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डेली न्यूज़

  • 18 Nov, 2019
  • 58 min read
भूगोल

एक्वा अल्ता

प्रीलिम्स के लिये:

एड्रियाटिक सागर, ज्वार-भाटा, इटली की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

ज्वार-भाटा की निर्माण-प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इटली में एड्रियाटिक सागर के तट पर स्थित वेनिस में बाढ़ के कारण जलभराव की समस्या उत्पन्न हो गई।

  • यह घटना तट पर आए उच्च ज्वार के कारण घटित मानी जा रही है। हालाँकि कुछ विश्लेषक एवं इटली के राजनीतिज्ञ इसकी व्याख्या जलवायु परिवर्तन के परिणाम के रूप में कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • "एक्वा अल्ता" (Acqua Alta) एड्रियाटिक सागर में असाधारण उच्च ज्वार को दिया गया नाम है।
  • वेनिस उत्तर-पूर्व इटली में एड्रियाटिक सागर के तट पर स्थित है।
  • वेनिस में इस जलभराव का स्तर 1.87 मीटर (6 फीट से अधिक) के करीब था। वर्ष 1966 में आई बाढ़ के दौरान जल स्तर 1.91 मीटर था। अतः वर्तमान बाढ़ की विभीषिका पिछले 50 वर्षों में सबसे अधिक मानी जा सकती है।
  • शहर के सेंट मार्क स्क्वायर में जलभराव एक मीटर था जबकि निकटवर्ती सेंट मार्क बेसिलिका में पिछले 1,200 वर्षों में छठी बार और पिछले 20 वर्षों में चौथी बार इतनी तीव्र बाढ़ आई थी।
  • शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध में तथा शीत ऋतु में इस क्षेत्र में उच्च ज्वार या जिसको अधिक तीव्रता के कारण एक्वा अल्ता भी कहा जाता है, के घटित होने की दशाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • पिछले वर्ष अक्तूबर के अंत में उच्च ज्वार के कारण वेनिस की नहरों के जल स्तर में वृद्धि हुई, इससे शहर का लगभग 75 प्रतिशत भाग जलमग्न हो गया था।

वेनिस

  • वेनिस उत्तर-पूर्वी इटली का एक शहर और वेनेटो प्रदेश की राजधानी है।
  • यह 118 छोटे द्वीपों का समूह है, जो नहरों द्वारा अलग किये गए हैं और 400 से अधिक पुलों से आबद्ध हैं।
  • ये द्वीप विनीशियन लैगून में स्थित हैं, जो एक संलग्न खाड़ी है तथा पो और पियावे नदियों के मुहाने के मध्य स्थित है।
  • लैगून और शहर के एक हिस्से को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • वेनिस को ‘ला डोमिनेंट’, ‘ला सेरेनिसीमा’, ‘एड्रियाटिक की रानी’, ‘पानी का शहर’, ‘पुलों का शहर’, ‘तैरता हुआ शहर’ और ‘नहरों का शहर’ के रूप में जाना जाता है।

MOSE परियोजना: बाढ़ अवरोधक प्रणाली

  • वर्ष 1991 के बाद से वेनिस को अत्यधिक महँगे और आवश्यक बाढ़ अवरोधक प्रणाली की ज़रूरत है, जिसे MOSE (प्रायोगिक इलेक्ट्रोमैकेनिकल मॉड्यूल के लिये संक्षिप्त नाम) कहा जाता है, जो 2003 से निर्माणाधीन है किंतु यह अब तक पूर्ण नहीं हो सका है।
  • MOSE परियोजना को वर्ष 2014 में पूर्ण किया जाना था बाद में इस अवधि को बढ़ाकर वर्ष 2016 कर दिया गया। किंतु इस परियोजना के वर्ष 2021 से पूर्व पूर्ण होने की संभावना नहीं है। लोगों का मानना है कि यदि यह प्रणाली पूर्ण रूप से सक्रीय होती तो इस प्रकार की बाढ़ से बचा जा सकता था।
  • वर्ष 2003 के बाद से इस बाढ़ अवरोधक प्रणाली के निर्माण में लगभग 5.5 बिलियन यूरो खर्च किया जा चुका है। इस परियोजना में अत्यधिक खर्च एवं देरी का कारण इसके अकुशल प्रशासन एवं भ्रष्टाचार को माना जा रहा है, जिसको लेकर प्रायः इसकी आलोचना होती रही है।
  • इस परियोजना की शुरुआती लागत 1.6 बिलियन यूरो थी, इसकी अत्यधिक बढ़ी हुई लागत इसके महँगा होने की ओर इशारा करती है वहीं दूसरी ओर MOSE परियोजना इस क्षेत्र में स्थित लैगून के लिये पर्यावरणीय संकट को जन्म दे रही है। इसके अतिरिक्त इस परियोजना का निर्माणाधीन हिस्सा भी खराब गुणवत्ता को लेकर चर्चा में बना हुआ है।

वास्तव में, पारिस्थितिक तंत्र और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च और निरंतर शक्तिशाली ज्वारों की स्थिति देखी जा रही है, जिसके लिये MOSE जैसी परियोजना उपयोगी सिद्ध हो सकती है। हालाँकि इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये जिस साधन का उपयोग कर रहे हैं वह अपने आप में इस क्षेत्र के लैगून पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गंभीर खतरा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये-

ICPD, UNFPA

मेन्स के लिये-

जनसंख्या वृद्धि की समस्या से निपटने के उपाय

चर्चा में क्यों?

नैरोबी में आयोजित विश्व जनसंख्या सम्मेलन में वैश्विक मंच पर भारत ने जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिये देश में जारी दंडात्मक कार्यवाई की बहस के बीच, गर्भनिरोधन के स्वैच्छिक और सूचित विकल्प की बात दोहराई।

प्रमुख बिंदु-

UNFPA

  • इस सम्मेलन का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन (International Conference on Population and Development) की 25वीं वर्षगाँठ पर केन्या की राजधानी नैरोबी में किया गया।
  • यह सम्मेलन केन्या और डेनमार्क की सरकारों द्वारा संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund -UNFPA) के साथ संयोजन में आयोजित किया गया।
  • ICPD25 पर नैरोबी शिखर सम्मेलन की शुरुआत निम्नलिखित 3 शोध के मुद्दों के साथ हुई-
    • शून्य मातृ मृत्यु
    • शून्य परिवार नियोजन की आवश्यकता
    • शून्य लैंगिक हिंसा
  • ऑस्ट्रिया, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, आइसलैंड, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम की सरकारों ने यूरोपीय आयोग के साथ मिलकर लगभग 1 बिलियन डॉलर का योगदान दिया।
  • निजी क्षेत्र के चिल्ड्रेन इन्वेस्टमेंट फंड (Children Investment Fund), फोर्ड फाउंडेशन, जॉनसन एंड जॉनसन, फिलिप्स, वर्ल्ड विज़न और कई अन्य संगठनों ने कुल 8 बिलियन डॉलर के योगदान की घोषणा की।

भारत के संदर्भ में-

  • वर्ष 1994 में काहिरा में महिलाओं के समग्र विकास और जनसंख्या नियंत्रण को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन में भारत 179 देशों में शामिल था।
  • भारत में लंबे समय से जनसंख्या नियंत्रण के लिये दंडात्मक कार्रवाई अपनाने की बात की जा रही है। लेकिन भारत सरकार ने इस सम्मेलन में गर्भनिरोधन के स्वैच्छिक विकल्पों की प्रतिबद्धता दोहरायी। भारत ने यह भी कहा कि वह गर्भ निरोधक दवाओं और परिवार नियोजन सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करेगा।
  • इससे पूर्व हाल ही में असम सरकार ने वर्ष 2021 से ऐसे व्यक्तियों को जिनके 2 से अधिक बच्चे होंगे, उन्हें सरकारी नौकरियों से प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है।
  • असम से पूर्व 12 अन्य राज्यों ने भी अलग अलग तरीकों से 2 बच्चों की नीति लागू करने की कोशिश की।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, 2 बच्चों के मानदंड के कारण अयोग्यता का सामना करने वालो में महिलाओं की संख्या (41%) और दलितों की संख्या (50%) अपेक्षाकृत अधिक थी।
  • भारत में ऐच्छिक प्रजनन दर 1.8 है, जिसका अर्थ है महिलाओं की एक बड़ी संख्या 2 से अधिक बच्चे नहीं पैदा करना चाहतीं।
  • एक अनुमान के अनुसार, 15-49 के आयु वर्ग में 30 मिलियन महिलाएं और 15 से 24 वर्ष के आयु वर्ग में 10 मिलियन महिलाएं गर्भधारण करना न चाहते हुए भी गर्भ निरोधक उपायों की पहुँच और जानकारी के अभाव में उनका प्रयोग नहीं कर पातीं।

अंतर्राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या एवं विकास सम्‍मेलन

वर्ष 1994 में ICPD का पहला सम्मलेन काहिरा में हुआ। जिसमें विश्व की 179 सरकारों ने महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों से संबंधित कार्यक्रम को राष्ट्रीय और वैश्विक विकास प्रयासों में अपनाने की प्रतिबद्धता दिखाई।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष

(United Nations Population Fund)

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की स्थापना वर्ष 1969 में की गई। UNFPA संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी है। UNFPA वैश्विक स्तर पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तृत विषयों पर कार्य करता है, जिसमें स्वैच्छिक परिवार नियोजन, मातृ स्वास्थ्य देखभाल और व्यापक यौन शिक्षा शामिल है।

स्रोत-डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

‘साँस’ अभियान

प्रीलिम्स के लिये

साँस (SAANS) अभियान क्या है?

मेन्स के लिये

भारत में निमोनिया के नियंत्रण के लिये किये जाने वाले प्रयास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने साँस (SAANS) अभियान की शुरुआत की।

मुख्य बिंदु:

  • साँस (Social Awareness and Action to Neutralise Pneumonia Successfully-SAANS) अभियान का उद्देश्य नवजात शिशुओं में निमोनिया से होने वाली मौतों को कम करना है।
  • भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों में 15 प्रतिशत की मौत निमोनिया की वजह से होती है।
  • स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (Health Management Information System-HMIS) द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के प्रति 1000 जीवित बच्चों में 37 की मौत हो जाती है जिसमें 5.3 मौतें सिर्फ निमोनिया की वजह से होती हैं।
  • HMIS के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में बच्चों में निमोनिया से होने वाली मौतों के सर्वाधिक मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किये गए, जबकि गुजरात दूसरे स्थान पर रहा।
  • सरकार ने बच्चों में निमोनिया से होने वाली मौतों के नियंत्रण हेतु वर्ष 2025 तक प्रति 1000 जीवित बच्चों पर होने वाली मौतों को 3 से कम करने का लक्ष्य रखा है।
  • इस अभियान द्वारा बच्चों में होने वाले निमोनिया पर नियंत्रण के लिये सरकार प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों तथा अन्य हितधारकों के माध्यम से उपचार मुहैया कराएगी।
  • इसके अलावा निमोनिया से ग्रसित बच्चों को आशा (Accredited Social Health Activist-ASHA) कार्यकर्ता द्वारा अमोक्सीसीलीन (Amoxicillin) नामक एंटीबायोटिक की खुराक दी जाएगी।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter) द्वारा बच्चों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जाएगा तथा आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन सिलिंडर के प्रयोग से उसका उपचार किया जाएगा।

पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter) - यह एक यंत्र है जिसके माध्यम से मानव शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जाता है।

  • इसके तहत बच्चों में निमोनिया के उन्मूलन हेतु स्तनपान तथा आयु के अनुसार पूरक आहार पर बल देने के लिये प्रचार एवं जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

स्रोत : द हिंदू एवं पी. आई. बी.


शासन व्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की राफेल पर पुनर्विचार याचिका

प्रीलिम्स के लिये:

राफेल समझौता/डील

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला तथा भारत के लिये राफेल का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

14 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल सौदे पर दिसंबर, 2018 में दिये गए अपने फैसले के खिलाफ दायर की गई सभी समीक्षा/पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

Rafale with SC

क्या कहा न्यायालय ने?

  • मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ भी शामिल थे। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, पुनर्विचार याचिकाएँ सुनवायी योग्य नहीं थी।

किसने दायर की थी पुनर्विचार याचिका?

  • राफेल मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 10 मई 2019 को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 10 अप्रैल, 2019 को दस्तावेजों की जाँच के खिलाफ केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया था। अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल के अनुसार, दस्तावेज़ प्राधिकरण की मंज़ूरी के बिना प्राप्त किये गये थे अतः यह आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन था।

सर्वोच्च न्यायालय का 14 दिसंबर का निर्णय

  • 14 दिसंबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार, “36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने में निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया पर संदेह करने जैसी कोई बात नहीं है” और इस तरह से से न्यायालय ने अपने निर्णय में केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी।

क्या था पुनर्विचार याचिका में?

  • सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाए गये थे। सर्वोच्च न्यायालय में विमानों की कीमत के संदर्भ में भी याचिका दायर की गई थी। याचिकाओं में ‘लीक’ हुए दस्तावेज़ का हवाला देते हुए ये आरोप लगाए गये कि इस समझौते PMO ने रक्षा मंत्रालय को भी भरोसे में नहीं लिया।

राफेल समझौता: महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भारत ने 36 राफेल की खरीद के लिये फ्रेंच सरकार के साथ एक समझौते पर 23 सितंबर, 2016 को हस्ताक्षर किये।
  • राफेल फ्रेंच ट्विन-इंजन मल्टी-रोल फाइटर जेट है जो ज़मीन और समुद्री हमलों, टोही, उच्च सटीक हमलों और परमाणु हमले की रोकथाम सहित लघु एवं लंबी दूरी के मिशनों की एक विस्तृत श्रृंखला को पूरा करने में सक्षम है।
  • राफेल जेट को विश्व स्तर पर सबसे शक्तिशाली मुकाबला करने में सक्षम जेट माना जाता है।
  • ये विमान फ्राँसीसी वायुसेना और नौसेना के लिये विकसित किये गए थे।
  • राफेल को 2004 में फ्रेंच नौसेना और 2006 में फ्रेंच वायुसेना में शामिल किया गया।
  • यह फ्राँसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित है।
  • यह एक मल्टीरोल फाइटर है जो ट्विन इंजन, टू सीटर, कैनर्ड विंग एयरक्राफ्ट है, इसकी अधिकतम गति 2000 किमी/घंटा है।
  • यह फ्रेंच स्नेका (snecma) एम 88 टर्बोफैन जेट इंजन द्वारा संचालित है।
  • यह 9500 किलोग्राम तक वज़न के हथियारों को उठाने में सक्षम है।
  • इसे 400 मीटर से अधिक रनवे की आवश्यकता नहीं होती।
  • राफेल की 145 किमी की स्कैनिंग रेंज है।
  • इसका रडार एक साथ दो से अधिक लक्ष्यों को साधने में सक्षम है।
  • पहला ओमनी-रोल राफेल फाइटर जेट 2019 में भारत आएगा, जबकि सभी 36 फाइटर जेट भारत को अप्रैल 2022 तक सौंप दिये जाएंगे।
  • भारत ने 2017 में 226 मीडियम-मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के खरीद की प्रक्रिया शुरू की।
  • अप्रैल 2015 में 36 राफेल एयरक्राफ्ट की खरीद से संबंधित इंडिया-फ्रेंच संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

न्यायालय की अवमानना

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायालय की अवमानना

मेन्स के लिये:

न्यायालय की अवमानना से संबंधित विभिन्न संवैधानिक पक्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रैनबैक्सी (Ranbaxy) के पूर्व प्रमोटरों को अपने आदेश के उल्लंघन के लिये अवमानना का दोषी ठहराया है।

मुख्य बिंदु:

  • जापानी दवा निर्माता कंपनी दाइची (Daiichi) द्वारा दायर याचिका के अनुसार, रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटरों ने न्यायालय की रोक के बावजूद फोर्टिस हेल्थकेयर (Fortis Healthcare) के शेयरों की बिक्री की।
  • दाइची कंपनी द्वारा 3,500 करोड़ रूपए के आर्बिट्रेशन (Arbitration) अवार्ड मामले में रैनबैक्सी कंपनी के पूर्व प्रमोटरों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गई थी।
  • दाइची ने वर्ष 2008 में रैनबैक्सी को खरीदा था। बाद में दाइची ने सिंगापुर ट्रिब्यूनल में शिकायत करते हुए कहा कि रेनबेक्सी ‘यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (US Food and Drug Administration) द्वारा की जा रही जाँच के दायरे में थी तथा कंपनी के प्रमोटर्स ने दाइची के साथ हुए सौदे के दौरान इस जाँच के बारे में नहीं बताया था।

न्यायालय की अवमानना:

  • न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) के अनुसार, न्यायालय की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना है।
  • इस अधिनियम में अवमानना को ‘सिविल’ और ‘आपराधिक’ अवमानना में बाँटा गया है।
    • सिविल अवमानना: न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, आदेश, रिट, अथवा अन्य किसी प्रक्रिया की जान बूझकर की गई अवज्ञा या उल्लंघन करना न्यायालय की सिविल अवमानना कहलाता है।
    • आपराधिक अवमानना: न्यायालय की आपराधिक अवमानना का अर्थ न्यायालय से जुड़ी किसी ऐसी बात के प्रकाशन से है, जो लिखित, मौखिक, चिह्नित , चित्रित या किसी अन्य तरीके से न्यायालय की अवमानना करती हो।
  • हालाँकि किसी मामले का निर्दोष प्रकाशन, न्यायिक कृत्यों की निष्पक्ष और उचित आलोचना तथा न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष पर टिप्पणी करना न्यायालय की अवमानना के अंतर्गत नहीं आता है।

न्यायालय की अवमानना के लिये दंड का प्रावधान:

  • सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को अदालत की अवमानना के लिये दंडित करने की शक्ति प्राप्त है। यह दंड छह महीने का साधारण कारावास या 2000 रूपए तक का जुर्माना या दोंनों एक साथ हो सकता है।
  • वर्ष 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि उसके पास न केवल खुद की बल्कि पूरे देश में उच्च न्यायालयों, अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों की अवमानना के मामले में भी दंडित करने की शक्ति है।
  • उच्च न्यायालयों को न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 10 के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों की अवमानना के लिये दंडित करने का विशेष अधिकार प्रदान किया गया है।

अवमानना अधिनियम की आवश्यकता:

  • न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 का उद्देश्य न्यायालय की गरिमा और महत्त्व को बनाए रखना है।
  • अवमानना से जुड़ी हुई शक्तियाँ न्यायाधीशों को भय, पक्षपात और की भावना के बिना कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में सहायता करती हैं।

संवैधानिक पृष्ठभूमि:

  • अनुच्छेद 129: सर्वोच्च न्यायालय को स्वंय की अवमानना के लिये दंडित करने की शक्ति देता है।
  • अनुच्छेद 142 (2): यह अनुच्छेद अवमानना के आरोप में किसी भी व्यक्ति की जाँच तथा उसे दंडित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय को सक्षम बनाता है।
  • अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों को स्वंय की अवमानना के लिये दंडित करने में सक्षम बनाता है।

अवमानना से जुड़े अन्य मुद्दे :

  • संविधान का अनुच्छेद-19 भारत के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति एवं भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करता है परंतु न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 द्वारा न्यायालय की कार्यप्रणाली के खिलाफ बात करने पर अंकुश लगा दिया है।
  • कानून बहुत व्यक्तिपरक है, अतः अवमानना के दंड का उपयोग न्यायालय द्वारा अपनी आलोचना करने वाले व्यक्ति की आवाज़ को दबाने के लिये किया जा सकता है।

न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971

(Contempt of Court Act, 1971):

  • यह अधिनियम अवमानना के लिये दंडित करने तथा न्यायालयों की प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति को परिभाषित करता है।
  • इस कानून में वर्ष 2006 में धारा 13 के तहत ‘सत्य की रक्षा’ (Defence of Truth) को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया था।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

वित्त अधिनियम, 2017

प्रीलिम्स के लिये-

वित्त अधिनियम 2017

मेन्स के लिये-

भारतीय संसद की कार्यप्रणाली

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने संशोधित वित्त अधिनियम 2017 (Finance Act 2017) में सरकार को न्यायाधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में वर्णित नियमों को रद्द कर, नए मानक तय करने का निर्देश दिया।

प्रमुख बिंदु-

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में वित्त अधिनियम की धारा 184 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी जो केंद्र सरकार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियमों को फ्रेम करने का अधिकार देता है।
  • न्यायालय ने न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को रद्द करते हुए नए नियम बनाने का निर्देश दिया है।
  • इसके अलावा न्यायालय ने वित्त अधिनियम, 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने के मामले को उच्च पीठ के पास भेजने का आदेश दिया।

विवादास्पद बिंदु-

  • इस विधेयक में 40 से अधिक अति महत्त्वपूर्ण संशोधन प्रस्तुत किये गए थे।
  • इन संशोधनों के लिये दोनों सदनों में व्यापक और सार्थक बहस तथा सहमति आवश्यक थी।
  • परंतु अंतिम समय में सरकार ने इस विधेयक को धन विधेयक का दर्जा दिलवा कर बिना बहस के ही पारित करवा दिया।

धन विधेयक (Money Bill)-

संविधान के अनुच्छेद 110 में किसी विधेयक के धन विधेयक होने की निम्नलिखित शर्तें हैं-

  • करारोपण, कर के उन्मूलन, परिवर्तन और विनियमन संबंधी प्रावधान।
  • सरकार द्वारा ऋण लेने से संबंधित विनियमन।
  • भारत की संचित निधि, आकस्मिक निधि से धन निकालना या जमा करना।
  • भारत की संचित निधि से धन का विनियोग।
  • भारत की संचित निधि या लोक लेखा में कोई धन प्राप्त करना।

अनुच्छेद 117 के अनुसार धन विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश से केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।

वित्त विधेयक (Finance Bill)-

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 117(1) और 117(2) में वित्त विधेयक का उल्लेख किया गया है।
  • ऐसे सभी विधेयक जिनका संबंध वित्तीय मामलों से होता है वित्त विधेयक कहलाते हैं।
  • इस विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के बाद लोकसभा में पेश किया जाता है।
  • इसमें राज्यसभा को भी पर्याप्त शक्ति प्राप्त होती है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2017 में सरकार द्वारा वित्त विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया. सरकार ने इस विधेयक में चुनावी बाॅण्ड के प्रावधान होने के कारण इसे धन विधेयक के रूप में पारित करने का अनुमोदन किया।
  • जिस पर विपक्ष ने विरोध जताया लेकिन केंद्र सरकार ने वित्त विधेयक को धन विधेयक के रूप में पेश करके पारित करवा लिया।
  • केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इस प्रक्रिया को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि न्यायाधिकरण के अधिकारियों को भुगतान किए जाने वाले वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से आते हैं, अतः इसे धन विधेयक की श्रेणी में रख सकते हैं।
  • लेकिन उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्र की बहुलता और शक्ति के संतुलन के लिये राज्य सभा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

स्रोत- द हिन्दू


शासन व्यवस्था

जल गुणवत्ता रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

जल गुणवत्ता रिपोर्ट, भारतीय मानक ब्‍यूरो

मेन्स के लिये:

जल संसाधन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

16 नवंबर, 2019 को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs, Food & Public Distribution) ने दिल्‍ली और राज्‍यों की राजधानियों में उपलब्‍ध जल की गुणवत्‍ता पर रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख बिंदु

  • यह रिपोर्ट हर घर में 2024 तक नलों के जरिये लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्‍ध कराने एवं जल जीवन अभियान के अनुरूप जारी की गई है।
  • खाद्य एवं उपभोक्‍ता मामलों के मंत्रालय ने इसके लिये भारतीय मानक ब्‍यूरो (Bureau of India Standards- BIS) के माध्यम से दिल्‍ली तथा राज्‍यों की राजधानियों में नल के जरिये आपूर्ति किये जाने वाले पीने के पानी की गुणवत्‍ता की जाँच कराई और जाँच के नतीजों के आधार पर राज्‍यों, स्‍मार्ट शहरों और ज़िलों को रैकिंग दी गई।
  • इस रैंकिंग के प्रथम चरण में दिल्ली के विभिन्न स्थानों से तथा दूसरे चरण में 20 राज्यों की राजधानियों से नमूने एकत्रित किये गए थे। इन नमूनों को भारतीय मानक 10500: 2012 (BIS द्वारा पेयजल हेतु निर्धारित विशिष्टता) के अनुसार परीक्षण के लिये भेजा गया।

परीक्षण के मापदंड

  1. ऑर्गनोलेप्टिक और फिजिकल टेस्ट (Organoleptic and Physical Tests)
  2. रसायनिक परीक्षण
  3. विषाक्त पदार्थ की उपस्थिति
  4. जीवाणु/बैक्टीरिया की उपस्थिति
  5. कुल घुलित ठोस (Total Dissolve Solids- TDS) की मात्रा
  6. गंदलापन (Turbidity)
  7. कुल कठोरता (Hardness)
  8. कुल क्षारीयता (Alkalinity)
  9. खनिज और धातु की उपस्थिति
  10. कॉलिफॉर्म तथा ई कोलाई की उपस्थिति
  • एकत्रित नमूनों में से कई ऐसे थे जो मानक ब्‍यूरो द्वारा निर्धारित मापदंडों को पूरा करने में विफल रहे।
  • दिल्‍ली के विभिन्‍न स्‍थानों से एकत्रित किये गए पानी के ग्‍यारह नमूने कई निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरे। लेकिन मुंबई से एकत्र किये गए 10 नमूने सभी मानदंडों पर खरे पाए गए।
  • हैदराबाद, भुवनेश्‍वर,रांची,रायपुर,अमरावती और शिमला से एकत्रित किये गए पानी के एक या उससे अधिक नमूने मानदंडों पर सही नहीं पाए गए।
  • तेरह राज्‍यों की राजधानियों जैसे- चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, गुवाहाटी, बंगलूरू, गांधीनगर, लखनऊ, जम्‍मू, जयपुर, देहरादून, चेन्‍नई और कोलकाता से एकत्रित किये गए पानी के नमूनों में से कोई भी निर्धारित मानकों पर सही नहीं पाया गया।

चुनौतियाँ

  • विस्तारित पैकेज्ड पेयजल के कारण नल जल प्रणालियों (Tap Water Systems) में पहलों (Initiatives) की कमी।
  • तेज़ी से बढ़ते शहरी समूहों में पाइप्ड पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण भूजल पर उच्च निर्भरता।
  • आधिकारिक एजेंसियों में जवाबदेही का अभाव।
  • गुणवत्ता परीक्षण पर सार्वजनिक क्षेत्र में आँकड़ों की कमी।

आगे का राह

  • मानकों को प्राप्त करने और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिये एजेंसियों पर बाध्यकारी कानून लागू होने चाहिये।
  • राज्य सरकारों को आवास, जल आपूर्ति, स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
  • जल प्रबंधन के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।
  • एक ही नियमित एजेंसी पर भरोसा करने के बजाय प्रत्येक राज्य में एक अलग एजेंसी को परीक्षण कार्य सौंपा जाना चाहिये।
  • जल पर डेटा को हवा की गुणवत्ता से संबंधित डेटा के समान ही सार्वजनिक किया जाना चाहिये जिससे सरकारों पर कार्रवाई करने का अधिक दबाव बनाया जा सके।

स्रोत: PIB


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय कृषि रसायन सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कृषि रसायन सम्मेलन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

मेन्स के लिये:

कृषि उत्पादकता वृद्धि की संभावनाएँ तथा रसायनों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

13-16 नवंबर, 2019 के मध्य राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में प्रथम राष्ट्रीय कृषि रसायन सम्मेलन (National Agrochemicals Congress) का आयोजन किया गया।

थीम/विषय

कृषि रसायन के विभिन्न मोर्चों पर देश की स्थिति।

प्रमुख सिफारिशें

  • सम्मेलन में कीटनाशकों के संबंध में बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिफारिशें पेश की गईं, जो कि इस प्रकार हैं:
    • कीटनाशकों को इस्तेमाल करते हुए लेबलिंग का प्रयोग,
    • जोखिम आधारित प्रतिफल को ध्यान में रखते हुए कीटनाशकों पर प्रतिबंधात्मक रोक लगाना,
    • आयातित तकनीकी कीटनाशकों के आँकड़ों के संरक्षण के संबंध में नीति निर्माण करना,
    • सुरक्षित नैनो-सूत्रीकरण की शुरूआत, प्रशिक्षण और विस्तार के लिये किसानों को अधिकार संपन्न बनाना, आदि।

अन्य प्रमुख बिंदु

  • यह पहला राष्ट्रीय कृषि रसायन सम्मेलन था अब इसे हर तीन वर्ष पर आयोजित किया जाएगा।
  • सम्मेलन का आयोजन कीटनाशक प्रबंधन में रसायनिक कीटनाशकों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए किया गया है क्योंकि समय-समय पर लक्ष्य आधारित और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद शुरू किये जा रहे हैं। इसका आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute- IARI) नई दिल्ली के मुख्यालय में कीटनाशक विज्ञान भारत (Society of Pesticide Science India) द्वारा किया गया था।
  • कीटनाशक के उपयोग के लाभ उनके जोखिमों की तुलना में अधिक हैं।
  • फसलों, मानव स्वास्थ्य, संसाधन प्रबंधन, नैनो प्रौद्योगिकी, स्मार्ट निरूपण और संबंधित विज्ञानों में नई अवधारणाओं से कृषि उत्पादकता बढ़ाने की संभावना है।
  • इस पृष्ठभूमि के साथ, विभिन्न मोर्चों पर कृषि रसायनों को स्थायी रूप से विकसित करने के लिये शोधकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं के लिये वर्तमान स्थिति का परितुलन किया गया है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Agricultural Research-ICAR)

  • भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एक स्वायत्तशासी संस्था है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि के क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन एवं शिक्षा के लिये यह परिषद भारत का एक सर्वोच्च निकाय है।

पृष्ठभूमि

  • कृषि पर रॉयल कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत इसका पंजीकरण किया गया था जबकि 16 जुलाई, 1929 को इसकी स्थापना की गई।
  • पहले इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Imperial Council of Agricultural Research) था।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

CES, NSO

मेन्स के लिये:

CES से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

सरकार ने घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Household Consumer Expenditure Survey) के वर्ष 2017-2018 के डेटा के आँकड़ों को गुणवत्ता की वजह से नहीं जारी करने का निर्णय लिया है।

उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

  • उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey- CES) सामान्यतः पाँच वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता है और इसका अंतिम 68वें चरण का आयोजन जुलाई 2011 से जून 2012 के बीच किया गया था।
  • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) के तहत इसका संचालन NSO द्वारा किया जाता है।
  • यह घरेलू स्तर पर मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (Monthly Per-capita Consumer Expenditure- MPCE) और MPCE वर्ग से इतर घरों और व्यक्तियों (Household and Persons) के वितरण का अनुमान लगाता है।
  • यह घरों में वस्तुओं और सेवाओं (खाद्य और गैर-खाद्य) की खपत पर खर्च के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • इसका उपयोग सकल घरेलू उत्पाद और अन्य समष्टि-आर्थिक संकेतकों (Macro-Economic Indicators) के रीबेसिंग (Rebasing) में किया जाता है।

2018-19 सर्वेक्षण:

  • उपभोक्ता खर्च में लगातार कमी हो रही है और इसके प्रतिकूल निष्कर्षो (Adverse Findings) के कारण रिपोर्ट को जारी करने पर रोक लगा दी गई है।
  • वस्तु और सेवाओं के वास्तविक उत्पादन जैसे अन्य प्रशासनिक डेटा स्रोतों से तुलना करने पर अत्यधिक विचलन या भिन्नता देखी गई। यह भिन्नता केवल उपभोग पैटर्न के साथ-साथ परिवर्तन की दिशा (Direction Of the Change) में भी थी।

सर्वेक्षण प्रकाशित क्यों नहीं किया?

  • आँकड़ो की गुणवत्ता के कारण सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने वर्ष 2017-2018 के CES परिणामों को जारी नहीं करने का निर्णय लिया है।
  • परिवारों द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में खपत के लिये सर्वेक्षण की क्षमता/संवेदनशीलता (Ability/Sensitivity) के बारे में चिंता व्यक्त की गई।
  • राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी सलाहकार समिति ने भी सिफारिश की है कि सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) शृंखला के लिये वर्ष 2017-18 को नया आधार वर्ष के रूप में उपयोग करने के लिये उपयुक्त वर्ष नहीं है।
  • MoSPI अलग से वर्ष 2020-2021 और वर्ष 2021-22 में अगले CES के संचालन की व्यवहार्यता की जाँच कर रहा है ताकि सर्वेक्षण प्रक्रिया में सभी गुणवत्तापूर्ण डेटा शामिल हो।

डेटा लीक

Data leaked

  • सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीयों द्वारा एक महीने में खर्च की गई औसत राशि वर्ष 2011-12 के 1,501 रुपए से 3.7% गिरकर वर्ष 2017-18 में 1,446 रुपए हो गई।
  • भारत के गाँवों में उपभोक्ता खर्च वर्ष 2017-18 में 8.8% घट गया, जबकि 6 वर्षों के दौरान शहरों में इसमें 2% की वृद्धि हुई।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘सोना’ तीसरा सबसे लोकप्रिय निवेश का विकल्प

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व स्वर्ण परिषद, रिटेल गोल्ड इनसाइट्स-2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council-WGC) द्वारा जारी रिटेल गोल्ड इनसाइट्स-2019 (Retail Gold Insights-2019) रिपोर्ट के अनुसार, ‘सोना’ खुदरा निवेशकों के बीच निवेश का तीसरा सबसे लोकप्रिय विकल्प है।

World Gold Council

सर्वेक्षण से संबंधित तथ्य:

  • यह रिपोर्ट भारत, चीन, उत्तरी अमेरिका, ज़र्मनी और रूस में लगभग 18,000 लोगों पर सर्वेक्षण कर जारी की गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, ‘सोना’ निवेश का तीसरा सबसे लिकप्रिय विकल्प है।
    • लगभग 46% वैश्विक खुदरा निवेशकों ने बचत खाते (78%) और जीवन बीमा (54%) के बाद सोने के उत्पादों को चुना है।
  • सर्वेक्षण में शामिल लगभग 67% लोगों के अनुसार, वे लगातार सोने में निवेश कर रहे हैं तथा इससे पहले भी सोने में निवेश कर चुके हैं।
    • इस आँकड़े में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत की लगभग 72% हिस्सेदारी है।
  • इसके अलावा भारत में फैशन एवं लाइफ़ स्टाइल (Fashion and Life Style) से जुड़े लगभग 37% उपभोक्ताओं द्वारा पहले कभी सोने में निवेश नहीं किया गया परंतु अब ये इसके लिये इच्छुक हैं।
    • यह आँकड़ा चीन में 30% और अमेरिका में 40% आँका गया है।

महँगाई से निपटने में सक्षम:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में सोने का मूल्य कम नहीं होगा, इसलिये यह महँगाई से निपटने का एक अच्छा उपाय है।

विश्व स्वर्ण परिषद

(World Gold Council-WGC):

  • विश्व स्वर्ण परिषद, स्वर्ण उद्योग बाज़ार के विकास हेतु एक संगठन है।
  • इसका उद्देश्य सोने की मांग को प्रोत्साहित करना और स्वर्ण उद्योग को वैश्विक नेतृत्व प्रदान करना है।

कार्य

  • नीतियों का विकास करना और स्वर्ण उद्योग के मानकों को स्थापित करना,
  • स्वर्ण बाजार के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
  • नए निवेशकों को स्वर्ण उद्योग में आने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • केंद्रीय बैंकों को सलाह देना।
  • वैश्विक संवाद को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

साइक्लोफाइन एयर

प्रीलिम्स के लिये

साइक्लोफाइन, PM2.5, PM10 क्या है?

मेन्स के लिये

वायु प्रदूषण रोकने में तकनीक की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आई.आई.टी. मद्रास के सिविल इंजीनियरिंग विभाग तथा एन्वीट्रान (EnviTran) नामक आई.आई.टी. मद्रास के ही विद्यार्थियों के एक स्टार्टअप द्वारा एक एयर प्यूरीफायर का निर्माण किया गया है। इसका मुख्य कार्य वायु में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 तथा PM10) का निष्कासन करना है।

मुख्य बिंदु:

  • इस एयर प्यूरीफायर का नाम साइक्लोफाइन (Cyclofine) रखा गया है जिसका मुख्य कार्य वायु में मौजूद प्रदूषकों तथा पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 तथा PM10) का निष्कासन करना है।
  • इस मशीन में चार चरणों में हवा को फ़िल्टर किया जाता है। इसके अलावा इसमें एयर क्वालिटी मानीटरिंग सेंसर भी लगाया गया है जो किसी वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) को प्रदर्शित करेगा।
  • यह मशीन अपने आस-पास की वायु को 750 क्यूबिक मीटर प्रति घंटा की दर से स्वच्छ करेगी।
  • यह मशीन प्रदूषकों के अलावा, PM2.5 (वह पार्टिकुलेट मैटर जिनका आकार 2.5 माइक्रोन या उससे कम हो) को 80 प्रतिशत तक तथा PM10 (वह पार्टिकुलेट मैटर जिनका आकार 10 माइक्रोन या उससे कम हो) को हवा से निकालने में सक्षम है।

PM2.5- वे पार्टिकुलेट मैटर जिनका आकार 2.5 माइक्रोन या उससे कम हो।

PM10- वे पार्टिकुलेट मैटर जिनका आकार 10 माइक्रोन या उससे कम हो।

Air Quality

  • यह मशीन खुले में या किसी स्थान विशेष पर लगाई जाएगी जहाँ प्रदूषण की मात्रा अधिक हो। जैसे- किसी औद्योगिक क्षेत्र में जहाँ पार्टिकुलेट कणों की सघनता अधिक हो वहाँ इस मशीन को एक लंबे टावर की तरह लगाया जा सकता है तथा ट्रैफिक सिग्नलों पर भी इसे प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • यह मशीन अभी प्रायोगिक स्तर पर है तथा विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह देखा जा रहा है कि यह कितनी दूरी तक एवं कितनी मात्रा में प्रदूषकों को फ़िल्टर करने में सक्षम है।

स्रोत : द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (18 नवंबर)

न्यू इंडिया के लिये स्वास्थ्य प्रणाली पर नीति आयोग की रिपोर्ट

  • नीति आयोग ने ‘न्यू इंडिया के लिये स्वास्‍थ प्रणाली: बिल्डिंग ब्लॉक्स- सुधार के संभावित तरीके’ पर 18 नवंबर, 2019 को एक रिपोर्ट जारी की।
  • यह रिपोर्ट सार्वजनिक क्षेत्र के लिये ACCES हेल्थ इंटरनेशनल द्वारा और निजी क्षेत्र के लिये PWC इंडिया फोर्स द्वारा एकत्रित किये गए डेटा पर आधारित है।
  • इस रिपोर्ट में पिछले वर्ष स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली को लेकर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर किये गए प्रयासों और विचार-विमर्श के निष्‍कर्षों को शामिल किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के लिये भुगतान करने वालों और जोखिम घटकों तथा स्वास्थ्य सेवाओं एवं इसे संचालित करने वाले डिजिटल आधार के विभिन्‍न स्तरों पर देश की स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में बताया गया है।
  • रिपोर्ट में देश के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिये बिखरी हुई स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली को मज़बूत करने के आवश्‍यक प्रयासों से जुड़े दृष्टिकोणों को एक जगह लाने का प्रयास किया गया है।

स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली पर बहस और चर्चा ‘विकास संवाद शृंखला’ के एक हिस्‍से के रूप में शुरू की गई थी। आयोग ने 30 नवंबर, 2018 को आई.टी. न्यू इंडिया: बिल्डिंग ब्लॉक्स के लिये स्वास्थ्य प्रणाली नामक कार्यशाला के साथ इस शृंखला की शुरुआत की थी। इसमें देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर गहन और सकारात्‍मक चर्चा के लिये अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय विशेषज्ञों तथा प्रमुख हितधारकों को साथ लाया गया।

यह रिपोर्ट सभी निष्कर्षों को एक साथ लाने का एक प्रयास है। रिपोर्ट भारत के समक्ष अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये विशेष रूप से सरकार द्वारा शुरू की गई स्वास्थ्य प्रणालियों के सुधारों के संदर्भ में उपलब्ध रणनीतिक विकल्पों ब्‍यौरा प्रस्‍तुत करती है।


मेडिकल डिवाइस पार्क

  • सरकार ने चार मेडिकल डिवाइस पार्क स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी है। इन पार्क की स्थापना से देश में विश्वस्तरीय मेडिकल उपकरणों का उत्पादन किया जा सकेगा। इन्हें घरेलू बाज़ार में उचित कीमत पर उपलब्ध कराया जाएगा।
  • अनुमति हासिल करने वाले पार्को में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में स्थापित होने वाला एक-एक पार्क शामिल है, जबकि उत्तराखंड और गुजरात ने भी इस तरह के पार्क स्थापित करने के लिये केंद्र सरकार से संपर्क किया था।
  • एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश के रिटेल मार्केट में मेडिकल डिवाइस का कारोबार करीब 70 हजार करोड़ रुपए का है।
  • इन उपकरणों के मामले में भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा बाज़ार है। इसके बावजूद भारतीय मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री बहुत छोटी है।
  • इस क्षेत्र में भारत अपनी ज़रूरत के लिये आयात पर निर्भर है। मेडिकल डिवाइस पार्कों के निर्माण के बाद इस स्थिति सुधार आएगा तथा इससे 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा मिलेगा।
  • इन पार्कों में इलाज में काम आने वाले उपकरण बनाने के लिये कंपनियों को सभी ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी। इससे इन महंगे उपकरणों के आयात पर आने वाले खर्च में कमी आएगी, साथ ही उत्पादन लागत घटने से ये उपकरण कम दाम पर उपलब्ध होंगे।
  • गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के मेडटेक जोन में सुपरकंडक्टिंग मैग्नेटिक कॉयल टेस्टिंग के लिये CFC की स्थापना को मंज़ूरी दी है।

गोटाबाया राजपक्षे

  • श्रीलंका के पूर्व रक्षामंत्री एवं श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट के उम्मीदवार गोटाबाया राजपक्षे देश के अगले राष्ट्रपति होंगे। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिये शनिवार को मतदान हुआ था।
  • गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के आठवें राष्ट्रपति चुने गए हैं। वह मैत्रीपाल सिरिसेना का स्थान लेंगे। उनके साथ मुकाबले में मुख्य प्रतिद्वंद्वी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के सजित प्रेमदासा थे।
  • गोटाबाया को 52.25% प्रतिशत वोट मिले, जबकि प्रेमदासा 41.99% वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे ।
  • गोटबाया की जीत का असर भारत पर भी पड़ सकता है, क्योंकि गोटबाया, राजपक्षे परिवार से हैं, जिसका झुकाव चीन की ओर रहा है।

श्रीलंका का क्षेत्रफल 65 हज़ार वर्ग किलोमीटर और आबादी लगभग 2.2 करोड़ है। सबसे अधिक लगभग 70% आबादी सिंहली बौद्धों की है, 12.6% लोग तमिल हिंदू हैं, 10% ईसाई और 8% आबादी मुसलमानों की है।


देश का पहला प्लास्टिक पार्क

  • ओडिशा सरकार ने दावा किया है कि देश में पहला पूरी तरह से परिचालन के लिये तैयार प्लास्टिक पार्क लगभग तैयार हो गया है, लेकिन निवेशकों को इसमें अपनी इकाइयाँ स्थापित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
  • उद्यमियों में जागरूकता की कमी (Lack of Entrepreneur Awareness) राज्य सरकार की इस धारणा को गलत साबित कर रही है कि विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये गैर-वित्तीय प्रोत्साहन संभावित निवेशकों के लिये अधिक फायदेमंद है, बजाय कर छूट वित्तीय प्रोत्साहन देने के।
  • ओडिशा सरकार से मिली जानकारी के अनुसार, भारत का घरेलू उत्पादन प्लास्टिक की मांग का केवल 50 प्रतिशत है, जो निर्माण और बुनियादी ढाँचे के उद्योग के साथ बढ़ रहा है।
  • ओडिशा के इस प्लास्टिक पार्क के लिये रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने अवसंरचना विकास के लिये 40 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
  • इंडियन ऑयल और राज्य सरकार के नियंत्रण वाली कंपनी ओडिशा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन (IIDCO) ने संयुक्त उपक्रम के रूप में इस प्लास्टिक पार्क को विकसित किया है।
  • हालाँकि इस पार्क में अब तक 80 इकाइयों की तुलना में केवल 9 इकाइयों को भूखंड आवंटित किये गए हैं, जो बुने हुए बोरों, प्लास्टिक पाइपों और इंजेक्शन बनाने वाले उपकरणों, फिल्मों, पाउच और उपभोक्ता प्लास्टिक उत्पादों का निर्माण कर सकते हैं। आठ इकाइयों के पास लीज़ पर उपलब्ध भूमि का केवल 30 प्रतिशत है।
  • ओडिशा के इस प्लास्टिक पार्क में प्रशासनिक ब्लॉक, परीक्षण प्रयोगशाला, कौशल विकास केंद्र, बैंकों के लिये जगह, क्लीनिक, पानी और बिजली के साथ-साथ सभी वैधानिक अनुमोदन, जैसे- पर्यावरणीय मंज़ूरी और स्थापना के लिये सहमति के अलावा श्रमिकों के रहने के लिये स्थान (Dormitory), वरिष्ठ अधिकारियों के लिये आवास, भंडारण सुविधाएँ आदि उपलब्ध कराई गई हैं।

वर्तमान समय में भारत में लगभग 12 मिलियन टन प्रति वर्ष की प्लास्टिक की खपत है, जिसमें से लगभग 6 मिलियन टन का उत्पादन घरेलू स्तर पर किया जाता है और शेष का आयात किया जाता है। प्लास्टिक आयात को कम करने के लिये रसायन और उर्वरक विभाग ने असम के तिनसुकिया, मध्य प्रदेश के रायसेन, ओडिशा के जगतसिंहपुर और तमिलनाडु के तिरुवल्लूर में चार प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की योजना बनाई थी। इन पार्कों में प्लास्टिक क्षेत्र की इकाइयाँ स्थापित होने से प्रत्यक्ष रोज़गार के साथ छोटे उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।


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