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डेली न्यूज़

  • 16 Aug, 2023
  • 43 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व हाथी दिवस 2023

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व हाथी दिवस, प्रोजेक्ट एलीफैंट, हाथी अभयारण्य

मेन्स के लिये:

हाथियों के संरक्षण का महत्त्व और हाथियों की प्रजाति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व हाथी दिवस के अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा श्रम एवं रोज़गार मंत्री ने भारत में हाथियों के संरक्षण की दिशा में की गई विभिन्न पहलों तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

विश्व हाथी दिवस:

  • परिचय:
    • 12 अगस्त को विश्व स्तर पर मनाया जाने वाला विश्व हाथी दिवस एक विशिष्ट उत्सव है, जिसका उद्देश्य हाथियों से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण की दिशा में कार्य करना है।
    • यह दिवस हाथियों के आवास स्थल की क्षति, हाथी दाँत के अवैध व्यापार, मानव-हाथी संघर्ष तथा संवर्द्धित संरक्षण प्रयासों की अनिवार्यता के साथ-साथ हाथियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के समाधान पर ज़ोर देने के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • विश्व हाथी दिवस अभियान की शुरुआत वर्ष 2012 में अफ्रीकी और एशियाई हाथियों को लेकर चिंता उत्पन्न करने वाली स्थितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये की गई थी।
      • इस अभियान का उद्देश्य पशुओं हेतु एक शोषणमुक्त और उचित देखभाल हेतु एक स्थायी वातावरण का निर्माण करना है।
    • विश्व हाथी दिवस की परिकल्पना एलीफेंट रीइंट्रोडक्शन फाउंडेशन और फिल्म निर्माता पेट्रीसिया सिम्स एवं माइकल क्लार्क द्वारा की गई थी तथा आधिकारिक तौर पर वर्ष 2012 में इसकी शुरुआत की गई।
      • पेट्रीसिया सिम्स ने वर्ष 2012 में वर्ल्ड एलीफेंट सोसाइटी नामक एक संगठन की स्थापना की।
        • यह संगठन हाथियों के सामने आने वाले खतरों और विश्व स्तर पर उनकी सुरक्षा की अनिवार्यता के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य करता है।

हाथियों से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • हाथी भारत का प्राकृतिक विरासत पशु है।
    • हाथियों का संबंध "कीस्टोन प्रजाति" से है, वे वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • हाथियों की असाधारण बुद्धिमत्ता उनकी सबसे प्रमुख विशेषता है, इनका मस्तिष्क स्थल पर पाए जाने वाले किसी भी पशु के मस्तिष्क के आकार की तुलना में सबसे बड़ा होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान और महत्त्व:
    • हाथी भोजन की खोज में काफी दूर तक विचरण करने के मामले में सबसे अग्रणी हैं, वे प्रतिदिन बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खाते हैं और इनके इस विचरण की प्रक्रिया में वनस्पतीय पादपों के बीज भी इधर-उधर फैलते जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये हाथी जहाँ-जहाँ से गुज़रते हैं वहाँ पेड़ों के बीच साफ जगह और खाली स्थान बनता जाता है जिससे सूरज की रोशनी नए पौधों तक पहुँचती है जो पौधों के बढ़ने तथा जंगल के प्राकृतिक रूप से विकसित होने में मदद करती है।
    • एशियाई क्षेत्र की घनी वनस्पति को आकार देने में भी हाथियों का बड़ा योगदान है।
    • सतह पर जल न मिलने पर हाथी जल की तलाश में निकल पड़ते हैं, इससे उनके साथ-साथ अन्य प्राणियों के लिये भी जल की खोज आसान हो जाती है।
  • भारत में हाथी:
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट की वर्ष 2017 की गणना के अनुसार, भारत में सबसे अधिक जंगली एशियाई हाथी पाए जाते हैं, जिनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
      • यह इस प्रजाति की वैश्विक आबादी का लगभग 60% है।
    • कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद असम और केरल का स्थान है।
  • संरक्षण स्थिति:

हाथियों के संरक्षण की दिशा में भारत की पहलें और उपलब्धियाँ:

  • हाथी-मानव संघर्ष का समाधान करना:
    • संघर्षों को कम करने के लिये 40 से अधिक हाथी गलियारों और 88 वन्यजीव क्रॉसिंग की स्थापना।
    • 17,000 वर्ग किमी. से अधिक के संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास बफर ज़ोन का निर्माण।
  • हाथी परियोजना:
    • यह परियोजना वर्ष 1992 में शुरू की गई, जिसमें संपूर्ण भारत के 23 राज्य शामिल थे।
    • इससे जंगली हाथियों की स्थिति में सुधार हुआ, इनकी संख्या वर्ष 1992 के लगभग 25,000 से बढ़कर वर्ष 2021 में लगभग 30,000 हो गई।
  • हाथी अभयारण्य:
    • लगभग 80,777 वर्ग किमी. में 33 हाथी अभयारण्य की स्थापना।
    • ये अभयारण्य जंगली हाथियों की आबादी और उनके आवासों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मानव-हाथी संघर्ष का प्रबंधन:
    • संघर्ष की स्थितियों से निपटने के लिये विभिन्न राज्यों में त्वरित प्रतिक्रिया टीमें तैनात की गईं।
    • मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में कमी लाने के लिये पर्यावरण-अनुकूल उपायों के कार्यान्वयन हेतु देश में हाथियों के निवास स्थान से गुज़रने वाले रेलवे नेटवर्क के लगभग 110 महत्त्वपूर्ण हिस्सों की पहचान की गई है।
      • इन स्थानों पर अंडरपास का निर्माण, टकराव से बचने हेतु लोको पायलटों के लिये दृश्यता बढ़ाने हेतु पटरियों के किनारे की वनस्पति को साफ करना, रैंप की व्यवस्था करना और अन्य उपाय किये जाएंगे।
  • सामुदायिक भागीदारी और सशक्तीकरण:
    • हाथी संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये गज यात्रा कार्यक्रम और गज शिल्पी पहल में लोगों को शामिल किया गया।
  • अनुकरणीय प्रयासों को मान्यता:
    • गज गौरव सम्मान हाथी संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये व्यक्तियों और संगठनों को पुरस्कृत किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते और प्रोटोकॉल:
  • MIKE कार्यक्रम दक्षिण एशिया में वर्ष 2003 में निम्नलिखित उद्देश्य के साथ  शुरू किया गया:
    • हाथी रेंज वाले राज्यों को उचित प्रबंधन और प्रवर्तन निर्णय लेने के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करना तथा हाथी आबादी के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिये रेंज राज्यों के भीतर संस्थागत क्षमता का निर्माण करना।
  • भारत में MIKE साइट्स:
    • चिरांग-रिपु हाथी अभयारण्य (असम)
    • देवमाली हाथी अभयारण्य (अरुणाचल प्रदेश)
    • दिहिंग पटकाई हाथी अभयारण्य (असम)
    • गारो हिल्स हाथी अभयारण्य (मेघालय)
    • पूर्वी डुआर्स हाथी अभयारण्य (पश्चिम बंगाल)
    • मयूरभंज हाथी अभयारण्य (ओडिशा)
    • शिवालिक हाथी अभयारण्य (उत्तराखंड)
    • मैसूर हाथी अभयारण्य (कर्नाटक)
    • नीलगिरि हाथी अभयारण्य (तमिलनाडु)
    • वायनाड हाथी अभयारण्य (केरल)

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. हाथियों के समूह का नेतृत्व मादा करती है। 
  2. हाथी की अधिकतम गर्भावधि 22 माह तक हो सकती है। 
  3. सामान्यत: हाथी में 40 वर्ष की आयु तक ही बच्चे पैदा करने की क्षमता होती है। 
  4. भारत के राज्यों में हाथियों की सर्वाधिक संख्या केरल में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (A)

व्याख्या:

  • हाथी के झुंड का नेतृत्व सबसे बड़ी आयु की मादा करती है (मातृसत्ता के रूप में जाना जाता है)। इस झुंड में कुलमाता की मादा संतानें शामिल होती हैं। अतः कथन 1 सही है।
  • सभी स्तनधारियों में हाथियों की सबसे लंबी गर्भावधि होती है जो 680 दिन (22 माह) तक चलती है। अतः कथन 2 सही है। 14 से 45 वर्ष के बीच की मादाएँ लगभग प्रत्येक चार वर्ष में बच्चों को जन्म दे सकती हैं, औसत जन्म अंतराल 52 वर्ष की आयु तक पाँच वर्ष और 60 वर्ष की उम्र तक छह वर्ष तक बढ़ जाता है। अत: कथन 3 सही नहीं है।
  • हाथियों की गणना (वर्ष 2017) के अनुसार, कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक (6,049) है, इसके बाद असम (5,719) और केरल (3,054) का स्थान है। अतः कथन 4 सही नहीं है।
  • अत: विकल्प (A) सही उत्तर है।

स्रोत:पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि, उच्च न्यायालय डैशबोर्ड, दक्ष (DAKSH), महामारी रोग अधिनियम, 1897, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 

मेन्स के लिये:

भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि, ज़मानत अपीलें

चर्चा में क्यों?

कानून और न्याय प्रणाली सुधारों पर केंद्रित थिंक-टैंक DAKSH के 'हाई कोर्ट डैशबोर्ड' के अनुसार, भारत के उच्च न्यायालयों में दायर ज़मानत अपीलों की संख्या में वर्ष 2020 के बाद वृद्धि हुई है।

  • DAKSH ने 15 उच्च न्यायालयों में वर्ष 2010 से वर्ष 2021 के बीच दायर 9,27,896 ज़मानत मामलों का विश्लेषण किया। इन न्यायालयों ने ज़मानत मामलों के लिये अलग-अलग नामकरण पैटर्न का पालन किया। डेटा के विश्लेषण से उच्च न्यायालयों में ज़मानत से जुड़े 81 प्रकार के मामले सामने आए हैं।

ज़मानत अपीलों से संबंधित आँकड़े: 

  • ज़मानत अपीलों में वृद्धि:
    • वर्ष 2020 से पहले ज़मानत अपीलें लगभग 3.2 लाख से बढ़कर 3.5 लाख सालाना हो गईं, उसके बाद जुलाई 2021 से जून 2022 तक 4 लाख से 4.3 लाख हो गईं।
    • परिणामस्वरूप उच्च न्यायालयों में लंबित ज़मानत अपीलों की संख्या लगभग 50,000-65,000 से बढ़कर 1.25 लाख से 1.3 लाख के बीच हो गई है।
  • उच्च न्यायालय और मामलों का वितरण:
    • विभिन्न उच्च न्यायालयों में मामलों का वितरण अलग-अलग था। कुछ राज्यों जैसे कि पटना, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जुलाई 2021 और जून 2022 के बीच कुल मामलों में ज़मानत अपीलों की हिस्सेदारी 30% से अधिक थी।
  • निपटान का समय और परिणाम अनिश्चितता:
    • नियमित ज़मानत आवेदनों के निपटान में लगने वाला औसत समय विभिन्न उच्च न्यायालयों में भिन्न है। कुछ उच्च न्यायालयों में निपटान का समय काफी अधिक था, जिससे समाधान प्रक्रिया में देरी देखी गई
    • जमानत के मामलों पर निर्णय लेने में देरी को ज़मानत को अस्वीकार करने के समान माना जाता है, क्योंकि इस अवधि के दौरान आरोपी जेल में रहता है।
  • अपूर्ण परिणाम डेटा:
    • डेटा ने उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों के परिणामों के संबंध में स्पष्टता की कमी को भी उजागर किया। सभी उच्च न्यायालयों में निपटाए गए लगभग 80% ज़मानत मामलों में, चाहे वह मंज़ूर हुई हो या खारिज़ हो गई हो, अपील का परिणाम अस्पष्ट या गायब था।

ज़मानत अपीलों में वृद्धि का कारण:

  • कोविड उल्लंघन और न्यायालय के कामकाज़ में व्यवधान:
    • महामारी के दौरान कोविड-19 लॉकडाउन मानदंडों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • इसके अतिरिक्त इस अवधि के दौरान न्यायालयी कामकाज़ में व्यवधान के कारण लंबित ज़मानत मामलों का इस वृद्धि में योगदान हो सकता है।
      • हालाँकि न्यायालय के डेटा से निश्चित रूप से सटीक कारण का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
  • महामारी रोग अधिनियम, एक कारक के रूप में:
    • ज़मानत अपीलों की वृद्धि में महामारी रोग अधिनियम, 1897 की भूमिका मानी जा सकती है। 77% नियमित ज़मानत मामले ऐसे हैं जिनके विषय में विशिष्ट अधिनियम में उल्लेख नहीं है जिसके तहत अपीलकर्त्ता को कैद किया गया था, शेष 23% मामले, जिनमें विभिन्न अधिनियमों के तहत जमानत की मांग की गई उसमें महामारी रोग अधिनियम चौथे स्थान पर है।
    • यह इस अधिनियम के तहत मामलों में संभावित वृद्धि का संकेत देता है, जिससे ज़मानत अपीलों में वृद्धि हो सकती है।

ज़मानत और इसके प्रकार:

  • परिभाषा:
    • ज़मानत कानूनी हिरासत के तहत रखे गए (उन मामलों में जिन पर न्यायालय द्वारा अभी फैसला सुनाया जाना है) व्यक्ति की सशर्त/अनंतिम रिहाई है, जो आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय में उपस्थित होने का वादा करता है।
    • यह रिहाई के लिये न्यायालय के समक्ष जमा की गई सुरक्षा/संपार्श्विक का प्रतीक है।
      • अधीक्षक और कानूनी मामलों के परामर्शदाता बनाम अमिय कुमार रॉय चौधरी (1973) मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ज़मानत देने के पीछे के सिद्धांत को समझाया है।
  • भारत में ज़मानत के प्रकार:
    • नियमित ज़मानत: यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है। ऐसी ज़मानत के लिये व्यक्ति CrPC. 1973 की धारा 437 तथा 439 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है।
    • अंतरिम ज़मानत: नियमित अथवा अग्रिम ज़मानत हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित होने की स्थिति में यह ज़मानत न्यायालय द्वारा अस्थायी और अल्प अवधि हेतु दी जाती है।
    • अग्रिम ज़मानत या पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत: यह एक कानूनी प्रावधान है जो आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले ज़मानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 में भारत में पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत का प्रावधान किया गया है। इसे केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाता है।
      • अग्रिम ज़मानत का प्रावधान विवेकाधीन है तथा न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आरोपी के पूर्ववृत्त एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद ज़मानत दे सकता है।
      • न्यायालय ज़मानत देते समय कुछ शर्तें भी लगा सकता है, जिसमें पासपोर्ट ज़ब्त करना, देश छोड़ने पर प्रतिबंध या पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से रिपोर्ट करना आदि शामिल हैं।
    • वैधानिक ज़मानत: वैधानिक ज़मानत, जिसे डिफ़ॉल्ट ज़मानत के रूप में भी जाना जाता है, CrPC की धारा 437, 438 और 439 के तहत सामान्य प्रक्रिया से प्राप्त ज़मानत से अलग है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, वैधानिक ज़मानत तब दी जाती है जब पुलिस अथवा जाँच एजेंसी निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट/शिकायत दर्ज करने विफल हो जाती है।

नोट: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सभी को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह मानवीय गरिमा तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ जीने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है, यह हमें किसी भी कानून प्रवर्तन इकाई द्वारा हिरासत में लिये जाने पर ज़मानत प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

फ्लोटिंग रेट ऋण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, समान मासिक किश्तें (EMIs), फ्लोटिंग रेट ऋण

मेन्स के लिये:

फ्लोटिंग रेट ऋण की अवधारणा, वित्तीय संस्थानों में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने  पारदर्शिता बढ़ाने और फ्लोटिंग रेट ऋणों के लिये समान मासिक किस्तों (Equated Monthly Installments- EMI) को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये उचित नियम स्थापित करने हेतु एक व्यापक ढाँचा प्रस्तुत किया है।

  • इसका उद्देश्य उधारकर्त्ताओं की चिंताओं को दूर करना तथा वित्तीय संस्थानों के उचित व्यवहार को सुनिश्चित करना है।

फ्लोटिंग रेट ऋण:

  • फ्लोटिंग रेट ऋण ऐसे ऋण होते हैं जिनकी ब्याज दर बेंचमार्क दर या आधार दर/बेस रेट के आधार पर समय-समय पर बदलती रहती है।
    • आधार दर/बेस रेट वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वित्तीय संस्थानों को पैसा उधार देता है, यह दर बाज़ार द्वारा प्रभावित होती है और रेपो रेट इसका सबसे सामान्य उदाहरण है।
  • फ्लोटिंग रेट ऋण को परिवर्तनीय अथवा समायोज्य-दर ऋण के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये ऋण की अवधि के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
  • क्रेडिट कार्ड, बंधक/गिरवी रखी वस्तुओं और अन्य उपभोक्ता ऋणों के लिये फ्लोटिंग रेट ऋण बहुत आम हैं।
  • यदि भविष्य में ब्याज दरों में गिरावट का अनुमान है तो उधारकर्त्ताओं को फ्लोटिंग रेट ऋण से लाभ होता है।
    • इसके विपरीत एक निश्चित ब्याज दर वाले ऋण के लिये उधारकर्त्ता को ऋण अवधि के दौरान निर्धारित किश्तों का भुगतान करना पड़ता है। यह अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के समय अधिक सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करता है।

निर्धारित दर (Fixed Rate)

निर्धारित दर बनाम फ्लोटिंग ब्याज दर (Fixed Rate Vs Floating Rate of Interest)

फ्लोटिंग रेट/अस्थायी दर (Floating Rate)

लाभ 

बाज़ार की स्थितियों के बावजूद ब्याज दर स्थिर रहती है।

फिक्स्ड रेट होम लोन उन लोगों के लिये अच्छा है जो एक निश्चित मासिक पुनर्भुगतान कार्यक्रम चाहते हैं।

यह निश्चितता और सुरक्षा की भावना लाता है। 

ब्याज की निश्चित दर क्या है?

निश्चित ब्याज दर का अर्थ है ऋण की पूरी अवधि के दौरान निश्चित समान किश्तों में होम लोन का पुनर्भुगतान।

फ्लोटिंग ब्याज दर क्या है?

फ्लोटिंग ब्याज दर बाज़ार की स्थितियों के साथ बदलती रहती है, फ्लोटिंग ब्याज दर होम लोन, बेस रेट और फ्लोटिंग एलिमेंट्स से जुड़ी होती है।

लाभ


निश्चित ब्याज दरों से कम-से-कम 1-2% सस्ता।


दीर्घावधि में ब्याज दरें घट सकती हैं।


फ्लोटिंग ब्याज दरों के माध्यम से  बचत होती है।

कमियाँ


आमतौर पर फ्लोटिंग रेट होम लोन से 1-2.5% अधिक होता है।

कमियाँ

मासिक किश्तों की असमान प्रकृति वित्तीय नियोजन को कठिन बना देती है।

नए पारदर्शी ढाँचे की आवश्यकता:

  • मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के प्रयास में RBI रेपो दरें बढ़ाता रहा है। रेपो दरों में वृद्धि के साथ फ्लोटिंग दरें भी बढ़ जाती हैं। इसका आशय है कि उधारकर्त्ताओं को अधिक EMI भुगतान करना पड़ सकता है।
    • यह पाया गया है कि अधिक EMI मांगने के बजाय कुछ बैंक उधारकर्त्ता को सूचित किये बिना ऋण की अवधि बढ़ा रहे हैं।
    • इससे ऋण के पुनर्भुगतान में अनावश्यक रूप से अधिक समय लग रहा है तथा यह उधारकर्त्ताओं की उचित सहमति के बिना हो रहा है।
  • उधारकर्त्ताओं को इंटरनल बेंचमार्क रेट (Internal Benchmark Rate) में बदलाव और ऋण की अवधि के दौरान होने वाली क्षति से बचाना।
  • उधारकर्त्ताओं द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दों जैसे- फोरक्‍लोज़र चार्ज (Foreclosure Charges), स्विचिंग ऑप्शन (Switching Options) और प्रमुख नियमों एवं शर्तों के बारे में जानकारी की कमी का समाधान करना।

RBI द्वारा प्रस्तावित ढाँचे की विशेषताएँ:

  • ऋणदाताओं को अवधि और/या EMI के पुनः निर्धारण हेतु उधारकर्त्ताओं के साथ स्पष्ट रूप से संवाद करना चाहिये।
  • RBI ने ऋणदाताओं से कहा है कि वे जब भी चाहें उधारकर्त्ताओं को फिक्स्ड-रेट होम लोन (Fixed-Rate Home Loans) पर स्विच करने या ऋण को फोरक्‍लोज़र (Foreclosure) करने का विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
  • बैंकों को इन विकल्पों के प्रयोग से जुड़े विभिन्न शुल्कों के बारे में पहले से ही उधारकर्त्ताओं को बताना होगा और उन्हें महत्त्वपूर्ण जानकारी देनी होगी।
    • इसके परिणामस्वरूप उधारकर्त्ता अपने गृह ऋण का भुगतान करते समय अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय ले सकेंगे।
  • ऋणदाताओं को उत्पीड़न, धमकी या गोपनीयता का उल्लंघन जैसी अनैतिक या ज़बरदस्ती ऋण वसूली प्रथाओं में शामिल नहीं होना चाहिये।

प्रस्तावित ढाँचे से उधारकर्त्ताओं और ऋणदाताओं को लाभ:

  • इससे उधारकर्त्ताओं के पास अपने फ्लोटिंग रेट ऋणों के संबंध में अधिक स्पष्टता, पारदर्शिता एवं विकल्प होंगे और वे बिना किसी दंड या परेशानी के उनसे बाहर निकलने या स्विच करने में सक्षम होंगे।
  • इसके चलते उधारकर्त्ता ऋणदाताओं द्वारा ब्याज दरों या EMI में अनुचित या मनमाने ढंग से किये गए परिवर्तन से सुरक्षित रहेंगे और अपने वित्त की बेहतर योजना बनाने में सक्षम होंगे।
  • इसके कारण उधारकर्त्ताओं के साथ ऋणदाता सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे और ऋण वसूली के दौरान उन्हें उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • इसके द्वारा ऋणदाता अच्छे ग्राहक संबंध और विश्वास बनाए रखने में सक्षम होंगे एवं अनुचित ऋण आचरण के कारण प्रतिष्ठा को जोखिम या कानूनी कार्रवाई से बच सकेंगे।
  • इससे ऋणदाता अपनी परिसंपत्ति गुणवत्ता और जोखिम प्रबंधन में सुधार एवं नियामक मानदंडों व अपेक्षाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

हवाई में बड़े पैमाने पर वनाग्नि

प्रिलिम्स के लिये:

हवाई में बड़े पैमाने पर वनाग्नि, वनाग्नि, ज्वालामुखी, जलवायु परिवर्तन, हरिकेन, अल नीनो, ऊर्जा परिषद, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना

मेन्स के लिये:

वनाग्नि, कारण और प्रभाव, वनाग्नि शमन रणनीतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हवाई (Hawaii) में बड़े पैमाने पर वनाग्नि की घटना देखी गई, जिसने पूरे राज्य में तबाही मचाई है।

  • इस स्थिति ने खतरे को कम करने की योजनाओं के महत्त्व तथा लाहिना (Lahaina) और पश्चिम माउई समुदायों (West Maui Communities) की आबादी वाले सुभेद्य क्षेत्रों की पहचान पर प्रकाश डाला है, जहाँ माउई काउंटी (Maui County) की आखिरी बार वर्ष 2020 में अद्यतन की गई योजना में बार-बार वनाग्नि और बड़ी संख्या में जोखिम वाली इमारतों की पहचान की गई थी।

हवाई में वनाग्नि का कारण:

  • आकस्मिक सूखा:
    • शुष्क मौसम तथा क्षेत्र के ऊपर से गुज़रने वाले हरीकेन के कारण उत्पन्न तीव्र पवनों ने वनाग्नि को और अधिक प्रबल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन स्थितियों, जिन्हें "आकस्मिक सूखे (Flash Droughts)" के रूप में जाना जाता है, में वातावरण में तेज़ी से नमी का वाष्पीकरण होता है, जो आग के फैलने के लिये आदर्श स्थितियाँ बनाती हैं।
      • हवाई के छह सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक माउई में है। माउई का अधिकांश भाग गंभीर सूखे का सामना कर रहा था, इसलिये सूखी भूमि, सूखी गैर-देशी घास (Non-Native Grasses) और वनस्पति ने आग के लिये ईंधन का कम किया।
      • इनसे आग और अधिक प्रबल हो जाती है तथा उसे फैलने में सहायता मिलती है।
  • मानव गतिविधि और जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन विश्व स्तर पर विनाशकारी वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं से जुड़ा हुआ है तथा हवाई की वनाग्नि का प्रकोप संभवतः अपवाद नहीं है।
    • जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है तथा जलवायु परिवर्तन के कारण हवा गर्म होती है, तूफान और वनाग्नि  के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बन जाती हैं।
    • इसके अतिरिक्त इन उद्योगों में गिरावट आने से अनानास और गन्ने की सिंचित खेती की ऐतिहासिक भूमि उपयोग प्रथाओं ने आक्रामक, आग-प्रवण घास प्रजातियों का स्थान ले लिया।
    • इस परिवर्तन ने आग के तेज़ी से फैलने के प्रति भूमि की संवेदनशीलता में योगदान दिया है।
  • हरिकेन डोरा (Hurricane Dora) की पवनें:
    • इन पवनों की उत्पत्ति हरिकेन डोरा से हुई है, जो प्रशांत महासागर में एक असामान्य रूप से तेज़ तूफान है।
      • हवाई के वनों में लगी आग लगभग 100 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही पवन के कारण अधिक फैल गई।
    • हवाई से सैकड़ों मील दूर हरिकेन डोरा हवाई से नहीं टकराया। इसके बजाय तूफान के कारण द्वीप उच्च और निम्न दबाव वाले क्षेत्रों के बीच फँस गए, जिसके परिणामस्वरूप पवनों ने आग की लपटें बढ़ा दीं तथा इन पर नियंत्रण करना कठिन हो गया।

हवाई के बारे में मुख्य तथ्य:

  • हवाई कैलिफोर्निया से 2,000 मील पश्चिम में प्रशांत महासागर में स्थित है, जिसमें एक विविध और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र शामिल है।
  • यह संयुक्त राज्य अमेरिका का 50वाँ और सबसे युवा राज्य है।
  • अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के लिये प्रसिद्ध हवाई में ज्वालामुखी गतिविधि द्वारा निर्मित आठ मुख्य द्वीप हैं।
    • इस राज्य की राजधानी होनोलूलू (Honolulu) है।
  • पॉलिनेशियन, एशियाई और अमेरिकी संस्कृतियों से प्रभावित एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ हवाई एक जीवंत एवं विविध समाज का दावा करता है।
  • द्वीप विविध प्रकार के परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं, हरे-भरे वर्षावनों से लेकर ज्वालामुखीय परिदृश्य तक, जो इसे बाहरी उत्साही लोगों के लिये स्वर्ग बनाता है।
  • यह द्वीपसमूह अपने हुला नृत्य, लुओस और पारंपरिक यूकुलेले संगीत के लिये प्रसिद्ध है। हवाई की अनूठी वनस्पतियों और जीवों में हवाईयन मोंक सील और हरे समुद्री कछुए जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ सम्मिलित हैं।

वनाग्नि: 

  • परिचय:
    • वनाग्नि, जिसे जंगल की आग या झाड़ियों की आग के रूप में भी जाना जाता है, अनियंत्रित आग है जो तेज़ी से जंगलों, घास के मैदानों, झाड़ियों और अन्य प्राकृतिक परिदृश्यों सहित वनस्पति में फैलती है।
    • यह दो कारकों के कारण हो सकता है, जैसे कि बिजली गिरना और मानवीय गतिविधियाँ, जिनमें छोड़ी गई जली सिगरेट, कैम्पफायर, बिजली की लाइनें और जान-बूझकर किये गए कार्य सम्मिलित हैं।
  • वनाग्नि के प्रकार:
    • क्राउन फायर (Crown Fire): यह आग पेड़ों को पूर्ण रूप से शीर्ष तक जला देती है। यह सबसे भीषण और खतरनाक वनाग्नि है।
    • सतही आग (Surface Fire): यह केवल सतही कूड़े और डफ को जलाती है। इस आग को बुझाना सबसे आसान होता है और इससे जंगल को सबसे कम नुकसान होता है।
    • ज़मीनी आग (Ground Fire): जिसे कभी-कभी भूमिगत या उपसतह आग भी कहा जाता है, यह खाद, पीट और इसी तरह की मृत वनस्पतियों के गहरे संचय में उत्पन्न होती है जो कि पर्याप्त रूप से सूख जाती हैं।
    • यह आग बहुत धीमी गति से फैलती है, लेकिन इसे पूरी तरह से बुझाना या रोकना मुश्किल हो सकता है। कभी-कभी, विशेष रूप से लंबे समय तक सूखे के दौरान ऐसी आग पूरी सर्दियों में भूमिगत रूप से सुलगती रहती है और वसंत ऋतु में फिर से सतह पर उभर आती है।
  • वनाग्नि के कारण:
    • मानवीय कारण:
      • मानवीय लापरवाही के कार्य जैसे कि कैम्पफायर को लापरवाही से छोड़ना और जले हुए सिगरेट के टुकड़ों को लापरवाही से फेंकना वनाग्नि की आपदाओं का कारण बनता है।
      • दुर्घटनाएँ, जान-बूझकर की गई आगजनी, मलबा जलाना और आतिशबाज़ी वनाग्नि के अन्य प्रमुख कारण हैं।
    • प्राकृतिक कारक:
      • आकाशीय बिजली: इसके कारण जंगलों में आग लग जाती है।
      • ज्वालामुखीय विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान पृथ्वी की भू-पपड़ी में मौजूद गर्म मैग्मा आमतौर पर लावा के रूप में बाहर निकलता है। खेतों अथवा भूमि से होते हुए गुज़रने से गर्म लावा के कारण जंगलों में आग लगना सामान्य बात है।
      • तापमान: उच्च वायुमंडलीय तापमान और शुष्कता वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
      • जलवायु परिवर्तन: यह सतही वायु के तापमान में धीरे-धीरे लेकिन अधिक वृद्धि का कारण बन रहा है और यह अल नीनो से जुड़ी सामान्य आवधिक वार्मिंग के साथ संयुक्त रूप से कई क्षेत्रों में रिकॉर्डतोड़ चरम जलवायवीय स्थितियों को जन्म देता है।

वनाग्नि के प्रति भारत की संवेदनशीता:

  • भारत में आमतौर पर नवंबर से जून तक वनाग्नि की घटना होने की संभावना रहती है।
  • ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद की एक रिपोर्ट में निम्नलिखित बातें कही गई हैं:
    • पिछले दो दशकों में वनाग्नि के मामलों में दस गुना वृद्धि हुई है और माना जा रहा है कि 62% से अधिक भारतीय राज्यों में उच्च तीव्रता वाले वनाग्नि की घटनाएँ होने की संभावना हैं।
    • आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तेलंगाना और पूर्वोत्तर राज्यों में इसका खतरा सबसे अधिक है।
    • पिछले दो दशकों में मिज़ोरम में वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ हुई हैं, इसके 95% ज़िले वनाग्नि के हॉटस्पॉट हैं।
  •  ISFR (इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट) 2021 का अनुमान है कि देश के 36% से अधिक वन क्षेत्र में बार-बार आग लगने का खतरा है, 6% क्षेत्र में 'बहुत अधिक' वनाग्नि का खतरा है और लगभग 4% क्षेत्र में 'अत्यधिक' वनाग्नि का खतरा है।
    • इसके अलावा FSI के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में वनों के अंतर्गत लगभग 10.66% क्षेत्र में 'अत्यधिक' वनाग्नि की घटनाएँ होने की आशंका है।

वनाग्नि से निपटने के लिये सरकारी की योजनाएँ: 

  • वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF): इसे वर्ष 2018 में वन सीमांत समुदायों को सूचित करने, सक्षम और सशक्त बनाने एवं उन्हें राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर वनाग्नि की घटनाओं को कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (GIM): जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत शुरू किया गया GIM का उद्देश्य वन क्षेत्र को बढ़ाना और नष्ट हुए वनों को बहाल करना है।
    • यह समुदाय-आधारित वन प्रबंधन, जैव विविधता संरक्षण और स्थायी वन प्रथाओं के उपयोग को बढ़ावा देता है, जो वनाग्नि को रोकने में योगदान देते हैं।
  • वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन योजना (FFPM): FFPM को MoEF और CC के तहत FSI द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। इसका उद्देश्य रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके वनाग्नि प्रबंधन प्रणाली को मज़बूत करना है।
  • यह वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित एकमात्र सरकार-प्रायोजित कार्यक्रम है।

वनाग्नि शमन रणनीतियाँ: 

  • फायर ब्रेक बनाना: फायर ब्रेक वे क्षेत्र हैं जहाँ वनस्पति को हटाकर एक अंतराल बनाया जाता है जिससे आग के प्रसार को रोका या धीमा किया जा सकता है।
  • वनों की निगरानी और प्रबंधन: वनों की निगरानी और उनका उचित प्रबंधन करने से आग लगने या फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है।
  • वनाग्नि का शीघ्र पता लगाना और त्वरित प्रतिक्रिया: प्रभावी शमन के लिये वनाग्नि का शीघ्र पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण करने और रोकथाम को बढ़ावा देने के लिये उपग्रह इमेजिंग तकनीक (जैसे MODIS) का उपयोग कर रहा है।
  • ईंधन प्रबंधन: चयनात्मक कटाई (Selective Logging) जैसी गतिविधियों के माध्यम से सूखे वृक्षों, सूखी वनस्पतियों और अन्य दहनशील सामग्रियों के संचय को कम करना।
  • सुरक्षात्मक उपाय: वनों के निकट के क्षेत्रों में सुरक्षित पद्धतियाँ अपनाई जानी चाहिये। कारखानों, कोयला खदानों, तेल भंडारों, रासायनिक संयंत्रों और यहाँ तक कि घरेलू रसोई में भी।
  • नियंत्रित रूप से आग जलाने का अभ्यास करना: इस प्रक्रिया में नियंत्रित वातावरण में सीमित रूप से आग लगाना शामिल है।

निष्कर्ष:

  • हवाई में विनाशकारी वनाग्नि, विशेष रूप से माउई द्वीप पर जलवायु-संबंधित कारकों, ऐतिहासिक भूमि उपयोग परिवर्तनों और आपातकालीन स्थिति में प्रतिक्रिया देने को लेकर विचारों के संयोजन का परिणाम है।
  • यह आग जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व में वनाग्नि की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता के व्यापक मुद्दे को रेखांकित करती है।
  • सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थलों का विनाश त्रासदी को और बढ़ाता है, क्योंकि ऐतिहासिक एवं पैतृक सह-संबंधों की हानि प्रभावित समुदायों पर गहराई से असर डालती है।

स्रोत : द हिंदू


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