डेली न्यूज़ (20 Mar, 2020)



राज्यसभा के लिये मनोनयन

प्रीलिम्स के लिये:

राज्यसभा के लिये मनोनयन 

मेन्स के लिये:

राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों की भूमिका, सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी विवाद 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिये नामांकित किया गया, जिससे राज्य सभा में नामांकित  सदस्यों की भूमिका को लेकर अनेक सवाल उठाए जा रहे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • श्री गोगोई, शिक्षाविद मृणाल मिरी (Mrinal Miri) के बाद असम से राज्यसभा में मनोनीत होने वाले  दूसरे व्यक्ति हैं।
  • पूर्वोत्तर से दो अन्य व्यक्ति मेघालय से शिक्षाविद् बी.बी. दत्ता और मणिपुर से मुक्केबाज़ एम.सी. मैरीकॉम को भी मनोनीत किया गया है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने असम में ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC) को अद्यतन करने तथा ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद’ में फैसला सुनाया था।

राज्य सभा में मनोनयन:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 80 राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। 
  • राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। 
  • इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्रों से मनोनीत किया जाता है।

विवाद का कारण:

  • सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पाबंदी:
    • सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भारत में कहीं भी किसी न्यायालय या किसी प्राधिकरण में कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिये किया गया है कि वह न्यायिक निर्णय देते समय भविष्य का ध्यान न रखें। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनकी सेवानिवृत्त के बाद न्यायाधिकरणों एवं आयोगों में विभिन्न पदों पर नियुक्त किया जाता है।
  • सेवानिवृत्ति के बाद भी नियुक्ति किये जाने के निम्नलिखित कारण हैं-
    • प्रथम, पिछले कुछ दशकों में अधिकरणों एवं आयोगों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई हैं, जिनमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सदस्यों के रूप में कार्य करने की आवश्यकता होती है।
    • दूसरा, न्यायाधीशों की सेवानिवृत्त होने की आयु (उच्च न्यायालय में 62 वर्ष और उच्चतम न्यायालय में 65 वर्ष) में वृद्धि नहीं किये जाने के कारण सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभी भी सार्वजनिक हित में अपने व्यापक अनुभव का उपयोग करने की स्थिति मे होते हैं।

मनोनयन को लेकर पूर्व में हुये विवाद:

  • सचिन तेंदुलकर के नामांकन को लेकर कुछ तर्कशील भारतीयों ने इस आधार पर यह प्रश्न किया है कि संविधान के अनुच्छेद 80 (3) में निर्दिष्ट श्रेणियों- ‘साहित्य, कला, विज्ञान और सामाजिक सेवा’ में खेल शामिल नहीं हैं, इसलिये कोई भी खिलाड़ी मनोनयन के पात्र नहीं है। परंतु बाद में माना गया कि निर्दिष्ट श्रेणियाँ अपने आप में पूर्ण (Exhaustive) नहीं हैं अपितु उदाहरण ( Illustrative) मात्र हैं।  

मनोनयन का उद्देश्य:

  • प्रसिद्ध लोगों का संसद मे प्रवेश:
    • प्रसिद्ध लोगों के मनोनयन के पीछे उद्देश्य यह है कि नामी या प्रसिद्ध व्यक्ति बिना चुनाव के राज्यसभा में जा सके। 
    • यहाँ यह ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अमेरिकी सीनेट में कोई मनोनीत सदस्य नहीं होता है।
  • समावेशी समाज का निर्माण:
    • राष्ट्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका के एक सदन के रूप मे राज्य सभा का निर्माण करते समय लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण की दिशा में चुनाव (Election) एवं मनोनयन (Nomination) की विशिष्ट सम्मिश्रित प्रणाली को अपनाया गया तथा राज्य सभा में 12 सदस्यों के मनोनयन का प्रावधान किया गया। 
    • संसदीय वास्तुकला मे मनोनीत सदस्यों की उपस्थिति भारतीय समाज को अधिक समावेशी बनाने वाली व्यवस्था का समर्थन करती है।
  • राष्ट्र का प्रतिनिधित्व:
    • मनोनीत सदस्य किसी राज्य का नहीं अपितु पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सदन में राष्ट्रीय आकाँक्षाओं एवं लोकाचार (Ethos) को प्रतिबिबिंत करते हैं तथा सदन का गौरव बढ़ाते हैं।
  • संकीर्ण राजनीति से ऊपर:
    • डॉ. ज़ाकिर हुसैन वर्ष 1952 में मनोनीत 12 सदस्यों में से एक प्रमुख शिक्षाविद् थे। उनका मानना था- “राष्ट्रीय पुनर्जागरण (National renaissance) राजनीति के संकीर्ण द्वार से नहीं प्रवेश कर सकता, इसके लिये बाढ़ रूपी सुधारवादी शिक्षा की जरूरत है।”

नुकसान (Disadvantages):

  • मनोनीत सदस्यों का प्रावधान लोकतंत्र की परिभाषा- ‘लोगों का, लोगों द्वारा, लोगों के लिये शासन’ के खिलाफ है।
  • यह प्रावधान जनता के प्रति जवाबदेहिता के सिद्धांत के खिलाफ है क्योंकि मनोनीत सदस्य किसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।   

आगे की राह: 

  • हालाँकि संविधान में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को इस तरह के पदों को स्वीकार करने पर रोक नहीं है, लेकिन ये नियुक्तियाँ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमज़ोर करती हैं। अत: ऐसी प्रथाओं को रोकने के संसदीय प्रयास होने चाहिये, नहीं तो सेवानिवृत्त होने से पूर्व के फैसले सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाली नौकरी से प्रभावित होंगे।

मनोनीत सदस्यों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी:

  • संविधान का स्रोत:
    • राज्य सभा के लिये सदस्यों का मनोनयन संबंधी प्रावधान आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। 
  • दल बदल कानून का प्रावधान:
    • अगर कोई नामित या नाम निर्देशित सदस्य 6 महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है तो उसे दल बदल अधिनियम के तहत निरर्ह करार दिया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग:
    • संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव मे भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में भाग ले सकते हैं। 

स्रोत: द हिंदू


प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

15 सूत्रीय कार्यक्रम, अल्पसंख्यकों से जुड़ी योजनाएँ 

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा मे क्यों?

हाल ही में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री (Union Minister of Minority Affairs- UMMA) ने लोकसभा में अतारांकित प्रश्न (जिनका जवाब लिखित मे दिया आता है) के जवाब में बताया कि अल्पसंख्यक मंत्रालय, अल्पसंख्यक समुदायों के लिये क्रियान्वित की जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का विभिन्न तरीकों से समय- समय पर मूल्यांकन करता है ताकि विभिन्न योजनाओं के तहत किये जाने वाले परिव्यय का 15% अनिवार्य रूप से अल्पसंख्यकों के लिये आवंटित किया जा सके।   

मुख्य बिंदु:

  • ‘प्रधानमंत्री का नवीन 15 सूत्रीय कार्यक्रम’ (PM’s New 15 PP) अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है, जो विभिन्न मंत्रालयों/विभागों की योजनाओं एवं पहलों को शामिल करता है।
  • प्रधानमंत्री के नवीन 15 सूत्रीय कार्यक्रम में शामिल मंत्रालयों/विभागों की योजनाओं/पहलों का संबंधित मंत्रालय/विभाग द्वारा सतत् मूल्यांकन किया जाता है।

अल्पसंख्यक समुदाय:

  • अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs- MMA) की योजनाएँ विशेष रूप से केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के लिये होती हैं। 
  • अल्पसंख्यक  समुदायों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी एवं जैन धर्म शामिल हैं। 

प्रमुख योजनाएँ  

  • अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये एक बहु-आयामी रणनीति अपनाई है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय का शैक्षिक सशक्तीकरण, रोजगारोन्मुखी कौशल विकास तथा बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना हैं। प्रमुख योजनाओं का विवरण निम्नानुसार है:

शैक्षिक सशक्तीकरण:

1. छात्रवृत्ति योजनाएँ:

  • प्री- मैट्रिक छात्रवृत्ति, पोस्ट- मैट्रिक छात्रवृत्ति और मेरिट आधारित छात्रवृत्ति।

2. नया सवेरा: 

  • सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की नौकरियों पाने के लिये कौशल प्रदान करना तथा प्रतिष्ठित संस्थानों के तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिये अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों एवं उम्मीदवारों को नि:शुल्क कोचिंग व अन्य सहायता  प्रदान करना।

3. नई उड़ान: 

  • संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission- UPSC) एवं राज्य लोक सेवा आयोगों (State Public Service Commissions) द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को सहायता प्रदान करना।

4. पढ़ो परदेश:

  • विदेश मे अध्ययन हेतु ‘ब्याज सब्सिडी’ प्रदान करने के लिये वर्ष 2013-14 में प्रारंभ की गई एक योजना है।

5. मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना (Maulana Azad National Fellowship Scheme):

  • अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को M. Phil एवं Ph. D. के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान करना।

6. मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन निम्नलिखित दो अन्य योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा हैं-

a. बेगम हज़रत महल राष्ट्रीय छात्रवृति योजना:

  • कक्षा 9 से 12 के लिये। 

b. गरीब नवाज़ रोज़गार कार्यक्रम 

आर्थिक सशक्तीकरण:

रोज़गारोन्मुखी कौशल विकास कार्यक्रम:

a. सीखो और कमाओ योजना:

  • इस योजना में अल्पसंख्यक युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार आधुनिक और पारंपरिक कौशल प्रदान किया जाता है।

b. उस्ताद (USTAAD):

  • इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की परंपरागत  कला के संरक्षण के लिये प्रशिक्षण एवं कौशल में सुधार करना है।

c. नई मंज़िल:

  • मदरसे एवं मुख्य धारा के छात्रों के मध्य शैक्षणिक एवं कौशल अंतराल को कम करने के लिये एक सेतु पाठ्यक्रम (Bridge Course) है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम (National Minorities Development Finance Corporation- NMDFC) ऋण योजनाएँ: 

  • यह निगम अल्पसंख्यकों में पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये रियायती दर पर ऋण प्रदान करती हैं।

बैंकों द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण

अवसंरचना सहायता (Infrastructure Support):

प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (Pradhan Mantri Jan Vikas Karyakram- PMJ VK):

  • इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कौशल के क्षेत्र में बेहतर सामाजिक-आर्थिक अवसंरचना प्रदान करना है। 

योजनाओं की निगरानी:

  • विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी विभिन्न तंत्रों एवं बाहरी एजेंसियों द्वारा समय-समय पर की जा रही है ताकि इन योजनाओं की प्रभावशीलता एवं दक्षता सुनिश्चित की जा सके। कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
    • थर्ड पार्टी स्टडी/मॉनिटरिंग
    • ज़िला/राज्य स्तरीय समिति
    • अधिकार प्राप्त समिति
    • अधिकारियों द्वारा फील्ड/क्षेत्र भ्रमण 
    • क्षेत्रीय समन्वय बैठक का आयोजन 

सांस्‍कृतिक एवं सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित किये बगैर देश में विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, अत: समाज में सामाजिक सौहार्द का माहौल बनाना होगा तभी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। 

स्रोत: पीआईबी


पारंपरिक चिकित्सा हेतु विनियामक निकाय

प्रीलिम्स के लिये:

पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली, होम्योपैथी, होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 

मेन्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा प्रणाली से संबंधित विषय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने होम्योपैथी और चिकित्सा की अन्य पारंपरिक प्रणालियों के लिये अलग आयोग गठित करने हेतु राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 (National Commission for Homoeopathy Bill, 2019) और राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019 (The National Commission for Indian System of Medicine Bill, 2019) पारित किया है।

राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019

(The National Commission for Indian System of Medicine Bill, 2019)

  • राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक को 7 जनवरी, 2019 को राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, जिसके पश्चात् इसे समीक्षा के लिये एक स्थायी समिति को भेजा गया, जिसने नवंबर, 2019 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • इस विधेयक में भारतीय केंद्रीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1970 को निरस्त करने तथा एक ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली का निर्माण करने का प्रावधान किया गया है जिसमें अन्य उद्देश्यों के साथ भारतीय चिकित्सा पद्धति के गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता और नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान सुनिश्चित किया जा सके।
  • इसके अलावा इस विधेयक में राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग के गठन का भी प्रावधान किया गया है, जो कि मौजूदा भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद को प्रतिस्थापित करेगा।

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019

(National Commission for Homoeopathy Bill, 2019)

  • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 को भी 7 जनवरी, 2019 को राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था और इसमें होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को निरस्त करने के प्रावधान किये गए हैं।
  • विधेयक में राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है, जो कि मौजूदा केंद्रीय परिषद का स्थान लेगा।
  • यह विधेयक होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को रद्द करता है और ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली का प्रावधान करता है, जो निम्नलिखित उद्देश्य सुनिश्चित करे-
    • उच्च स्तरीय होम्योपैथिक मेडिकल पेशेवरों को पर्याप्त संख्या में उपलब्ध कराना।
    • होम्योपैथिक मेडिकल पेशेवरों द्वारा नवीनतम चिकित्सा अनुसंधानों को अपनाना।
    • मेडिकल संस्थानों का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
    • एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना करना।

होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 

  • होम्योपैथी की शिक्षा एवं प्रैक्टिस के नियमन, केंद्रीय होम्योपैथी रजिस्टर के रखरखाव तथा संबंधित मामलों को लेकर केंद्रीय होम्योपैथी परिषद के गठन के लिये होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को लागू किया गया था।
  • यह अधिनियम होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा एवं प्रैक्टिस के विकास के लिये एक ठोस आधार प्रदान करता है।

होम्योपैथी

(Homoeopathy)

  • होम्योपैथी की खोज जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (Christian Friedrich Samuel Hahnemann) (1755-1843) द्वारा अठारहवीं सदी के अंत में की गई थी।
  • यह प्रणाली दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सदन में बहुमत

प्रीलिम्स के लिये:

विधान सभा अध्यक्ष की शक्ति और अधिकार, ध्वनिमत, मत विभाजन, मतपत्र, फ्लोर टेस्ट

मेन्स के लिये:

राजनीतिक अस्थिरताओं से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश की हालिया राजनीतिक अस्थिरताओं के बीच ‘शक्ति परीक्षण’ या ‘विश्वास मत’ जैसे विषय चर्चा के केंद्र में रहे।

प्रमुख बिंदु:

  • संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, राज्य में कोई भी सरकार तभी काम कर सकती है जब उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त हो।
  • जब कभी विपक्ष को लगता है कि वर्तमान सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है तो विपक्ष सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को गिराने की कोशिश करता है।

फ्लोर टेस्ट (Floor Test):

  • फ्लोर टेस्ट यह निर्धारित करने में मदद करता है कि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है या नहीं।
  • जब किसी राज्य की विधानसभा में एक फ्लोर टेस्ट बुलाया जाता है, तो मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करना होता है। फ्लोर टेस्ट में असफल होने की स्थिति में मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है।

विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर:

  • विश्वास प्रस्ताव:
    • विश्वास प्रस्ताव सरकार की तरफ से लाया जाता है जिससे वह साबित कर सके कि उनके पास बहुमत है।
    • विश्वास प्रस्ताव सदन में पेश होने के बाद इस पर चर्चा होती है और अंत में इस पर मतदान होता है कि कितने सदस्य सरकार के पक्ष में तथा कितने विपक्ष में हैं ।
    • अगर वर्तमान सरकार के पास आधे से ज्यादा सदस्य सरकार के पक्ष में होते है तो सरकार को कोई खतरा नही होता है।   
  • अविश्वास प्रस्ताव:
    • अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ लाया जाता है।
    • यह प्रस्ताव लाने हेतु विधायक/सांसद को विधानसभा/लोकसभा अध्यक्ष को लिखित सूचना देनी होती है। विधानसभा अध्यक्ष से मंज़ूरी के पश्चात् अविश्वास प्रस्ताव पेश होता है।
    • नोटिस मंज़ूर होने के 10 दिनों के अंदर सदन में इस पर बहस कराने और मत विभाजन कराने का प्रावधान है।
    • अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा पूरी होने के बाद लोकसभा/विधानसभा अध्यक्ष इस पर मत विभाजन, ध्वनिमत या मतपत्र के जरिए मतदान कराता है। लोकसभा में नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाने की व्यवस्था की गई है।

सदन में मतदान के प्रकार:

  • ध्वनिमत (Voice Vote): विधायिका मौखिक रूप से प्रतिक्रिया देती है।
  • मत विभाजन (Division Vote): मत विभाजन के मामले में, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स का उपयोग करके मतदान किया जाता है।
  • मतपत्र (Ballot Vote): बैलेट बॉक्स आमतौर पर एक गुप्त वोट होता है- जैसे राज्य या संसदीय चुनाव के दौरान लोग वोट देते हैं।

विधान सभा अध्यक्ष के अधिकार और शक्तियाँ 

  • विधान सभा परिसर में सर्वोच्च प्राधिकार।
  • सदन में अनुशासन बनाए रखना।
  • सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित करने की ज़िम्मेदारी।
  • सदन की कार्यवाही संचालन के लिये नियम बनाने की शक्ति।
  • कोरम के अभाव में सदन को स्थगित या निलंबित करने की शक्ति।
  • सामान्य स्थिति में मत नही दे सकते हैं लेकिन बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत दे सकता है।
  • सदस्यों को सदन में बोलने की अनुमति देना।
  • अशिष्ट आचरण या विशेषाधिकार भंग करने पर संबंधित सदस्य को निष्कासित कर सकते हैं।
  • प्रश्न, प्रस्ताव या संकल्प को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार।
  • जरूरी होने पर किसी नियम को निलंबित करने की शक्ति।
  • अध्यक्ष की अनुमति के बिना सदन के परिसर में सदन के किसी भी सदस्य को गिरफ्तार नही किया जा सकता है।  

स्रोत: राज्यसभा टीवी


COVID-19 अधिसूचित आपदा

प्रीलिम्स के लिये:

राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि, COVID-19, आपदा प्रबंधन अधिनियम

मेन्स के लिये:

आपदा/महामारी प्रबंधन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (State Disaster Response Fund-SDRF) के तहत सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से COVID​​-19 को एक अधिसूचित आपदा (Notified Disaster) के रूप में मान्यता प्रदान करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • विदित हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में कोरोनावायरस (COVID-19) को एक वैश्विक महामारी घोषित किया था, इसके कारण वैश्विक स्तर पर अब तक 8000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग अब भी इसकी चपेट में हैं।
  • यह महामारी दुनिया भर के तकरीबन 168 देशों में पहुँच चुकी है भारत में भी कोरोनावायरस संक्रमण के 190 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
  • इस वैश्विक महामारी के प्रभाव से राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान पहुँच रहा है।
  • ऐसी स्थिति में यह काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि केंद्र सरकार राज्यों को इस महामारी से निपटने के लिये यथासंभव संसाधन उपलब्ध कराए ताकि आपदा की इस स्थिति से जल्द-से-जल्द निपटा जा सके।

COVID-19 अधिसूचित आपदा

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act) के अनुसार, आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में हुए उस विध्वंस, अनिष्ट, अथवा अपेक्षाकृत गंभीर घटना से है जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से अथवा दुर्घटनावश या लापरवाही से घटित होती है और जिसमें काफी बड़ी मात्रा में मानव संसाधन की हानि होती है या संपत्ति को हानि पहुँचती है या पर्यावरण का भारी क्षरण होता है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (SDRF) का उपयोग केवल चक्रवात, भूकंप, सूखा, भूस्खलन, ओलावृष्टि, बादल फटने, हिमस्खलन और कीटों के हमले आदि स्थिति में ही किया जा सकता है।
  • अब तक गंभीर चिकित्सा अथवा महामारी की स्थिति अधिसूचित आपदा सूचियों के अंतर्गत नहीं आती थीं, जिसके कारण SDRF का प्रयोग ऐसी स्थितियों में नहीं किया जा सकता था।
  • गृह मंत्रालय द्वारा लिये गए इस निर्णय से राज्य सरकारें कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये SDRF का उपयोग कर सकेंगी।

महामारी और अमेरिका

  • COVID-19 महामारी से निपटने के लिये हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी  देश में एक राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए स्टैफोर्ड अधिनियम (Stafford Act) लागू कर दिया है।
  • अमेरिका के इस नियम के अनुसार, संघीय सरकार राज्यों के लिये किसी भी आपदा से निपटने हेतु राहत की लागत में लगभग 75 प्रतिशत का योगदान करती है।
  • स्टैफोर्ड अधिनियम राष्ट्रपति को स्थानीय सरकारों, राज्य सरकारों, कुछ निजी गैर-लाभकारी संगठनों और व्यक्तियों को वित्तीय एवं अन्य सहायता प्रदान करने के लिये अधिकृत करता है।

राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि 

(State Disaster Response Fund-SDRF)

  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया जाता है और यह अधिसूचित आपदाओं से निपटने के लिये राज्य सरकारों के समक्ष मौजूद प्राथमिक निधि होती है।
  • नियमों के अनुसार, केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन में 75 प्रतिशत का योगदान करती है, जबकि विशेष श्रेणी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये यह 90 प्रतिशत से अधिक होता है।
    • विदित हो कि विशेष राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणी में पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को शामिल किया जाता है।
  • SDRF के लिये केंद्र सरकार वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर दो समान किश्तों में धनराशि जारी करती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम, किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम, आयुष्मान भारत

मेन्स के लिये:

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने संयुक्त रूप से आयुष्मान भारत के तहत ‘स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम’ (School Health Programme- SHP) की शुरुआत की है।

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के बारे में

(School Health Programme-SHP): 

  • SHP स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के महत्त्वपूर्ण घटकों में से एक है, जो स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य पर कड़ी निगरानी रखने में मदद करता है।
  • इसका उद्देश्य स्कूल के बच्चों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से मुक्त रखना। 
  • SHP के तहत कुल ग्यारह विषयों की पहचान की गई है जिनमें प्रजनन स्वास्थ्य और एचआईवी की रोकथाम शामिल हैं। 
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 का अनुसरण करते हुए स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग (Department of School Education & Literacy) किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम (Adolescence Education Programme-AEP) को कार्यान्वित कर रहा है।
  • गौरतलब है कि किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम राष्ट्रीय जनसंख्या शिक्षा परियोजना (National Population Education Project-NPEP) का हिस्सा है।
  • भारत सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के स्कूली बच्चों की चिकित्सा जाँच के महत्त्व पर ज़ोर दिया है। 
  • स्कूल हेल्थ ग्रोथ गतिविधियों को देश के सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लागू किया जाएगा।

उद्देश्य:

  • स्कूलों में बच्चों को स्वास्थ्य और पोषण के बारे में उचित जानकारी प्रदान करना। 
  • बच्चों के बीच स्वास्थ्य व्यवहार को बढ़ावा देना।
  • कुपोषित और एनिमिया से पीड़ित बच्चों की पहचान करना तथा बच्चों व किशोरों में रोगों का जल्द पता लगाना, उनका इलाज करना।
  • स्कूलों में सुरक्षित पेयजल के उपयोग को बढ़ावा देना। 
  • स्वास्थ्य और कल्याण के माध्यम से योग तथा ध्यान को बढ़ावा देना। 

स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत सेवाएँ:

school-health

किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम

(Adolescence Education Programme-AEP)

  • किशोरावस्‍था शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्‍य युवाओं को जीवन की वास्‍तविक परिस्थितियों में सकारात्‍मक और उत्‍तरदायी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिये सटीक, आयु उपयुक्‍त तथा सांस्‍कृतिक दृष्टि से संबंधित सूचना, स्वस्थ्य मनोवृत्ति तथा कौशल विकसित करने में सक्षम बनाकर उन्‍हें सशक्‍त बनाना है। 
  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training-NCERT) इस कार्यक्रम का समन्‍वय करती है और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 के अनुरूप युवाओं के समग्र विकास की दिशा में कार्य करती है। 

आयुष्मान भारत:

  • यह यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (Universal Health Coverage-UHC) के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है। इसकी शुरुआत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के सुझाव पर की गई थी।
  • आयुष्मान भारत, स्वास्थ्य सेवा वितरण के ‘क्षेत्रीय और विभाजित दृष्टिकोण’ से व्यापक तथा ज़रूरत आधारित स्वास्थ्य देखभाल सेवा की ओर बढ़ने का एक प्रयास है।
  • इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की समस्याओं (रोकथाम, प्रोत्साहन, एंबुलेटरी देखभाल) को समग्र रूप से संबोधित करना है।

स्रोत: पीआईबी


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 मार्च, 2020

‘COVID-19 आर्थिक प्रतिक्रिया कार्यबल’ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरानावायरस (COVID-19) के आर्थिक प्रभाव से निपटने हेतु एक विशेष कार्यबल के गठन की घोषणा की है। यह ‘COVID-19 आर्थिक प्रतिक्रिया कार्यबल’ कोरोनावायरस महामारी से प्रभावित उद्योगों के लिये राहत पैकेज से संबंधित निर्णय करेगा। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाला यह कार्यबल कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न होने वाले आर्थिक संकट से निपटने के उपायों पर विचार करेगा। ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस महामारी के कारण पर्यटन, विमानन और होटल जैसे क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। चीन में कारोनावायरस संक्रमण के कारण कामकाज बंद होने से कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित हुई है। इससे औषधि के साथ इलेक्ट्रानिक उद्योग पर भी असर पड़ा है। 

लाइट मशीन गन खरीद समझौता

रक्षा मंत्रालय ने इज़रायल वेपन इंडस्ट्रीज़ (Israel Weapon Industries-IWI) के साथ 880 करोड़ रुपए में 16,479 लाइट मशीन गन (LMG) खरीदने के लिये अनुबंध किया है। दुनिया के सबसे सर्वश्रेष्ठ मशीन गनों में शामिल यह लाइट मशीन गन प्रति मिनट 850 फायर करने में सक्षम है। इज़रायल के रामात हाशैरोन शहर स्थित कारखाने से 7.62 एमएम कैलिबर की नेगेव एलएमजी (MM Caliber Negev LMG) भारतीय सुरक्षा बलों को उपलब्ध कराई जाएगी। इस मशीन गन का वज़न मात्र 7.5 किलोग्राम है औ इसका इस्तेमाल हेलीकॉप्टर, छोटे समुद्री जहाज़ों और ज़मीनी लड़ाई में आसानी से किया जा सकता है। 

अरुंधती भट्टाचार्य

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य को सेल्सफोर्स इंडिया की CEO नियुक्त किया गया है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, अप्रैल 2020 को अरुंधति भट्टाचार्य सेल्सफोर्स इंडिया के चेयरमैन और CEO का पदभार संभालेंगी। सेल्सफोर्स इंडिया कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट (CRM) सॉफ्टवेयर की दुनिया भर की टॉप की कंपनियों में शामिल है। अरुंधति भट्टाचार्य इस समय विप्रो में स्वतंत्र निदेशक के तौर पर भी काम कर रही हैं। अरुंधती भट्टाचार्य का जन्म वर्ष 1956 में कलकत्ता में हुआ था। अरुंधती भट्टाचार्य SBI की पूर्व चेयरपर्सन हैं, इन्होने वर्ष 1977 में प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में भारतीय SBI को जॉइन किया था और उन्हें वर्ष 2013 में SBI का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था।

मुख्यमंत्री एडवोकेट वेलफेयर स्कीम

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वकीलों के लिये ‘मुख्यमंत्री एडवोकेट वेलफेयर स्कीम’ की शुरुआत की है। इस स्कीम के तहत वकीलों के कल्याण के लिये कार्य किया जाएगा। सरकार ने इस स्कीम के लिये कुल 50 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है। इस स्कीम के तहत वही वकील ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे जो दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे हैं, दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत हैं और दिल्ली के मतदाता हैं। आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस स्कीम के तहत वकीलों, उनकी पत्नी और 25 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 5 लाख का ग्रुप मेडी-क्लेम का लाभ मिल सकेगा। साथ ही वकील को 10 लाख रुपए का लाइफ इंश्योरेंस कवरेज भी दिया जाएगा।