भूगोल
सबसे गर्म दशक: 2010-2019
प्रीलिम्स के लिये:नासा, भारत मौसम विज्ञान विभाग मेन्स के लिये:पिछले दशक के सबसे गर्म होने के कारण |
चर्चा में क्यों?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने वर्ष 1901 के बाद वर्ष 2010-2019 के दशक को भारत का सबसे गर्म दशक घोषित किया है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2010-2019 के दशक का औसत तापमान पिछले 30 वर्षों (1981-2010) के औसत तापमान से 0.36 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
- वर्ष 2010-2019 के दशक के दौरान वर्ष 2019 भारत में सातवाँ सबसे गर्म वर्ष रहा।
- इस दशक के संदर्भ में यह घोषणा यूरोपियन मौसम एजेंसी (European Weather Agency) के कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (Copernicus Climate Change Programme) के तहत की गई थी।
- यूरोपियन मौसम एजेंसी ने COP-25 मैड्रिड जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विश्व मौसम संगठन द्वारा (World Meteorological Organisation) वर्ष 2019 को निश्चित रूप से दशक के दूसरे या तीसरे सबसे गर्म वर्ष होने के अनुमान को सही प्रमाणित किया है।
- राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA), नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2019 में सतह का वैश्विक औसत तापमान पिछली सदी के मध्य के औसत तापमान से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
NASA, NOAA तथा यूरोपियन मौसम एजेंसी द्वारा आँकड़ों का एकत्रीकरण:
- NASA और NOAA ज़्यादातर समान तापमान संबंधी आँकड़ों का उपयोग करते हैं।
- ये दोनों संस्थाएँ समुद्री तापमान संबंधी आँकड़े जहाज़ों और प्लवकों (Buoys)के माध्यम से एकत्रित करती हैं तथा भूमि तापमान संबंधी आँकड़े अमेरिकी सरकार की मौसम संबंधी एजेंसियों के अवलोकन केंद्रों से एकत्रित करती हैं।
- यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग (European Centre for Medium Range Weather Forecasting) द्वारा चलाए जाने वाले कॉपरनिकस कार्यक्रम (Copernicus programme) का निष्कर्ष NASA और NOAA के अवलोकित आँकड़ों के विपरीत कंप्यूटर मॉडलिंग के आँकड़ों पर अधिक आधारित था।
1960 के दशक से अब तक तापमान में परिवर्तन:
- 1960 के दशक के बाद प्रत्येक दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है।
- यह प्रवृत्ति 2010 के दशक में भी जारी रही और इस दशक के दूसरे भाग के पाँच वर्ष सर्वाधिक गर्म रहे।
वर्ष 2010-2019 के दशक के गर्म रहने का कारण:
- वर्ष 2010-2019 के दशक के गर्म रहने का कारण काफी हद तक कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न तापमान में वृद्धि करने वाली गैसों का उत्सर्जन है।
- तापमान में इस गति से वृद्धि का अर्थ है कि विश्व विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में निश्चित रूप से विफल है।
- अत्यधिक तापमान के कारण दक्षिणी अफ्रीका में इस दशक में सर्वाधिक सूखे की स्थिति देखी गई।
- अफ्रीकी देश ज़ाम्बिया (Zambia) और ज़िम्बाब्वे (Zimbabwe) में मक्का तथा अन्य अनाज के उत्पादन में 30% या उससे अधिक की गिरावट आई है एवं ज़ांबेजी (Zambezi) नदी का जल स्तर गिरने के कारण जलविद्युत आपूर्ति खतरे में है।
वैश्विक औसत तापमान से कम तापमान वाले स्थल:
- वर्ष 2019 के जलवायु हॉटस्पॉट (Climate Hotspots of 2019) में शामिल आस्ट्रेलिया, अलास्का, दक्षिणी अफ्रीका, मध्य कनाडा और उत्तरी अमेरिका जैसे स्थानों पर वैश्विक औसत तापमान से कम तापमान का अनुभव किया गया।
- ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2019 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। इसका औसत तापमान 20वीं शताब्दी के मध्य के औसत तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- यह औसत वर्षा के संदर्भ में भी सबसे सूखा वर्ष था। वर्ष 2017 के बाद से अधिकांश देश भयंकर सूखे की चपेट में हैं और न्यू साउथ वेल्स वर्तमान में 20 वर्षों की सबसे विनाशकारी वनाग्नि से प्रभावित है।
- अलास्का में भी वर्ष 2019 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। दीर्घकालिक तापमान वृद्धि की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप राज्य के हजारों ग्लेशियर तथा पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) पिघल रहे हैं।
पर्माफ्रॉस्ट
(Permafrost):
भूविज्ञान में स्थायी तुषार या पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) ऐसे स्थान को कहते हैं जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों तक पानी जमने के तापमान (अर्थात शून्य डिग्री सेंटीग्रेड) से कम तापमान पर होने के कारण जमा हुआ हो।
- बेरिंग सागर में वर्ष 2019 में अधिकांश समय बर्फ की उपस्थिति नहीं देखी गई तथा मार्च के अंत में ली गई उपग्रह छवियों में भी बड़े पैमाने पर इस समुद्र में बर्फ की अनुपस्थिति देखी गई जबकि पहले इस यह समुद्र सामान्य रूप से पूरी तरह बर्फ से ढका रहता था।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय विरासत और संस्कृति
शास्त्रीय भाषा
प्रीलिम्स के लिये:शास्त्रीय भाषा मैन्स के लिये:शास्त्रीय भाषा के निर्धारण के मानदंड, महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संपन्न अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के 93वें संस्करण में मराठी को शास्त्रीय भाषा के रूप में घोषित करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
प्रमुख बिंदु
- अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन मराठी लेखकों का एक वार्षिक सम्मेलन है जिसकी शुरुआत वर्ष 1878 में की गई थी।
- सम्मेलन की अध्यक्षता साहित्यकार, पर्यावरणविद् और कैथोलिक पादरी ‘फ्रांसिस दी ब्रिटो’(Francis D’ Byitto) द्वारा की गई जो इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले पहले पहले ईसाई व्यक्ति थे।
भारत में शास्त्रीय भाषाएँ
वर्तमान में छ: भाषाओं को वर्ष 2004- 2014 तक शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया जो इस प्रकार हैं-
- तमिल (2004)
- संस्कृत (2005)
- कन्नड़ (2008)
- तेलुगू (2008)
- मलयालम (2013)
- ओडिया (2014)
शास्त्रीय भाषा के वर्गीकरण का आधार:
फरवरी 2014 में संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) द्वारा किसी भाषा को 'शास्त्रीय' घोषित करने के लिये निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये-
- इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
- साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो।
- शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।
शास्त्रीय भाषाओं हेतु हालिया प्रयास
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित करने से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार हैं-
- भारतीय शास्त्रीय भाषाओं में प्रख्यात विद्वानों के लिये दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण।
- शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना।
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध करता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिये पेशेवर अध्यक्षों के कुछ पदों की घोषणा करें।
- वर्ष 2019 में संस्कृति मंत्रालय ने उन संस्थानों को सूचीबद्ध किया था जो शास्त्रीय भाषाओं के लिये समर्पित हैं।
- संस्कृत के लिये: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली; महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन; राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति; और श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली।
- तेलुगु और कन्नड़ के लिये: मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 2011 में स्थापित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) में संबंधित भाषाओं में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र।
- तमिल के लिये: सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल तमिल (CICT), चेन्नई।
- यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) इन भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान परियोजनाएँ भी संचालित करता है।
- UGC ने वर्ष 2016-17 के दौरान ₹56.74 लाख और वर्ष 2017-18 के दौरान ₹95.67 लाख का फंड जारी किया था।
- शास्त्रीय भाषाओं को जानने और अपनाने से विश्व स्तर पर भाषा को पहचान ओर सम्मान मिलेगा।
- वैश्विक स्तर पर संस्कृति का प्रसार होगा जिससे शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- शास्त्रीय भाषाओं की जानकारी से लोग अपनी संस्कृति को और बेहतर तरीके से समझ सकेंगे तथा प्राचीन संस्कृति और साहित्य से और बेहतर तरीके से जुड़ सकेंगे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू
शासन व्यवस्था
दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि
प्रीलिम्स के लिये:दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण मेन्स के लिये:दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (The Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने दूरसंचार कंपनियों को ग्राहकों के आरक्षित राशि तथा अतिरिक्त शुल्क जैसे बिना दावे वाले धन (Unclaimed Money) को ‘दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि’ ( Telecommunication Consumers Education and Protection Fund- TCEPF) में जमा कराने का आदेश दिया है।
मुख्य बिंदु:
- TRAI के अनुसार, ग्राहकों की बिना दावे वाली ऐसी राशि जिसे लौटाने में दूरसंचार कंपनियाँ असमर्थ हैं, को जमा कराने को लेकर कंपनियों के बीच स्पष्टता की आवश्यकता है।
- ऐसी किसी प्रकार की अस्पष्टता को दूर करने के लिये इससे जुड़े नियमों में संशोधन की आवश्यकता है।
बिना दावे वाली राशि:
(Unclaimed Money)
वर्तमान में ग्राहकों को दी जाने वाली सेवाओं की बिलिंग के ऑडिट के बाद अतिरिक्त शुल्क के रूप में जो भी राशि बचती है उसे ग्राहकों को वापस कर दिया जाता है। हालाँकि एक निश्चित समय-सीमा और प्रयासों के बावजूद नियमानुसार यदि कोई कंपनी यह राशि ग्राहक को लौटा नहीं पाती है तो इसे बिना दावे वाला धन मान लिया जाता है।
दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि विनियम, 2007:
- TRAI ने 15 जून, 2007 को दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि विनियम, 2007 अधिनियमित किया था।
- इस विनियम को वर्ष 2013 में संशोधित भी किया गया था।
- विनियम के निबंधनों के अनुसार ‘दूरसंचार उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण निधि’ नामक एक निधि सृजित की गई है।
- इस निधि से प्राप्त होने वाली आय का उपयोग एक समिति की सिफारिश के आधार पर दूरसंचार सेवाओं के उपभोक्ताओं को जागरूक करने से संबंधी कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिये किया जाता है।
- यह विनियम सेवा प्रदाताओं द्वारा उपभोक्ताओं के बिना दावे वाले धन को जमा करने, TCEPF के रखरखाव तथा अन्य संबंधित पहलूओं से संबंधित बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है।
क्या होंगे संशोधन के लाभ?
- इस संशोधन के द्वारा सेवा प्रदाता उपभोक्ताओं का कोई भी बिना दावे वाला धन जैसे- अतिरिक्त शुल्क, सुरक्षा जमा, असफल गतिविधियों के लिये योजना शुल्क (Plan Charges of Failed Activations) या उपभोक्ता से संबंधित किसी भी ऐसी राशि को TCEPF में जमा कर सकेंगे जिसे सेवा प्रदाता उपभोक्ताओं को वापस करने में असमर्थ हैं।
- यह धनराशि 12 महीने या कानून द्वारा निर्दिष्ट समय सीमा (जो भी बाद में हो) के अंतर्गत जमा की जा सकेगी।
- TRAI के अनुसार, दूरसंचार कंपनियों द्वारा TCEPF में उपभोक्ताओं से संबंधित बिना दावे वाली/आरक्षित राशि को जमा करने से इस राशि का उपयोग उपभोक्ताओं के कल्याणकारी उपायों के लिये किया जाएगा।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
वुमन बिज़नेस एंड लॉ सूचकांक 2020
प्रीलिम्स के लिये:वुमन बिज़नेस एंड लॉ सूचकांक 2020-2020 मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी |
चर्चा में क्यों?
महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को मापने के लिये हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा वूमन बिज़नेस एंड लॉ 2020 [Women Business and The Law (WBL) Index-2020] सूचकांक जारी किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- यह सूचकांक अपनी शृंखला का छठा सूचकांक है। इसका पिछला संस्करण वर्ष 2017 में प्रकाशित किया गया था।
- WBL सूचकांक में 190 देशों को शामिल किया गया तथा 190 देशों की सूची में भारत 117वें पायदान पर रहा।
- इस सूचकांक के तहत औसत वैश्विक अंक 75.2 दर्ज किया गया जबकि वर्ष 2017 के सूचकांक में यह अंक 73.9 था। भारत ने इस मामले में 74.4 अंक प्राप्त किया है जो कि बेनिन और गेम्बिया जैसे देशों द्वारा प्राप्त अंकों के बराबर है।
- इस सूचकांक में भारत की रैंकिंग रवांडा (Rwanda) और लेसोथो (Lesotho) जैसे अल्पविकसित देशों से भी पीछे है।
- यह सूचकांक अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने वाले कानूनों और नियमों का विश्लेषण करता है।
- विश्व बैंक द्वारा किये गये इस अध्ययन से पता चला है कि कोई कानून किस तरह कामकाजी महिलाओं के जीवन के विभिन्न चरणों पर प्रभाव डालता है।
- महिला व्यापार और कानून’ सूचकांक के लिये जून 2017 से सितंबर 2019 के बीच एक सर्वेक्षण किया गया जिसमे 8 संकेतकों का प्रयोग किया गया। सूचकांक में प्रयुक्त आठ संकेतक हैं -
1. गतिशीलता
2. कार्य स्थल
3. वेतन
4. विवाह
5. पितृत्व
6. उद्यमिता
7. संपत्ति
8. पेंशन - सर्वेक्षण के दौरान केवल आठ अर्थव्यवस्थाओं बेल्जियम (Belgium), कनाडा (Canada), डेनमार्क ( Denmark), फ्रांस (France), आइसलैंड (Iceland), लातविया (Latvia), लक्जमबर्ग (Luxembourg)और स्वीडन (Sweden)ने ही सूचकांक में पूर्ण 100 स्कोर प्राप्त किया।
- शीर्ष 10 देशों में से मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और उप-सहारा अफ्रीका’ के 9 देश इस सूचकांक में प्रगति वाले देशों में शामिल हैं। जिनमे शामिल हैं- सऊदी अरब (Saudi Arabia), संयुक्त अरब अमीरात (The United Arab Emirates), नेपाल (Nepal) , दक्षिण सूडान (South Sudan), साओ टोमे और प्रिंसिपे बहरीन (São Tomé and PríncipeBahrain) , डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो(The Democratic Republic of Congo), जिबूती (Djibouti), जॉर्डन(Jordan), ट्यूनीशिया(Tunisia)
- सूचकांक के अनुसार, ‘पूर्वी एशिया और प्रशांत’, ‘यूरोप तथा मध्य एशिया’,‘लैटिन अमेरिकी एवं कैरिबियन’ देशों में कोई भी अर्थव्यवस्था में सुधारों के साथ शीर्ष देशों में शामिल नहीं है।
- विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2017 के सर्वेक्षण के बाद से, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ी है। जिसके लिये विश्व स्तर पर महिलाओं को उनकी क्षमता का एहसास कराने और आर्थिक विकास में उनके योगदान के लिये 40 अर्थव्यवस्थाओं में 62 सुधार किये गए हैं।
स्रोत :डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
NASA का आर्टेमिस मिशन
प्रीलिम्स के लिये:NASA, आर्टेमिस मिशन, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, स्पेस लॉन्च सिस्टम, ओरियन अंतरिक्ष यान मेन्स के लिये:अंतरिक्ष अन्वेषण और मानव, अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में किये गए नवाचार, भारत और अंतरिक्ष कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
10 जनवरी, 2020 को भारतीय मूल के अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री राजा चारी को नासा (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के आर्टेमिस मिशन हेतु चुना गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- राजा चारी सहित नए अंतरिक्ष यात्रियों के इस समूह को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station- ISS), चंद्रमा और मंगल पर अंतरिक्ष मिशन में शामिल किया जा सकता है।
- ध्यातव्य है कि NASA ने वर्ष 2030 तक मंगल पर मानव अन्वेषण मिशन को लक्षित किया है।
