डेली न्यूज़ (18 Aug, 2020)



अरुणाचल प्रदेश: 6वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

6 वीं अनुसूची,अनुच्छेद 371 (ए), 5वीं अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद, स्वायत्त ज़िला परिषद

मेन्स के लिये:

भारत के जनजातीय क्षेत्रों के संरक्षण हेतु किये गए संवैधानिक प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में दो स्वायत्त परिषदों (Autonomous Councils) द्वारा पूरे अरुणाचल प्रदेश को संविधान की 6 वीं अनुसूची (6th Schedule) या अनुच्छेद 371 (ए) (Article 371 (A) के दायरे में लाने की मांग की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश न तो 5 वीं अनुसूची में शामिल है और न ही 6 वीं अनुसूची के अंतर्गत है। यह इनर लाइन परमिट ( Inner Line Permit- ILP) प्रणाली के अंतर्गत है।
  • 6वीं अनुसूची असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में लागू है।
  • 5वीं अनुसूची में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान के क्षेत्र शामिल हैं।
    • दूसरी ओर, नगालैंड में अनुच्छेद 371 ए लागू होता है जो नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है।
  • 6 वीं अनुसूची: संविधान की 6 वीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान करती है।
    • यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किया गया है।
    • उपर्युक्त राज्यों में जनजातियों द्वारा राज्यों के अन्य लोगों की जीवन शैली को बहुत अधिक आत्मसात नहीं किया गया है। इन क्षेत्रों में अभी भी नृवैज्ञानिक प्रतिरूपों (Anthropological Specimens) की उपस्थिति है।
  • संविधान सभा द्वारा गठित बोरदोलोई समिति (Bordoloi Committee) की रिपोर्टों के आधार पर, 6वीं अनुसूची को पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करने के लिये तैयार किया गया था।
    • समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिये एक प्रशासनिक प्रणाली की आवश्यकता है।
  • इस रिपोर्ट में मैदानी इलाकों के लोगों के शोषण से इन आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये तथा उनके विशिष्ट सामाजिक रीति-रिवाज़ों के संरक्षण का आह्वान किया गया।

6 वीं अनुसूची में प्रशासन:

  • 6 वीं अनुसूची क्षेत्र में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। स्वायत्त ज़िलों को राज्य विधान मंडल के भीतर स्वायत्तता का अलग दर्ज़ा प्रदान किया जाता है।
    • 10 स्वायत्त ज़िले हैं, जिनमें असम, मेघालय और मिज़ोरम प्रत्येक में तीन-तीन एवं एक त्रिपुरा में है।
    • प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी हो सकती है।
  • आदिवासियों को स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (Autonomous Regional Council) एवं स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Councils- ADCs) के माध्यम से विधायी और कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गई है।
    • ADCs को नागरिक और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। वे राज्यपाल से उचित अनुमोदन प्राप्त होने पर भूमि, वन, मत्स्य, सामाजिक सुरक्षा आदि जैसे विषयों पर भी कानून बना सकती हैं।
  • संसद एवं राज्य विधान सभाओं द्वारा पारित अधिनियमों को इन क्षेत्रों में तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि राष्ट्रपति और राज्यपाल स्वायत्त क्षेत्रों के लिये कानूनों में संशोधन के साथ या इसके बिना उसे अनुमोदित नहीं कर दे।
  • राज्यपाल का नियंत्रण: विभिन्न स्वायत्तता के बावजूद, 6 वीं अनुसूची में शामिल क्षेत्र राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के बाहर नहीं है।
    • राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों का निर्माण करने एवं उन्हें पुनः व्यवस्थित करने का अधिकार प्राप्त है। वह स्वायत्त ज़िलों के क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या उनके नाम परिवर्तित कर सकता है या उनकी सीमाओं को परिभाषित कर सकता है।
    • यदि एक स्वायत्त ज़िले में विभिन्न जनजातियाँ विद्यमान हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में भी विभाजित कर सकता है।

