विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
द बिग पिक्चर/विशेष – राफेल पर फैसला
- 18 Dec 2018
- 17 min read
संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने सीबीआई में मामला दर्ज कराने और कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राफेल सौदे की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है। खरीद प्रक्रिया, कीमत और ऑफसेट साझेदार के मामले में सरकारी हस्तक्षेप किये जाने का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।
- वायुसेना की ताकत को बढ़ाने और उसकी युद्धक क्षमता को मज़बूत बनाने के लिये समय-समय पर सरकार लड़ाकू विमान और अन्य तकनीकी क्षमताओं से उसे लैस करती रहती है।
- इसी क्रम में सरकार ने लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी डसाल्ट एविएशन से 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया जो युद्ध के समय कई प्रकार की अहम भूमिका निभाने में सक्षम है।
- लेकिन इस सौदे को लेकर कई तरह की बातें उठती रहीं। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को सही करार दिया।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
- न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि 36 विमानों को खरीदने के फैसले पर सवाल उठाना गलत है। कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा के लिये इन लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है।
- शीर्ष अदालत ने सौदे में कथित अनियमितता की किसी भी बात को मानने से इनकार कर दिया।
- कोर्ट ने कहा कि देश के लिये लड़ाकू विमान ज़रूरी हैं और इसके बगैर काम नहीं चलेगा।
- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया है।
- दरअसल 10 अप्रैल, 2015 को फ्राँस से भारत में प्रयोग के लिये पूरी तरह से तैयार 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे की घोषणा की गई थी।
- सुप्रीम कोर्ट में इस सौदे की जाँच को लेकर कई याचिकाएँ दायर की गई थीं।
- इनमें प्रमुख रूप से सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया, सौदे के लिये कीमत और ऑफसेट साझेदार बनाने का मुद्दा शामिल था।
- सुप्रीम कोर्ट ने सिलसिलेवार तरीके से अपने आदेश में इन मुद्दों से जुड़े पहलुओं को ध्यान में रखते हुए फैसले में इनकी व्याख्या की।
- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में सबसे पहले निर्णय लेने वाली प्रक्रिया से जुड़े पहलुओं को स्पष्ट किया।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमने खरीद प्रक्रिया और मूल्य निर्धारण समेत विभिन्न पहलुओं पर वायुसेना के अधिकारियों से भी जानकारी ली।
- कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। इसमें अदालत की ओर से कोई जाँच की आवश्यकता नहीं है। यह सौदा देश के लिये एक वित्तीय लाभ है।
- यह रक्षा खरीद से जुड़ा करार है जहाँ न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। सौदे में प्रक्रिया का व्यापक रूप से पालन किया गया है।
- लड़ाकू विमान की ज़रूरत पर कोई संदेह नहीं है। विमान की गुणवत्ता सवालों के घेरे में नहीं है। कोर्ट ने ओदश में कहा कि 126 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये लंबी बातचीत का कोई परिणाम नहीं निकला।
- कोर्ट ने कहा कि 126 की जगह 36 विमानों को खरीदने की सरकार के फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते।
- कोर्ट सरकार को 126 या 36 विमान खरीदने के लिये बाध्य नहीं कर सकता।
- कोर्ट ने साफ कहा, 36 राफेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया 23 सितंबर, 2016 को खत्म हुई, उस समय तक सौदे पर कोई सवाल नहीं उठाया गया।
- कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे पर सवाल उस वक्त उठा जब फ़्राँस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने बयान दिया कि यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता।
राफेल की कीमत
- याचिका में कहा गया कि राफेल सौदे के लिये ज़्यादा राशि दी गई है और आरोप लगाया कि सरकार इसकी कीमत का खुलासा नहीं कर रही है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश के बाद सरकार ने सीलबंद लिफाफे में विमान की कीमत के बारे में कोर्ट को जानकारी दी। उससे पता चला कि सरकार ने संसद में भी विमान की मूल कीमत के अलावा मूल्य निर्धारण विवरण का खुलासा नहीं किया है।
- इसके पीछे कारण यह है कि कीमत का विवरण देने से दोनों देशों के बीच हुए समझौतों का उल्लंघन होता और इससे राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
- कोर्ट ने कहा कि हमने बढ़ती लागत के साथ विमान की मूल कीमत से तुलना करने के साथ ही दोनों देशों के बीच समझौतों से जुड़े पहलुओं की बारीकी से जाँच की।
- सभी तथ्यों से साफ है कि 36 राफेल विमानों की खरीद से भारत को वाणिज्यिक लाभ हुआ है।
- शीर्ष अदालत का मानना है कि कीमतों के तुलनात्मक विवरण पर फैसला लेना अदालत का काम नहीं है।
ऑफसेट साझेदार से जुड़े पहलू
- याचिका में कहा गया था कि भारत सरकार ने करार में सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की अनदेखी कर रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को शामिल करने के लिये दसाल्ट कंपनी को मजबूर किया।
- ऑफसेट साझेदार मामले पर तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुँचाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
- ऑफसेट साझेदार के मामले में सरकारी हस्तक्षेप के कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।
- रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने में कामर्शियल पेपर से संबंधित कोई सबूत नहीं है और इसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
- 3 मार्च, 2018 को सबसे पहले विमानों की खरीद संबंधी केंद्र के फैसलों की स्वतंत्र जाँच तथा कीमत का खुलासा करने के लिये सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।
- 5 सितंबर को कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने की स्वीकृति दी। 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी की।
क्या है लड़ाकू विमानों का सौदा और क्यों इसकी ज़रूरत पड़ी?
