डेली न्यूज़ (20 Aug, 2020)



विद्युत चुंबकीय व्यतिकरण एवं अदृश्य शील्ड

प्रिलिम्स के लिये:

विद्युत चुंबकीय व्यतिकरण, विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम, प्रकाश, पॉलीइथिलीन टेरेफ्थलेट

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के निर्माण एवं सैन्य क्षेत्र में इस खोज का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, ‘सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज़’ (Centre for Nano and Soft Matter Sciences- CeNS), बंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा विद्युत चुंबकीय व्यतिकरण (Electromagnetic Interference-EMI) हेतु अदृश्य कवच/शील्ड (Invisible Shield) बनाने के लिये एक धातु की जालीदार संरचना (Metal Mesh Structure) का निर्माण किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज़’, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • धातु की जालीदार संरचना(Metal Mesh Structure):

    • वैज्ञानिकों द्वारा कंटीन्यूअस फिल्म (Continuous Film) के स्थान पर पॉलीइथिलीन टेरेफ्थलेट (Polyethylene Terephthalate- PET) की शीट पर एक तांबे धातु की जाली को विकसित किया गया है, जो लगभग 85% दृश्य संचरण/संप्रेषण (Visible Transmittance) प्रदर्शित करती है।
      • यह संप्रेषण इस बात को वर्णित करता है कि एक नमूने से प्रकाश की कितनी मात्रा गुजर सकती है, दूसरे शब्दों में, प्रकाश की यह मात्रा अवशोषित,फैलती या प्रतिबिंबित नहीं होती है। इसे प्रतिशत में मापा जाता है।
    • सब्सट्रेट (Substrate) पर धातु की झिल्ली कंटीन्यूअस फिल्म की तुलना में अधिक पारदर्शी होती है क्योंकि कंटीन्यूअस फिल्म के 100% विपरीत यह सब्सट्रेट केवल 7% क्षेत्र को कवर करता है।
    • धातु की जाली, समान मोटाई की एक निरंतर धातु शील्ड की तुलना में बेहतर विद्युत चुंबकीय परिरक्षण (Electromagnetic Shielding) प्रदान करती है जिसके लिये पारदर्शिता के साथ समझौता किया जा सकता है।

विद्युत चुंबकीय व्यतिकरण:

  • EMI एक विद्युत चुंबकीय उत्सर्जन है जो अन्य विद्युत उपकरण में गड़बड़ी या रूकावट उत्पन्न करता है।
  • जिस भी उपकरण में इलेक्ट्रॉनिक सर्किट होता है, वह EMI के लिये अतिसंवेदनशील हो सकता है।
  • यह डेटा को बाधित करके या उसे कम करके विद्युत उपकरणों की कार्यप्रणाली को बाधित करता है इससे कभी-कभी पूरा डेटा भी समाप्त हो जाता है।
  • EMI रेडियो और माइक्रोवेव आवृत्तियों सहित विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम की एक विस्तृत अवधि के गुणों को प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • वर्ष 1933 में, EMI से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिये इंटरनेशनल स्पेशल कमेटी ऑन रेडियो इंटरफेरेंस (International Special Committee on Radio Interference-CISPR) का गठन किया गया था।

लाभ:

  • EMI शील्ड का मुख्य उद्देश्य किसी डिवाइस की ऊर्जा को अलग करना है ताकि यह किसी अन्य चीज को प्रभावित किये बिना बाह्य ऊर्जा को अंदर जाने से रोक सके।
  • बिना परिरक्षण के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस उस प्रकार से कार्य नहीं कर सकते हैं जिस प्रकार उनको डिज़ाइन किया गया है या फिर वे पूरी तरह से कार्य करना बंद कर सकते हैं।
  • इस 'अदृश्य' शील्ड का अनुप्रयोग विभिन्न गुप्त सैन्य कार्यों में किया जा सकता है एवं विभिन्न सैन्य साजो-सामान से समझौता किये बिना विद्युत चुंबकीय तरंग उत्सर्जक (Electromagnetic Wave Emitter) या अवशोषक उपकरणों (Absorber Devices) में भी इसका प्रयोग संभव है।
  • भौतिक अनुप्रयोग के अलावा यह इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सिग्नेचर ( Electromagnetic Signature) को कम करने में सहायक है जिसमें रडार तरंगें एवं रेडियो सिग्नल शामिल हैं यह भारत के सैन्य हथियार तथा उपकरणों की क्षमता में वृद्धि करेगी।

स्रोत: पीआईबी


राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी, सामान्य योग्यता परीक्षा

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी संबंधी मुख्य विशेषताएँ, इसका महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार की नौकरियों के लिये भर्ती प्रक्रिया में परिवर्तनकारी सुधार लाने हेतु राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (National Recruitment Agency- NRA) के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • नई व्यवस्था के अनुसार, सरकारी नौकरी के इच्छुक सभी उम्मीदवार राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) द्वारा आयोजित एक सामान्य योग्यता परीक्षा (Common Eligibility Test-CET) में केवल एक बार हिस्सा लेंगे, जिसके बाद वे सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) के अंकों के आधार पर उच्च स्तर की परीक्षा के लिये किसी भी भर्ती एजेंसियों में आवेदन कर पाएंगे।
  • राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) एक बहु-एजेंसी निकाय होगी, जिसके शासी निकाय में रेलवे मंत्रालय, वित्त मंत्रालय/वित्तीय सेवा विभाग, SSC, RRB तथा IBPS के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • एक विशेषज्ञ निकाय के रूप में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA), केंद्र सरकार की भर्ती प्रक्रिया में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं का पालन करेगी।

मुख्य विशेषताएँ

  • सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) मुख्यतः तीन स्तरों पर आयोजित की जाएगी- स्नातक, उच्च माध्यमिक (12वीं उत्तीर्ण) और मैट्रिक (10वीं उत्तीर्ण)।
  • SSC, RRB तथा IBPS जैसी एजेंसियाँ यथावत बनी रहेंगी। सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) के अंकों के स्तर पर की गई स्क्रीनिंग के आधार पर भर्ती की अंतिम चयन प्रक्रिया के लिये परीक्षा का आयोजन संबंधित एजेंसी (SSC, RRB तथा IBPS) द्वारा किया जाएगा।
  • देश के प्रत्येक ज़िले में परीक्षा केंद्र स्थापित किये जाएंगे, जिससे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले उम्मीदवारों को काफी लाभ प्राप्त होगा।
    • देश भर के 117 ‘आकांक्षी ज़िलों’ (Aspirational Districts) में परीक्षा संरचना बनाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा जिससे आगे चलकर उम्मीदवारों को अपने निवास स्थान के निकट परीक्षा केंद्रों तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
  • उम्‍मीदवारों द्वारा सीईटी में प्राप्‍त स्कोर परिणाम घोषित होने की तिथि से 3 वर्षों की अवधि के लिये वैध होंगे।
  • सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) का पाठ्यक्रम सामान्य होने के साथ-साथ मानक भी होगा। यह उन उम्मीदवारों के बोझ को कम करेगा, जो वर्तमान में प्रत्येक परीक्षा के लिये विभिन्न पाठ्यक्रम के अनुसार अलग-अलग पाठ्यक्रमों की तैयारियाँ करते हैं।

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) का दायरा

  • शुरुआत में, राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) द्वारा ग्रुप B और C (गैर-तकनीकी) पदों के लिये उम्‍मीदवारों की शॉर्टलिस्‍ट करने हेतु सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) का आयोजन किया जाएगा
  • हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) द्वारा शुरुआत में उन परीक्षाओं के लिये सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) का आयोजन किया जाएगा, जो मुख्यतः अब कर्मचारी चयन आयोग (SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (SSC) और इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनेल सेलेक्शन (IBPS) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
  • बाद में इस बहु-एजेंसी निकाय के अंतर्गत कई अन्य परीक्षाओं को भी शामिल किया जा सकता है।

