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डेली न्यूज़

  • 19 Nov, 2020
  • 24 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

लक्ष्मी विलास बैंक का वित्तीय संकट

प्रिलिम्स के लिये

गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये 

बैंकिंग संकट और उसके कारण, बैंकिंग सेक्टर पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने चेन्नई स्थित लक्ष्मी विलास बैंक पर 30 दिवसीय मोरेटोरियम (Moratorium) लागू किया है, जिसका अर्थ है कि केंद्रीय बैंक द्वारा लक्ष्मी विलास बैंक की दैनिक गतिविधियों पर कुछ प्रतिबंध लगा दिये गए हैं। साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक ने डीबीएस बैंक इंडिया के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के विलय की योजना का मसौदा भी तैयार किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45(2) के आधार पर चेन्नई स्थित लक्ष्मी विलास बैंक पर कार्यवाही करते हुए कुछ विशिष्ट प्रतिबंध लागू किये हैं।
  • रिज़र्व बैंक द्वारा लागू 30 दिवसीय मोरेटोरियम (Moratorium) के अंतर्गत 25,000 रुपए से अधिक राशि की निकासी को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

कारण

  • लक्ष्मी विलास बैंक पर कार्यवाही करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कहा कि यह बैंक विगत तीन वर्षों से लगातार घाटे का सामना कर रहा है, जिससे बैंक का नेट-वर्थ प्रभावित हुआ है।
    • ध्यातव्य है कि लक्ष्मी विकास बैंक को वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 112 करोड़ रुपए और दूसरी तिमाही में 397 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
  • इस प्रकार लक्ष्मी विलास बैंक अपने वित्तीय संकट से संबंधित मुद्दों को हल करने हेतु पर्याप्त पूंजी जुटाने में असमर्थ रहा है। साथ ही इस बैंक को तरलता की कमी का सामना भी करना पड़ रहा है।
  • इसके अलावा बैंक द्वारा दिया गया लगभग एक-चौथाई ऋण, बैड एसेट (Bad Asset) अथवा गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के रूप में परिवर्तित हो चुका है।
    • आँकड़ों के अनुसार, जून 2020 में लक्ष्मी विलास बैंक की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) कुल ऋण का 25.4 प्रतिशत हो गई थीं, जो कि जून 2019 में 17.3 प्रतिशत थीं।
  • रिज़र्व बैंक की मानें तो बीते कुछ वर्षों में शासन संबंधी गंभीर मुद्दों के कारण लक्ष्मी विलास बैंक के वित्तीय प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है। 

विलय का प्रस्ताव

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने डीबीएस बैंक लिमिटेड (DBS Bank Ltd) की सहायक/अनुषंगी कंपनी डीबीएस बैंक इंडिया (DBS Bank India) के साथ लक्ष्मी विलास बैंक के विलय के प्रस्ताव का मसौदा प्रस्तुत किया है।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, डीबीएस बैंक इंडिया और लक्ष्मी विलास बैंक के विलय के पश्चात् दोनों बैंकों की संयुक्त बैलेंस शीट की स्थिति काफी अच्छी हो जाएगी।
  • विलय के बाद दोनों बैंकों का संयुक्त पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) 12.51 प्रतिशत पर पहुँच जाएगा, जो कि वर्तमान में केवल 0.17 प्रतिशत (लक्ष्मी विलास बैंक) है।
    • पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) किसी बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। 
  • रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि बैंकों के जमाकर्त्ताओं को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा और रिज़र्व बैंक उनके हितों की पूर्ण रक्षा करेगा।
    • ज्ञात हो कि किसी भी अनिश्चितता की स्थिति में छोटे जमाकर्त्ताओं के लिये डिपॉज़िट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) भी एक विकल्प हो सकता है, जो कि रिज़र्व बैंक की एक सहायक/अनुषंगी कंपनी है और छोटे जमाकर्त्ताओं को 5 लाख रुपए तक का बीमा कवर प्रदान करती है।

भारत के वित्तीय सेक्टर का संकट

  • वर्ष 2018 में IL&FS के डिफॉल्ट हो जाने के बाद से भारत के वित्तीय सेक्टर में ऐसी कई सारी घटनाएँ देखी गईं जहाँ बैंकिंग और गैर-बैंकिंग संस्थाएँ अपनी वित्तीय स्थिति कमज़ोर हो जाने अथवा तरलता की कमी के कारण डिफॉल्ट हो गईं। 
  • बीते वर्ष सितंबर माह में ‘पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक’ (PMC) में ऋण घोटाले के कारण बैंकिंग संकट देखने को मिला था, जिसमें एचडीआईएल (HDIL) कंपनी के प्रवर्तक भी शामिल थे, इस घोटाले की जाँच अभी भी जारी है और बैंक के पुनरुत्थान को लेकर कई प्रयास किये जा रहे हैं।
  • इसी वर्ष मार्च माह में भारत में निज़ी क्षेत्र का चौथा सबसे बड़ा बैंक ‘यस बैंक’ (Yes Bank) भी संकट का सामना कर रहा था, जिससे निवेशकों के बीच डर का माहौल पैदा हो गया था।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत के कई पुरानी पीढ़ी के निजी बैंकों और बड़ी गैर-बैंकिंग‍ वित्तीय कंपनियों के प्रदर्शन की निगरानी कर रहा है। 

कारण

  • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की बढ़ती मात्रा, खराब वित्तीय स्थिति, ऋण से संबंधित घोटाले और शासन से संबंधित मुद्दों आदि ने भारत के बैंकिंग और वित्तीय सेक्टर में एक गंभीर संकट को जन्म दिया है।
    • इसके अलावा तमाम तरह की ऋण गारंटी योजनाओं के बावजूद, ऋण की दर में काफी कम वृद्धि देखने को मिली है, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2020 में खुदरा ऋणों की वृद्धि दर केवल 10.6 प्रतिशत रही थी।
    • इसके कारण भारतीय बैंकों की आय में कमी आ रही है और वित्तीय संकट का सामना करने हेतु पर्याप्त पूंजी जुटाना उनके लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
    • यही कारण है कि बीते 15 महीनों में भारत के निजी क्षेत्र के कुछ प्रमुख बैंक और कुछ सहकारी बैंक वित्तीय संकट की चपेट में आ गए हैं।

महामारी और बैंकिंग सेक्टर

  • महामारी के कारण भारत के बैंकिंग सेक्टर की चुनौतियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं, क्योंकि इसके प्रभाव से आम लोगों और कंपनियों की वित्तीय स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, जिसके कारण आने वाले समय में बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में और अधिक वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  • हालाँकि कई विश्लेषकों का अनुमान है कि सूचना प्रौद्योगिकी (IT), फार्मास्यूटिकल्स, FMCG और रसायन जैसे क्षेत्रों में बैंकों का NPA काफी कम रहेगा, किंतु आतिथ्य, पर्यटन और विमानन क्षेत्र में बैंकों के NPA में वृद्धि देखने को मिलेगी।

आगे की राह

  • बैंकिंग सेक्टर के अधिकांश विश्लेषक इस बात पर एकमत हैं कि जब भी भारत की बैंकिंग और गैर-बैंकिंग संस्थाओं ने वित्तीय संकट का सामना किया है तो रिज़र्व बैंक ने उन्हें इस संकट से उबारने में सक्रिय भूमिका अदा की है।
  • भारत के वित्तीय सेक्टर को गंभीर संकट से बचाने के लिये किसी भी प्रकार के अल्पकालिक उपाय के साथ-साथ दीर्घकालिक उपायों की भी आवश्यकता है, नीति निर्माताओं को बैंकिंग संकट के मूल कारणों पर विचार करते हुए उसे दूर करने के प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

डीम्ड वन

प्रिलिम्स के लिये:

डीम्ड वन

मेन्स के लिये:

वनों के संरक्षण से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

कर्नाटक राज्य सरकार जल्द ही राज्य में 9.94 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले डीम्ड वनों के 6.64 लाख हेक्टेयर हिस्से को विवर्गीकृत (Declassified) कर राजस्व अधिकारियों को सौंप देगी। 

प्रमुख बिंदु

  • यह कदम प्रत्येक ज़िले के राजस्व, वन और भूमि रिकॉर्ड विभागों के अधिकारियों की अध्यक्षता में स्थानीय समितियों द्वारा डीम्ड वन क्षेत्रों की वास्तविक सीमा के अध्ययन के बाद उठाया गया है।
  • कर्नाटक में डीम्ड वनों का मुद्दा विवादास्पद रहा है जिसमें विभिन्न दलों के विधायक प्रायः यह आरोप लगाते रहे हैं कि बड़ी मात्रा में कृषि और गैर-वन भूमि क्षेत्रों को 'अवैज्ञानिक' रूप से डीम्ड वन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

डीम्ड वन क्या हैं?

  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 सहित किसी भी कानून में डीम्ड वनों की अवधारणा को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • हालांकि टी एन गोडवर्मन थिरुमलपाद (1996) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अधिनियम के तहत वनों की एक विस्तृत परिभाषा को स्वीकार किया।
  • यह परिभाषा वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त सभी जंगलों को शामिल करती है, चाहे वे वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) के उद्देश्य के लिये आरक्षित, संरक्षित या अन्यथा नामित हों। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, धारा 2 में शामिल 'वन भूमि' शब्द के तहत न केवल जंगल शामिल होगा जैसा कि शब्दकोष में समझा जाता है, बल्कि स्वामित्व के बावजूद सरकारी रिकॉर्ड में जंगल के रूप में दर्ज क्षेत्र भी इस परिभाषा में शामिल होंगे।

पुनर्वर्गीकरण की मांग

  • स्वामित्व की परवाह किये बगैर एक डीम्ड वन ‘शब्दकोशीय वन’ के अर्थ के दायरे में शामिल है। 
  • किसानों को होने वाली परेशानी और खनन में आने वाली रूकावट के दावों के बीच राज्य सरकार का यह भी तर्क है कि पूर्व में किये गए इस वर्गीकरण में लोगों की ज़रुरतों को ध्यान में नहीं रखा गया था।

पुनर्वर्गीकरण क्यों? (Why Declassified?) 

  • वर्ष 2014 में तत्कालीन सरकार ने वनों के वर्गीकरण पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया था।
  • वनों की शब्दकोशीय परिभाषा का उपयोग कर घने जंगल वाले क्षेत्रों की पहचान डीम्ड वन के रूप में की गई थी जिसमें परिभाषित वैज्ञानिक, सत्यापन योग्य मानदंडों का उपयोग नहीं किया गया था। 
  • इस व्यक्तिनिष्ठ वर्गीकरण के परिणामस्वरूप एक विवाद पैदा हो गया। राज्य सरकार का यह भी तर्क है कि भूमि को अधिकारियों द्वारा यादृच्छिक रूप से डीम्ड वन के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिससे कुछ क्षेत्रों में किसानों को कठिनाई हुई।
  • गौरतलब है कि डीम्ड वनों के रूप में निर्दिष्ट कुछ क्षेत्रों में खनन की व्यावसायिक मांग भी है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चैपर वायरस

प्रिलिम्स के लिये

चैपर वायरस, कोरोना वायरस, इबोला वायरस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं निवारण केंद्र (CDC) के शोधकर्त्ताओं ने इबोला जैसी एक दुर्लभ बीमारी का पता लगाया है।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं का मानना है कि चैपर (Chapare) नाम के इस वायरस का उद्गम सर्वप्रथम वर्ष 2004 में बोलीविया के ग्रामीण इलाकों में हुआ था। 
    • ध्यातव्य है कि चैपर, मध्य बोलीविया के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ग्रामीण प्रांत है और इस वायरस का नाम इसी प्रांत के नाम पर रखा गया है, क्योंकि इस वायरस की खोज सर्वप्रथम इसी स्थान पर हुई थी।

चैपर वायरस के बारे में 

  • जिस प्रकार कोरोना वायरस, कोरोनवीरिडे (Coronaviridae) वायरस परिवार से संबंधित है, उसी प्रकार चैपर वायरस, एरेनावीरिडे (Arenaviridae) वायरस परिवार से संबंधित है।
    • एरेनावीरिडे वायरस का एक ऐसा परिवार है, जिसमें शामिल वायरस आमतौर पर मनुष्यों में कृंतक-संचारित (Rodent-Transmitted) बीमारियों से संबंधित होते हैं।
    • इस वायरस के कारण मनुष्यों में चैपर हेमोरेजिक फीवर (CHHF) बीमारी होती है।
  • कोरोना वायरस की तुलना में चैपर वायरस का पता लगाना काफी कठिन है, क्योंकि इसका संचरण श्वसन मार्ग से नहीं होता है। इसके बजाय, चैपर वायरस शारीरिक संपर्क के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
  • शोधकर्त्ताओं का मत है कि इस वायरस का सबसे अधिक प्रसार उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में होता है।
  • रोगवाहक
    • शोधकर्त्ताओं के मुताबिक, चूहे इस वायरस के प्रमुख रोगवाहक हैं और यह संक्रमित कृंतक (Rodent) या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से किसी अन्य व्यक्ति में प्रेषित हो सकता है।
    • रोगवाहक वह एजेंट होता है, जो किसी संक्रामक रोगजनक को दूसरे जीवित जीव में स्थानांतरित करता है।
  • चैपर हेमोरेजिक फीवर (CHHF) के लक्षण 
    • शोधकर्त्ताओं के मुताबिक, हेमोरेजिक फीवर इस वायरस का सबसे प्रमुख लक्षण है। ध्यातव्य है कि हेमोरेजिक फीवर  एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है, यह शरीर के अंगों को प्रभावित करती है, रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुँचाती है और शरीर की स्वयं को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
    • इसके अलावा पेट दर्द, उल्टी, मसूड़ों से खून बहना, त्वचा पर चकत्ते और आँखों में दर्द आदि इसके कुछ अन्य लक्षण हैं।
  • उपचार
    • चूँकि इस बीमारी का इलाज करने के लिये अभी कोई विशिष्ट दवा मौजूद नहीं हैं, इसलिये रोगियों की देखभाल आमतौर पर इंट्रावेनस थेरेपी (Intravenous Therapy) के माध्यम से ही की जाती है।
    • इंट्रावेनस थेरेपी (Intravenous Therapy) एक चिकित्सा पद्धति है, जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति की नस में सीधे तरल पदार्थ पहुँचाया जाता है।
  • मृत्यु-दर
    • चूँकि अभी तक इस वायरस के कुछ ही मामले दर्ज किये गए हैं, इसलिये इससे संबंधित मृत्यु दर और जोखिम कारकों की अभी तक सही ढंग से खोज नहीं की जा सकी है।
    • इस वायरस के पहले ज्ञात प्रकोप में केवल एक ही घातक मामला शामिल था, जबकि वर्ष 2019 के दूसरे प्रकोप में दर्ज किये गए पाँच मामलों में से 3 मामले घातक थे। 

इबोला वायरस

  • इबोला वायरस की खोज सबसे पहले वर्ष 1976 में इबोला नदी के पास हुई थी, जो कि अब कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य है। अफ्रीका में फ्रूट बैट चमगादड़ इबोला वायरस के वाहक हैं जिनसे पशु (चिंपांजी, गोरिल्ला, बंदर, वन्य मृग) संक्रमित होते हैं। 
  • वहीं मनुष्यों में यह संक्रमण या तो संक्रमित पशुओं से या संक्रमित मनुष्यों से होता है, जब वे संक्रमित शारीरिक द्रव्यों या शारीरिक स्रावों के निकट संपर्क में आते हैं। 
  • इसमें वायुजनित संक्रमण नहीं होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना

मेन्स के लिये:

मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम और उसके उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ((Ministry of Food Processing Industries), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय , ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PM-FME Scheme) के क्षमता निर्माण घटक के लिये मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। 

प्रमुख बिंदु:

  • इसके साथ ही केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा एक ज़िला-एक उत्पाद (One District One Product- ODOP) का जीआईएस (GIS) डिज़िटल मैप भी जारी किया गया।
  • प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के क्षमता निर्माण घटक के अंतर्गत मास्टर ट्रेनरों को ऑनलाइन मोड, क्लासरूम लेक्चर और ऑनलाइन पाठ्य सामग्री के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
    • चूँकि सूक्ष्म खाद्य उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये क्षमतावर्द्धन भी बहुत ज़रूरी है। इस उद्देश्य से ही खाद्य प्रसंस्करण उद्यमियों के साथ-साथ स्व सहायता समूहों, कृषक उत्पादक संगठनों (FPO) सहकारिता क्षेत्र से जुड़े लोगों, श्रमिकों एवं अन्य हितधारकों को इस योजना के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • चयनित उद्यमियों और समूहों को प्रशिक्षण एवं शोध सहायता प्रदान करने में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) और भारतीय खाद्य  प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी संस्थान (IIFPT), राज्य स्तरीय तकनीकी संस्थानों के समन्वय से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • मास्टर ट्रेनर्स, ज़िला स्तरीय प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। इसके बाद ज़िला स्तरीय प्रशिक्षक हितग्राहियों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। क्षमता निर्माण के तहत दिये जाने वाले प्रशिक्षण का मूल्यांकन और प्रमाणन खाद्य उद्योग क्षमता और कौशल पहल (Food Industry Capacity and Skill Initiative-FICSI) द्वारा किया जाएगा।

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना

(PM-FME Scheme): 

  • PM-FME योजना केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित योजना है और आत्मनिर्भर भारत अभियान के अतंर्गत प्रारंभ की गई है। 
  • इस योजना का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में असंगठित रूप से कार्य कर रहे छोटे उद्यमियों को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्द्धा का निर्माण करना है। 
  • इसके साथ की इस क्षेत्र से जुड़े कृषक उत्पादक संगठनों, स्व सहायता समूहों सहकारी उत्पादकों को भी सहायता  प्रदान करना है। 
  • इस योजना के तहत वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 के मध्य 2 लाख सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को वित्तीय, तकनीकी एवं विपणन सहयोग प्रदान करने के लिये 10 हजार करोड़ रुपए की धनराशि का प्रावधान किया गया है।

उद्देश्य:

  • मास्टर ट्रेनर्स के प्रशिक्षण का उद्देश्य इस योजना से जुड़े 8 लाख लोगों को लाभान्वित करना है।
  • इसमें किसान उत्पादक संगठन के सदस्यों के साथ ही स्व-सहायता समूह, सहकारिता, अनुसूचित जनजाति समुदाय के हितग्राही शामिल हैं।
  • एक ज़िला-एक उत्पाद योजना के डिज़िटल मानचित्र के माध्यम से इस योजना से जुड़े सभी हितधारकों के उत्पादों की समग्र जानकारी एक साथ प्राप्त हो सकेगी।
  • इसके अलावा प्रशिक्षण एवं सहयोग से छोटे खाद्य उद्यमियों को स्थापित होने में सहायता मिलेगी और यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक सशक्त कदम साबित होगा।

आगे की राह:

  • भारत को स्थानीय उत्पादन, स्थानीय विपणन और स्थानीय आपूर्ति श्रंखला निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने की ज़रुरत है।

स्रोत: PIB


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