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भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022
प्रिलिम्स के लिये:मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, भारतमाला परियोजना, त्रिपक्षीय समझौता। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy-NLP) 2022 शुरू की है, जिसका उद्देश्य 'अंतिम छोर तक त्वरित वितरण' करना है, साथ ही परिवहन से संबंधित चुनौतियों को समाप्त करना है।
लॉजिस्टिक्स:
- लॉजिस्टिक्स में संसाधनों, लोगों, कच्चे माल, सूची, उपकरण आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर अर्थात् उत्पादन बिंदुओं से उपभोग, वितरण या अन्य उत्पादन बिंदुओं तक ले जाने के साथ नियोजन, समन्वय, भंडारण प्रक्रिया शामिल है।
- लॉजिस्टिक्स शब्द संसाधनों के अधिग्रहण, भंडारण और वितरण को उनके इच्छित स्थान पर नियंत्रित करने की संपूर्ण प्रक्रिया का वर्णन करता है।
- इसमें संभावित वितरकों और आपूर्तिकर्त्ताओं का पता लगाना तथा ऐसी पार्टियों की व्यवहार्यता एवं पहुँच का मूल्यांकन करना शामिल है।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) 2022
- परिचय:
- नीति प्रमुख क्षेत्रों जैसे प्रोसेस री-इंजीनियरिंग, डिजिटाइज़ेशन और मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट पर केंद्रित है।
- यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि उच्च लॉजिस्टिक्स लागत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में घरेलू सामानों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती है।
- एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति की आवश्यकता महसूस की गई है क्योंकि भारत में अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में लॉजिस्टिक्स लागत अधिक है।
- लक्ष्य:
- इस नीति की मदद से लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने का प्रयास किया जायेगा। इस नीति का उद्देश्य लागतों में कटौती करना है, जो वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 14-15 प्रतिशत है। जिसमें वर्ष 2030 तक लगभग 8 प्रतिशत तक की कमी लाना है.
- अमेरिका, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देशों में लॉजिस्टिक्स लागत GDP अनुपात से कम है।
- वर्तमान लागत सकल घरेलू उत्पाद का 16% है।
- दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI) में शीर्ष 10 में शामिल होना है। उसे दक्षिण कोरिया की विकास गति की बराबरी करनी होगी।
- भारत वर्ष 2018 में LPI में 44वें स्थान पर था।
- कुशल लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने के लिये डेटा-संचालित निर्णय समर्थन प्रणाली (Decision Support Systems-DSS) बनाना।
- नीति का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि लॉजिस्टिक मुद्दों को कम-से-कम किया जाए, निर्यात कई गुना बढ़े और छोटे उद्योगों एवं उनमें काम करने वाले लोगों को अधिक लाभ मिले।
- इस नीति की मदद से लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने का प्रयास किया जायेगा। इस नीति का उद्देश्य लागतों में कटौती करना है, जो वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 14-15 प्रतिशत है। जिसमें वर्ष 2030 तक लगभग 8 प्रतिशत तक की कमी लाना है.
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति की विशेषताएँ:
- डिजिटल एकीकरण प्रणाली: यह निर्बाध और तेज़ी से कार्य की गति को बढ़ाएग ताकि लॉजिस्टिक्स सेवाओं को कुशलता के साथ सुनिश्चित किया जा सके।
- यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म: इसका उद्देश्य सभी लॉजिस्टिक्स और परिवहन क्षेत्र की डिजिटल सेवाओं को एक ही पोर्टल पर लाया जाएगा, जिससे निर्माताओं एवं निर्यातकों को लंबी और बोझिल प्रक्रियाओं जैसी वर्तमान समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
- लॉजिस्टिक्स सेवाओं में आसानी: ई-लॉग्स, नया डिजिटल प्लेटफॉर्म, उद्योग को त्वरित समाधान के लिये सरकारी एजेंसियों के साथ परिचालन संबंधी मुद्दों को उठाने की अनुमति देगा।
- व्यापक लॉजिस्टिक्स कार्ययोजना: व्यापक लॉजिस्टिक्स कार्ययोजना जिसमें इंटीग्रेटेड डिजिटल लॉजिस्टिक्स सिस्टम, भौतिक परिसंपत्तियों का मानकीकरण, बेंचमार्किंग सेवा मानक, मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, लॉजिस्टिक्स पार्कों का विकास आदि शामिल है।
इस नीति का महत्त्व क्या है?
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति के शुभारंभ के साथ पीएम गति शक्ति को और बढ़ावा एवं पूरकता मिलेगी।
- यह नीति इस क्षेत्र को देश में एक एकीकृत, लागत-कुशल, लचीला तथा सतत् लॉजिस्टिक परितंत्र बनाने में मदद करेगी क्योंकि यह नियमों को सुव्यवस्थित करने व आपूर्ति-पक्ष की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ क्षेत्र के सभी बुनियादों को कवर करती है।
- यह नीति भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार, आर्थिक विकास और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने का एक प्रयास है।
लॉजिस्टिक से संबंधित पहलें:
- माल का बहुविध परिवहन अधिनियम, 1993
- पीएम गति शक्ति योजना
- मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क
- लीड्स (LEADS) रिपोर्ट
- डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
- सागरमाला प्रोजेक्ट्स
- भारतमाला परियोजना
आगे की राह
- रेल क्षेत्र में कई संरचनात्मक कमियाँ है, अगर लॉजिस्टिक लागत को वैश्विक बेंचमार्क पर आधा करना है, तो इन कमियों को तेज़ी से समाप्त करना होगा। एक मालगाड़ी की औसत गति दशकों से 25 किमी प्रति घंटे पर स्थिर रही है- इसे तत्काल दोगुना करके कम-से-कम 50 किमी प्रति घंटे करना होगा।
- रेलवे को टाइम-टेबल आधारित माल संचालन की आवश्यकता है। इसे उच्च-मूल्य के कम लोड वाले व्यवसाय पर नियंत्रण पाने के लिये माल ढुलाई के स्रोत पर एग्रीगेटर और गंतव्य पर डिसएग्रीगेटर बनना होगा।
- दशकों से देश ने पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी अंतर्देशीय जलमार्ग माल ढुलाई की बात की है, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ भी प्रगति नहीं हुई है।
- चीन के नदी बंदरगाहों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं जो खासकर पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर देता है।
- रोड लॉजिस्टिक्स पूरी तरह से खंडित क्षेत्र है, जहाँ ट्रक मालिकों के एक बड़े हिस्से के पास बहुत छोटा बेड़ा (फ्लीट) है।
- सरकार द्वारा समर्थित एग्रीगेशन एप्स के साथ छोटे ऑपरेटरों को एक मंच में लाने हेतु सहायक है। साथ ही इस क्षेत्र में बड़ी कंपनियों एवं अभिकर्त्ताओं को लागत कम करने की ज़रूरत है।
- प्रमुख कार्यात्मक क्षेत्रों में सुधार के अतिरिक्त हमे बंदरगाहों का आकार कई गुना और बढ़ाना होगा, यह अकारण ही नहीं है कि दुनिया के शीर्ष 20 बंदरगाहों में से 10 चीन में हैं।
- यह हवाई लॉजिस्टिक्स को नई ऊँचाई पर ले जाने और उच्च मूल्य एवं खराब होने वाली वस्तुओं के परिवहन में भारी सुधार करने का समय है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. गति-शक्ति योजना के कनेक्टिविटी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सूक्ष्म समन्वय की आवश्यकता है। विचार-विमर्श कीजिये। (2022) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
प्रिलिम्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा, गैस आधारित अर्थव्यवस्था, पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण। मेन्स के लिये:भारत का ऊर्जा क्षेत्र, नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण। |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये अधिक अन्वेषण और उत्पादन (Exploration & Production) के लिये निवेश आकर्षित करने हेतु विभिन्न पहल कर रही है।
पृष्ठभूमि:
- भारत का ऊर्जा क्षेत्र दुनिया में सबसे विविध क्षेत्रों में से एक है। भारत में कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, तेल, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा जैसे विद्युत उत्पादन के पारंपरिक स्रोतों से लेकर पवन, सौर, कृषि घरेलू अपशिष्ट जैसे व्यवहार्य गैर-पारंपरिक स्रोत उपलब्ध हैं।
- वर्ष 2020 तक भारत का स्थान पवन ऊर्जा उत्पादन में चौथा, सौर ऊर्जा में पाँचवाँ और नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में चौथा था।
- वर्ष 2019 में विद्युत के क्षेत्र में सार्वभौमिक घरेलू पहुँच हासिल की गई, जिसका अर्थ है कि दो दशकों से भी कम समय में 900 मिलियन से अधिक नागरिकों ने विद्युत कनेक्शन प्राप्त किया है।
- भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत वैश्विक औसत का केवल एक-तिहाई है, भले ही ऊर्जा की मांग दोगुनी हो गई है।
- इसलिये ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की सुरक्षित और टिकाऊ व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है।
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता:
- भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं है। यह ऊर्जा आयात पर 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करता है।
- सरकार आज़ादी के 100 वर्ष पूरे होने से पहले यानी वर्ष 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने की योजना बना रही है।
- जैसे-जैसे वैश्विक योजना में हरित ऊर्जा अधिक महत्त्वपूर्ण हो रही है, भारत सरकार ने हरित हाइड्रोजन पर कार्य करना शुरू कर दिया है।
- ऐसे देश जो अपनी तेल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर 85% तक निर्भर है और अपनी गैस की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसके 50% का आयात करते हैं, अतः उसे प्रमुख वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत जैसे- नवीकरणीय ऊर्जा से हाइड्रोजन और वर्तमान पेट्रोल एवं डीज़ल संचालित ऑटोमोबाइल वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग पर कार्य करना होगा।
- सौर ऊर्जा से मिशन हाइड्रोजन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने तक हमें ऊर्जा स्वतंत्रता के लिये इन पहलों को अगले स्तर तक ले जाने की ज़रूरत है।
- अमेरिका, ब्राज़ील, यूरोपीय संघ और चीन के बाद भारत इथेनॉल का विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनिया भर में इथेनॉल का उपयोग बड़े पैमाने पर उपभोक्ता वस्तुओं के लिये किया जाता है लेकिन ब्राज़ील और भारत जैसे देश इसे पेट्रोल के साथ उपयोग करते हैं।
- हरित ऊर्जा पहल के माध्यम से आत्मनिर्भरता प्राप्त करना हरित और टिकाऊ अर्थव्यवस्था की नींव है। हरित ऊर्जा पहल स्वच्छ ऊर्जा और सभी व्यक्तियों एवं व्यवसायों के लिये इसकी उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित करती है।
ऊर्जा क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियाँ:
- नवंबर 2022 के मूल कार्यक्रम से पहले जून 2022 में 10% इथेनॉल (10% इथेनॉल, 90% पेट्रोल) के साथ मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति का लक्ष्य हासिल किया गया था।
- इस सफलता से उत्साहित होकर सरकार ने 20% इथेनॉल से पेट्रोल बनाने का लक्ष्य पाँच वर्ष आगे बढ़ाकर वर्ष 2025 कर दिया है।
- मार्च 2021 तक प्रधानमंत्री सहज हर घर बिजली योजना, "सौभाग्य" के तहत 2.82 करोड़ घरों का विद्युतीकरण किया गया है।
- जून 2022 तक देश भर में 36.86 करोड़ से अधिक LED बल्ब, 72.18 लाख LED ट्यूबलाइट और 23.59 लाख ऊर्जा कुशल पंखे वितरित किये गए हैं, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 48,411 मिलियन किलोवाट प्रति घंटे के साथ ही लागत के मामले में 19,332 करोड़ रुपए की बचत हुई है।
- जून 2022 तक नेशनल स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) के तहत 44 लाख से अधिक स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं तथा 67 लाख मीटर और लगाए जाने हैं।
- भारत में सोलर टैरिफ वित्त वर्ष 2015 के 7.36 रुपए/kWh (US 10 सेंट/kWh) से जुलाई 2021 में कम होकर 2.45/kWh (US 3.2 सेंट/kWh) हो गया है।
- विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस - "गेटिंग इलेक्ट्रिसिटी" रैंकिंग में 2014 के 137 से 2019 में भारत की रैंक 22 हो गई।
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये विविध पहल:
- गैस आधारित अर्थव्यवस्था:
- पेट्रोल में इथेनॉल का सम्मिश्रण
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
- नवीकरणीय ऊर्जा पहल
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन
आगे की राह
- भारत को लगातार बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिये अपनी विद्युत व्यवस्था में सौर और पवन ऊर्जा तथा विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करना चाहिये।
- विकास प्रक्रिया में समावेशिता की आवश्यकता को पूरा करने के लिये निवेश, अवसंरचनात्मक विकास, निजी-सार्वजनिक भागीदारी, हरित वित्तपोषण, नीतिगत ढाँचे जैसे पहलुओं को राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- हरित ऊर्जा में आय, रोज़गार और उद्यमिता में योगदान देने की काफी अधिक क्षमता है तथा यह निस्संदेह सतत् विकास को प्रोत्साहित करती है।
- नौकरी और आय सृजन के अतिरिक्त यह नए उत्पादों एवं सेवाओं के लिये निवेश तथा बाज़ार के अवसर/ रास्ते खोलता है। इसलिये भारत को ऊर्जा क्षेत्र में हरित ऊर्जा और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर लेख लिखिये। (2013) प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय विविधताएँ हैं। विस्तार में बताइये। (2020) प्रश्न. क्या आपको लगता है कि भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा? अपने उत्तर का औचित्य साबित कीजिये। सब्सिडी को जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा में स्थानांतरित करने से उपरोक्त उद्देश्य को प्राप्त करने में कैसे मदद मिलेगी? व्याख्या कीजिये (2022) |
स्रोत: पी.आई.बी
भारतीय अर्थव्यवस्था
इथेरियम विलय
प्रिलिम्स के लिये:एथेरियम विलय, एथेरियम ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म, 'प्रूफ-ऑफ-स्टेक, विकेंद्रीकृत एप (dApps), नॉन फंजिबल टोकन (NFT), विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi), क्रिप्टोकरेंसी, ब्लॉकचैन, प्रूफ-ऑफ वर्क (PoW)। मेन्स के लिये:क्रिप्टोकरेंसी और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एथेरियम ब्लॉकचैन प्लेटफॉर्म पूरी तरह से ''प्रूफ-ऑफ वर्क' से 'प्रूफ-ऑफ-स्टेक' सर्वसम्मति तंत्र में परिवर्तित हो गया है और इस सुधार को विलय के रूप में जाना जाता है।
वास्तविक परिवर्तन
- पुरानी पद्धति:
- प्रूफ-ऑफ वर्क: एक विकेंद्रीकृत मंच के रूप में एथेरियम के पास बैंक जैसे संस्थान नहीं हैं जो अपने नेटवर्क पर होने वाले लेन-देन को मंज़ूरी देते हैं, अनुमोदन पहले प्रूफ-ऑफ वर्क (PoW) सर्वसम्मति तंत्र के तहत हो रहे थे जो अनिवार्य रूप से खनिकों (Miners) द्वारा किया जाता था।
- इसके तहत खनिक अत्याधुनिक कंप्यूटर हार्डवेयर के विशाल बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके जटिल गणितीय पहेली को हल करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा करेंगे और पहेली को हल करने वाले पहले व्यक्ति को सत्यापनकर्त्ता के रूप में चुना जाएगा।
- यह विधि लगभग पूरी तरह से क्रिप्टो फार्मों पर निर्भर थी, जो कंप्यूटर के बड़े पैमाने पर उपयोग कर समस्याओं को हल करेंगे।
- मुद्दे:
- उच्च ऊर्जा खपत: ये माइनिंग फार्म, ऊर्जा की खपत करते थे और वे कभी-कभी देशों की तुलना में अधिक ऊर्जा की खपत करते थे और इसलिये पर्यावरणीय स्थिरता के मामले में एक बड़ी चिंता थी।
- क्रिप्टो की कुल वार्षिक ऊर्जा खपत फिनलैंड के बराबर है, जबकि इसका कार्बन फुट प्रिंट स्विट्ज़रलैंड के बराबर है।
- कुछ समय के लिये यूरोपीय देशों ने क्रिप्टो माइनिंग पर प्रतिबंध लगाने पर भी विचार किया, जबकि चीन ने वास्तव में क्रिप्टो खनिकों पर एक राष्ट्रव्यापी कार्रवाई की जिससे उन्हें विदेशों से भागना पड़ा।
- प्रूफ-ऑफ वर्क: एक विकेंद्रीकृत मंच के रूप में एथेरियम के पास बैंक जैसे संस्थान नहीं हैं जो अपने नेटवर्क पर होने वाले लेन-देन को मंज़ूरी देते हैं, अनुमोदन पहले प्रूफ-ऑफ वर्क (PoW) सर्वसम्मति तंत्र के तहत हो रहे थे जो अनिवार्य रूप से खनिकों (Miners) द्वारा किया जाता था।
- नई विधि:
- हिस्सेदारी का प्रमाण: यह उन क्रिप्टो खनिकों और विशाल माइनिंग फार्म की आवश्यकता को अलग कर देगा, जिन्होंने पहले ब्लॉकचेन को 'प्रूफ-ऑफ-वर्क' (PoW) नामक एक तंत्र के तहत संचालित किया था।
- इसके बजाय यह अब 'प्रूफ-ऑफ-स्टेक' (PoS) तंत्र में स्थानांतरित हो गया है जो लेन-देन की मंज़ूरी देने के लिये यादृच्छिक रूप से 'सत्यापनकर्त्ता' प्रदान करता है।
- सत्यापनकर्त्ता वे लोग होते हैं जो पहले ब्लॉक से आखिरी तक लिंकेज की लगातार गणना करके ब्लॉकचैन की अखंडता को बनाए रखने के लिये कंप्यूटर को स्वेच्छा से रखते हैं।
- इसके बजाय यह अब 'प्रूफ-ऑफ-स्टेक' (PoS) तंत्र में स्थानांतरित हो गया है जो लेन-देन की मंज़ूरी देने के लिये यादृच्छिक रूप से 'सत्यापनकर्त्ता' प्रदान करता है।
- लाभ:
- यह इथेरियम नेटवर्क पर खनिकों की आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त कर देगा।
- यह इथेरियम की ऊर्जा खपत को लगभग 99.95% कम कर देगा।
- यह इथेरियम नेटवर्क पर लेन-देन को बेहद सुरक्षित बना देगा।
- हिस्सेदारी का प्रमाण: यह उन क्रिप्टो खनिकों और विशाल माइनिंग फार्म की आवश्यकता को अलग कर देगा, जिन्होंने पहले ब्लॉकचेन को 'प्रूफ-ऑफ-वर्क' (PoW) नामक एक तंत्र के तहत संचालित किया था।
इथेरियम:
- इथेरियम डेवलपर्स द्वारा विकेंद्रीकृत एप (DAP), स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट और यहाँ तक कि क्रिप्टो टोकन बनाने के लिये सबसे अधिक उपयोग किये जाने वाले प्लेटफार्मों में से एक है। प्लेटफॉर्म की मुद्रा, ईथर बाज़ार पूंजीकरण के मामले में बिटकॉइन के बाद दूसरे स्थान पर है।
- क्रिप्टोकरेंसी के कुछ सबसे लोकप्रिय एप्लीकेशन जैसे कि अपूरणीय टोकन/नॉन-फंजिबल टोकन (NFT) और विकेंद्रीकृत वित्त (DFI) इथेरियम नेटवर्क पर आधारित हैं।
क्रिप्टोकरेंसी:
- क्रिप्टोकरेंसी, जिसे कभी-कभी क्रिप्टो-मुद्रा या क्रिप्टो कहा जाता है, मुद्रा का एक रूप है जो डिजिटल या वस्तुतः मौजूद होती है और यह लेन-देन को सुरक्षित करने के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है।
- क्रिप्टोकरेंसी में मुद्रा जारी करने या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है। यह लेन-देन को रिकॉर्ड करने और नई इकाइयों को जारी करने के लिये विकेंद्रीकृत प्रणाली का उपयोग करती है।
- यह एक विकेंद्रीकृत पीयर-टू-पीयर नेटवर्क द्वारा संचालित होता है जिसे ब्लॉकचेन कहा जाता है।
ब्लॉकचेन तकनीक:
- ब्लॉकचेन तकनीक सुनिश्चित करती है कि क्रिप्टोकरेंसी में सभी लेन-देन एक सार्वजनिक वित्तीय लेन-देन डेटाबेस में दर्ज किये जाते हैं।
- बिटकॉइन, इथेरियम और रिपल क्रिप्टोकरेंसी के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
- ब्लॉकचेन का नाम डिजिटल डेटाबेस या लेजर से लिया गया है जहाँ जानकारी "ब्लॉक" के रूप में संग्रहीत की जाती है जो "चेन" बनाने के लिये एक साथ मिलती हैं।
- यह स्पष्ट रिकॉर्ड-कीपिंग, रियल-टाइम लेन-देन पारदर्शिता और ऑडिटेबिलिटी का एक विलक्षण संयोजन प्रदान करता है।
- ब्लॉकचेन की एक सटीक प्रति कई कंप्यूटरों या उपयोगकर्त्ता ओं में से प्रत्येक के लिये उपलब्ध है जो एक नेटवर्क में एक साथ जुड़े हुए हैं।
- नए ब्लॉक के माध्यम से जोड़ी या बदली गई किसी भी नई जानकारी का कुल उपयोगकर्त्ता ओं के आधे से अधिक द्वारा जँांच और अनुमोदन किया जाना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स के लिये:प्रश्न:“ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। मेन्स:प्रश्न. क्रिप्टोकरेंसी क्या है? यह वैश्विक समाज को कैसे प्रभावित करता है? क्या यह भारतीय समाज को भी प्रभावित कर रहा है? (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
विद्युत का बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण
प्रिलिम्स के लिये:विद्युत, विद्युत अधिनियम 2003, एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति, एक मूल्य, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC), विद्युत क्षेत्र डिस्कॉम का बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) मेन्स के लिये:विद्युत क्षेत्र में सुधार, संबद्ध चुनौतियाँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) तंत्र में लगभग 1,400 बिलियन यूनिट की संपूर्ण वार्षिक विद्युत खपत को प्रेषित करने के लिये केंद्रीकृत शेड्यूलिंग की परिकल्पना की गई है।
MBED का केंद्रीकृत मॉडल:
- MBED तंत्र अंतर्राज्यीय और राज्य के भीतर दोनों में विद्युत प्रेषण की केंद्रीकृत शेड्यूलिंग का प्रस्ताव करता है।
- यह विकेंद्रीकृत मॉडल में एक स्पष्ट परिवर्तन को चिह्नित करेगा जो विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा समर्थित है।
- MBED केंद्र के ‘एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति, एक मूल्य’ फॉर्मूले के अनुरूप विद्युत बाज़ारों को मज़बूत करने का एक तरीका है।
- MBED यह सुनिश्चित करेगा कि देश भर में सबसे सस्ते उत्पादन के संसाधनों को समग्र प्रणाली की मांग को पूरा करने के लिये उपयोग किया जाए। इस प्रकार यह व्यवस्था वितरण कंपनियों और विद्युत उत्पादकों दोनों के लिये ही एक सफल प्रयास होगी और अंततः इससे विद्युत उपभोक्ताओं को महत्त्वपूर्ण वार्षिक बचत भी होगी।
- MBED के पहले चरण का कार्यान्वयन पहले 1 अप्रैल, 2022 से शुरू करने की योजना थी।
- हालाँकि इसे बाद में वर्ष 2022 में स्थगित कर दिया गया था, जिसके लिये तारीख की घोषणा की जानी है।
विद्युत अधिनियम, 2003:
- विद्युत अधिनियम, 2003 विद्युत क्षेत्र को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
- अधिनियम केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर विद्युत नियामक आयोगों का प्रावधान करता है, अर्थात् केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) तथा राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC)।
- इन आयोगों के कार्यों में शामिल हैं:
- टैरिफ का विनियमन और निर्धारण
- प्रेषण के लिये लाइसेंस जारी करना
- वितरण और विद्युत का व्यापार
- अपने-अपने क्षेत्राधिकार के भीतर विवादों का समाधान।
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022:
- परिचय:
- विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 का उद्देश्य कई अभिकर्त्ताओं को विद्युत आपूर्तिकर्त्ताओं के वितरण नेटवर्क तक खुली पहुँच प्रदान करना और उपभोक्ताओं को किसी भी सेवा प्रदाता को चुनने की अनुमति देना है।
- निहितार्थ:
- विधेयक में विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
- प्रतिस्पर्द्धा को सक्षम बनाने, उपभोक्ताओं हेतु सेवाओं में सुधार करने और विद्युत क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये वितरण लाइसेंसधारियों की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से गैर-भेदभावपूर्ण "खुली पहुँच" के प्रावधानों के तहत सभी लाइसेंसधारियों द्वारा वितरण नेटवर्क के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
- वितरण लाइसेंसधारी को वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
- आयोग द्वारा अधिकतम सीमा और न्यूनतम प्रशुल्क के अनिवार्य निर्धारण के अलावा वर्ष में प्रशुल्क में श्रेणीबद्ध संशोधन का प्रावधान किया जाना।
- दंड को कारावास या जुर्माने से अर्थदंड में परिवर्तित करना।
- नियामकों द्वारा निर्वहन किये जाने वाले कार्यों को मज़बूती प्रदान करना।
- विधेयक में विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) के केंद्रीकृत मॉडल से जुड़ी चिंताएँ:
- MBED का अपने विद्युत क्षेत्र के प्रबंधन में राज्यों की सापेक्ष स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ेगा, जिसमें उनके स्वयं के उत्पादन स्टेशन भी शामिल हैं और विद्युत वितरण कंपनियों- (डिस्कॉम) (ज़्यादातर राज्य के स्वामित्व वाली) को पूरी तरह से केंद्रीकृत तंत्र पर निर्भर बना देंगी।
- MBED संवैधानिक प्रावधानों, मौजूदा विधायी ढाँचे और बाज़ार संरचना के साथ असंगत है तथा यह राज्यों की स्वायत्तता का उल्लंघन का हल करने की तुलना में अधिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
- DISCOMs की व्यवहार्यता से संबंधित चिंताओं से वास्तव में निपटने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में विद्युत संविधान की समवर्ती सूची में है, बिजली ग्रिड को राज्य लोड डिस्पैच केंद्रों (SLDC) द्वारा प्रबंधित राज्यवार स्वायत्त नियंत्रण क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसका फिर क्षेत्रीय लोड डिस्पैच केंद्रों (RLDC) और नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है।
- प्रत्येक नियंत्रण क्षेत्र अपने क्षेत्र की तत्कालीन आपूर्ति को उत्पादन संसाधनों के साथ संतुलित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- नया मॉडल स्वैच्छिक बाज़ार डिज़ाइन के तहत वर्तमान में उपलब्ध कई विकल्पों को सीमित कर देगा और दिन-प्रतिदिन अनुबंध निरर्थक होते जाएँगे।
- उदाहरण के लिये DISCOMs और SLDC तत्कालीन (रियल-टाइम) मार्केट में विद्युत खरीदने या बेचने में अक्षम होंगे।
- वर्तमान में विद्युत संविधान की समवर्ती सूची में है, बिजली ग्रिड को राज्य लोड डिस्पैच केंद्रों (SLDC) द्वारा प्रबंधित राज्यवार स्वायत्त नियंत्रण क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसका फिर क्षेत्रीय लोड डिस्पैच केंद्रों (RLDC) और नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है।
- यह संभावित रूप से उभरते बाज़ार के प्रचलनों से टकरा सकता है,अर्थात् समग्र उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि और ग्रिड में प्लग किये गए इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में बढ़त।
- इन सभी को वास्तव में कुशल ग्रिड प्रबंधन और संचालन के लिये बाज़ारों एवं स्वैच्छिक पूलों के अधिक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
- भारत के पास लंबी अवधि के बिजली खरीद समझौते (पीपीए), अंतर्सीमा पीपीए, लघु और मध्यम अवधि के द्विपक्षीय, दिन-ब-दिन बिजली विनिमय और तात्कालिक ऑनलाइन बाज़ार के रूप में विविध बिजली बाज़ार हैं।
- स्थापित बिजली का लगभग 87% दीर्घकालिक पीपीए के तहत जुड़ा हुआ है और शेष का लेन-देन बिजली बाज़ारों में किया जाता है।
- वर्तमान में प्रत्येक नियंत्रण क्षेत्र अंतर्राज्यीय संसाधनों के बास्केट से योग्यता-क्रम प्रेषण (सबसे सस्ती बिजली सबसे पहले प्रेषण) का पालन करता है तथा दिन-ब-दिन बिजली, एक्सचेंज पर खरीदता या बेचता है। लंबी अवधि के पीपीए के तहत इन अनुसूचियों को संशोधित किया जा सकता है।
- हालाँकि पावर एक्सचेंज पर दैनिक आधार पर उपलब्ध व्यापार योग्य बिजली की अखिल भारतीय दृश्यता की यह सुविधा MBED मॉडल के अनुसार उपलब्ध नहीं होगी।
- कुछ विद्युत् संयंत्र, जैसे मुंबई में ट्रॉम्बे TPS और NCR क्षेत्र में दादरी TPS को बंद करने के लिये मज़बूर किया जाएगा।
- ये पावर स्टेशन मुंबई या दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में आपूर्ति की सुरक्षा के लिये और ग्रिड विफलता की स्थिति में द्वीपीय संचालन में हैं।
- मुख्य रूप से पीपीए की कीमतों को अछूता रखने के लिये पीपीए के तहत बाज़ार समाशोधन मूल्य और अनुबंध मूल्य के बीच अंतर के मूल्य को वापस करने के लिये योजना के तहत प्रस्तावित द्विपक्षीय अनुबंध निपटान (BCS) तंत्र एक अन्य चुनौती है।
- यह संपूर्ण लेखाविधि और निपटान प्रक्रिया को जटिल बनाते हुए "बाज़ार संचालित कीमतों" के उद्देश्य को कमज़ोर कर देगा।
- इसके अतिरिक्त यह परीक्षण किये गए PPA की सहजता को ख़त्म कर देगा और एक अस्थिर थोक बाज़ार का निर्माण करेगा।
आगे की राह
- भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने के कारण विधेयक के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये राज्यों की सिफारिशों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- सुरक्षा बाधित आर्थिक प्रेषण (Security Constrained Economic Dispatch-SCED), NLDC द्वारा विकसित एल्गोरिदम संभावित समाधान हो सकता है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रव्यापी आधार पर समयबद्ध निर्णयों के संदर्भ में नियामकों की सहायता करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: b व्याख्या:
प्रश्न. सरकार की योजना 'उदय' का उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन-सा है? (2016) (a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना। उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
सामाजिक लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल
प्रिलिम्स के लिये:सामाजिक लोकतंत्र, नॉर्डिक देशों के नॉर्डिक मॉडल के साथ चुनौतियाँ। मेन्स के लिये:सामाजिक लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल, इसके फायदे और नुकसान। |
चर्चा में क्यों?
स्वीडन में नई दक्षिणपंथी सरकार बनने वाली है, जो सामाजिक लोकतंत्र के नॉर्डिक (स्कैंडिनेवियाई) मॉडल के लिये खतरा है।
- मॉडरेट पार्टी के नेतृत्व में स्वीडन के दक्षिणपंथी गठबंधन ने सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी के नेतृत्व वाले सेंटर लेफ्ट ब्लॉक गठबंधन को हराया, इसके बावजूद सोशल डेमोक्रेट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी रही।
- स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, डेनमार्क और आइसलैंड को सामूहिक रूप से नॉर्डिक देशों के रूप में जाना जाता है।
लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल
- नॉर्डिक मॉडल स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, डेनमार्क और आइसलैंड में पालन किये जाने वाले मानकों को संदर्भित करता है। ये राष्ट्र उच्च जीवन स्तर और निम्न-आय असमानता के लिये जाने जाते हैं।
- मॉडल मुक्त-बाज़ार पूंजीवाद और समाज कल्याण का एक अनूठा संयोजन है।
- आपूर्ति और मांग पर आधारित आर्थिक प्रणाली मुक्त बाज़ार के रूप में जानी जाती है।
- सामाजिक लाभों को करदाताओं द्वारा वित्तपोषित किया जाता है और सभी नागरिकों के लाभ के लिये सरकार द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- यह एक मिश्रित आर्थिक प्रणाली है जो पूंजीवाद के लाभों को संरक्षित करते हुए पुनर्वितरण कराधान और एक मज़बूत सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से अमीर एवं गरीब के बीच की खाई को कम करती है।
- लैंगिक समानता संस्कृति की एक विशिष्ट विशेषता है जिसके परिणामस्वरूप न केवल महिलाओं द्वारा कार्यस्थल में उच्च स्तर की भागीदारी बल्कि पुरुषों द्वारा उच्च स्तर की पैतृक भागीदारी भी सुनिश्चित होती है।
नॉर्डिक मॉडल के कार्य:
- साझा इतिहास और सामाजिक विकास के संयोजन को इसकी अधिकांश सफलता का श्रेय दिया जाता है।
- बड़े कॉरपोरेट-स्वामित्व वाले खेतों के गठन के आसपास विकसित क्षेत्रों के विपरीत, दुनिया के इस हिस्से का इतिहास काफी हद तक परिवार संचालित कृषि में से एक है।
- परिणामतः समान चुनौतियों का सामना कर रहे नागरिकों द्वारा निर्देशित छोटे उद्यमशील उद्यमों का देश है। समाज के एक सदस्य को लाभ पहुँचाने वाले समाधानों से सभी सदस्यों को लाभ होने की संभावना है।
- इस सामूहिक मानसिकता का परिणाम एक ऐसे नागरिक के रूप में होता है जो अपनी सरकार पर भरोसा करता है क्योंकि सरकार का नेतृत्व नागरिकों द्वारा किया जाता है जो ऐसे कार्यक्रम बनाने की कोशिश करते हैं जो सभी को लाभान्वित करें।
- नतीजा यह है कि सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित सेवाएँ, जैसे कि स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा, इतनी उच्च गुणवत्ता की हैं कि निजी उद्यमों के पास इन सेवाओं या उन्हें बेहतर बनाने के लिये पेशकश करने का कोई कारण नहीं है। पूंजीवादी उद्यमों के विकसित होने के साथ यह मानसिकता बरकरार रही।
फायदे और नुकसान:
- फायदे:
- नॉर्डिक मॉडल समानता और सामाजिक गतिशीलता पैदा करता है।
- दुनिया में कई जगह बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सहित अच्छी सार्वजनिक सेवाओं तक सभी की मुफ्त पहुँंच है और यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह जारी रहे, लोग अपने करों का प्रसन्नतापूर्वक भुगतान करते हैं।
- इन सामूहिक लाभों को उद्यमिता के साथ मिश्रित कर दिया जाता है, जिससे पूंजीवाद और समाजवाद का एक कुशल मिश्रण बनता है।
- नुकसान:
- उच्च करों, उच्च स्तर के सरकारी हस्तक्षेप और अपेक्षाकृत कम सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा उत्पादकता के कारण मॉडल की आलोचना की जाती है, जिससे आर्थिक विकास सीमित हो जाता है।
- नॉर्डिक मॉडल संपत्ति का पुनर्वितरण करता है, व्यक्तिगत खर्च और उपभोग के लिये उपलब्ध धन की मात्रा को सीमित करता है तथा सरकार द्वारा सब्सिडी वाले कार्यक्रमों पर निर्भरता को प्रोत्साहित करता है।
इस मॉडल की चुनौतियाँ:
- वृद्धों की बढती आबादी:
- वृद्ध आबादी के संदर्भ में आदर्श परिदृश्य युवा करदाताओं की बड़ी जनसंख्या और सेवा प्राप्त करने वाले वृद्ध निवासियों की छोटी आबादी है। लेकिन जब जनसंख्या संतुलन वृद्ध जनसंख्या की ओर स्थांतरित होता है तो लाभ और सुविधाओं में कटौती की संभावना बढ़ जाती है।
- अप्रवासन:
- आप्रवास के संदर्भ में इन देशों में उदार सार्वजनिक लाभों का आनंद लेने के लिये नए लोगों की एक उल्लेखनीय आमद आकर्षित होती है। ये नए आगमन अक्सर उन देशों से होते हैं जिनके पास अच्छे निर्णय लेने का एक लंबा, साझा इतिहास नहीं है।
- नए आगमन, प्रणाली के लिये एक गंभीर भार पेश कर सकते हैं और अंततः इसके अंत का परिणाम हो सकते हैं।
आगे की राह
- ऐसी आशंकाएँ हैं कि बढ़ती आबादी, वैश्वीकरण और बढ़ते आप्रवासन नॉर्डिक मॉडल के कुशल कल्याणकारी राज्य को धीरे-धीरे अलग कर देंगे।
- कराधान एक सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और हमेशा जोखिम भरा होता है कि अधिक व्यक्तिवादी संस्कृति उभरेगी।
- नॉर्डिक मॉडल में कई आलोचकों की अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन करता है। यह मानने के कारण हैं कि इसके पीछे के मूल मूल्य इन देशों में इतने अंतर्निहित हैं कि वे हमेशा किसी-न-किसी रूप में मौजूद रहेंगे।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
ECI ने नकद चंदे पर सीमा की मांग की
प्रिलिम्स के लिये:चुनाव सुधार के लिये ECI प्रस्ताव, भारत का चुनाव आयोग। मेन्स के लिये:चुनाव में नकद चंदे से संबंधित चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने उम्मीदवारों की ओर से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 में कई संशोधनों का सुझाव दिया है।
चिंताएँ:
- हाल ही में यहाँ देखा गया कि कुछ राजनीतिक दलों द्वारा सूचित किये गए चंदे शून्य थे, लेकिन उनके लेखा परीक्षा खातों के विवरण में बड़ी मात्रा में धन प्राप्त होने का पता चलता है, जो नकद में बड़े पैमाने पर लेन-देन को 20,000 रुपए की सीमा से संकुचित करने का आह्वान करता है।
- चिंता का एक अन्य क्षेत्र जिसे EC द्वारा पहचाना गया है, वह विदेशी मुद्रा नियमों का उल्लंघन है।
ECI की प्रमुख सिफारिशें:
- 2000 रुपए से ऊपर के चंदे की रिपोर्ट करना:
- 2,000 रुपए से अधिक के सभी चंदे की सूचना दी जानी चाहिये, जिससे फंडिंग में पारदर्शिता बढ़े।
- नियमों के अनुसार, राजनीतिक दलों को 20,000 रुपए से अधिक के सभी चंदे का खुलासा अपनी योगदान रिपोर्ट के माध्यम से करना होता है जो चुनाव आयोग को प्रस्तुत की जाती है।
- डिजिटल या चेक से लेन-देन:
- एक इकाई/व्यक्ति को 2,000 रुपए से अधिक के सभी खर्चों के लिये डिजिटल लेन-देन या खाता प्राप्तकर्त्ता चेक हस्तांतरण अनिवार्य करना चाहिये।
- नकद चंदा सीमित करना:
- किसी पार्टी द्वारा प्राप्त कुल धनराशि में से 20% या अधिकतम 20 करोड़ रुपए, जो भी कम हो, पर नकद चंदे को प्रतिबंधित किया जाए।
- अलग बैंक खाता:
- प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव उद्देश्यों के लिये एक अलग बैंक खाता खोलना चाहिये और सभी खर्चों एवं प्राप्तियों को इस खाते के माध्यम से रूट करना चाहिये, एवं इन विवरणों को अपने चुनावी खर्च के खाते में प्रस्तुत करना चाहिये।
- विदेशी चंदे को अलग करना:
- चुनाव आयोग ने "चुनावी सुधारों" की भी मांग की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत पार्टियों के फंड में कोई विदेशी चंदा न मिले।
- वर्तमान में चंदे की प्राप्ति के प्रारंभिक चरणों में विशेष रूप से विदेशी चंदे को अलग करने के लिये कोई तंत्र नहीं है।
- चुनाव आयोग ने "चुनावी सुधारों" की भी मांग की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत पार्टियों के फंड में कोई विदेशी चंदा न मिले।
भारत निर्वाचन आयोग:
- परिचय:
- भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
- इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है।
- चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी।
- संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
संविधान में चुनावों से संबंधित अनुच्छेद
324 |
चुनाव आयोग में चुनावों के लिये निहित दायित्व: अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण। |
325 |
धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची हेतु अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान। |
326 |
लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। |
327 |
विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति। |
328 |
किसी राज्य के विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति। |
329 |
चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप करने के लिये बार (BAR) |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) आकलन प्रणाली
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC), उच्च शिक्षा संस्थान (HEI), मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) विश्व विश्वविद्यालय रैंकिंग। मेन्स के लिये:महत्त्व, शिक्षा के मुद्दे और संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) की रेटिंग से संबंधित विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि संस्थान का स्कोर सभी मापदंडों में सुधार के आधार पर A से A+ में रूपांतरित कर दिया गया था।
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC):
- परिचय:
- यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जो मान्यता के हिस्से के रूप में ग्रेडिंग के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) का मूल्यांकन और प्रमाणन करता है।
- एक बहुस्तरीय प्रक्रिया के माध्यम से कोई उच्च शिक्षा संस्थान यह जान सकता है कि क्या वह पाठ्यक्रम, संकाय, बुनियादी ढांँचे, अनुसंधान और अन्य मापदंडों के संदर्भ में मूल्यांकनकर्त्ता द्वारा निर्धारित गुणवत्ता के मानकों को पूरा करता है।
- संस्थानों की रेटिंग A++ से लेकर C तक होती है। यदि किसी संस्थान को D ग्रेड दिया गया है, तो इसका मतलब है कि वह मान्यता प्राप्त नहीं है।
- मिशन:
- उच्च शिक्षा संस्थानों या उनकी इकाइयों या विशिष्ट शैक्षणिक कार्यक्रमों या परियोजनाओं के आवधिक मूल्यांकन और मान्यता की व्यवस्था करना।
- उच्च शिक्षा संस्थानों में पठन-पाठन और अनुसंधान की गुणवत्ता को बढ़ावा देने हेतु शैक्षणिक वातावरण को प्रोत्साहित करना।
- उच्च शिक्षा में स्व-मूल्यांकन, जवाबदेही, स्वायत्तता और नवाचारों को प्रोत्साहित करना।
- गुणवत्ता से संबंधित अनुसंधान अध्ययन, परामर्श और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
- गुणवत्ता मूल्यांकन, प्रोत्साहन और जीविका के लिये उच्च शिक्षा के अन्य हितधारकों के साथ सहयोग करना।
- प्रत्यायन के लिये प्रक्रिया:
- इनपुट आधारित: NAAC आवेदक संस्थानों की स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- आवेदक संस्था के लिये पहला कदम मात्रात्मक और गुणात्मक मेट्रिक्स से संबंधित जानकारी की एक स्व-अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करना है।
- फिर डेटा को NAAC विशेषज्ञ टीमों द्वारा मान्य किया जाता है, इसके बाद पीयर टीम संस्थानों का दौरा करती है।
- इनपुट आधारित: NAAC आवेदक संस्थानों की स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- भविष्योन्मुखी परिप्रेक्ष्य:
- परिणाम आधारित दृष्टिकोण: NAAC परिणाम आधारित दृष्टिकोण अपनाने की योजना बना रहा है, इसके अनुसार यह पता लगाने पर ज़ोर दिया जाएगा कि क्या छात्र प्रासंगिक कौशल और शैक्षणिक क्षमताओं से लैस हैं।
भारत में मान्यता प्राप्त संस्थानों की स्थिति:
- उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के पोर्टल पर 1,043 विश्वविद्यालय और 42,343 कॉलेज सूचीबद्ध हैं।
- लगभग 406 विश्वविद्यालय और 8,686 कॉलेज NAAC से मान्यता प्राप्त हैं।
- राज्यों में महाराष्ट्र में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त कॉलेजों की संख्या 1,869 है, जिसके बाद कर्नाटक 914 की संख्या के साथ दूसरे स्थान पर हैं।
- तमिलनाडु में सबसे अधिक (43) मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय हैं।
प्रमाणन के लिये कौन से शैक्षणिक संस्थान आवेदन कर सकते हैं?
- केवल वे उच्च शिक्षा संस्थान जो कम-से-कम छह वर्ष पुराने हैं, या जहाँ से छात्रों के कम -से-कम दो बैचों ने स्नातक किया है, आवेदन कर सकते हैं।
- यह मान्यता पाँच साल के लिये वैध है।
- इसके अतिरिक्त, इच्छुक संस्थानों को यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त होने की आवश्यकता है और नियमित छात्रों को उनके पूर्णकालिक शिक्षण तथा अनुसंधान कार्यक्रमों में नामांकित किया जाना चाहिये।
- भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
- भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद छात्रों के संदर्भ में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है।
- भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय स्तर के संस्थानों और कॉलेजों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है।
- प्रतिष्ठित क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2023 में केवल तीन भारतीय विश्वविद्यालय- IIT-बॉम्बे, IIT-दिल्ली और IISc (बंगलूरू) को शीर्ष 200 संस्थानों में शामिल किया गया है।
उच्च शिक्षा क्षेत्र में भारत की चुनौतियाँ:
- नामांकन: उच्च शिक्षा में भारत का सकल नामांकन अनुपात (GER) केवल 25.2% है जो कि विकसित और अन्य प्रमुख विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।
- निष्पक्षता: समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सकल नामांकन अनुपात (GER) में कोई समानता नहीं है। GER इस प्रकार हैं: पुरुषों में 26.3%, महिलाओं में 25.4%, एससी में 21.8% और एसटी में 15.9%।
- यहाँ क्षेत्रीय भिन्नताएँ भी हैं। कुछ राज्यों में उच्च GER है और कुछ राष्ट्रीय आँकड़ो से बहुत पीछे हैं।
- कॉलेज घनत्व (प्रति लाख पात्र जनसंख्या पर कॉलेजों की संख्या) बिहार में 7 से लेकर तेलंगाना में 59 तक है, जबकि अखिल भारतीय औसत 28 है।
- अधिकांश प्रमुख विश्वविद्यालय और कॉलेज महानगरीय एवं शहरों में केंद्रित हैं, जिससे उच्च शिक्षा तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानता है।
- गुणवत्ता: शिक्षा की निम्न गुणवत्ता के कारण भारत में रटकर सीखने की प्रथा है, साथ ही यह रोज़गार और कौशल विकास की समस्या से ग्रस्त है।
- बुनियादी ढाँचा: भारत में उच्च शिक्षा का निम्न स्तरीय बुनियादी ढाँचा एक और चुनौती है। निहित स्वार्थ समूह (शिक्षा माफिया), बजट की कमी, भ्रष्टाचार और पैरवी के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी है। यहाँ तक कि निजी क्षेत्र भी वैश्विक मानक के अनुरूप नहीं है।
- संकाय: संकाय की कमी और राज्य की शिक्षा प्रणाली में योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने और बनाए रखने में असमर्थता कई वर्षों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये चुनौतियाँ खड़ी कर रही है। संकाय की कमी के कारण प्रमुख संस्थानों में भी अनौपचारिक रूप से तदर्थ (Ad-hoc) शिक्षकों की नियुक्ति होती है।
- हालाँकि देश में छात्र-शिक्षक अनुपात (30:1) स्थिर रहा है, फिर भी इसे USA (12.5:1), चीन (19.5:1) और ब्राज़ील (19:1) के बराबर लाने के लिये इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार द्वारा हाल में की गई पहल:
- शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेशन कार्यक्रम (EQUIP): यह अगले पाँच वर्षों (2019-2024) में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार के लिये एक पंचवर्षीय योजना है।
- यूजीसी का लर्निंग आउटकम-बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF): यूजीसी द्वारा 2018 में जारी किये गए LOCF दिशा-निर्देशों का उद्देश्य यह निर्दिष्ट करना है कि अध्ययन के अपने कार्यक्रम के अंत में स्नातकों से क्या जानने, समझने और करने में सक्षम होने की उम्मीद की जाती है। यह छात्र को सक्रिय शिक्षार्थी और शिक्षक को एक अच्छा सूत्रधार बनाने के लिये है।
- विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिये वर्गीकृत स्वायत्तता: प्रत्यायन स्कोर के आधार पर वर्गीकरण के साथ त्रि-स्तरीय श्रेणीबद्ध स्वायत्तता नियामक प्रणाली शुरू की गई है। श्रेणी I और श्रेणी II विश्वविद्यालयों को परीक्षा आयोजित करने, मूल्यांकन प्रणाली निर्धारित करने और यहाँ तक कि परिणाम घोषित करने की स्वायत्तता होगी।
- अकादमिक नेटवर्क के लिये वैश्विक पहल (GIAN): यह कार्यक्रम भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिये दुनिया भर के प्रमुख संस्थानों के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों को आमंत्रित करता है।
- उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE): इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य देश में उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों की पहचान करना और अधिकृत करना है तथा उच्च शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर सभी उच्च शिक्षा संस्थानों से डेटा एकत्र करना है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न :प्रश्न: 'उन्नत भारत अभियान' कार्यक्रम का उद्देश्य क्या है? (2017) (a) स्वैच्छिक संगठनों और सरकार की शिक्षा प्रणाली तथा स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर 100% साक्षरता प्राप्त करना। उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |