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कर्नाटक में कंबाला को अनुमति प्रदान करने वाला विधेयक पारित

  • 14 Feb 2017
  • 6 min read

सन्दर्भ

कर्नाटक में परंपरागत भैंसा दौड़ ‘कंबाला’ और बैलदौड़ व  भैंसागाड़ी दौड़  (“Kambala” and Bulls race or Bullock cart race) को कानूनी मान्यता प्रदान करने वाला विधेयक सभी दलों के समर्थन के साथ 13 फरवरी को राज्य विधानसभा में पारित हो गया| मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस विधेयक के पास होने के बाद इस खेल को कानूनी मान्यता मिल जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

  • तमिलनाडु सरकार की ओर से सांडों के खेल जल्लीकट्टू को कानूनी रूप देने के लिये विधेयक लाने के बाद अब कर्नाटक में भैसों की पारंपरिक दौड़ ‘कंबाला’ संबंधित विधेयक को कर्नाटक विधानसभा में सर्वसम्मति से पास कर दिया गया है| 
  • कंबाला एक परंपरागत लोक खेल है तथा इसमें जानवरों के प्रति क्रूरता का भाव नहीं है| जनमानस की यह एक प्रमुख इच्छा है कि इसे भी अनुमति प्रदान की जाए|
  • विधेयक के सन्दर्भ में पशुपालन मंत्री ए.मंजू ने कहा है कि कानून मंत्री टी.बी. जयचन्द्र की अध्यक्षता में गठित एक समिति द्वारा यह प्रस्तावित किया गया कि कंबाला को एक बैलगाड़ी दौड़ के समान ही अनुमति प्रदान की जानी चाहिये क्योंकि इसमें पशुओं के लिये क्रूरता का कोई भाव नहीं है तथा यह कृषि व किसानों के विश्वास से संबंधित है|
  • पशुपालन मंत्रालय के अनुसार हालाँकि, सरकार चाहती तो तमिलनाडु की तरह अध्यादेश ला सकती थी किन्तु उसने अध्यादेश के स्थान पर लोकतांत्रिक तरीके से कानून में संशोधन लाकर, इस विधेयक को वैधता प्रदान करने को वरीयता दी है|
  • सभी दलों के सदस्यों ने दलगत भावना से ऊपर उठकर कर्नाटक पशु अत्याचार रोकथाम संशोधन विधेयक का समर्थन किया जिसमें कंबाला, बैल दौड़, बैलगाड़ी दौड़ जैसे खेलों के आयोजन को अनुमति देने का प्रावधान किया गया है| 
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में कंबाला की समितियों और विभिन्न कन्नड़ संगठनों ने इस प्रतिबन्ध के खिलाफ आपत्ति जताई तथा इसे अनुमति प्रदान करने की मांग की|
  • इस विधेयक में यह भी संकेत किया गया है कि ‘कंबाला’ और बैलों की दौड़ अथवा बैलगाड़ी दौड़ इत्यादि परम्परागत खेलों द्वारा राज्य की परम्पराओं को संरक्षित करने, उन्हें बढ़ावा देने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है| साथ ही, इन खेलों की मवेशियों की इन खास नस्लों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी है| 

पृष्ठभूमि

  • भैंसा गाड़ी दौड़ों का आयोजन प्रमुख रूप से शिवमोग्गा और उत्तरी कर्नाटक के भागों में तथा ‘कंबाला’ का उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में किया जाता है | 
  • इस खेल का मार्ग प्रशस्त करने के लिये 28 जनवरी को राज्य मंत्रिमंडल ने पशुओं के क्रूरता निवारण अधिनियम (1960 का केन्द्रीय अधिनियम) को संशोधित करने का निर्णय लिया गया था| 
  • ध्यातव्य है कि इस अधिनियम को पशुओं पर होने वाली अनावश्यक क्रूरता और कष्टों को रोकने के लिये सज़ा देने हेतु लागू किया गया था|
  • मुख्य न्यायाधीश एस.के. मुखर्जी की अध्यक्षता में कर्नाटक उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पिछले वर्ष नवम्बर माह में “पेटा” की याचिका के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जल्लीकट्टू के संदर्भ में दिये गए निर्देशों का हवाला देते हुए इसे चुनौती दी थी|
  • हाल ही में, 30 जनवरी को उच्च न्यायालय ने कहा था कि वह जल्लीकट्टू के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करेगा|
  • इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने रविवार को कहा था कि उनकी सरकार इस आयोजन की समर्थक है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में भी उसी तरह का अनुकूल कदम उठाना चाहिये जैसा कि उसने जलीकट्टू के मामले में उठाया है। इस मसले पर हम विचार करेंगे और ज़रूरी हुआ तो अध्यादेश भी ला सकते हैं।
  • जल्लीकट्टू आंदोलन से प्रेरित होकर मंगलुरु की कम्बाला समितियों ने बैठक करके तय किया था कि दक्षिण कन्नड़ जिले के मूडबिडरी में विशाल प्रदर्शन किया जाएगा।
  • विदित हो कि पेटा ने पशुओं की क्रूरता के संदर्भ में कंबाला का विरोध किया था|
  • नवम्बर से मार्च तक होने वाले कंबाला में हल के साथ भैंसों के जोड़े को बाँधा जाता है तथा इसे एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाता है| उन्हें कीचड के समानांतर पथों ( parralel muddy tracks ) पर दौड़ाया जाता है तथा इसमें सबसे तेज़ भागने वाली टीम विजयी होती है|
  • यह विश्वास किया जाता है किसानों के लिये मनोरंजक खेल होने के अतिरिक्त इसका आयोजन अच्छी पैदावार होने के लिये ईश्वर को प्रसन्न करने के उद्देश्य से किया जाता है|
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