डेली न्यूज़ (16 Jul, 2022)



ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2022

Global-Gender-Gap-Index-2022


निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण मॉडल

प्रिलिम्स के लिये:

निवेश मॉडल, NHAI, सार्वजनिक-निजी भागीदारी

मेन्स के लिये:

निवेश के विभिन्न मॉडल, सार्वजनिक-निजी भागीदारी का महत्त्व और चुनौतियांँ, बुनियादी ढांँचे के निर्माण में निवेश मॉडल की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने वर्ष 2022 की तीसरी तिमाही के दौरान सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण (Build-Operate-Transfer) मॉडल का उपयोग करके निजी साझेदारों को कम-से-कम दो राजमार्ग उन्नयन परियोजनाओं की पेशकश करने की योजना बनाई है।

निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण (BOT) मॉडल:

  • परिचय:
    • BOT मॉडल के तहत एक निजी साझेदार को निर्दिष्ट अवधि (20 या 30 वर्ष की रियायत अवधि) के लिये एक परियोजना के वित्तीयन, निर्माण और संचालन के लिये रियायत दी जाती है, जिसमें निजी साझेदार उपयोगकर्त्ता शुल्क या सुविधा का उपयोग करने वाले ग्राहकों से टोल के माध्यम से निवेश की भरपाई करता है और इस प्रकार एक निश्चित मात्रा में वित्तीय जोखिम उठाता है।
    • BOT एक निजी-सार्वजनिक भागीदारी (Public Private Partnership) मॉडल है जिसके अंतर्गत निजी साझेदार पर अनुबंधित अवधि के दौरान ढांँचागत परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण एवं परिचालन की पूरी ज़िम्मेदारी होती है।
      • निजी क्षेत्र के भागीदार को परियोजना के लिये वित्तीयन के साथ ही इसके निर्माण और रखखाव की ज़िम्मेदारी लेनी होती है।
    • सरकार ने रियायत अवधि के दौरान पूर्व के प्रति 10 वर्ष की जगह अब प्रति 5 वर्ष पर परियोजना की राजस्व क्षमता का आकलन करने का निर्णय लिया है।
      • इसका अर्थ होगा कि निजी कंपनी के लिये राजस्व की निश्चितता सुनिश्चित करने हेतु रियायत अवधि (या अवधि जब तक सड़क डेवलपर्स टोल एकत्र कर सकते हैं) को अनुबंध अवधि पूर्ण होने से पूर्व बढ़ाया जा सकेगा।
  • कार्य प्रक्रिया:
    • निर्माण:
      • इसके अंतर्गत निजी कंपनी (या संघ) सार्वजनिक बुनियादी ढांँचा परियोजना में निवेश करने के लिये सरकार से सहमत होने पर परियोजना के निर्माण के लिये वित्तपोषण करती है।
    • परिचालन:
      • इसके अंतर्गत निजी साझेदार एक सहमत रियायत अवधि के लिये सुविधा का संचालन, रखरखाव और प्रबंधन करता है तथा शुल्क या टोल के माध्यम से अपने निवेश की वसूली करता है।
    • हस्तांतरण:
      • इसके अंतर्गत रियायती अवधि के बाद कंपनी सरकार या संबंधित राज्य प्राधिकरण को सुविधा के स्वामित्व और संचालन का हस्तांतरण करती है।

BOT मॉडल का महत्त्व और चुनौतियाँं :

  • लाभ:
    • परियोजना के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये वित्त जुटाने और सर्वोत्तम प्रबंधन कौशल का उपयोग करने में सरकार को निजी क्षेत्र का लाभ मिलता है।
    • निजी भागीदारी भी सर्वोत्तम उपकरणों का उपयोग करके दक्षता और गुणवत्ता सुनिश्चित करती है
    • BOT उद्यमों को प्रदर्शन-आधारित अनुबंधों और निर्गत-उन्मुख लक्ष्यों के माध्यम से दक्षता में सुधार करने के लिये तंत्र और प्रोत्त्साहन प्रदान करता है।
    • परियोजनाएँ पूरी तरह से प्रतिस्पर्द्धी बोली की स्थिति में संचालित की जाती हैं और इस प्रकार न्यूनतम संभव लागत पर पूरी की जाती हैं।
    • परियोजना के जोखिम निजी क्षेत्र द्वारा साझा किये जाते हैं।
  • चुनौतियाँं:
    • वित्तपोषण के इक्विटी हिस्से में लाभ का घटक निहित है, जो ऋण लागत से अधिक होता है। यह वह कीमत है जो निजी क्षेत्र को जोखिम से निपटने के लिये चुकाई जाती है।
    • BOT वित्तपोषण समझौते को तैयार करने और समाप्त करने में काफी समय एवं अग्रिम खर्च करना पड़ सकता है क्योंकि इसमें कई संस्थाएँ शामिल होती हैं और इसके लिये अपेक्षाकृत जटिल कानूनी तथा संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता होती है। ऐसें में छोटी परियोजनाओं के लिये BOT उपयुक्त नहीं है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक संस्थागत क्षमता विकसित करने में समय लग सकता है कि BOT के पूर्ण लाभ प्राप्त हों, जैसे कि पारदर्शी और निष्पक्ष बोली और मूल्यांकन प्रक्रियाओं का विकास तथा प्रवर्तन एवं कार्यान्वयन के दौरान संभावित विवादों का समाधान।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):

  • परिचय:
    • PPP सार्वजनिक संपत्ति और/या सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान के लिये सरकारी एवं निजी क्षेत्र के बीच एक व्यवस्था है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी बड़े पैमाने पर सरकारी परियोजनाओं, जैसे- सड़कों, पुलों और अस्पतालों को निजी वित्तपोषण के साथ पूरा करने की अनुमति देती है।
    • इस प्रकार की साझेदारी में निजी क्षेत्र की संस्था द्वारा एक निर्दिष्ट अवधि के लिये निवेश किया जाता है।
    • समय पर एवं बजट के भीतर काम पूरा करने के लिये निजी क्षेत्र की प्रौद्योगिकी और नवाचार के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के प्रोत्साहन के संयोजन से इस साझेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • चूँकि PPP में सेवाएँ प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा ज़िम्मेदारी का पूर्ण प्रतिधारण शामिल है, इसलिये यह निजीकरण के समान नहीं है।
    • इसमें निजी क्षेत्र और सार्वजनिक इकाई के बीच जोखिम का सुपरिभाषित आवंटन शामिल है।
  • चुनौतियाँं:
    • PPP परियोजनाओं के समक्ष मौजूदा अनुबंधों में विवाद, पूंजी की अनुपलब्धता और भूमि अधिग्रहण से संबंधित नियामक बाधाएँ जैसे मुद्दे मौजूद हैं।
    • मेट्रो परियोजनाएँ क्रोनी कैपिटलिज़्म से ग्रसित हो जाती हैं और निजी कंपनियों द्वारा भूमि एकत्रण करने का एक साधन बन जाती हैं।
    • माना जाता है कि बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करने में भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्ति पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
    • PPP में फर्म कम राजस्व या लागत में वृद्धि जैसे कारणों का हवाला देकर अनुबंधों पर फिर से बातचीत करने के लिये हर अवसर का उपयोग करती है।
    • बार-बार होने वाली बातचीत के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा इसमें समाप्त हो जाता है।

PPP के कुछ अन्य मॉडल:

  • इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC):
    • इस मॉडल के तहत लागत पूरी तरह से सरकार द्वारा वहन की जाती है। सरकार निजी कंपनियों से इंजीनियरिंग कार्य के लिये बोलियाँ आमंत्रित करती है। कच्चे माल की खरीद और निर्माण लागत सरकार द्वारा वहन की जाती है।
  • हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल (HAM):
    • भारत में नया HAM BOT-एन्युइटी और EPC मॉडल का मिश्रण है। डिज़ाइन के अनुसार, सरकार वार्षिक भुगतान के माध्यम से पहले पाँच वर्षों में परियोजना लागत का 40% योगदान देगी। शेष भुगतान सृजित परिसंपत्तियों और विकासकर्त्ता के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO):
    • इस मॉडल में नवनिर्मित सुविधा का स्वामित्व निजी पार्टी के पास रहेगा।
    • पारस्परिक रूप से नियमों और शर्तों पर सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की 'खरीद' करने पर सहमति बनाई जाती है।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT):
    • BOOT के इस प्रकार में समय पर बातचीत के बाद परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
    • BOOT मॉडल का उपयोग राजमार्गों और बंदरगाहों के विकास के लिये किया जाता है।
  • बिल्ड-ओन-लीज़-ट्रांसफर (BOLT):
    • इस मॉडल में सरकार निजी साझेदार को सार्वजनिक हित की सुविधाओं के निर्माण हेतु कुछ रियायतें देती है, साथ ही इसके डिज़ाइन, स्वामित्त्व, सार्वजनिक क्षेत्र के पट्टे का अधिकार भी देती है।
  • डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO):
    • इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिज़ाइन, उसके विनिर्माण, वित्त और परिचालन का उत्तरदायित्त्व निजी साझीदार पर होता है। 
  • लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO):
    • इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व बरकरार रहता है और निजी प्रमोटर के साथ लीज़ समझौते के रूप में भुगतान प्राप्त किया जाता है। इसका पालन अधिकतर एयरपोर्ट सुविधाओं के विकास में किया जाता है।

भारत में बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के लिये पहल:

  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन
    • NIP बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर आगे के दृष्टिकोण को सुनिश्चित करेगा जो रोज़गार सृजन, जीवनयापन में सुधार और सभी के लिये बुनियादी ढाँचे तक समान पहुँच की सुविधा प्रदान करेगा जिससे अधिक समावेशी विकास होगा।
    • इसमें ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड दोनों परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन:
    • इसका उद्देश्य ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में निजी क्षेत्र को शामिल करना और उन्हें राजस्व अधिकार हस्तांतरित करना है, हालाँकि इसके तहत परियोजनाओं के स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं किया जाएगा, साथ ही इसके माध्यम से उत्पन्न पूंजी का उपयोग देश भर में बुनियादी अवसंरचनाओं के निर्माण के लिये किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक:
    • इसमें पूरी तरह से या आंशिक रूप से भारत में अवस्थित अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उधार देना, निवेश करना या निवेश को आकर्षित करना शामिल है।
    • इसमें अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये बॉण्ड, ऋण और व्युत्पन्नों (डेरिवेटिव्स) के बाज़ार के विकास में मदद करना शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), ज़ीरो प्रीमियम, सब्सिडी, फसल बीमा

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2019-20 में फसल बीमा योजना से बाहर निकलने के बाद आंध्र प्रदेश सरकार हाल ही में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में फिर से शामिल हो गई है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY):

  • परिचय:
    • PMFBY को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया तथा इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
    • इसने राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) को परिवर्तित कर दिया।
  • पात्रता:
    • अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसल उगाने वाले पट्टेदार/जोतदार किसानों सहित सभी किसान कवरेज के लिये पात्र हैं।
  • उद्देश्य:
    • प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और रोगों या किसी भी तरह से फसल के खराब होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करना ताकि किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिल सके।
    • खेती में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये किसानों की आय को स्थिर करना।
    • किसानों को नवीन और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
    • कृषि क्षेत्र के लिये ऋण का प्रवाह सुनिश्चित करना।
  • बीमा किस्त:
    • इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/प्रीमियम- खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है।
    • वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है।
    • किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली प्रीमियम दरें बहुत कम हैं और प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल के नुकसान के खिलाफ किसानों को पूरी बीमा राशि प्रदान करने के लिये शेष प्रीमियम का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा।
    • सरकारी सब्सिडी की कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि शेष प्रीमियम 90% है, तो भी वह सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
      • इससे पहले प्रीमियम दर को सीमित करने का प्रावधान था जिसके परिणामस्वरूप किसानों को दावों का कम भुगतान किया जाता था।
      • यह कैपिंग प्रीमियम सब्सिडी पर सरकार के खर्च को सीमित करने के लिये किया गया था।
      • इस सीमा को अब हटा दिया गया है और किसानों को बिना किसी कटौती के पूरी बीमा राशि ।
  • PMFBY के तहत तकनीक का प्रयोग:
    • फसल बीमा एप:
      • यह किसानों को आसान नामांकन की सुविधा प्रदान करता है।
      • किसी भी घटना के घटित होने के 72 घंटों के भीतर फसल के नुकसान की आसान रिपोर्टिंग की सुविधा।
    • नवीनतम तकनीकी उपकरण: फसल के नुकसान का आकलन करने के लिये सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट-सेंसिंग तकनीक, ड्रोन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाता है।
    • PMFBY पोर्टल: भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण के लिये PMFBY पोर्टल की शुरुआत की गई है।
  • हाल ही में हुए बदलाव:
    • यह योजना पहले ऋणी किसानों के लिये अनिवार्य थी, लेकिन वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने इसे सभी किसानों के लिये वैकल्पिक बना दिया है।
      • पहले बिमांकित प्रीमियम दर और किसान द्वारा देय बीमा प्रीमियम दर के बीच के अंतर सहित औसत प्रीमियम सब्सिडी की दर राज्य तथा केंद्र द्वारा साझा की जाती थी एवं राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने बजट से औसत सब्सिडी के अलावा अतिरिक्त सब्सिडी का विस्तार करने के लिये स्वतंत्र थे।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना के तहत गैर-सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये बीमा किस्त की दरों पर केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 25% तक सीमित करने का निर्णय लिया है। पहले, केंद्रीय सब्सिडी की कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं थी।