आवश्यकता

  • वर्तमान में, सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को पात्रता के समान शर्तों वाले विभिन्न पदों के लिये अलग-अलग भर्ती एजेंसियों द्वारा संचालित भिन्न-भिन्न परीक्षाओं में सम्मिलित होना पड़ता है, जिसके कारण उम्मीदवारों को अलग-अलग एजेंसियों के अलग-अलग शुल्क का भुगतान करना पड़ता है और साथ ही उम्मीदवारों को परीक्षा में हिस्सा लेने के लिये लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है, इससे उम्मीदवारों पर आर्थिक बोझ काफी हद तक बढ़ जाता है।
  • इसके अलावा अलग-अलग भर्ती परीक्षाएँ उम्मीदवारों के साथ-साथ परीक्षाओं का आयोजन करने वाली एजेंसियों पर भी कार्य के बोझ को बढ़ा देती हैं, जिसमें बार-बार होने वाला खर्च, सुरक्षा व्यवस्था और परीक्षा केंद्रों से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
  • आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 1.25 लाख सरकारी नौकरियों का विज्ञापन किया जाता है, जिनमें तकरीबन 2.5 करोड़ उम्मीदवार शामिल होते हैं।

महत्त्व

  • सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) के माध्यम से उम्मीदवारों के लिये कई परीक्षाओं में उपस्थित होने की परेशानी को दूर किया जा सकेगा।
  • चूँकि परीक्षा केंद्र सभी ज़िलों में स्थापित किये जाएंगे, इससे दूर-दराज़ के क्षेत्र में रहने वाले उम्मीदवार भी परीक्षा में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित होंगे और इस प्रकार भविष्य में केंद्र सरकार की नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
    • प्रत्येक ज़िले में परीक्षा केंद्रों की अवस्थिति से सामान्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों तथा विशेष रूप से महिला उम्मीदवारों को भी अधिक लाभ होगा।
    • रोज़गार के अवसरों को लोगों तक पहुँचाना एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिससे युवाओं की जिंदगी और आसन हो जाएगी।
  • वर्तमान में, उम्मीदवारों को बहु-एजेंसियों द्वारा संचालित की जा रही विभिन्न परीक्षाओं में भाग लेना होता है। परीक्षा शुल्क के अतिरिक्त उम्मीदवारों को यात्रा, रहने-ठहरने और अन्य चीजों पर अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है। सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) जैसी एकल परीक्षा से काफी हद तक उम्मीदवारों पर वित्तीय बोझ कम होगा।
  • सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) अनेक भाषाओं में उपलब्ध होगी। यह देश के विभिन्न हिस्सों से लोगों को परीक्षा में बैठने और चयनित होने के समान अवसर को प्राप्त करने को सुविधाजनक बनाएगा।
  • सरकार ने राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) के लिये 1517.57 करोड़ रुपए की स्वीकृति प्रदान की है। इस व्यय को तीन वर्षों की अवधि में खर्च किया जाएगाI।
  • इससे परीक्षा के प्रारूप में मानकीकरण स्थापित किया जा सकेगा।
  • सामान्य योग्यता परीक्षा (CET) के माध्यम से परीक्षा आयोजन में विभिन्न भर्ती एजेंसियों द्वारा किये जाने वाले खर्च में कमी आएगी, एक अनुमान के अनुसार, इसके कार्यान्वयन से लगभग 600 करोड़ रुपए की बचत की उम्मीद है।

स्रोत: पी.आई.बी


विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन: आईएसए

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन, ISA, सौर ऊर्जा पर आईएसए जर्नल, I JOSE, STAR केंद्र

मेन्स के लिये:

भारत की सौर ऊर्जा रणनीति

चर्चा में क्यों?

‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ (International Solar Alliance-ISA) द्वारा 8 सितंबर, 2020 को एक आभासी मंच के माध्यम से प्रथम 'विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन' (World Solar Technology Summit) का आयोजन कियाजाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय प्रधानमंत्री सम्मेलन के उद्घाटन को संबोधित करेंगे तथा ISA के सभी सदस्य देशों और वैश्विक संस्थानों की सम्मेलन में भागीदारी के लिये अनुग्रह करेंगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सौर ऊर्जा की अधिक उपलब्धता वाले देशों का एक अंतर-सरकारी संगठन है।

आयोजन का उद्देश्य:

  • सौर ऊर्जा का दक्षतम उपयोग करने की दिशा में अत्याधुनिक तकनीकों के साथ-साथ अगली पीढ़ी की तकनीकों की चर्चा करना है।
  • वैज्ञानिक नवाचारों को व्यावसायिक रूप से दुनिया के सभी हिस्सों में व्यापक उपभोग के लिये कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है। शीर्ष वैश्विक निगमों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सम्मेलन इस दिशा में अपना दृष्टिकोण साझा करेंगे।

आयोजन के सत्र:

  • आयोजन में चार तकनीकी सत्र आयोजित किये जाएंगे, जो प्रतिभागियों को अंग्रेजी, स्पेनिश, फ्रेंच और अरबी में उपलब्ध होंगे।
    • सत्र -1 (विज़न 2030 और उससे आगे):
      • यह सत्र फोटोवोल्टिक (Photovoltaic- PV) प्रौद्योगिकी के विकास और इसके भविष्य के संदर्भ में आयोजित किया जाएगा ताकि PV प्रौद्योगिकी को विश्व में ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बनाया जा सके।
    • सत्र -2 (कार्बनरहित ग्रिड निर्माण की ओर):
      • पीवी मॉड्यूल और भंडारण प्रौद्योगिकियों जैसे प्रमुख घटकों के बारे में सबसे हालिया प्रगति (रूपांतरण दक्षता में सुधार और लागत में गिरावट) की चर्चा करना।
    • सत्र -3 (विघटनकारी सौर प्रौद्योगिकी):
      • इस सत्र में सौर ऊर्जा के ग्रिड संबंधी अनुप्रयोग, आवासीय और वाणिज्यिक रूफटॉप सोलर ऊर्जा को ग्रिड से एकीकृत करना जैसे विषयों की चर्चा की जाएगी।
    • सत्र -4 (ऊर्जा क्षेत्र से अलावा सौर ऊर्जा):
      • पीवी प्रौद्योगिकी के प्रायोगिक अनुप्रयोग, ऑफ-ग्रिड ऊर्जा अनुप्रयोग, सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच, इको-फ्रेंडली औद्योगिक प्रक्रिया आदि की चर्चा करना।

सौर ऊर्जा पर आईएसए जर्नल (I JOSE):

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ द्वारा सौर ऊर्जा पर पत्रिका (ISA Journal on Solar Energy- I JOSE) भी लॉन्च की जाएगी, जो दुनिया भर के लेखकों को सौर ऊर्जा पर अपने लेख प्रकाशित करने में मदद मिलेगी।
  • इस पत्रिका में प्रकाशित लेखों की वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा की जाएगी तथा ये लेख अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के ‘राष्ट्रीय नाभिक केंद्रों’ (National Focal points- NFPs) और ‘सौर प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग संसाधन केंद्रों’ (SolarTechnology and Application Resource centers- STAR) के विशाल नेटवर्क के माध्यम से सदस्य देशों तक पहुँचेंगे।

भारत की सौर ऊर्जा पहल:

  • ‘राष्ट्रीय सौर मिशन’ (National Solar Mission), भारत की ‘जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना' (NAPCC) के प्रमुख मिशनों में से एक है।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये भारत सरकार ने देश भर में सौर ऊर्जा से संबंधित अनेक योजनाएँ यथा- सौर पार्क योजना, नहरों पर सौर संयत्रों की स्थापना, ग्रिड से जुड़े सौलर रूफटॉप संयंत्रों इत्यादि को प्रारंभ कियागया।
  • भारत एक महत्त्वाकांक्षी सीमा पार विद्युत ग्रिड योजना- ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ (One Sun One World One Grid) को क्रियान्वित करना चाहता है ताकि विश्व के एक क्षेत्र से दूसरों क्षेत्र में मांग के अनुसार विद्युत की आपूर्ति की जा
  • सके।
  • हाल ही में मध्य प्रदेश के रीवा में एक 750 मेगावाट (MW) सौर परियोजना का उद्घाटन किया गया है।

निष्कर्ष:

  • ‘अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रौद्योगिकी एवं आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता, व्यापक पैमाने पर विनिर्माण और नवाचार के विकास एवं उपलब्धता के लिये पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने की कल्पना करता है।
  • परियोजना का सफल कार्यान्वयन 'सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लक्ष्य (SDG- 7) को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन:

  • अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस द्वारा नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की गई थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, कर्क और मकर रेखा के मध्य आंशिक या पूर्ण रूप से अवस्थित सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है।
  • अब तक 67 देशों द्वारा 'आईएसए फ्रेमवर्क समझौते' पर हस्ताक्षर और अभिपुष्टि की गई है।
  • इसके प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक का सौर ऊर्जा उत्पादन और वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग 1000 बिलियन डॉलर की राशि को जुटाना शामिल है।
  • आईएसए के तहत वर्तमान में निम्नलिखित कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया जा रहा है:
    • कृषि उपयोग के लिये सौर अनुप्रयोग;
    • स्केल पर किफायती वित्त;
    • मिनी ग्रिड;
    • सोलर रूफटॉप;
    • सौर ई-गतिशीलता और भंडारण;
    • व्यापक पैमाने वाले सौर पार्क।

स्रोत: पीआईबी


लिंगराज मंदिर

प्रिलिम्स के लिये:

देउल शैली, लिंगराज मंदिर, गंग शासक, सोम वंश

मेन्स के लिये:

भारत में मंदिर स्थापत्य कला , उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की स्थापत्य कला में अंतर्

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार द्वारा 11 वीं शताब्दी के लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple) को उसकी 350 वर्ष पूर्व वाली संरचनात्मक स्थिति प्रदान करने की घोषणा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • लिंगराज मंदिर, शिव को समर्पित एक मंदिर है जो ओडिशा के भुवनेश्वर ज़िले में स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
  • यह मंदिर कलिंग वास्तुकला की सर्वोत्कृष्टता का दर्शाता है एवं भुवनेश्वर में स्थापत्य परंपरा के मध्यकालीन चरणों की पराकाष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है।
  • भुवनेश्वर को एकाम्र क्षेत्र (Ekamra Kshetra) कहा जाता है क्योंकि 13 वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ के अनुसार लिंगराज का देवता मूल रूप से एक आम के वृक्ष ( एकाम्र ) से संबंधित था।
  • माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजवंश ( Somavamsi Dynasty) के राजाओं द्वारा किया गया था, जिसमे आगे चलकर गंग शासकों ( Ganga rulers) द्वारा और निर्माण कार्य कराया गया।
  • इस मंदिर में विष्णु की मूर्तियाँ स्थापित हैं जो संभवत: गंग शासकों के समय जगन्नाथ संप्रदाय के विकास क्रम को इंगित करती हैं, जिन्होंने 12 वीं शताब्दी में पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।


लिंगराज मंदिर की वास्तुकला:

  • इस मंदिर का निर्माण देउल शैली (Deula Style) में किया गया है, जिसमें चार घटक शामिल हैं-
    • विमान- गर्भगृह युक्त संरचना, (Vimana- Structure Containing the Sanctum)
    • जगमोहन- असेंबली हॉल, (Jagamohana (Assembly Hall)
    • नटामंडीरा-फेस्टिवल हॉल (Natamandira- Estival Hall)
    • भोग-मंडप-प्रसाद का हॉल (Bhoga-Mandapa- Hall of Offerings)

स्रोत: द हिंदू


हवाई अड्डों को लीज़ पर देने का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल

मेन्स के लिये

सरकार के इस कदम का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 50 वर्ष की अवधि के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से देश के तीन हवाई अड्डों- जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम को लीज़ पर देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड (Adani Enterprises Ltd) को संचालन, प्रबंधन और विकास के लिये भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) द्वारा संचालित तीन हवाई अड्डों को लीज़ पर देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
    • लीज़ की अवधि 50 वर्ष की है और अवधि पूरी होने के पश्चात् हवाई अड्डों का संचालन, प्रबंधन और विकास का दायित्त्व पुनः भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के पास आ जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • सरकार ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत परिचालन, प्रबंधन और विकास के लिये करीब एक दशक पूर्व ही लीज़ पर दे दिया था।
  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) ने 14 दिसंबर, 2018 को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत देश के छह हवाई अड्डों- अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और मंगलुरु को लीज़ पर दिये जाने के लिये प्रस्ताव आमंत्रित किये थे।
  • इस प्रक्रिया में अडानी एंटरप्राइज़ेज लिमिटेड सबसे बड़े बोलीदाता के रूप में सामने आया था। इसके बाद जुलाई 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अडानी एंटरप्राइज़ेज को छह में से तीन हवाई अड्डों- अहमदाबाद, मंगलुरु और लखनऊ को लीज़ पर देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी।
    • हालाँकि शेष तीन हवाईअड्डों को कुछ कानूनी मामलों के कारण उस समय अडानी एंटरप्राइज़ेज को नहीं दिया गया था।

लाभ

  • इस परियोजना के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में आवश्यक निवेश जुटाने के अलावा सेवा आपूर्ति, विशेषज्ञता, उद्यम और व्यावसायिक कौशल में दक्षता आएगी।
  • एक ओर जहाँ इस सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के प्रयोग से भारत में विश्व स्तर के हवाईअड्डे विकसित करने में मदद मिलेगी, वहीं इन हवाई अड्डों पर विमान यात्रियों के लिये गुणवत्ता युक्त विश्व स्तरीय सुविधाएँ प्रदान की जा सकेंगी।
  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) को जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम में हवाईअड्डों को लीज़ पर देने से लगभग 1,070 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) द्वारा इस राशि का प्रयोग छोटे शहरों में हवाई अड्डों को विकसित करने के लिये किया जाएगा।

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)

  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा 1 अप्रैल, 1995 को किया गया था, तब से यह प्राधिकरण ग्राउंड (Ground) और एयरस्पेस (Airspace) दोनों में नागरिक उड्डयन अवसंरचना के निर्माण, उन्नयन,रखरखाव और प्रबंधन का कार्य कर रहा है।
  • वर्तमान में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) 137 विमानपत्तनों का प्रबंधन करता है, जिसमें 23 अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन, 10 सीमा शुल्क विमानपत्तन, 81 घरेलू विमानपत्तन तथा रक्षा वायु क्षेत्रों में 23 घरेलू सिविल एन्क्लेव शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


अटलांटिक महासागर में प्लास्टिक प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोप्लास्टिक, माइक्रोबीड्स, प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक प्रदूषण

चर्चा में क्यों?

बहु-विषयक वैज्ञानिक शोध पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशन' (Nature Communication) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अटलांटिक महासागर में 11.6-21.1 मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक होने का अनुमान है।

प्रमुख बिंदु:

  • अटलांटिक महासागर में 200 मीटर की गहराई तक किये गए मापन में 11.6 - 21.1 मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, अटलांटिक महासागर में 17-47 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट हो सकता है।

प्लास्टिक प्रदूषण का अनुमान:

  • वैज्ञानिकों ने तीन प्रकार के प्लास्टिक - पॉलीइथाइलीन, पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीस्टाइनिन को अध्ययन का आधार बनाया।
    • इन तीन प्रकार के प्लास्टिक का ही पैकेजिंग के लिये सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
  • इन तीन प्रदूषकों की समुद्र में 200 मीटर की गहराई तक निलंबित मात्रा के आधार पर अटलांटिक महासागर में प्लास्टिक प्रदूषण का अनुमान लगाया गया है।
  • अटलांटिक महासागर को प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा का अनुमान दो आधारों पर लगाया गया है:
    • प्रथम, वर्ष 1950-2015 से प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के रुझान;
    • दूसरा, ऐसा माना गया कि विगत 65 वर्षों में वैश्विक प्लास्टिक कचरे का 0.3-0.8% अटलांटिक महासागर ने प्राप्त किया है।

माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic):

  • माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से भी छोटे (तिल के बीज के आकार के) आकार के प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं।
  • ये विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होते हैं, अत: इनके प्राप्ति स्रोत का निर्धारण करना बहुत कठिन होता है।
  • प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में उच्च स्तर के माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं।

माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण:

  • सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी विकिरणों, वायु-धाराओं, जल-धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों, जिसे माइक्रोप्लास्टिक (5 मिमी से छोटे कण) या नैनोप्लास्टिक (100 नैनो मीटर से छोटे कण) कहा जाता है, में टूट जाते हैं।
  • माइक्रोबीड्स भी एक प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स होते हैं जिनका आकार एक मिलीमीटर से कम होता हैं, जो सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकते हैं।
  • ये छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन प्रणालियों से गुजरते हैं और समुद्र और झीलों में पहुँच जाते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत:

  • स्थल आधारित:
    • समुद्री प्लास्टिक के मुख्य स्रोत मुख्यत: स्थल आधारित होते हैं जिसमे नगरीय अपशिष्ट, नदी अपवाह, समुद्र तट पर पर्यटन, अपर्याप्त अपशिष्ट निपटान और प्रबंधन, औद्योगिक गतिविधियों, निर्माण और अवैध डंपिंग आदि शामिल हैं।
  • महासागर आधारित:
    • महासागर आधारित प्लास्टिक मुख्य रूप से मछली पकड़ने के उद्योग, समुद्री गतिविधियों और जलीय कृषि से उत्पन्न होता है।

प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव:

  • प्लास्टिक को विघटित होने में सैकड़ों से हज़ारों वर्ष लग सकते हैं, यह प्लास्टिक के प्रकार और स्थान जहाँ इसे डंप किया गया है, पर निर्भर करता है।
  • समुद्री जीवन (Marine Life):
    • पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न समाचार रिपोर्टों से पता चला है कि समुद्री जानवर जैसे व्हेल, समुद्री पक्षी और कछुए द्वारा अनजाने में प्लास्टिक को निगलने से उनकी मृत्यु का कारण बनी है।
  • तटीय पर्यटन (Coastal Tourism):
    • प्लास्टिक कचरा पर्यटन स्थलों के सौंदर्य मूल्य को कम करता है, जिससे पर्यटन से संबंधित आय में कमी होती है।
  • मानव स्वास्थ्य (Human Health):
    • समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के हानिकारक होता है यदि यह खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है।
    • उदाहरणत: माइक्रोप्लास्टिक्स नल के पानी, बीयर और यहाँ तक कि नमक में भी हो सकते हैं।

अध्ययन का महत्त्व:

  • प्लास्टिक के छोटे कण आसानी से अधिक गहराई तक समुद्र में पहुँच सकते हैं तथा समुद्री प्रजातियों यथा ज़ूप्लैंकटन के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते है।
    • ज़ूप्लैंकटन, फाइटोप्लैंकटन का सेवन करते हैं जबकि बड़े जानवर, जैसे- मछली, व्हेल, स्क्विड, शेलफिश आदि द्वारा जूप्लैंकटन सेवन किया जाता है
  • माइक्रोप्लास्टिक्स के अलावा अन्य प्रकार की प्लास्टिक गहरे समुद्र में और तलछट में हो सकते हैं अत: अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि समुद्र के प्लास्टिक के स्रोत और भंडार (Inputs and Stocks) दोनों ही अनुमानित मात्रा की तुलना में बहुत अधिक हैं।
  • सभी आकार के प्लास्टिक संदूषकों तथा बहुलक समूहों की महासागरों में उपस्थिति का निर्धारण और उनसे उत्पन्न संभावित जोखिम का आकलन करना पर्यावरण स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

  • माइक्रोप्लास्टिक अध्ययन का एक उभरता हुआ क्षेत्र है, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके सटीक जोखिम स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हैं। अत: इस दिशा में व्यापक शोध तथा समस्या समाधान की दिशा में कार्य किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस