ओपन स्काई संधि से अलग हुआ रूस
चर्चा में क्यों?
अमेरिका के ‘ओपन स्काई संधि’ (OST) से अलग होने की घोषणा के बाद रूस ने भी इस संधि से वापसी की घोषणा की है।
- रूस के अनुसार, यह संधि सदस्य देशों की सीमाओं में सैन्य गतिविधियों की जाँच के लिये गैर-हथियार वाले निगरानी विमानों की उड़ान की अनुमति देती है और इस संधि से अमेरिका की वापसी के कारण रूस के सामरिक हितों पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- ज्ञात हो कि बीते वर्ष नवंबर माह में अमेरिका ने यह कहते हुए ‘ओपन स्काई संधि’ (OST) से स्वयं को अलग कर लिया था कि रूस द्वारा इस संधि का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है।
नोट
- ‘ओपन स्काई संधि’, ‘ओपन स्काई समझौते’ से अलग है। ओपन स्काई समझौता एक द्विपक्षीय समझौता है, जो दो देशों की एयरलाइंस को अंतर्राष्ट्रीय यात्री एवं कार्गो सेवाओं को उपलब्ध कराने हेतु अधिकार प्रदान करता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय यात्री और कार्गो उड़ानों की पहुँच में विस्तार होता है। हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने भारत के साथ एक ‘ओपन स्काई समझौता’ करने के प्रति रुचि व्यक्त की है।
प्रमुख बिंदु
संधि से अमेरिका की वापसी का कारण
- रूस का निरंतर गैर-अनुपालन: अमेरिका बीते लगभग एक एक दशक से रूस पर ‘ओपन स्काई संधि प्रोटोकॉल’ का पालन न करने का आरोप लगाता रहा है। अमेरिका का आरोप है कि एक ओर रूस अमेरिका की निगरानी कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है, वहीं दूसरी और वह अपने मिशन के माध्यम से अमेरिका की सैन्य गतिविधियों के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना एकत्रित कर रहा है।
- यूक्रेनी क्षेत्र पर दावे के लिये संधि का दुरुपयोग: अमेरिका ने आरोप लगाया है कि रूस ने अतिक्रमण द्वारा क्रीमियन प्रायद्वीप में एक हवाई क्षेत्र को ओपन स्काई रीफ्यूलिंग क्षेत्र के रूप में मान्यता देकर अवैध रूप से यूक्रेनी क्षेत्र पर अपने दावे को और मज़बूत करने का कार्य किया।
- महत्त्वपूर्ण अवसंरचना संबंधी जोखिम: अमेरिका का आरोप है कि रूस युद्ध के दौरान संभावित हमले के लिये अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों की महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की पहचान कर रहा है।
संधि से रूस की वापसी का कारण
- अमेरिका द्वारा उल्लंघन: अमेरिका और कुछ अन्य देशों को कालिलिनग्राद (पूर्वी यूरोप में रूसी एन्क्लेव जो कि नाटो सहयोगी लिथुआनिया और पोलैंड के बीच स्थित है) में विमानों की उड़ानों की अनुमति नहीं देने के कदम का समर्थन करते हुए रूस ने अमेरिका द्वारा अलास्का के ऊपर उड़ानों पर समान प्रतिबंध लगाने का उदाहरण दिया।
- नाटो देशों से आश्वासन का अभाव: ‘ओपन स्काई संधि’ से अमेरिका की वापसी के बाद रूस को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देशों से इस संबंध में कोई अपेक्षित आश्वासन नहीं मिला, कि वे संधि के माध्यम से रूस से एकत्र किये गए डेटा को अमेरिका को हस्तांतरित नहीं करेंगे।
निहितार्थ
- यूरोपीय नाटो सदस्य देशों के लिये
- संधि से रूस की वापसी के कारण अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जो कि बाल्टिक क्षेत्र में रूसी सैन्य गतिविधियों को ट्रैक करने के लिये ‘ओपन स्काई संधि’ के डेटा पर निर्भर हैं।
- अन्य संधियों पर प्रभाव
- ‘ओपन स्काई संधि’ की विफलता के साथ ही एक और महत्त्वपूर्ण हथियार नियंत्रण संधि का महत्त्व समाप्त हो गया है, जबकि इससे पूर्व वर्ष 2019 में अमेरिका और रूस दोनों ने ‘मध्यम दूरी परमाणु बल संधि’ से स्वयं को अलग कर लिया था। इस संधि का उद्देश्य परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इंटरमीडिएट रेंज और शाॅर्ट-रेंज मिसाइलों के अपने स्टॉक को नष्ट करना था।
- ‘ओपन स्काई संधि’ से अमेरिका और रूस की वापसी के कारण फरवरी 2021 में समाप्त होने वाली ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ {New Strategic Arms Reduction Treaty-(START)} के पुनः नवीनीकरण पर संदेह गहरा गया है।
- भारत के लिये
- वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते अविश्वास के कारण भारत के लिये भविष्य में अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
ओपन स्काई संधि (OST)
पृष्ठभूमि
- इस संधि की अवधारणा शीत युद्ध के शुरुआती वर्षों के दौरान अमेरिका द्वारा तनाव को कम करने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई थी।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो सदस्यों और पूर्ववर्ती वारसा संधि में शामिल देशों के बीच मार्च 1992 में फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी (Helsinki) में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- पश्चिम जर्मनी के नाटो में शामिल होने के बाद सोवियत संघ और उसके सहयोगी राष्ट्रों के बीच वारसा संधि (1955) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह एक पारस्परिक रक्षा समझौता था, जिसे पश्चिमी देशों ने पश्चिम जर्मनी के नाटो की सदस्यता के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में माना।
लक्ष्य
- आत्मविश्वास में बढ़ोतरी: इस संधि का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच विश्वास को बढ़ाना और परस्पर सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता को मज़बूती प्रदान करना है।
प्रावधान
- निगरानी: इस संधि में 34 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों (अमेरिका और रूस सहित) को संधि में शामिल अन्य देशों की सीमाओं में सैन्य गतिविधियों की जाँच के लिये गैर-हथियार वाले निगरानी विमानों की उड़ान की अनुमति है।
- इस निगरानी के दौरान केवल इमेजिंग उपकरणों की ही अनुमति दी जाती है।
- इस निगरानी के दौरान उस देश के सदस्य भी निगरानी प्रकिया में हिस्सा ले सकते हैं, जिसकी निगरानी की जा रही है।
- रणनीतिक सूचना साझा करना: सैन्य गतिविधियों, सैन्य अभ्यास और मिसाइल तैनाती आदि पर एकत्रित जानकारी को सभी सदस्य देशों के साथ साझा किया जाता है।
- अमेरिका और रूस दोनों इस संधि से अलग हो गए हैं।
- भारत इस संधि में शामिल नहीं है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2020 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2015 के बाद से अपने पाँच वर्षों के सबसे न्यूनतम स्तर 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया।
- व्यापार घाटा (Trade Deficit): जब किसी देश का कुल आयात उसके निर्यात से अधिक हो जाता है तो इस स्थिति को उसके व्यापार घाटे के रूप संदर्भित किया जाता है।
- व्यापार घाटे की गणना कुल आयात और निर्यात के अंतर के आधार पर की जाती है।
- व्यापार घाटा= कुल आयात -कुल निर्यात
प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2020 का द्विपक्षीय व्यापार: चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GAC) द्वारा जारी नवीन आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 87.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो वर्ष 2019 की तुलना में 5.6% कम है।
- वर्ष 2020 में भारत द्वारा चीन से किया गया कुल आयात 66.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें 10.8% की वार्षिक गिरावट देखने को मिली और यह वर्ष 2016 से सबसे निचले स्तर पर था।
- वर्ष 2020 में भारत से चीन को होने वाला निर्यात 16% की वार्षिक वृद्धि के साथ अब तक के सबसे उच्चतम स्तर 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- विश्लेषण:
- वर्ष 2020 में घरेलू मांग में गिरावट के कारण भारत के कुल आयात में गिरावट दिखने को मिली।
- हालाँकि अभी भी इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि भारत ने इन वस्तुओं को किसी अन्य देश से आयात कर या स्वयं ही निर्मित करते हुए चीन पर अपनी आयात निर्भरता को बदल दिया है।
- चीन से आयात होने वाले प्रमुख उत्पाद (वर्ष 2019 डेटा):
- विद्युत मशीनरी और उपकरण, जैविक रसायन उर्वरक आदि।
- चीन को निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पाद(2019 डेटा):
- लौह अयस्क, कार्बनिक रसायन, कपास और अपरिष्कृत हीरा।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 में COVID-19 के कारण आई मंदी के बाद विकास को पुनः गति प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई नई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ चीन में लौह अयस्क की मांग में वृद्धि देखी गई।
- चीन के साथ व्यापार घाटा:
- भारत और चीन के बीच व्यापार का संतुलन चीन के पक्ष में अधिक झुका हुआ है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2019 में 56.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- चीन के साथ भारी व्यापार घाटे के लिये दो कारकों को उत्तरदायी माना जा सकता है, भारत द्वारा प्राथमिक रूप से चीन को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की सीमित कमोडिटी बास्केट, और उन क्षेत्रों में बाज़ार पहुँच की बाधाएँ जहाँ भारत प्रतिस्पर्द्धी है, जैसे-कृषि उत्पाद तथा सूचना प्रौद्योगिकी।
- समय के साथ चीन से मशीनरी, बिजली से संबंधित उपकरणों, दूरसंचार, जैविक रसायनों और उर्वरकों के निर्यात ने भारत के कच्चे माल-आधारित वस्तुओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है।
- चीन पर आयात निर्भरता कम करने के लिये किये गए उपाय:
- पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव को देखते हुए भारत द्वारा 100 से अधिक चीनी मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगाया गया।
- भारत द्वारा कई क्षेत्रों में चीनी निवेश की जाँच में सख्ती की गई है, साथ ही सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को 5G परीक्षण से बाहर रखने के निर्णय पर विचार किया जा रहा है।
- सरकार ने हाल ही में चीन से टायरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, साथ ही घरेलू कंपनियों के "अवसरवादी अधिग्रहण" पर अंकुश लगाने के लिये भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों हेतु विदेशी निवेश के लिये पूर्व मंजूरी अनिवार्य कर दी है। यह एक ऐसा कदम है जो चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को सीमित करेगा।
- वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने 12 क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें भारत को एक वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाने और आयात बिल में कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें खाद्य प्रसंस्करण, जैविक खेती, लोहा, एल्युमीनियम और तांबा, कृषि रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी, फर्नीचर, चमड़ा और जूते, ऑटो पार्ट्स, वस्त्र, मास्क, सैनिटाइज़र और वेंटिलेटर शामिल हैं।
- सक्रिय दवा सामग्री (API) के लिये चीन पर आयात निर्भरता में कटौती करने हेतु सरकार द्वारा मार्च 2020 में 13,760 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ चार योजनाओं वाले पैकेज को मंज़ूरी दी गई थी, इसका उद्देश्य देश में थोक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के घरेलू उत्पादन के साथ इनके निर्यात को बढ़ावा देना है।
स्रोत: द हिंदू
47वाँ G7 शिखर सम्मेलन
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड किंगडम ने भारतीय प्रधानमंत्री को जून 2021 में आयोजित होने वाले 47वें G7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
अन्य आमंत्रित देश
- भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी ‘अतिथि देशों’ के रूप में शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये आमंत्रित किया गया है।
ब्रिटेन, भारत और G7
- ब्रिटेन, भारत के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सीट का समर्थन करने वाला पहला P5 (सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देश) सदस्य और वर्ष 2005 में G7 शिखर सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करने वाला पहला G7 सदस्य देश था।
उद्देश्य
- इस सम्मेलन का उद्देश्य कोरोना वायरस महामारी से मुकाबला करने में मदद के लिये विश्व के अग्रणी लोकतंत्रों को एकजुट करना और अधिक समृद्ध भविष्य का निर्माण करना है।
ग्रुप ऑफ सेवन (G-7)
परिचय
- यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1975 में की गई थी।
- वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये वार्षिक तौर पर संगठन के सदस्य देशों की बैठक आयोजित की जाती है।
- G-7 संगठन का कोई औपचारिक संविधान और स्थायी मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान लिये गए निर्णय सदस्य देशों पर गैर-बाध्यकारी होते हैं।
सदस्य
- G-7 औद्योगिक रूप से विकसित लोकतांत्रिक देशों यानी फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा का समूह है।
- वर्ष 1997 में रूस के इस समूह में शामिल होने के बाद कई वर्षों तक G-7 को 'G- 8' के रूप में जाना जाता रहा।
- हालाँकि रूस को वर्ष 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद समूह से निष्कासित कर दिये जाने के पश्चात् समूह को एक बार पुनः G-7 कहा जाने लगा।
शिखर सम्मेलन
- G-7 शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है और समूह के सदस्यों द्वारा रोटेशन के आधार पर इस सम्मेलन की मेज़बानी की जाती है।
- शिखर सम्मेलन में होने वाली चर्चा के विषय और अनुवर्ती बैठकों समेत लगभग सभी मामले ‘शेरपा’ द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं, जो कि आमतौर पर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेताओं के प्रतिनिधि अथवा राजनयिक स्टाफ के सदस्य होते हैं।
- सम्मेलन के दौरान यूरोपीय संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जाता है।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
- नीतियाँ
- G-7 सदस्य देशों के बीच आंतरिक तौर पर कई असहमतियाँ मौजूद हैं, उदाहरण के लिये आयात पर लगने वाले कर और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्यवाहियों को लेकर अमेरिका और अन्य सदस्य देशों के बीच विवाद।
- वैश्विक स्तर पर मौजूदा राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति को सही ढंग से प्रतिबिंबित न कर पाने की वजह से संगठन की आलोचना की जाती है।
- प्रतिनिधित्व का अभाव
- अफ्रीका, लैटिन अमेरिका या दक्षिणी गोलार्द्ध का कोई देश G-7 संगठन का सदस्य नहीं है।
- यह अंतर-सरकारी संगठन विश्व की अन्य तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे- भारत और ब्राज़ील आदि से चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- वर्ष 1999 में वैश्विक आर्थिक चिंताओं से निपटने और अधिक देशों को एक साथ लाने के लिये G-20 समूह का गठन किया गया था।
भारत और G-7
- भागीदारी
- वर्ष 2019 में फ्रांँस में आयोजित 45वें G-7 शिखर सम्मेलन में भारत की हिस्सेदारी एक प्रमुख आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में भारत की रणनीतिक स्थिति को प्रतिबिंबित करती है।
- वर्ष 2020 में अमेरिका द्वारा भी भारत को शिखर सम्मेलन के लिये आमंत्रित किया गया था, हालाँकि यह सम्मेलन महामारी के कारण नहीं हो सका।
- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान भी भारत ने पाँच बार G-7 (तत्कालीन G-8 समूह) के सम्मेलनों में भाग लिया था।
- विचार-विमर्श हेतु महत्त्वपूर्ण मंच
- यह व्यापार, कश्मीर मुद्दे और रूस तथा ईरान के साथ भारत के संबंधों पर G-7 सदस्यों से विचार-विमर्श करने के लिये एक बेहतर मंच उपलब्ध कराता है।
- भारत के लिये G-7 का निहितार्थ
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, ब्रिक्स और G-20 आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में हिस्सेदारी के साथ भारत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से एक बेहतर वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
कोविड-19 की त्वरित जाँच के लिये रैपिड ब्लड टेस्ट
चर्चा में क्यों?
सेंट लुइस में स्थित वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ मेडिसिन’ (School of Medicine) के वैज्ञानिकों ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया है कि अपेक्षाकृत सरल और तीव्र गति से होने वाले एक रक्त परीक्षण से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किन COVID-19 रोगियों को गंभीर समस्याओं से ग्रसित होने या मृत्यु का सर्वाधिक खतरा है।
प्रमुख बिंदु
रक्त की जाँच के विषय में:
- यह माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को मापता है। यह एक अद्वितीय डीएनए अणु है जो आमतौर पर कोशिकाओं के ऊर्जा केंद्रों के अंदर होता है।
- माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का कोशिकाओं के बाहर और रक्त में प्रवाहित होना इस बात का संकेत है कि शरीर में एक विशेष प्रकार की उग्र कोशिका की मृत्यु हो रही है।
अध्ययन:
- इस अध्ययन में टीम ने कोविड-19 के 97 रोगियों के परीक्षण के लिये अस्पताल में भर्ती होने के दिन उनके माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को मापा।
- उन्होंने पाया कि आईसीयू में भर्ती या मृत रोगियों में माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का स्तर बहुत अधिक था।
- यह अध्ययन उम्र, लिंग और अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों से स्वतंत्र रोगियों से संबंधित था।
महत्त्व:
- यह परीक्षण रोग की गंभीरता के साथ-साथ नैदानिक परीक्षणों को बेहतर बनाने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है, जिसके माध्यम से रोगियों की बेहतर पहचान की जा सकती है।
- यह परीक्षण नए उपचारों की प्रभावशीलता को निगरानी करने के नए तरीके के रूप में प्रयोग कर सकता है। संभवतः इसका प्रभावी उपचार माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को कम करेगा।
- इसके अलावा इस परीक्षण ने बेहतर परिणामों की भविष्यवाणी की है जो मौजूदा परीक्षणों की तुलना में बेहतर है।
- कोविड-19 के रोगियों में मापे जाने वाले अधिकांश ‘मार्कर्स ऑफ इन्फ्लेमेशन’ जिनकी अभी भी जाँच चल रही है, वे कोशिका मृत्यु के लिये विशिष्ट रूप से उत्तरदायी सूजन के सामान्य निशान हैं।
- ‘इन्फ्लेमेशन’ चोट या संक्रमण के लिये शरीर की अंतर्जात प्रतिक्रिया है।
- ‘इन्फ्लेमेशन’ के दौरान कुछ प्रोटीन रक्त में प्रवाहित होते हैं; यदि उनकी सांद्रता कम-से-कम 25% बढ़ती या घटती है तो उन्हें प्रणालीगत उत्प्रेरकों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
माइटोकॉन्ड्रियल DNA:
- यह माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर पाया जाने वाला छोटा गोलाकार गुणसूत्र है।
- माइटोकॉन्ड्रिया उन कोशिकाओं में पाए जाने वाले अंग हैं जो ऊर्जा उत्पादन के स्थल हैं। ये ‘एडिनोसिन ट्राइ फॉस्फेट’ (Adenosine Triphosphate) के रूप में कोशिकीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं, इसलिये इसे कोशिका का 'पॉवर हाउस' कहा जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया विखंडन द्वारा विभाजित होता है।
- यह नाभिक में मौजूद डीएनए (Deoxyribonucleic Acid) से अलग है।
- माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए छोटा और गोलाकार होता है। इसमें केवल 16,500 या इतने ही बेस पेयर्स (Base Pairs) होते हैं। यह उन विभिन्न प्रोटीनों का कूट-लेखन करता है जो माइटोकॉन्ड्रिया के लिये विशिष्ट हैं।
- नाभिकीय जीनोम रैखिक होता है और लगभग 3.3 बिलियन डीएनए बेस पेयर्स (Base Pairs) से मिलकर बना है।
- माइटोकॉन्ड्रियल जीन आवरण के साथ-साथ क्रोमेटिन से भी युक्त नहीं होता है।
- नाभिकीय डीएनए के विपरीत माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए माता से विरासत में मिलता है, जबकि नाभिकीय डीएनए माता-पिता दोनों से विरासत में मिलता है।
- यदि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए बेस (Mitochondrial DNA Bases) में से कुछ में दोष है तो यह एक उत्परिवर्तन कहलाता है। अगर एक माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी होगी तो मांसपेशियाँ , मस्तिष्क और किडनी जैसे अंग पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न करने में असमर्थ होंगे।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
सरकार की विनिवेश योजनाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) ने कोविड-19 महामारी के कारण पवन हंस (Pawan Hans) के रणनीतिक विनिवेश (Disinvestment) हेतु बोली की समयसीमा को एक माह के लिये बढ़ा दिया है।
- नई दिल्ली स्थित पवन हंस लिमिटेड एक हेलीकॉप्टर सेवा कंपनी है। यह मिनी रत्न-I श्रेणी का सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठ भूमि:
- वर्ष 2020-2021 के लिये सरकार का विनिवेश लक्ष्य: सरकार ने वर्ष 2020-21 में विनिवेश के माध्यम से 2.1 लाख करोड़ रुपए जुटाने की योजना बनाई है, जिसमें कुछ शेयरों को बेचकर अब तक लगभग 14,000 करोड़ रुपए जुटाए गए हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र की नई नीति: सरकार ने मई 2020 में 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत घोषणा की थी कि रणनीतिक क्षेत्रों में अधिकतम चार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ होंगी और अन्य क्षेत्रों में राज्य के स्वामित्व वाली फर्मों का अंततः निजीकरण किया जाएगा। ।
- इस नीति के तहत रणनीतिक क्षेत्रों के लिये एक सूची अधिसूचित की जाएगी जिसमें निजी कंपनियों के अलावा कम-से-कम एक और अधिकतम चार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम होंगे।
- अन्य क्षेत्रों में औचित्य के आधार पर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) का निजीकरण किया जाएगा।
वर्तमान स्थिति:
- पवन हंस के विनिवेश के लिये बोली की समयसीमा एक महीने के लिये बढ़ा दी गई है।
- इस साल एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों की रणनीतिक बिक्री पूरी होने की संभावना नहीं है।
- बाज़ारों में भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India- LIC) को सूचीबद्ध करने के लिये LIC अधिनियम, 1986 में और संशोधन की आवश्यकता है।
विनिवेश प्रक्रिया की आवश्यकता:
- सरकार पर आर्थिक रिकवरी के लिये संसाधन जुटाने और स्वास्थ्य देखभाल के लिये उच्चतर अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव है।
- सार्वजनिक व्यय में वृद्धि को काफी हद तक आगामी बजट में विनिवेश आय और मौद्रिक परिसंपत्तियों को बेचकर पूरा करना होगा।
- सरकार की भागीदारी गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में कम करना।
विनिवेश
- विनिवेश का अर्थ है सरकार द्वारा संपत्तियों की बिक्री या परिशोधन। इसमें केंद्रीय और राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, परियोजनाएँ या अन्य अचल संपत्तियाँ शामिल होती हैं।
- जिस तरह अन्य नियमित स्रोतों से राजस्व की कमी को पूरा किया जाता है, उसी प्रकार सरकारी खजाने पर राजकोषीय बोझ को कम करने या विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा धन जुटाने के लिये विनिवेश किया जाता है।
- रणनीतिक विनिवेश के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के स्वामित्व और नियंत्रण का हस्तांतरण किसी अन्य इकाई (ज्यादातर निजी क्षेत्र की इकाई) को किया जाता है ।
- साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री या विनिवेश का मतलब एक प्रकार के निजीकरण से है।
- विनिवेश आयोग द्वारा रणनीतिक बिक्री को केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) में सरकारी हिस्सेदारी के 50 प्रतिशत हिस्से की बिक्री अथवा ऐसा उच्च प्रतिशत, जो कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित किया गया हो, के रूप में परिभाषित किया जाता है, साथ ही इसमें उद्यमों के प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी शामिल होता है।
- वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में रणनीतिक हिस्सेदारी की बिक्री हेतु एक नोडल विभाग है।
- भारत में रणनीतिक विनिवेश को मूल आर्थिक सिद्धांत द्वारा निर्देशित किया जाता है।सरकार को उन क्षेत्रों में विनिर्माण/उत्पादन और सेवाओं में संलग्न नहीं होना चाहिये जहाँ प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार विद्यमान हो।
- विभिन्न कारकों के कारण इस प्रकार की संस्थाओं की आर्थिक क्षमता रणनीतिक निवेशकों द्वारा बेहतर तरीके से विकसित की जा सकती है, उदाहरण के लिये- पूंजी, प्रौद्योगिकी उन्नयन और कुशल प्रबंधन प्रथाओं द्वारा।
स्रोत: द हिंदू
5G प्रौद्योगिकी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunication) ने दूरसंचार कंपनियों और अन्य उद्योग जगत के विशेषज्ञों से अगले 10 वर्षों में 5जी (Fifth Generation) बैंड सहित रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम (Radio Frequency Spectrum) की बिक्री और उपयोग पर जानकारी मांगी है।
प्रमुख बिंदु:
5G प्रौद्योगिकी की विशेषताएँ:
- मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम: 5G नेटवर्क मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम (30-300 गीगाहर्ट्ज़) में काम करेगा। इस नेटवर्क के माध्यम से तीव्र गति से अधिक मात्रा में डेटा भेजा जा सकता है क्योंकि आवृत्ति अधिक होने के कारण यह आसपास के संकेतों से बहुत कम प्रभावित होगा।
- उन्नत LTE: 5G, मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क में नवीनतम दीर्घकालिक अपग्रेड (Long-Term Evolution) है।
- इंटरनेट स्पीड: 5G के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट की स्पीड को 20 Gbps (प्रति सेकंड गीगाबिट्स) दर्ज किया गया है, जबकि 4G में इंटरनेट की स्पीड 1 Gbps होती है।
- 5G नेटवर्क में डाउनलिंक (Downlink) की स्पीड 20 Gb/s और अपलिंक (Uplink) की स्पीड 10 Gb/s होगी।
- 5G में बैंड: 5G मुख्य रूप से 3 बैंड (निम्न, मध्यम और उच्च आवृत्ति स्पेक्ट्रम) में काम करता है, जिसमें सभी के अपने उपयोग के साथ-साथ सीमाएँ भी हैं।
- कम बैंड का स्पेक्ट्रम: इसमें इंटरनेट की गति और डेटा के आदान-प्रदान की अधिकतम गति 100 Mbps तक होती है।
- मध्यम बैंड का स्पेक्ट्रम: इसमें कम बैंड के स्पेक्ट्रम की तुलना में इंटरनेट की गति अधिक होती है, फिर भी इसके कवरेज क्षेत्र और सिग्नलों की कुछ सीमाएँ हैं।
- उच्च बैंड का स्पेक्ट्रम: इसमें अन्य दो बैंडों की तुलना में उच्च गति होती है, लेकिन कवरेज और सिग्नल भेदन की क्षमता बेहद सीमित होती है।
5G प्रौद्योगिकी में बाधाएँ:
- आधारभूत संरचनाएँ: 5G संचार प्रणाली के लिये मौजूदा संरचनाओं में मूलभूत परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी। 5G प्रोद्योगिकी से डेटा का ट्रांसफर अधिक दूरी तक नहीं हो सकता है। इसलिये 5G तकनीक हेतु बुनियादी ढाँचे को सक्षम करने की ज़रूरत है।
- उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ: 5G प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिये नया फोन खरीदना पड़ेगा, जिससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
- पूंजी अपर्याप्तता: दूरसंचार कंपनियों (जैसे भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया) के पास उच्च मूल्य वाले 5G स्पेक्ट्रम को खरीदने के लिये पर्याप्त पूंजी की कमी है।
- 5G अनुप्रयोगों की उपयोगिता: 5G प्रोद्योगिकी क्लाउड, बिग डेटा, एज कंप्यूटिंग आदि के माध्यम से चौथी औद्योगिक क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक हो सकता है।
- भारत के लिये: 5G नेटवर्क मोबाइल बैंकिंग और हेल्थ केयर जैसी सेवाओं की पहुँच में सुधार कर सकता है और रोज़गार के नए अवसर सृजित कर सकता है।
5G को सक्षम करने हेतु नीति:
- राष्ट्रीय संचार नीति-2018: इस नीति का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था और समाज में बदलना है। यह कार्य सर्वव्यापी, लचीला और किफायती डिजिटल संचार अवसंरचना तथा सेवाओं की स्थापना कर नागरिकों एवं उद्यमों की सूचना और संचार आवश्यकताओं को पूरा कर किया जाएगा।
- उपभोक्ता केंद्रित और एप्लीकेशन प्रेरित राष्ट्रीय संचार नीति- 2018 हमें 5G, IOT, M2M जैसी अग्रणी टेक्नोलॉजी लॉन्च होने के बाद नए विचारों तथा नवाचार की ओर ले जाएगी।
5G पर वैश्विक प्रगति:
- वैश्विक दूरसंचार कंपनियों द्वारा पहले ही 5G नेटवर्क का निर्माण शुरू किया जा चुका है और अब इसे कई देशों में ग्राहकों के लिये उपलब्ध कराया जा रहा है:
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने 50 शहरों में 5G की शुरुआत की गई है।
- दक्षिण कोरिया द्वारा इसे 85 शहरों में शुरू किया गया है।
- जापान और चीन ने भी 5G मोबाइल सेवा का परीक्षण शुरू कर दिया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नोमुरा इंडिया नॉर्मलाइज़ेशन इंडेक्स’ (Nomura India Normalization Index- NINI) के नवीनतम अध्ययन में भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 तथा K-शेप्ड रिकवरी के प्रभाव संबंधी आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं।
- नोमुरा सर्विसेज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (नोमुरा होल्डिंग्स इंक-Nomura Holdings Inc) एक उपभोक्ता सेवा प्रदाता कंपनी है।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन के निष्कर्ष के प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 का परिवारों पर प्रभाव:
- पिरामिड के शीर्ष पर स्थित परिवारों में लॉकडाउन के दौरान काफी हद तक आय का संरक्षण, बचत दर में वृद्धि के साथ ही भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये धन एवं वस्तुओं का संग्रह किया गया।
- इन घरों में रहने वाले लोगों की नौकरियों और आय के स्थायी रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
- वर्तमान मौद्रिक नीति का प्रभाव:
- लंबे समय से चली आ रही ‘अति समायोजन की मौद्रिक नीति’ के कारण वास्तविक उधार दरों में गिरावट आई है जो अंततः ब्याज-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये राहत का कार्य करेगी।
- ‘आर्थिक प्रसार’ एक कंपनी के पूंजी निवेश पर आय सृजन की क्षमता संबंधी उपाय है।
- लंबे समय से चली आ रही ‘अति समायोजन की मौद्रिक नीति’ के कारण वास्तविक उधार दरों में गिरावट आई है जो अंततः ब्याज-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये राहत का कार्य करेगी।
- टीकाकरण का प्रभाव:
- यात्रा, पर्यटन और टूरिज़्म जैसे बड़े क्षेत्र आखिरकार COVID-19 के प्रभाव से उभरेंगे।
- COVID-19 के बाद आर्थिक पुनर्बहाली:
- वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% हो गया है, जो पूर्व-महामारी लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद के 3.5% का दोगुना है। इसलिये सरकार उच्च ईंधन करों, विनिवेश और सिन टैक्स को प्रोत्साहित कर रही है।
- भारत ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ के दौर से गुज़र रहा है, जिससे कॉरपोरेट्स और परिवारों की अच्छी आर्थिक स्थिति के साथ अधिक मज़बूती आई है, जबकि छोटी फर्में और गरीब परिवार महामारी के कारण उत्पन्न गरीबी और ऋणग्रस्तता के दुष्चक्र में फँसे हैं।
इकोनॉमिक रिकवरी
- अर्थ:
- यह मंदी के बाद की व्यावसायिक चक्र अवस्था है, इसकी प्रमुख विशेषता एक निरंतर अवधि में व्यावसायिक गतिविधियों में सुधार होना है।
- आमतौर पर आर्थिक सुधार के दौरान सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है, आय में वृद्धि होती है और बेरोज़गारी कम होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की पुनर्बहाली होती है।
- प्रकार:
- ‘इकोनॉमिक रिकवरी’ के कई रूप होते हैं, जिसे वर्णमाला संकेतन का उपयोग करके दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिये, Z-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, V-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, U-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, U-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, W-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, L-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी और K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी।
- K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी
- K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी तब होती है, जब मंदी के बाद अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग दर, समय या परिमाण में ‘रिकवरी’ होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों, उद्योगों या लोगों के समूहों में समान ‘रिकवरी’ के सिद्धांत के विपरीत है।
- के-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी से अर्थव्यवस्था की संरचना में व्यापक परिवर्तन होता है और आर्थिक परिणाम मंदी के पहले तथा बाद में मौलिक रूप से बदल जाते हैं।
- इस प्रकार की रिकवरी को ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ कहा जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र जब एक मार्ग पर साथ चलते हैं तो डायवर्ज़न के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो कि रोमन अक्षर ‘K’ की दो भुजाओं से मिलता-जुलता है।
COVID-19 के बाद ‘के-शेप्ड रिकवरी’ के निहितार्थ:
- निचले वर्ग के परिवारों को नौकरियों और मज़दूरी में कटौती के रूप में आय का स्थायी नुकसान हुआ है, अगर श्रम बाज़ार में तेज़ी से सुधर नहीं होता है तो यह मांग पर आवर्ती दवाब बढ़ाएगा।
- COVID-19 के कारण आय का प्रभावी हस्तांतरण गरीबों से अमीरों की ओर देखा गया है, इससे मांग में बाधा उत्पन्न होगी क्योंकि गरीबों में आय की तुलना में उपभोग की एक उच्च सीमांत प्रवृत्ति होती है (यानी वे बचत करने के बजाय खर्च करने की प्रवृत्ति रखते हैं)।
- यदि COVID-19 की वजह से आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है या आय और अवसरों की बीच असमानता में वृद्धि होती है तो यह उत्पादकता को नुकसान पहुँचाकर और राजनीतिक-आर्थिक बाधाओं को बढ़ाकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की प्रवृत्ति पर रोक लगा सकता है।
आगे की राह:
- के-शेप्ड रिकवरी और महामारी के कारण उत्पन्न गरीबी को देखते हुए सब्सिडी, रोज़गार सृजन, ग्रामीण विकास और अन्य सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों में खर्च करने के लिये बजटीय आवंटन के बढ़ने की संभावना है।