भारतीय सेना के लिये नई रक्षा प्रणाली
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, रक्षा मंत्रालय ने सेना की आधुनिकीकरण योजनाओं के एक भाग के रूप में भारतीय सेना को एफ-इंसास, निपुण माइंस, लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (LCA) सहित कई नई रक्षा प्रणालियाँ सौंपी हैं।
एफ-इंसास (F-INSAS) प्रणाली:
- परिचय:
- F-INSAS का अर्थ फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर एज ए सिस्टम (एक प्रणाली के रूप में भविष्य के सैनिक) है।
- यह पैदल सेना के आधुनिकीकरण का एक कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य सैनिक की परिचालन क्षमता को बढ़ाना है।
- इस परियोजना के तहत, सैनिकों को आधुनिक प्रणालियों से लैस किया जा रहा है जो हल्के, हर मौसम में सभी इलाकों में, लागत प्रभावी और कम रख-रखाव वाली हैं।
- ये रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और आयुध कारखानों के पारिस्थितिकी तंत्र सहित भारतीय संस्थाओं द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किये गए हैं।
- एफ-इंसास प्रणाली के अंतर्गत शामिल सैन्य-हथियार एवं उपकरण:
- AK-203 असॉल्ट राइफल:
- यह रूस की गैस एवं मैगजीन से चलने वाली, सेलेक्ट फायर असॉल्ट राइफल है।
- इसकी रेंज 300 मीटर है।
- मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड:
- इसका उपयोग रक्षात्मक और आक्रामक मोड में किया जा सकता है।
- रक्षात्मक मोड में, हैंड ग्रेनेड तब फेकें जाते हैं, जब फेंकने वाले के पास कवर मौजूद होता है।
- आक्रामक मोड में, हैंड ग्रेनेड फ्रग्मेंट नहीं होते हैं और विरोधी को इसके विस्फोट से हानि पहुँचती है।
- इसका उपयोग रक्षात्मक और आक्रामक मोड में किया जा सकता है।
- बैलिस्टिक हेलमेट और बैलिस्टिक गॉगल्स:
- यह बुलेट-प्रूफ वेस्ट के साथ सैनिकों को छोटे प्रोजेक्टाइल और फ्राग्मेंट्स से सुरक्षा के लिये बैलिस्टिक हेलमेट तथा बैलिस्टिक गॉगल्स प्रदान करता है।
- हेलमेट और बुलेट प्रूफ जैकेट एके-47 राइफल से दागी गई 9 एमएम की गोलियों और गोला-बारूद से सैनिक की रक्षा करने में सक्षम हैं।
- अन्य उपकरण:
- यह स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने के लिये कमांड पोस्ट और साथी सैनिकों के साथ सूचनाओं के वास्तविक समय में आदान-प्रदान के लिये हैंड्स-फ्री, सुरक्षित उन्नत संचार सेट के साथ आता है।
- AK-203 असॉल्ट राइफल:
- अन्य देशों के संबंधित सिस्टम:
- अमेरिका के पास लैंड वॉरियर है, जबकि यूके के पास FIST (फ्यूचर इंटीग्रेटेड सोल्जर टेक्नोलॉजी) है।
- विश्व भर में 20 से अधिक सेनाएँ ऐसे कार्यक्रमों का अनुपालन कर रही हैं।
निपुण माइंस:
- निपुण माइंस स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित की गई एंटी-पर्सनल माइंस हैं, जिन्हें DRDO ने 'सॉफ्ट टारगेट ब्लास्ट मूनिशन' कहा है।
- एंटी-पर्सनल माइंस का इस्तेमाल इंसानों के खिलाफ किया जाता है, जबकि एंटी-टैंक माइंस का इस्तेमाल भारी वाहनों के लिये किया जाता है।
- रूस के PFM-1 और PFM-1S को आमतौर पर 'बटरफ्लाई माइन' या 'ग्रीन पैरट' के रूप में जाना जाता है। बटरफ्लाई माइन एक अत्यंत संवेदनशील कार्मिक-विरोधी बारूदी सुरंग है।
- ये माइंस घुसपैठियों और दुश्मन की पैदल सेना के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करते हैं।
- वे आकार में छोटे होते हैं और बड़ी संख्या में तैनात किये जा सकते हैं।
- वे सीमाओं पर सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनके शस्त्रागार में मौजूदा एंटी-पर्सनल माइंस की तुलना में अधिक शक्तिशाली और प्रभावी हैं।
लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (एलसीए):
- लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (LCA) पैंगोंग त्सो झील में वर्तमान में उपयोग की जाने वाली सीमित क्षमताओं वाली नावों के प्रतिस्थापन के रूप में काम करने के लिये है।
- इसने पूर्वी लद्दाख में पानी की बाधाओं को पार करने की क्षमता को बढ़ाया है।
- इसी तरह के जहाज़ पहले से ही भारतीय नौसेना में परिचालन में हैं।
अन्य रक्षा प्रणालियाँ:
- सौर फोटोवोल्टिक ऊर्जा परियोजना: देश के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाके और परिचालन क्षेत्रों में से एक सियाचिन ग्लेशियर है।
- विभिन्न उपकरणों को संचालित करने हेतु क्षेत्र में बिजली की पूरी आवश्यकता केवल कैप्टिव जनरेटर आपूर्ति के माध्यम से पूरी की जाती थी। समग्र ऊर्जा आवश्यकताओं में सुधार और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिये सौर फोटो-वोल्टेइक संयंत्र स्थापित किया गया है।
- रक्षा मंत्रालय ने सेना को टी-90 टैंकों के लिये थर्मल इमेजिंग साइट, हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर और लंबी दूरी पर सामरिक संचार के लिये फ्रीक्वेंसी-हॉपिंग रेडियो रिले भी प्रदान किया।
- इसके अलावा निगरानी मिशनों में हेलीकॉप्टरों की मदद के लिये रिकॉर्डिंग सुविधा के साथ डाउनलिंक उपकरण भी सौंपे गए।
- इस प्रणाली का उपयोग करते हुए टोही डेटा रिकॉर्ड किया जाता है और इसे तभी उपयोग किया जा सकता है जब हेलीकॉप्टर बेस पर वापस आ जाए।
- कुछ अन्य रक्षा प्रणालियों में इन्फैंट्री प्रोटेक्टेड मोबिलिटी व्हीकल क्विक रिएक्शन फाइटिंग व्हीकल और मिनी रिमोटली पायलटेड एरियल सिस्टम सर्विलांस, इन्फैंट्री बटालियन और मैकेनाइज़्ड यूनिट स्तर पर डिटेक्शन तथा टोही शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्स प्रश्न. एस-400 वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी रूप से दुनिया में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से कैसे बेहतर है? (मुख्य परीक्षा) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
तिलपिया जलीय कृषि परियोजना: मत्स्यपालन
प्रिलिम्स के लिये:भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र, तिलपिया जलीय कृषि परियोजना, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, जलीय कृषि। मेन्स के लिये:भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) से प्रेरित होकर प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (TDB) ने इज़रायली प्रौद्योगिकी के साथ तिलपिया जलीय कृषि परियोजना को समर्थन दिया है।
- प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (TDB) विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
- प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) योजना की घोषणा सितंबर 2020 में तकनीकी रूप से उन्नत मछली पकड़ने के जहाज़ों, पारंपरिक मछुआरों हेतु गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के जहाज़ों, नावों और जालों के अधिग्रहण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु की गई थी।
- इसमें लगभग 9% की औसत वार्षिक वृद्धि दर पर वर्ष 2024-25 तक मछली उत्पादन को 220 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ाने की परिकल्पना की गई है।
- महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों की अवधि में निर्यात आय को दोगुना करके 1,00,000 करोड़ रुपए और मत्स्य क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 55 लाख रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान इस क्षेत्र द्वारा सामना किये गए विभिन्न चुनौतियों के बावजूद भारत ने अप्रैल से फरवरी 2021-22 तक 7,165 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के समुद्री उत्पादों का सर्वकालिक उच्च निर्यात हासिल किया है।
एक्वाकल्चर (Aquaculture):
- परिचय:
- जलीय कृषि/एक्वाकल्चर शब्द प्रमुख तौर पर किसी भी वाणिज्यिक, मनोरंजक या सार्वजनिक उद्देश्य के लिये नियंत्रित जलीय वातावरण में जलीय जीवों की खेती को संदर्भित करता है।
- पौधों और जानवरों का प्रजनन, पालन और कटाई सभी प्रकार के जल वातावरण में होती है जिसमें तालाब, नदियाँ, झीलें, महासागर तथा भूमि पर मानव निर्मित "बंद" प्रणालियाँ शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- मानव उपभोग हेतु खाद्य उत्पादन;
- संकटग्रस्त और संकटापन्न प्रजातियों की आबादी का पुनर्स्थापना;
- आवास बहाली;
- मछलियों की आबादी बहाल करना;
- मछली का उत्पादन; तथा
- चिड़ियाघरों और एक्वैरियम के लिये मछली पालन।
तिलपिया
- तिलपिया, जिसे जलीय चिकन भी कहा जाता है, दुनिया में सबसे अधिक उत्पादक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारित मछली खाद्य पदार्थों में से एक बन गया है।
- तिलपिया का पालन दुनिया के कई हिस्सों में व्यावसायिक रूप से लोकप्रिय है और इसकी त्वरित वृद्धि एवं कम रखरखाव के कारण इसे जलीय चिकन घोषित किया गया था।
- तिलपिया विभिन्न प्रकार के जलीय कृषि वातावरणों के प्रति सहिष्णु है, इसकी खेती लवणीय जल में और तालाब या बंद की प्रणालियों में भी की जा सकती है।
भारत में मत्स्य पालन की स्थिति:
- परिचय:
- मत्स्य पालन समुद्री, तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में जलीय जीवों विकास है।
- समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन, जलीय कृषि के साथ, दुनिया भर में लाखों लोगों को फसल, प्रसंस्करण, विपणन तथा वितरण से भोजन, पोषण एवं आय का स्रोत प्रदान करते हैं।
- कई लोगों के लिये यह उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।
- वैश्विक मत्स्य संसाधनों की स्थिरता के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक अवैध, असूचित और अनियमित रूप से मछली पकड़ना है।
- महत्त्व:
- मत्स्य पालन प्राथमिक उत्पादक क्षेत्रों में सबसे तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है।
- भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 7.56% हिस्सा है और देश के सकल मूल्य वर्धित (GVA) में लगभग 1.24% और कृषि GVA में 7.28% से अधिक का योगदान देता है।
- भारत दुनिया में मछली का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है क्योंकि यह वैश्विक मछली उत्पादन में 7.7% का योगदान देता है।
- यह क्षेत्र देश के आर्थिक और समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे "सनराइज सेक्टर" भी कहा जाता है, यह समान और समावेशी विकास के माध्यम से अपार क्षमता वाला क्षेत्र है।
- इस क्षेत्र को 5 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करने और देश के 28 मिलियन मछुआरा समुदाय के लिये आजीविका को बनाए रखने के लिये एक शक्तिशाली कारक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में तीन बड़े परिवर्तन देखे गए हैं:
- अंतर्देशीय जलीय कृषि का विकास, विशेष रूप से मीठे पानी की जलीय कृषि।
- मत्स्य पालन का मशीनीकरण।
- खारे पानी के झींगा के जलीय कृषि की सफल शुरुआत।
- चुनौतियाँ:
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक समुद्री मत्स्य उत्पादन के लगभग 90% क्षमता का या तो पूरी तरह या क्षमता से अधिक दोहन हो चुका है जिसकी पुनःप्राप्ति जैविक रूप से संभव नहीं है।
- जल निकायों में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट जैसे हानिकारक पदार्थों का निर्वहन जो जलीय जीवन के लिये विनाशकारी परिणाम पैदा करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन।
मत्स्य पालन के लिये सरकार की पहल:
- मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष
- नीली क्रांति
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) का विस्तार
- समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण
- समुद्री शैवाल पार्क।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)
निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्स प्रश्न. नीली क्रांति' को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। ( 2018) |
स्रोत: पी.आई.बी.
हर घर जल
प्रिलिम्स के लिये:हर घर जल, ग्राम सभा, जल जीवन मिशन, ग्राम पंचायत, ग्राम जल और स्वच्छता समिति (VWSC), कार्यात्मक नल कनेक्शन (FHTC), संसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY)। मेन्स के लिये:जल जीवन मिशन का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, गोवा तथा दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव देश में क्रमशः पहले 'हर घर जल' प्रमाणित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बन गए।
- सभी गाँवों के लोगों ने ग्राम सभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से अपने गाँव को हर घर जल घोषित किया है, जिसमें यह प्रमाणित किया गया है कि गाँवों के सभी घरों में नल के माध्यम से सुरक्षित पेयजल उपलब्ध है।
- गोवा के सभी 378 गाँवों और दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव के 96 गाँवों में ग्राम जल और स्वच्छता समिति (वीडब्ल्यूएससी) या जल समिति का गठन किया गया है।
- यह 'हर घर जल' कार्यक्रम के तहत विकसित जल आपूर्ति बुनियादी ढाँचे के संचालन, रखरखाव और मरम्मत के लिये ज़िम्मेदार है।
जल जीवन मिशन:
- परिचय:
- जल जीवन मिशन जल शक्ति मंत्रालय के तहत केंद्र सरकार की एक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में हर घर के लिये नल से जल की पहुँच सुनिश्चित करना है।
- जल जीवन मिशन की परिकल्पना ग्रामीण भारत के सभी घरों में वर्ष 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिये की गई है।
- कार्यक्रम अनिवार्य तत्त्वों के रूप में स्रोत स्थिरता उपायों को भी लागू करेगा, जैसे कि भू-जल प्रबंधन, जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन के माध्यम से पुनर्भरण और पुन: उपयोग।
- जल जीवन मिशन जल के प्रति सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित होगा।
- मिशन में प्रमुख घटकों के रूप में सूचना, शिक्षा और संचार शामिल होंगे।
- मिशन का उद्देश्य जल के लिये एक जन आंदोलन बनाना है, जो इसे हर किसी की प्राथमिकता बनाता है।
- इसके अलावा, हर घर नल से जल कार्यक्रम की घोषणा वित्त मंत्री ने वर्ष 2019-20 के बजट में की थी।
- यह जल जीवन मिशन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- कार्यक्रम का उद्देश्य स्रोत स्थिरता उपायों को अनिवार्य तत्वों के रूप में लागू करना है, जैसे कि भूजल प्रबंधन, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के माध्यम से पुनर्भरण और पुन: उपयोग।
- मिशन:
- सहायता, सशक्तिकरण और सुविधा प्रदान करने के लिये:
- राज्य/संघ राज्य क्षेत्र प्रत्येक ग्रामीण परिवार और सार्वजनिक संस्थान के लिये दीर्घकालिक आधार पर पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु ग्रामीण जलापूर्ति रणनीति की योजना बना रहे हैं।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जलापूर्ति के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये ताकि वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार में कार्यात्मक नल कनेक्शन (FHTC) हो और नियमित आधार पर पर्याप्त मात्रा में निर्धारित गुणवत्ता में जल उपलब्ध हो।
- ग्राम पंचायतों (GPs)/ग्रामीण समुदायों अपने गाँव में जलापूर्ति प्रणाली की योजना, कार्यान्वयन, प्रबंधन, स्वामित्व, संचालन और रखरखाव करेंगे।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को उपयोगिता दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर सेवा वितरण और क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने वाले मज़बूत संस्थानों को विकसित करना होगा।
- हितधारकों के क्षमता निर्माण को और बढ़ाना एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार हेतु जल के महत्त्व पर समुदाय में जागरूकता विस्तार करना।
- सहायता, सशक्तिकरण और सुविधा प्रदान करने के लिये:
- उद्देश्य:
- प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यात्मक नल कनेक्शन (FHTCs) प्रदान करना।
- गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों, सूखाग्रस्त और रेगिस्तानी क्षेत्रों के गाँवों, सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) गाँवों आदि में FHTCs के प्रावधान को प्राथमिकता देना।
- स्कूलों, आँगनबाडी केंद्रों, ग्राम पंचायत भवनों, स्वास्थ्य केंद्रों, आरोग्य केंद्रों और सामुदायिक भवनों को कार्यात्मक नल कनेक्शन प्रदान करना,
- नल कनेक्शन की कार्यक्षमता की निगरानी करना।
- नकद, वस्तु और/या श्रम, और स्वैच्छिक श्रम (श्रमदान) में योगदान के माध्यम से स्थानीय समुदाय के बीच स्वैच्छिक स्वामित्व को बढ़ावा देना और सुनिश्चित करना,
- जल आपूर्ति प्रणाली, यानी जल स्रोत, जल आपूर्ति बुनियादी ढाँचे की स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायता करना।
नोट: बजट 2021-22 में, सतत् विकास लक्ष्य- 6 के अनुसार सभी वैधानिक कस्बों में कार्यात्मक नलों के माध्यम से सभी घरों में जल आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने के लिये आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) की घोषणा की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्स के लिये: प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्स: प्रश्न. जल तनाव क्या है? यह भारत में क्षेत्रीय रूप से कैसे और क्यों भिन्न है? (2019) |
स्रोत:पी.आई.बी.
संयुक्त राष्ट्र महासागरीय जैविक विविधता संधि पर हस्ताक्षर करेगा
प्रिलिम्स के लिये:विशेष आर्थिक क्षेत्र, UNCLOS मेन्स के लिये:उच्च समुद्र में समुद्री संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने उच्च समुद्रों में समुद्री विविधता के संरक्षण के लिये महासागर की जैविक विविधता पर पहली संधि का मसौदा तैयार करने के लिये अंतर-सरकारी सम्मेलन का आयोजन किया।
- यह सम्मेलन अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया था।
- इन क्षेत्रों में समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर वर्ष 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) के तहत अंतर्राष्ट्रीय कानून का मसौदा तैयार करने के लिये वर्ष 2018 में सम्मेलनों की एक शृंखला शुरू की गई थी।
नई संधि
- संधि समुद्र के उन क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग को संबोधित करेगी जो राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों की सीमा से परे हैं।
- यह समझौता उन कंपनियों के अधिकारों पर निर्णय करेगा जो समुद्र में जैविक संसाधनों की खोज का काम करती हैं।
- जैव प्रौद्योगिकी और आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रगति के साथ, कई कंपनियाँ विदेशी सूक्ष्म जीवों और अन्य जीवों में संभावनाएँ तलाश रही हैं, इनमें से कई अज्ञात हैं जो गहरे समुद्र में रहते हैं और दवाओं के टीकों और विभिन्न प्रकार के वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिये इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- चूंँकि समुद्री जीवन पहले से ही औद्योगिक स्तर पर मत्स्य उत्पादन, जलवायु परिवर्तन और अन्य निष्कर्षण उद्योगों के प्रभाव से जूझ रहा है, इसलिये यह संधि महासागरों की सुरक्षा का एक प्रयास है।
उच्च समुद्र:
- देश अपनी तटरेखाओं तक 200 समुद्री मील (370 किलोमीटर) के भीतर समुद्री सीमा में सुरक्षा या दोहन कार्य कर सकते हैं, लेकिन इन ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ के बाहर का सारा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र उच्च समुद्र माना जाता है।
- उच्च समुद्र पृथ्वी के महासागरों का दो-तिहाई हिस्सा बनाते हैं जो जीवन के लिये उपलब्ध आवास का 90 प्रतिशत प्रदान करते हैं और मत्स्य पालन में प्रति वर्ष 16 बिलियन अमेरीकी डॉलर तक का योगदान करते हैं।
- ये मूल्यवान खनिज, फार्मास्यूटिकल्स, तेल और गैस भंडार की खोज के लिये भी प्रमुख क्षेत्र हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून चार ग्लोबल कॉमन्स की पहचान करता है:
- उच्च समुद्र, वायुमंडल, अंटार्कटिका, बाहरी अंतरिक्ष।
- ग्लोबल कॉमन्स उन संसाधन क्षेत्र को संदर्भित करता है जो किसी एक राष्ट्र की राजनीतिक पहुँच से बाहर हैं।
वर्तमान में उच्च समुद्र का विनियमन:
- समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) समुद्र तल खनन और केबल बिछाने सहित अंतर्राष्ट्रीय जल में गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
- यह समुद्र और उसके संसाधनों के उपयोग के लिये नियम निर्धारित करता है, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि राज्यों को उच्च समुद्र जैविक विविधता का संरक्षण एवं स्थायी रूप से कैसे उपयोग करना चाहिये।
- महासागरों में जैव विविधता की रक्षा या संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिये कोई व्यापक संधि मौजूद नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS)
- 'लॉ ऑफ द सी ट्रीटी' को औपचारिक रूप से समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) के रूप में जाना जाता है, जिसे वर्ष 1982 में महासागर क्षेत्रों पर अधिकार सीमा निर्धारित करने के लिये अपनाया गया था।
- सम्मेलन आधार रेखा से 12 समुद्री मील की दूरी को प्रादेशिक समुद्र सीमा के रूप में और 200 समुद्री मील की दूरी को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र सीमा के रूप में परिभाषित करता है।
- यह विकसित देशों से अविकसित देशों को प्रौद्योगिकी और धन हस्तांतरण तथा समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये पार्टियों को नियमों और कानूनों को लागू करने का प्रावधान करता है।
- भारत ने वर्ष 1982 में UNCLOS पर हस्ताक्षर किया।
- UNCLOS ने तीन नए संस्थान:
- समुद्री कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण: यह एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जिसकी स्थापना UNCLOS द्वारा अभिसमय से उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने के लिये की गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण: यह महासागरों के समुद्री निर्जीव संसाधनों की खोज और दोहन को विनियमित करने के लिये स्थापित एक संयुक्त राष्ट्र निकाय है।
- महाद्वीपीय शेल्फ की सीमाओं पर आयोग: यह 200 समुद्री मील से परे महाद्वीपीय शेल्फ की बाहरी सीमाओं की स्थापना के संबंध में समुद्री कानून (अभिसमय) पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करता है।
स्रोत: द हिंदू
सीमा शुल्क (व्यापार समझौतों के तहत मूल नियमों का प्रशासन) नियम, 2020
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए), मूल के नियम, सीबीआईसी। मेन्स के लिये:CAROTAR, 2020 के प्रावधान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया है कि सीमा शुल्क अधिकारियों को सीमा शुल्क (व्यापार समझौतों के तहत मूल नियमों का प्रशासन) नियम (CAROTAR), 2020 को लागू करने में संवेदनशील होना चाहिये और प्रासंगिक व्यापार समझौतों या मूल नियमों के प्रशासन के प्रावधानों के साथ सामंजस्य बनाए रखना चाहिये।
- राजस्व विभाग और आयातक के बीच संघर्ष के मामले में मूल/ओरिजिन देश के संबंध में एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में निर्दिष्ट छूट लागू होगी।
CAROTAR नियम:
- परिचय:
- CAROTAR, 2020 ने मुक्त व्यापार समझौतों के तहत आयात पर प्राथमिकता दर की अनुमति के लिये 'मूल/ओरिजिन के नियमों' को लागू करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं।
- वे विभिन्न व्यापार समझौतों के तहत निर्धारित मौजूदा परिचालन प्रमाणन प्रक्रियाओं के पूरक हैं।
- इसे वित्त मंत्रालय द्वारा अगस्त, 2020 में अधिसूचित किया गया था।
- प्रावधान:
- एक आयातक को यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे निर्धारित मूल मानदंडों को पूरा करते हैं इसकी उचित जाँच करना माल आयात करने से पहल आवश्यक है।
- एक आयातक को बिल ऑफ एंट्री में मूल से संबंधित कुछ जानकारी दर्ज करनी होगी, जैसा कि मूल प्रमाण पत्र में उपलब्ध है।
- आयातकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आयातित माल मुक्त व्यापार संधियाँ (FTA) के तहत सीमा शुल्क की रियायती दर का लाभ उठाने के लिये निर्धारित 'मूल के नियम' प्रावधानों को पूरा करता है।
- आयातकों को यह साबित करना होगा कि आयातित उत्पादों का मूल देशों में कम से कम 35% मूल्यवर्धन हुआ है।
- इससे पहले, निर्यात के देश में एक अधिसूचित एजेंसी द्वारा जारी किया गया मूल देश का प्रमाण पत्र ही FTA का लाभ उठाने के लिये पर्याप्त था।
- इसका कई मामलों में फायदा उठाया गया था, यानी FTA भागीदार देश ज़रूरी मूल्यवर्धन के लिये आवश्यक तकनीकी क्षमता के बिना प्रश्नगत माल का उत्पादन करने का दावा करते रहे हैं।
- निहितार्थ:
- वे आयातक को मूल देश का सही ढंग से पता लगाने, रियायती शुल्क का उचित दावा करने और FTAs के तहत वैध आयात की सुचारू निकासी में सीमा शुल्क अधिकारियों की सहायता करने के लिये मज़बूर करेंगे।
- उन्हें आयातक से मूल देश का सही ढंग से निर्धारण करने, रियायती शुल्क का सही दावा करने और FTAs के तहत वैध आयातों की सुचारू निकासी में सीमा शुल्क अधिकारियों की सहायता करने की आवश्यकता होगी।
- घरेलू उद्योग को FTAs के दुरुपयोग से बचाया जाएगा।
- इन नियमों के तहत जिस देश ने भारत के साथ FTA किया है, वह किसी तीसरे देश के सामान को सिर्फ लेबल लगाकर भारतीय बाज़ार में डंप नहीं कर सकता है।
मुक्त व्यापार समझौता:
- परिचय:
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है। इसके तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है जिसके तहत दोनों देशों के मध्य उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ता हो जाता है।
- इसमें वस्तुओं का व्यापार (जैसे कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं में व्यापार (जैसे बैंकिंग, निर्माण, व्यापार आदि) शामिल हैं।
- इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धा नीति आदि जैसे अन्य क्षेत्र भी शामिल हैं।
- भारत ने यूएई, मॉरीशस, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और आसियान सदस्यों सहित कई देशों के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किये हैं।
- लाभ:
- टैरिफ और कुछ गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करके एफटीए भागीदारों को एक दूसरे देशों में बाज़ार तक आसान पहुँच प्राप्त होती है।
- निर्यातक बहुपक्षीय व्यापार उदारीकरण के बजाय एफटीए को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उन्हें गैर-एफटीए सदस्य देश के प्रतिस्पर्धियों पर तरजीही उपचार मिलता है।
प्रश्न. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' शब्द अक्सर किन देशों के समूह के संदर्भ में समाचारों में आता है? (2016) (a) जी20 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
लॉर्ड कर्ज़न
प्रिलिम्स के लिये:कर्ज़न गेट, बिजय चंद महताब, बर्दवान एस्टेट, बंगाल विभाजन। मेन्स के लिये:कर्ज़न, उनकी विदेश नीति और सुधार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने लॉर्ड कर्ज़न गेट के सामने बर्दवान के महाराजा बिजय चंद महताब और उनकी पत्नी राधारानी की मूर्ति लगाने का फैसला किया है।
- कर्ज़न के वर्ष 1903 में शहर का दौरा करने के उपलक्ष्य में महताब ने गेट का निर्माण कराया था।
- महाराजाधिराज बिजय चंद महताब वर्ष 1887 से 1941 में अपनी मृत्यु तक ब्रिटिश भारत में बर्दवान एस्टेट, बंगाल के शासक थे।
लॉर्ड कर्ज़न
- जॉर्ज नथानिएल कर्ज़न (11 जनवरी, 1859- 20 मार्च, 1925) का जन्म केडलस्टन हॉल (Kedleston Hall) में हुआ, जो इंग्लैंड के एक ब्रिटिश राजनेता और विदेश सचिव थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ब्रिटिश नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- लॉर्ड कर्ज़न ने लॉर्ड एल्गिन के कार्यकाल के उपरांत पदभार ग्रहण किया तथा कर्ज़न वर्ष 1899 से 1905 तक ब्रिटिश भारत के वायसराय रहे।
- वह 39 वर्ष की आयु में भारत के सबसे कम उम्र के वायसराय बने।
- कर्ज़न वायसराय पद के सर्वाधिक विवादास्पद और परिणामी धारकों में से एक थे।
- लॉर्ड कर्ज़न ने लॉर्ड एल्गिन के कार्यकाल के उपरांत पदभार ग्रहण किया तथा कर्ज़न वर्ष 1899 से 1905 तक ब्रिटिश भारत के वायसराय रहे।
- वायसराय के रूप में पदभार ग्रहण करने से पूर्व कर्ज़न ने भारत (चार बार), सीलोन, अफगानिस्तान, चीन, पर्शिया, तुर्किस्तान, जापान और कोरिया का दौरा किया था।
कर्ज़न की विदेश नीतियाँ:
- उत्तर-पश्चिम सीमांत नीति:
- कर्ज़न ने अपने पूर्ववर्तियों शासकों के विपरीत उत्तर-पश्चिम में ब्रिटिश कब्ज़े वाले क्षेत्रों के एकीकरण, शक्ति और सुरक्षा की नीति का अनुसरण करना शुरू कर दिया।
- उन्होंने चित्राल को ब्रिटिश नियंत्रण में रखा और पेशावर और चित्राल को जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया, जिससे चित्राल की सुरक्षा की व्यवस्था की गई।
- अफगान नीति:
- मध्य एशिया और फारस की खाड़ी क्षेत्र में रूसी विस्तार के डर से लॉर्ड कर्ज़न की अफगान नीति को राजनीतिक और आर्थिक हितों से जोड़ा गया था।
- शुरुआती दौर से ही अफगानों और अंग्रेज़ों के बीच संबंधों में दरार आ गई थी।
- पर्शिया के प्रति नीति:
- उस क्षेत्र में ब्रिटिश प्रभाव को सुरक्षित करने के लिये वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्ज़न व्यक्तिगत रूप से फारस की खाड़ी क्षेत्र में गए और वहाँ ब्रिटिश हितों की रक्षा हेतु कड़े कदम उठाए।
- तिब्बत के साथ संबंध:
- लॉर्ड कर्ज़न की तिब्बत नीति भी इस क्षेत्र में रूसी प्रभुत्व के डर से प्रभावित थी।
- लॉर्ड कर्ज़न के प्रयासों ने इन दोनों के बीच व्यापार संबंधों को पुनर्जीवित किया था जिसके तहत तिब्बत अंग्रेज़ों को भारी क्षतिपूर्ति देने के लिये सहमत हुआ।
विभिन्न क्षेत्रों में सुधार:
- कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट 1899:
- इस अधिनियम ने निर्वाचित विधायिकाओं की संख्या को कम कर दिया और भारतीयों को स्वशासन से वंचित करने के लिये मनोनीत अधिकारियों की संख्या में वृद्धि की।
- इसके विरोध में कॉरपोरेशन के 28 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया और बाद में यह अंग्रेज़ों और एंग्लो-इंडियन के बहुमत के साथ एक सरकारी विभाग बन गया।
- आर्थिक:
- वर्ष 1899 में ब्रिटिश मुद्रा को भारत में कानूनी निविदा घोषित किया गया और एक पाउंड को 15 रुपए के बराबर घोषित किया गया था।
- कर्ज़न द्वारा नमक-कर की दर को कम किया गया। जिसने नमक-कर की दर को ढाई रुपए प्रति मन (एक मन लगभग 37 किलो के बराबर) से घटाकर एक-तिहाई रुपए प्रति मन (Maund) कर दिया।
- 500 रुपए से अधिक की वार्षिक आय वाले लोगों ने टैक्स चुकाया। इसके अतिरिक्त आयकर दाताओं को भी छूट मिली।
- अकाल:
- कर्ज़न के भारत आगमन के दौरान भारत में भीषण अकाल की स्थिति थी जिसने दक्षिण, मध्य और पश्चिमी भारत के व्यापक क्षेत्रों को प्रभावित किया। कर्ज़न ने प्रभावित लोगों को यथासंभव राहत सुविधाएँ प्रदान कीं।
- लोगों को भुगतान के आधार पर काम दिया जाता था और किसानों को राजस्व के भुगतान से छूट दी जाती थी।
- 1900 तक जब अकाल समाप्त हो गया, कर्ज़न ने अकाल के कारणों की जाँच के लिये एक आयोग नियुक्त किया और आयोग ने निवारक उपायों का सुझाव दिया, जिन्हें बाद में संज्ञान में लाया गया।
- कृषि:
- वर्ष 1904 में सहकारी क्रेडिट सोसायटी अधिनियम पारित किया गया था जिसका उद्देश्य जमा और ऋण के माध्यम से लोगों को सोसायटी निर्माण के लिये प्रेरित करना था, जिसमें मुख्य रूप से कृषक वर्ग को साहूकारों (जो साहूकार आमतौर पर अत्यधिक ब्याज दर वसूलते थे) के चंगुल से बचाने के लिये अपनाया गया था।
- वर्ष 1900 में पंजाब भूमि अलगाव अधिनियम पारित किया गया था, जिसमें किसानों द्वारा उनके ऋणों के भुगतान नहीं किये जाने पर साहूकारों को हस्तांतरित की जाने वाली भूमि पर रोक लगा दी थी।
- रेलवे:
- कर्ज़न ने भारत में रेलवे की सुविधाओं में सुधार करने और रेलवे को सरकार के लिये लाभदायक बनाने का भी फैसला किया।
- रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया, रेलवे विभाग को समाप्त कर दिया गया और रेलवे के प्रबंधन को लोक निर्माण विभाग से हटा कर तीन सदस्यों वाले रेलवे बोर्ड को सौंप दिया गया।
- शिक्षा:
- वर्ष 1901 में, कर्ज़न ने शिमला में एक शिक्षा सम्मेलन बुलाया जिसके बाद वर्ष 1902 में विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति की गई।
- आयोग की अनुशंसा पर वर्ष 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और आयोग के एक सदस्य, गुरुदास बनर्जी ने रिपोर्ट में अपनी असहमति व्यक्त करने के लिये नोट दिया था और भारतीय जनता ने इस अधिनियम का तिरस्कार किया लेकिन सब कुछ ज़्यादा प्रभावी नहीं रहा।
बंगाल विभाजन में कर्ज़न की भूमिका:
- वर्ष 1905 में अविभाजित बंगाल प्रेसीडेंसी का विभाजन कर्ज़न के द्वारा लिये गए फैसलों में सबसे आलोचनात्मक था, जिसने न केवल बंगाल में बल्कि पूरे भारत में व्यापक विरोध को जन्म दिया और स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी।
- लगभग 8 करोड़ लोगों के साथ बंगाल भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रांत था।
- इसमें वर्तमान में पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम के कुछ हिस्सों तथा वर्तमान बांग्लादेश शामिल थे।
- कर्ज़न ने जुलाई 1905 में बंगाल प्रेसीडेंसी के विभाजन की घोषणा की।
- 3.1 करोड़ की आबादी के साथ 3:2 के अनुपात में हिंदू-मुस्लिम सहित पूर्वी बंगाल और असम के एक नए प्रांत की घोषणा की गई।
- पश्चिमी बंगाल प्रांत में सर्वाधिक हिंदू थे।
विभाजन के परिणाम:
- विभाजन ने पूरे भारत में भारी आक्रोश और शत्रुता को जन्म दिया तथा कॉन्ग्रेस के सभी वर्गों (नरमपंथियों और कट्टरपंथियों) ने इसका विरोध किया।
- इस घटना ने एक संघर्ष को जन्म दिया जिसे स्वदेशी आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा जिसका सर्वाधिक प्रभाव बंगाल में था, लेकिन अन्य जगहों पर भी इसका प्रभाव था, उदाहरण के लिये डेल्टाई आंध्र में इसे वंदेमातरम आंदोलन के रूप में जाना जाता था।
- यह विरोध ब्रिटिश वस्तुओं (विशेष रूप से वस्त्रों) का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
- अपनी देशभक्ति को रेखांकित करने और उपनिवेशवादियों को चुनौती देने के लिये वंदे मातरम गाते हुए प्रदर्शनकारियों के साथ विरोध प्रदर्शन किया।
- रवींद्रनाथ टैगोर ने कई स्थानों पर प्रदर्शन का नेतृत्त्व किया और उन्होंने कई देशभक्ति के गीतों की रचना की जिसमें सबसे प्रसिद्ध 'अमर सोनार बांग्ला' (माई गोल्डन बंगाल) था, जो अब बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।
विरोध प्रदर्शनों का प्रभाव:
- वर्ष 1905 में कर्ज़न भारत छोड़कर ब्रिटेन चले गए, लेकिन यह आंदोलन कई वर्षों तक चलता रहा।
- किंग जॉर्ज पंचम ने अपने राज्याभिषेक दरबार में वर्ष 1911 में बंगाल के विभाजन को निरस्त कर दिया।
- वर्ष 1911 में लॉर्ड हार्डिंग भारत के वायसराय थे।
- आंदोलन के दौरान स्वदेशी आंदोलन का महत्त्व काफी बढ़ गया था, बाद में यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी स्तर पर पहुँच गया।
- बंगाल विभाजन और कर्ज़न के क्रूर व्यवहार ने राष्ट्रीय आंदोलन और कांग्रेस को एक ज्वलंत आंदोलन की ओर मोड़ दिया।
प्रिलिम्सस्वदेशी आंदोलन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) Q. 'स्वदेशी' और 'बहिष्कार' को पहली बार संघर्ष के तरीकों के रूप में किसके दौरान अपनाया गया था? (2016) (a) बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन उत्तर: (a) Q. वर्ष 1905 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा किया गया बंगाल का विभाजन कब तक बना रहा? (2014) (a) प्रथम विश्व युद्ध तक, जिमें अंग्रेजों को भारतीय सैनिकों की आवश्यकता पड़ी और विभाजन समाप्त किया गया उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्स:Q. लॉर्ड कर्ज़न की नीतियों और राष्ट्रीय आंदोलन पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (2020) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
उड़ान योजना के 5 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:उड़ान योजना, नागरिक उड्डयन मेन्स के लिये:उड़ान योजना, सरकार की नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नागर विमानन मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रम क्षेत्रीय संपर्क योजना उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) ने अपनी सफलता के 5 वर्ष पूरे कर लिये हैं। 27 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री ने इसकी पहली उड़ान शुरू की थी।
उड़ान योजना:
- परिचय:
- उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) योजना को वर्ष 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) के रूप में शुरू किया गया था।
- इसे राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (एनसीएपी)-2016 की समीक्षा के आधार पर तैयार किया गया था और इसे 10 वर्षों की अवधि के लिये लागू रखने की योजना थी।
- इस योजना के तहत आरसीएफ बनाया गया था, जो कुछ घरेलू उड़ानों पर लेवी के माध्यम से योजना की वीजीएफ आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- वीजीएफ का अर्थ है एकमुश्त या आस्थगित अनुदान, जो कि आर्थिक रूप से उचित लेकिन वित्तीय व्यवहार्यता से कम होने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रदान किया जाता है।
- इस योजना के तहत आरसीएफ बनाया गया था, जो कुछ घरेलू उड़ानों पर लेवी के माध्यम से योजना की वीजीएफ आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- उद्देश्य:
- क्षेत्रीय विमानन बाज़ार का विकास करना।
- छोटे शहरों में भी आम आदमी को क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक हवाई यात्रा की सुविधा प्रदान करना।
- विशेषताएँ:
- इस योजना में मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के असेवित तथा कम सेवा वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
- कम सेवा वाले हवाई अड्डे वे होते हैं जिनमें एक दिन में एक से अधिक उड़ानें नहीं होती हैं, जबकि अनारक्षित हवाई अड्डे वे होते हैं जहाँ कोई परिचालन नहीं होता है।
- केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों की ओर से चयनित एयरलाइंस को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है ताकि असेवित तथा कम सेवा वाले हवाई अड्डों से संचालन को प्रोत्साहित किया जा सके एवं हवाई किराए को किफायती रखा जा सके।
- इस योजना में मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के असेवित तथा कम सेवा वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
- अब तक की उपलब्धियाँ:
- वर्ष 2014 में 74 परिचालन हवाईअड्डे थे जो अब तक बढ़कर 141 हो गए हैं।
- उड़ान योजना के तहत 58 हवाईअड्डे, 8 हेलीपोर्ट और 2 वाटर एयरोड्रोम सहित 68 अंडरसर्व्ड/असेवित गंतव्यों को जोड़ा गया है।
- उड़ान ने 425 नए मार्गों की शुरुआत के साथ देश भर में 29 से अधिक राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को हवाई संपर्क प्रदान किया है।
- 4 अगस्त, 2022 तक एक करोड़ से अधिक यात्रियों ने इस योजना का लाभ उठाया है।
- लक्ष्य:
- उड़ान के तहत 220 गंतव्यों (हवाई अड्डे/हेलीपोर्ट/वाटर एयरोड्रोम) को वर्ष 2026 तक 1000 मार्गों के साथ पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि देश में असंबद्ध गंतव्यों के लिये हवाई संपर्क प्रदान किया जा सके।
- उड़ान के तहत, 156 हवाई अड्डों को जोड़ने के लिये 954 मार्ग पहले ही आवंटित किये जा चुके हैं।
- उड़ान के तहत 220 गंतव्यों (हवाई अड्डे/हेलीपोर्ट/वाटर एयरोड्रोम) को वर्ष 2026 तक 1000 मार्गों के साथ पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि देश में असंबद्ध गंतव्यों के लिये हवाई संपर्क प्रदान किया जा सके।
- पुरस्कार और पहचान:
- RCS-उड़ान को वर्ष 2020 के लिये नवाचार श्रेणी के तहत लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिये प्रधान मंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 26 जनवरी, 2022 को गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने वाले 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में उत्तर प्रदेश की झाँकी को सर्वश्रेष्ठ झाँकी के रूप में चुना गया है।
उड़ान योजना का प्रदर्शन
- उड़ान 1.0
- इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए।
- उड़ान 2.0
- वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की, जहाँ कोई सेवा नहीं प्रदान की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी।
- उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे।
- उड़ान 3.0
- पर्यटन मंत्रालय के समन्वय से उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश।
- जलीय हवाई-अड्डे को जोड़ने के लिये जल विमान का समावेश।
- उड़ान के दायरे में पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई मार्गों को लाना।
- उड़ान 4.0
- वर्ष 2020 में देश के दूरस्थ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) के चौथे संस्करण के तहत 78 नए मार्गों के लिये मंज़ूरी दी गई थी
- लक्षद्वीप के मिनिकॉय, कवरत्ती और अगत्ती द्वीपों को उड़ान 4.0 के तहत नए मार्गों से जोड़ने की योजना बनाई गई है।
- उड़ान 4.1
- उड़ान 4.1 मुख्यतः छोटे हवाई अड्डों, विशेष तौर पर हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन मार्गों को जोड़ने पर केंद्रित है।
- सागरमाला विमान सेवा के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
- सागरमाला सी-प्लेन सेवा संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे अक्तूबर 2020 में शुरू किया गया था।
- उड़ान 5.0
- 21 अक्तूबर, उड़ान दिवस से पहले नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने उड़ान योजना के तहत उत्तर-पूर्वी भारत की हवाई कनेक्टिविटी का विस्तार करते हुए 6 मार्गों को हरी झंडी दिखाई।
- लाइफलाइन उड़ान:
- इसे महामारी के दौरान मेडिकल कार्गो के परिवहन के लिये लॉन्च किया गया था।
- यह मार्च 2020 में COVID-19 अवधि के दौरान शुरू हुआ और इसने देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग 1000 टन भारी माल और आवश्यक चिकित्सा सेवाओं के परिवहन के लिये 588 उड़ानों को संचालित करने में मदद की।
- कृषि उड़ान:
- इसे विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) और आदिवासी ज़िलों में कृषि उत्पादों के मूल्य प्राप्ति के लिये लॉन्च किया गया था
- अंतर्राष्ट्रीय उड़ान:
- अंतर्राष्ट्रीय उड़ान के तहत भारत के छोटे शहरों को पड़ोस के कुछ प्रमुख विदेशी गंतव्यों से सीधे जोड़ने की योजना है।
आगे की राह:
- एयरलाइंस ने इस योजना का रणनीतिक रूप से भीड़भाड़ वाले टियर-1 हवाई अड्डों पर अतिरिक्त स्लॉट हासिल करने, मार्गों पर एकाधिकार की स्थिति और कम परिचालन लागत प्राप्त करने की दिशा में लाभ उठाया है।
- इस प्रकार, हितधारकों को उड़ान योजना को टिकाऊ बनाने और इसकी दक्षता में सुधार करने की दिशा में काम करना चाहिये ।
- एयरलाइंस को इसके मार्केटिंग पहल करनी चाहिये ताकि अधिक से अधिक लोग उड़ान योजना का लाभ उठा सकें।
- देश भर में योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये मज़बूत बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):मेन्स Q. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच करें। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (2017) Q.अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें और खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाएँ। (2014) |