अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्रिटेन की संसद में कश्मीर पर चर्चा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में कश्मीर मुद्दे पर की गई चर्चा को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।
- इससे पूर्व अक्तूबर 2020 में धारा 370 के निरसन के तीन माह बाद इटली, ब्रिटेन, फ्रांँस, जर्मनी, चेक गणराज्य और पोलैंड से यूरोपीय संसद के 27 सदस्यों वाले एक प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर (कश्मीर) का दौरा किया था।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- इस चर्चा का आयोजन यूनाइटेड किंगडम (UK) की संसद के कुछ सदस्यों द्वारा ‘कश्मीर की राजनीतिक स्थिति’ शीर्षक पर किया गया था।
- इस चर्चा में शामिल सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता ज़ाहिर की और यूनाइटेड किंगडम की सरकार से इस क्षेत्र तक पहुँच प्राप्त करने की मांग की, ताकि जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की प्रत्यक्ष रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत की जा सके।
भारत की चिंता
- इस चर्चा में कश्मीर के संदर्भ में प्रयोग की गई शब्दावली पर भारत ने चिंता ज़ाहिर की है, भारत के अनुसार, ब्रिटिश सांसदों को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (जो कि भारत का अभिन्न अंग है) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के बीच अंतर करना चाहिये।
- अक्तूबर 1947 में जब कश्मीर की पूर्ववर्ती रियासत को कानूनी रूप से भारत में शामिल किया गया था, तब कश्मीर के कुछ हिस्से पर पाकिस्तान द्वारा ज़बरन अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया था।
- इस चर्चा के दौरान जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश की वर्तमान ज़मीनी हकीकत को नज़रअंदाज किया गया और इसके बजाय एक तीसरे देश (पाकिस्तान) द्वारा प्रचारित झूठे दावों जैसे- कथित 'नरसंहार' और 'उग्र हिंसा' आदि पर चर्चा की गई।
भारत का पक्ष
- लंदन में भारतीय उच्चायोग ने रेखांकित किया कि बीते वर्ष शुरू की गई स्मार्ट वाई-फाई (WiFi) परियोजना ने इस क्षेत्र में उच्च गति इंटरनेट के उपयोग को सक्षम बनाया है, वहीं केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2020 में हुए आतंकी हमलों, चुनौतीपूर्ण मौसम की स्थिति और महामारी जैसी चुनौतियों के बावजूद ‘ज़िला विकास परिषद’ (DDC) के चुनाव आयोजित किये गए थे।
- भारत ने एक बार पुनः इस बात को दोहराया कि वह शिमला समझौते (वर्ष 1972) और लाहौर घोषणा (वर्ष 1999) के अनुरूप जम्मू-कश्मीर समेत सभी बकाया मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ वार्ता करने को तैयार है।
ब्रिटेन का पक्ष
- ब्रिटेन की सरकार ने स्पष्ट किया है कि यद्यपि नियंत्रण रेखा (LoC) के दोनों ओर मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ मौजूद हैं, किंतु ब्रिटेन भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय मामले में मध्यस्थता भूमिका नहीं निभाएगा।
- कश्मीर को लेकर ब्रिटेन सरकार की नीति स्थिर और अपरिवर्तित है।
- ब्रिटेन की सरकार अभी भी यह मानती है कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर के लोगों की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0
चर्चा में क्यों?
कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) ने भारत के युवाओं को रोज़गारपरक कौशल में दक्ष बनाने के लिये 300 से अधिक कौशल पाठ्यक्रम उपलब्ध कराकर ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 3.0’ की शुरुआत की है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- सरकार द्वारा वर्ष 2015 में कौशल भारत मिशन शुरू किया गया था, जिसके तहत प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) चलाई गई है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत में 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करना है एवं समाज में बेहतर आजीविका और सम्मान के लिये भारतीय युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण व प्रमाणन प्रदान करना है।
PMKVY 1.0:
- प्रारंभ: भारत की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ 15 जुलाई, 2015 (विश्व युवा कौशल दिवस) को शुरू की गई थी।
- उद्देश्य: युवाओं को मुफ्त लघु अवधि का कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना एवं मौद्रिक पुरस्कार के माध्यम से कौशल विकास को प्रोत्साहित करना।
- कार्यान्वयन: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा PMKVY का कार्यान्वयन किया गया है।
- मुख्य घटक: लघु अवधि का प्रशिक्षण, विशेष परियोजनाएँ, पूर्व शिक्षण को मान्यता, कौशल और रोज़गार मेला आदि
- परिणाम: वर्ष 2015-16 में 19.85 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया था।
PMKVY 2.0:
- कवरेज: PMKVY 2.0 को भारत सरकार के अन्य मिशनों जैसे- मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत आदि के साथ संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था।
- बजट: 12,000 करोड़ रुपए।
- दो घटकों के माध्यम से कार्यान्वयन:
- केंद्र प्रायोजित केंद्र प्रबंधित (CSCM): यह घटक राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा लागू किया गया था। PMKVY, 2016-20 के लिये 75% फंड CSCM के तहत आवंटित किया गया है।
- केंद्र प्रायोजित राज्य प्रबंधित (CSSM): इस घटक को राज्य सरकारों द्वारा राज्य कौशल विकास मिशनों (SSDMs) के माध्यम से लागू किया गया था। PMKVY, 2016-20 के लिये 25% फंड CSSM के तहत आवंटित किया गया है।
- परिणाम: 1.2 करोड़ से अधिक युवाओं को PMKVY 1.0 और PMKVY 2.0 के तहत देश में एक बेहतर मानकीकृत स्किलिंग इकोसिस्टम के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है।
PMKVY 3.0:
- कवरेज: इसे 717 ज़िलों, 28 राज्यों/आठ केंद्रशासित प्रदेशों में लॉन्च किया गया, PMKVY 3.0 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- कार्यान्वयन: इसे राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों और ज़िलों में अधिक ज़िम्मेदारियों और समर्थन के साथ विकेंद्रीकृत संरचना में लागू किया जाएगा।
- ज़िला कौशल समितियाँ (DSCs), राज्य कौशल विकास मिशनों (SSDM) के मार्गदर्शन में ज़िला स्तर पर कौशल अंतर को दूर करने और मांग का आकलन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
- विशेषताएँ:
- यह योजना 948.90 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2020-2021 की योजना अवधि में आठ लाख उम्मीदवारों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की परिकल्पना करती है।
- 729 प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों द्वारा कौशल भारत के तहत प्रशिक्षण केंद्रों और 200 से अधिक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) को सशक्त बनाने एवं कुशल पेशेवरों के एक मज़बूत पूल के निर्माण हेतु PMKVY 3.0 के तहत प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- यह युवाओं के लिये उद्योग से जुड़े अवसरों को भुनाने हेतु प्रारंभिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा का प्रचार करेगी।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 भी समग्र विकास और रोज़गार में वृद्धि के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है।
- इसके अंतर्गत प्रशिक्षण के लिये बॉटम-अप दृष्टिकोण को अपनाते हुए रोज़गारों की पहचान की जाएगी, जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग हो और जो युवाओं को कौशल अवसरों (स्थानीय के लिए मुखर) से जोड़ते हों।
- यह उन राज्यों जो कि बेहतर प्रदर्शन करते हैं, को वित्तीय आवंटन में प्राथमिकता देकर राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करेगी ।
- यह योजना 948.90 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2020-2021 की योजना अवधि में आठ लाख उम्मीदवारों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की परिकल्पना करती है।
स्रोत-पीआईबी
भारतीय विरासत और संस्कृति
जलीकट्टू
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में पोंगल और जल्लीकट्टू जैसे त्योहारों ने देश में राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित किया है।
प्रमुख बिंदु:
क्या है जलीकट्टू?
- परंपरा:
- जल्लीकट्टू लगभग 2,000 वर्ष पुराना एक प्रतिस्पर्द्धी खेल होने के साथ ही बैल मालिकों को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम भी है, जिन्हें वे प्रजनन के लिये पालते हैं।
- यह एक हिंसक खेल है जिसमें प्रतियोगी पुरस्कार प्राप्त करने के लिये बैल को वश/नियंत्रण में करने की कोशिश करते हैं; यदि प्रतियोगी बैल को वश में करने में असफल होते हैं, तो उस स्थिति में बैल मालिक को पुरस्कार मिलता है।
- खेल से संबंधित क्षेत्र:
- यह जल्लीकट्टू बेल्ट के नाम से विख्यात तमिलनाडु के मदुरई, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल ज़िलों में लोकप्रिय है।
- कार्यक्रम का समय:
- यह फसल कटने के समय तमिल त्योहार पोंगल के दौरान जनवरी के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है।
- तमिल संस्कृति में जलीकट्टू का महत्त्व:
- जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है।
- वर्तमान समय में जब पशु प्रजनन अक्सर एक कृत्रिम प्रक्रिया के माध्यम से होता है, ऐसे में संरक्षणवादियों और किसानों का तर्क है कि जल्लीकट्टू इन नर पशुओं की रक्षा करने का एक तरीका है, अन्यथा जुताई में इनकी उपयोगिता घटने के साथ इनका उपयोग केवल मांस के लिये ही किया जाता है।
- जल्लीकट्टू के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लोकप्रिय देशी मवेशी नस्लों में कंगायम, पुलिकुलम, उमबलाचेरी, बारगुर और मलाई मडु आदि शामिल हैं। स्थानीय स्तर पर इन उन्नत नस्लों के मवेशियों को पालना सम्मान की बात मानी जाती है।
- जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है।
जल्लीकट्टू पर कानूनी हस्तक्षेप:
- वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
जल्लीकट्टू पर वर्तमान कानूनी स्थिति:
- राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को वैध कर दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अभी लंबित है।
द्वंद्व:
- जल्लीकट्टू के संदर्भ में एक द्वंद्व यह बना हुआ है कि क्या इस परंपरा को तमिलनाडु के लोगों के सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित किया जा सकता है, जो कि एक मौलिक अधिकार है।
- गौरतलब है कि अनुच्छेद 29(1) के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
- हालाँकि इस विशेष मामले में अनुच्छेद 29(1) पशुओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है।
अन्य राज्यों में ऐसे खेलों की स्थिति:
- कर्नाटक द्वारा भी कंबाला नामक एक ऐसे ही खेल को बचाने के लिये एक कानून पारित किया है।
- तमिलनाडु और कर्नाटक को छोड़कर, जहाँ बैल को नियंत्रित या उनकी दौड़ का आयोजन अभी भी जारी है, सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2014 के प्रतिबंध आदेश के बाद ऐसे खेल आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में प्रतिबंधित हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट 2020: UNEP
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी ‘अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट 2020’ के अनुमान के मुताबिक, विकासशील देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन की वार्षिक लागत वर्ष 2050 तक लगभग चौगुनी हो जाएगी।
- मौजूदा अनुमान के अनुसार, विकासशील देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन की वर्तमान लागत 70 बिलियन डॉलर (5.1 लाख करोड़ रुपए) है, जो कि वर्ष 2030 तक 140-300 बिलियन डॉलर और वर्ष 2050 तक 280-500 बिलियन डॉलर हो जाएगी।
प्रमुख बिंदु
अनुकूलन लागत
- अनुकूलन लागत में अनुकूलन उपायों की योजना बनाने, उसकी तैयारी, सुविधा प्रदान करने और उन्हें लागू करने की लागतों को शामिल किया जाता है।
- अनुकूलन लागत में बढ़ोतरी के कारण यह अनुकूलन वित्त से भी अधिक है, जिसके कारण एक अनुकूलन वित्त अंतराल पैदा हो गया है।
- अनुकूलन वित्त: जलवायु परिवर्तन के कारण विकासशील देशों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिये यह धन के प्रवाह अथवा वित्तपोषण को संदर्भित करता है।
- अनुकूलन वित्त अंतराल: यह अनुकूलन लागत और अनुकूलन वित्त के बीच का अंतर होता है।
- वस्तुतः विकसित देशों में अनुकूलन लागत अधिक होती है, किंतु विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में उन्हें अनुकूलन का बोझ अधिक उठाना पड़ता है।
- अफ्रीका और एशिया के विकासशील देश, जो अकेले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में सक्षम नहीं हैं, अनुकूलन लागत से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
वैश्विक चुनौतियाँ
- तापमान में बढ़ोतरी: वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि पेरिस समझौते के तहत सभी देश कार्बन कटौती संबंधी वर्तमान प्रतिबद्धताओं का पालन करें तो भी सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। यदि हम वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस तक भी सीमित कर पाते हैं तो विश्व के गरीब देशों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
- महामारी: मौजूदा कोरोना वायरस महामारी ने अनुकूलन प्रयासों को प्रभावित किया और इसके प्रभावों को अभी तक मापा नहीं जा सका है।
- अन्य चुनौतियाँ: वर्ष 2020 में हमें केवल महामारी ही नहीं बल्कि बाढ़, सूखा, तूफान और वनाग्नि जैसी विनाशकारी आपदाएँ भी देखने को मिली हैं, जिन्होंने विश्व भर में लगभग 50 मिलियन लोगों को प्रभावित किया।
जलवायु परिवर्तन के लिये वैश्विक अनुकूलन: विश्व के लगभग तीन-चौथाई देशों ने कम-से-कम एक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपकरण को अपनाया है और अधिकांश विकासशील देश राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं को अपनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये भारत की पहलें
- भारत ने 1 अप्रैल, 2020 को भारत स्टेज- IV (BS-IV) उत्सर्जन मानदंडों के स्थान पर भारत स्टेज-VI (BS-VI) को अपना लिया है, ज्ञात हो कि पहले इन मापदंडों को वर्ष 2024 तक अपनाया जाना था।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- इसे जनवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
- यह 2024 तक PM10 और PM2.5 की सांद्रता में 20-30 प्रतिशत की कमी करने हेतु अस्थायी लक्ष्य वाली एक पंचवर्षीय कार्ययोजना है, जिसमें वर्ष 2017 को आधार वर्ष के तौर पर चुना गया है।
- उजाला (UJALA) योजना के तहत 360 मिलियन से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष लगभग 47 बिलियन यूनिट विद्युत की बचत हुई और प्रतिवर्ष 38 मिलियन टन CO2 की कमी हुई है।
- जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन
- वर्ष 2009 में शुरू किये गए इस मिशन के तहत वर्ष 2022 तक 20,000 मेगावाट ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा के उत्पादन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
- इस मिशन का उद्देश्य भारत के ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी को बढ़ाना है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था।
- इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
- 05 जून, 1972 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
- कार्य: इसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा को निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।
- प्रमुख रिपोर्ट्स: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, इंवेस्ट इनटू हेल्थी प्लेनेट रिपोर्ट।
- प्रमुख अभियान: ‘बीट पॉल्यूशन’, ‘UN75’, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
- मुख्यालय: नैरोबी (केन्या)
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और ओमान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-ओमान रणनीतिक सलाहकार समूह (India-Oman Strategic Consultative Group-IOSCG) की बैठक आयोजित की गई। कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद ओमान की ओर से यह भारत का पहला उच्च-स्तरीय आधिकारिक दौरा था।
प्रमुख बिंदु:
- महामारी के दौरान भागीदारी: भारत ने ओमान को COVID-19 के टीकों की आवश्यक पूर्ति के संबंध में सहायता का आश्वासन दिया। इसके अलावा महामारी के दौरान भारत ने ओमान को खाद्य और चिकित्सा आपूर्ति की उपलब्ध कराई थी।
- इससे पहले COVID-19 के दौरान दोनों देशों के बीच एयर बबल व्यवस्था (Air Bubble Arrangement) के संचालन पर संतोष व्यक्त किया गया।
- एयर बबल दो देशों के बीच हवाई यात्रा की व्यवस्था है। जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक यात्री सेवाओं को फिर से शुरू करना है (COVID-19 महामारी के परिणामस्वरूप नियमित अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को निलंबित कर दिया गया है)।
- इससे पहले COVID-19 के दौरान दोनों देशों के बीच एयर बबल व्यवस्था (Air Bubble Arrangement) के संचालन पर संतोष व्यक्त किया गया।
- व्यापक समीक्षा: दोनों पक्षों ने राजनीतिक, ऊर्जा, व्यापार, निवेश, रक्षा, सुरक्षा, अंतरिक्ष, खनन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति तथा कॉन्सुलर (Consular) संबंधी क्षेत्रों सहित भारत-ओमान संबंधों के पूरे स्पेक्ट्रम की समीक्षा की।
भारत-ओमान संबंध:
पृष्ठभूमि:
- अरब सागर के दोनों देश एक-दूसरे से भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं तथा दोनों के बीच सकारात्मक एवं सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जिसका श्रेय ऐतिहासिक समुद्री व्यापार संबंधों को दिया जाता है।
- जबकि भारत और ओमान के बीच संबंधों के बारे में जानकारी यहाँ के लोगों के मध्य 5000 वर्षों के संपर्क के आधार पर प्राप्त जा सकती है, वर्ष 1955 में राजनयिक संबंध स्थापित किये गए थे और वर्ष 2008 में इस संबंध को रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया गया था। ओमान, भारत की पश्चिम एशिया नीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है।
राजनितिक संबंध:
- भारत और ओमान के बीच अक्सर उच्चतम स्तर की राजनयिक यात्राएँ होती रही हैं और मंत्री स्तरीय दौरे नियमित रूप से किये जाते हैं।
- सल्तनत ऑफ ओमान (ओमान) खाड़ी देशों में भारत का रणनीतिक साझेदार है और खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC), अरब लीग तथा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association- IORA) के लिये एक महत्त्वपूर्ण वार्ताकार है।
रक्षा संबंध:
- दोनों देशों के रक्षा मंत्रालय प्रतिवर्ष संयुक्त सैन्य सहयोग समिति की बैठक में अपने संबंधों की समीक्षा करते हैं।
- भारत और ओमान द्वारा अपनी तीनों सैन्य सेवाओं के बीच नियमित द्विवार्षिक द्विपक्षीय अभ्यास किया जाता है।
- सैन्य अभ्यास: अल नजाह
- वायु सेना अभ्यास: ईस्टर्न ब्रिज
- नौसेना अभ्यास: नसीम अल बह्र
- वर्ष 2008 से ओमान भारतीय नौसेना के एंटी-पायरेसी मिशनों (Anti-Piracy Missions) को समर्थन दे रहा है और ओवरसीज़ डिप्लॉयमेंट के लिये ओमान द्वारा भारतीय नौसेना जहाज़ों का नियमित रूप से स्वागत किया जाता है।
आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- ओमान के साथ भारत अपने आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों के विस्तार को उच्च प्राथमिकता देता है। संयुक्त आयोग की बैठक (JCM) और संयुक्त व्यापार परिषद (JBC) जैसे संस्थागत तंत्र भारत और ओमान के बीच आर्थिक सहयोग मज़बूत करते हैं।
- भारत और ओमान के मध्य मज़बूत द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंध हैं।
- भारत, ओमान के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है।
- भारत, ओमान के लिये आयात क तीसरा सबसे बड़ा (UAE और चीन के बाद) स्रोत और वर्ष 2018 में इसके गैर-तेल निर्यात के लिये तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार (UAE और सऊदी अरब के बाद) था।
