
- भारत और अन्य विकासशील देश इस समझौते में कुछ रियायतें हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने प्रस्ताव के एक हिस्से को हटाने के लिये ज़ोरदार ढ़ंग से पैरवी की, जिससे कुछ सब्सिडी के कुछ हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो कि छोटे पैमाने पर मछली पकड़ने वाले मछुआरों के लिये सहायक होगा तथा पारंपरिक किसानों को इस समझौते के तहत किसी भी प्रतिबंध का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर समझौता:
- सदस्यों ने संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme- WFP) द्वारा मानवीय उद्देश्यों के लिये खरीदे गए भोजन को किसी भी निर्यात प्रतिबंध से छूट देने के बाध्यकारी निर्णय पर सहमति व्यक्त की।
- वैश्विक खाद्य कमी और यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के कारण बढ़ती कीमतों के आलोक में, समूह के सदस्यों ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा में व्यापार के महत्त्व पर एक घोषणा जारी की और कहा कि वे खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध से बचेंगे।
- हालाँकि घरेलू खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को सुनिश्चित करने के लिये देशों को खाद्य आपूर्ति को प्रतिबंधित करने की अनुमति होगी।
- ई-कॉमर्स विनिमय पर समझौता:
- वर्ष 2017-2020 से विकासशील देशों ने केवल 49 डिजिटल उत्पादों से आयात पर लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का संभावित टैरिफ राजस्व खो दिया।
- विश्व व्यापार संगठन के सदस्य पहली बार वर्ष 1998 में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी नहीं लगाने पर सहमत हुए, जब इंटरनेट अभी भी अपेक्षाकृत नया था। तब से समय-समय पर स्थगन को बढ़ाया गया है।
- हालाँकि सभी सदस्य इसके बाद के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक या 31 मार्च 2024 तक जो भी पहले आए, उसके आधार पर ई-कॉमर्स प्रसारण पर कस्टम ड्यूटी पर लंबे समय से रोक जारी रखने पर सहमत हुए।
- 'कोविड-19' वैक्सीन उत्पादन पर समझौता:
- विश्व व्यापार संगठन के सदस्य 5 वर्ष के लिये पेटेंट धारक की सहमति के बिना कोविड -19 टीकों पर बौद्धिक संपदा पेटेंट को अस्थायी रूप से माफ करने पर सहमत हुए, ताकि वे घरेलू स्तर पर अधिक आसानी से उनका निर्माण कर सकें।
- यह टीका निर्माण क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने और विविधता लाने के लिये चल रहे प्रयासों में योगदान देगा ताकि एक क्षेत्र का संकट दूसरों को प्रभावित न कर सके।
- वर्तमान समझौता वर्ष 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा लाए गए मूल प्रस्ताव का एक ‘वाटर डाउन’ संस्करण है। ये टीके, उपचार और परीक्षणों पर व्यापक बौद्धिक संपदा छूट चाहते थे।
- अग्रणी दवा कंपनियों ने यह तर्क देते हुए इसका कड़ा विरोध किया था कि बौद्धिक संपदा कोविड के टीकों तक पहुँच को प्रतिबंधित नहीं करता है और पेटेंट सुरक्षा को हटाने से शोधकर्त्ताओं को जीवन बचाने वाले टीके जल्दी से एक नकारात्मक संदेश मिलता है।
- विश्व व्यापार संगठन द्वारा सहमत छूट की वकालत वाले समूहों द्वारा संकीर्ण होने के कारण आलोचना की गई, क्योंकि इसमें निदान और उपचार जैसे सभी चिकित्सा उपकरण शामिल नहीं थे। “यह समझौता महामारी के दौरान आवश्यक चिकित्सा उपकरणों तक लोगों की पहुँच बढ़ाने में मदद करने के लिये एक प्रभावी और सार्थक समाधान की पेशकश करने में विफल रहता है क्योंकि यह सभी आवश्यक कोविड -19 चिकित्सा उपकरणों पर आईपी को पर्याप्त रूप से माफ नहीं करता है और यह सभी देशों पर लागू नहीं होता है।
भारत द्वारा उठाए गए मुद्दे:
- WTO सुधारों पर:
- भारत का मानना है कि विश्व व्यापार संगठन के सुधारों पर चर्चा को अपने मूलभूत सिद्धांतों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इस समय विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) को आरक्षित करना, जिसमें आम सहमति-आधारित निर्णय लेना, गैर-भेदभाव और विशेष एवं विभेदक उपचार शामिल है, के परिणामस्वरुप विरासत में मिली असमानताओं के संरक्षण या असंतुलन को बढ़ाना नहीं चाहिये।
- भारत विकासशील देशों हेतु सुधारों का सुझाव देने के लिये पहल करता है (विकासशील देश सुधार पत्र "विकास और समावेश को बढ़ावा देने के लिये विश्व व्यापार संगठन को मज़बूत करना")।
- भारत ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें उसने प्रक्रिया और उसके लक्ष्यों दोनों पर यूरोपीय संघ और ब्राज़ील के सुझावों की आलोचना करने का बीड़ा उठाया। यह विश्व व्यापार संगठन संशोधनों पर एक खुली प्रक्रिया के खिलाफ था।
- ई-कॉमर्स लेनदेन:
- भारत ने विश्व व्यापार संगठन से ई-कॉमर्स लेनदेन पर सीमा शुल्क स्थगन के विस्तार की समीक्षा करने के लिये कहा था, जिसमें डिजिटल रूप से कारोबार करने वाली वस्तुएंँ और सेवाएंँ शामिल हैं।
- इसने तर्क दिया कि विकासशील देशों को इस तरह के स्थगन से वित्तीय परिणामों का खामियाजा भुगतना पड़ा।
- खाद्य सुरक्षा पर:
- विश्व व्यापार संगठन को विकासशील और गरीब देशों में गरीब नागरिकों को खिलाने के उद्देश्य से सरकार समर्थित खाद्य खरीद कार्यक्रमों के लिये सब्सिडी नियमों पर फिर से बातचीत करनी चाहिये।
- भारत आश्वासन चाहता है कि उसका सार्वजनिक स्टॉक-होल्डिंग कार्यक्रम, जो विशेष रूप से देश के किसानों से खरीदता है और अतीत में निर्यात किया गया है, को विश्व व्यापार संगठन में अवैध के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
विश्व व्यापार संगठन:
- परिचय:
- यह वर्ष 1995 में अस्तित्व में आया। विश्व व्यापार संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनजर स्थापित टैरिफ और व्यापार (GATT) पर सामान्य समझौते का उत्तराधिकारी है।
- इसका उद्देश्य व्यापार प्रवाह को सुचारू, स्वतंत्र और अनुमानित रूप से मदद करना है।
- इसके 164 सदस्य हैं, जो विश्व व्यापार का 98% हिस्सा है।
- इसे GATT के तहत आयोजित व्यापार वार्ताओं, या दौरों की एक शृंखला के माध्यम से विकसित किया गया था।
- GATT बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का एक समूह है जिसका उद्देश्य कोटा को समाप्त करना और अनुबंध करने वाले देशों के बीच टैरिफ शुल्क में कमी करना है।
- विश्व व्यापार संगठन के नियम-समझौते सदस्यों के बीच बातचीत का परिणाम हैं।
- वर्तमान स्वरुप काफी हद तक वर्ष 1986-94 उरुग्वे दौर की वार्ता का परिणाम है, जिसमें मूल गैट में एक बड़ा संशोधन शामिल था।
- विश्व व्यापार संगठन सचिवालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
- यह वर्ष 1995 में अस्तित्व में आया। विश्व व्यापार संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनजर स्थापित टैरिफ और व्यापार (GATT) पर सामान्य समझौते का उत्तराधिकारी है।
- विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
- यह विश्व व्यापार संगठन का शीर्ष निर्णय लेने वाला निकाय है और आमतौर पर हर दो साल में इसकी बैठक होती है।
- विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शामिल हैं और वे किसी भी बहुपक्षीय व्यापार समझौते के तहत आने वाले सभी मामलों पर निर्णय ले सकते हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। |
स्रोत : डाउन टू अर्थ
वर्ष 2020 के बाद वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क में अंतराल
प्रिलिम्स के लिये:रासायनिक प्रदूषक, जलवायु शमन लक्ष्य। मेन्स के लिये:पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क में अंतराल और सिफारिशें। |
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण वैज्ञानिकों, पारिस्थितिकीविदों और नीति विशेषज्ञों के एक समूह ने माना है कि वर्ष 2020 के बाद वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क का मसौदा उन रासायनिक प्रदूषकों की समग्रता का हिसाब देने में विफल है जो वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डालते हैं।
फ्रेमवर्क में अंतराल:
- रासायनिक प्रदूषक: मसौदा समझौता पोषक तत्त्वों, कीटनाशकों और प्लास्टिक को शामिल करके सीमित हो जाता है, क्योंकि अधिक चिंता और महत्त्व के कई रसायनों को समूह से बाहर रखा जाता है, जिसमें ऐसे पदार्थ शामिल हैं जो विषाक्त हैं, जैसे पारा और PFAS (प्रति पॉलीफ्लोरोएल्किल पदार्थ) साथ ही फार्मास्यूटिकल्स।
- संरक्षित क्षेत्रों के अंदर LNPP: वर्तमान में LNPP (भूमि जहांँ प्राकृतिक प्रक्रियाएंँ प्रबल होती हैं) स्थायी बर्फ और चट्टान को छोड़कर लगभग 56% स्थलीय भूमि को कवर करती है। हालाँकि इस भूमि का केवल 20% ही औपचारिक रूप से संरक्षित है। इसका मतलब यह है कि स्थायी बर्फ और चट्टान को छोड़कर दुनिया की केवल 11% भूमि LNPP द्वारा संरक्षित क्षेत्रों के अंदर है। समूह को लगता है कि यह एक समस्या है क्योंकि वर्ष 2020 के बाद के ढांँचे में वर्ष 2030 तक कम से कम 30% भूमि की रक्षा करने का प्रस्ताव है।
- LNPP उस भूमि को संदर्भित करता है जहांँ कम मानवीय हस्तक्षेप और / या पारिस्थितिक रूप से अपेक्षाकृत यथावत वनस्पति है, जो जैवविविधता को पनपने के लिये स्थान और आवास प्रदान करती है।
वर्ष 2020 के बाद वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क
- परिचय:
- यह एक नया फ्रेमवर्क है जो लोगों को प्रकृति और इसकी आवश्यक सेवाओं को परिरक्षित तथा संरक्षित करने के लिये वर्ष 2030 तक दुनिया भर में कार्यों का मार्गदर्शन करेगा।
- इसका उद्देश्य सरकारों और पूरे समाज द्वारा जैवविविधता, इसके प्रोटोकॉल और जैवविविधता से संबंधित अन्य बहुपक्षीय समझौतों, प्रक्रियाओं और उपकरणों के उद्देश्यों में योगदान करने के लिये तत्त्काल तथा परिवर्तनकारी कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
- फ्रेमवर्क परिवर्तन के सिद्धांत के इर्द-गिर्द बनाया गया है जो यह मानता है कि आर्थिक, सामाजिक और वित्तीय मॉडल को बदलने के लिये वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर तत्त्काल नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता है।
- लक्ष्य और उद्देश्य:
- वर्ष 2050 तक हासिल करने के लिये चार लक्ष्य:
- जैवविविधता के विलुप्त होने और गिरावट को रोकने के लिये।
- संरक्षण के द्वारा मनुष्यों को प्रकृति की सेवाओं में वृद्धि और बनाए रखने के लिये।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से सभी को उचित और समान लाभ सुनिश्चित करना।
- उपलब्ध वित्तीय और कार्यान्वयन के अन्य साधनों तथा वर्ष 2050 के विज़न को प्राप्त करने के लिये आवश्यक बीच की अंतराल को पाटना।
- 2030 कार्य लक्ष्य: वर्ष 2030 के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये ढांँचे में 21 कार्योंमुख लक्ष्य हैं, जिनमें शामिल हैं:
- विश्व के कम से कम 30% भूमि और समुद्री क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत लाना।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरूआत की दर में 50% से अधिक कमी, और उनके प्रभावों को खत्म करने या कम करने के लिये ऐसी प्रजातियों का नियंत्रण या उन्मूलन।
- पर्यावरण के लिये नुकसानदेह पोषक तत्वों को कम से कम आधा, और कीटनाशकों को कम से कम दो तिहाई कम करना, और प्लास्टिक कचरे के निर्वहन को समाप्त करना।
- प्रति वर्ष कम से कम 10 GtCO2e (गीगाटन समतुल्य कार्बन डाइऑक्साइड) के वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में प्रकृति-आधारित योगदान, और यह कि सभी शमन तथा अनुकूलन प्रयास जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभावों से बचाते हैं।
- जैवविविधता के लिये हानिकारक प्रोत्साहनों को पुनर्निर्देशित, पुन: उपयोग, सुधार या समाप्त करना, उचित और न्यायसंगत तरीके से, उन्हें प्रति वर्ष कम से कम 500 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक कम करना।
- वर्ष 2050 तक हासिल करने के लिये चार लक्ष्य:
अनुशंसाएँ:
- वर्ष 2020 के बाद के वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क में लागू की जाने वाली रणनीतियों और कार्रवाई के लिये रासायनिक प्रदूषकों के व्यापक दायरे को लक्षित करने की आवश्यकता है।
- दुनिया भर के देश हाल ही में मौजूदा ज्ञान को समेकित करने और नीति निर्माताओं को सूचित करने के लिये रसायनों और कचरे पर एक अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति पैनल बनाने पर सहमत हुए हैं।
- दूरदराज़ के आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र सहित दुनिया के हर पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले रासायनिक प्रदूषकों के अकाट्य प्रमाण, नए जैवविविधता फ्रेमवर्क के वार्ताकारों को इन्हें वैश्विक जैवविविधता के लिये खतरों के रूप में शामिल करने हेतु मज़बूर करना चाहिये।
- भोजन की उपलब्धता के लिये जैवविविधता की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है, सभी प्रजातियों की स्वस्थ और लचीली आबादी का समर्थन करने के लिये वर्ष 2030 तक कम-से-कम 5% और 2050 तक 15% की प्राकृतिक प्रणालियों के क्षेत्र, कनेक्टिविटी और अखंडता में शुद्ध लाभ होना चाहिये।
- आहार में बदलाव, फसल और पशुधन उत्पादकता में वृद्धि और कृषि भूमि के विस्तार को सीमित करने से वर्ष 2050 तक वैश्विक जैवविविधता, खाद्य सुरक्षा और जलवायु शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
जैवविविधता अभिसमय (CBD)
- जैवविविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD), जैवविविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
- जैवविविधता का संरक्षण।
- जैविक विविधता के घटकों का सतत् उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत वितरण।
- लगभग सभी देशों ने इसकी पुष्टि की है (अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है)।
- CBD का सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत संचालित होता है।
- जैवविविधता अभिसमय के तहत पार्टियांँ (देश) नियमित अंतराल पर मिलती हैं और इन बैठकों को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (Conference of Parties - COP) कहा जाता है।
- वर्ष 2000 में जैव सुरक्षा पर एक पूरक समझौते के रुप में कार्टाजेना प्रोटोकॉल (Cartagena Protocol on Biosafety) को अपनाया गया था। यह 11 सितंबर, 2003 को लागू हुआ।
- यह प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप संशोधित जीवित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैविक विविधता की रक्षा करता है।
- आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंँच सुनिशचित तकरने और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2010 में नागोया प्रोटोकॉल को जापान के नागोया शहर में संपन्न।
- नागोया प्रोटोकॉल COP10 में अपनाया गया था। यह 12 अक्तूबर, 2014 को लागू हुआ।
- यह प्रोटोकॉल न केवल CBD के तहत शामिल आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े उस पारंपरिक ज्ञान (Traditional knowledge- TK) को भी कवर करता है जो CBD और इसके उपयोग से होने वाले लाभों से आच्छादित हैं।
- COP-10 में आनुवंशिक संसाधनों पर नागोया प्रोटोकॉल को अपनाने के साथ, जैवविविधता को बचाने हेतु सभी देशों द्वारा कार्रवाई के लिये दस वर्ष की रूपरेख को भी अपनाया गया।
- वर्ष 2010 में नागोया में CBD की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP-10) में वर्ष 2011-2020 हेतु ‘जैवविविधता के लिये रणनीतिक योजना’ को अपनाया गया। इसमें पहली बार विषय विशिष्ट 20 जैवविविधता लक्ष्यों- जिन्हें आइची जैवविविधता लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है, को अपनाया गया।
- भारत में CBD के प्रावधानों को प्रभावी बनाने हेतु वर्ष 2002 में जैविक विविधता अधिनियम अधिनियमित किया गया।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:एकल-उपयोग प्लास्टिक, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016, सीपीसीबी, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986। मेन्स के लिये:प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण और प्रबंधन, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, संरक्षण। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, केंद्र सरकार ने एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं की एक सूची को तैयार किया है जिन्हें 1 जुलाई, 2022 से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
- 1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टीरीन और विस्तारित पॉलीस्टीरीन सहित अधिसूचित एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित होगा।
एकल उपयोग प्लास्टिक:
- परिचय:
- यह उन प्लास्टिक वस्तुओं को संदर्भित करता है जिन्हें एक बार उपयोग किया जाता है और फेंक दिया जाता है।
- निर्मित और प्रयुक्त प्लास्टिक के उच्चतम शेयर:
- एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद जैसे- प्लास्टिक की थैलियाँ, स्ट्रॉ, कॉफी बैग, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांशतः खाद्य पैकेजिंग के लिये प्रयुक्त होने वाला प्लास्टिक।
- दुनिया भर में उत्पादित प्लास्टिक का एक तिहाई हिस्सा है:
- एक ऑस्ट्रेलियाई परोपकारी संगठन, मिंडेरू फाउंडेशन की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का वैश्विक उत्पादन में एक तिहाई हिस्सा होता है, जिसमें 98% जीवाश्म ईंधन से निर्मित होता है।
- प्लास्टिक का अधिकांशतः छोड़ दिया जाता है:
- एकल उपयोग वाले प्लास्टिक वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर 130 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक अधिकांश कचरे के लिये ज़िम्मेदार है, जिसमें से सभी को जला दिया जाता है, लैंडफिल कर दिया जाता है या सीधे पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान:
- उत्पादन के वर्तमान प्रक्षेपवक्र पर, यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 5-10% के लिये ज़िम्मेदार हो सकता है।
- भारत के लिये डेटा:
- रिपोर्ट में पाया गया कि भारत एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन के शीर्ष 100 देशों में शामिल है - रैंक 94 (शीर्ष तीन सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और ओमान) है।
- सालाना 11.8 मिलियन मीट्रिक टन के घरेलू उत्पादन और 2.9 MMT आयात के साथ, भारत का एकल उपयोग प्लास्टिक कचरे का शुद्ध उत्पादन 5.6 MMT और प्रति व्यक्ति उत्पादन 4 किलो है।
चुनाव का आधार:
- प्रतिबंध के लिये एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक की वस्तुओं के पहले सेट का चुनाव संग्रह की कठिनाई और उनके रीसाइक्लिंग पर आधारित था।
- जब प्लास्टिक लंबे समय तक पर्यावरण में उपस्थित रहता है और अपघटित नहीं है तो यह माइक्रोप्लास्टिक में परिवर्तित हो जाता है। उसके बाद पहले यह हमारे खाद्य स्रोतों और फिर मानव शरीर में प्रवेश करता है, तथा यह बेहद हानिकारक है।
- एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक का सबसे बड़ा हिस्सा पैकेज़िग का है इस श्रेणी से संबंधित 95% टूथपेस्ट से लेकर शेविंग क्रीम तथा फ्रोजन फूड तक में उपयोग होता है।
- चुनी गई वस्तुएंँ कम मूल्य की और कम टर्नओवर वाली हैं और उनके बड़े आर्थिक प्रभाव की संभावना नहीं है।
प्रतिबंध लागू होने की प्रक्रिया:
- निगरानी द्वारा:
- केंद्र से सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) द्वारा प्रतिबंध की निगरानी की जाएगी जो नियमित रूप से केंद्र को रिपोर्ट करेंगे।
- जारी दिशा-निर्देश:
- राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर निर्देश जारी किये गए हैं- उदाहरण के लिये सभी पेट्रोकेमिकल उद्योगों को प्रतिबंधित वस्तुओं में लगे उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति नहीं करने के लिये कहा गया है।
- SPCBs और प्रदूषण नियंत्रण समितियों को एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं में लगे उद्योगों को वायु/जल अधिनियम के तहत जारी की गई सहमति को संशोधित करने या रद्द करने के निर्देश जारी किये गए हैं।
- स्थानीय अधिकारियों को इस शर्त के साथ नए वाणिज्यिक लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया गया है कि उनके परिसर में एसयूपी आइटम नहीं बेचे जाएंगे तथा मौजूदा वाणिज्यिक लाइसेंस रद्द कर दिये जाएंगे यदि वे इन वस्तुओं को बेचते पाए जाते हैं।
- कंपोस्टेबल और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को बढ़ावा देना:
- CPCB ने कम्पोस्टेबल प्लास्टिक के 200 निर्माताओं को एकमुश्त प्रमाण पत्र जारी किया और BIS ने बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिये मानकों को पारित किया।
- दंड:
- प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत दंडित किया जा सकता है - जो 5 साल तक की कैद या 1 लाख रुपये तक ज़ुर्माना या दोनों की अनुमति देता है।
- उल्लंघनकर्ताओं को APCB द्वारा पर्यावरणीय क्षति मुआवजे का भुगतान करने के लिये भी कहा जा सकता है।
- प्लास्टिक कचरे पर नगरपालिका कानून हैं, उनकी अपनी दंड संहिताएँ हैं।
एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक से निपटने के अन्य देशों के प्रयास:
- संकल्प पर हस्ताक्षर:
- वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में भारत सहित 124 देशों ने समझौते को तैयार करने के लिये एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये, जो भविष्य में हस्ताक्षरकर्त्ताओं के लिये उत्पादन से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के पूर्ण जीवन को संबोधित करने हेतु प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना कानूनी रूप से बाध्यकारी बना देगा।
- जुलाई 2019 तक, 68 देशों में अलग-अलग डिग्री के प्रवर्तन के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध है।
- प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाले देश:
- बांग्लादेश:
- बांग्लादेश वर्ष 2002 में पतले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना।
- न्यूज़ीलैंड:
- जुलाई 2019 में न्यूज़ीलैंड प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला नवीनतम देश बन गया
- चीन:
- चीन ने वर्ष 2020 में चरणबद्ध कार्यान्वयन के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध जारी किया।
- अमेरिका:
- अमेरिका में आठ राज्यों ने एकल प्रयोग प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसकी शुरुआत 2014 में कैलिफोर्निया से हुई थी। सिएटल वर्ष 2018 में प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला प्रमुख अमेरिकी शहर बन गया।
- यूरोपीय संघ:
- जुलाई, 2021 में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर निर्देश यूरोपीय संघ में प्रभावी हुआ।
- यह निर्देश कुछ एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाता है जिसके लिये विकल्प उपलब्ध हैं; एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक प्लेट, कटलरी, स्ट्रॉ, बैलून स्टिक और कॉटन बड्स को यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बाज़ारों में नहीं रखा जा सकता है।
- विस्तारित पॉलीस्टीरीन से बने कप, खाद्य और पेय कंटेनर और ऑक्सो-डिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने सभी उत्पादों पर भी यही उपाय लागू होता है।
- बांग्लादेश:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: पर्यावरण में छोड़े जाने वाले 'माइक्रोबीड्स' को लेकर इतनी चिंता क्यों है? (2019) (a) उन्हें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है। उत्तर: (a)
अतः विकल्प (a) सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
साइबर सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:साइबर सुरक्षा, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, CERT-In मेन्स के लिये:साइबर सुरक्षा खतरा, साइबर सुरक्षा के लिये सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘साइबर सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन’ नई दिल्ली में संपन्न हुआ।
- यह सम्मेलन देश में साइबर अपराधों की रोकथाम के लिये व्यापक जागरूकता पैदा करने के प्रयासों का हिस्सा है।
- यह भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में भारत की प्रगति और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिये आजादी का अमृत महोत्सव का भी हिस्सा है।
साइबर सुरक्षा
- परिचय:
- साइबरस्पेस नेटवर्क, संबंधित हार्डवेयर और डिवाइस सॉफ्टवेयर और उनमें शामिल और संचार करने वाली जानकारी, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरों सहित सभी खतरों से संबंधित सॉफ्टवेयर और डेटा शामिल हैं, की सुरक्षा के लिये गतिविधि और अन्य उपाय किये जाते हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ संबंध:
- चूँकि भारत के खिलाफ साइबर हमले शुरू करने के लिये साइबर आर्मीज़ का गठन किया गया है, साइबर सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा से निकटता से जुड़ी हुई है।
- साइबर आर्मीज़ साइबर कौशल के साथ सूचना प्रौद्योगिकी में अत्यधिक कुशल व्यक्तियों का एक समूह है।
- चूँकि भारत के खिलाफ साइबर हमले शुरू करने के लिये साइबर आर्मीज़ का गठन किया गया है, साइबर सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा से निकटता से जुड़ी हुई है।
भारत के साइबर सुरक्षा खतरे से बचने के उपाय:
- डिजिटल इंडिया विज़न:
- भारत डिजिटल प्रौद्योगिकियों के लिये सबसे तेज़ी से बढ़ते बाज़ारों में से एक है, जो अपने डिजिटल इंडिया मिशन को साकार करने की दिशा में सरकार के प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है।
- चाहे ब्रॉडबैंड हाईवे बनाना हो या डिजी लॉकर जैसी सेवाएँ शुरू करनी हों और जन धन योजना जैसी ई-गवर्नेंस योजनाएँ, सरकार ने जितना संभव हो उतना डिजिटल अपनाने पर ज़ोर दिया है।
- भारत डिजिटल प्रौद्योगिकियों के लिये सबसे तेज़ी से बढ़ते बाज़ारों में से एक है, जो अपने डिजिटल इंडिया मिशन को साकार करने की दिशा में सरकार के प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत पिछले 8 वर्षों में 45 करोड़ नए खाते खोले गए हैं और 32 करोड़ रुपे डेबिट कार्ड वितरित किये गए हैं।
- भारतनेट भी बहुत तेजी से विकसित हो रहा है इसके तहत 5.75 लाख किमी. फाइबर केबल बिछाई गई है। इसने पिछले 8 वर्षों में 1.80 लाख गांँवों को जोड़ने का काम किया गया है जो 8 साल पहले 10,000 से भी कम था।
- भारतनेट भी बहुत तेजी से विकसित हो रहा है इसके तहत 5.75 लाख किमी. फाइबर केबल बिछाई गई है। इसने पिछले 8 वर्षों में 1.80 लाख गांँवों को जोड़ने का काम किया गया है जो 8 साल पहले 10,000 से भी कम था।
- डिजिटल गतिविधियों का बढ़ता दायरा:
- भारत में अब 1.15 बिलियन से अधिक फोन और 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं जो भारत को से डिजिटल रूप से मज़बूत पूल प्रदान करता है।
- जनवरी 2020 में भारत में 550 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के साथ दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्त्ता आधार था।
- वर्ष 2021 में कुल वैश्विक डिजिटल भुगतान का 40 प्रतिशत भारत में हुआ।
- डिजिटल समावेशन से साइबर हमलों और अपराधों के लिये अग्रणी डिजिटल खतरों की संभावना बढ़ जाती है।
- भारत में अब 1.15 बिलियन से अधिक फोन और 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं जो भारत को से डिजिटल रूप से मज़बूत पूल प्रदान करता है।
साइबर अपराध को पारंपरिक आपराधिक गतिविधि से भिन्न करने वाले कारक:
- साइबर अपराध, जिसे कंप्यूटर अपराध भी कहा जाता है, कंप्यूटर का उपयोग एक उपकरण के रूप में अवैध उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे धोखाधड़ी करना, चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी में तस्करी और बौद्धिक संपदा की चोरी करना या गोपनीयता का उल्लंघन करना।
- अधिकांश साइबर अपराध व्यक्तियों, निगमों या सरकारों के बारे में जानकारी पर हमला है।
- हालांँकि हमले पारंपरिक आपराधिक गतिविधि के रूप में भौतिक शरीर पर नहीं होते हैं, वे व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट आभासी निकाय पर होते हैं, जो सूचनात्मक विशेषताओं का समूह है जो इंटरनेट पर लोगों और संस्थानों को परिभाषित करता है।
साइबर सुरक्षा के समक्ष चुनौतियाँ:
- सेवा प्रदाता:
- लगभग हर क्षेत्र में डिजिटलीकरण की ओर बढ़ने से एप्लीकेशन सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग में वृद्धि हुई है जो ग्राहकों को कम से कम समय में सर्वोत्तम ऐप्स और सेवाएंँ प्रदान करने से संबंधित है।
- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विदेशी मूल के होने या डेटा के टेराबाइट्स जो भारत के बाहर सर्वर पर रखे जाते हैं, राष्ट्रीय साइबर स्पेस के लिये संभावित खतरा पैदा करते हैं।
- व्यापक कवरेज:
- भारत में अब 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं और यह इसे डिजिटल रूप से संवेदनशील लक्ष्यों का एक बड़ा केंद्र बनाता है। हमारे देश के आकार और विस्तार को ध्यान में रखते हुए, यह डिजिटल खतरों की निगरानी करने के लिये चुनौती के रूप में कार्य करता है।
साइबर सुरक्षा हेतु वर्तमान सरकार की पहल:
- साइबर क्राइम पोर्टल:
- इसका उद्देश्य नागरिकों को बाल पोर्नोग्राफी/बाल यौन शोषण सामग्री या यौन स्पष्ट सामग्री जैसे बलात्कार/सामूहिक बलात्कार (CP/RGR) से संबंधित ऑनलाइन सामग्री की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाना है।
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C):
- गृह मंत्रालय के I4C और CIS डिवीजन के तहत सात स्तंभों के माध्यम से साइबर अपराधों की रोकथाम को नियंत्रित किया जा रहा है -
- राष्ट्रीय साइबर अपराध खतरा विश्लेषण इकाई
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल
- राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र
- राष्ट्रीय साइबर अपराध अनुसंधान और नवाचार केंद्र
- संयुक्त साइबर अपराध समन्वय
- राष्ट्रीय साइबर अपराध पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन इकाई
- राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला
- सर्ट-इन (CERT-In)
- साइबर सुरक्षा के लिये भारत की राष्ट्रीय एजेंसी, द इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-IN) ने देश की साइबर सुरक्षा से निपटने में प्रगति के साथ सरकारी नेटवर्क पर साइबर हमलों में कमी की है।
- साइबर सुरक्षित भारत:
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) की एक पहल है जिसका उद्देश्य भारत में एक मज़बूत साइबर सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है। यह 'डिजिटल इंडिया' के लिये सरकार के विज़न के अनुरूप है। राष्ट्रीय ई-गवर्नमेंट डिवीजन (NeGD) ने इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया।
- साइबर स्वच्छता केंद्र:
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत एक स्थापना है, जिसका उद्देश्य बॉटनेट संक्रमणों का पता लगाकर भारतीय उपयोग कर्त्ताओं के लिये सुरक्षित साइबर स्पेस बनाना है और अंतिम उपयोगकर्त्ताओं को अपने सिस्टम को साफ करने और उसके बाद आगे के संक्रमणों को रोकने के लिये अपने सिस्टम को सुरक्षित करने में सक्षम बनाना है।
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक:
- दुनिया भर में डेटा उल्लंघनों ने भारतीय नागरिकों के लिये व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु खतरा पैदा किया, स्थानीय डेटा पर ध्यान केंद्रित करते हुए, PDP विधेयक को वैश्विक उल्लंघनों से बचाने के लिये केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था।
आगे की राह
साइबर-सुरक्षित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, भारत को एक मजबूत साइबर सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता होगी जो सरकारी प्रणालियों, नागरिकों और व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करे। यह न केवल नागरिकों को साइबर खतरों से बचाने में मदद करेगा, बल्कि अर्थव्यवस्था में निवेशकों का विश्वास भी बढ़ाएगा।
- विश्वविद्यालय और स्कूल के पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा को एक उच्च-डेसिबल जागरूकता विषय के रूप में शामिल करना चाहिये।
- नियमित भेद्यता मूल्यांकन करने और बढ़ते साइबर खतरे के बारे में आवश्यक जागरूकता पैदा करने के लिये सार्वजनिक डोमेन में अधिकारियों पर भी दबाव डालने की आवश्यकता है।
- साइबर हमलों की जांँच के लिये विश्वसनीय स्वदेशी समाधान विकसित करने हेतु साइबर सुरक्षा के लिये एक समर्पित उद्योग मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
स्रोत : पीआईबी
ग्रीष्म अयनांत: 21 जून
प्रिलिम्स के लिये:ग्रीष्म अयनांत, शीत अयनांत, विषुव। मेन्स के लिये:ग्रीष्म अयनांत, अयनांत के पीछे का भूगोल, भौतिक भूगोल, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटना। |
चर्चा में क्यों?
21 जून उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म अयनांत का दिन है।
- इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ग्रीष्म अयनांत
- परिचय:
- अयनांत एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है “Stalled Sun” यानी “ठहरा हुआ सूर्य”। यह एक प्राकृतिक घटना है जो पृथ्वी के प्रत्येक गोलार्द्ध में वर्ष में दो बार होती है, एक बार ग्रीष्म ऋतु में और एक बार शीत ऋतु में। जिसे क्रमशः ग्रीष्म अयनांत और शीत अयनांत कहते है।
- यह उत्तरी गोलार्द्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
- इस दौरान उत्तरी गोलार्द्ध के देश सूर्य के सबसे निकट होते हैं और सूर्य कर्क रेखा (23.5° उत्तर) पर ऊपर की ओर चमकता है।
- 23.5° के अक्षांशों पर कर्क और मकर रेखाएँ भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में स्थित हैं।
- 66.5° पर उत्तर और दक्षिण में आर्कटिक और अंटार्कटिक वृत्त हैं।
- अक्षांश भूमध्य रेखा से किसी स्थान की दूरी का माप है।
- संक्रांति के दौरान पृथ्वी की धुरी जिसके चारों ओर ग्रह एक चक्कर पूरा करता है। इस तरह झुका हुआ है कि उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका हुआ है और दक्षिणी ध्रुव इससे दूर स्थित है।
- आमतौर पर, यह काल्पनिक धुरी ऊपर से नीचे तक पृथ्वी के मध्य से होकर गुजरती है और हमेशा सूर्य के संबंध में 23.5º झुकी होती है।
- ऊर्जा की अधिक मात्रा:
- सूर्य से प्राप्त ऊर्जा की अधिक मात्रा इस दिन की विशेषता है। NASA (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के अनुसार, इस दिन पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा उत्तरी ध्रुव पर भूमध्य रेखा की तुलना में 30% अधिक है।
- इस दौरान उत्तरी गोलार्ध द्वारा प्राप्त सूर्य के प्रकाश की अधिकतम मात्रा आमतौर पर 20, 21 या 22 जून को होती है। इसके विपरीत, दक्षिणी गोलार्ध में सबसे अधिक सूर्य का प्रकाश 21, 22 या 23 दिसंबर को प्राप्त होता है, जब उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबी रातें होती है।
संक्रांति के पीछे का भूगोल :
- इसके पीछे पृथ्वी के झुकाव के कारण दिनों की बदलती लंबाई है।
- पृथ्वी का घूर्णन अक्ष अपने कक्षीय तल से 23.5° के कोण पर झुका हुआ है। यह झुकाव, पृथ्वी की परिक्रमा और कक्षा जैसे कारकों के साथ, सूर्य के प्रकाश की अवधि में भिन्नता की ओर जाता है, जिसके कारण ग्रह पर किसी भी स्थान को अलग-अलग दिनों की अवधि प्राप्त होती है।
- उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की दिशा में झुका हुआ आधा वर्ष बिताता है, लंबे गर्मी के दिनों में सीधी धूप प्राप्त करता है। वर्ष के दूसरे भाग के दौरान, यह सूर्य से दूर झुक जाता है, और दिन छोटे होते हैं।
- झुकाव पृथ्वी पर विभिन्न मौसमों के लिये भी ज़िम्मेदार है। इस घटना के कारण सूर्य की गति उत्तरी से दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर होती है और इसके विपरीत यह वर्ष में मौसमी परिवर्तन लाता है।
विषुव:
- वर्ष में दो बार विषुव ("बराबर दिन/रातें") के दौरान पृथ्वी की धुरी हमारे सूर्य की ओर नहीं होती है, बल्कि आने वाली किरणों के लंबवत होती है।
- इसका परिणाम सभी अक्षांशों पर "लगभग" समान अवधि की दिन और रात होती है।
- वसंत विषुव (Spring Equinox) उत्तरी गोलार्द्ध में 20 या 21 मार्च को होता है। 22 या 23 सितंबर को उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु या पतझड़ विषुव होता है।
संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा, पिछले वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न: 21 जून को सूर्य की स्थिति होती है: (2019) (a) आर्कटिक वृत में क्षितिज के नीचे नहीं होता है। उत्तर: (a)
|