तियानवेन-1 : चीन का मंगल मिशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ( Tianwen-1) ने प्रथम मार्स रोवर ज़्यूरोंग (Zhurong) के साथ मंगल की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड किया।
- यह अमेरिका और सोवियत संघ के बाद मंगल ग्रह पर उतरने वाला तीसरा देश बन गया।
- इससे पूर्व चीन का 'यिंगहुओ -1'(Yinghuo-1) मंगल मिशन, जो एक रूसी अंतरिक्षयान द्वारा समर्थित था, वर्ष 2012 में अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा से बाहर नहीं निकलने के कारण तथा इसके प्रशांत महासागर के ऊपर विघटित होने के पश्चात् विफल हो गया था।
प्रमुख बिंदु:
तियानवेन-1 मिशन के बारे में:
- लॉन्च:
- जुलाई 2020 में तियानवेन -1 अंतरिक्षयान को वेनचांग प्रक्षेपण केंद्र से लांग मार्च 5 रॉकेट (Long March 5) द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
- इसके तीन भाग या चरण है :
- इस अंतरिक्षयान में तीन भाग हैं - ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर जो मंगल की कक्षा में पहुँचने के बाद अलग हो गए।
- ऑर्बिटर वैज्ञानिक संचालन और संकेतों को रिले करने के लिये मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित है, जबकि लैंडर-रोवर को संयोजित रूप से मंगल की सतह पर स्थापित किया गया।
- तियानवेन-1 का लैंडर मंगल ग्रह के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित, ‘यूटोपिया प्लैनिटिया’ (Utopia Planitia) नामक एक बड़े मैदान में उतरा है।
- उद्देश्य:
- इसका प्रमुख उद्देश्य मंगल ग्रह की मिट्टी, भूवैज्ञानिक संरचना, पर्यावरण, वायुमंडल और पानी की वैज्ञानिक जाँच करना है।
- यह मंगल ग्रह की सतह पर भू-गर्भीय रडार (ground-penetrating radar) स्थापित करने वाला पहला मिशन होगा, जो स्थानीय भूविज्ञान के साथ-साथ चट्टान, बर्फ और धूल कणों (dirt) के वितरण का अध्ययन करने में सक्षम होगा।
- इसका प्रमुख उद्देश्य मंगल ग्रह की मिट्टी, भूवैज्ञानिक संरचना, पर्यावरण, वायुमंडल और पानी की वैज्ञानिक जाँच करना है।
चीन के अन्य अंतरिक्ष कार्यक्रम:
अन्य मंगल मिशन:
- नासा का ‘पर्सिवरेंस’ रोवर
- संयुक्त अरब अमीरात का ‘होप’ मंगल मिशन [संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का पहला इंटरप्लेनेटरी ‘होप’ मिशन]
- भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान:
- इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- यह पीएसएलवी सी-25 रॉकेट द्वारा मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना के अध्ययन के साथ-साथ मीथेन (मंगल पर जीवन का एक संकेतक) की खोज करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
मंगल ग्रह (Mars)
- आकार एवं दूरी (Size and Distance):
- यह सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित ग्रह है और सौरमंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है।
- मंगल, पृथ्वी के व्यास या आकार का लगभग आधा है।
- पृथ्वी से समानता (कक्षा और घूर्णन):
- मंगल सूर्य की परिक्रमा करता है, यह 24.6 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है, जो कि पृथ्वी पर एक दिन (23.9 घंटे) के समान है।
- मंगल का अक्षीय झुकाव 25 डिग्री है। यह पृथ्वी के लगभग समान है, जो कि 23.4 डिग्री के अक्षीय झुकाव पर स्थित है।
- पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम पाए जाते हैं, लेकिन वे पृथ्वी के मौसम की तुलना में लंबी अवधि के होते हैं क्योंकि सूर्य की परिक्रमा करने में मंगल अधिक समय लेता है।
- मंगल ग्रह के दिनों को सोल (sols) कहा जाता है, जो 'सौर दिवस' का लघु रूप है।
- अन्य विशेषताएँ :
- मंगल के लाल दिखने का कारण इसकी चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण, जंग लगना और धूल कणों की उपस्थिति है, इसलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है
- मंगल ग्रह पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी स्थित है, जिसे ओलंपस मॉन्स (Olympus Mons) कहते हैं।
- मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डीमोस।
स्रोत : द हिंदू
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana) के अंतर्गत अब तक 22 नए क्षेत्रीय एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) की स्थापना को मंज़ूरी दे दी गई है।
प्रमुख बिंदु
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के विषय में:
- लॉन्च:
- इस योजना की घोषणा वर्ष 2003 में तृतीयक स्वास्थ्य सेवा अस्पतालों की उपलब्धता से जुड़े असंतुलन को दूर करने और देश में चिकित्सा शिक्षा में सुधार के लिये की गई थी।
- नोडल मंत्रालय:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय।
- दो घटक:
- एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना करना।
- विभिन्न राज्यों में सरकारी मेडिकल कॉलेजों का उन्नयन करना।
- प्रत्येक मेडिकल कॉलेज के उन्नयन की लागत केंद्र और राज्य दोनों द्वारा वहन की जाती है।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबंधित अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि:
- यह निधि स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर से प्राप्त ‘सिंगल नॉन लैप्सेबल रिज़र्व फंड’ है।
- प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना:
- इस योजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2021-22 में की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य देश के सुदूर हिस्सों (अंतिम मील तक) में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमता विकसित करना तथा देश में ही अनुसंधान, परीक्षण एवं उपचार के लिये एक आधुनिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है।
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन:
- यह मिशन चार प्रमुख डिजिटल पहलों यथा- हेल्थ आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री के साथ एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है।
- आयुष्मान भारत (दोतरफा दृष्टिकोण):
- स्वास्थ्य देखभाल सुविधा घरों के करीब सुनिश्चित करने के लिये स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का निर्माण।
- स्वास्थ्य देखभाल से उत्पन्न होने वाले वित्तीय जोखिम से गरीब और कमज़ोर परिवारों की रक्षा के लिये प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) का निर्माण।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017:
- इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है, साथ ही बदलते सामाजिक-आर्थिक, तकनीकी और महामारी परिदृश्यों से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान का प्रयास करना है।
- प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना:
- इस परियोजना के अंतर्गत जन औषधि केंद्रों को गुणवत्ता एवं प्रभावकारिता वाली महँगी ब्रांडेड दवाओं के समतुल्य जेनेरिक दवाइयों को कम कीमत पर उपलब्ध कराने के लिये स्थापित किया गया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन:
- इस मिशन को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को मिलाकर शुरू किया गया था।
- इसके तहत प्रजनन-मातृ-नवजात शिशु-बाल एवं किशोरावस्था स्वास्थ्य (Reproductive-Maternal-Neonatal-Child and Adolescent Health- RMNCH+A) तथा संक्रामक व गैर-संक्रामक रोगों के दोहरे बोझ से निपटने के लिये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रणाली के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
स्रोत: पी.आई.बी.
कन्वेंशन सेंटर्स को बुनियादी ढांँचे का दर्जा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा एक्जीबिशन/प्रदर्शनी स्थलों और कन्वेंशन/सम्मेलन केंद्रों (Convention Centres) को 'बुनियादी ढांँचे' का दर्जा दिया गया है।
- वर्ष 2020 में सरकार ने बुनियादी ढांँचे के रूप में मान्यता प्राप्त क्षेत्रों की सूची में किफायती किराया आवास योजनाओं (Affordable Rental Housing Project) को शामिल किया था।
प्रमुख बिंदु:
एक्जीबिशन-कम-कन्वेंशन सेंटर के बुनियादी ढांँचे की स्थिति:
- एक्जीबिशन-कम-कन्वेंशन सेंटर/प्रदर्शनी-सह-सम्मेलन केंद्र को एक नई वस्तु के रूप में सामाजिक और वाणिज्यिक अवसंरचना (Social and Commercial Infrastructure) की श्रेणी में इन्फ्रास्ट्रक्चर उप-क्षेत्रों (Infrastructure Sub-Sectors) की सामंजस्यपूर्ण मूल सूची में शामिल किया गया है।
- हालांँकि ‘बुनियादी ढांँचा’ परियोजनाओं का लाभ केवल उन्ही परियोजनाओं को मिलेगा, जिनका न्यूनतम निर्मित फर्श क्षेत्र (Minimum Built-Up Floor Area) 1,00,000 वर्ग मीटर का प्रदर्शनी स्थान (Exhibition Space) या कन्वेंशन स्पेस (Convention Space) या दोनों संयुक्त रूप से शामिल हों।
- इसमें प्राथमिक सुविधाएंँ जैसे- प्रदर्शनी केंद्र/एक्जीबिशन सेंटर, कन्वेंशन हॉल, ऑडिटोरियम, प्लेनरी हॉल, बिज़नेस सेंटर, मीटिंग हॉल आदि शामिल हैं।
- यह कदम भारत के पर्यटन क्षेत्र में इस प्रकार की और परियोजनाओं को शुरू करने में मदद करेगा।
बुनियादी ढांँचे की आवश्यकता:
- थाईलैंड जैसे देशों जो कि एक प्रमुख वैश्विक एमआईसीई गंतव्य (MICE destination) हैं, के विपरीत भारत में 7,000 से 10,000 लोगों की क्षमता वाले बड़े कन्वेंशन सेंटर या सिंगल हॉल नहीं हैं।
- भारत के MICE गंतव्य जिसमें मीटिंग (Meetings), इंसेंटिव (Incentive), कॉन्फ्रेंस (Conference) और एक्जीबिशन (Exhibition) शामिल हैं, बनने से देश में सक्रिय कई वैश्विक कंपनियों से महत्त्वपूर्ण राजस्व की प्राप्ति की जा सकती है।
अवसंरचना उप-क्षेत्रों की सुसंगत मूल सूची:
- इस सूची को वित्त मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है। इसमें निम्नलिखित श्रेणियांँ शामिल हैं:
- परिवहन और संचालन: सड़कें और पुल, अंतर्देशीय जलमार्ग, हवाई अड्डा, आदि।
- ऊर्जा: विद्युत उत्पादन, विद्युत संचरण, आदि।
- जल और स्वच्छता: ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, जल उपचार संयंत्र, आदि।
- संचार: दूरसंचार आदि।
- सामाजिक और वाणिज्यिक अवसंरचना: शिक्षा संस्थान (शेयर पूंजी), खेल अवसंरचना, अस्पताल (शेयर पूंजी), पर्यटन अवसंरचना, आदि।
- सूची में शामिल करने का तात्पर्य है रियायती निधि तक पहुंँच, परियोजनाओं को बढ़ावा देना और निर्दिष्ट उप-क्षेत्रों हेतु निर्माण की निरंतरता का बने रहना।
- हालांँकि इंफ्रास्ट्रक्चर टैग में अब महत्त्वपूर्ण टैक्स ब्रेक (Vital Tax Breaks) शामिल नहीं हैं।
स्रोत: द हिंदू
मलेरकोटला: पंजाब का 23वाँ ज़िला
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब सरकार ने राज्य के 23वें ज़िले के रूप में मलेरकोटला (Malerkotla) के गठन की घोषणा की है।
- पंजाब भूमि राजस्व अधिनियम, 1887 की धारा 5 के अनुसार, "राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा तहसीलों, ज़िलों तथा डिवीजनों जिनमें राज्य विभाजित है, की संख्या में परिवर्तन कर सकती है या उन्हें बदल सकती है"
प्रमुख बिंदु:
मलेरकोटला का इतिहास:
- मलेरकोटला एक पूर्व रियासत है और पंजाब का एकमात्र मुस्लिम बहुल शहर है।
- ऐतिहासिक रूप से मलेरकोटला की नींव 15वीं शताब्दी में सूफी संत शेख सदरूद्दीन सदर-ए-जहां ने रखी इन्हें हैदर शेख के नाम से भी जाना जाता है।
- मुगल साम्राज्य के पतन के बाद मलेरकोटला के शासकों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग किया और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के साथ गठबंधन कर लिया जब उसने भारत पर आक्रमण किया।
- अहमद शाह अब्दाली ने वर्ष 1748-1767 तक भारत पर आठ बार आक्रमण किया।
- 19वीं शताब्दी में मलेरकोटला सीस-सतलज (cis-Sutlej) राज्यों में से एक बन गया।
- मलेरकोटला वर्ष 1947 तक (जब यह पूर्वी पंजाब में एकमात्र मुस्लिम बहुल सिख राज्य बन गया) ब्रिटिश संरक्षण और पड़ोसी सिख राज्यों के साथ गठबंधन के तहत अस्तित्व में रहा।
- वर्ष 1948 में रियासतों के विघटन के बाद मलेरकोटला पेप्सू या पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) के नए राज्य में शामिल हो गया। पेप्सू को वर्ष 1954 में ही भंग कर दिया गया तथा मलेरकोटला पंजाब का हिस्सा बन गया।
सीस-सतलज राज्य (Cis- Sutlej Sates):
- सिस-सतलज राज्य 19वीं शताब्दी में पंजाब क्षेत्र में छोटे राज्यों का एक समूह था जो उत्तर में सतलज नदी, पूर्व में हिमालय, दक्षिण में यमुना नदी और दिल्ली ज़िला तथा पश्चिम में सिरसा ज़िले के बीच स्थित था।
- इन राज्यों को अंग्रेज़ो द्वारा सिस-सतलज कहा जाता था क्योंकि वे ब्रिटिश या दक्षिणी सतलज नदी के किनारे पर स्थित थे।
- सिस-सतलुज राज्यों में कैथल, पटियाला, जींद, थानेसर, मलेरकोटला और फरीदकोट शामिल थे।
- सिख महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में इसके विलय के खतरे के कारण उन्होंने अंग्रेज़ो से अपील की जिन्होंने रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की संधि (1809) द्वारा उन पर प्रभुत्व स्थापित किया।
- राज्य, भारत की स्वतंत्रता (1947) तक अस्तित्व में रहे, उस समय वे पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) में संगठित हो गए थे।
- बाद में वे भारतीय राज्यों पंजाब और हरियाणा में समाहित हो गए।
- मलेरकोटला और सिख समुदाय:
- 'हा दा नारा' एपिसोड 1705 (Haa Da Naara’ Episode 1705):
- वर्ष 1705 में सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादे के सबसे छोटे बेटों [जोरावर सिंह (9) और फतेह सिंह (6)] के क्रूर निष्पादन के खिलाफ मलेरकोटला नवाब शेर मोहम्मद खान ने अपनी आवाज ('हा दा नारा') उठाई थी।
- शेर मोहम्मद खान द्वारा उठाई गई आवाज की याद में मलेरकोटला में गुरुद्वारा हा दा नारा साहिब की स्थापना की गई।
- वर्ष 1705 में सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादे के सबसे छोटे बेटों [जोरावर सिंह (9) और फतेह सिंह (6)] के क्रूर निष्पादन के खिलाफ मलेरकोटला नवाब शेर मोहम्मद खान ने अपनी आवाज ('हा दा नारा') उठाई थी।
- वड्डा घल्लूगारा (1762): नवाब भीकम शाह ने वर्ष 1762 में सिखों के खिलाफ लड़ाई में अब्दाली की सेना की तरफ से युद्ध लड़ा।
- इस युद्ध को 'वड्डा घल्लूगारा' या महान प्रलय के रूप में जाना जाता है जिसमें हज़ारों सिख मारे गए थे।
- मित्रता की संधि (1769): वर्ष 1769 में मलेरकोटला के तत्कालीन नवाब द्वारा पटियाला के राजा अमर सिंह के साथ मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किये गए।
- नामधारी नरसंहार (1872): 15 जनवरी, 1872 को हीरा सिंह और लहना सिंह के नेतृत्व में नामधारी (सिखों का एक पंथ) की टुकड़ियों ने मलेरकोटला (पंजाब) के ब्रिटिश प्रशासन पर हमला किया।
- ब्रिटिश प्रशासन ने आदेश दिया कि नामधारी क्रांतिकारियों को परेड ग्राउंड में लाया जाए और तोपों से उड़ा दिया जाए।
- शहादत के प्रतीक के रूप में उस मैदान का नाम अब 'कुकिया दा शहीदी पार्क' (Kukian Da Shaheedi Park) रखा गया है।
- ब्रिटिश प्रशासन ने आदेश दिया कि नामधारी क्रांतिकारियों को परेड ग्राउंड में लाया जाए और तोपों से उड़ा दिया जाए।
- 'हा दा नारा' एपिसोड 1705 (Haa Da Naara’ Episode 1705):
नए ज़िले का निर्माण
- राज्य की भूमिका: नए ज़िले बनाने या मौजूदा ज़िलों की स्थिति बदलने या उन्हें समाप्त करने की शक्ति राज्य सरकारों में निहित है।
- ऐसा या तो एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से या राज्य विधानसभा में एक कानून पारित करके किया जा सकता है।
- अधिकांश राज्य केवल आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करके ज़िले संबंधी प्रावधानों में परिवर्तन करना पसंद करते हैं।
- निर्माण का उद्देश्य: राज्यों का तर्क है कि छोटे ज़िले बेहतर प्रशासन को बढ़ावा देते हैं।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2016 में असम सरकार ने ‘प्रशासनिक सुविधा’ के लिये ‘माजुली उप-मंडल’ को ‘माजुली ज़िले’ में परिवर्तित करने के लिये एक अधिसूचना जारी की थी।
- केंद्र की भूमिका: ज़िलों के परिवर्तन या नए ज़िलों के निर्माण में केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। राज्य इस संबंध में निर्णय लेने के लिये पूर्णतः स्वतंत्र हैं।
- गृह मंत्रालय: गृह मंत्रालय की भूमिका तब महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब कोई राज्य किसी ज़िले या रेलवे स्टेशन का नाम बदलना चाहता है।
- राज्य सरकार के अनुरोध को अन्य विभागों और एजेंसियों- जैसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, खुफिया विभाग, डाक विभाग, भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग, विज्ञान एवं रेल मंत्रालय को मंज़ूरी के लिये भेजा जाता है।
- इन विभागों और मंत्रालयों द्वारा आवश्यक जाँच के बाद अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है।
- गृह मंत्रालय: गृह मंत्रालय की भूमिका तब महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब कोई राज्य किसी ज़िले या रेलवे स्टेशन का नाम बदलना चाहता है।
- भारत में ज़िलों की संख्या
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 593 ज़िले थे।
- वर्ष 2001-2011 के बीच राज्यों द्वारा कुल 46 ज़िलों का निर्माण किया गया।
- यद्यपि वर्ष 2021 की जनगणना अभी बाकी है, लेकिन वर्तमान समय में देश में लगभग 718 ज़िले हैं।
- देश में ज़िलों की संख्या में वृद्धि का एक प्रमुख कारण वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन और तेलंगाना के निर्माण को माना जा सकता है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 593 ज़िले थे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
एकल-उपयोग प्लास्टिक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह विवरण दिया गया था कि एकल-उपयोग प्लास्टिक (single-use plastic) को कौन निर्मित करता है और इससे आय अर्जित करता है तथा पिछली गणना के अनुसार प्रतिवर्ष 130 मिलियन टन उत्पादन किया जाता है।
- इस रिपोर्ट का प्रकाशन ऑस्ट्रेलिया में स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन मिंडेरू (Minderoo) ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान के शैक्षणिक (Academics) विभागों के साथ किया था।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख उत्पादक:
- विश्व में उत्पादित एकल-उपयोग प्लास्टिक का 50% 20 बड़ी कंपनियों द्वारा बनाया जाता है।
- इसके उत्पादन में दो अमेरिकी कंपनियों के पश्चात् एक चीनी स्वामित्व वाली पेट्रोकेमिकल्स कंपनी और दूसरी बैंकॉक-स्थित कंपनी का स्थान है।
प्रमुख निवेशक:
- उत्पादन को बैंकों सहित वित्तीय सेवा कंपनियों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- इस उद्योग में सरकारें भी बड़ी हितधारक हैं। सबसे बड़े एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक निर्माताओं में से लगभग 40% आंशिक रूप से सरकारों (चीन और सऊदी अरब सहित) के स्वामित्व में किया जाता है।
वृद्धि :
- एकल-उपयोग वाला प्लास्टिक एक कुशल व्यवसाय के रूप में प्रस्थापित है तथा इसके जारी रहने का अनुमान है। अगले पाँच वर्षों में इसकी उत्पादन क्षमता में 30% वृद्धि होने का अनुमान है।
उपयोग:
- इस मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच सर्वाधिक असमानता है:
- प्रत्येक वर्ष औसतन एक अमेरिकी द्वारा 50 किलोग्राम सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का उपयोग करके फेंक दिया जाता है, जबकि औसतन एक भारतीय एक अमेरिकी के बारहवें हिस्से से भी कम का उपयोग करता है।
चिंताएँ:
- न्यून पुनर्चक्रण:
- अमेरिका में प्लास्टिक के केवल लगभग 8% हिस्से का पुनर्चक्रण किया जाता है। पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक की तुलना में नए उत्पादित प्लास्टिक से वस्तुओं को निर्मित करना अधिक किफायती है।
- सीमित प्रयास:
- राज्य सरकार और नगरपालिकाओं को प्लास्टिक किराना बैग, फोम कप और पीने के पाइप (straws) जैसी कुछ वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने में सफलता मिली है लेकिन अब तक इसके उत्पादन को कम करने के प्रयास सीमित रहे हैं।
- उपभोक्ताओं द्वारा प्लास्टिक के न्यूनतम उपयोग हेतु किये गए प्रयास विफल रहे हैं।
वैश्विक पहल:
- यूरोपीय संघ ने वर्ष 2025 तक उपभोक्ता ब्रांडों को प्लास्टिक की बोतलों में कम-से-कम 30% पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग करने का निर्देश जारी किया।
भारतीय पहल:
- वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक से मुक्त करने हेतु देश भर में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिये एक बहु-मंत्रालयी योजना तैयार की थी।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, उत्पादों से उत्पन्न कचरे को उनके उत्पादकों और ब्रांड मालिकों को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक (Single-Use Plastics)
परिचय:
- एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक (Disposable Plastic) ऐसा प्लास्टिक है जिसे फेंकने या पुनर्नवीनीकरण से पहले केवल एक बार ही उपयोग किया जाता है।
- एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद जैसे- प्लास्टिक की थैलियाँ, स्ट्रॉ, कॉफी बैग, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांशतः खाद्य पैकेजिंग के लिये प्रयुक्त होने वाला प्लास्टिक।
- प्लास्टिक बहुत ही सस्ता और सुविधाजनक होने कारण इसने पैकेजिंग उद्योग से अन्य सभी सामग्रियों को परिवर्तित कर दिया है, लेकिन प्लास्टिक धीरे-धीरे विघटित होता है जिसमें सैकड़ों साल लग जाते हैं।
- यह एक गंभीर समस्या है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष उत्पादित 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में से 43% सिंगल यूज़ प्लास्टिक है।
उपयोग:
- एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पाद संक्रमणकारी रोगों के प्रसार को भी रोकते हैं।
- सिरिंज, एप्लिकेटर, ड्रग टेस्ट, बैंडेज और वार्प जैसे उपकरणों को अक्सर डिस्पोज़ेबल बनाया जाता है।
- इसके अलावा खाद्य-अपशिष्टों के खिलाफ लड़ाई में भी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों को सूचीबद्ध किया गया है, जो भोजन और पानी को अधिक समय तक ताज़ा रखता है और संदूषण की क्षमता को कम करता है।
समस्याएँ:
- पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं होता है और आमतौर पर यह लैंडफिल में इस्तेमाल किया जाता है जहाँ यह भूमि एवं जल में प्रवेश कर धीरे-धीरे सागर में घुल जाता है।
- विघटन की प्रक्रिया में यह ज़हरीले रसायनों (प्लास्टिक को आकार देने और सख्त करने के लिये इस्तेमाल होने वाले एडिटिव्स) को निष्काषित करता है जो हमारे भोजन और पानी की आपूर्ति में अपना स्थान बना लेता है।
आगे की राह
- आर्थिक रूप से किफायती और पारिस्थितिक रूप से अनुकूलित विकल्पों की ज़रूरत है जो संसाधनों पर बोझ नहीं डालते हैं और समय के साथ उनकी कीमतें भी कम हो जाएंगी तथा मांग में वृद्धि होगी।
- कपास, खादी बैग और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे विकल्पों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- सतत् रूप से अनुकूलित विकल्पों को तलाशने के लिये अधिक अनुसंधान एवं विकास (R&D) के साथ-साथ वित्त की आवश्यकता है।
- नागरिकों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर कचरे को फैलने से रोकने के साथ -साथ कचरा पृथक्करण और अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करना होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020
चर्चा में क्यों?
अनौपचारिक कार्यबल की मदद करने में सामाजिक सुरक्षा संहिता (SS Code) 2020 की प्रभावशीलता पर कई लोगों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के साथ दो अन्य संहिताएँ पारित की गई जो व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code), 2020 तथा औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code), 2020 हैं।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 में सामाजिक सुरक्षा, सेवानिवृत्ति और कर्मचारी लाभ से संबंधित नौ नियमों को शामिल किया गया है।
प्रमुख बिंदु
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के प्रमुख प्रावधान:
- कवरेज बढ़ाया गया:
- संहिता ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, निश्चित अवधि के कर्मचारियों और गिग श्रमिकों, प्लेटफॉर्म श्रमिकों, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों आदि को शामिल करके कवरेज क्षेत्र को व्यापक बना दिया है।
- राष्ट्रीय डेटाबेस और पंजीकरण:
- असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से इन सभी श्रमिकों का पंजीकरण एक ऑनलाइन पोर्टल पर किया जाएगा और यह पंजीकरण एक सरल प्रक्रिया के माध्यम से स्व-प्रमाणन के आधार पर किया जाएगा।
- सभी रिकॉर्ड और रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक रूप से बनाए रखने होंगे।
- असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से इन सभी श्रमिकों का पंजीकरण एक ऑनलाइन पोर्टल पर किया जाएगा और यह पंजीकरण एक सरल प्रक्रिया के माध्यम से स्व-प्रमाणन के आधार पर किया जाएगा।
- सामाजिक सुरक्षा निधि:
- इसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लागू करने के लिये वित्तीय की व्यवस्था हेतु बनाया जाएगा।
- समान परिभाषाएँ:
- सामाजिक सुरक्षा लाभों का उद्देश्य मजदूरी निर्धारित करने में एकरूपता है।
- इसने मज़दूरी की एक विस्तृत परिभाषा प्रदान की है।
- सामाजिक सुरक्षा लाभों को कम करने वाले वेतन की अनुचित संरचना को हतोत्साहित करने हेतु उच्चतम सीमा के साथ विशिष्ट बहिष्करण (Specific Exclusions) हेतु प्रावधान किये गए हैं।
- सामाजिक सुरक्षा लाभों का उद्देश्य मजदूरी निर्धारित करने में एकरूपता है।
- परामर्श का दृष्टिकोण:
- इसके लिये अधिकारियों द्वारा एक सुविधाजनक दृष्टिकोण अपनाया गया है। निरीक्षकों की मौजूदा भूमिका के विपरीत संहिता निरीक्षक-सह-सुविधाकर्त्ता की एक बढ़ी हुई भूमिका प्रदान करती है जिससे नियोक्ता अनुपालन के लिये समर्थन और सलाह की तलाश प्राप्त कर सकते हैं।
- व्यवसाय केंद्र:
- मानव संसाधन की मांग को पूरा करने और रोज़गार सूचना की निगरानी के लिये व्यवसाय केंद्र (Career Centre) की स्थापना की जाएगी।
- कठोर दंड:
- कर्मचारियों के योगदान के विफल होने पर न केवल 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगता है, बल्कि एक से तीन वर्ष की कैद भी हो सकती है। बार-बार अपराध के मामले में कठोर दंड का प्रावधान भी है और बार-बार अपराध के मामले में कोई समझौता करने की अनुमति नहीं है।
चिंताएँ:
- ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया:
- अनौपचारिक कार्यकर्त्ताओं पर लाभार्थियों के रूप में पंजीकरण करने की ज़िम्मेदारी है, इसके अलावा उनके पास डिजिटल साक्षरता और कनेक्टिविटी नहीं होती है।
- साथ ही अनौपचारिक कार्यकर्त्ताओं में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लेकर जागरूकता का भी अभाव है।
- अंतर-राज्यीय व्यवस्था और सहयोग का अभाव:
- असंगठित श्रमिक भारत के कोने-कोने में फैले हुए हैं। इस संहिता के निहितार्थ इतने विविध होंगे कि राज्यों द्वारा इन्हें प्रशासित नहीं किया जा सकेगा।
- जटिल प्रक्रियाएँ और अतिव्यापी क्षेत्राधिकार:
- असंगठित कार्यबल के लिये एक सरल और प्रभावी तरीके से समग्र सामाजिक सुरक्षा कवर प्रदान करने का विचार केंद्र-राज्य की प्रक्रियात्मक जटिलताओं तथा इनके क्षेत्राधिकार या संस्थागत अतिव्यापन लुप्त हो जाता है।
- मातृत्व लाभ:
- असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ मातृत्व लाभ (Maternity Benefit) के दायरे से बाहर रहती हैं।
- कर्मचारी भविष्य निधि:
- अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये कर्मचारी भविष्य निधि तक पहुँच की व्यवस्था भी नई संहिता में अधूरी है।
- ग्रेच्युटी का भुगतान:
- हालाँकि नई संहिता में ग्रेच्युटी के भुगतान का विस्तार किया गया था, फिर भी यह अनौपचारिक श्रमिकों के एक विशाल बहुमत के लिये दुर्गम बना हुआ है।
आगे की राह
- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कानूनों का विलय करता है और अनौपचारिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रशासन के दायरे में शामिल करने का प्रयास करता है। हालाँकि संहिता की जाँच से पता चलता है कि सामाजिक सुरक्षा का सार्वभौमिकरण की आकांक्षा अभी भी अधूरी बनी हुई है।
- एक ऐसे समय में जब भारत श्रम के मुद्दों विशेष रूप से अनौपचारिकता पर केंद्रित ब्रिक्स बैठक की अध्यक्षता कर रहा है, स्वयं के बारे यह मानने में भी विफल है कि भारत सामाजिक सुरक्षा के बिना ही प्रौढ़ (Ageing) हो रहा है और युवा कार्यबल का जनसांख्यिकीय लाभांश जो प्रौढ़ावस्था का समर्थन कर सकता है, 15 वर्षों में समाप्त हो जाता है।
- सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान का उपयोग कार्यबल को कुछ हद तक औपचारिक बनाने के लिये किया जा सकता है।
- नियोक्ताओं को अपने कामगारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
- चूँकि यह राज्य की ज़िम्मेदारी है लेकिन प्राथमिक ज़िम्मेदारी अभी भी नियोक्ताओं के पास है क्योंकि वे श्रमिकों की उत्पादकता का लाभ उठा रहे हैं।