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डेली न्यूज़

  • 20 Feb, 2021
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

OTT सेवा प्रदाता बनाम दूरसंचार सेवा प्रदाता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Cellular Operators Association of India- COAI) ने सरकार से आग्रह किया है कि वह व्हाट्सएप जैसे ओवर-द-टॉप (Over-The-Top) सर्विस प्रोवाइडर्स को लाइसेंसिंग व्यवस्था के तहत लाए तथा जब तक ‘समान सेवा’ और ‘समान नियम’ लागू नहीं होते तब तक टेलीकॉम ऑपरेटर्स पर नेट न्यूट्रैलिटी (Net Neutrality) के नियम लागू न किया जाए।

  • सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया का गठन वर्ष 1995 में एक पंजीकृत गैर-सरकारी सोसाइटी के रूप में किया गया था। इस सोसाइटी के प्रमुख सदस्य जैसे- भारती एयरटेल लिमिटेड, वोडाफोन इंडिया लिमिटेड, रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड आदि पूरे देश में कार्यरत हैं।

प्रमुख बिंदु

ओवर-द-टॉप सेवा प्रदाता:

  • ओटीटी द्वारा एक आईपी नेटवर्क जैसे- इंटरनेट, पारंपरिक दूरसंचार ऑपरेटरों (केबल कंपनियों) को दरकिनार कर ऑडियो, वीडियो आदि सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • उदाहरण: स्काइप, वाइबर, व्हाट्सएप, हाइक आदि लोकप्रिय और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली ओटीटी संचार सेवाएँ हैं।

टीएसपी पर ओटीटी सेवाओं का प्रभाव:

  • ओटीटी एप्लीकेशन सक्रिय रूप से अपनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये टीएसपी के बुनियादी ढाँचे का उपयोग करते हैं।
  • कई टेलीकॉम ऑपरेटर्स अपनी सेवाएँ ओटीटी द्वारा दिये जाने के खतरे से परेशान हैं। अनगिनत एप्लीकेशनों को मौजूदा संचार जैसे- एसएमएस आदि के वैकल्पिक स्वरूपों में डिज़ाइन किया गया है।

विनियमन का मुद्दा:

  • लाइसेंसिंग नियम:
    • दूरसंचार ऑपरेटरों को सेवा मानदंडों की गुणवत्ता, खातों की ऑडिट, सेवाओं के लिये स्पेक्ट्रम की खरीद, वस्तु और सेवा कर, लाइसेंस शुल्क तथा स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क, कानूनी अवरोधन एवं निगरानी प्रणाली की सुविधा आदि की आवश्यकता होती है, लेकिन ओटीटी पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती है।
  • UCC विनियमन:
    • दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष TSPs के लिये वर्ष 2007 से लागू अनपेक्षित वाणिज्यिक संचार (Unsolicited Commercial Communications- UCC) विनियमन है।
    • हाल ही में सरकार ने UCC की शिकायतों और वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों से निपटने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (Digital Intelligence Unit) की स्थापना का भी निर्णय लिया है।
    • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा OTT सेवा पर UCC से समझौता करने के लिये एक परामर्श पत्र लाया गया। इसने स्पष्ट किया कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में जब तक इस पर कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक ओटीटी कॉलिंग और मैसेजिंग एप पर कोई नियम नहीं लगाए जाएंगे।
  • नेट तटस्थता नियम:
    • नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत सेवा प्रदाताओं को इंटरनेट सामग्री और सेवाओं के खिलाफ भेदभाव करने से रोकता है।
    • TRAI ने वर्ष 2016 में डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण शुल्कों का निषेध नियम (Prohibition of Discriminatory Tariffs For Data Services Regulations), 2016 को जारी किया।
      • इन विनियमों के अनुसार, सामग्री के आधार पर कोई भी सेवा प्रदाता डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण शुल्क नहीं ले सकता है।
    • TSP नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करते हैं और OTT सेवा प्रदाताओं के राजस्व में हिस्सेदारी प्राप्त किये बिना स्पेक्ट्रम का अधिग्रहण करते हैं।
      • यदि टीएसपी को अंतर मूल्य निर्धारण में भाग लेने की अनुमति नहीं मिलती है तो इनके द्वारा इंटरनेट अवसंरचना में किये जाने वाला निवेश कम हो सकता है।
    • टीएसपी के अनुसार, कुछ वेबसाइटों या एप्लीकेशन को दूसरों की तुलना में उच्च बैंडविड्थ की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये वीडियो वाली वेबसाइटें छोटे मैसेजिंग एप्लीकेशन की तुलना में अधिक बैंडविड्थ का उपयोग करती हैं, जिसके लिये TSPs को नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने तथा अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है।

COAI की मांगें:

  • ट्राई द्वारा जब तक ओटीटी संचार प्रदाताओं के लाइसेंस के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तब तक टीएसपी और ओटीटी के बीच असमानता को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिये।
  • टीएसपी पर कोई भी नई लाइसेंसिंग शर्तें ऐसे समय तक, जिसमें नेट न्यूट्रैलिटी आदि के लिये ट्रैफिक मैनेजमेंट प्रैक्टिस शामिल है, नहीं लगाई जानी चाहिये।

आगे की राह

  • चूँकि टीएसपी और ओटीटी के बीच अंतर्निहित प्रौद्योगिकी, अभिग्रहण, बाज़ार, मूल्य निर्धारण मॉडल, दुर्लभ संसाधन उपयोग और सेवाओं की गुणवत्ता आदि बहुत अलग हैं, जिससे इनके बीच समानता लाने में समय लगेगा। हालाँकि ओटीटी को सेवा की गुणवत्ता के लिये जिम्मेदारी लेनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

प्रतिष्ठा का अधिकार बनाम गरिमा का अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली के एक न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वारा एक पत्रकार के खिलाफ उसके ट्वीट्स को लेकर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए दायर किये गए आपराधिक मानहानि के मुकदमे को खारिज़ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

न्यायालय द्वारा लिया गया संज्ञान:

न्यायालय का निर्णय:

  • महिलाओं के जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा नहीं की जा सकती।
  • प्रतिष्ठा का अधिकार:
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है।
    • इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 499 (आपराधिक मानहानि) का अर्थ भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना नहीं है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न सामाजिक हितों को जनता के साझा मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित करके सेवा प्रदान की जाए
  • जीवन का अधिकार (अनुच्छेद-21):
    • विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।
    • यह हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार:
    • वर्ष 1978 के मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को एक नया आयाम दिया और यह माना कि जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
  • महिला को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।

मानहानि:

क्या है मानहानि?

  • भारत में मानहानि एक सिविल दोष (Civil Wrong) और आपराधिक कृत्य दोनों हो सकते हैं।
    • इन दोनों के मध्य अंतर इनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों में अंतर्निहित है।
    • सिविल दोष के अंतर्गत मुआवज़े के माध्यम से किसी हानि की क्षतिपूर्ति की जाती है और कृत्य में सुधार का प्रयास किया जाता है, जबकि मानहानि के आपराधिक मामलों में किसी गलत कृत्य के लिये अपराधी को दंडित कर दूसरे लोगों को ऐसा न करने के लिये संदेश देने की वकालत की जाती है।

मानहानि संबंधी कानून:

  • भारतीय कानूनों में आपराधिक मानहानि को विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 के तहत अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि नागरिक मानहानि ‘अपकृत्य कानून’ (कानून का एक क्षेत्र जो गलतियों को परिभाषित करने के लिये अन्य कानूनों पर निर्भर नहीं होता है, लेकिन इसे गलत तरीके से परिभाषित करने करने वाले मामलों पर संज्ञान लेता है) पर आधारित होता है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार, जो कोई भी बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति पर कोई लांछन लगाता या प्रकाशित करता है कि उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँचे या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए ऐसे लांछन लगाता या प्रकाशित करता है जिससे उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँचे, तो तत्पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाएगा।

अपवाद:

  • धारा 499 के अनुसार, सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिये अपेक्षित है, किसी ऐसी बात का लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के संबंध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, | यह बात लोक कल्याण के लिये है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न है ।

दंड:

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के लिये दो वर्ष तक का साधारण कारावास और जुर्माना या दोनों को एक साथ लगाने का भी प्रावधान किया गया है

वैधता:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 के सुब्रहमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले में आपराधिक मानहानि कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।

