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डेली न्यूज़

  • 18 Feb, 2021
  • 31 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

कोयला दहन से प्रदूषण: IEACCC

चर्चा में क्यों?

‘इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी क्लीन कोल सेंटर’ (International Energy Agency’s Clean Coal Centre- IEACCC) के एक अध्ययन में कहा गया है कि कोयला दहन भारत में होने वाले अत्यधिक वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार है।

  • हाल ही में दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (Centre for Science and Environment- CSE) ने भारत के कोयला आधारित विद्युत क्षेत्र के कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) फुटप्रिंट को कम करने के उपायों पर भी चर्चा की है और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को देश में कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों हेतु उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने की समयसीमा बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी दी है।

प्रमुख बिंदु:

निष्कर्ष:

  • कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशनों से प्रदूषण:
    • कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशन कुल सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के आधे के लिये, कुल नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के 30% के लिये और कुल पार्टिकुलेट मैटर (PM) के लगभग 20% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • ताप विद्युत स्टेशनों में लगातार कोयला दहन और नवीनतम ‘कार्बन कैप्चर स्टोरेज’ तकनीक के कार्यान्वयन में देरी, भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
  • अन्य क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण:
    • वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार क्षेत्रों में परिवहन और अन्य औद्योगिक क्षेत्र कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशनों के बाद दूसरे स्थान पर हैं।

Emissions

सुझाव:

  • पुराने ताप विद्युत स्टेशनों की सेवानिवृत्ति:
    • स्वच्छ कोयला तकनीक अपनाकर प्रदूषण को सीमित करना और वर्तमान ताप विद्युत स्टेशनों की दक्षता में सुधार करना।
  • स्वच्छ और उन्नत प्रौद्योगिकी में निवेश:
    • भारत में नए उन्नत प्रौद्योगिकी संयंत्र - जैसे गुजरात में मुंद्रा और सासन आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि स्वच्छ और उन्नत तकनीक में निवेश करने के लिये  हितधारकों में आत्मविश्वास नहीं होता है।
  • अधिक महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ प्रारंभ करना:
    • मौजूदा ऊर्जा दक्षता योजनाएँ जिनमें ‘परफॉर्मेंस अचीव एंड ट्रेड’ योजनाएँ, दक्षता मानक योजनाएँ और कार्बन मूल्य निर्धारण योजनाएँ शामिल हैं, महत्त्वपूर्ण सुधार लाने के लिये पर्याप्त रूप से महत्त्वाकांक्षी नहीं हैं।

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) को अपनाना:

  • यह उत्सर्जन कम करने के बराबर ही महत्त्वपूर्ण है। भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धता के एक हिस्से के रूप में इसे शामिल करने का सुझाव दिया गया है।
  • CCUS अपशिष्ट CO2 को एकत्रित कर इसे एक भंडारण स्थल पर ले जाने और वहाँ जमा करने की प्रक्रिया है, जिससे यह वायुमंडल में प्रवेश नहीं कर सकेगी।

कोयला दहन एवं प्रदूषण:

कोयले का निर्माण:

  • ये अत्यधिक ताप और दबाव के कारण हज़ारों वर्षों में निर्मित भूमिगत कोयले की कार्बन युक्त काली चट्टानें हैं जो जलने पर ऊर्जा का उत्पादन करती हैं।

वायु प्रदूषण:

  • जब कोयले को जलाया जाता है, तो यह कई वायुवाहित विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है।
  • इनमें पारा, सीसा, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, पार्टिकुलेट और अन्य विभिन्न भारी धातुएँ शामिल हैं।
  • इन सभी प्रदूषकों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे- अस्थमा, साँस लेने में कठिनाई, मस्तिष्क क्षति, हृदय संबंधी समस्याएँ, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार और समय से पहले मृत्यु तक हो सकती है।

जल प्रदूषण:

  • कोयला आधारित विद्युत संयंत्र हर वर्ष लगभग 100 मिलियन टन से अधिक ‘कोल एश’ का उत्पादन करते हैं।
    • इस कचरे का आधा से अधिक हिस्सा तालाबों, झीलों, लैंडफिल और अन्य स्थलों में निर्गत होता है, जहाँ समय के साथ यह जलमार्ग और पेयजल आपूर्ति को दूषित कर सकता है।
  • जल प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार अन्य कारकों में कोयला खदानों से एसिड रॉक जल निकासी, ‘माउंटेन स्टॉप माइनिंग’ द्वारा पहाड़ों और घाटियों का विनाश एवं कोयला संयंत्रों के स्थानीय जल आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर होने के कारण पेयजल संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

जलवायु परिवर्तन:

विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये पहल:

  • CCUS का क्रियान्वयन:
    • भारत अपनी क्षमता का प्रयोग कर रहा है, क्योंकि तमिलनाडु के तूतीकोरिन में एक औद्योगिक बंदरगाह पर एक संयंत्र ने अपने स्वयं के कोयले से चलने वाले बॉयलर से CO2 को एकत्रित करना शुरू कर दिया है और इसका उपयोग बेकिंग सोडा बनाने के लिये किया जा रहा है।
  • उत्सर्जन मानक:
    • भारत ने ताप विद्युत संयंत्र द्वारा उत्सर्जित ज़हरीले सल्फर डाइऑक्साइड में कटौती करने वाली ‘फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन’ (Flue Gas Desulphurization- FGD) इकाइयों को स्थापित करने के लिये उत्सर्जन मानकों का पालन करने के आदेश जारी किये हैं।
  • ग्रेडेड एक्शन प्लान:
    • विद्युत मंत्रालय ने एक ‘ग्रेडेड एक्शन प्लान’ प्रस्तावित किया है, जिसमें ऐसे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ संयंत्रों को प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, इसमें क्षेत्र-1 में गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों का विवरण है और क्षेत्र-5 सबसे कम प्रदूषित है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी क्लीन कोल सेंटर

क्लीन कोल सेंटर के विषय में:

सदस्य:

  • इस सेंटर में कुल 17 सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियों (Contracting Party) और प्रायोजक संगठनों (Sponsoring Organisation) में से होता है।
  • इसका प्रायोजक भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) है।

अवस्थिति:

  • यह इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों की एक टीम के साथ लंदन में स्थित है।

सहयोग:

  • इसका वित्तपोषण राष्ट्रीय सरकारों (कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियों) और कॉर्पोरेट औद्योगिक संगठनों द्वारा किया जाता है।

कार्य:

  • कोयले को संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (United Nations Sustainable Development Goal) के अनुकूल ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत बनाने पर स्वतंत्र जानकारी और विश्लेषण प्रदान करना।
  • ऊर्जा में कोयले की भूमिका और आपूर्ति, सामर्थ्य तथा पर्यावरणीय मुद्दों की सुरक्षा को संतुलित करने की आवश्यकता पर ध्यान देना।
  • कोयले के उपयोग से CO2 और अन्य प्रदूषकों के उत्सर्जन को उच्च दक्षता - कम उत्सर्जन (High Efficiency - Low Emission) प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribu­nal) ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India) द्वारा पारित उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके अंतर्गत प्रतिभूति बाज़ार में खुदरा कंपनी के अध्यक्ष और कुछ अन्य प्रमोटरों पर एक साल का प्रतिबंध लगाया गया था।

प्रमुख बिंदु

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के विषय में:

  • प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।

अवस्थिति:

  • इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।

संरचना:

  • प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में एक पीठासीन अधिकारी और दो अन्य सदस्य होते हैं।
    • केंद्र सरकार द्वारा प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी को भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) या उसके द्वारा नामित किसी अन्य व्यक्ति के परामर्श से नियुक्त किया जाता है।

शक्तियाँ:

  • प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के पास सिविल कोर्ट के समान शक्तियाँ होती हैं। इसके निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील की जा सकती है।

कार्य:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

सेबी के विषय में:

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 के प्रावधानों के तहत 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
  • प्रारंभ में SEBI एक गैर-वैधानिक निकाय था। सेबी का गठन अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत भारत में पूंजी बाज़ार (Capital Market) के नियामक के रूप में किया गया।
    • पूंजी बाज़ार शब्द से तात्पर्य उन सुविधाओं और संस्थागत व्यवस्थाओं से है जिनके माध्यम से दीर्घावधि के फंड, ऋण और इक्विटी दोनों में वृद्धि और निवेश किया जाता है।

मुख्यालय:

  • सेबी का मुख्यालय मुंबई में तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।

संरचना:

  • सेबी के सभी निर्णय सामूहिक रूप से उसके बोर्ड द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें एक अध्यक्ष और आठ अन्य सदस्य होते हैं।
  • यह समयनुसार तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।

कार्य:

  • इसका प्रमुख कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा, प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना और विनियमित करना है।
    • प्रतिभूति, सार्वजनिक और निजी बाज़ार से पूंजी जुटाने हेतु इस्तेमाल होने वाला पारंपरिक वित्तीय साधन है।
    • मुख्यतः तीन प्रकार की प्रतिभूतियाँ होती हैं: इक्विटी - जो धारकों को मालिकाना हक प्रदान करती है; ऋण - अनिवार्य भुगतान के साथ समय-समय पर चुकाया गया ऋण; और हाइब्रिड - ऐसी प्रतिभूति जिसमें ऋण और इक्विटी दोनों का गुण होता है।
  • प्रतिभूति बाज़ारों से जुड़े स्टॉक ब्रोकर, मर्चेंट बैंकर, पोर्टफोलियो मैनेजर, निवेश सलाहकार आदि बिचौलियों के कामकाज़ का पंजीकरण और विनियमन करना।
  • सेबी एक अर्द्ध-विधायी, अर्द्ध-न्यायिक और अर्द्ध-कार्यकारी निकाय है।
    • यह विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, पूछताछ कर सकता है, नियम पारित कर सकता है और जुर्माना लगा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व व्यापार संगठन (WTO)

चर्चा में क्यों?

नाइजीरिया की एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला (Ngozi Okonjo-Iweala) को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) का महानिदेशक नियुक्त किया गया है।

  • एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला पहली अफ्रीकी अधिकारी होने के साथ-साथ  विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला भी है। 

प्रमुख बिंदु:

विश्व व्यापार संगठन का गठन:

  • WTO को वर्ष 1947 में संपन्न हुए प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) के स्थान पर अपनाया गया।
  • WTO के निर्माण की पृष्ठभूमि गैट के उरुग्वे दौर (वर्ष1986-94) की वार्ता में तैयार हुई तथा 1 जनवरी, 1995 को WTO द्वारा कार्य शुरू किया गया।
    • जिस समझौते के तहत WTO की स्थापना की गई उसे "मारकेश समझौते" के रूप में जाना जाता है। इसके लिये वर्ष 1994 में मोरक्को के मारकेश में हस्ताक्षर किये गए।

WTO के बारे में:

  • WTO एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो देशों के मध्य व्यापार के नियमों को  विनियमित करता है।
  • GATT और WTO में मुख्य अंतर यह है  कि GATT जहाँ ज़्यादातर वस्तुओं के व्यापार को विनियमित करता था, वहीँ WTO और इसके समझौतों में न केवल वस्तुओं को बल्कि सेवाओं और अन्य बौद्धिक संपदाओं जैसे- व्यापार चिन्हों, डिज़ाइनों और आविष्कारों से संबंधित व्यापार को भी शामिल किया जाता है।
  •  WTO का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।

सदस्य:

  •  WTO में यूरोपीय संघ सहित 164 सदस्य देश शामिल हैं तथा ईरान, इराक, भूटान, लीबिया आदि 23 देशों को पर्यवेक्षक  का दर्जा प्राप्त है।
  • भारत वर्ष 1947 में GATT तथा WTO का संस्थापक सदस्य देश बना।

शासी संरचना: 

structure-of-WTO

  • मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
    • WTO की संरचना में मंत्री सम्मेलन सर्वोच्च प्राधिकरण है जिसका गठन   WTO के सभी सदस्यों देशों से मिलकर होता है, इसके सभी सदस्यों को कम-से-कम हर दो वर्ष में मिलना आवश्यक है। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के सदस्य बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के तहत सभी मामलों पर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
  • सामान्य परिषद: 
    • इसका गठन WTO के सभी सदस्य देशों से मिलकर होता है जो मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के प्रति उत्तरदायी है।
  • विवाद समाधान निकाय और व्यापार नीति समीक्षा निकाय
    • सामान्य परिषद का आयोजन मुख्यत: दो विषयों को ध्यान में रखकर किया गया है:
      • विवाद समाधान निकाय: इसके माध्यम से विवादों के समाधान हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का संचालन किया जाता है।
      • व्यापार नीति समीक्षा निकाय: इसके द्वारा WTO के प्रत्येक सदस्य की व्यापार नीतियों की नियमित समीक्षा की जाती है।

उद्देश्य:

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु नियमों को निर्धारित करना और लागू करना।
  • व्यापार उदारीकरण के विस्तार के लिये बातचीत और निगरानी हेतु एक मंच प्रदान करना।
  • व्यापार विवादों का समाधान करना।
  • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ाना।
  • वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में शामिल अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित करना।
  • विकासशील देशों को वैश्विक व्यापार प्रणाली से पूरी तरह से लाभान्वित होने में सहयोग करना।

WTO की उपलब्धियांँ:

  • व्यापार की वैश्विक सुविधा: 
    • WTO वस्तुओं और सेवाओं के वैश्विक व्यापार हेतु बाध्यकारी नियमों का निर्माण और सीमा पार व्यापार गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु सुविधा प्रदान करता है।
    •  WTO ने न केवल व्यापार मूल्यों को बढ़ाया है, बल्कि व्यापार और गैर-व्यापार बाधाओं को समाप्त करने में भी मदद की है।
  • बेहतर आर्थिक विकास :
    • वर्ष 1995 के बाद से विश्व व्यापार मूल्यों में लगभग चार गुना वृद्धि हुई  है, जबकि विश्व व्यापार में वास्तविक वृद्धि  2.7 गुना तक हुई है।
    • घरेलू सुधारों और खुले बाज़ार की प्रतिबद्धताओं के परिणामस्वरूप देशों की राष्ट्रीय आय में स्थायी वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला में वृद्धि:
    • WTO के अनुमानित बाज़ार को वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ बढ़ावा देने हेतु बेहतर संचार व्यवस्था के साथ जोड़ा गया है। वर्तमान में कुल व्यापार का लगभग 70% इन मूल्य शृंखलाओं के अंतर्गत आता है।
  • गरीब देशों का उत्थान:
    • WTO में कम विकसित देशों पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाता है। WTO के सभी समझौतों में इस बात का ध्यान रखा गया है कि कम विकसित देशों को अधिक रियायत दी जानी चाहिये और जो सदस्य देश बेहतर स्थिति में हैं उन्हें कम विकसित देशों के निर्यात पर प्रतिबंधों को कम करने हेतु अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

वर्तमान चुनौतियाँ:

  • चीन का राज्य पूंजीवाद:
    • मुक्त बाज़ार वैश्विक व्यापार प्रणाली के समक्ष चीन के राज्य-स्वामित्व (China’s State-Owned) वाले उद्यम एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं और WTO की नियम पुस्तिका इन चुनौतियों से निपटने हेतु अपर्याप्त है।
      • इसका कारण अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध है।
  • संस्थागत मुद्दे:
    • अपीलीय निकाय का संचालन दिसंबर 2019 से प्रभावी रूप से निलंबित है क्योंकि तभी से अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय में नियुक्तियों पर रोक लगाई जा रही है, जिसके कारण निकाय में सुनवाई करने के लिये आवश्यक कोरम पूरा नहीं हो रहा है।
    • विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र की विफलता इसके बातचीत/परक्रामण (Negotiation) तंत्र की विफलता से काफी हद तक जुड़ी हुई है।
  • पारदर्शिता का अभाव: 
    •  WTO की वार्ताओं के संदर्भ में एक समस्या यह है कि WTO में शामिल विकसित या विकासशील देशों के संगठन की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है।
    • वर्तमान में सदस्य देशों द्वारा WTO से विशेष रियायत प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वयं को विकासशील देशों के रूप में पदांकित किया जा रहा है। 
  • ई-कॉमर्स और डिजिटल ट्रेड:
    • पिछले 25 वर्षों में वैश्विक व्यापार परिदृश्य में काफी बदलाव आया है  बावजूद इसके WTO के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
    • 1998 में यह महसूस करते हुए कि ई-कॉमर्स वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, WTO के सदस्यों ने वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित सभी व्यापार-संबंधी मुद्दों की जांँच करने के लिये WTO ई-कॉमर्स स्थगन (WTO E-Commerce Moratorium) की स्थापना की।
    • लेकिन शुल्क स्थगन/ऋण स्थगन के राजस्व एकत्रित करने जैसे निहितार्थ के चलते हाल ही में विकासशील देशों ने इस पर प्रश्न उठाए। 
  • कृषि और विकास: 
    • भारत जैसे विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं के कारण कृषि पर समझौते का सामना करना पड़ रहा है।

आगे की राह: 

  •  WTO के आधुनिकीकरण हेतु डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स के लिये नियमों के नए सेट विकसित करने की आवश्यकता होगी।
  • WTO के सदस्य देशों को चीन की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के साथ अधिक प्रभावी ढंग से निपटना होगा, ताकि राज्य स्वामित्व वाले उद्यमों और औद्योगिक सब्सिडी को बेहतर तरीके से व्यवस्थित किया जा सके।
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापार और पर्यावरणीय स्थिरता को संरेखित करने के प्रयासों में वृद्धि करके  जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने तथा WTO को फिर से मज़बूत करने में मदद मिल सकती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में 809वें उर्स के अवसर पर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह पर प्रधानमंत्री की ओर से एक 'चादर' भेंट की गई।

  • उर्स त्योहार राजस्थान के अजमेर में आयोजित किया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है जो सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:  

सूफीवाद का संक्षिप्त परिचय:

  • यह इस्लामी रहस्यवाद का एक रूप है जो वैराग्य पर ज़ोर देता है। 
  • इसमें ईश्वर के प्रति समर्पण और भौतिकता से दूर रहने  पर बल दिया गया है।
  • सूफीवाद में बोध की भावना द्वारा ईश्वर की प्राप्ति के लिये आत्म अनुशासन को एक आवश्यक शर्त माना जाता है।
  • रूढ़िवादी मुसलमानों के विपरीत जो कि बाहरी आचरण पर ज़ोर देते हैं, सूफियों ने आंतरिक शुद्धता पर ज़ोर दिया।
  • सूफी मानते हैं कि मानवता की सेवा करना ईश्वर की सेवा के समान है। 

शब्द व्युत्पत्ति: 

  • 'सूफी' शब्द संभवतः अरबी के 'सूफ' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'वह जो ऊन से बने कपड़े पहनता है'। इसका एक कारण यह है कि ऊनी कपड़ों को आमतौर पर फकीरों से जोड़कर देखा जाता था। इस शब्द का एक अन्य संभावित मूल 'सफा' है जिसका अरबी में अर्थ 'शुद्धता' है। 

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती: 

  • मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म वर्ष 1141-42 ई. में ईरान के सिज़िस्तान (वर्तमान सिस्तान) में हुआ था।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने वर्ष 1192 ई. में अजमेर में रहने के साथ ही उस समय उपदेश देना शुरू किया, जब  मुहम्मद गोरी (मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम) ने तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली में अपना शासन स्थापित कर लिया था।
  • आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर उनके शिक्षाप्रद प्रवचनों ने शीघ्र ही स्थानीय आबादी के साथ-साथ सुदूर इलाकों में राजाओं, रईसों, किसानों और गरीबों को आकर्षित किया।
  • अजमेर में उनकी दरगाह पर मुहम्मद बिन तुगलक, शेरशाह सूरी, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, दारा शिकोह और औरंगज़ेब जैसे शासकों ने जियारत की।   

चिश्ती  सिलसिला (चिश्तिया):

  • भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती द्वारा की गई थी।
  • इसने ईश्वर के साथ एकात्मकता (वहदत अल-वुजुद) के सिद्धांत पर ज़ोर दिया और इस सिलसिले के सदस्य शांतिप्रिय थे।
  • उन्होंने सभी भौतिक वस्तुओं को ईश्वर के चिंतन से भटकाव/विकर्षण के साधन के रूप में खारिज कर दिया।
  • उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राज्य के साथ संबंधों से दूरी बनाए रखने पर ज़ोर दिया।
  • उन्होंने ईश्वर के नाम को ज़ोर से बोलकर और मौन रहकर (dhikr jahrī, dhikr khafī) जपने, दोनों द्वारा चिश्ती सिलसिले की आधारशिला स्थापित की।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्यों जैसे- ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदउद्दीन गंज-ए-शकर, निज़ामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चराग आदि ने चिश्ती की शिक्षाओं को लोकप्रिय बनाने तथा इसे आगे बढ़ाने का कार्य किया।

अन्य प्रमुख सूफी सिलसिले:

  • सुहरावर्दी सिलसिला (Suhrawardi Order):  
    • इसकी स्थापना शेख शहाबुद्दीन सुहरावार्दी मकतूल द्वारा की गई थी।
    • चिश्ती सिलसिले के विपरीत सुहरावर्दी सिलसिले को मानने वालों ने सुल्तानों/राज्य के संरक्षण/अनुदान को स्वीकार किया।
  • नक्शबंदी सिलसिला:
    • इसकी स्थापना ख्वाजा बहा-उल-दीन नक्सबंद द्वारा की गई थी।  
    • भारत में इस सिलसिले की स्थापना ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी ने की थी।
    • शुरुआत से ही इस सिलसिले के फकीरों ने शरियत के पालन पर ज़ोर दिया।
  • क़दिरिया सिलसिला: 
    • यह पंजाब में लोकप्रिय था।
    • इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर गिलानी द्वारा 14वीं शताब्दी में की गई थी
    • वे अकबर के अधीन मुगलों के समर्थक थे।  

स्रोत: पीआईबी


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