सामाजिक न्याय
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा, पश्चिमी विक्षोभ, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO), हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और खाद्य सुरक्षा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत को वर्ष 2023 में कई गंभीर मौसमी और जलवायवीय परिघटनाओं का सामना करना पड़ा, जो इसकी वर्षा प्रणाली की जटिलता को दर्शाता है तथा इसका भारत की खाद्य सुरक्षा पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
मौसम और जलवायवीय परिघटनाएँ:
- पश्चिमी विक्षोभ:
- पश्चिमी हिमालय और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में यूरोपीय समुद्रों से परंपरागत रूप से सर्दियों एवं वसंत ऋतु में नमी लाने का श्रेय पश्चिमी विक्षोभ को जाता है।
- वर्ष 2023 में पश्चिमी विक्षोभ ग्रीष्म ऋतु के अंत तक जारी रहा है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में बदलाव और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया। इस असामान्य स्थित ने वर्षा पैटर्न पर पड़े प्रभाव को अधिक चिंतनीय बना दिया है।
- जलवायु संबद्ध तापन/वार्मिंग के चलते पश्चिमी विक्षोभ के कारण शीत ऋतु के दौरान होने वाली वर्षा में कमी संभावित है तथा शेष समय में यह अधिक वर्षा व उससे संबद्ध घटनाओं का कारण बन सकती है।
- अल नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव:
- ENSO में अल नीनो चरण में तीव्रता आने से दक्षिण पश्चिम मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- हालाँकि अपनी जटिलता के कारण अल नीनो की सभी घटनाओं का मानसून पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है, यह अल नीनो और मानसून के बीच संबंधों में बदलाव का सूचक है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) दक्षिण-पश्चिम मानसून पर अल नीनो के प्रतिकूल प्रभाव को संतुलित कर सकता है।
- डायनामिक रिग्रेशन मॉडल से संकेत मिलते हैं कि ENSO और IOD का संयुक्त प्रभाव दक्षिण-पश्चिम मानसून में 65% अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता के लिये उत्तरदायी है।
- कुछ अध्ययनों के अनुसार, पूर्वोत्तर मानसून में 43% भारी वर्षा का कारण अल नीनो था।
- ENSO में अल नीनो चरण में तीव्रता आने से दक्षिण पश्चिम मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जलवायवीय घटनाओं का कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव:
- ग्रीन वाटर पर अल नीनो का प्रभाव:
- कृषि कार्य दो प्रकार के जल पर निर्भर है- वर्षा के कारण मृदा में व्याप्त नमी से प्राप्त ग्रीन वाटर और सिंचाई के लिये नदियों, झीलों, जलाशयों तथा भूजल से प्राप्त ब्लू वाटर। खाद्य सुरक्षा के लिये ये दोनों जल महत्त्वपूर्ण हैं।
- अल नीनो जैसी जलवायु घटनाओं का वर्षा आधारित कृषि पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे अंततः बुआई, पौधों की वृद्धि तथा मृदा की नमी प्रभावित हो सकती है।
- सिंचाई हेतु बुनियादी ढाँचे में निवेश के बावजूद भारत का लगभग आधा कृषि योग्य क्षेत्र ग्रीन वाटर पर निर्भर है, जो खाद्य सुरक्षा के लिये वर्षा आधारित कृषि के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- सर्दियों में बोई जाने वाली रबी फसलों की उत्पादकता और समग्र जल सुरक्षा मानसून एवं पश्चिमी विक्षोभ से प्राप्त ग्रीन वाटर के योगदान से निर्धारित होती है, ये ब्लू वाटर के भंडार और भूजल के संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- फसल की सुभेद्यता पर अल नीनो का प्रभाव:
- सिंचित क्षेत्रों में धान, सोयाबीन, अरहर दाल, मूँगफली और मक्का जैसी फसलों की ग्रीन वाटर पर निर्भरता उन्हें जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। उदाहरण के लिये 2015-2016 अल नीनो वर्ष के दौरान सोयाबीन के उत्पादन में 28% की गिरावट देखी गई।
मानसूनी वर्षा में गिरावट का भारत में उभरते जलवायु हॉटस्पॉट पर प्रभाव:
- मध्य भारत में जल संकट:
- मध्य भारत के कुछ क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे हैं, जिसका जल, भोजन और पर्यावरण सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
- महानगरीय क्षेत्रों में जल की कमी और निरंतर जल संकट विभिन्न समस्याएँ पैदा करता है।
- मानसूनी वर्षा में कमी:
- 1950 के दशक से ही संभवतः समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण होने वाले भूमि-समुद्र तापमान में बदलाव की वजह से मानसूनी वर्षा में गिरावट देखी गई है।
- हालाँकि बारिश और हीट स्ट्रेस की घटनाओं की बढ़ती तीव्रता अंततः मौसमी जटिलता में वृद्धि करती है।
- मॉडल संबंधी अनिश्चितताएँ:
- वैश्विक जलवायु मॉडल प्रेक्षित वर्षा प्रवृत्तियों का अनुकरण का प्रयास करते हैं, जिससे भविष्य के अनुमानों में अनिश्चितताएँ पैदा होती हैं। जलवायु वैज्ञानिक इन मॉडलों को बेहतर बनाने के लिये लगातार प्रयास कर रहे हैं।
अनुकूलन और शमन रणनीतियाँ:
- जल की कम खपत वाली फसलों को अपनाना:
- कदन्न (मोटा अनाज/श्री अन्न/ मिलेट्स) जैसी जल की कम खपत वाली फसलों की ओर संक्रमण से जल-गहन फसलों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी जिसके परिणामस्वरूप अल नीनो जैसी घटनाओं के प्रति खाद्य प्रणाली के लचीलेपन में वृद्धि हो सकती है।
- इस तरह की फसलों को अपनाने से 30% तक ब्लू वाटर की बचत हो सकती है, लेकिन बचाए गए जल की नई मांगों पर अंकुश लगाने के लिये नई नीतियों की आवश्यकता है।
- वैकल्पिक फसल रणनीतियाँ:
- किसानों को कम अवधि में उगने वाली फसलें की खेती करने और कृषि पद्धतियों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- बेहतर पूर्वानुमान:
- सूचित निर्णय लेने के लिये अल नीनो जैसी जलवायु घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना।
- जल संग्रहण प्रबंधन:
- बाढ़ के जोखिमों और पारिस्थितिकी हानि को कम करने के लिये बाँधों एवं जलाशयों का प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ऐसा संदेह है कि ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में आई बाढ़ का कारण ला नीना था। ला नीना, अल नीनो से किस प्रकार भिन्न है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (D) प्रश्न. वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि विश्व तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2oC से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये। यदि विश्व तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3oC के परे बढ़ जाता है, तो विश्व पर उसका संभावित असर क्या होगा? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से फसलों के किस युग्म को जल गहन माना जाता है? (a) गेहूँ और चावल उत्तर: C मेन्स:प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पारस्परिकता और गैर-पारस्परिकता
प्रिलिम्स के लिये:गैर-पारस्परिकता विधियाँ, पारस्परिकता घटना, रडार सिस्टम, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग। मेन्स के लिये:पारस्परिकता से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये गैर-पारस्परिकता तरीके। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों ने ऐसे उपकरण विकसित किये हैं जो पारस्परिकता की घटना से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने हेतु पारस्परिकता के सिद्धांतों को तोड़ते हैं।
पारस्परिकता:
- परिचय:
- पारस्परिकता का अर्थ है कि यदि कोई सिग्नल एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक भेजा जाता है, तो उसे दूसरे बिंदु से पहले पर वापस भेज दिया जाता है।
- उदाहरण के लिये जब आप किसी मित्र की तरफ टॉर्च की रोशनी करते हैं तो उसकी चमक वापस आप पर आ सकती है क्योंकि प्रकाश हवा के माध्यम से दोनों तरफ फैल सकता है।
- हालाँकि ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ पारस्परिकता अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं करती है।
- उदाहरण के लिये जैसे कुछ फिल्मों में किसी व्यक्ति से कमरे में पूछताछ के दौरान उस कमरे में बैठा व्यक्ति पुलिस अधिकारी को नहीं देख सकता है, लेकिन पुलिस अधिकारी उसे देख सकता है।
- इसके अलावा अँधेरे में स्ट्रीटलाइट के नीचे खड़े व्यक्ति को देखा जा सकता है, लेकिन अँधेरे में खड़ा व्यक्ति उसे नहीं देख सकता।
- पारस्परिकता का अर्थ है कि यदि कोई सिग्नल एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक भेजा जाता है, तो उसे दूसरे बिंदु से पहले पर वापस भेज दिया जाता है।
- अनुप्रयोग:
- एंटीना परीक्षण: पारस्परिकता एंटीना परीक्षण को सरल बनाती है। विभिन्न दिशाओं में कई सिग्नल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय कोई एक सिग्नल को एंटीना में भेजा जा सकता है और देखा सकता है कि यह किस तरह से इसे वापस संचारित करता है।
- यह विभिन्न दिशाओं से सिग्नल प्राप्त करने की एंटीना की क्षमता को निर्धारित करने में सहायता करता है, जिसे इसके दूर-क्षेत्र पैटर्न के रूप में जाना जाता है।
- रडार सिस्टम: इंजीनियर रडार सिस्टम का परीक्षण और संचालन करने हेतु पारस्परिकता का उपयोग करते हैं। रडार एंटेना सिग्नल कैसे भेजते और प्राप्त करते हैं, इसका अध्ययन करके वे सिस्टम के प्रदर्शन तथा सटीकता में सुधार कर सकते हैं।
- रडार एक विद्युत चुंबकीय सेंसर है जिसका उपयोग काफी दूरी पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का पता लगाने, ट्रैकिंग और पहचान के लिये किया जाता है।
- सोनार सिस्टम: सोनार तकनीक, जिसका उपयोग जल के अंदर पता लगाने और नेविगेशन के लिये किया जाता है, में पारस्परिकता सोनार उपकरणों के प्रदर्शन के परीक्षण तथा अनुकूलन में सहायता करती है।
- भूकंपीय सर्वेक्षण: पारस्परिकता उपसतह संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये भू-विज्ञान और तेल अन्वेषण में उपयोग किये जाने वाले भूकंपीय सर्वेक्षण उपकरणों के परीक्षण तथा संचालन को सरल बनाता है।
- मेडिकल इमेजिंग (MRI): MRI स्कैनर मानव शरीर की विस्तृत चिकित्सा छवियाँ बनाने के लिये सिग्नल भेजने और प्राप्त करने हेतु पारस्परिकता सिद्धांतों का उपयोग करते हैं।
- एंटीना परीक्षण: पारस्परिकता एंटीना परीक्षण को सरल बनाती है। विभिन्न दिशाओं में कई सिग्नल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय कोई एक सिग्नल को एंटीना में भेजा जा सकता है और देखा सकता है कि यह किस तरह से इसे वापस संचारित करता है।
पारस्परिकता की चुनौतियाँ:
- जासूसी और सूचना सुरक्षा:
- पारस्परिकता का अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति लक्ष्य से सिग्नल प्राप्त कर सकता है, तो उसका अपना उपकरण अनजाने में सिग्नल प्रसारित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से उसके स्थान या उद्देश्य का पता लगाया जा सकता है।
- बैकरिफ्लेक्शन :
- सिग्नल ट्रांसमिशन के लिये उच्च-शक्ति वाले लेज़रों को डिज़ाइन करते समय ट्रांसमिशन लाइन में खामियाँ हानिकारक बैकरिफ्लेक्शन का कारण बन सकती हैं। पारस्परिकता निर्देश देती है कि ये बैकरिफ्लेक्शन लेज़र में फिर से प्रवेश कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से क्षति या हस्तक्षेप हो सकता है।
- संचार प्रणालियों में पारस्परिकता के कारण मज़बूत बैक-रिफ्लेक्शन हो सकता है, जिससे हस्तक्षेप और सिग्नल का क्षरण हो सकता है।
- संचार नेटवर्क की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये इन बैक-रिफ्लेक्शन को प्रबंधित करना आवश्यक है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये सिग्नल प्रवर्द्धन:
- क्वांटम कंप्यूटर अत्यंत संवेदनशील क्विबिट का उपयोग करते हैं जिन्हें बहुत कम तापमान पर बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
- उनकी क्वांटम अवस्थाओं को समझने के लिये संकेतों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाना चाहिये।
- हालाँकि पारस्परिकता, शोर या अवांछित इंटरैक्शन को शुरू किये बिना कुशल और नियंत्रित सिग्नल प्रवर्द्धन प्राप्त करने में चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
- लघुकरण:
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी नैनोमीटर और माइक्रोमीटर पैमाने पर लघुकरण की ओर बढ़ती है, तेज़ी से सिग्नल दक्षता एवं नियंत्रण सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता जाता है। सेल्फ-ड्राइविंग कारों में जहाँ विभिन्न सिग्नलों की निगरानी सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, पारस्परिक सिग्नल इंटरैक्शन की जटिलताओं को प्रबंधित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।
पारस्परिकता से संबंधित चुनौतियों पर नियंत्रण के तरीके:
- चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिकता:
- वैज्ञानिकों ने चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिक उपकरण विकसित किये हैं, जिसमें वेव प्लेट और फैराडे रोटेटर जैसे घटक शामिल हैं।
- .फैराडे रोटेटर, एक चुंबकीय सामग्री का उपयोग करके तरंगों को एक दिशा में पारित करने की अनुमति देता है लेकिन उन्हें विपरीत दिशा में अवरुद्ध कर देता है, जिससे पारस्परिकता का सिद्धांत टूट जाता है।
- वैज्ञानिकों ने चुंबक-आधारित गैर-पारस्परिक उपकरण विकसित किये हैं, जिसमें वेव प्लेट और फैराडे रोटेटर जैसे घटक शामिल हैं।
- मॉड्यूलेशन:
- मॉड्यूलेशन में माध्यम के कुछ मापदंडों को समय या स्थान में निरंतर परिवर्तन शामिल है।
- माध्यम के गुणों में परिवर्तन करके वैज्ञानिक तरंग संचरण को नियंत्रित कर सकते हैं और सिग्नल रूटिंग, संचार तथा हस्तक्षेप से संबंधित चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
- यह विधि विभिन्न परिस्थितियों में संकेतों के प्रबंधन में लचीलापन प्रदान करती है।
- अरैखिकता:
- अरैखिकता में माध्यम के गुणों को आने वाले सिग्नल की शक्ति पर निर्भर करना शामिल है, जो बदले में, सिग्नल के प्रसार की दिशा पर निर्भर करता है।
- यह दृष्टिकोण वैज्ञानिकों को माध्यम की अरेखीय प्रतिक्रिया में हेर-फेर करके सिग्नल ट्रांसमिशन को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। यह गैर-पारस्परिकता प्राप्त करने और सिग्नल इंटरैक्शन को नियंत्रित करने का एक तरीका प्रदान करता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्मार्टफोन में NavIC एकीकरण
प्रिलिम्स के लिये:NavIC (भारतीय तारामंडल के साथ नेविगेशन), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI), इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइज़ेशन, GPS (ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम) मेन्स के लिये:स्मार्टफोन में NavIC एकीकरण और भारत के लिये इसका महत्त्व |
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय सभी उपकरणों के लिये घरेलू नेविगेशन सिस्टम NavIC (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन) के समर्थन को अनिवार्य करने की योजना बना रहा है।
- यह ऐसे समय में आया है जब नए लॉन्च किये गए Apple iPhone 15 ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित नेविगेशन सिस्टम को अपने हार्डवेयर में एकीकृत किया है।
- भारत के NavIC का उद्देश्य अन्य वैश्विक नेविगेशन प्रणालियों को प्रतिस्थापित करना नहीं है, बल्कि उन्हें पूरक बनाना है।
स्मार्टफोन में NavIc के एकीकरण के लिये सरकार की योजनाएँ:
- केंद्र सरकार वर्ष 2025 तक भारत में बेचे जाने वाले सभी स्मार्टफोन में NavIC के एकीकरण को अनिवार्य करने पर विचार कर रही है, विशेष रूप से 5G फोन को लक्षित करते हुए।
- निर्माताओं को घरेलू चिप डिज़ाइन और उत्पादन को बढ़ावा देने, NavIC तकनीक का समर्थन करने वाले चिप्स का उपयोग करने हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के माध्यम से अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है।
NavIC को अपनाने के लिये रोडमैप और भविष्य की संभावनाएँ:
- NavIC को अपनाकर इसे बढ़ावा देने के लिये ISRO ने मई 2023 में दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह लॉन्च किये थे जो अन्य उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणालियों के साथ अंतर-संचालनीयता को बढ़ाएंगे और उपयोग का विस्तार करेंगे।
- दूसरी पीढ़ी के उपग्रह मौजूदा उपग्रहों द्वारा प्रदान किये जाने वाले L5 और S आवृत्ति संकेतों के अलावा तीसरी आवृत्ति, L1 में सिग्नल भेजेंगे।
- L1 आवृत्ति ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली आवृत्तियों में से एक है और पहनने योग्य उपकरणों तथा व्यक्तिगत ट्रैकर्स में क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली के उपयोग को बढ़ाएगी जो कम-शक्ति, एकल-आवृत्ति चिप्स का उपयोग करते हैं।
- यह रणनीतिक कदम प्रौद्योगिकी संप्रभुता स्थापित करने और एक प्रमुख अंतरिक्ष-प्रमुख राष्ट्र के रूप में उभरने की भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप है।
भारतीय तारामंडल में नेविगेशन (NavIC):
- परिचय:
- भारत का NavIC इसरो द्वारा विकसित एक स्वतंत्र नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है जिसकी शुरुआत वर्ष 2018 में की गई।
- यह भारत और भारतीय मुख्यभूमि के आसपास लगभग 1500 किमी. तक फैले क्षेत्र में सटीक रियल-टाइम पोज़िशनिंग और टाइमिंग सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- इसे 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित होने वाले ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
- कुल आठ उपग्रह हैं हालाँकि केवल सात ही सक्रिय रहते हैं।
- तीन उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा में और चार उपग्रह भूतुल्यकालिक कक्षा में हैं।
- मान्यता:
- इसे वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता दी गई थी।
- संभावित उपयोग:
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
- आपदा प्रबंधन;
- वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेषकर खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये);
- मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
- सटीक समय (ATM और पावर ग्रिड के लिये);
- मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।
भारत के लिये स्मार्टफोन में NavIC को एकीकृत करने का महत्त्व:
- सामरिक प्रौद्योगिकी स्वायत्तता:
- NavIC ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) जैसे विदेशी वैश्विक नेविगेशन सिस्टम पर निर्भरता कम करता है, जो महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को स्वतंत्र रूप से विकसित करने और तैनात करने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र अपने महत्त्वपूर्ण नेविगेशन अवसंरचना को नियंत्रित और सुरक्षित कर सकता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा तथा रक्षा अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उन्नत सटीकता और विश्वसनीयता:
- NavIC विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और आसपास के क्षेत्र में अत्यधिक सटीक एवं विश्वसनीय स्थिति व समय की सूचना प्रदान करता है।
- आपदा प्रबंधन और कृषि से लेकर शहरी नियोजन व परिवहन तक समग्र दक्षता तथा निर्णय लेने में सुधार के लिये सटीकता आवश्यक है।
- भारतीय भू-भाग के लिये अनुकूलित समाधान:
- NavIC को भारत की विशिष्ट भौगोलिक और स्थलाकृतिक स्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जहाँ पारंपरिक वैश्विक नेविगेशन सिस्टम की सीमाएँ हो सकती हैं।
- भारत के विविध परिदृश्य के अनुरूप नेविगेशन प्रणाली को तैयार करना अधिक सटीक और कुशल स्थान-आधारित सेवा सुनिश्चित करता है।
- उपयोग के मामलों का विस्तार और नवाचार:
- NavIC का एकीकरण स्थान-आधारित सेवाओं, नेविगेशन एप्स और अन्य नवीन समाधानों के लिये अवसर प्रदान करता है जिन्हें विशिष्ट स्थानीय आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है।
- यह उद्यमिता को बढ़ावा देता है और एक उन्नतिशील एप विकास पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के साथ ही प्रौद्योगिकी में रचनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
विश्व में संचालित अन्य नेविगेशन सिस्टम:
- चार वैश्विक प्रणालियाँ:
- संयुक्त राज्य अमेरिका से GPS
- रूस से ग्लोनास (GLONASS)
- यूरोपीय संघ से गैलीलियो (Galileo)
- चीन से BeiDou
- दो क्षेत्रीय प्रणालियाँ:
- भारत से NavIC
- जापान से QZSS
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से किस देश का अपना सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है? (2023) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (d) प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करती है? (2018) |