- ओमान को भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में खनिज ईंधन, खनिज तेल और उनके आसवन के उत्पाद, बॉयलर, मशीनरी तथा यांत्रिक उपकरण, लोहे या स्टील की वस्तु, विद्युत मशीनरी और उपकरण, कपड़ा एवं वस्त्र, रसायन, चाय, कॉफी, मसाले आदि शामिल हैं।
- ओमान से भारत को आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुओं में उर्वरक, खनिज ईंधन, खनिज तेल और उनके आसवन के उत्पाद, बिटुमिनस पदार्थ आदि शामिल हैं।
- भारत, ओमान के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है।
- भारतीय वित्तीय संस्थान जैसे- भारतीय स्टेट बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम- एयर इंडिया, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) आदि की शाखाएँ ओमान में स्थित हैं। भारतीय कंपनियों ने ओमान में लोहा और इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, कपड़ा आदि क्षेत्रों में निवेश किया है।
- भारत-ओमान संयुक्त निवेश कोष (OIJIF), भारतीय स्टेट बैंक और ओमान के स्टेट जनरल रिज़र्व फंड (SGRF) के बीच एक संयुक्त उपक्रम है जो भारत में निवेश करने के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन है, का संचालन किया गया है।
- दुकम पोर्ट तक पहुँच: ओमान ने भारत को उसकी नौसेना सहित अपने दुकम बंदरगाह तक पहुँच की अनुमति दे दी है, जो इसकी राजधानी मस्कट से लगभग 550 किमी. दक्षिण में स्थित है। दुकम बंदरगाह विशेष आर्थिक क्षेत्र को हिंद महासागर का गहरा समुद्री सबसे बड़ा बंदरगाह माना जाता है।
- दोनों देशों के बीच लिटिल इंडिया (Little India) नामक एक एकीकृत पर्यटन परियोजना को विकसित करने के लिये दुकम में 748 मिलियन अमेरिकी डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
सांस्कृतिक सहयोग:
- भारत और ओमान के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध हैं। ओमान में भारतीय प्रवासी समुदाय नियमित रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेज़बानी करता रहता है और भारत के प्रसिद्ध कलाकारों तथा गायकों को आमंत्रित करता है।
ओमान में भारतीय समुदाय:
- ओमान में बड़े स्तर पर रहने वाला भारतीय समुदाय लगभग सभी व्यावसायिक क्षेत्रों में संलग्न है। वहाँ डॉक्टर, इंजीनियर आदि के रूप में हज़ारों भारतीय काम कर रहे हैं।
- यहाँ कई ऐसे भारतीय स्कूल हैं जो लगभग 45,000 भारतीय बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये CBSE पाठ्यक्रम की पेशकश करते हैं।
आगे की राह:
- भारत के पास अपनी वर्तमान या भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त ऊर्जा संसाधन नहीं हैं। तेज़ी से बढ़ती ऊर्जा मांग ने ओमान जैसे देशों की दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी की आवश्यकता में योगदान दिया है।
- ओमान का दुकम पोर्ट पूर्व में पश्चिम एशिया के साथ जुड़ने वाला अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन के मध्य में स्थित है।
- भारत को दुकम पोर्ट औद्योगिक शहर के उपयोग के लिये ओमान के साथ जुड़ने और पहल करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डॉप्लर वेदर रडार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने दस में से दो स्वदेश निर्मित ‘एक्स-बैंड डॉप्लर वेदर रडार्स’ (Doppler Weather Radars- DWR) का ऑनलाइन उद्घाटन किया जो हिमालय पर मौसम के बदलावों की बारीकी से निगरानी करेंगे।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से विकसित एक ‘बहु-मिशन मौसम संबंधी डेटा प्रसंस्करण प्रणाली’ भी लॉन्च की गई।
प्रमुख बिंदु:
- DWR की डिज़ाइनिंग और विकास का कार्य ISRO द्वारा किया गया है और इसका निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बंगलूरू द्वारा किया गया है।
महत्त्व:
- मध्य और पश्चिमी हिमालय को कवर करते हुए ये द्विध्रुवीकृत रडार वायुमंडलीय बदलाव संबंधी डेटा एकत्रित करेंगे और चरम मौसमी घटनाओं के संकेत देंगे।
- उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बादल फटने, भूस्खलन, भारी बारिश और बर्फबारी का खतरा बना रहता है। मौसम का पूर्वानुमान और चेतावनी सरकारों को समय रहते अग्रिम योजना बनाने और बचाव के उपाय करने में सहायक होगी।
रडार (Radio Detection and Ranging):
- यह एक ऐसा उपकरण है जो स्थान (गति और दिशा), ऊँचाई और तीव्रता, गतिमान एवं गैर-गतिमान वस्तुओं की आवाजाही का पता लगाने के लिये सूक्ष्म तरंगीय क्षेत्र में विद्युत चुंबकीय तरंगों का उपयोग करता है।
- डॉप्लर रडार:
- यह एक विशेष रडार है जो एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित वस्तुओं के वेग से संबंधित आँकड़ों को एकत्रित करने के लिये डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करता है।
- डॉप्लर प्रभाव:
- जब स्रोत और संकेत एक-दूसरे के सापेक्ष गति करते हैं तो पर्यवेक्षक द्वारा देखी जाने वाली आवृत्ति में परिवर्तन होता है। यदि वे एक-दूसरे की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो आवृत्ति बढ़ जाती है और दूर जाते हैं तो आवृत्ति घट जाती है।
- यह एक वांछित लक्ष्य (वस्तु) को माइक्रोवेव सिग्नल के माध्यम से लक्षित करता है और विश्लेषण करता है कि लक्षित वस्तु की गति ने वापस आने वाले सिग्नलों की आवृत्ति को कैसे बदल दिया है।
डॉप्लर वेदर रडार
- डॉप्लर सिद्धांत के आधार पर रडार को एक ‘पैराबॉलिक डिश एंटीना’ (Parabolic Dish Antenna) और एक फोम सैंडविच स्फेरिकल रेडोम (Foam Sandwich Spherical Radome) का उपयोग कर मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी की सटीकता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- DWR में वर्षा की तीव्रता, वायु प्रवणता और वेग को मापने के उपकरण लगे होते हैं जो चक्रवात के केंद्र और धूल के बवंडर की दिशा के बारे में सूचित करते हैं।
डॉप्लर रडार के प्रकार: डॉप्लर रडार को तरंगदैर्ध्य के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे- एल( L), एस(S), सी(C), एक्स(X), के(K)।
X-बैंड रडार: ये 2.5-4 सेमी. की तरंगदैर्ध्य और 8-12 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं। छोटे तरंगदैर्ध्य के कारण X-बैंड रडार अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जो सूक्ष्म कणों का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
अनुप्रयोग:
- रडार का उपयोग बादलों की विकास प्रक्रिया (Cloud Development) का अध्ययन करने हेतु किया जाता है क्योंकि रडार जल के छोटे-छोटे कणों तथा हिम वर्षा (हल्के हिमकणों) का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
- X-बैंड रडार की तरंगदैर्ध्य काफी छोटी होती है (कम प्रभावी), इसलिये उनका उपयोग लघुकालिक मौसम अवलोकन का अध्ययन करने हेतु किया जाता है।
- रडार के छोटे आकार के कारण यह डॉप्लर ऑन व्हील्स (Doppler on Wheels- DOW) की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में सुवाह्य/पोर्टेबल हो सकता है। अधिकांशत: हवाई जहाज़ों में एक्स बैंड रडार का प्रयोग किया जाता है ताकि अशांत और अन्य मौसमी घटनाओं का अवलोकन किया जा सके।
- इस बैंड को कुछ पुलिस स्पीड रडार्स (Police Speed Radars) और कुछ स्पेस रडार्स (Space Radars) से भी साझा किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
1G इथेनॉल के उत्पादन के लिये संशोधित योजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (Department of Food & Public Distribution) ने पहली पीढ़ी (1G) के इथेनॉल उत्पादन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये पूर्व में लागू योजना में कुछ संशोधन किया है।
- इसका उद्देश्य पेट्रोल (इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम) के साथ इथेनॉल के सम्मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
प्रमुख बिंदु
इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम:
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य पेट्रोल के साथ इथेनॉल को मिश्रित करना है, ताकि इसे जैव ईंधन की श्रेणी में लाया जा सके। इसके परिणामस्वरूप ईंधन आयात में कटौती तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी के चलते लाखों डॉलर की बचत होगी।
- लक्ष्य: वर्ष 2025 तक इथेनॉल के सम्मिश्रण को 20% तक बढ़ाना।
- खाद्यान्नों से इथेनॉल का निष्कर्षण:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में मक्का, ज्वार, फल, सब्जी आदि की अधिशेष मात्रा से ईंधन निकालने के लिये EBP कार्यक्रम के दायरे को बढ़ाया था।
- इससे पहले इस कार्यक्रम के तहत केवल अतिरिक्त गन्ना उत्पादन को इथेनॉल में परिवर्तित करने की अनुमति दी गई थी।
इथेनॉल आसवन क्षमता के विस्तार के लिये वित्तीय सहायता: सरकार इस क्षेत्र में वित्तपोषण (Funding) को प्रोत्साहित करने हेतु ब्याज अनुदान (ऋण पर) प्रदान करेगी।
- अनाज (चावल, गेहूँ, जौ, मक्का और ज्वार), गन्ना, चुकंदर आदि खाद्य वस्तुओं से पहली पीढ़ी (1G) के इथेनॉल उत्पादन के लिये भट्टियाँ स्थापित करना।
- गन्ना आधारित भट्ठियों को दोहरे उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अनाज भट्ठियों में बदलना।
अपेक्षित लाभ:
- किसानों की आय बढ़ाने में:
- किसानों को फसलों में विविधता लाने के लिये सुविधा प्रदान करना, जैसे- विशेष रूप से मक्का/मकई की खेती, जिसमें गन्ने और चावल की तुलना में कम पानी की आवश्यकता हो।
- रोज़गार प्रदान करना:
- क्षमता में वृद्धि या नई भट्टियों की स्थापना में निवेश से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे।
- विकेंद्रीकृत इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना:
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में नई अनाज आधारित भट्टियों (Distilleries) की स्थापना से इथेनॉल के विकेंद्रीकृत उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा जिससे परिवहन लागत में काफी बचत होगी तथा इस प्रकार सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने में होने वाले विलंब को रोका जा सकेगा।
संबंधित पहल:
- E20 ईंधन: इससे पहले भारत सरकार ने E20 ईंधन (गैसोलीन के साथ 20% इथेनॉल का मिश्रण) को अपनाने के लिये सार्वजनिक टिप्पणियाँ आमंत्रित की थीं।
- प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019 (Pradhan Mantri JI-VAN Yojana, 2019): इस योजना का उद्देश्य दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल उत्पादन हेतु वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
- जीएसटी में कटौती: सरकार ने ईंधन में इथेनॉल के सम्मिश्रण के लिये इस पर लगने वाली जीएसटी को 18% से घटाकर 5% कर दिया है।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018: इस नीति में ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1जी) के बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2जी) के इथेनॉल, निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, बायो CNG आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन बढ़ाया जा सके।
आगे की राह:
- जैव ईंधन नीति और इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये, साथ ही इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि इथेनॉल उत्पादन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के कारण ईंधन और खाद्य ज़रूरतों के बीच प्रतिस्पर्द्धा न उत्पन्न हो बल्कि ईंधन उत्पादन के लिये केवल अधिशेष खाद्य फसलों का ही उपयोग किया जाना चाहिये।
- तीसरी पीढ़ी (शैवाल से प्राप्त) और चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन (आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों या बायोमास से प्राप्त) जैसे विकल्पों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।