- वर्ष 2017 के अंतरिक्ष यात्री कैंडिडेट क्लास के लिये NASA द्वारा राजा चारी को चुना गया था।
आर्टेमिस मिशन (Artemis Mission) के बारे में
- आर्टेमिस चंद्रमा अन्वेषण कार्यक्रम (Artemis Lunar Exploration Program) के माध्यम से NASA वर्ष 2024 तक पहली महिला और अगले पुरुष को चंद्रमा पर भेजना चाहता है। इस मिशन का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव सहित चंद्रमा की सतह पर अन्य जगहों पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतरना है।
- आर्टेमिस मिशन के माध्यम से NASA नई प्रौद्योगिकियों, क्षमताओं और व्यापार दृष्टिकोण का प्रदर्शन करना चाहता है जो भविष्य में मंगल ग्रह में अन्वेषण के लिये आवश्यक होंगे।
- आर्टेमिस मिशन के लिये नासा के नए रॉकेट जिसे स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System- SLS) कहा जाता है, को चुना गया है। ध्यातव्य है कि यह रॉकेट ओरियन अंतरिक्ष यान (Orion Spacecraft) में सवार अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा।
- गौरतलब है कि ओरियन अंतरिक्ष यान में सवार अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा के चारों ओर रहने और काम करने में सक्षम होंगे साथ ही चंद्रमा की सतह पर अभियान करने में भी सक्षम होंगे। ध्यातव्य है कि ओरियन अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा के चारों ओर चक्कर लगाने वाला एक छोटा सा यान है।
- आर्टेमिस मिशन के लिये जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिये नए स्पेस-सूट डिज़ाइन किये गए हैं, जिन्हें एक्सप्लोरेशन एक्स्ट्रावेहिकुलर मोबिलिटी यूनिट (Exploration Extravehicular Mobility Unit) या xEMU कहा जाता है। इस स्पेस-सूट में उन्नत गतिशीलता और संचार तथा विनिमेय भागों (Interchangeable Parts) की सुविधा है, जिसे माइक्रोग्रैविटी में या ग्रहीय सतह पर स्पेसवॉक (Spacewalk) के लिये उपयुक्त आकर दिया जा सकता है।
NASA और चंद्रमा से संबंधित तथ्य
- अमेरिका ने वर्ष 1961 की शुरुआत में ही मनुष्य को अंतरिक्ष में ले जाने की कोशिश शुरू कर दी थी। आठ वर्ष बाद 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग अपोलो 11 मिशन के तहत चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले मानव बने।
- अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्ष यात्रियों ने एक संकेत के साथ चंद्रमा पर एक अमेरिकी ध्वज छोड़ा था।
- अंतरिक्ष अन्वेषण के उद्देश्य के अलावा NASA द्वारा अमेरिकियों को फिर से चंद्रमा पर भेजने का प्रयास अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिकी नेतृत्व को प्रदर्शित करना और चंद्रमा पर एक रणनीतिक उपस्थिति स्थापित करना है।
चंद्रमा पर अन्वेषण कार्यक्रम से संबंधित तथ्य
- वर्ष 1959 में सोवियत संघ का लूना (Luna) 1 और 2 चंद्रमा पर जाने वाला पहला रोवर बना। गौरतलब है कि तब से लेकर अब तक कुल सात देश यह कार्य करने में सफल हुए हैं।
- अमेरिका ने चंद्रमा पर अपोलो 11 मिशन भेजने से पहले वर्ष 1961 और 1968 के बीच रोबोटिक मिशन के तीन वर्ग भेजे थे। जुलाई 1969 के बाद और वर्ष 1972 तक 12 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की सतह पर गए, साथ ही अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों ने अध्ययन के लिये पृथ्वी पर 382 किलोग्राम चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी लाये थे।
- फिर 1990 के दशक में अमेरिका ने रोबोट मिशन क्लेमेंटाइन (Robotic Missions Clementine) और लूनर प्रॉस्पेक्टर (Lunar Prospector) के साथ चंद्रमा पर अन्वेषण फिर से शुरू किया। वर्ष 2009 में, इसने लूनर रिकॉनाइसेंस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbiter- LRO) और लूनर क्रेटर ऑब्ज़र्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (Lunar Crater Observation and Sensing Satellite- LCROSS) के प्रक्षेपण के साथ रोबोट लूनर मिशन की एक नई शृंखला की शुरूआत की।