स्वायत्त परिषदों की संरचना:

  • प्रत्येक स्वायत्त ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं, जिनमें चार को राज्यपाल द्वारा एवं अन्य सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नामित किया जाता है। ये सभी पाँच वर्ष के लिये सत्ता में बने रहते हैं।
  • हालाँकि, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद एक अपवाद है क्योंकि यहाँ की क्षेत्रीय परिषद 46 सदस्यों से मिलकर बनी है।

अनुच्छेद 371 ए:

  • जब तक कि राज्य विधानसभा द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता है तब तक निम्नलिखित मामलों से संबंधित संसद के अधिनियम नगालैंड पर लागू नहीं होंगे:
    • नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथा।
    • नागा प्रथागत कानून और प्रक्रिया।
    • नाग प्रथा कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक और आपराधिक न्याय का प्रशासन।
    • ज़मीन एवं उसके संसाधनों का स्वामित्व और हस्तांतरण।

स्रोत: द हिंदू


बायोएथेनॉल सम्मिश्रण: चुनौतियाँ और समाधान

प्रिलिम्स के लिये:

बायोएथेनॉल सम्मिश्रण, 1G और 2G जैव ईंधन संयंत्र, वाटर फुटप्रिंट

मेन्स के लिये:

इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

सरकार ने 'इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम' (Ethanol Blending Programme- EBP) के तहत वर्ष 2022 तक पेट्रोल में 10 प्रतिशत बायो इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा है। जिसे वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक करना है।

प्रमुख बिंदु:

  • 'इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम' को ‘राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति’- 2018 के अनुरूप लॉन्च किया गया था।
  • वर्तमान में पेट्रोल में बायो इथेनॉल का सम्मिश्रण लगभग 5% है।

इथेनॉल (Ethanol):

  • यह एक जल रहित एथिल अल्कोहल है, जिसका रासायनिक सूत्र C2H5OH होता है।
  • यह गन्ना, मक्का, गेहूं आदि से प्राप्त किया किया जा सकता है, जिसमें स्टार्च की उच्च मात्रा होती है।
  • भारत में इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से किण्वन प्रक्रिया द्वारा गन्ना के शीरा (Molasses) से किया जाता है।
  • इथेनॉल को अलग-अलग प्रकार के मिश्रण उत्पाद बनाने के लिये गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जाता है।
  • इथेनॉल में ऑक्सीजन के अणु होते हैं अत: इथेनॉल के पेट्रोल के सम्मिश्रण से ईंधन का अधिक पूर्ण दहन संभव हो पाता है। जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन में कमी आती है।

इथेनॉल सम्मिश्रण की आवश्यकता:

  • भारत आयातित कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है। यह अनुमान है कि 5% इथेनॉल सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप लगभग 1.8 मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात कम हो जाएगा।
  • इथेनॉल सामग्री के रूप में चीनी उद्योग के उप-उत्पाद का प्रयोग किया जाता है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन में शुद्ध कमी (Net Reduction) होने की उम्मीद है।

इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (Ethanol Blending Programme- EBP):

  • पृष्ठभूमि:

    • 5% इथेनॉल सम्मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति के लिये 'पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय' द्वारा ‘इथेनॉल सम्मिश्रण पेट्रोल’ (Ethanol Blended Petrol- EBP) कार्यक्रम को जनवरी, 2003 में प्रारंभ किया गया था।
    • तेल विपणन कंपनियाँ (OMCs), सरकार द्वारा तय की गई पारिश्रमिक कीमतों पर घरेलू स्रोतों से इथेनॉल की खरीद करती हैं।
    • वर्तमान में कार्यक्रम का संपूर्ण भारत (अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपो को छोड़कर) में विस्तार कर दिया गया है।
  • 1G और 2G जैव ईंधन संयंत्र:

    • 1G बायो-इथेनॉल संयंत्र मे चीनी के उत्पादन से उत्पन्न उप-उत्पादों यथा- गन्ने के रस और गुड़ का उपयोग किया जाता है, जबकि 2G संयंत्र बायोएथेनॉल का उत्पादन करने के लिये अधिशेष बायोमास और कृषि अपशिष्ट का उपयोग करते हैं।
    • वर्तमान में तीन OMCs; इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, 2G बायो-इथेनॉल संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं।

इथेनॉल सम्मिश्रण में चुनौतियाँ:

  • आपूर्ति का अभाव:

    • वर्तमान में भारतीय तेल विपणन कंपनियों (OMCs) का घरेलू बायो-इथेनॉल उत्पादन पेट्रोल में सम्मिश्रण के लिये मांग की पूर्ति के लिये पर्याप्त नहीं है।
    • चीनी मिलें; जो OMCs को जैव-इथेनॉल के उत्पादन में कच्ची सामग्री के प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता हैं, कुल मांग का केवल 57.6% आपूर्ति करने में सक्षम हैं।
  • कीमत निर्धारण:

    • 2G संयंत्रों में जैव-इथेनॉल के उत्पादन के लिये आवश्यक कृषि अपशिष्ट प्राप्त करने की कीमत वर्तमान में देश में निजी निवेशकों के लिये बहुत अधिक है।
    • केंद्र सरकार द्वारा गन्ना और बायो-इथेनॉल दोनों की कीमतें निर्धारित की जाती हैं अत: भविष्य में बायोइथेनॉल की कीमत की अनिश्चितता को लेकर निवेशक चिंतित हैं।
  • वाटर फुटप्रिंट (Water Footprint):

    • वाटर फुटप्रिंट, एक लीटर इथेनॉल का उत्पादन करने के लिये आवश्यक जल की मात्रा होती है।
    • इथेनॉल के उत्पादन के लिये आवश्यक जल की आपूर्ति वर्षा जल के माध्यम से नहीं हो पाती है।

आगे की राह:

  • बायोइथेनॉल की कीमतों के निर्धारण में अधिक पारदर्शिता प्रदान की जानी चाहिये, इसके लिये एक कीमत निर्धारण प्रक्रिया की घोषणा की जानी चाहिये जिसके आधार पर बायोइथेनॉल की कीमत तय की जाएगी।
  • 1G, 2G, 3G तथा 4G बायोएथेनॉल संयंत्र में प्रत्येक के लिये इथेनॉल उत्पादन के लिये निश्चित लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये इससे निवेश को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • किसान से कृषि अपशिष्ट को एकत्रित करने लिये राज्य सरकारों को डिपो (अपशिष्ट संग्रहण केंद्र) स्थापित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • बायोएथेनॉल न केवल ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है, बल्कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने तथा कृषि अपशिष्ट के व्यावसायीकरण द्वारा वायु प्रदूषण को कम करने में मदद भी मदद करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मॉरीशस में तेल रिसाव

प्रिलिम्स के लिये:

तेल रिसाव, ब्लू बे मरीन पार्क, रामसर कन्वेंशन,अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ

मेन्स के लिये:

तेल रिसाव का जलीय जीवों एवं पर्यावरण पर प्रभाव, तेल रिसाव की घटनाओं को रोकने हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

मॉरीशस के दक्षिण-पूर्व में स्थित ब्लू बे मरीन पार्क (Blue Bay Marine Park) के पास एक जापानी थोक-मालवाहक जहाज़ ( Bulk-Carrier Ship) एमवी वाकाशियो (MV Wakashio) जो ईंधन तेल (Fuel Oil) ले जा रहा था, दो भागों में विभक्त हो गया। इस जहाज़ में पहले ही तेल रिसाव (Oil Spill) हो रहा था जिसके कारण हिंद महासागर में 1000 टन से अधिक तेल फैल गया ।

प्रमुख बिंदु:

  • यह जहाज़ मॉरीशस के पास पोइंटे डेसी (Pointe d'esny) के पास टूट गया है तथा यह क्षेत्र पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल है।
  • प्रभाव: तेल के फैलने से मॉरीशस के समुद्र तट की पारिस्थितिकी और हिंद महासागर में समुद्री जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है।
    • तेल के रिसाव ने पहले से ही लुप्तप्राय प्रवाल भित्तियों, उथले पानी में समुद्री घास, मैन्ग्रोव, मछलियों और अन्य जलीय जीवों को खतरे में डाल दिया है।
  • कुछ प्रमुख वन्यजीव जिनके अस्तित्त्व पर खतरा बना हुआ है उनमें शामिल हैं: विशालकाय कछुए (Giant Tortoises), लुप्तप्राय हरे कछुए (Endangered Green Turtle), और गंभीर रूप से लुप्तप्राय गुलाबी कबूतर (Critically Endangered Pink Pigeon)
    • गुलाबी कबूतर (Nesoenas mayeri) मॉरीशस के मैस्करीन द्वीप (Mascarene island) की कबूतर की एक स्थानिक (Endemic) प्रजाति है।

दायित्त्व:

  • इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल फॉर बंकर आयल पोलुशन,2001 ( International Convention on Civil Liability for Bunker Oil Pollution, 2001,) के अनुसार तेल रिसाव से हुए नुकसान के लिये जहाज़ों के मालिक ज़िम्मेदार होते हैं।
    • ​यह कन्वेंशन, जिसे बंकर कन्वेंशन (BUNKER convention) के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 2008 में लागू हुआ तथा इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization- IMO) द्वारा प्रशासित किया जाता है।
    • इस कन्वेंशन को यह सुनिश्चित करने के लिये अपनाया गया था कि जहाजों के बंकरों में ईंधन के रूप में ले जाने पर तेल के रिसाव से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये लोगों को पर्याप्त, त्वरित और प्रभावी मुआवज़ा दिया जाए।

ब्लू बे मरीन पार्क:

  • रामसर कन्वेंशन ( Ramsar Convention) द्वारा इसे अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के आद्रभूमि (Wetland of International Importance) के रूप में नामित किया गया है।
  • प्रवाल भित्तियों, मैन्ग्रोव, समुद्री घास के मैदानों और मैक्रो शैवाल की उपस्थिति इसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र बनाती है।

तेल रिसाव:

  • परिभाषा: तेल रिसाव पर्यावरण में कच्चे तेल, गैसोलीन, ईंधन, या अन्य तेल उत्पादों के अनियंत्रित रिसाव को संदर्भित करता है। तेल का फैलना भूमि, वायु, या पानी को प्रदूषित कर सकता है, हालाँकि इस शब्द का उपयोग ज्यादातर समुद्र में तेल रिसाव के लिये किया जाता है।
  • कारण: मुख्य रूप से महाद्वीपीय चट्टानों पर गहन पेट्रोलियम अन्वेषण एवं उत्पादन तथा जहाज़ों में बड़ी मात्रा में तेल के परिवहन के परिणामस्वरूप तेल रिसाव एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन गया है।

पर्यावरणीय प्रभाव:

  • समुद्र की सतह पर तेल जलीय जीवन के कई रूपों के लिये हानिकारक है क्योंकि यह सतह पर पर्याप्त मात्रा में सूर्य के प्रकाश को प्रवेश करने से रोकता है जिसके कारण जल के घुलित ऑक्सीजन के स्तर में कमी आती है।
  • क्रूड ऑयल पक्षियों के फर एवं पंखों के वॉटरप्रूफिंग (Waterproofing) गुणों को बर्बाद कर देता हैऔर इस प्रकार तेल से लिपटे पक्षी एवं समुद्री स्तनधारी हाइपोथर्मिया (शरीर के तापमान में सामान्य स्तर के तापमान से अधिक कमी होना) के कारण मर सकते हैं।
  • इसके अलावा, जानवरों द्वारा तेल का अंतर्ग्रहण उनके लिये विषाक्त हो सकता है जो उनके निवास स्थान और प्रजनन दर को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • सामन्यत: खारे पानी के दलदल एवं मैंग्रोव, तेल रिसाव की समस्या से ग्रसित होते हैं।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, इन घटनाओं (तेल रिसाव) से केवल 10% से कम तेल रिसाव को सफलतापूर्वक साफ किया जाता है।

आर्थिक प्रभाव:

  • यदि समुद्र तट एवं आबादी वाले तटबंधों को दूषित कर दिया जाता है, तो पर्यटन और वाणिज्य बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
  • पावर प्लांट और अन्य कार्य जो समुद्र के पानी पर निर्भर हैं, तेल रिसाव से गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।

तेल रिसाव की सफाई:

  • कंटेंनमेंट बूम्स: फ्लोटिंग बैरियर्स, जिन्हें बूम कहा जाता है, का उपयोग तेल के प्रसार को प्रतिबंधित करने और तेल को प्राप्त करने, हटाने या फैलाने की अनुमति देने के लिये किया जाता है।
  • स्किमर्स (Skimmers): इसका उपयोग पानी की सतह से तेल के भौतिक रूप को अलग करने के लिये किया जाता है।
  • सोरबेंट्स (Sorbents): विभिन्न सॉर्बेंट्स जिनमें पुआल, ज्वालामुखीय राख, और पॉलिएस्टर-व्युत्पन्न प्लास्टिक की छीलन शामिल होती है, के द्वारा पानी से तेल को अवशोषित करते हैं।
  • डिसपर्सिंग एजेंट (Dispersing agents): ये ऐसे रसायन होते हैं जो तरल पदार्थों जैसे तेल को छोटी बूंदों में तोड़ने का कार्य करते हैं तथा समुद्र में इसके प्राकृतिक फैलाव को तीव्र करते हैं।
  • जैविक एजेंट (Biological agents): इनमें पोषक तत्व, एंजाइम, या सूक्ष्मजीव जैसे कि अल्केनिवोरैक्स बैक्टीरिया (Alcanivorax bacteria) या मिथाइलोसेला सिलवेस्ट्रिस (Methylocella Silvestris) शामिल होते हैं तथा ये तेल के प्राकृतिक जैव-अपघटन की दर को तीव्र करते हैं।

तेल रिसाव की अन्य घटनाएँ:

  • हाल ही में, रूस के क्रास्नोयार्स्क क्षेत्र ( Krasnoyarsk Region) में एक बिजली संयंत्र के ईंधन में रिसाव के कारण आपातकाल की स्थिति घोषित की गई इस तेल रिसाव में 20,000 टन डीज़ल तेल अंबरनया नदी (Ambarnaya River) में बह/फैल गया था।
  • वर्ष 2010 में, मैक्सिको की खाड़ी से दूर गहरे पानी में लगभग 400,000 टन तेल का रिसाव देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों जलीय प्रजातियों की मृत्यु हो गई जिनमें प्लैंकटन (Plankton) से लेकर डॉल्फ़िन ( Dolphins) तक शामिल थीं।
  • वर्ष 1978 में, एक बड़े कच्चे तेल के जहाज़ से फ्राँस, के तट पर तेल का रिसाव हो गया जिसके कारण समुद्र में लगभग 70 मिलियन गैलन तेल का रिसाव हुआ, इस रिसाव के कारण लाखों अकशेरूकीय एवं अनुमानित 20,000 पक्षी मारे गए।

स्रोत: द हिंदू


भादभूत परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

भादभूत परियोजना

मेन्स के लिये:

भादभूत परियोजना के उद्देश्य तथा प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात सरकार ने भरूच में भादभूत परियोजना (Bhadbhut Project) के लिये अनुबंध प्रदान किया है। उल्लेखनीय है कि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterway Authority) ने इस परियोजना को मंज़ूरी दे दी है। इस परियोजना को स्थानीय मछुआरों के विरोध का सामना करना पड़ा है क्योंकि इसके निर्माण से मछली पकड़ने के पैटर्न, मुख्य रूप से हिल्सा (Tenualosa ilisha) को पकड़ने के पैटर्न के प्रभावित होने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु

  • परियोजना की विशेषताएँ:

    • यह नर्मदा नदी के पार, भादभूत गाँव से 5 किमी. और नदी के मुहाने से 25 किमी. दूर स्थित है, जहाँ नर्मदा नदी खंभात की खाड़ी में गिरती है।
    • यह परियोजना वृहद कल्पसर परियोजना का हिस्सा है, जो भरूच और भावनगर ज़िलों के बीच खंभात की खाड़ी में 30 किलोमीटर के बांध के निर्माण पर बल देती है।
      • कल्पसर परियोजना का लक्ष्य गुजरात के 25% औसत वार्षिक जल संसाधनों को संग्रहित करना है।
      • यह जलाशय लगभग 8,000 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) भूमिगत जल को संग्रहित करेगा और यह समुद्र में दुनिया के सबसे बड़े मीठे जल के जलाशयों में से एक होगा।
  • उद्देश्य:

    • लवणता को रोकने के लिये
      • लवणता अंतर्ग्रहण, मीठे पानी वाले क्षेत्रों में खारे पानी के अतिक्रमण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
      • मीठे पानी के कम प्रवाह के कारण उच्च ज्वार के दौरान नर्मदा के मुहाने पर खारे समुद्री जल का जमाव हो जाता है, इससे नदी के किनारों के साथ लवणता बढ़ती जा रही है।
    • यह सरदार सरोवर बांध से बहने वाले अधिकांश अतिरिक्त पानी को समुद्र तक पहुँचने से रोकेगा और नदी पर 600 MCM मीठे पानी की एक झील का निर्माण करेगा, जिससे भरूच में मीठे पानी की समस्या का समाधान होगा।
    • इससे जलाशय में नर्मदा, महिसागर और साबरमती नदियों के अतिरिक्त जल का दोहन हो सकेगा।
  • प्रभाव:

    • इस बैराज से हिल्सा मछली के प्रवास और प्रजनन चक्र में हस्तक्षेप होने की संभावना व्यक्त की जा रही है, क्योंकि इसके निर्माण से इनकी प्राकृतिक प्रविष्टि अवरुद्ध हो जाएगी।
      • हिल्सा एक समुद्री मछली है, जो नदी की विपरीत धारा में बहती हुई भरूच के समीप नर्मदा नदी के मुहाने के खारे पानी में प्रवेश करती है। आमतौर पर यह जुलाई और अगस्त के मानसून के महीनों से लेकर नवंबर तक ऐसा करती है।
      • हिल्सा के पतन के प्रमुख कारणों में बांध से पानी का कम बहाव, नदी में अपवाहित होने वाले औद्योगिक अपशिष्ट और बढ़ती लवणता को उत्तरदायी माना जा रहा है।
    • इस परियोजना के निर्माण से आलिया बेट का एक हिस्सा, नर्मदा के डेल्टा में एक द्वीप जो झींगा की खेती के लिये प्रसिद्ध है, के जलमग्न होने की संभावना है।
      • इस परियोजना से आलिया बेट (Aliya Bet) में जंगल का एक हिस्सा भी प्रभावित होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मारथोमैन जैकोबाइट सीरियन कैथेड्रल चर्च

प्रीलिम्स के लिये

मारथोमैन जैकोबाइट सीरियन कैथेड्रल चर्च,

गोथिक वास्तुकला

मेन्स के लिये:

धार्मिक स्थानों पर स्वामित्त्व से संबंधित मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल सरकार ने केरल के एर्नाकुलम ज़िले के मुलंथुरूथी (Mulanthuruthy) में मारथोमैन जैकोबाइट सीरियन कैथेड्रल चर्च (Marthoman Jacobite Syrian Cathedral Church) को अपने नियंत्रण में ले लिया है। जो एक प्रमुख गैर-कैथोलिक ईसाई समुदाय मलंकरा चर्च (Malankara Church) के जैकोबाइट एवं रूढ़िवादी गुटों के बीच विवाद के केंद्र में रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • मलंकरा चर्च (Malankara Church) पहली बार वर्ष 1912 में जैकबाइट एवं रूढ़िवादी समूहों में विभाजित हुआ था। हालाँकि दोनों समूह वर्ष 1959 में पुनः जुड़ गए किंतु यह सिलसिला वर्ष 1972-73 तक ही चला।
    • तब से दोनों गुटों के मध्य चर्चों एवं उनके धन के स्वामित्त्व को लेकर आपस में विवाद है।

चर्च के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी:

  • मूलंथुरूथी के चर्च को जैकोबाइट गुट द्वारा प्रबंधित किया जाता था किंतु वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार, इसका स्वामित्व प्रतिद्वंद्वी रूढ़िवादी गुट के पास चला गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने चर्च के अंतर्गत आने वाले इलाकों पर शासन व नियंत्रण करने के लिये मलंकरा ऑर्थोडॉक्स सीरियाई चर्च (Malankara Orthodox Syrian Church) के वर्ष 1934 के संविधान की वैधता को बरकरार रखा था।
  • हालाँकि रूढ़िवादी गुट अभी भी चर्च तक पहुँच से वंचित था इसलिये उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने केरल सरकार से चर्च को संभालने और रूढ़िवादी गुट को सौंपने का निर्देश दिया।

केरल के चर्च समूह:

  • केरल की ईसाई आबादी में कैथोलिक (Catholic), जैकोबाइट सीरियन (Jacobite Syrian), ऑर्थोडॉक्स सीरियन (Orthodox Syrian), मार थोमा (Mar Thoma), दक्षिण भारत के चर्च, दलित ईसाई और पेंटेकोस्टल चर्च (Pentecostal Churches) शामिल हैं।
    • कैथोलिक केरल की कुल ईसाई आबादी का 61% हैं।
    • मलंकरा चर्च के अंतर्गत कुल ईसाई आबादी के 15.9% लोग आते हैं।

मूलंथुरूथी चर्च/मारथोमैन जैकोबाइट सीरियन कैथेड्रल चर्च:

  • मुलंथुरूथी में मारथोमैन जैकोबाइट सीरियन कैथेड्रल चर्च की स्थापना 1200 ईस्वी में हुई थी।
  • यह चर्च गोथिक वास्तुकला (Gothic Architecture) का एक अच्छा उदाहरण है।
  • इस चर्च में भारतीय, पश्चिम-एशियाई एवं यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण के रूप में नक्काशी, मूर्तियाँ, प्रतीकात्मक चिन्ह एवं दीवार पेंटिंग आदि प्रमुख विशेषताएँ हैं।

गोथिक वास्तुकला (Gothic Architecture):

  • यह 12वीं-16वीं शताब्दी में लोकप्रिय हुई वास्तुकला की एक यूरोपीय शैली है।
  • यह वास्तुकला मूल रूप से फ्राँस एवं इंग्लैंड से संबंधित है।
  • यह मध्ययुगीन यूरोपीय वास्तुकला की एक शैली है, जो संभवत: जर्मन गोथ जाति के प्रभाव से आविर्भूत हुई थी।
  • इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    • इंगित मेहराब (Pointed Arches)
    • रिब वॉल्ट (Rib Vault)
    • फ्लाइंग बट्रेस (Flying Buttresses)
    • कॉलम एंड पियर्स (Columns and Piers)
    • टावर्स और स्पियर्स (Towers and Spires)
  • अंग्रेजों ने भारतीय वास्तुकला की कुछ विशेषताओं का गोथिक वास्तुकला में विलय कर दिया जिसके परिणामस्वरूप वास्तुकला की इंडो-गोथिक शैली (Indo-Gothic Style) का विकास हुआ।
  • वास्तुकला की इंडो-गोथिक शैली के कुछ उदाहरण: मद्रास उच्च न्यायालय, विक्टोरिया मेमोरियल, द छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) आदि।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस