प्रोजेक्ट साइनिंग: भू-जल संरक्षण परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:प्रोजेक्ट साइनिंग, अटल भू-जल परियोजना मेन्स के लिये:भू-जल संरक्षण के उपाय |
चर्चा में क्यों?
भारत के चुनिंदा राज्यों में भू-जल प्रबंधन में सुधार लाने के लिये विश्व बैंक ने एक नवीन ऋण आधारित परियोजना ‘प्रोजेक्ट साइनिंग’ (Project Signing) को प्रारंभ किया है।
मुख्य बिंदु:
- भारत सरकार और विश्व बैंक ने देश के गिरते भू-जल स्तर में सुधार लाने तथा भू-जल संस्थानों को मज़बूत करने वाले राष्ट्रीय कार्यक्रम को समर्थन देने के लिये 450 मिलियन डाॅलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- यह परियोजना विश्व बैंक समर्थित ‘अटल भू -जल योजना’ (Atal Bhujal Yojana-ABHY) को ऋण उपलब्ध कराने के लिये प्रारम्भ की गई है।
- केंद्र सरकार भू-जल प्रबंधन की दिशा में प्रोत्साहन उपायों के रूप में स्थानीय सरकारों (ज़िलों और ग्राम पंचायतों सहित) को धन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 80 प्रतिशत) हस्तांतरित करेगी।
- शेष धनराशि का उपयोग भू-जल के सतत् प्रबंधन की दिशा में तकनीकी सहायता प्रदान करने और चयनित राज्यों में संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत करने के लिये किया जाएगा।
परियोजना में शामिल राज्य:
- प्रोजेक्ट साइनिंग के माध्यम से अटल भू-जल योजना में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 78 ज़िलों को शामिल किया गया है।
- इन राज्यों में प्रायद्वीपीय भारत के कठोर चट्टानी एक्वीफर्स (Aquifers) एवं इंडो-गैंगेटिक (Indo-Gangetic) मैदानों के जलोढ़ एक्वाफर्स दोनों फैले हैं।
- इन राज्यों का चुनाव कई मानदंडों के आधार पर किया गया है, यथा-
- भू-जल निष्कासन और गिरावट की तीव्रता।
- स्थापित विधिक और नियामक उपकरण।
- संस्थागत तैयारी एवं भू-जल प्रबंधन से संबंधित पहलों को लागू करने का अनुभव।
अटल भू-जल परियोजना में शामिल कार्यक्रम:
- एक्वीफर्स के पुनर्भरण में वृद्धि करना और जल संरक्षण प्रथाओं को लागू करना।
- जल संचयन, जल प्रबंधन और फसल संरेखण (ये सभी प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की जल संबंधी क्रियाएँ हैं) से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना।
- सतत् भू-जल प्रबंधन की दिशा में संस्थागत संरचना (Institutional Structure) का निर्माण करना।
- भू-जल प्रबंधन संबंधी पहलों को लागू करने में अनुभव बढ़ाना।
अटल भू-जल परियोजना के अन्य उद्देश्य:
- सहभागी भू-जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये संस्थागत ढाँचे को मज़बूत करना एवं सतत् भू-जल संसाधन प्रबंधन के लिये सामुदायिक स्तर पर व्यावहारिक परिवर्तन उपायों को प्रोत्साहित करना।
- कटिंग-एज तकनीकों (Cutting-edge Technology) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के उपयोग से कार्यक्रम को बेहतर ढंग से लागू करना।
- यह कार्यक्रम ग्रामीण आजीविका में योगदान देगा साथ ही जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लचीलेपन का निर्माण करने में सहायता करेगा।
- फसल प्रबंधन और विविधीकरण की दिशा में व्यापक पहल की जाएगी। अनेक अध्ययनों से पता चला है कि भू-जल सिंचित क्षेत्र में 1% की वृद्धि होने से ग्रीनहाउस गैस (Green House Gas-GHG)) उत्सर्जन में 2.2% की वृद्धि होती है। सिंचाई दक्षता में 1% की वृद्धि से GHG उत्सर्जन में 20% की कमी आती है, अत: कार्यक्रम में सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों यथा- स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई आदि को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे न केवल फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी अपितु साथ ही कम जल सघन फसलों (Water Intensive) की दिशा में इन फसलों का विस्थापन होगा।
जल-बजट और जल सुरक्षा योजनाएँ
(Water Budgets and Water Security Plans-WSPs):
- योजना में समुदाय-संचालित विकास की प्राप्ति की दिशा में बॉटम-अप (Bottom-Up) नियोजन प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। WSPs योजना के अंतर्गत भू-जल स्तर में सुधार लाने और प्रस्तावित कार्यों को लागू करने के लिये राज्यों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- सामुदायिक नेतृत्व आधारित प्रबंधन उपायों को अपनाने से जल उपयोगकर्त्ताओं को जल उपभोग प्रतिरूप को समझने में मदद मिलेगी, साथ ही यह उन आर्थिक उपायों को अपनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा जो भू-जल खपत में कमी लाएं।
भारत में भू-जल का महत्त्व:
- पिछले कुछ दशकों में लाखों निजी कुओं के निर्माण के कारण भू-जल के दोहन में तेजी आई है 1950- 2010 दशकों के मध्य ड्रिल नलकूपों की संख्या 1 मिलियन से बढ़कर लगभग 30 मिलियन हो गई। इसके कारण भू-जल सिंचित क्षेत्र 3 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक हो गया। वर्तमान में कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 60% क्षेत्र नलकूपों द्वारा सिंचित है।
- भारत में 80% से अधिक ग्रामीण और शहरी घरेलू जलापूर्ति भू-जल द्वारा होती है, जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा भू-जल का उपयोगकर्त्ता बनाता है, अत: इसकी कमी चिंता का प्रमुख कारण है।
- यदि यही स्थिति जारी रही तो लगभग 60% ज़िले अगले दो दशकों में गंभीर भू-जल गिरावट के स्तर तक पहुँच सकते हैं। इसके कारण कम-से-कम 25% कृषि उत्पादन क्षेत्र जोखिम में होगा, साथ ही जलवायु परिवर्तन से भू-जल संसाधनों पर लगातार दबाव बढे़गा।
स्रोत: PIB
कानाक्कले/गैलीपोली की लड़ाई
प्रीलिम्स के लिये:गैलीपोली की लड़ाई, डार्डानेल्स, बोस्पोरस जलसंधि मेन्स के लिये:प्रथम विश्व युद्ध |
चर्चा में क्यों?
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने पाकिस्तान में जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत की नीति की आलोचना की और इसकी तुलना प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान तुर्की में कानाक्कले/गैलीपोली की लड़ाई (Battle of Canakkale/Gallipoli) से की।
मुख्य बिंदु:
- कानाक्कले की लड़ाई जिसे गैलीपोली अभियान (Gallipoli Campaign) या डार्डानेल्स अभियान (Dardanelles Campaign) के रूप में भी जाना जाता है, प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान की सबसे अधिक रक्तपात वाली घटनाओं में से एक मानी जाती है।
- प्रथम विश्वयुद्ध में ओटोमन सेना ने मित्र देशों की सेना के खिलाफ युद्ध किया था, जिसमें दोनों तरफ के दस हज़ार से भी अधिक लोग मारे गए थे।
- मार्च 1915 में यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पहले विंस्टन चर्चिल ने फिर ब्रिटेन के पहले लाॅर्ड एडमिरल्टी ने तुर्की के डार्डानेल्स (Dardanelles) को नियंत्रण में लेने की योजना तैयार की।
डार्डानेल्स (Dardanelles) का सामरिक महत्त्व:
- डार्डानेल्स सामरिक जलसंधि है जो मरमारा सागर (Marmara) को एजियन सागर (Aegean Sea) और भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) से जोड़ती है।
- डार्डानेल्स पर ब्रिटेन का अधिकार हो जाने से वे (मित्र देश) कांस्टेंटिनोपल (Constantinople) जिसे आज का इस्तांबुल कहा जाता है, तक पहुँच गए।
- गौरतलब है कि कांस्टेंटिनोपल बोस्पोरस (Bosporus) के मुहाने पर स्थित है। बोस्पोरस अंतर्राष्ट्रीय नेवीगेशन के लिये इस्तेमाल की जाने वाली विश्व की सबसे संकरी जलसंधि है। बोस्पोरस काला सागर को मरमारा सागर से जोड़ता है।
- मित्र देशों ने उम्मीद जताई कि कांस्टेंटिनोपल पर कब्ज़ा करके तुर्की को विभाजित किया जा सकता है जो जर्मनी के पक्ष में युद्ध कर रहा था।
- मित्र राष्ट्रों ने डार्डानेल्स के तट पर स्थित किलों में भारी बमबारी की किंतु वे विफल हो गए। इस ऑपरेशन में मित्र राष्ट्रों ने नौसेना का इस्तेमाल किया जो उस समय के सबसे बड़े नौसैनिक ऑपरेशनों में से एक था।
- जनवरी 1916 तक चली इस नौ महीनों की लड़ाई में लगभग 8,000 ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के साथ 40,000 से अधिक ब्रिटिश सैनिक मारे गए, जबकि तुर्की के लगभग 60,000 सैनिक मारे गए।
इस लड़ाई का परिणाम:
- इस लड़ाई के परिणामस्वरूप विंस्टन चर्चिल की पदावनति हुई और मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Ataturk) के युवा नेतृत्व में तुर्की का उदय हुआ।
- किंतु गैलीपोली की विरासत अपने सैन्य पहलुओं से बहुत आगे निकल जाती है, यह घटना आज आधुनिक तुर्की की पहचान के केंद्रीय स्तंभों में से एक है।
- इस गैलीपोली अभियान में ऑस्ट्रेलियाई और न्यूज़ीलैंड के कई सैनिकों के शहीद हो जाने के कारण इन दोनों देशों में भी राष्ट्रीय चेतना का बीजारोपण हुआ।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:नवजात शिशु मृत्यु दर से संबंधित आँकड़े मेन्स के लिये:भारत में नवजात शिशु मृत्यु दर |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर में एक अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। स्टाफ की कमी, कम सामुदायिक रेफरल आदि इसके प्रमुख कारक के रूप में बताए गए हैं।
मुख्य बिंदु:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार, वर्ष 2017 के बाद से देश भर में पिछले तीन वर्षों में सरकार द्वारा संचालित बीमार शिशु देखभाल इकाइयों में कुल नवजातों के प्रवेश के मुकाबले मध्य प्रदेश में 11.5% नवजातों की मृत्यु दर्ज की गई।
- हालाँकि राज्य में नवजात शिशुओं (28 दिनों से कम) के प्रवेश में अप्रैल 2017 से दिसंबर 2019 के बीच गिरावट आई है जो कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की तुलना में अभी भी कम है।
- मध्य प्रदेश में नवजात मृत्यु (28 दिनों से कम) का प्रतिशत 12.2% है जो बिहार के पिछले वर्ष के आँकड़े से अधिक है।
- अप्रैल 2017 से दिसंबर 2019 के बीच पश्चिम बंगाल में 34,344 नवजातों की मौत हुई जो देश में सबसे अधिक थीं। हालाँकि 2017 के 9.2% के स्तर के मुकाबले 2019 में वहाँ नवजात मृत्यु दर 8.9% के स्तर पर आ चुकी है।
नवजात शिशु मृत्यु के मुख्य कारण:
- स्टाफ की कमी
- कम सामुदायिक रेफरल
- स्वास्थ्य केंद्रों के लिये एक विशेष नवजात परिवहन सेवा की अनुपस्थिति
- अंतिम उपाय के रूप में शहरों में इकाइयों पर निर्भरता
- संस्थागत प्रसव के लिये पर्याप्त इकाइयों की अनुपलब्धता ने मृत्यु के प्रतिशत में अधिक योगदान दिया है।
- अस्पतालों में पाँच सर्जन, गायनोकोलॉजिस्ट, चिकित्सकों और बाल रोग विशेषज्ञों के स्थान पर केवल एक की ही उपलब्धता है (82% की कमी)।
- जहाँ गर्भवती महिलाओं को दूरदराज के क्षेत्रों से अस्पतालों तक ले जाने के लिये एक समर्पित सेवा मौजूद है वहीं नवजात शिशुओं के लिये इस प्रकार के किसी विशेष वाहन की व्यवस्था नहीं है साथ ही इन्हें अस्पताल ले जाने के लिये ज़्यादातर 108 एम्बुलेंस सेवा का ही प्रयोग होता है।
- मध्यप्रदेश में बालिका नवजातों के बीमार होने पर अस्पताल में उनके प्रवेश का औसत 663 (लड़कियों की संख्या 1,000 लड़कों के मुकाबले तीन साल में) है जो के देश के औसत 733 के मुकाबले कम है। हालाँकि 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश का लिंग अनुपात 931 था।
- नमूना पंजीकरण प्रणाली के अनुसार, भारत में नवजात मृत्यु के कारण और उनसे होने वाली मौतों का प्रतिशत:
- समय से पहले जन्म और कम वज़न के साथ जन्म (35.9%)
- निमोनिया (16.9%)
- जन्म के समय बर्थ एसफिक्सिया और जन्म के समय आघात (9.9%)
- अन्य गैर-संचारी रोग (7.9%)
- डायरिया (6.7%)
- जन्मजात विसंगतियाँ (4.6%)
- संक्रमण (4.2%)
कुछ अन्य तथ्य:
- मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में, तीन सालों में एक यूनिट (अस्पताल या अन्य कोई स्वास्थ्य केंद्र) में भर्ती होने वाले हर पाँच बच्चों में से एक नवजात की मृत्यु हो गई। राज्य में 19.9% की उच्चतम मृत्यु दर, NHM के 2% से नीचे के अनिवार्य प्रमुख प्रदर्शन संकेतक से दस गुना अधिक है।
- रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में ऐसी मौतों का प्रतिशत अधिक है क्योंकि वे तृतीयक देखभाल प्रदान करते हैं, साथ ही आस-पास के ज़िलों के कई गंभीर मामलों को स्वीकार करते हैं।
- प्रदेश के 51 ज़िलों में से 31 में खासतौर पर आदिवासी इलाकों में जहाँ पोषण और मातृ स्वास्थ्य निम्न स्तर पर हैं, वहाँ नवजात मृत्यु दर 10% से अधिक है।
- एनएचएम के चाइल्ड हेल्थ रिव्यू 2019-2020 में अंडर-रिपोर्टिंग के मामले को उजागर किया गया है। 43 ज़िलों में सरकारी अधिकारियों ने पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की 50% से अधिक मौतें दर्ज नहीं की हैं जिससे उनके स्कोर को गलत तरीके से बढ़ाया गया है।
- नवजात मृत्यु दर की स्थिति में सुधार दिखाने के लिये, कई कुख्यात अस्पताल स्वस्थ रोगियों को भर्ती कर लेते हैं ताकि रिपोर्ट में सब कुछ सही दिखे।
- वर्ष 2018 में जीवन के पहले महीने में वैश्विक रूप से 2.5 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो गई।
नवजात शिशु मृत्यु दर: भारत की स्थिति
- नेचर पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 0.75 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु होती है, जो दुनिया के किसी भी देश से अधिक है।
- नवजात मृत्यु दर वर्ष 1990 में 52 प्रति 1000 जीवित जन्मों से घटकर वर्ष 2013 में 28 प्रति 1000 जीवित जन्म हो गई, लेकिन इस गिरावट की दर बेहद धीमी रही है।
- यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार भारत में प्रति हज़ार जन्म लेने वाले नवजातों पर मृत्यु की संख्या 23 है।
- देश में नवजात मृत्यु दर 7% है।
आगे की राह:
- नवजात शिशुओं की उत्तरजीविता और स्वास्थ्य में सुधार के लिये गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल, जन्म के समय कुशल देखभाल, माँ और बच्चे के जन्म के बाद की देखभाल और छोटे तथा बीमार नवजात शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाओं के उच्च कवरेज़ को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- आशा (महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) की सहायता से ग्रामीण समुदायों में नवजातों के स्वास्थ्य की निगरानी तथा सामुदायिक रेफरल प्रणाली का बेहतर प्रयोग किया जाना सुनिश्चित होना चाहिये।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जन्म के समय और जीवन के पहले सप्ताह के आसपास नवजात शिशुओं की देखभाल पर अधिक ध्यान देने से शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी।
- गर्भावस्था से लेकर प्रसवोत्तर अवधि तक मातृ और नवजात शिशु की देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना होगा।
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के सिद्धांतों के अनुसार असमानता को कम करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
- प्रत्येक नवजात शिशु और प्रसव को ट्रैक करने की बेहतर प्रणाली का विकास कर स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
SUTRA-PIC कार्यक्रम
प्रीलिम्स के लिये:SUTRA-PIC कार्यक्रम मेन्स के लिये:भारत में देशी गायों का संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने ’स्वदेशी’ गायों पर शोध करने हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) के नेतृत्व में SUTRA-PIC (Scientific Utilization through Research Augmentation- Prime Products from Indigenous Cows) नामक कार्यक्रम की योजना के लिये प्रस्ताव प्रस्तुत करने संबंधी प्रावधान किये हैं।
मुख्य बिंदु:
- इसे संचालित करने में जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा सहयोग किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत अनुसंधान संस्थानों, शिक्षाविदों, ग्रासरूट्स ऑर्गनाइजेशन के वैज्ञानिकों/शिक्षाविदों से परियोजना प्रस्ताव आमंत्रित किये गए हैं ताकि स्थानीय स्तर पर अनुसंधान विकास कार्य, प्रौद्योगिकी विकास और क्षमता निर्माण हो सके।
क्या है SUTRA-PIC कार्यक्रम?
- SUTRA-PIC कार्यक्रम के तहत निम्नलिखित पाँच थीम्स (Themes) के आधार पर प्रस्ताव रखे गए हैं-
- स्वदेशी गायों की विशिष्टता (Uniqueness of Indigenous Cows):
- इस थीम के तहत एक प्रमुख उद्देश्य शुद्ध देशी गायों की विशिष्टता की व्यवस्थित वैज्ञानिक जाँच करना है।
- स्वदेशी गायों से चिकित्सा और स्वास्थ्य के लिये प्रमुख उत्पाद प्राप्त करना (Prime-products from Indigenous Cows for Medicine and Health):
- इस थीम के अंतर्गत ऐसे अनुसंधान प्रस्ताव रखे गए हैं जिनके अंतर्गत केमिकल प्रोफाइलिंग (Chemical Profiling) तथा ऐसे जैव सक्रिय सिद्धांतों की जाँच की जाएगी जो कि एंटीकैंसर दवाओं और एंटीबॉडीज़ की संख्या को बढ़ाने में सक्षम हैं तथा आधुनिक दृष्टिकोण से देशी गाय के प्रमुख उत्पादों के औषधीय गुणों के संबंध में अनुसंधान किया जाएगा।
- कृषि अनुप्रयोगों के लिये देशी गायों से प्रमुख उत्पाद प्राप्त करना
(Prime-products from Indigenous Cows for Agricultural Applications):- इस थीम के अंतर्गत मुख्य उत्पादों की भूमिका की वैज्ञानिक जाँच करने, पौधों की वृद्धि, मृदा स्वास्थ्य और पादप प्रणाली में प्रतिरक्षा प्रदान करने वाली देशी गायों, कृषि में जैविक खाद एवं जैव कीटनाशक के रूप में उसके उपयोग संबंधी अनुसंधान का प्रस्ताव रखा गया है।
- खाद्य और पोषण के लिये देशी गायों से प्रमुख उत्पाद प्राप्त करना
(Prime-products from Indigenous Cows for Food and Nutrition):- इस थीम के तहत भारतीय देशी गायों से प्राप्त दूध और दुग्ध उत्पादों के गुणों तथा उनकी शुद्धता पर वैज्ञानिक अनुसंधान करने संबंधी प्रस्ताव रखा गया है।
- इसके अंतर्गत पारंपरिक तरीकों से गायों की देशी नस्लों से तैयार दही और घी के पोषण और चिकित्सीय गुणों पर वैज्ञानिक शोध करने के संबंध में भी प्रस्ताव रखा गया है।
- घी की गुणवत्ता को प्रमाणित करने के लिये जैव/रासायनिक मार्का की पहचान करने के संबंध में भी प्रस्ताव रखा गया है।
- स्वदेशी गायों पर आधारित उपयोगी वस्तुओं से संबंधित प्रमुख उत्पाद प्राप्त करना:
(Prime-products from indigenous cows-based utility items):- इस विषय के तहत देशी गायों के प्रमुख घटकों से प्राप्त उपयोगी उत्पादों को प्रभावी, आर्थिक और पर्यावरण के अनुकूल तैयार करने के उद्देश्य से प्रस्ताव रखा गया है।
- स्वदेशी गायों की विशिष्टता (Uniqueness of Indigenous Cows):
कौन कर सकता है प्रस्तावों के लिये आवेदन?
- इस कार्यक्रम के लिये अकादमिक/अनुसंधान एवं विकास संस्थाएँ/विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र की संस्थाएँ या भारत में सक्रिय सक्षम गैर-सरकारी संगठनों (जिनका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के निष्पादन में उपलब्धि का रिकॉर्ड हो) द्वारा स्वैच्छिक रूप से प्रस्ताव किया जा सकता है।
देशी गायों के संरक्षण से संबंधित अन्य तथ्य:
- वर्ष 2017 में DST के अंतर्गत स्थित प्रभाग Science For Equity Empowerment and Development-SEED ने ‘पंचगव्य के वैज्ञानिक मूल्यांकन और अनुसंधान’ (Scientific Validation and Research on Panchgavya- SVAROP) हेतु एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गौ-उत्पादों को विकसित करने के साथ-साथ देशी मवेशियों की नस्लों की आनुवंशिक गुणवत्ता में सुधार करना था।
पंचगव्य:
- पंचगव्य एक आयुर्वेदिक रामबाण औषधि है जो गाय (गव्य) के पाँच (पंच) उत्पादों (दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र) का मिश्रण है।
- कहा जाता है कि यह कई तरह की बीमारियों का उपचार कर सकता है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय रेलवे: कॉरपोरेट ट्रेन मॉडल
प्रीलिम्स के लियेकॉरपोरेट ट्रेन मॉडल, भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम मेन्स के लियेकॉरपोरेट ट्रेन मॉडल का महत्त्व और लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रेलवे द्वारा संचालित काशी महाकाल एक्सप्रेस (Kashi Mahakal Express) को तीसरी कॉरपोरेट ट्रेन का दर्ज़ा प्राप्त हुआ है। इससे पूर्व यह दर्ज़ा दिल्ली-लखनऊ और मुंबई-अहमदाबाद रूट के बीच संचालित दो तेजस एक्सप्रेस ट्रेनों को प्राप्त था।
कॉरपोरेट ट्रेन मॉडल
- भारतीय रेलवे द्वारा अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (Indian Railway Catering and Tourism Corporation-IRCTC) के लिये नियमित यात्री ट्रेनों को 'आउटसोर्स' करने का एक नया सक्रिय मॉडल कॉरपोरेट ट्रेन मॉडल है।
- यह मॉडल एक पायलट परियोजना है। इस मॉडल के सफल होने पर निजी क्षेत्र को लगभग 100 रेलवे रूट्स पर 150 ट्रेनों को संचालित करने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
नए मॉडल की कार्यप्रणाली
- इस मॉडल में किराया, भोजन, ट्रेन के भीतर मूलभूत सविधाएँ तथा शिकायत जैसी सेवाओं का संचालन IRCTC द्वारा किया जाएगा।
- भारतीय रेलवे अब सेवा प्रदाता की भूमिका से मुक्त होगी तथा रेलवे अवसंरचना के उपयोग की अनुमति देने के लिये IRCTC से पूर्व निर्धारित राशि प्राप्त करेगी।
- इस मॉडल के तीन प्रमुख घटक ढुलाई (Haulage), लीज़ (Lease), और कस्टडी (Custody) हैं।
- कॉरपोरेट ट्रेन तेजस के लिये IRCTC द्वारा दिया जाने वाला ढुलाई शुल्क (Haulage Charge) 800 रुपए प्रति किलोमीटर है। इसमें ट्रैक, सिग्नलिंग, ड्राइवर, स्टेशन स्टाफ जैसे निश्चित बुनियादी ढांँचे के उपयोग का शुल्क भी सम्मिलित है।
- इसके अतिरिक्त IRCTC को लीज़ शुल्क (Lease Charges) और कस्टडी शुल्क (Custody Charge) भी देना पड़ता है। इनमें से प्रत्येक घटक द्वारा दिल्ली-लखनऊ रूट पर भारतीय रेलवे को 2 लाख रुपए प्रतिदिन की आमदनी प्राप्त होती है।
भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम
- IRCTC, भारतीय रेलवे का एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यह खानपान, पर्यटन और ऑनलाइन टिकट वितरण के कार्य का संचालन करती है।
- IRCTC ने निजी ट्रेनों के संचालन का कार्य भी प्रारंभ किया है।
- IRCTC द्वारा 4 अक्तूबर, 2019 को भारत की पहली निजी ट्रेन तेजस एक्सप्रेस का संचालन दिल्ली-लखनऊ रूट पर किया गया।
IRCTC को प्राप्त शक्तियाँ
- एक कॉर्पोरेट इकाई होने के कारण IRCTC इस बात पर बल देता है कि रेलवे से इसे मिलने वाले कोच अच्छी स्थिति में तथा नए हो, जैसा कि सामान्य ट्रेनों में देखा जाता है कि कोच पुराने और बहुत ख़राब स्थिति में होते हैं। इससे IRCTC के व्यवसाय पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- नए मॉडल में IRCTC के पास रेल मंत्रालय और इसकी समितियों द्वारा निर्मित नीतियों के मापदंडों को तय करने तथा उन्हें बदलने का भी पूर्ण अधिकार होगा।
- IRCTC को अपने व्यवसाय मॉडल की ज़रूरतों के आधार पर किसी मार्ग पर ट्रेनों के स्टाॅपेज को बढ़ाने तथा कम करने की भी स्वतंत्रता प्राप्त है।
- उदाहरण के तौर पर दिल्ली-लखनऊ रूट पर तेजस के दो स्टॉप हैं, जबकि मुंबई-अहमदाबाद रूट पर तेजस के छह स्टॉप हैं। स्टाॅपेज को बढ़ाने तथा कम करने का निर्णय व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखकर लिया जाता है।
भारतीय रेलवे को प्राप्त होने वाले लाभ
- दिल्ली-लखनऊ रूट पर तेजस एक्सप्रेस के संचालन से सामान्य तौर पर सभी शुल्कों और करों को मिलाकर भारतीय रेलवे को IRCTC से लगभग 14 लाख रुपए प्रतिदिन की आमदनी होती है।
- इसके अतिरिक्त भारतीय रेलवे को कम किराए और अपने स्वयं के भारी ओवरहेड्स के कारण लागत की कम वसूली की स्थिति में इन ट्रेनों के संचालन के साथ जुड़े नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- इससे रेलवे के कोचों का रखरखाव भी अच्छी तरह से हो पाएगा।
क्या यह मॉडल निजी ट्रेन संचालकों के लिये भी समान है?
- निजी ट्रेन संचालकों से संबंधित मॉडल अलग है। इसमें ढुलाई शुल्क कॉरपोरेट ट्रेन मॉडल के सापेक्ष 668 रुपए प्रति किलोमीटर है।
- इस मॉडल में राजस्व का उच्चतम प्रतिशत साझा करने वाली कंपनियां ही अनुबंध हासिल कर पाएंगी।
- निजी संचालकों को लीज़ और कस्टडी शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- सरकार चाहती है कि निजी संचालकों के साथ भारतीय रेलवे के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी निजी ट्रेनों के संचालन के भार को साझा करें।
- यह मॉडल रेलवे में निजीकरण की दिशा में बढ़ने का भी एक प्रयास है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
निवेश सलाहकार के लिये योग्यता नियमों में सुधार
प्रीलिम्स के लिये:SEBI, इनसाइडर ट्रेडिंग मेन्स के लिये:निवेश सलाहकारों के लिये योग्यता नियमों में सुधार से संबंधित मुद्दे, पूंजी बाज़ार से संबंधित विवाद एवं मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) ने निवेश सलाहकारों के लिये योग्यता नियमों में सुधार करने फैसला लिया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- निवेशकों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से, पूंजी बाज़ार नियामक सेबी निवेश सलाहकारों के लिये योग्यता मानदंडों को कड़ा बनाने और अधिकतम फीस तय करने की तैयारी में है।
- इसके अतिरिक्त नियामक जल्द ही कार्वी (Karvy) जैसे मामलों से बचने के लिये एक सर्कुलर जारी करेगा। ध्यातव्य है कि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग सर्विसेज लिमिटेड (Karvy Stock Broking Services Limited) पर ग्राहकों की अनुमति के बिना उनकी प्रतिभूतियों का उपयोग निजी लाभ के लिये करने का आरोप है।
- इसके अतिरिक्त नियामक मिड कैप (Mid Cap) और स्माल कैप (Small Cap) म्यूचुअल फंड स्कीम्स को दोबारा श्रेणीबद्ध करने की तैयारी कर रहा है। गौरतलब है कि in सुधारों के माध्यम से म्यूचुअल फंड के निवेश का दायरा बढ़ाया जा सकता है।
SEBI द्वारा किये गए हालिया सुधार
- सेबी ने निवेश सलाहकारों के रूप में पंजीकृत नहीं होने की स्थिति में स्वतंत्र ‘फाइनेंसियल एडवाइज़र’ या ‘वेल्थ एडवाइज़र’ जैसे टाइटल के प्रयोग पर भी रोक लगा दी है।
- सेबी के अनुसार, नए नियम चार परामर्श पत्रों और सार्वजनिक टिप्पणियों पर विचार करने के बाद बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य फीस के भुगतान में पारदर्शिता लाना और निवेशकों से वसूल की जाने वाली फीस पर ऊपरी सीमा तय करना है।
- सेबी निवल योग्यता (Networth Qualification) और अनुभव (Experience) सहित निवेश सलाहकार के रूप में पंजीकरण के लिये इनहांस्ड एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया (Enhanced Eligibility Criteria) भी लागू करेगा।
- सेबी के अनुसार, अधिक पारदर्शिता के लिये सलाहकार और क्लाइंट को सभी नियमों एवं शर्तों को शामिल करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने होंगे।
- सेबी के अनुसार, नए नियमों के अंतर्गत सलाह एवं वितरण की सेवाएँ किसी व्यक्तिगत सलाहकार द्वारा दिये जाने की अनुमति नहीं होगी।
SEBI द्वारा किये गए सुधारों का महत्त्व
- सेबी द्वारा किये गए सुधारों से पूंजी बाज़ार से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सहायता प्रदान करेंगे।
- निवेशकों के हितों की रक्षा की जा सकेगी और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के लिये प्रेरित किया जा सकेगा।
- निवेश सलाहकार के रूप में नियुक्ति हेतु आवश्यक योग्यता मानदंडों को कठोर बनाए जाने से बेहतर निवेश सलाहकार व्यवस्था में शामिल होंगे तथा निवेशकों को बेहतर सुविधा प्राप्त हो सकेगी।
SEBI द्वारा किये गए सुधारों के प्रभाव
- इससे निवेश सलाहकारों द्वारा मनमाने ढंग से फीस में एक सीमा से अधिक वृद्धि नहीं कर पाएँगे जिससे निवेशकों पर पड़ने वाला फीस का अतिरिक्त भार कम होगा।
- नए नियमों के अंतर्गत सलाह एवं वितरण की सेवाएँ किसी व्यक्तिगत सलाहकार द्वारा दिये जाने की अनुमति नहीं होने से व्यवस्था के औपचारिकरण में मदद मिलेगी।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI):
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है तथा नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- इसके मुख्य कार्य हैं -
- प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
- प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
आगे की राह
- SEBI को पूंजी बाज़ार में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिये निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है, गौरतलब है कि SEBI निरंतर इनसाइडर ट्रेडिंग और निवेश जैसे मुद्दों पर कार्रवाई करता रहा है।
- ग्राहकों की अनुमति के बिना उनकी प्रतिभूतियों का उपयोग निजी लाभ के लिये नहीं किया जा सके, इससे संबंधित कड़े मानदंडों के निर्धारण एवं क्रियान्वयन की आवश्यकता है जिससे कि निवेशकों का इस व्यवस्था पर विश्वास बना रहे।
स्रोत: द हिंदू
RBI के लेखांकन वर्ष में परिवर्तन
प्रीलिम्स के लिये:RBI का लेखांकन वर्ष, बिमल जालान समिति, आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:RBI के लेखांकन वर्ष में परिवर्तन के कारण एवं प्रभाव, मौद्रिक नीति एवं राजकोषीय नीति से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of india- RBI) अपने लेखांकन वर्ष (Accounting Year) को जुलाई-जून से परिवर्तित कर अप्रैल-मार्च करने पर विचार कर रहा है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- RBI देश के वित्त के अधिक प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने हेतु अपने लेखांकन वर्ष को सरकार के वित्तीय वर्ष (Fiscal Year) के साथ संरेखित करना चाहता है।
पृष्ठभूमि:
- जब 1 अप्रैल, 1935 में सर ऑसबोर्न स्मिथ (तत्कालीन गवर्नर) की अध्यक्षता में RBI का परिचालन शुरू हुआ तो इसका लेखांकन वर्ष जनवरी-दिसंबर था किंतु 11 मार्च, 1940 को बैंक ने अपना लेखांकन वर्ष बदलकर जुलाई-जून कर दिया था।
- अब लगभग आठ दशकों के बाद RBI एक और बदलाव कर रहा है। ध्यातव्य है कि अगला लेखा वर्ष जुलाई 2020 से 31 मार्च 2021 तक नौ महीने की अवधि का होगा और उसके बाद सभी लेखांकन वर्ष सरकार के वित्तीय वर्ष की भाँति 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होंगे।
RBI के लेखांकन का महत्त्व
- RBI की बैलेंस शीट देश की अर्थव्यवस्था की कार्यपद्धति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो बड़े पैमाने पर इसके मुद्रा संबंधी मुद्दे के साथ-साथ मौद्रिक नीति और आरक्षित प्रबंधन उद्देश्यों के अनुसरण में की गई गतिविधियों को दर्शाती है।
- RBI अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय बैंक केंद्र सरकार के खाते के लिये धनराशि स्वीकार करने तथा क्रेडिट करने के लिये राशि का भुगतान और विनिमय के अतिरिक्त सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के साथ-साथ प्रेषण एवं अन्य बैंकिंग कार्यों का प्रबंधन करता है।
- RBI देश का मौद्रिक प्राधिकरण, नियामक, वित्तीय प्रणाली का पर्यवेक्षक, विदेशी मुद्रा का प्रबंधक, मुद्रा जारी करने वाला, भुगतान और निपटान प्रणाली का नियामक तथा पर्यवेक्षक, केंद्र एवं राज्य सरकारों के बैंकर के साथ-साथ बैंकों का भी बैंकर है। ध्यातव्य है कि ये सभी कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिये इन दायित्वों का निर्वहन करने के कारण RBI का लेखांकन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
RBI द्वारा लेखांकन वर्ष में परिवर्तन के कारण
- RBI के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework- ECF) पर बिमल जालान समिति ने RBI के वार्षिक खातों की अधिक पारदर्शी प्रस्तुति और वित्तीय वर्ष 2020-21 से इसके लेखांकन वर्ष को जुलाई-जून के स्थान पर अप्रैल-मार्च करने का प्रस्ताव दिया था।
- समिति के अनुसार, इससे RBI बजटीय उद्देश्यों हेतु वित्त वर्ष के लिये सरकार को अनुमानित अधिशेष के हस्तांतरण (Estimated Surplus Transfer) का बेहतर अनुमान प्रदान करने में सक्षम होगा।
- समिति का मानना था कि इससे सरकार को प्राप्त लाभांश या अधिशेष के हस्तांतरण का बेहतर प्रबंधन किया जा सकेगा। इसके अलावा सरकारें, कंपनियाँ और अन्य संस्थान जो अप्रैल-मार्च वित्त वर्ष का पालन करते हैं, को उनके लेखांकन के प्रभावी प्रबंधन में मदद मिलेगी।
लेखांकन वर्ष में परिवर्तन का प्रभाव
- वित्तीय वर्ष में बदलाव RBI द्वारा भुगतान किये जाने वाले अंतरिम लाभांश की आवश्यकता को कम किया सकता है और इस तरह के भुगतान असाधारण परिस्थितियों तक सीमित हो सकते हैं। ध्यातव्य है कि पिछले वित्त वर्ष में RBI ने अंतरिम लाभांश के रूप में 28,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया था।
- इससे RBI द्वारा प्रकाशित मौद्रिक नीति अनुमानों और रिपोर्टों में अधिक सामंजस्य बनाया जा सकेगा। क्योंकि इनके लिये RBI वित्तीय वर्ष को ही आधार वर्ष मानता है।
- लेखांकन वर्ष को सरकार के वित्तीय वर्ष से संरेखित करने से सरकारी नीतियों एवं RBI की मौद्रिक नीतियों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है तथा देश की आर्थिक स्थितियों का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
आगे की राह
- RBI को वर्तमान आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहिये, साथ ही इसे सरकार की नीतियों के साथ परस्पर समन्वय बनाए रखने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त RBI को बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है तथा बैंकिंग क्षेत्र में NPA, प्रबंधन में समस्या जैसी अन्य समस्याओं से निपटने की दिशा में व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे बैंकिंग व्यवस्था में नागरिकों का विश्वास बना रहे तथा वित्तीय समावेशन को बल मिले।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
भारत में नगरीय ऊष्मा द्वीप
प्रीलिम्स के लिये:नगरीय ऊष्मा द्वीप मेन्स के लिये :नगरीय जलवायु में परिवर्तन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology-IIT) खड़गपुर ने ‘भारत में नगरीय ऊष्मा द्वीपों के विस्तार में मानवजनित कारक’ नाम से एक शोधपत्र जारी किया।
मुख्य बिंदु:
- इस शोध में नगरीय और उपनगरीय भूमि के सतही तापांतर का अध्ययन किया गया।
- यह शोध वर्ष 2001-2017 के दौरान 44 प्रमुख शहरों में किये गए अध्ययन पर आधारित है।
अध्ययन में मुख्य निष्कर्ष:
- पहली बार शहरी ऊष्मा द्वीपों का सतही औसत दैनिक तापमान (इसे Urban Heat Island-UHI तीव्रता भी कहते हैं।) 2°C से अधिक होने के प्रमाण पाए गए। दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नई जैसे सभी नगरों में ऐसे प्रमाण मिले हैं।
- यह विश्लेषण मानसून और उत्तर- मानसून काल में उपग्रह आधारित तापमान मापन पर आधारित है।
नगरीय ऊष्मा द्वीप:
नगरीय ऊष्मा द्वीप वह सघन जनसंख्या वाला नगरीय क्षेत्र होता है, जिसका तापमान उपनगरीय या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2°C अधिक होता है।
ऐसा क्यों होता है?
- फुटपाथ, सड़क, छत जैसी अवसंरचनाएँ कंक्रीट, डामर (टार) और ईंटों जैसी अपारदर्शी सामग्री से निर्मित होती हैं जो प्रकाश को संचारित नहीं होने देती हैं।
- इनकी ऊष्मा-क्षमता (किसी वस्तु के विकिरण को अवशोषित कर गर्म होने की क्षमता) एवं तापीय-चालकता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में उच्च होती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक खुला स्थान, पेड़-पौधे और घास पाई जाती है। और पेड़-पौधों में वाष्पी-वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) की क्रियाएँ होती हैं जबकि नगरों में इन क्रियाओं का अभाव रहता है, अतः नगरों का तापमान अधिक हो जाता है।
वाष्पी-वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration):
यह शब्द दो शब्दों, वाष्पीकरण (Evaporation) और वाष्पोत्सर्जन (Transpiration से मिलकर बना है।
वाष्पीकरण:
- इसमें स्थल भाग से आसपास की वायु में जल की आवाजाही होती है।
वाष्पोत्सर्जन:
- पौधे के भीतर जल की गतिशीलता तथा उसकी पत्तियों में स्टोमेटा (Stomata: पत्ती की सतह पर पाए जाने वाले छिद्रों) के माध्यम से जल में होने वाली कमी।
UHI का जलवायु पर प्रभाव:
- UHI के कारण नगरीय वायु गुणवत्ता में भी कमी आती है।
- नगरीय उच्च तापमान के कारण UHI में उच्च तापमान पसंद करने वाली प्रजातियों यथा- चींटियों जैसे-कीड़े, छिपकली और जेकॉस (Geckos) का अतिक्रमण बढ़ता है। ऐसी प्रजातियों को एक्टोथर्म (Ectotherms) कहा जाता है।
- इसके अलावा नगरीय क्षेत्र में ऊष्मा का अनुभव किया जाता है जो मानव और पशु दोनों के स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक हैं, इसके कारण शरीर में ऐंठन, अनिद्रा और मृत्यु दर में वृद्धि देखी जाती है।
- UHI आसपास के जल क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है जहाँ से गर्म जल शहर की सीवर नालियों से होता हुआ आसपास की झीलों और खाड़ियों में पहुँचता है और इनके जल स्रोतों के जल की गुणवत्ता खराब करता है।
UHI नगर की केस स्टडी:
- बंगलूरू जो कभी अपनी स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु के लिये जाना जाता था अब यह नगर UHI से प्रभावित है।
- नगर के आसपास के उपनगरों में इमारतों, औद्योगिक पार्कों और अपार्टमेंट्स का तेजी से विस्तार हुआ है, जैसे-इलेक्ट्रॉनिक सिटी और व्हाइटफील्ड (Whitefield) उपनगरों के विस्तार ने नगर को अस्वास्थ्यकर बना दिया है। इसकी कुछ सुंदर झीलों का जल गँदला और रोगकारक हो गया हैं।
- नगर में जहाँ पहले रात में एयर कंडीशन या पंखों की जरूरत नहीं रहती थी वहाँ आज UHI की स्थिति है। औद्योगिक पार्क, कारखानें और संबंधित इमारतों से युक्त आसपास का क्षेत्र जो कभी एक विशाल उपनगर था वर्तमान में इसे तीसरे नगर ‘साइबराबाद’ (Cyberabad) के रूप में जाना जाता है।
- इनकी वजह से न केवल नगर में UHI का निर्माण हुआ है बल्कि ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (Air Quality Index-AQI) में भी भारी कमी आई है। हालाँकि बंगलूरू में AQI का स्तर सुरक्षित (Safe) श्रेणी पर है परंतु इस स्तर को बनाए रखने के लिये अभी से कदम उठाने की आवश्यकता है। AQI का ‘सुरक्षित’ स्तर 61-90 अंको के बीच माना जाता है।
UHI का शमन और नियंत्रण:
औद्योगीकरण और आर्थिक विकास देश के लिये महत्त्वपूर्ण विषय हैं, लेकिन साथ ही UHI स्थिति पर नियंत्रण पाना भी आवश्यक है। इसके लिये निम्न तरीके कारगर हो सकते हैं:
- हल्के रंग के कंक्रीट ( डामर के साथ चूना पत्थर) का उपयोग करना , हरित छतों का उपयोग करना, सड़क की सतह धूसर या गुलाबी रंग करना, ये काले रंग की अपेक्षा 50% बेहतर होते हैं क्योंकि ये कम ऊष्मा को अवशोषित करते हैं और अधिक सूर्यताप को परावर्तित करते हैं। इसी तरह हमें छतों को हरे रंग में रंगना चाहिये और हरे रंग की पृष्ठभूमि वाले सौर पैनल स्थापित करने चाहिये।
- अधिक-से-अधिक पेड़ और पौधे लगाने चाहिये। ‘ट्री पीपल संगठन’ (Tree people) ने पेड़ और पौधों से होने वाले ऐसे 22 लाभों को सूचीबद्ध किया है जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में सहायता करते हैं।
- वे प्रदूषक गैसों को अवशोषित करके आसपास की हवा को साफ करते हैं (यथा- NXOy, O3, NH3, SO2 आदि)।
- वे शहर और सड़कों को ठंडा रखते हैं, इस तरह ऊर्जा संरक्षण में मदद करते हैं (एयर कंडीशनिंग लागत में 50% की कटौती)।
- जल संरक्षण को बढ़ाते हैं और जल प्रदूषण को रोकते हैं।
- मृदा अपरदन को रोकना।
- पराबैंगनी किरणों से लोगों और बच्चों की रक्षा करने।
- नगर में अप्रत्यक्षतः व्यापारिक क्रियाओं को बढ़ाने में मदद करना।
अतः अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिये परंतु पौधारोपण के साथ-साथ उनकी निरंतर देखभाल भी की जानी चाहिये तथा ‘टोकन पौधारोपण’ (विशेष एकल किस्म के पौधों को बढ़ावा देना) नहीं करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि निर्यात पर उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह का गठन
प्रीलिम्स के लियेकृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, 15वाँ वित्त आयोग मेन्स के लियेविशेषज्ञ समूह की आवश्यकता तथा उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने कृषि निर्यात पर एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया है, ताकि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके और इसके साथ ही अधिक आयात का प्रतिस्थापन सुनिश्चित करने के लिये संबंधित फसलों को प्रोत्साहित किया जा सके।
प्रमुख बिंदु
- कृषि निर्यात पर गठित उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह 8 सदस्यीय (अध्यक्ष समेत ) निकाय है। इस विशेषज्ञ समूह का अध्यक्ष संजीव पुरी को नियुक्त किया गया है।
- विशेषज्ञ समूह में सदस्य के रूप में राधा सिंह, सुरेश नारायण, जय श्रॉफ, संजय सचेती, डॉ.सचिन चतुर्वेदी तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- विशेषज्ञ समूह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बदलते परिदृश्य में भारतीय कृषि उत्पादों (जिंस, अर्द्ध-प्रसंस्कृत एवं प्रसंस्कृत) के लिये निर्यात एवं आयात प्रतिस्थापन अवसरों का आकलन कर निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि करने तथा आयात पर निर्भरता घटाने के उपाय बताएगा।
- कृषि उत्पादकता बढ़ाने, अपेक्षाकृत अधिक मूल्यवर्द्धन में समर्थ बनाने, कृषि उत्पादों की बर्बादी में कमी सुनिश्चित करने, भारतीय कृषि से संबंधित लॉजिस्टिक्स संबंधी बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं को मज़बूत करने और विश्व स्तर पर कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिये विभिन्न रणनीतियों एवं उपायों की अनुशंसा करेगा।
- कृषि संबंधी मूल्य शृंखला में निजी क्षेत्र के निवेश के मार्ग में मौजूद बाधाओं की पहचान कर ऐसे नीतिगत उपाय एवं सुधार सुझाना, जिससे आवश्यक निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
- कृषि क्षेत्र में सुधारों में तेज़ी लाने के साथ-साथ इस संबंध में अन्य नीतिगत उपायों को लागू करने के लिये वर्ष 2021-22 से लेकर वर्ष 2025-26 तक की अवधि के लिये राज्य सरकारों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन उपलब्ध कराना।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण
(Agricultural And Processed Food Products Export Development Authority-APEDA)
- भारत सरकार द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की स्थापना दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत की गई।
- यह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
- APEDA का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली तथा क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई, कोलकाता, बंगलूरु, हैदराबाद, गुवाहाटी में स्थित है।
निर्दिष्ट कार्य
- वित्तीय सहायता प्रदान कर या सर्वेक्षण तथा संभाव्यता अध्ययनों, संयुक्त उद्यमों के माध्यम से पूंजी लगाकर तथा अन्य राहतों व आर्थिक सहायता योजनाओं द्वारा अनुसूचित उत्पादों के निर्यात से संबद्ध उद्योगों का विकास करना।
- निर्धारित शुल्क के भुगतान पर अनुसूचित उत्पादों के निर्यातकों के रूप में व्यक्तियों का पंजीकरण करना।
- निर्यात उद्देश्य के लिये अनुसूचित उत्पादों के लिये मानक और विनिर्देश तय करना।
- अनुसूचित उत्पादों की पैकेजिंग में सुधार लाना।
- भारत से बाहर अनुसूचित उत्पादों के विपणन में सुधार लाना।
- उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, विपणन या अनुसूचित उत्पादों के निर्यात में लगे संगठनों या कारखानों के मालिकों या अनुसूचित उत्पादों से संबद्ध मामलों के लिये निर्धारित ऐसे अन्य व्यक्तियों से आँकड़े एकत्र करना तथा इस प्रकार एकत्रित किये गए आँकड़ों या उनके किसी एक भाग या उनके उद्धरण प्रकाशित करना, इत्यादि।
समूह की आवश्यकता क्यों?
- बीते कई वर्षों से कृषि निर्यात लगातार कम हुआ है। वर्ष 2013-14 के 42.9 अरब डॉलर से घटकर यह वर्ष 2016-17 में 33.4 अरब डॉलर रह गया है और इस गिरावट को रोकना आवश्यक है। वर्ष 2018 में निर्मित कृषि निर्यात नीति के परिणामस्वरूप सितंबर 2019 तक कृषि निर्यात 38.49 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक करने का लक्ष्य है।
- कृषि जिंसों के मामले में भारत घाटे से अधिशेष वाला देश बन चुका है और उसे अपनी अतिरिक्त उपज के लिये नए बाज़ारों की आवश्यकता है।
- कमज़ोर घरेलू कीमतों और किसानों की बढ़ती निराशा के बीच निर्यात के अन्य क्षेत्रों की आवश्यकता है। अच्छी पैदावार होने के बाद भी किसानों को फसलों के उचित दाम नहीं मिले, इससे भी निर्यात बढ़ाने की ज़रूरत उजागर होती है।
आगे की राह
- पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करते समय नीति निर्माताओं को कृषि निर्यात का समर्थन करना चाहिये। समुद्री उत्पाद, मांस, तेल, मूँगफली, कपास, मसाले, फल और सब्जियाँ पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न नहीं करती हैं, चावल के निर्यात का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
- सरकार को कुशल वैश्विक मूल्य शृंखला विकसित करनी होगी और सभी राज्यों में भूमि पट्टा बाज़ार को उदार बनाना होगा। इसे अनुबंध-कृषि के मध्यम से दीर्घकालिक आधार पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सरकार की खाद्य प्रसंस्करण नीति मौजूदा स्वरूप में बड़ी परियोजनाओं और खाद्य आधारित क्लस्टरों के पक्ष में झुकी हुई है। इसमें छोटी-मझोली इकाइयों के लिये खास जगह नहीं है। अतः इस दिशा में सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है।
स्रोत: PIB
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 फरवरी, 2020
‘सिल्वर’ पुरस्कार
प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग ने वर्ष 2019-20 के संबंध में डिजिटल परिवर्तन की सरकारी प्रक्रिया में उत्कृष्टता के लिये भारत निर्वाचन आयोग को ‘सिल्वर’ पुरस्कार प्रदान किया है। यह पुरस्कार उन परियोजनाओं के लिये दिया जाता है, जिनमें कार्य प्रणाली का मूल्यांकन शामिल होता है तथा जिनके तहत कुशलता, प्रक्रिया, गुणवत्ता और सेवा के क्षेत्र में सुधार किया जाता है। यह पुरस्कार 7-8 फरवरी, 2020 को मुंबई में आयोजित ई-प्रशासन पर 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान दिया गया। सम्मेलन का आयोजन प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने किया था।
अरब का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने अपने पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिये परिचालन लाइसेंस जारी किया है, जिससे इस वर्ष के अंत तक उत्पादन शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। UAE ने इसे ऐतिहासिक क्षण करार दिया है, ज्ञात हो कि इसके माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) परमाणु ऊर्जा प्लांट संचालित करने वाला क्षेत्र का पहला अरब देश बन जाएगा। कोरिया इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (KEPCO) द्वारा निर्मित और UAE की राजधानी आबु धाबी में स्थित बराक परमाणु ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत मूल रूप से वर्ष 2017 में की जानी थी, किंतु अब तक इसके पहले रिएक्टर ने भी काम करना शुरू नहीं किया है। ध्यातव्य है कि अभी इस संयंत्र के मात्र एक रिएक्टर को ही लाइसेंस जारी किया है, पूरी तरह से संचालित होने के पश्चात् संयंत्र के चार रिएक्टरों से 5,600 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी।
14 समझौतों पर हस्ताक्षर
लखनऊ में डेफएक्सपो 2020 (DefExpo 2020) के दौरान आयोजित 5वें भारत-रूस सैन्य उद्योग सम्मेलन के दौरान भारत और रूस की रक्षा कंपनियों के बीच अस्त्र तथा सैन्य प्रणालियों के कलपुर्जे बनाने हेतु 14 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इस अवसर पर देश के रक्षा सचिव अजय कुमार ने कहा कि भारत ने भारतीय और रूसी कंपनियों के मध्य सहयोग को बढ़ाने के लिये अनेक कदम उठाए हैं और वह भारत में रक्षा उपकरणों का निर्माण कार्य जल्द शुरू करने पर ध्यान दे रहा है। ध्यातव्य है कि भारतीय सशस्त्र बलों को रूस में निर्मित सैन्य प्रौद्योगिकी तथा प्रणालियों के कलपुर्जों की आपूर्ति में विलंब का सामना करना पड़ रहा है। रूस बीते छह दशकों से भारत को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने में अग्रणी रहा है।
लिथियम का भंडार
भारतीय परमाणु उर्जा आयोग के अनुसंधानकर्त्ताओं ने मंड्या (कर्नाटक) में 14,100 टन के लिथियम भंडार की खोज की है। हालाँकि भारत में खोजा गया यह लिथियम भंडार विश्व के अग्रणी लिथियम उत्पादक देशों की अपेक्षा काफी कम है। ज्ञात हो कि चिली 8.6 मिलियन टन, ऑस्ट्रेलिया 2.6 मिलियन टन और अर्जेंटीना 1.7 मिलियन टन लिथियम का उत्पादन करता है। मंड्या, कर्नाटक में बंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित है। लिथियम एक दुर्लभ धातु है, इसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत् वाहनों की बैटरी के निर्माण में किया जाता है।
‘हिम्मत प्लस’ एप
दिल्ली पुलिस ने उबर (Uber) के साथ मिलकर कैब में यात्रा करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ‘हिम्मत प्लस’ नाम से एक एप लॉन्च किया है। इस एप के माध्यम से आपातकालीन स्थिति में पुलिस मुख्यालय को संदेश भेजा जा सकता है, जिससे चालक या सवार की वास्तविक स्थिति (Location) का पता चल जाएगा और तत्काल सहायता प्रदान करने के लिये एक पीसीआर (PCR) वैन भेजी जाएगी। इस अवसर पर दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने कहा कि विभाग का मुख्य उद्देश्य आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।