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डेली न्यूज़

  • 19 May, 2021
  • 44 min read
भूगोल

चक्रवात ताउते

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में चक्रवात ताउते (Cyclone Tauktae) के कारण गुजरात में लैंडफॉल’ (LandFall) की स्थिति देखी गई है।

  • केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र  राज्यों के तटीय क्षेत्रों से गुज़रते हुए इस चक्रवात ने वहाँ भारी तबाही मचाई है।

प्रमुख बिंदु: 

 ताउते के बारे में:

  •  नामकरण:
    • ताउते एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone) है, जिसका नाम म्याँमार द्वारा रखा गया है। बर्मीज़ भाषा में इसका अर्थ है 'गेको', एक अत्यधिक शोर करने वाली  छिपकली (Highly Vocal Lizard)।
    • सामान्यत: उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर) में उष्णकटिबंधीय चक्रवात पूर्व-मानसून (अप्रैल से जून माह) और मानसून के बाद (अक्तूबर से दिसंबर) की अवधि के दौरान विकसित होते हैं।
      • मई-जून और अक्तूबर-नवंबर के माह गंभीर तीव्र  चक्रवात उत्पन्न करने के लिये जाने जाते हैं जो भारतीय तटों को प्रभावित करते हैं।
  • वर्गीकरण:
    • यह "अत्यधिक  गंभीर चक्रवाती तूफान" से कमज़ोर होकर " अधिक गंभीर चक्रवाती तूफान" के रूप में परिवर्तित हो गया है।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) चक्रवातों को उनके द्वारा उत्पन्न अधिकतम निरंतर सतही हवा की गति (Maximum Sustained Surface Wind Speed- MSW) के आधार पर वर्गीकृत करता है।
    • चक्रवातों को गंभीर (48-63 किमी/घंटे ), बहुत गंभीर (64-89 किमी/घंटे), अत्यंत गंभीर (90-119 किमी/घंटे) और सुपर साइक्लोनिक स्टॉर्म (120 किमी/घंटे) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एक नॉट (knot)  1.8 किमी प्रति घंटे (किलोमीटर प्रति घंटा) के बराबर होता है।
  • अरब सागर में उत्पत्ति:
    •  ताउते  पूर्व-मानसून अवधि (अप्रैल से जून) में अरब सागर में विकसित होने वाला लगातार वर्षों में चौथा चक्रवात है।
    • वर्ष 2018 में ओमान में आए मेकानू चक्रवात (Mekanu Cyclone ) के बाद वर्ष 2019 में वायु चक्रवात  ( Vayu Cyclone) ने गुजरात को तथा उसके बाद  बाद 2020 में निसर्ग चक्रवात  (Nisarga Cyclone ) ने महाराष्ट्र को प्रभावित किया था।
    • वर्ष 2018 के बाद से इन सभी चक्रवातों को या तो 'गंभीर चक्रवात' (Severe Cyclone) या उससे ऊपर की श्रेणी में रखा गया है।

अरब सागर बना चक्रवातों का प्रमुख क्षेत्र:

  • प्रत्येक वर्ष बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में औसतन पांँच चक्रवात विकसित होते हैं। इनमें से चार बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में विकसित होते हैं, जो अरब सागर से भी गर्म है।
  • वर्ष 2018 में बंगाल की खाड़ी में एक वर्ष में औसतन चार चक्रवात विकसित हुए वहीँ  अरब सागर में तीन चक्रवात निर्मित हुए जबकि वर्ष 2019 में अरब सागर में पांँच चक्रवात विकसित  हुए और  बंगाल की खाड़ी में तीन का निर्माण हुआ जिस कारण अरब सागर में बीते दो वर्षों में बंगाल की खाड़ी की तुलना में  3 अधिक चक्रवातों का निर्माण हुआ।
  • वर्ष 2020 में बंगाल की खाड़ी ने तीन चक्रवाती तूफान उत्पन्न हुए, जबकि अरब सागर ने दो चक्रवाती तूफान आए।
  • हाल के वर्षों में मौसम विज्ञानियों ने देखा है कि अरब सागर भी गर्म हो रहा है। यह ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) से जुड़ी एक घटना है।
  • यह देखा गया है कि अरब सागर में समुद्र की सतह का तापमान लगभग 40 वर्षों से बढ़ रहा है। तापमान में वृद्धि 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस तक हुई है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात:

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तीव्र गोलाकार तूफान है जो गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न होता है और कम वायुमंडलीय दबाव, तेज़ हवाएँ और भारी बारिश इसकी विशेषताएँ है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशिष्ट विशेषताओं में एक चक्रवातों की आंख (Eye) में साफ आसमान, गर्म तापमान और कम वायुमंडलीय दबाव का क्षेत्र होता है।
  • इस प्रकार के तूफानों को उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत में हरिकेन (Hurricanes) तथा दक्षिण-पूर्व एशिया एवं चीन में टाइफून (Typhoons) कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) और उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विलीज़ ( Willy-Willies) कहा जाता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी गति घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत अर्थात् वामावर्त (Counter Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है।
  • उष्णकटिबंधीय तूफानों के बनने और उनके तीव्र होने हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:
    • 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाली एक बड़ी  समुद्री सतह।
    • कोरिओलिस बल की उपस्थिति।
    • ऊर्ध्वाधर/लम्बवत हवा की गति में छोटे बदलाव।
    • पहले से मौज़ूद कमज़ोर निम्न-दबाव क्षेत्र या निम्न-स्तर-चक्रवात परिसंचरण।
    • समुद्र तल प्रणाली के ऊपर  विचलन (Divergence)।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण:

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO)  के दिशा-निर्देशों के अनुसार, हर क्षेत्र के देश चक्रवातों को नाम देते हैं।
  • उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर बने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को कवर करता है।
    • इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 13 सदस्य बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन हैं।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD), विश्व के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों (Regional Specialised Meteorological Centres- RSMC) में से एक है, जिसे सलाह जारी करने और उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखने का अधिकार है।
    • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फरज़ाद-बी गैस फील्ड: ईरान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान ने फरज़ाद-बी गैस फील्ड के विकास हेतु उसे एक घरेलू गैस उत्पादक कंपनी पेट्रोपार्स ( Petropars) को सौप दिया।

  • यह निर्णय ईरान के साथ भारत के ऊर्जा संबंधों के लिये एक बाधक है क्योंकि वर्ष 2008 में ओएनजीसी ( ONGC) विदेश लिमिटेड (OVL) ने इस गैस क्षेत्र की खोज की थी और यह उस मुद्दे पर चल रहे सहयोग का हिस्सा रहा है।

प्रमुख बिंदु 

फरज़ाद-बी गैस फील्ड:

Iran

  • यह फारस की खाड़ी (ईरान) में स्थित है।
  • वर्ष 2002 में इस क्षेत्र की खोज के लिये ओएनजीसी विदेश, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और ऑयल इंडिया के भारतीय संघ द्वारा एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए थे। 
  • गैस क्षेत्र की खोज के आधार पर इस क्षेत्र की व्यावसायिकता की घोषणा के पश्चात् वर्ष 2009 में इसका अनुबंध समाप्त हो गया।
    • इस क्षेत्र में 19 ट्रिलियन क्यूबिक फीट से अधिक का गैस भंडार है।
    • ओएनजीसी ने इस क्षेत्र में लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
  • तब से संघ द्वारा इस क्षेत्र के विकास हेतु अनुबंध को सुरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा है।
    • भारत और ईरान के बीच विवाद के मुख्य कारणों में दो पाइपलाइनों की स्थापना और विकास योजना पर दी जाने वाली राशि शामिल थी।
    • मई 2018 तक समझौते के लगभग 75% हिस्से को अंतिम रूप प्रदान किया गया था, जब अमेरिका एकतरफा परमाणु समझौते से हट गया तो उसने ईरान पर प्रतिबंधों की घोषणा कर दी।
  • जनवरी 2020 में भारत को यह जानकारी दी गई कि निकट भविष्य में ईरान स्वयं इस क्षेत्र का विकास करेगा और बाद के कुछ चरणों में भारत को उचित रूप से शामिल करना चाहेगा।

अन्य नवीन विकास:

भारत के लिये चिंता:

  • चीन का बढ़ता प्रभुत्व:
    • अप्रैल 2021 में चीन ने ईरान के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसे 25 वर्षीय 'रणनीतिक सहयोग समझौते' के रूप में वर्णित किया गया है। इस समझौते में "राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक" घटक शामिल हैं।
      • चीन ईरान के साथ सुरक्षा और सैन्य साझेदारी में भी सहयोग कर रहा है।
    • चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान में भारतीय प्रवेश मार्गों के लिये चीन-ईरान रणनीतिक साझेदारी एक बाधा हो सकती है और ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) से आगे की कनेक्टिविटी हो सकती है, हालाँकि ईरान ने इन परियोजनाओं में व्यवधान का कोई संकेत नहीं दिया है।
      • इसके अतिरिक्त ईरान को अमेरिका के साथ भारत के राजनयिक संबंधों पर संदेह है।

  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा:
    • भारत इस्लामिक राष्ट्रों से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
      • भारत वर्ष 2018 के मध्य तक चीन के बाद ईरान से तेल आयात करने वाला प्रमुख देश था।
    • भारत को गैस की आवश्यकता है और ईरान भौगोलिक दृष्टि से सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है, ईरान फारस की खाड़ी क्षेत्र के सभी देशों में भारत के सबसे कम दूरी पर स्थित है।
      • इसके अतिरिक्त फरज़ाद-बी गैस फील्ड भारत-ईरान संबंधों में सुधार कर सकता था क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से कच्चे तेल का आयात प्रभावित रहता है।
  • इस क्षेत्र में भारत की भूमिका:
    • भारत के लिये ईरान के साथ संबंध बनाए रखना पश्चिम एशिया में भारत की संतुलन नीति के लिये महत्त्वपूर्ण है फिर चाहे सऊदी अरब और इज़राइल के साथ एक नया संबंध स्थापित ही करना हो।
  • मध्य एशिया से जुड़ाव:
    • चाबहार न केवल दोनों देशों के बीच समुद्री संबंधों की कुंजी है, बल्कि भारत को रूस और मध्य एशिया तक पहुँचने का अवसर भी प्रदान करता है।
    • इसके अतिरिक्त, यह भारत को पाकिस्तान सीमा से दूर स्थित मार्गो से व्यापार करने  की अनुमति देता है जिसने अफगानिस्तान को भारतीय सहायता और भूमिगत सभी व्यापार को रोक दिया था।
  • शांतिपूर्ण अफगानिस्तान:
    • भारत, अफगानिस्तान में महत्त्वपूर्ण निवेश करने के बाद हमेशा एक अफगान निर्वाचित, अफगान नेतृत्व, अफगान स्वामित्व वाली शांति और सुलह प्रक्रिया तथा अफगानिस्तान में एक लोकप्रिय लोकतांत्रिक सरकार की उम्मीद करेगा।
    • हालाँकि भारत को अफगानिस्तान के पड़ोस में विकसित हो रहे ईरान-पाकिस्तान-चीन की धुरी से सावधान रहना होगा, जिसके अंदर आतंकी समूहों के जाल फैले हुए हैं।

आगे की राह 

  • भारत मध्य पूर्व के तेल और गैस पर सर्वाधिक निर्भर है इसलिये भारत को ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब तथा इराक सहित अधिकांश प्रमुख आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिये।
  • भारत को अमेरिका और ईरान के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • विश्व में जहाँ कनेक्टिविटी या संबंधों को नई मुद्रा के रूप में वर्णित किया जाता है, भारत के इन परियोजनाओं के नुकसान से किसी अन्य देश (विशेष रूप से चीन ) को  लाभ मिल सकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

विधान परिषद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना का निर्णय लिया है

  • परिषद की स्थापना के लिये एक विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करना होता है और उसके बाद राज्यपाल की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। वर्ष 1969 में पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु:

गठन का आधार:

  • भारत में विधायिका की द्विसदनीय प्रणाली है।
  • जिस प्रकार संसद के दो सदन होते हैं, उसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्यों में विधानसभा के अतिरिक्त एक विधान परिषद भी हो सकती है।

विधान परिषद वाले छह राज्य: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक।

  • वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया। अंततः परिषद को समाप्त करने के लिये भारत की संसद द्वारा इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जानी बाकी है।
  • वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया।

अनुच्छेद 169 (गठन और उन्मूलन):

  • संसद एक विधान परिषद को (जहाँ यह पहले से मौजूद है) का विघटन कर सकती है और (जहाँ यह पहले से मौजूद नहीं है) इसका गठन कर सकती है। यदि संबंधित राज्य की विधानसभा इस संबंध में संकल्प पारित करे। इस तरह के किसी प्रस्ताव का राज्य विधानसभा द्वारा पूर्ण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है।
  • विशेष बहुमत का तात्पर्य:
    • विधानसभा की कुल सदस्यता का बहुमत और
    • विधानसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत।

संरचना:

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत, किसी राज्य की विधान परिषद में राज्य विधानसभा की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक और 40 से कम सदस्य नहीं होंगे
  • राज्य सभा के समान विधान परिषद एक सतत् सदन है, अर्थात् यह एक स्थायी निकाय है जिसका विघटन नहीं होता। विधान परिषद  के एक सदस्य (Member of Legislative Council- MLC) का कार्यकाल छह वर्ष का होता है, जिसमें एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं।

निर्वाचन पद्धति:

  • एक तिहाई MLC राज्य के विधायकों द्वारा चुने जाते हैं,
  • इसके अलावा 1/3 सदस्य स्थानीय निकायों जैसे- नगरपालिका और ज़िला बोर्डों आदि द्वारा चुने जाते हैं,
  • 1/12 सदस्यों का निर्वाचन 3 वर्ष से अध्यापन कर रहे लोग चुनते हैं तथा 1/12 सदस्यों को राज्य में रह रहे 3 वर्ष से स्नातक निर्वाचित करते हैं।
  • शेष सदस्यों का नामांकन राज्यपाल द्वारा उन लोगों के बीच से किया जाता है जिन्हें साहित्य, ज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का विशेष ज्ञान तथा व्यावहारिक अनुभव हो।  

राज्य सभा की तुलना में विधान परिषद:

  • परिषदों की विधायी शक्ति सीमित है। राज्यसभा के विपरीत, जिसके पास गैर-वित्तीय विधान को आकार देने की पर्याप्त शक्तियाँ हैं, विधान परिषदों के पास ऐसा करने के लिये संवैधानिक जनादेश नहीं है।
  • विधानसभाएँ, परिषद द्वारा कानून में किये गए सुझावों/संशोधनों को रद्द कर सकती हैं।
  • इसके अलावा राज्यसभा सांसदों के विपरीत, MLCs, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है जबकि परिषद का अध्यक्ष परिषद के किसी एक सदस्य को ही चुना जाता है।

विधान परिषद की भूमिका:

  • यह उन व्यक्ति विशेष की स्थिति को सुनिश्चित कर सकती है जिन्हें चुनाव के माध्यम से नहीं चुना जा सकता है परंतु वे विधायी प्रक्रिया (जैसे कलाकार, वैज्ञानिक, आदि) में योगदान करने में सक्षम हैं।
  • यह विधानसभा द्वारा जल्दबाजी में लिये गए फैसलों पर नज़र रख सकती है।

विधान परिषद के खिलाफ तर्क:

  • यह विधि निर्माण की प्रक्रिया में देरी कर सकता है, साथ ही इसे राज्य के बजट पर बोझ माना जाता है।
  • इसका उपयोग उन नेताओं को संगठित करने के लिये भी किया जा सकता है जो चुनाव नहीं जीत पाए हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

निर्वाचन आयोग के लिये स्वतंत्र कॉलेजियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में एक याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिये एक स्वतंत्र कॉलेजियम के गठन की मांग की गई थी।

भारत निर्वाचन आयोग

पृष्ठभूमि:

  • भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
  • यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 324: यह चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये एक चुनाव आयोग की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

निर्वाचन आयोग की संरचना:

  • निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
  • आयोग में वर्तमान में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) और दो निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioners- EC) शामिल हैं।
  • आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।

प्रमुख बिंदु

नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली:

  • संविधान के अनुसार, CEC और EC की नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं है।
  • लेन-देन के व्यापार नियम 1961 के तहत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर CEC और EC की नियुक्ति करेगा।
    • इसलिये CEC और EC की नियुक्ति करना राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्ति है।
  • हालाँकि अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, संसद के पास चुनाव आयोग की सेवा शर्तों और कार्यकाल को विनियमित करने की शक्ति है।
    • चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यापार का लेन-देन) अधिनियम, 1991 CEC और अन्य चुनाव आयोगों की सेवा की शर्तों को निर्धारित करने और ECI द्वारा व्यापार के लेन-देन की प्रक्रिया प्रदान करने के लिये पारित किया गया था।
  • आज तक संसद ने अनुच्छेद 324(5) के तहत कानून बनाए हैं, न कि अनुच्छेद 324(2) के तहत जिसमें संसद राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों को विनियमित करने के लिये एक चयन समिति की स्थापना कर सकती है।
    • अनुच्छेद 324(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से CEC और EC की नियुक्ति तब तक करेगा जब तक कि संसद अधिनियम (Parliament Enacts), सेवा की शर्तों और कार्यकाल के लिये मानदंड तय करने वाला कानून नहीं बनाती।

स्वतंत्र कॉलेजियम की आवश्यकता:

  • समितियों की सिफारिश:
    • चुनाव आयोग में रिक्त पदों को भरने के लिये एक तटस्थ कॉलेजियम की सिफारिश वर्ष 1975 से कई विशेषज्ञ समितियों के आयोगों द्वारा की गई है।
    • यह सिफारिश मार्च 2015 में विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट का भी हिस्सा थी।
    • वर्ष 2009 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी चौथी रिपोर्ट में CEC और EC के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली का सुझाव दिया।
    • वर्ष 1990 में दिनेश गोस्वामी समिति (Dinesh Goswami Committee) ने चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता जैसे तटस्थ अधिकारियों के साथ प्रभावी परामर्श की सिफारिश की।
    • वर्ष 1975 में न्यायमूर्ति तारकुंडे समिति (Justice Tarkunde Committee) ने सिफारिश की कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर नियुक्त किया जाना चाहिये।
  • राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से रोधन:
    • चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में कार्यपालिका की अभिरुचि उस आधार का उल्लंघन करती है जिस पर इसे बनाया गया था, इस प्रकार आयोग को कार्यपालिका की एक शाखा बना दिया गया।
  • अनुचित चुनाव प्रक्रिया:
    • चुनाव आयोग न केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये ज़िम्मेदार है, बल्कि यह सत्तारूढ़ सरकार और अन्य दलों सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच एक अर्द्ध न्यायिक कार्य भी करता है।
    • ऐसी परिस्थितियों में कार्यकारिणी चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में एकमात्र भागीदार नहीं हो सकती है क्योंकि यह सत्ताधारी पार्टी को किसी ऐसे व्यक्ति को चुनने के लिये स्वतंत्र विवेक (Unfettered Discretion) प्रदान करती है जिसकी उसके प्रति वफादारी सुनिश्चित है और इस तरह चयन प्रक्रिया में हेरफेर की संभावना बनी रहती है।

चुनौतियाँ:

  • अन्य के लिये भी इसी तरह की मांग:
    • अन्य संवैधानिक पदों के लिये ऐसी ही मांगें उठाई जा सकती हैं जहाँ कार्यपालिका के लिये महान्यायवादी (Attorney General) या नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor-General) जैसी नियुक्तियाँ करना अनिवार्य है।
    • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के निदेशक और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (Central Vigilance Commissioner- CVC) की नियुक्ति के लिये समितियों का गठन किया जाता है लेकिन ये संवैधानिक पद हैं। अभी तक संवैधानिक नियुक्तियों के लिये कोई समिति नहीं है।
  • CEC और EC के बीच अंतर:
    • CEC और EC के पदों के बीच अंतर होता है। दोनों पदों पर नियुक्तियाँ उनके द्वारा किये गए कार्य के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।
    • इसलिये नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतर करना जो अभी भी तदर्थ आधार पर (किसी संवैधानिक कानून की अनुपस्थिति के कारण) की जाती है, एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है जिसे आयोग के स्वतंत्र कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये ठीक से संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • न्यायिक अतिरेक:
    • सर्वोच्च न्यायालय संविधान के प्रावधानों के आधार पर किसी भी कानून की व्याख्या करता है और संवैधानिक रूप से EC की नियुक्ति प्रक्रिया का निर्णय कार्यकारी डोमेन के अंतर्गत आता है।
    • इस प्रकार इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय संभवतः शक्ति के सामंजस्यपूर्ण संतुलन को हिला सकता है।

आगे की राह

  • नियुक्ति प्रक्रिया की वर्तमान प्रणाली की कमियों को दूर करने की आवश्यकता है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय किये जाने चाहिये कि नैतिक और सक्षम लोग संबंधित पदों पर आसीन हों।
  • भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के मुद्दे पर संसद में बहस और चर्चा की आवश्यकता है और इसके आधार पर आवश्यक कानून पारित कराया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा  स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज (Spot Gold Exchange) स्थापित करने हेतु एक रूपरेखा का प्रस्ताव रखा गया है।

  • स्पॉट एक्सचेंज वह स्थान  है जहांँ तत्काल वितरण हेतु  वित्तीय साधनों जैसे- वस्तुओं, मुद्राओं और प्रतिभूतियों का कारोबार होता है।
  • अप्रैल 1992 में सेबी की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत की गई थी जो कि एक एक वैधानिक निकाय है।

Gold-Exchange

प्रमुख बिंदु: 

गोल्ड एक्सचेंज की रूपरेखा:

  • पहले चरण में एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर स्थानीय रूप से निर्मित या आयातित सोने की डिलीवरी की इच्छुक इकाई को सेबी के विनियमित वॉल्ट मैनेजर से संपर्क करना होगा और उसे फिज़िकल गोल्ड (Physical Gold ) को जमा कराना होगा जो गुणात्मक (Quality) और मात्रात्मक (Quantity) दोनों पैरामीटर्स पर खरा उतरे।
  • दूसरे चरण में एक्सचेंज पर ट्रेड करने हेतु वाल्ट मैनेजर इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट (Electronic Gold Receipt- EGR) जारी करेगा ।
  • लाभ प्राप्तकर्त्ता मालिक (Beneficial Owner) इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट  को वॉल्ट मैनेजर को सौंप देगा और तीसरे चरण में सोने की डिलीवरी लेगा।
  •  तीनों चरण में जो भी कारोबार होगा, उसे आसान बनाने हेतु वाल्ट मैनेजर्स, डिपॉज़िटरीज़, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और स्टॉक एक्सचेंज के मध्य एक कॉमन इंटरफेस (Common Interface) को विकसित किया जाएगा। 
  • इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट्स के तहत सोने के विभिन्न प्रस्तावित मूल्य जैसे 1 किलोग्राम, 100 ग्राम, 50 ग्राम का होगा तथा कुछ शर्तों के साथ इन्हें 5 और 10 ग्राम में भी रखा जा सकेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट की खरीद के समय प्रतिभूति लेन-देन कर (Security Transaction Tax- STT) और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (Integrated Goods and Services Tax-IGST) लगाया जाएगा।

सेबी द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे:

  • इनमें वॉल्ट मैनेजर्स के मध्य फंगिबिलिटी (Fungibility) और इंटरऑपरेबिलिटी (Interoperability) शामिल हैं।
  • फंगिबिलिटी का मतलब है कि ईजीआर 1 के तहत जमा किया गया सोना उसी अनुबंध विनिर्देशों को पूरा करने वाले ईजीआर 2 के अध्यर्पण (Surrender) पर  दिया जा सकता है।
  • इंटरऑपरेबिलिटी का मतलब है कि वॉल्ट मैनेजर द्वारा एक स्थान पर जमा किये गए गोल्ड को  किसी दूसरे स्थान पर उसी या अलग वॉल्ट मैनेजर से वापस प्राप्त किया जा सकता है। इससे खरीदारों (Buyers) की लागत कम होगी ।

गोल्ड के लिये अलग एक्सचेंज बनाने का कारण:

  • भारत में एक जीवंत स्वर्ण पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करना (Vibrant Gold Ecosystem) जो वैश्विक स्तर पर स्वर्ण  खपत के बड़े हिस्से के अनुरूप कार्य करता हो।
  • भारत (चीन के बाद) विश्व स्तर पर सोने का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जिसकी वार्षिक सोने की मांग लगभग 800-900 टन है, जो  वैश्विक बाज़ारों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • गोल्ड एक्सचेंज स्थापित करने के पीछे भारत का उद्देश्य  मूल्य चुकाने वाले  के बजाय एक मूल्य निर्धारणकर्त्ता बनना है और लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (London Bullion Market Association- LBMA) के समान भारत में अच्छे वितरण मानक स्थापित करना है ।
  • नया स्टॉक स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज स्थापित करने से  सिंगल रेफरेंस प्राइस (Single Reference Price), लिक्विडिटी (Liquidity), बेहतर डिलीवरी स्टैंडर्ड (Good Delivery Standard) जैसे फायदे हैं।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

कोविड से अनाथ हो रहे बच्चों पर तस्करी का संकट

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में भारत कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रहा है, जिससे बच्चों के अपने माता-पिता को खोने के मामले भी बढ़ रहे हैं।

  • इस स्थिति में अनाथ बच्चों को गोद लेने की आड़ में बाल तस्करी (Child Trafficking) की आशंका भी बढ़ गई है।

प्रमुख बिंदु

बच्चों की तस्करी के विषय में:

  • अलग-अलग सोशल मीडिया पोस्ट उन बच्चों का विवरण दे रहे हैं, जिन्होंने इस महामारी में अपने माता-पिता को खो दिया है और उन्हें गोद लेने की गुहार लगा रहे हैं।
  • किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act), 2015 की धारा 80 और 81 के तहत ऐसे पोस्ट साझा करना अवैध है, साथ ही इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रियाओं के बाहर बच्चों को देने या प्राप्त करने पर रोक लगाता है।
    • इस तरह के कृत्यों में तीन से पाँच वर्ष की जेल या 1 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है।
  • कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन में बाल विवाह (Child Marriage) के मामले भी बढ़े हैं।

अनाथ बच्चों के संरक्षण के लिये प्रावधान:

  • किशोर न्याय अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया का पालन अनाथ हो चुके बच्चों के लिये किया जाना चाहिये।
  • यदि किसी को ऐसे बच्चे के विषय में जानकारी है जिसे  देखभाल की आवश्यकता है, तो उसे चार एजेंसियों यथा- चाइल्ड लाइन 1098, ज़िला बाल कल्याण समिति (CWC), ज़िला बाल संरक्षण अधिकारी (DCPO) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की हेल्पलाइन में से किसी एक पर संपर्क करना चाहिये।
  • इसके बाद सीडब्ल्यूसी बच्चे का आकलन करेगी और उसे तत्काल एक विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी (Specialised Adoption Agency) की देखभाल में रखेगी।
    • इस प्रकार राज्य ऐसे सभी बच्चों की देखभाल करता है जिन्हें 18 वर्ष की आयु तक देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है।
  • एक बार जब सीडब्ल्यूसी द्वारा बच्चे को गोद लेने के लिये कानूनी रूप से वैध घोषित कर दिया जाता है, तब उसे भारतीय भावी दत्तक माता-पिता या अनिवासी भारतीय या विदेशियों द्वारा गोद लिया जा सकता है।
    • भारत ने अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण पर हेग कन्वेंशन (Hague Convention on Intercountry Adoption), 1993 की पुष्टि की है।
  • केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority), महिला और बाल विकास मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है, जो गोद लेने संबंधी मामलों की नोडल एजेंसी है।
    • यह अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का अपनी संबद्ध या मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से विनियमन करता है।
  • हालिया पहल (संवेदना):
    • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) कोविड-19 महामारी से प्रभावित बच्चों को मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से संचार के माध्यम से परामर्श प्रदान कर रहा है।

भारत में बाल तस्करी:

  • डेटा विश्लेषण:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी तस्करी पीड़ितों में से 51% बच्चे थे, जिनमें से 80% से अधिक लड़कियाँ थीं।
    • वर्तमान में सबसे अधिक प्रभावित राज्य पश्चिम बंगाल है जिसके बाद छत्तीसगढ़, झारखंड और असम हैं।
    • इन क्षेत्रों में बंधुआ मज़दूरी के लिये बच्चों की तस्करी और घरेलू कामों तथा यौन शोषण हेतु महिलाओं की तस्करी सबसे अधिक होती है।
  • संवैधानिक प्रावधान 
    • अनुच्छेद-21: सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जीवन जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
    • अनुच्छेद-23: मानव तस्करी/दुर्व्यापार और बेगार का निषेध। 
    • अनुच्छेद-24: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम करने के लिये या किसी अन्य खतरनाक रोज़गार में नियोजित नहीं किया  जाएगा।
    • अनुच्छेद-39: यह राज्य द्वारा पालन किये जाने वाले नीतिगत सिद्धांत प्रदान करता है, ताकि:
      • अनुच्छेद-39 (e): पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य एवं शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोज़गारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों
      • अनुच्छेद-39 (f): बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ एवं शोषण तथा नैतिक एवं आर्थिक परित्याग से बालकों तथा युवाओं की रक्षा की जाए।
    • अनुच्छेद-45: छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिये प्रारंभिक बाल्यावस्था देखरेख और शिक्षा का उपबंध।
  • कानूनी संरक्षण
    • अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (IPTA), 1986
    • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (A) और धारा 372
    • कारखाना अधिनियम, 1948 
  • अन्य संबंधित पहलें
    • भारत ने ‘यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज़्ड क्राइम’ (UNCTOC) की पुष्टि की है, जिसमें मानव, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की अवैध तस्करी को रोकने, कम करने और दंडित करने संबंधी प्रोटोकॉल (पालेर्मो प्रोटोकॉल) शामिल है।
    • भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने तथा उसका मुकाबला करने के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) कन्वेंशन की पुष्टि की है।
    • बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के तहत वर्ष 2007 में ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) की स्थापना की गई थी।
      • भारत ने ‘बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UNCRC) की भी पुष्टि की है

आगे की राह

  • ‘बच्चे’ एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति हैं और राष्ट्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ बच्चों का विकास किस प्रकार हो रहा है। बच्चों को गोद देने संबंधी प्रावधानों को बढ़ावा देने का प्राथमिक उद्देश्य उनके कल्याण और परिवार के उसके अधिकार को बहाल करना है।
  • संविधान का अनुच्छेद-39 बच्चों की कम उम्र के दुरुपयोग को प्रतिबंधित करता है। अतः अनाथ बच्चों, जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है या जिन्हें कोविड-19 महामारी के कारण छोड़ दिया है, को उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये और अनिश्चित भविष्य का सामना करने के लिये नहीं छोड़ना चाहिये। किशोर न्याय अधिनियम के तहत उत्तरदायी अधिकारियों द्वारा उनकी देखभाल की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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