शासन व्यवस्था
सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक
प्रीलिम्स के लियेART, IVF मेन्स के लियेप्रमुख प्रावधान व लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में महिलाओं के कल्याण हेतु एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ‘सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक 2020’ को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
पृष्ठभूमि
- ‘सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक 2020’ महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा एवं संरक्षण के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत किये गए अनेक कानूनों की शृंखला में नवीनतम कदम है।
- इस विधेयक के जरिये राष्ट्रीय बोर्ड, राज्य बोर्ड, नेशनल रजिस्ट्री और राज्य पंजीकरण प्राधिकरण सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी से जुड़े क्लिनिकों एवं सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों का नियमन एवं निगरानी करेंगे।
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology-ART) का चलन काफी तेज़ी से बढ़ा है। प्रतिवर्ष ART केंद्रों की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज करने वाले देशों में भारत भी शामिल है।
- इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In Vitro Fertilization-IVF) सहित सहायक प्रजनन तकनीक ने बाँझपन के शिकार तमाम लोगों में नई उम्मीदें जगा दी हैं, लेकिन इससे जुड़े कई कानूनी, नैतिक और सामाजिक मुद्दे भी सामने आए हैं।
सहायक प्रजनन तकनीक
- सहायक प्रजनन तकनीक का प्रयोग बाँझपन की समस्या के समाधान के लिये किया जाता है। इसमें बाँझपन के ऐसे उपचार शामिल हैं जो महिलाओं के अंडे और पुरुषों के शुक्राणु दोनों का प्रयोग करते हैं।
- इसमें महिलाओं के शरीर से अंडे प्राप्त कर भ्रूण बनाने के लिये शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद भ्रूण को दोबारा महिला के शरीर में डाल दिया जाता है।
- इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, ART का सबसे सामान्य और प्रभावशाली प्रकार है।
प्रमुख बिंदु
- संसद में पारित हो जाने एवं इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद केंद्र सरकार इस अधिनियम के लागू होने की तिथि को अधिसूचित करेगी। इसके पश्चात राष्ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाएगा।
- राष्ट्रीय बोर्ड प्रयोगशाला एवं नैदानिक उपकरणों, क्लिनिकों एवं बैंकों के लिये भौतिक अवसंरचना तथा यहाँ नियुक्त किये जाने वाले विशेषज्ञों हेतु न्यूनतम मानक तय करने के लिये आचार संहिता निर्धारित करेगा, जिसका पालन करना अनिवार्य होगा।
- केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के तीन महीनों के भीतर राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश इसके लिये राज्य बोर्डों और राज्य प्राधिकरणों का गठन करेंगे।
- संबंधित राज्य में क्लिनिकों एवं बैंकों के लिये राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्धारित नीतियों एवं योजनाओं को लागू करने का उत्तरदायित्व राज्य बोर्ड पर होगा।
- विधेयक में केंद्रीय डेटाबेस के रख-रखाव तथा राष्ट्रीय बोर्ड के कामकाज में सहायता के लिये राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण का भी प्रावधान किया गया है।
- विधेयक में उन लोगों के लिये कठोर दंड का भी प्रस्ताव किया गया है, जो लिंग जाँच, मानव भ्रूण अथवा जननकोष की बिक्री का काम करते हैं और इस तरह के गैर-कानूनी कार्यों के लिये संगठन चलाते हैं।
लाभ
- यह देश में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं का नियमन करेगा। जिससे बाँझ दंपत्तियों में ART के अंतर्गत अपनाए जाने वाले नैतिक तौर-तरीकों के प्रति विश्वास पैदा होगा।
- इस सेवा के कानूनी रूप से लागू होने पर भारत वैश्विक प्रजनन उद्योग के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित होगा।
- यह अनैतिक तौर-तरीकों को नियंत्रित कर इसके वाणिज्यीकरण पर रोक लगाएगा।
- ये विधायी उपाय महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को और अधिक सशक्त करेंगे।
स्रोत: PIB
सामाजिक न्याय
बाल शोषण
प्रीलिम्स के लिये:CWC, CHILDLINE India Foundation मेन्स के लिये:बच्चों से जुड़े मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन (CHILDLINE India Foundation-CIF) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, आपातकालीन हेल्पलाइन 1098 पर की गई प्रत्येक दस कॉल में से एक में बच्चों द्वारा जीवित रहने हेतु मदद मांगी गई थी।
चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन:
- यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा चाइल्डलाइन हेल्पलाइन 1098 का प्रबंधन करने के लिये नियुक्त नोडल एजेंसी है।
- यह बच्चों की सुरक्षा में शामिल एजेंसियों का सबसे बड़ा नेटवर्क भी है।
कैसे कार्य करता है CIF फाउंडेशन:
- किसी बच्चे या वयस्क द्वारा हेल्पलाइन के ज़रिये संपर्क करने पर हेल्पलाइन के स्थानीय सहयोगी से संपर्क किया जाता है तथा बच्चे के खतरे की स्थिति को देखते हुए स्थानीय सहयोगी उससे संपर्क करता है। यह कार्य 60 मिनट के भीतर कर लिया जाता है।
- इसके तुरंत बाद बच्चे को बचाकर खुले आश्रय (Open Shelter) में ले जाया जाता है और 24 घंटे के भीतर बाल CWC के सामने ले जाया जाता है।
- इसके बाद CWC के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई की जाती है, जैसे- एफआईआर दर्ज करना, बच्चे को अस्पताल भेजना, बाल देखभाल संस्था में भेजना आदि।
- संस्था का अंतिम उद्देश्य बच्चे को फिर से उसके परिवार से मिलाना है, या दीर्घकालिक पुनर्वास सुनिश्चित करना है।
हेल्पलाइन 1098:
यह बच्चों की मदद के लिये नि: शुल्क आपातकालीन फोन सेवा है।
मुख्य बिंदु:
इन आँकड़ों का संकलन CIF फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2018-2019 की अवधि के दौरान किया गया।
कुल मामलों की संख्या:
- हेल्पलाइन को कुल 62 लाख कॉल प्राप्त हुए जिनके आधार पर कुल 3 लाख मामले दर्ज़ करवाए गए।
- दुर्व्यवहार संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये सबसे ज़्यादा 53,696 फोन कॉल किये गए थे जिनमें से 6,278 फोन कॉल में लोगों द्वारा तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई थी।
- दुर्व्यवहार के शिकार बच्चों की प्रकृति के विश्लेषण से पता चलता है कि 37% शिकायतें बाल विवाह, 27% शारीरिक शोषण़, 13% यौन शोषण तथा शेष 23% ने भावनात्मक, शारीरिक, घरेलू एवं साइबर अपराध से संबंधित थीं।
- कुल दर्ज़ मामलों की प्रकृति इस प्रकार है-
- दुर्व्यवहार संबंधी 17%
- बाल श्रम से संबंधित 13%
- शिक्षा संबंधी 12%
- भागने संबंधी 11%
- लापता बच्चों संबंधी 11% मामले थे।
पड़ोसी मुख्यतः दोषी:
- दुर्व्यवहार करने वालों की प्रोफाइल की जाँच करने के लिये डेटा को एकत्रित किया गया जिससे पता चला है कि यौन शोषण के कुल 8,000 मामलों की स्थिति इस प्रकार है-
- 35% पड़ोसियों द्वारा
- 25% अनजान लोगों द्वारा
- 11% परिवार के सदस्यों द्वारा
- शेष 29% अपराधी मित्र, रिश्तेदार, शिक्षक, संस्थागत कर्मचारी, अस्पताल के कर्मचारी, पुलिस और सौतेले माता-पिता थे।
आँकड़ों से जुड़े अन्य पक्ष:
- यौन शोषण से बचने वालों में से 80% लड़कियाँ थीं।
- हेल्पलाइन पर कॉल डायल करने वाले बच्चों ने भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, व्यसन, परिवार से संबंधित मुद्दों में भी हस्तक्षेप की मांग रखी।
- अधिकांश मामलों (33%) में बच्चों को मौजूदा व्यवस्था में सहायता प्रदान की जा सकती थी, जबकि 12% मामलों में बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee-CWC) तथा 13% मामलों में पुलिस के हस्तक्षेप की आवश्यकता थी।
बाल कल्याण समिति:
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 जिसे किशोर न्याय (जेजे) अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है, प्रत्येक ज़िले में बाल कल्याण समिति के गठन का प्रावधान करता है।
- जिसका कार्य बच्चों को संभालने में अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार के नियम के उल्लंघन पर संज्ञान लेना है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-2
प्रीलिम्स के लिये:स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-2 मेन्स के लिये:स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य और लक्ष्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) [Swachh Bharat Mission-Grameen] के दूसरे चरण को वर्ष 2024-25 तक के लिये मंज़ूरी दे दी है।
मुख्य बिंदु:
- स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक की अवधि के लिये 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक मिशन के रूप में कार्यान्वित किया जाएगा।
- केंद्र सरकार द्वारा यह वित्तपोषण विभिन्न विभागों के आपसी तालमेल के माध्यम से किया जाएगा।
कैसे होगा वित्तपोषण?
- इस कार्यक्रम के लिये सरकार द्वारा आवंटित 1,40,881 करोड़ रुपए में से 52,497 करोड़ रुपए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के बजट में से आवंटित किये जाएंगे।
- शेष धनराशि को 15वें वित्त आयोग को जारी फंड के माध्यम से तथा मनरेगा और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (Solid and Liquid Waste Management- SLWM) के राजस्व सृजन मॉडलों के तहत जारी किये जाने वाले फंड से जुटाया जाएगा।
कार्यक्रम का क्रियान्वयन:
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत ओडीएफ प्लस पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही खुले में शौच मुक्त अभियान को जारी रखा जाएगा तथा ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
- ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की निगरानी निम्नलिखित चार संकेतकों के आधार पर की जाएगी-
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन
- जैव अपघटित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (जिसमें पशु अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है)
- धूसर जल प्रबंधन
- मलयुक्त कीचड़ प्रबंधन
- इस कार्यक्रम में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर व्यक्ति शौचालय का इस्तेमाल करे।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिये मौजूदा मानदंडों के अनुसार नए पात्र परिवारों को 12,000 रुपए की राशि प्रदान करने का प्रावधान जारी रहेगा।
- ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन हेतु वित्तपोषण मानदंडों को युक्तिसंगत बनाया गया है और घरों की संख्या संबंधी प्रावधान को प्रति व्यक्ति आय से बदल दिया गया है।
- ग्राम पंचायतों की ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक स्वच्छता परिसर के निर्माण के लिये वित्तीय सहायता को बढ़ाकर 2 लाख से 3 लाख रुपए कर दिया गया है।
- ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तहत बुनियादी ढाँचों जैसे कि खाद के गड्ढे, सोखने वाले गड्ढे, अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब, शोधन संयंत्र आदि का भी निर्माण किया जाएगा।
- स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के इस चरण में घरेलू शौचालय एवं सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से रोज़गार सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करना जारी रहेगा।
कार्यान्वयन में केंद्र और राज्यों का हिस्सा:
- इस कार्यक्रम का परिचालन दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्यों/संघ शासित प्रदेशों द्वारा केंद्र के साथ संयुक्त रूप से किया जाएगा।
- केंद्र और राज्यों के बीच सभी घटकों के लिये फंड शेयरिंग का अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और जम्मू एवं कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100:0 होगा।
मिशन का उद्देश्य तथा पृष्ठभूमि:
- भारत में 2 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की शुरुआत के समय ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 38.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी।