स्रोत- द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण एशिया के साथ सहयोग में बढ़ोतरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया कि भारत समेत दक्षिण एशिया के तमाम देशों को डॉक्टरों और नर्सों के लिये एक विशेष वीज़ा योजना शुरू करनी चाहिये, ताकि स्वास्थ्यकर्मी आपात स्थिति में जल्द-से-जल्द अन्य देशों में यात्रा कर सकें।

  • प्रधानमंत्री द्वारा यह सुझाव ‘कोविड-19 मैनेजमेंट: एक्सपीरियंस, गुड प्रैक्टिसेज़ एंड वे फॉरवर्ड’ विषय पर आयोजित कार्यशाला के दौरान दिया गया, जिसमें पाकिस्तान सहित भारत के सभी पड़ोसी देश शामिल थे।
  • कार्यशाला में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के आठ सदस्यों और मॉरीशस तथा सेशल्स ने हिस्सा लिया।
  • सार्क में निम्नलिखित सदस्य देश शामिल हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।

प्रमुख बिंदु

कार्यशाला में भारत द्वारा प्रस्तावित उपाय:

  • डॉक्टरों और नर्सों के लिये एक विशेष वीज़ा योजना बनाना।
  • विभिन्न देशों के नागरिक उड्डयन मंत्रालयों को चिकित्सा आकस्मिकताओं के लिये एक क्षेत्रीय वायु एम्बुलेंस समझौते पर विचार करना चाहिये।
  • कोरोना वायरस के टीकों की प्रभावशीलता के बारे में आँकड़ों के एकत्रीकरण, संकलन और अध्ययन के लिये एक क्षेत्रीय मंच बनाया जाना चाहिये। 
  • भविष्य में महामारियों को रोकने के लिये प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देते हुए एक क्षेत्रीय नेटवर्क का निर्माण करना।
  • सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों और योजनाओं को साझा करना।
    • भारत की आयुष्मान भारत और जन आरोग्य योजना इस लिहाज़ से उपयोगी केस-स्टडी हो सकती हैं। 

अन्य बिंदु

  • पाकिस्तान जिसने भारत से अभी तक वैक्सीन की मांग नहीं की है, को छोड़कर इस कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सभी देशों ने महामारी के बीच वैक्सीन, दवाओं और उपकरणों की आपूर्ति के लिये भारत को धन्यवाद दिया।
  • दक्षिण एशिया उन पहले क्षेत्रों में से एक है, जिन्होंने कोरोना वायरस को एक खतरे के रूप में मान्यता दी है और उससे लड़ने के लिये प्रतिबद्धता जाहिर की है।
    • हाल ही में दक्षिण एशियाई देशों ने एक ‘कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष’ स्थापित किया है। 
  • यह क्षेत्र कई सामान्य चुनौतियों जैसे- जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक तथा लैंगिक असंतुलन आदि साझा करता है और साथ ही दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक और पारंपरिक जुड़ाव भी है।

महत्त्व

  • इस कार्यशाला के दौरान पाकिस्तान सहित सभी सार्क सदस्यों की भागीदारी ने दक्षिण एशियाई देशों के बीच मौजूद विभिन्न मुद्दों को हल करने और दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) जैसे क्षेत्रीय विकास सहयोग पहल को फिर से शुरू करने का अवसर प्रदान किया है।

सार्क से संबंधित मुद्दे

  • सर्वसम्मति का अभाव
    • सार्क सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय लेना अभी भी काफी चुनौतीपूर्ण विषय है। उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में काठमांडू में आयोजित 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षरित सार्क मोटर वाहन समझौता (MVA) पाकिस्तान की अस्वीकृति के कारण प्रभावी नहीं हो सका था। 
  • देशों के बीच संघर्ष
    • कई छोटे देशों और बाहरी अभिकर्त्ताओं का मानना ​​है कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष ने सार्क की स्थिति को कमज़ोर किया है।
    • पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के साधन के रूप में विकसित करने से इस क्षेत्र की सामान्य गतिविधियों को भी मुश्किल बना दिया है। यही कारण है कि भारत ने उरी आतंकी हमले के बाद वर्ष 2016 में पाकिस्तान में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन से स्वयं को अलग कर लिया था।
    • इसके अलावा डूरंड रेखा को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मौजूद विवाद भी सार्क की मौजूदा स्थिति को प्रभावित कर रहा है।
  • भारत का वर्चस्व
    • सार्क के अन्य देशों की तुलना में भारत की आर्थिक स्थिति के परिणामस्वरूप प्रायः कई आलोचक यह मानते रहे हैं कि भारत इस संगठन में एक रणनीतिक साझेदार के बजाय एक बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है।

आगे की राह

  • भारत को दक्षिण एशियाई देशों के साथ अपने सहयोग में वृद्धि करनी चाहिये, उदाहरण के लिये हाल ही में भारत ने सार्क ‘कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष’ में 10 मिलियन डॉलर का योगदान दिया और सार्क क्षेत्र में विभिन्न देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की है।
  • सार्क के सदस्य देशों के बीच विश्वास निर्माण उपायों (CDM) को बढ़ावा देकर संगठन का पुनरुद्धार करना, भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है, साथ ही ये उपाय ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के माध्यम से चीन द्वारा किये जा रहे क्षेत्रीय रणनीतिक अतिक्रमण की चुनौती से निपटने में भी सहायता करेंगे।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वायु प्रदूषण के कारण आर्थिक क्षति विश्लेषण 2021

चर्चा में क्यों?

ग्रीनपीस दक्षिण पूर्व एशिया (गैर-सरकारी संगठन) द्वारा प्रकाशित ‘वायु प्रदूषण के कारण आर्थिक क्षति का विश्लेषण 2021’ (Cost to Economy Due to Air Pollution Analysis 2021) नामक रिपोर्ट के अनुसार, पीएम 2.5 वायु प्रदूषण वर्ष 2020 में दिल्ली में लगभग 54,000 लोगों की मृत्यु का कारण बना।

पीएम 2.5: यह 2.5 माइक्रोमीटर व्यास से छोटे सूक्ष्म पदार्थ को संदर्भित करता है। यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और दृश्यता को भी कम करता है। यह एक अंतःस्रावी व्यवधान है जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है तथा इस प्रकार यह मधुमेह का कारण भी बन सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय शहरों की स्थिति:
    • दिल्ली:
      • जुलाई 2020 में ग्रीनपीस ने पाया कि अध्ययन में शामिल 28 वैश्विक शहरों में से दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव पड़ा। COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लागू सख्त लॉकडाउन के बावजूद वर्ष 2020 की पहली छमाही में अनुमानित 24,000 लोगों की मृत्यु (प्रदूषण के कारण) हुई।
      • वर्ष 2020 में दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सीमा (10 μg/m3 वार्षिक औसत) से लगभग छह गुना अधिक था।
      • इस दौरान वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक क्षति अनुमानित 8.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो कि दिल्ली के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13% है।
    • मुंबई:
      • वर्ष 2020 में मुंबई में अनुमानित 25,000 असामयिक मौतों (Avoidable Deaths)के लिये पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) के कारण वायु प्रदूषण को उत्तरदायी बताया गया है।
    • अन्य शहर:
      • अन्य शहरों में भी वायु प्रदूषण के कारण हुआ नुकसान उतना ही चिंताजनक है,ये शहर हैं मुंबई, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद और लखनऊ जिन्हें वैश्विक विश्लेषण में शामिल किया गया है।
      • प्रदूषित हवा के कारण बंगलूरू, चेन्नई और हैदराबाद में क्रमशः 12,000, 11,000 और 11,000 असामयिक मौतों का अनुमान है।
  • वैश्विक परिदृश्य:
    • वैश्विक स्तर पर पाँच सबसे अधिक आबादी वाले शहरों - दिल्ली (भारत), मैक्सिको सिटी (मैक्सिको), साओ पाउलो (ब्राज़ील), शंघाई (चीन) और टोक्यो (जापान) में लगभग 1,60,000 लोगों की मृत्यु के लिये पीएम 2.5 को उत्तरदायी बताया गया है।
    • वर्ष 2020 में इस विश्लेषण में शामिल 14 शहरों में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण की अनुमानित आर्थिक क्षति 5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक थी।
    • टोक्यो (जापान):
      • इस विश्लेषण में शामिल शहरों में से वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक अनुमानित वित्तीय क्षति टोक्यो में दर्ज की गई, जहाँ वर्ष 2020 में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण के कारण लगभग 40,000 असामयिक मौतें और 43 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • लॉस एंजेल्स (USA):
      • इस विश्लेषण में शामिल सभी शहरों की तुलना में लॉस एंजेल्स में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण की उच्चतम प्रति व्यक्ति वित्तीय क्षति (लगभग 2,700 अमेरिकी डॉलर प्रति निवासी) दर्ज की गई।
  • अध्ययन में प्रयुक्त संकेतक:
    • पीएम 2.5 मापन:
      • विभिन्न स्थानों से रियल-टाइम ग्राउंड-लेबल PM 2.5 मापन द्वारा आँकड़े एकत्र किये गए और प्राप्त आँकड़ों को IQAir के डेटाबेस में एक साथ जोड़ा गया।
        • IQAir एक वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी है।
      • विलिंग्नेस टू पे:
        • अर्थव्यवस्था पर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों के प्रभाव को दिखाने के लिये ग्रीनपीस द्वारा उपयोग किये जाने वाले दृष्टिकोण को 'विलिंग्नेस-टू-पे' (Willingness To Pay) कहा जाता है - इसकी गणना धन की उस मात्रा के आधार पर की जाती है जिसे लोग ‘जीवन के खोए हुए एक वर्ष या विकलांगता की स्थिति में जिये एक वर्ष के बदले में भुगतान करने को तैयार हों।
      • कॉस्ट एस्टीमेटर:
        • कॉस्ट एस्टीमेटर (Cost Estimator) एक ऑनलाइन टूल है जो विश्व के प्रमुख शहरों में वास्तविक समय में पीएम 2.5 वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसकी आर्थिक क्षति का आकलन करता है। इस आकलन के लिये कॉस्ट एस्टीमेटर को ग्रीनपीस दक्षिण-पूर्व एशिया, IQAir और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के सहयोग से तैनात किया गया था।
  • वायु प्रदूषण की घातक स्थिति:
    • वैश्विक स्तर पर:
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):
        • WHO के अनुसार, विषाक्त हवा अब असामयिक मृत्यु से जुड़ा सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम है, जो प्रति नौ में से एक मृत्यु के लिये उत्तरदायी है।
        • यह प्रतिवर्ष 7 मिलियन लोगों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी है, जो एचआईवी, तपेदिक और मलेरिया से होने वाली मौतों के योग से कहीं अधिक है।
    • विश्व बैंक:
      • विश्व बैंक (World Bank) की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण के कारण होने वाली मौतें और स्वास्थ्य क्षति भी एक बड़ा आर्थिक भार है: वर्ष 2013 में 225 बिलियन अमेरिकी डॉलर की श्रम आय की क्षति हुई या यदि लोगों की देखभाल पर लगे खर्च को जोड़ लिया जाए तो यह हानि बढ़कर 5.11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष (लगभग 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति मिनट) हो जाती है।
    • भारत में प्रदूषण से हुई क्षति:
      • कुल क्षति: भारत में वर्ष 2019 में लंबे समय तक बाहरी और घरेलू (इनडोर) वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधुमेह, फेफड़ों का कैंसर, फेफड़ों के पुराने रोगों आदि के कारण 1.67 मिलियन से अधिक वार्षिक मौतें दर्ज की गईं।
      • शिशु संबंधित डेटा: पार्टिकुलेट मैटर का स्तर बहुत अधिक होने के कारण लगभग 1,16,000 से अधिक भारतीय शिशुओं की मृत्यु में हो गई जो अपने जीवन के पहले माह को भी पार नहीं कर सके।
        • जीवन के पहले माह में शिशु एक सुभेद्य अवस्था में होते हैं और भारत में कई वैज्ञानिक साक्ष्य-समर्थित अध्ययनों से पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान पार्टिकुलेट मैटर युक्त वायु प्रदूषण के संपर्क में आने को कम वज़न वाले और अपरिपक्व शिशु के जन्म से जोड़कर देखा जा सकता है।
  • भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास:
    • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया है। यह वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये राज्य सरकारों का समन्वित प्रयास है और इस क्षेत्र के लिये वायु गुणवत्ता के मापदंडों का निर्धारण करेगा।
    • भारत स्‍टेज मानक/मानदंड: ये वायु प्रदूषण पर निगरानी रखने के लिये सरकार द्वारा जारी उत्सर्जन नियंत्रण मानक हैं।
    • वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड: यह एक राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) आधारित डैशबोर्ड है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी (NAAQS) नेटवर्क के डेटा के आधार पर बनाया गया है, गौरतलब है कि NAAQS को वर्ष 1984-85 में शुरू किया गया था और यह 29 राज्यों एवं 6 केंद्रशासित प्रदेशों के 344 शहरों/ कस्बों को कवर करता है।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): यह देश के 102 शहरों के लिये एक व्यापक अखिल भारतीय वायु प्रदूषण उन्मूलन योजना है, इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया था।
    • राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): यह उन स्वास्थ्य प्रभावों पर केंद्रित है जिन्हें कोई भी व्यक्ति प्रदूषित वायु में साँस लेने के कुछ घंटों या दिनों के भीतर अनुभव कर सकता है।
    • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक: ये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत अधिसूचित विभिन्न प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं।
    • ब्रीद (Breathe): यह नीति आयोग द्वारा वायु प्रदूषण के मुकाबले के लिये 15 पॉइंट एक्शन प्लान है।
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY): इसका उद्देश्य गरीब परिवारों को खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराना और उनके जीवन स्तर में गुणात्मक वृद्धि करना है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नासा का मंगल 2020 मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) का ‘पर्सिवरेंस रोवर (Perseverance Rover) मंगल पर उतरा है।

  • यह ‘मार्स 2020’ मिशन के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक था

प्रमुख बिंदु:

  • ‘मार्स 2020’ मिशन:
    • इस मिशन को मंगल ग्रह के भू-विज्ञान को बेहतर ढंग से समझने तथा जीवन के प्राचीनतम संकेतों की तलाश करने हेतु डिज़ाइन किया गया है
  • उद्देश्य:
    • प्राचीनतम जीवन के साक्ष्यों का पता लगाना। 
    • भविष्य में रोबोट और मानव अन्वेषण हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
  • अवधि: कम-से-कम एक मंगल वर्ष (मंगल ग्रह पर एक वर्ष की अवधि पृथ्वी के 687 दिनों के बराबर होती है)
  • मिशन के विभिन्न चरण:
    • नमूने एकत्रित करना: सिगार के आकार की एक नली में कठोर चट्टानों एवं मिट्टी के नमूनों को एकत्र किया जाएगा। इन नमूनों को एकत्र कर कनस्तरों (टीन का एक छोटा डब्बा) में बंद करके ज़मीन पर लाया जाएगा।
    • नमूने वापस लाना: एक ‘मार्स फैच रोवर’ (जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी द्वारा निर्मित है) मंगल की सतह पर उतरकर तथा घूमकर विभिन्न स्थानों के नमूनों को एकत्र कर उन्हें वापस पृथ्वी पर लाएगा।   
    • स्थानांतरण: इन नमूनों को ‘मार्स एसेंट व्हीकल’ में स्थानांतरित किया जाएगा जो ऑर्बिटर के साथ जुड़ा होगा।
    • वापसी: ऑर्बिटर एकत्रित नमूनों को वापस पृथ्वी पर लाएगा।

पर्सिवरेंस रोवर

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  •  पर्सिवरेंस रोवर के बारे में: 
    • पर्सिवरेंस अत्यधिक उन्नत, महँगी और परिष्कृत चलायमान प्रयोगशाला है जिसे मंगल ग्रह पर भेजा गया है।
    • यह मिशन पिछले मिशनों से भिन्न है क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण चट्टानों और मिट्टी के नमूनों की खुदाई करने एवं उन्हें एकत्रित करने में सक्षम है और इन्हें मंगल की सतह पर एक गुप्त स्थान पर सुरक्षित कर सकता है।
  • प्रक्षेपण: 30 जुलाई, 2020
  • लैंडिग: 18 फरवरी, 2021
  • लैंडिग का स्थान: 
    • जेज़ेरो क्रेटर (एक प्राचीन नदी डेल्टा जिसमें चट्टानें और खनिज विद्यमान हैं तथा जिनका निर्माण केवल पानी में होता हैं)।
  • शक्ति का स्रोत:
    • रोवर में विद्युत आपूर्ति हेतु एक ‘मल्टी-मिशन रेडियोआईसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर’ (Multi-Mission Radioisotope Thermoelectric Generator- MMRTG) का प्रयोग किया गया है जो प्लूटोनियम (प्लूटोनियम डाइऑक्साइड) के प्राकृतिक रेडियोधर्मी क्षय के कारण उत्पन्न गर्मी को बिजली में परिवर्तित करता है।
    • मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइज़ेशन एक्सपेरिमेंट (MOXIE):
      • इसके द्वारा वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग करके ऑक्सीजन उत्पादन करने हेतु विद्युत का उपयोग किया जाएगा।
      • यदि यह उपकरण सही प्रकार से कार्य करने में सफल रहता है तो इसके द्वारा मनुष्यों की दो और महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाएगी जिनमें शामिल हैं: सांँस लेने हेतु ऑक्सीजन और पृथ्वी पर वापस आने हेतु रॉकेट ईंधन।
    • रडार इमेज़र फॉर मार्स’ सबसर्फेस एक्सपेरिमेंट  (RIMFAX):
      • RIMFAX उच्च रिज़ॉल्यूशन मैपिंग (High Resolution Mapping) प्रदान करते हुए मंगल की ऊपरी सतह पर पानी की खोज करेगा।
    • मार्स हेलीकाप्टर: उपकरण: यह रोवर मंगल ग्रह पर विज्ञान तथा नई तकनीक के अभूतपूर्व परीक्षण करने के उद्देश्य से भेजा गया है। इसमें कुल सात उपकरण, दो माइक्रोफोन और 23 कैमरे प्रयुक्त हुए हैं। इस रोवर में प्रयुक्त कुछ महत्त्वपूर्ण उपकरण इस प्रकार हैं:
      • यह परीक्षण हेतु एक छोटा ड्रोन है जो इस बात का पता लगाएगा कि क्या एक हेलीकॉप्टर मंगल के विरल वातावरण में उड़ान भरने में सक्षम है। मंगल ग्रह के वायुमंडल का घनत्व एक हेलीकॉप्टर या विमान के उड़ान भरने के लिये आवश्यक घनत्व से बहुत ही कम है।
      • मास्टकैम-Z:
        • यह पैनोरमिक (Panoramic) और त्रिविमीय चित्रण (Stereoscopic Imaging) क्षमता वाली एक उन्नत कैमरा प्रणाली है जो खनिजों का निर्धारण करने में मदद करेगी।
      • सुपरकैम:
        • यह चित्र लेने, रासायनिक संरचनाओं के विश्लेषण और दूर से ही खनिजों का पता लगाने में सक्षम है।
      • प्लेनेटरी इंस्ट्रूमेंट फॉर एक्स-रे लिथोकैमिस्ट्री (PIXL): 
        • एक ‘एक्स-रे प्रतिदीप्ति स्पेक्ट्रोमीटर’ और ‘उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजर’ पहले से कहीं अधिक विस्तृत रूप से रासायनिक तत्त्वों का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम होगा।
      • स्कैनिंग हैबिटेबल एन्वायरनमेंट्स विद रमन ल्युमिनेसेंस फॉर आर्गेनिकस एंड केमिकल्स (SHERLOC): 
          • स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा ‘फाइन-स्केल इमेजिंग’ प्राप्त करने तथा खनिज और कार्बनिक यौगिकों की माप करने हेतु एक पराबैंगनी (UV) लेज़र का उपयोग किया जाएगा।
          • SHERLOC मंगल की सतह पर उड़ान भरने वाला पहला UV रमन स्पेक्ट्रोमीटर होगा जो पेलोड में अन्य उपकरणों के साथ मापन कार्य करेगा।
      • मार्स  एन्वायरनमेंट डायनिमिक एनालाइज़र (MEDA): 
        • इस सेंसर द्वारा तापमान, हवा की गति, दिशा, दबाव, सापेक्षिक आर्द्रता और धूल के आकार का मापन किया जाएगा।

    मंगल ग्रह:

    आकार और दूरी:

    • यह सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित ग्रह है तथा सौरमंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है।
    • मंगल ग्रह आकार में पृथ्वी का लगभग आधा है।

    पृथ्वी से समानता (कक्षा और घूर्णन):

    • मंगल ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता है तथा अपने अक्ष पर 24.6 घंटे में घूर्णन करता है जो पृथ्वी के एक दिन (23.9 घंटे) के समय के अधिक नज़दीक है।
    • सूर्य की परिक्रमा करते समय मंगल अपने अक्ष पर 25 डिग्री तक झुका रहता है। मंगल का यह अक्षीय झुकाव पृथ्वी के समान होता है, जो कि 23.4 डिग्री पर झुकी होती है।
    • पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम विद्यमान होते हैं, परंतु मंगल ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में मौसम की अवधि लंबी होती है, क्योंकि मंगल की सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण इसका परिक्रमण काल अधिक होता है।
    • मंगल ग्रह पर दिनों को ‘सोल्स’ (सोलर डे- Solar Day) कहते हैं।
    • सतह: मंगल ग्रह की सतह भूरे, सोने और पीले जैसे रंगों की दिखती है। मंगल के लाल दिखने का कारण इसकी चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण, जंग लगना और धूल कणों की उपस्थिति है, इसलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
    • मंगल पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ‘ओलंपस मॉन्स’ स्थित है। यह पृथ्वी के माउंट एवरेस्ट पर्वत से तीन गुना ऊँचा तथा आकार में न्यू मैक्सिको राज्य के समान है।

    वातावरण:

    • मंगल ग्रह पर वातावरण अत्यधिक क्षीण/दुर्बल है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और आर्गन गैसों की अधिकता है।

    मैग्नेटोस्फेयर:

    • अभी तक मंगल पर कोई चुंबकीय क्षेत्र विद्यमान नहीं है, लेकिन इसके दक्षिणी गोलार्द्ध में मार्टियन क्रस्ट का क्षेत्र अत्यधिक चुंबकीय है।

    उपग्रह:  

    • फोबोस और डीमोस मंगल के दो छोटे उपग्रह है।

    पूर्ववर्ती मंगल मिशन: 

    • वर्ष 1971 में सोवियत संघ विश्व का पहला देश बना, जिसने मंगल पर ‘मार्स 3’ (Mars 3) को उतारा।
    • मंगल की सतह तक पहुँचने वाला दूसरा देश अमेरिका है। वर्ष 1976 के बाद से इसने 8 बार सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर लैंडिंग की है, जिनमें वर्ष 2019 में 'इनसाइट' (InSight) की लेंडिंग नवीनतम है।
    • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने ‘मार्स एक्सप्रेस मिशन’ (Mars Express Mission) के माध्यम से मंगल की कक्षा में अपने अंतरिक्षयान को उतारा है।

    भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन  (MOM) या मंगलयान:

    • इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
    • इसे पीएसएलवी सी -25 रॉकेट द्वारा मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना के अध्ययन के साथ-साथ मंगल ग्रह के वातावरण में मीथेन (मंगल पर जीवन का एक संकेतक) की उपस्थिति का पता लगाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।

    मंगल ग्रह से संबंधित लगातार मिशनों के कारण: इसके दो प्राथमिक कारण हैं

    पृथ्वी से समानता:

    • मंगल एक ऐसा ग्रह है जहाँ अतीत में जीवन के विकसित होने के संकेत प्राप्त होते हैं, लगभग 4 बिलियन साल पहले मंगल ग्रह की शुरुआती परिस्थितियाँ पृथ्वी से बहुत मिलती-जुलती थीं।
    • मंगल का वातावरण अत्यधिक सघन है जहाँ पानी की उपस्थिति के साक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं।
    • यदि वास्तव में मंगल ग्रह पर स्थितियाँ पृथ्वी के समान थीं तो इस बात की संभावना बन सकती है कि मंगल ग्रह पर सूक्ष्म स्तर पर ही सही परंतु जीवन विद्यमान रहा होगा।

    अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक उपयुक्त:

    • मंगल एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहाँ मानव दीर्घ अवधि हेतु जा सकता है या निवास कर सकता है। शुक्र और बुध ग्रह का औसत तापमान 400 डिग्री सेल्सियस से अधिक है बाहरी सौरमंडल के सभी ग्रह जो कि बृहस्पति से शुरू होते हैं- सिलिकेट या चट्टान से निर्मित न होकर गैसों से निर्मित हैं जो कि बहुत ठंडे हैं।
    • ध्रुवों पर -125 डिग्री सेल्सियस से लेकर भूमध्य रेखा पर 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की अनुमानित सीमा के साथ मंगल ग्रह तापमान के मामले में तुलनात्मक रूप से अनुकूल है।

    स्रोत: द हिंदू


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