- वर्ष 2011 में NASA ने पुनरुद्देशित अंतरिक्ष यान (Repurpose Spacecraft) का उपयोग करके आर्टेमिस मिशन (Acceleration, Reconnection, Turbulence, and Electrodynamics of the Moon’s Interaction with the Sun- ARTEMIS) की शुरुआत की और वर्ष 2012 में नासा के ग्रैविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लेबोरेटरी (GRAIL) अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन किया।
- अमेरिका के अलावा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान, चीन और भारत ने चंद्रमा पर अन्वेषण मिशन भेजे हैं।
- वर्ष 2019 में चीन ने दो रोवर्स को चंद्रमा की सतह पर उतारा है जिससे चीन चंद्रमा के दूरस्थ भाग पर ऐसा करने वाला पहला देश बन गया।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हाल ही में भारत के तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान -3 की घोषणा की है जिसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल होगा।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 जनवरी, 2020
सरस्वती-सम्मान
प्रसिद्ध सिंधी लेखक वासदेव मोही को 29वाँ सरस्वती-सम्मान प्रदान किया जाएगा। के. के. बिरला फाउंडेशन द्वारा प्रत्येक वर्ष दिये जाने वाला यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें लघु कथा संग्रह- ‘चेकबुक’ के लिये दिया जा रहा है। इस संग्रह की कहानियाँ समाज के वंचित वर्ग के कष्टों को अभिव्यक्त करती हैं। सरस्वती सम्मान में प्रशस्तिपत्र और प्रतीक चिह्न के अलावा 15 लाख रुपए की नकद राशि भी शामिल है। वासदेव मोही की कविता, कहानी और अनुवाद की 25 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से भी अलंकृत किया गया है।
हरीश साल्वे
देश के वरिष्ठ वकील तथा पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे को इंग्लैंड और वेल्स की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने अपना काउंसल (सलाहकार) नियुक्त किया है। महारानी के काउंसल (सलाहकार) का पद उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने कानून के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता सिद्ध की है। महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा प्रत्येक वर्ष कॉमनवेल्थ देशों से कुछ वरिष्ठ वकीलों की इस पद पर नियुक्ति की जाती है, जिसमें इस वर्ष हरीश साल्वे का नाम भी शामिल है।
‘सहयोग-कैजिन’ युद्ध अभ्यास
भारत और जापान के बीच संयुक्त अभ्यास 'सहयोग-कैजिन’ का आयोजन किया जा रहा है। इस संयुक्त अभ्यास का मुख्य दोनों देशों के मध्य सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है। वर्ष 2000 में शुरू हुए इस संयुक्त अभ्यास को वार्षिक आधार पर आयोजित किया जाता है और यह इस वर्ष 19वाँ संस्करण है। यह अभ्यास दोनों देशों के मध्य आपसी संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ किसी आपदा या खतरे के दौरान आपसी तालमेल को बेहतर करने के मकसद से भी किया जा रहा है जिसका लाभ दोनों देशों के तटरक्षकों को होगा।
राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने चर्चित गायिका सुमन कल्याणपुर को वर्ष 2017 और संगीत निर्देशन के क्षेत्र में प्रसिद्ध संगीत निर्देशक कुलदीप सिंह को वर्ष 2018 के लिये राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान प्रदान करने की घोषणा की है। मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस सम्मान के अंतर्गत दो लाख रुपए की आयकर मुक्त राशि, प्रतीक चिह्न तथा शाल-श्रीफल भेंट किये जाएंगे।
रिलायंस जियो: देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी
भारत के दूरसंचार नियामक ट्राई (TRAI) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, नवंबर 2019 तक जियो के मोबाइल ग्राहकों की संख्या 36.9 करोड़ रही थी। लगभग तीन वर्ष पहले शुरू हुई रिलायंस जियो आँकड़ों के अनुसार ग्राहक संख्या की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन गई है। नवंबर, 2019 में वोडाफोन-आइडिया के ग्राहकों की संख्या 33.62 करोड़ और भारती एयरटेल के ग्राहकों की संख्या 32.73 करोड़ थी।