- इस मिशन के अंतर्गत 10 करोड़ से ज़्यादा व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया जिसके परिमाणस्वरूप सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों ने स्वयं को 2 अक्तूबर 2019 को ओडीएफ घोषित कर दिया।
- पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने सभी राज्यों को यह सलाह दी है कि वे इस बात की पुनः पुष्टि कर लें कि ऐसा कोई ग्रामीण घर न हो, जो शौचालय का उपयोग नहीं कर पा रहा हो और यह सुनिश्चित करने के दौरान अगर ऐसे किसी घर की पहचान होती हो तो उसको व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के निर्माण के लिये ज़रूरी सहायता प्रदान की जाए ताकि इस कार्यक्रम के अंतर्गत कोई भी घर न छूटे।
आगे की राह:
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-2 के लिये मंत्रिमंडल का अनुमोदन प्राप्त होने से ग्रामीण भारत को ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौती का प्रभावी रूप से सामना करने और देश में ग्रामीणों के स्वास्थ्य में सुधार करने में सहायता मिलेगी।
स्रोत-पीआईबी
कृषि
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
प्रीलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, आर्थिक सर्वेक्षण में इससे संबद्ध पक्ष मेन्स के लिये:फसल सुरक्षा संबंधी मुद्दे, किसानों की आय को दोगुना करने के संदर्भ में इसका प्रयोग आदि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फसल बीमा योजनाओं को नवीन सुधारों के साथ पुन: प्रारंभ करने की मंज़ूरी दी है।
मुख्य बिंदु:
- ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana-PMFBY) और ‘पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना’ (Restructured Weather Based Crop Insurance Scheme-RWBCIS) दोनों में सुधार किये गए हैं।
- इन सुधारों का उद्देश्य फसल बीमा योजनाओं के कार्यान्वयन में आने वाली मौजूदा चुनौतियों का समाधान करना है।
- केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर और सभी हितधारकों के इनपुट के आधार पर इन योजनाओं में बदलाव किये हैं।
निम्नलिखित मापदंडों/प्रावधानों को संशोधित करने का प्रस्ताव:
- फसल बीमा योजनाओं की मौजूदा सब्सिडी की प्रीमियम दर को (वर्ष 2020 के खरीफ फसल से) 50% से घटाकर सिंचित क्षेत्रों में 25% और असिंचित क्षेत्रों के लिये 30% तक कर दिया जाएगा।
- मौजूदा फसल ऋण वाले किसानों सहित सभी किसानों के लिये इन उपर्युक्त योजनाओं में नामांकन को स्वैच्छिक कर दिया है, जबकि 2016 में जब PMFBY योजना प्रारंभ की गई थी तब सभी फसल ऋण धारकों के लिये इस योजना के तहत बीमा कवर हेतु नामांकन करवाना अनिवार्य था।
योजनाओं में अन्य बदलाव:
- बीमा कंपनियों इन योजनाओं में केवल तीन वर्ष तक व्यवसाय कर सकेगी।
- राज्यों/संघशासित राज्यों को अतिरिक्त जोखिम कवर/सुविधाओं के चयन का विकल्प प्रदान करने के साथ ही योजना को लागू करने में लचीलापन प्रदान किया जाएगा।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये प्रीमियम सब्सिडी दर को 90% तक बढ़ाया जाएगा।
- योजना के लिये आवंटित कुल राशि का कम-से-कम 3% खर्च प्रशासनिक कार्यों पर किया जाएगा।
बदलाव का उद्देश्य:
- किसान बेहतर तरीके से कृषि उत्पादन जोखिम का प्रबंधन करने और कृषि आय को स्थिर करने में सफल होंगे।
- इन बदलाओं के बाद उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में बीमा कवरेज बढे़गा, जिससे इन राज्यों के किसान बेहतर तरीके से कृषि जोखिम का प्रबंधन कर सकेंगे।
- इन परिवर्तनों के बाद त्वरित और सटीक उपज अनुमान प्राप्त करना संभव हो पाएगा जो बीमा दावों के निपटान में मदद करेगा।
- उपर्युक्त दोनों योजनाओं में नामांकित 58% किसान ऐसे हैं जिन्हें अब बीमा कवर नामांकन के लिये बाध्य नहीं होना पड़ेगा।
सुधारों का संभावित प्रभाव:
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार PMFBY योजना के तहत फसल बीमा कवरेज केवल 30% है तथा इसके तहत नामांकित किसानों की इस संख्या में नवीन सुधारों के बाद और भी कमी आ सकती है।
- वर्तमान में केंद्र और राज्य के प्रीमियम योगदान का अनुपात 50:50 है, अत: इन सुधारों के बाद राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
योजनाओं के साथ जुड़ी समस्याएँ:
- विभिन्न हितधारकों का आरोप है कि योजना का अधिकांश लाभ निजी बीमा कंपनियों को प्राप्त हुआ है, किसानों को इसका बहुत कम लाभ मिला है।
- कुछ बीमा कंपनियाँ यथा- आईसीआईसीआई लोम्बार्ड (ICICI Lombard), टाटा एआईजी (Tata AIG) सहित कई प्रमुख बीमा कंपनियाँ वर्ष 2019-20 में योजना से बाहर हो गई थीं। इन कंपनियों का कहना था कि उच्च फसल बीमा दावों के अनुपात की वजह से उनको काफी नुकसान हो रहा था।
- पंजाब और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने पहले ही इस योजना में भाग लेने से इनकार कर दिया है।
केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि फसल बीमा योजनाओं का अंतिम उद्देश्य किसानों की आय को दोगुना करना होना चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
‘वन हेल्थ’ संबंधी अवधारणा
प्रीलिम्स के लियेज़ूनोटिक रोग, वन हेल्थ माॅडल मेन्स के लियेज़ूनोटिक रोगों के उपचार में इसकी भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वास्थ्य संबंधी एक सम्मेलन में परिचर्चा के दौरान स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ‘वन हेल्थ’ संबंधी अवधारणा की आवश्यकता पर बल दिया और इस संबंध में एक उभयनिष्ठ स्वास्थ्य माॅडल बनाने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि वन हेल्थ संबंधी कार्यक्रम ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic Disease) की घटनाओं को कम कर सकता है।
- विभिन्न शोधों से ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि मानव को प्रभावित करने वाली अधिकांश संक्रामक बीमारियाँ ज़ूनोटिक प्रवृत्ति की होती हैं।
- वन हेल्थ की अवधारणा को प्रभावी रूप से COVID-19 जैसे उभरते ज़ूनोटिक रोगों की घटनाओं को कम करने के लिये लागू किया जा सकता है।
- वन हेल्थ संबंधी अवधारणा स्थानीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहे विभिन्न विषयों को सामूहिक रूप से संबोधित कर सकता है।
- शोध के अनुसार, मनुष्यों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में से 65% से अधिक रोगों की उत्पत्ति के मुख्य स्रोत जानवर हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार, यदि रोग के कारणों की वैज्ञानिक जाँच के दौरान अन्य विषयों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों को भी शामिल किया जाए तो जाँच के परिणामों की स्पष्ट पुष्टि हो सकती है।
- वन हेल्थ माॅडल (One Health Model) के सफल क्रियान्वयन के लिये एक टास्क फोर्स की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।
वन हेल्थ माॅडल
- यह एक ऐसा समन्वित माॅडल है जिसमें पर्यावरण स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य तथा मानव स्वास्थ्य का सामूहिक रूप से संरक्षण किया जाता है।
- यह मॉडल महामारी विज्ञान पर अनुसंधान, उसके निदान और नियंत्रण के लिये वैश्विक स्तर पर स्वीकृत मॉडल है।
- वन हेल्थ मॉडल, रोग नियंत्रण में अंतःविषयक दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान करता है ताकि उभरते हुए या मौजूदा ज़ूनोटिक रोगों को नियंत्रित किया जा सके।
- इस मॉडल में सटीक परिणामों के लिये स्वास्थ्य विश्लेषण और डेटा प्रबंधन उपकरण का उपयोग किया जाता है।
- वन हेल्थ मॉडल इन सभी मुद्दों को रणनीतिक रूप से संबोधित करेगा और विस्तृत अपडेट प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा।
ज़ूनोटिक रोग
- पशुओं से मनुष्य में फैलने वाली बीमारियों को ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है। विशेषज्ञ इसे ज़ूनोटिक (जीव-जंतुओं से मनुष्यों में फैलने वाला) संक्रमण का नाम देते हैं।
- विश्व भर में इस प्रकार की लगभग 150 बीमारियाँ हैं। इनमें रेबीज़, ब्रूसेलोसिस, क्यूटेनियस लिसमैनियसिस, प्लेग, टी.बी., टिक पैरालाइसिस, गोलकृमि, साल्मोनिलोसिस जैसी बीमारियाँ शामिल हैं।
- प्रतिवर्ष 6 जुलाई को इन रोगों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिये विश्व ज़ूनोटिक दिवस मनाया जाता है।
टास्क फोर्स की आवश्यकता
- चिकित्सा, पशु चिकित्सा, पैरामेडिकल क्षेत्र और जैव विज्ञान के शोधकर्त्ताओं ने एक-दूसरे को दोष देने की बजाय मुद्दों को सुलझाने के लिये एक टास्क फोर्स के गठन की सिफारिश की है।
- स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा, कृषि और जीवन विज्ञान अनुसंधान संस्थान और विश्वविद्यालय इसके गठन में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
आगे की राह
- हमें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में गिरावट को देखते हुए आने वाले दिनों में इस तरह के संक्रमणों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
- सभी विकासशील देशों को एक स्थायी रोग नियंत्रण प्रणाली विकसित करने के लिये ‘वन हेल्थ रिसर्च’ को बढ़ावा देने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
सड़क सुरक्षा पर उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:सड़क सुरक्षा पर उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन, ब्रासीलिया घोषणा मेन्स के लिये:सड़क सुरक्षा से संबंधित मुद्दे, सड़क दुर्घटना को कम करने के लिये किये गए उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्टॉकहोम में सड़क सुरक्षा पर तीसरे उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री द्वारा किया गया।
- इसके अतिरिक्त केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री की स्टॉकहोम यात्रा के दौरान स्वीडन-भारत परिवहन सुरक्षा और नवाचार भागीदारी पर बैठक भी आयोजित की गई।
- इसके पहले वर्ष 2015 में “ट्रैफिक सुरक्षा: परिणाम का समय” विषय पर दूसरे उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
सम्मेलन से संबंधित मुख्य बिंदु:
- इस सम्मेलन का उद्देश्य सड़क सुरक्षा के संबंध में तय वैश्विक लक्ष्य- 2030 को प्राप्त करना है।
- दो दिवसीय इस सम्मेलन का मुख्य एजेंडा सड़क सुरक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रमुखता देना तथा सुरक्षित सड़कों के प्रति वैश्विक समुदाय की प्रतिबद्धता को पुनः दोहराना है।
- सम्मेलन में सदस्य देशों के प्रतिनिधि सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य- 2030 को प्राप्त करने के लिये रोडमैप तैयार करेंगे।
- इस सम्मेलन में विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य एजेंसियाँ विभिन्न संस्थानों की क्षमताओं को मज़बूत करने, जागरूकता बढ़ाने और सुरक्षित सड़कों के लिये उनके डिज़ाइन में सुधार लाने हेतु सक्रिय सहयोग कर रही हैं।
- सम्मेलन का एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण राष्ट्रों द्वारा विशेषज्ञताओं को साझा करना है। इस सम्मेलन में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सड़क सुरक्षा से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने पर ज़ोर दिया गया।
सम्मेलन के मायने
- सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के बीच आपसी विमर्श एवं सहयोग द्वारा सड़क दुर्घटना से संबंधित घटनाओं को रोका जा सकता है।
- यह सम्मेलन सभी देशों को सड़क सुरक्षा से संबंधित रणनीतियाँ बनाने के लिये प्रेरित करेगा।
सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में शहरीकरण की तीव्र दर, सुरक्षा उपायों का अभाव, नियमों को लागू करने में विलंब, नशीली दवाओं एवं शराब का सेवन कर वाहन चलाना, तेज़ गति से वाहन चलाते समय हेल्मेट और सीट-बेल्ट न पहनना आदि हैं।
सड़क सुरक्षा की दिशा में उठाए गए कदम
- वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिये दूसरे उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन में ब्रासीलिया घोषणा पेश की गई।
- वर्ष 2015 में भारत ब्रासीलिया सड़क सुरक्षा घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता बन गया, जिसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- भारत में सड़क सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सड़क सुरक्षा सप्ताह का आयोजन किया जाता है। ध्यातव्य है कि इस वर्ष 11 जनवरी से 17 जनवरी, 2020 तक आयोजित इस पहल की थीम “युवाओं के माध्यम से परिवर्तन लाना” है।
- इसके अतिरिक्त भारत में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के उद्देश्य से ट्रैफिक नियमों को कठोर बनाया गया है।
आगे की राह
- सड़क सुरक्षा के संदर्भ में जागरूकता को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
- सड़क सुरक्षा के को लेकर वैश्विक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है जिसमें देश आपस में तकनीक, संसाधन एवं अन्य सहायता के माध्यम से सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला सकते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
टैक्स हैवन देश
प्रीलिम्स के लिये:टैक्स हैवन, मनी लॉड्रिंग, DTAA, BEPS मेन्स के लिये:टैक्स हैवन का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, कर चोरी से संबंधित मुद्दे, विभिन्न आर्थिक अपराध से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय यूनियन ने विभिन्न देशों को टैक्स हैवन के रूप में ब्लैक लिस्ट में डाल दिया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- यूरोपियन यूनियन ने पनामा, सेशेल्स, केमैन आईलैंड और पलाऊ को टैक्स हैवन देशों के रूप में ब्लैक लिस्ट में डाला है, जबकि तुर्की को ब्लैक लिस्टेड होने से बचने के लिये कुछ समय दिया है।
टैक्स हैवन से आशय
- टैक्स हेवन (Tax Haven) देश उन्हें कहा जाता है जहाँ अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम कर लगता है या बिलकुल कर नहीं लगता। गौरतलब है कि ये ऐसे देश होते हैं जो विदेशी नागरिकों, निवेशकों एवं उद्यमियों को यह सुविधा प्रदान करते हैं कि वे उस देश में रहकर जो व्यवसाय या निवेश करेंगे या वहाँ किसी उद्यम की स्थापना करेंगे तो उस पर उनको कर नहीं देना होगा या कर की दरें बहुत ही कम होंगी।
- ऐसे देश टैक्स में किसी प्रकार की पारदर्शिता नहीं रखते न ही किसी प्रकार की वित्तीय जानकारी को साझा करते हैं। ये देश उन लोगों के लिये स्वर्ग (हैवन) के समान हैं, जो टैक्स चोरी करके पैसे इन देशों में जमा कर देते हैं।
- ऐसे देशों में पैसे जमा करने पर वे पैसे जमा करने वाले व्यक्ति या संस्था के बारे में कुछ भी नहीं पूछते। यही कारण है कि टैक्स चोरों के लिये ऐसे देश स्वर्ग जैसे होते हैं, जो अपने देश से पैसे लाकर इन देशों में काले धन के रूप में जमा कर देते हैं।
- मॉरीशस, साइप्रस और पनामा जैसे देश अपने यहाँ निवेशित पूंजी से प्राप्त लाभ पर किसी प्रकार का कर नहीं लगाते हैं।
टैक्स हैवन का विश्व पर प्रभाव
- नकारात्मक प्रभाव
- टैक्स हैवन से वैश्विक स्तर पर कर चोरी को बढ़ावा मिलता है जिससे वैश्विक स्तर पर काले धन की समस्या में लगातार वृद्धि होती है।
- टैक्स हैवन के कारण घरेलू टैक्स संग्रहण पर प्रभाव पड़ता है, अर्थात् कर अपवंचन में वृद्धि होती है जिससे संबंधित देश के राजस्व संग्रह में कमी आती है। साथ ही वित्त का देश से बाहर की ओर प्रवाह बढ़ता है जिससे देश में वित्तीय अस्थिरता एवं वित्तीय नियंत्रण में कमी जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं और उस देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
- टैक्स हैवन में टैक्स की दरों के कम या नगण्य होने के कारण शेल कंपनियों को बढ़ावा मिलता है जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इसके कारण वैश्विक स्तर पर मनी लॉड्रिंग, राउंड ट्रिपिंग जैसे आर्थिक अपराधों को बढ़ावा मिलता है। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता की कमी देखि जाती है।
- सकारात्मक प्रभाव
- टैक्स हैवन के कारण वैश्विक स्तर पर टैक्स प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हो सकती है जिससे बड़े विकसित एवं विकासशील देशों में निवेशकों को आकर्षित करने हेतु कर की दर कम की जा सकती है और निवेशकों को कर की कम दरों का लाभ प्राप्त हो सकता है।
ध्यातव्य है कि टैक्स हैवन देश विभिन्न देशों की घरेलू अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ी समस्या बन चुके हैं, इसलिये यदि इनके कारण कोई देश अपने कर की दरों में कमी कर भी लेता है तो इसके नकारात्मक प्रभावों की तुलना में यह लाभ अत्यंत नगण्य होगा।
टैक्स चोरी को रोकने से संबंधित वैश्विक प्रयास
- टैक्स चोरी को रोकने के लिये एक कॉमन रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड (Common Reporting Standard- CRS) विकसित किया गया है जो स्वचालित रूप से वित्तीय सूचनाओं के सीमा-पार आदान-प्रदान एवं विनियमन से संबंधित एक नियम है ताकि कर अधिकारियों को अपने करदाताओं की ऑफशोर होल्डिंग (Offshore Holdings) को ट्रैक करने में मदद मिल सके।
- OECD द्वारा वैश्विक स्तर पर कर अपवंचन को रोकने के लिये आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (Base Erosion and Profit Shifting- BEPS) रणनीति को विकसित किया गया है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य कंपनियों को अपने लाभ को देश से बाहर ले जाने और देश की सरकार को कर राजस्व से वंचित करने से रोकना है।
- इसके अतिरिक्त भारत द्वारा देश में कर चोरी को रोकने के लिये विभिन्न देशों के साथ किये गए दोहरे कराधान अपवंचन समझौतों (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA) में संशोधन किये गए हैं।
आगे की राह:
- वैश्विक स्तर पर सभी देशों को मिलकर टैक्स चोरी, मनी लॉड्रिंग, राउंड ट्रिपिंग और हवाला जैसे आर्थिक अपराधों से निपटने का प्रयास करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कर चोरी से संबंधित कड़े कानून बनाए जाने चाहिये।
- लोगों को उनके कर दायित्वों के प्रति जागरूक किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अधिकार प्राप्त ‘प्रौद्योगिकी समूह”
प्रीलिम्स के लिये:प्रौद्योगिकी समूह क्या है, इसके कार्य एवं संबंधित तकनीकी पक्ष मेन्स के लिये:प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, सरकार द्वारा उठाए कदम |
चर्चा में क्यों?
19 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक अधिकार प्राप्त ‘प्रौद्योगिकी समूह’ के गठन की मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- मंत्रिमंडल ने भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में 12 सदस्य वाले प्रौद्योगिकी समूह के गठन को मंज़ूरी दी है।
- इस समूह को नवीनतम प्रौद्योगिकियों के बारे में समय पर नीतिगत सलाह देना, प्रौद्योगिकी और प्रौद्योगिकी उत्पादों की मैपिंग करना, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और सरकारी अनुसंधान एवं विकास संगठनों में विकसित प्रौद्योगिकियों के दोहरे उपयोग का वाणिज्यीकरण, चुनिंदा प्रमुख प्रौद्योगिकियों के लिये स्वदेशी रोड मैप विकसित करना और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के लिये उचित अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों का चयन करने का अधिकार प्राप्त है।
कार्य
यह प्रौद्योगिकी समूह निम्न कार्य करेगा:
- प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्त्ता के लिये विकसित की जाने वाली प्रौद्योगिकी और प्रौद्योगिकी खरीददारी रणनीति पर संभावित सर्वश्रेष्ठ सलाह देना।
- नीतिगत पहलों और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के उपयोग के बारे में इन-हाउस विशेषज्ञता विकसित करना।
- सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संगठनों में विकसित/विकसित की जा रही सार्वजनिक क्षेत्र प्रौद्योगिकी की निरंतरता सुनिश्चित करना।
कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य
इस प्रौद्योगिकी समूह के कार्य के तीन स्तंभ इस प्रकार हैं:
- पूंजीगत सहायता,
- खरीदारी सहायता और
- अनुसंधान एवं विकास प्रस्ताव पर मदद करना।
प्रौद्योगिकी समूह निम्नलिखित कार्य सुनिश्चित करेगाः
- कि भारत के पास आर्थिक विकास और सभी क्षेत्रों में भारतीय उद्योग के सतत् विकास के लिये नवीनतम तकनीकों के प्रभावी, सुरक्षित और संदर्भ के हिसाब से उपयोग करने के लिये आवश्यक नीतियाँ और रणनीतियाँ हों।
- प्राथमिकताओं के आधार पर सरकार को सलाह देना और सभी क्षेत्रों में उभरती प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान की रणनीतियाँ तैयार करना।
- देश भर में प्रौद्योगिकियों के अद्यतन नक्शे, इसके मौजूदा उत्पादों और विकसित की जा रही तकनीकों का रखरखाव करना।
- चयनित महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये स्वदेशीकरण रोडमैप विकसित करना।
- सरकार को इसके प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्त्ता और खरीद रणनीति पर सलाह देना।
- सभी मंत्रालयों और विभागों के साथ-साथ राज्य सरकारों को विज्ञान एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा नीति पर विशेषज्ञता विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करना। इसके लिये क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण को विकसित करने पर भी बल देना।
- विश्वविद्यालयों और निजी कंपनियों के साथ मिलकर सभी क्षेत्रों में सहयोग एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों/प्रयोगशालाओं में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रौद्योगिकी की स्थिरता के लिये नीतियाँ तैयार करना।
- अनुसंधान एवं विकास के लिये प्रस्तावों के पुनरीक्षण में लागू होने वाली सामान्य शब्दावली और मानक तैयार करना।
पृष्ठभूमि
प्रौद्योगिकी क्षेत्र में पाँच महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बल दिये जाने की आवश्यकता होती हैं:
- प्रौद्योगिकी के विकास के लिये साइलो-केंद्रित दृष्टिकोण।
- प्रौद्योगिकी मानक विकसित या लागू नहीं किये जाने से उच्च मानक से कम औद्योगिक विकास।
- दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों का पूरी तरह व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो पाना।
- अनुसंधान और विकास कार्यक्रम जिनका प्रौद्योगिकी विकास में पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया।
- समाज और उद्योग में अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के मानचित्रण की आवश्यकता।
वस्तुतः इस संदर्भ में प्रौद्योगिकी समूह का गठन उपरोक्त समस्याओं को दूर करने का एक प्रयास है।
स्रोत: pib
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत के पक्षियों की स्थिति: 2020 रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 रिपोर्ट से संबंधित तथ्य मेन्स के लिये:भारत में पक्षियों की आबादी में कमी और इसके कारण |
चर्चा में क्यों?
गुजरात के गांधीनगर में चल रहे ‘प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के पार्टियों के 13वें अभिसमय’ (United Nations 13th Conference of the Parties to the Convention on Migratory Species) में स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 (State of India’s Birds- SoIB) नामक रिपोर्ट जारी की गई है।
प्रमुख बिंदु
- इस रिपोर्ट में पक्षियों की 867 प्रजातियों को शामिल किया गया जिनका विश्लेषण पक्षी प्रेमियों द्वारा ऑनलाइन मंच, ई-बर्ड (eBird) पर अपलोड किये गए डेटा की मदद से किया गया।
- लगभग 867 भारतीय प्रजातियों का यह विश्लेषण स्पष्ट करता है कि समग्र रूप से पक्षियों की संख्या में कमी आ रही है। उल्लेखनीय है कि भारत में अब तक पक्षियों की कुल 1,333 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
- भारत में पक्षियों की कुल आबादी के पाँचवें हिस्से को 25 वर्षों में दीर्घकालिक गिरावट का सामना करना पड़ा है।
- हालिया वार्षिक रुझान कई सामान्य पक्षियों की आबादी में 80% तक की कमी की ओर इंगित करते हैं।
- मुख्य रूप से मानव निवास क्षेत्रों में जीवित रहने की उनकी क्षमता के कारण 126 प्रजातियों की संख्या में वृद्धि की संभावना है। इसमें मोर, घरेलू गौरैया, एशियाई कोयल, रोज़-रिंग पाराकेट और आम टेलोरबर्ड शामिल हैं।
- आवास, आहार, प्रवासी स्थिति और स्थानिकता (Endemicity) के विश्लेषण से पता चलता है कि रैप्टर (चील, बाज आदि) की संख्या में गिरावट आ रही है।
- प्रवासी तटीय तथा कुछ विशेष आवासों में रहने वाले पक्षी पिछले दशकों में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
- घास के मैदानों, स्क्रबलैंड और वेटलैंड में रहने वाले पक्षियों की प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई है।
- पश्चिमी घाट में भी पक्षियों की संख्या में भी वर्ष 2000 के बाद से लगभग 75 प्रतिशत की गिरावट आई है। गौरतलब है कि पश्चिमी घाट को दुनिया की सबसे अग्रणी जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक माना जाता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में गौरैया की आबादी में लंबे समय से गिरावट दर्ज़ की जा रही थी किंतु इनकी संख्या वर्तमान में स्थिर बनी हुई है। हालाँकि मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरु, हैदराबाद, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में यह अब भी दुर्लभ हैं।
संभावित कारण
- गौरैया की संख्या में कमी के संभावित कारणों में आहार और आवास, मोबाइल फोन टावर्स के रेडिएशन जैसे कारक शामिल हैं। हालाँकि ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि मोबाइल फोन टावर्स के रेडिएशन का इनकी संख्या पर कोई प्रभाव पड़ता है।
- निवास स्थान की क्षति, विषाक्त पदार्थों की व्यापक उपस्थिति तथा शिकार इनकी कमी के प्रमुख कारण बताए गए हैं। लेकिन गिरावट के कारणों को इंगित करने के लिये लक्षित अनुसंधान की आवश्यकता है।
हाई कंज़र्वेशन कंसर्न
- रिपोर्ट के अनुसार, पक्षियों की 101 प्रजातियों को हाई कंज़र्वेशन कंसर्न (High Conservation Concern) नामक श्रेणी में रखा गया है।
- हाई कंजर्वेशन कंसर्न सूची में शामिल रूफस-फ्रंटेड प्रिंसिया, नीलगिरि थ्रश, नीलगिरि पिपिट और भारतीय गिद्ध की आबादी में वर्तमान में गिरावट की पुष्टि की गई है।
रिपोर्ट के सुझाव
- स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 रिपोर्ट के अनुसार IUCN की विलुप्तप्राय प्रजातियों की रेड लिस्ट में संशोधन किया जाए।
- वैज्ञानिकों तथा नागरिकों द्वारा सहयोगात्मक शोध के ज़रिये सूचनाओं के अंतराल को कम करने पर विशेष ध्यान देते हुए नीति निर्माण किया जाए।
- हाई कंसर्न प्रजातियों के मामले में विशेष रूप घास के मैदानों, स्क्रबलैंड, वेटलैंड तथा पश्चिमी घाट के आवासों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट के बारे में
- स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 एक वैज्ञानिक रिपोर्ट है जिसे 10 संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया गया है।
- इस रिपोर्ट द्वारा भारत में नियमित रूप से पाई जाने वाली अधिकांश पक्षी प्रजातियों के लिये वितरण रेंज, उनकी आबादी के रुझान और संरक्षण की स्थिति का पहली बार व्यापक मूल्यांकन किया गया है।
- इन पक्षियों का डेटा नागरिक विज्ञान ऐप ई-बर्ड (e-Bird) के माध्यम से एकत्र किया गया है, जिसके तहत लगभग 15,500 नागरिक वैज्ञानिकों द्वारा भेजी गई रिकॉर्ड दस मिलियन प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं।
प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय
- प्रजातियों पर अभिसमय (Convention on Migratory Species- CMS), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्त्वावधान में एक पर्यावरण संधि के रूप में प्रवासी जीवों और उनके आवास के संरक्षण तथा स्थायी उपयोग के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत बना दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
प्रीलिम्स के लिये:IMF, वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट मेन्स के लिये:भारत के दुनिया की पाँचवीं अर्थव्यवस्था बनने से संबंधित मुद्दे, आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के अक्तूबर 2019 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (World Economic Outlook) रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- IMF के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत नॉमिनल GDP के आधार पर 2.94 ट्रिलियन डॉलर की GDP के साथ दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
- दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की रैंकिंग में भारत ने फ्राँस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है। ध्यातव्य है कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार 2.83 ट्रिलियन डॉलर और फ्राँस का 2.71 ट्रिलियन डॉलर है।
- भारत की आर्थिक संवृद्धि के बावजूद स्थिरता से लेकर बुनियादी ढाँचे तक की अनेक चुनौतियाँ अभी भी देश में बनी हुई हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि के कारण
- भारत की GDP वृद्धि दर पिछले एक दशक में दुनिया में सबसे अधिक रही है। यह नियमित रूप से 6-7% के बीच वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर रही है जो कि भारत के पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। हालाँकि मुद्रास्फीति एवं अन्य कारणों के चलते वास्तविक GDP की वृद्धि दर में कमी का अनुमान है।
- मैकिंजे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, शहरीकरण, प्रौद्योगिकियों में सुधार और उत्पादकता में सुधार जैसे कई कारकों की वज़ह से अर्थव्यवस्था में वृद्धि देखी गई है। ध्यातव्य है कि भारत वर्ष 2010 तक ब्राज़ील एवं इटली से भी नीचे (9वें स्थान पर) था।
- पिछले 25 वर्षों में भारत की आर्थिक संवृद्धि में अत्यंत तेज़ी देखी गई है। वर्ष 1995 के बाद से देश की नॉमिनल GDP में लगभग 700% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे के विकास संबंधी अपनी नीतियों को समायोजित करते हुए भविष्य में होने वाले विकास को और अधिक टिकाऊ और समावेशी बनाने के लिये उपाय कर रहा है।
5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से भारत को लाभ
- इससे भारत की वैश्विक ख्याति में वृद्धि होगी।
- वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक व्यवस्था पर विश्वास बढ़ेगा।
- भारत निवेशकों को आसानी से अपनी नीतियों एवं योजनाओं से प्रभावित कर अत्यधिक निवेश आकर्षित कर सकेगा।
- भारत की वैश्विक साख में वृद्धि होने से विश्व बैंक, IMF जैसे संस्थओं से आसानी से ऋण प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
- भारत दक्षिण एशिया के नेता के रूप में अपनी प्रबल दावेदारी प्रस्तुत कर सकेगा।
भारत के सामने भविष्य की चुनौतियाँ
- मज़बूत आर्थिक संवृद्धि के बावजूद देश में अभी भी अनेक चुनौतियाँ हैं। विश्व बैंक के अनुसार, भौगोलिक स्थिति के आधार पर भारत में विकास और नए अवसरों तक सभी वर्गों की आसान पहुँच का अभाव है।
- इसके अलावा दुनिया की कुल गरीब जनसंख्या का लगभग एक-चौथाई भाग भारत में निवास करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत के 39% ग्रामीण निवासी स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं और लगभग आधी आबादी अभी भी खुले में शौच करती है।
- ध्यातव्य है कि भारत तेज़ी से आर्थिक संवृद्धि तो कर रहा है किंतु देश में समावेशी विकास का अभाव बना हुआ है जो कि भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।
आगे की राह
- भारत को आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ समावेशी आर्थिक विकास की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि समावेशी विकास के बिना आर्थिक संवृद्धि का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है।
- वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में व्याप्त सुस्ती से निपटने की दिशा में व्यापक प्रयास किये जाने चाहिये।
स्रोत: विश्व आर्थिक मंच (WEF)
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 फरवरी, 2020
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) ने एशियाई फुटबॉल परिसंघ (AFC) की ‘ग्रासरूट्स चार्टर ब्रोंज़ लेवल’ (Grassroots Charter Bronze Level) सदस्यता प्राप्त कर ली है। इसके माध्यम से AIFF को अपने सभी बुनियादी आयोजनों को एशियाई फुटबॉल परिसंघ द्वारा मान्यता प्राप्त के रूप में बढ़ावा देने की अनुमति मिल गई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2014 में AIFF को फिलीपींस और ताजिकिस्तान के साथ प्रेसिडेंट रिकग्निशन अवार्ड फॉर ग्रासरूट्स फुटबाल (President Recognition Award for Grassroots Football) भी प्राप्त हुआ था। अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) एक राष्ट्रीय संघ है जिसकी स्थापना वर्ष 1937 में शिमला स्थित सेना मुख्यालय में हुई थी। एक महासंघ के रूप में यह देश भर में फुटबॉल प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है। AIFF एशियाई फुटबॉल परिसंघ (AFC) के संस्थापक सदस्यों में से एक है, जो एशिया में फुटबॉल का प्रबंधन करता है।
मिकी राइट
सबसे सफल महिला गोल्फरों में से एक, मिकी राइट (Mickey Wright), का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। मिकी राइट ने वर्ष 1954 से वर्ष 1969 तक के अपने पेशेवर कैरियर कुल 13 मेजर और 82 LPGA टूर खिताब जीते थे। मिकी राइट का जन्म कैलीफोर्निया के सैन डिएगो (San Diego) में वर्ष 1935 में हुआ था। अपने शानदार गोल्फ कैरियर में मिकी राइट ने कई पेशेवर खिताब जीते, जिनमें वर्ष 1952 का यू.एस. गर्ल्स जूनियर चैंपियनशिप भी शामिल है। ज्ञात हो कि मिकी राइट ने मात्र 34 वर्ष की उम्र में 1969 में रिटायरमेंट ले लिया था।
वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस ‘एथनोलॉग’
हाल ही में वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस ‘एथनोलॉग’ (Ethnologue) का 22वाँ संस्करण जारी किया गया है, जिसके अनुसार हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और विश्व में लगभग 615 मिलियन लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं। ‘एथनोलॉग’ के मुताबिक अंग्रेज़ी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और विश्व के लगभग 1132 मिलियन लोग अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करते हैं। जबकि मैन्डरिन (Mandarin) विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और विश्व के लगभग 1117 मिलियन लोग इसका उपयोग करते हैं। इस डेटाबेस के अनुसार, बांग्ला विश्व की 7वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और 228 मिलियन लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं। ‘एथनोलॉग’ दुनिया की जीवित भाषाओं का एक वार्षिक डेटाबेस है, जिसकी स्थापना वर्ष 1951 में की गई थी। वर्तमान में इस डाटाबेस के अंतर्गत दुनिया की 7,111 जीवित भाषाएँ शामिल हैं।
अशरफ गनी- अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति
अफगानिस्तान में लगभग पाँच महीने पहले राष्ट्रपति पद के लिये हुए मतदान के बाद वहाँ के चुनाव आयोग ने अशरफ गनी को वर्ष 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में विजयी घोषित किया। चुनाव आयोग के अनुसार चुनावों में डॉ. अब्दुल्ला-अबदुल्ला को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। चुनाव आयोग के प्रमुख हावा आलम नूरिस्तानी ने कहा कि अशरफ गनी को 50.64 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ हैं। अशरफ गनी के प्रतिद्वंदी डॉ. अब्दुल्ला ने कहा कि मतदान में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ की गईं और इसीलिये वे इन नतीजों को स्वीकार नहीं करेंगे। राष्ट्रपति पद के लिये अफगानिस्तान में पिछले वर्ष 28 सितंबर को मतदान हुआ था।
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान
केंद्र सरकार ने पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की ‘प्रतिबद्धता और विरासत’ के सम्मान में सरकारी थिंक टैंक रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (Institute for Defence Studies and Analyses-IDSA) का नाम बदलकर मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान कर दिया है। ज्ञात हो कि मनोहर पर्रिकर 9 मार्च, 2014 से लेकर 14 मार्च, 2017 तक रक्षा मंत्री रहे थे। बीते वर्ष 17 मार्च को कैंसर के कारण उनका निधन हो गया था। वह भारत के किसी राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने IIT से स्नातक किया। मनोहर पर्रिकर ने वर्ष 1978 में IIT बॉम्बे से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया था। IDSA एक सरकारी थिंक टैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1965 में रक्षा एवं सुरक्षा के सभी पहलुओं में नीति संबंधी अध्ययनों के लिये की गई थी।