- भारतीय वायुसेना ने अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिये वर्ष 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी। इसे ध्यान में रखते हुए जून 2001 में सरकार ने सैद्धांतिक रूप से 120 लड़ाकू विमानों को खरीदने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
- इसके लिये दिसंबर 2002 में पहली बार एक पारदर्शी रक्षा खरीद प्रक्रिया तैयार की गई।
- वर्ष 2005 में इस प्रक्रिया में एक ऑफसेट क्लाज भी शामिल किया गया ताकि इसके स्वदेशीकरण और प्रभाव को बढ़ाया जा सके।
- इसके बाद वर्ष 2007 में वायुसेना की ओर से MMRC यानी मिडियम मल्टी रोड कॉम्बेट एयरक्राफ्ट खरीदने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया।
- भारत सरकार ने वायुसेना के इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने की मंज़ूरी दी।
- अगस्त 2007 में इसके लिये बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई। दरअसल, यह सौदा उस मीडियम मल्टी रोड कॉम्बैट एयरक्राफ्ट कार्यक्रम का हिस्सा है जिसे रक्षा मंत्रालय की ओर से इंडियन एयरफोर्स लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और सुखोई के बीच मौजूद अंतर को खत्म करने के मकसद से शुरू किया गया था।
- इसके लिये MMRC की बिडिंग प्रक्रिया में अमेरिका का बोईंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्राँस का दसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरो फाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिको यान मिग-35 और स्वीडन का साब 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल हुए।
- बिडिंग प्रक्रिया पूरी करने के बाद वायुसेना ने कई विमानों का तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन किया तथा वर्ष 2011 में घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं और आखिरकार 6 फाइटर जेट विमानों में से राफेल को चुना गया।
राफेल का चुनाव क्यों किया गया?
- राफेल का चुनाव इसलिये किया गया कि राफेल की कीमत बाकी लड़ाकू विमानों की तुलना में कम थी। साथ ही इसका रख-रखाव की लागत भी कम थी।
- राफेल का चुनाव करने के बाद वर्ष 2012 में राफेल को L-1 बिडर घोषित किया गया और इसको बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट को लेकर बातचीत शुरू हुई।
- लेकिन RFP अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वज़ह से वर्ष 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही।
- वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किये गए।
- प्रधानमंत्री की फ्राँस यात्रा के दौरान अप्रैल 2015 में भारत और फ्राँस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर एक नई घोषणा हुई। इस घोषणा में भारत ने जल्द-से-जल्द 36 राफेल विमान फ्लाई अवे यानी उड़ान के लिये तैयार विमान हासिल करने की बात कही।
- इसके बाद जनवरी 2016 में भारत और फ्राँस के बीच 36 लड़ाकू विमानों के लिये सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर हुए।
- सितंबर 2016 में दोनों देशों ने विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके अनुसार विमानों की आपूर्ति वायुसेना की ज़रूरतों के मुताबिक उसके द्वारा तय समय-सीमा के भीतर होनी थी तथा विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना द्वारा तय मानकों के अनुरूप होनी है।
- इसमें कहा गया कि लंबे समय तक विमानों के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी फ्राँस की होगी।
- समझौते पर दस्तखत होने के लगभग 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात कही गई।
- सरकार का दावा है कि उसने यह सौदा यूपीए सरकार के सौदे की तुलना में बेहतर कीमत में किया है। यूपीए की डील में टेक्नोलॉजी स्थानांतरण की कोई बात नहीं थी। सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी का लाइसेंस देने की बात थी लेकिन मौजूदा समझौते में मेक इन इंडिया के तहत पहल की गई।
- समझौते के तहत फ्राँसीसी कंपनी भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगी।
- राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है। इस विमान के आने से न केवल भारतीय वायुसेना की क्षमता बढ़ेगी बल्कि हमारी सेना ऐसे हर तरह के मिशन में इसका इस्तेमाल कर अपनी पहुँच और मारक क्षमता को काफी बढ़ा सकेगी।
राफेल विमान की विशेषता
- राफेल विमान फ्राँस की दसॉल्ट एविएशन द्वारा बनाया गया दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है। राफेल लड़ाकू विमानों को आम्नी रोल विमानों के रूप में रखा गया है जो युद्ध के समय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम हैं।
- हवाई क्षमता हो या ज़मीनी कार्यवाही या दूर से दुश्मन पर सटीक निशाना लगाना हो इसमें राफेल विमान का जवाब नहीं है।
- मौजूदा समय में दुनिया भर में सबसे ज़्यादा सक्षम लड़ाकू विमानों में से एक राफेल लड़ाकू विमान कई खूबियों से लैस है।
- यह एक बहु-उपयोगी लड़ाकू विमान है। इस विमान की लंबाई 15.27 मीटर है और इसमें एक या दो पायलट ही बैठ सकते हैं।
- यह विमान ऊँचाई वाले इलाकों में भी लड़ने में माहिर है। यह एक मिनट में 60,000 फुट की ऊँचाई तक जा सकता है।
- यह अधिकतम 24,500 किलोग्राम भार उठाकर उड़ने में सक्षम है। इसकी अधिकतम रफ़्तार 2200 से 2500 किलोमीटर प्रति घंटा है और यह 3800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।
- ऑपट्रोनिक सिक्योर फ्रंटल इन्फ्रारेड सर्च और ट्रैक सिस्टम से लैस इस विमान में MBDA, MICA, MBDA मेटेओर और MBDA अपाचे जैसी कई तरह की खतरनाक मिसाइलें और गन लगी होती हैं जो पल भर में दुश्मनों को ख़त्म कर सकती हैं।
- राफेल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। इस तरह की मिसाइल चीन, पाकिस्तान समेत पूरे एशिया में किसी के पास भी नहीं है।
- यह हवा से ज़मीन पर मार करने वाली स्कल्प मशीन से लैस है। स्कल्प मशीन की रेंज 300 किलोमीटर है जो कि 4.5 जेनरेशन के ट्विन इंजन से लैस है।
- वर्तमान में भारतीय वायुसेना का मुख्य लड़ाकू विमान, रूस से खरीदा गया सुखोई विमान है। राफेल की कई खासियतें उसे सुखोई से ज़्यादा कारगर बनाती हैं।
- राफेल की मारक क्षमता 78-1055 किलोमीटर तक है, जबकि सुखोई की मारक क्षमता 400 से 550 किलोमीटर तक है।
निष्कर्ष
दरअसल, पाकिस्तान और चीन से देश की सीमाओं की सुरक्षा का मामला हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। वायुसेना में पहले से ही लड़ाकू विमानों की कमी है, ऐसे में राफेल विमान भारत के लिये बहुत ही ज़रूरी है। इस विमान का उपयोग अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया और मालदीव में हुई जंगी कार्यवाही में हो चुका है और यह काफी सफल रहा है। अगर राफेल को वायुसेना के जंगी जहाज़ों के बेड़े में शामिल किया जाता है तो इससे सेना को एक नई ताकत मिलेगी। राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार और विपक्ष दोनों के लिये एक संदेश है कि रक्षा जैसे संवेदनशील मसले को बिना किसी ठोस आधार के अदालत में खींचना और राजनीतिक मुद्दा बनाना ठीक नहीं है।