PM-Fasal-Bima-Yojana

PMFBY से संबंधित मुद्दे:

  • राज्यों की वित्तीय बाधाएँ: राज्य सरकारों की वित्तीय बाधाएँ और सामान्य मौसम के दौरान कम दावा अनुपात इन राज्यों द्वारा योजना को लागू न करने के प्रमुख कारण हैं।
    • राज्य ऐसी स्थिति से निपटने में असमर्थ हैं जहाँ बीमा कंपनियाँ किसानों को राज्यों और केंद्र से एकत्र किये गए प्रीमियम दर से कम मुआवज़ा देती हैं।
    • राज्य सरकारें समय पर धनराशि जारी करने में विफल रही हैं जिसके कारण बीमा क्षतिपूर्ति जारी करने में देरी हुई है।
    • इससे किसान समुदाय को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
  • दावा निपटान संबंधी मुद्दे: कई किसान मुआवज़े के स्तर और निपटान में देरी दोनों से असंतुष्ट हैं।
    • ऐसे में बीमा कंपनियों की भूमिका और शक्ति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योकि कई मामलों में उन्होंने स्थानीय आपदा के कारण हुए नुकसान की जांँच नहीं की जिस कारण दावों का भुगतान नहीं किया गया।
  • कार्यान्वयन के मुद्दे: बीमा कंपनियों द्वारा उन समूहों के लिये बोली लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है जो फसल के नुकसान से प्रभावित हो सकते हैं।
    • बीमा कंपनियाँ अपनी प्रकृति के अनुसार यह कोशिश करती हैं कि फसल कम खराब हो तो मुनाफा कमाया जाए।

आगे की राह

  • इस योजना से संबंधित सभी लंबित मुद्दों को हल करने के लिये राज्यों और केंद्र सरकार के बीच व्यापक पुनर्विचार की आवश्यकता है ताकि किसानों को इस योजना का लाभ मिल सके।
  • इसके अलावा इस योजना के तहत सब्सिडी का भुगतान करने के बजाय राज्य सरकार को उस पैसे को एक नए बीमा मॉडल में निवेश करना चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजये: (2016))

  1. इस योजना के तहत किसानों को वर्ष के किसी भी मौसम में खेती की जाने वाली किसी भी फसल के लिये दो प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होगा। 
  2. इस योजना में चक्रवातों और बेमौसम बारिश तथा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को शामिल किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई फसल बीमा योजना है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं (चक्रवात और बेमौसम बारिश), कीटों एवं बीमारियों से फसल कटाई से पूर्व त्तथा बाद के नुकसान को शामिल किया गया है। अत: कथन 2 सही है।
  • प्रमुख बिंदु
    • सभी खरीफ फसलों के लिये किसानों द्वारा केवल 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% का एक समान प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
    • वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिये 5% प्रीमियम का भुगतान किया जाना है।
    • किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली प्रीमियम दरें बहुत कम हैं और शेष प्रीमियम का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा।
    • सरकारी सब्सिडी की कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि शेष प्रीमियम 90% है, तो भी वह सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
    • प्रीमियम की सीमा अब हटा दी गई है और किसानों को बिना किसी कटौती के पूरी बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा।
    • प्रौद्योगिकी के उपयोग को काफी हद तक प्रोत्त्साहित किया जाता है। किसानों को दावा भुगतान में देरी को कम करने के लिये फसल कटाई के डेटा का एकत्रण और अपलोड करने के लिये स्मार्टफोन का उपयोग किया जाएगा। फसल काटने के प्रयोगों की संख्या को कम करने के लिये रिमोट सेंसिंग का उपयोग किया जाएगा। अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र

प्रिलिम्स के लिये:

ओज़ोन परत, वायुमंडल की परतें, ओज़ोन परत का क्षरण, ग्रीनहाउस गैसें, अच्छा ओज़ोन, खराब ओज़ोन, क्षरण से निपटने हेतु पहल

मेन्स के लिये:

वायुमंडल के मूल तत्त्व, ओज़ोन परत के क्षय के पीछे का विज्ञान, ओज़ोन परत के क्षरण के प्रभाव, संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश  से 30 डिग्री उत्तरी  अक्षांश पर एक नए ओज़ोन छिद्र का पता चला है।

अध्ययन से ज्ञात तथ्य:

  • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र अंटार्कटिक से लगभग सात गुना बड़ा है।
    • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र सभी मौसमों में दिखाई देता है, जबकि अंटार्कटिक पर बना ओज़ोन छिद्र केवल वसंत ऋतु में ही दिखाई देता है।
  • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र, जो पृथ्वी की सतह का 50% हिस्से का निर्माण करता है, इससे जुड़े जोखिमों के कारण वैश्विक चिंता का कारण बन सकता है।
    • इससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र पर अन्य नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।

ओज़ोन परत

  • परिचय:
    • यह ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है जिसका रासायनिक सूत्र O3 है। 
      • हम श्वास के लिये जिस ऑक्सीजन को ग्रहण करते हैं और जो पृथ्वी पर जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, वह O2 है।
    • अधिकांश ओज़ोन पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी. के बीच वायुमंडल में उच्च स्तर पर रहती है। इस क्षेत्र को समताप मंडल (Stratosphere) कहा जाता है और वायुमंडल में पाई जाने वाली समग्र ओज़ोन का लगभग 90% हिस्सा यहाँ पाया जाता है।
  • वर्गीकरण:
    • गुड ओज़ोन:
      • ओज़ोन प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में होती है जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है। यह परत हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
      • मानव निर्मित रसायनों जिन्हें ओज़ोन क्षयकारी पदार्थं (ODS) कहा जाता है, के कारण यह ओज़ोन धीरे-धीरे नष्ट हो रही है। ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
    • बैड ओज़ोन:
      • ज़मीनी स्तर के पास पृथ्वी के निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में ओज़ोन का निर्माण तब होता है जब कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं।
      • सतही स्तर का ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।

Ozone

ओज़ोन परत का क्षरण:

  • परिचय:
    • ओज़ोन परत का क्षरण प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं से परे समताप मंडल की ओज़ोन परत के रासायनिक विनाश को संदर्भित करता है।
    • स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन को प्राकृतिक चक्रों के माध्यम से लगातार बनाया और नष्ट किया जा रहा है।
      • विभिन्न ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (ODS) हालाँकि विनाश प्रक्रिया को तेज़ करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य ओज़ोन स्तर में कमी आती है।
      • ODS में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), ब्रोमीन युक्त हैलोन और मिथाइल ब्रोमाइड, HCFC, कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCl4) तथा मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
      • इन पदार्थों का पहले उपयोग किया जाता था और कभी-कभी अब भी शीतलक, फोमिंग एजेंट, अग्निशामक, सॉल्वैंट्स, कीटनाशकों एवं एरोसोल प्रणोदक में उपयोग किया जाता है।
        • एक बार हवा में छोड़े जाने के बाद इन ओज़ोन-क्षयकारी पधार्थों का बहुत धीरे-धीरे क्षय होता है।
        • वास्तव में जब तक वे समताप मंडल तक नहीं पहुँच जाते, तब तक क्षोभमंडल से गुज़रते हुए वर्षों तक बरकरार रह सकते हैं।
        • वहाँ वे सूर्य की UV-किरणों की तीव्रता से टूट जाते हैं और क्लोरीन एवं ब्रोमीन अणु छोड़ते हैं, जो समताप मंडल के ओज़ोन को नष्ट कर देते हैं।
  • क्षरण का प्रभाव:
    • मानव स्वास्थ्य पर:
      • यह UV किरण की मात्रा को बढ़ाता है जो पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है।
        • UV गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर का कारण बनता है और घातक मेलेनोमा विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है।
        • इसके अलावा UV को मोतियाबिंद के विकास से जोड़ा गया है, जो आँखों के लेंस को धुँधला करता है।
    • पौधों पर:
      • UV विकिरण पौधों की भौतिक और विकासात्मक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। इन प्रभावों को कम करने या सुधारने के तंत्र के बावजूद पौधों की वृद्धि सीधे UV विकिरण से प्रभावित हो सकती है।
      • UV के कारण अप्रत्यक्ष परिवर्तन (जैसे पौधे के रूप में परिवर्तन, पौधे के भीतर पोषक तत्त्व कैसे वितरित किये जाते हैं, विकास के चरणों का समय और द्वितीयक चयापचय) UV के हानिकारक प्रभावों की तुलना में समान रूप से या कभी-कभी अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर:
      • फाइटोप्लांकटन जलीय खाद्य जाल शृंखला का निर्माण करते हैं। फाइटोप्लांकटन उत्पादकता यूफोटिक ज़ोन तक सीमित है, जल के ऊपरी सतह जिसमें शुद्ध उत्पादकता के लिये पर्याप्त धूप उपलब्ध होती है।
        • सौर UV विकिरण के संपर्क से फाइटोप्लांकटन में अभिविन्यास और गतिशीलता दोनों को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप इन जीवों के जीवित रहने की दर कम हो गई है।
    • जैव रासायनिक चक्र पर:
      • UV विकिरण में वृद्धि स्थलीय और जलीय जैव-भू-रासायनिक चक्रों को प्रभावित कर सकती है, इस प्रकार ग्रीनहाउस तथा रासायनिक रूप से महत्त्वपूर्ण ट्रेस गैसों (जैसे, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बोनिल सल्फाइड, ओज़ोन और संभवतः अन्य गैसों) में परिवर्तन कर सकती है।
    • पदार्थों पर:
      • सिंथेटिक पॉलिमर, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले बायोपॉलिमर, साथ ही व्यावसायिक हित की कुछ अन्य पदार्थ UV विकिरण से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं।
        • UV स्तरों में वृद्धि उनके टूटने में तेज़ी लाएगी, जिससे उनकी समय अवधि सीमित हो जाएगी जिसके लिये वे उपयोगी हैं।

ओजोन परत संरक्षण हेतु शुरू की गई पहल:

  • वियना कन्वेंशन:
    • ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता था जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समताप मंडल की ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिये मौलिक महत्त्व को मान्यता दी थी।
    • भारत 18 मार्च, 1991 को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन का एक पक्षकार बना।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:
    • ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर वर्ष 1987 मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में तथा इसके सफल संशोधनों को बाद में मानवजनित (ODS) और कुछ हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) की खपत एवं उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये बातचीत की गई थी।
    • भारत 19 जून, 1992 को ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार बना।
  • किगाली संशोधन:
    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन, 2016 को अपनाने से कुछ HFCs के उत्पादन और खपत में कमी आएगी तथा अनुमानित वैश्विक वृद्धि एवं संबंधित जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकेगा।
  • यूरोपीय संघ विनियमन:
    • ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों पर यूरोपीय संघ का कानून विश्व में सबसे सख्त और सबसे उन्नत कानूनों में से एक है। नियमों की एक शृंखला के माध्यम से यूरोपीय संघ ने न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू किया है, बल्कि आवश्यकता से अधिक खतरनाक पदार्थों को तेज़ी से नष्ट कर दिया है।
    • यूरोपीय संघ ओज़ोन विनियमन ओज़ोन- अवक्षय पदार्थों के सभी निर्यात और आयात हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को निर्धारित करता है तथा न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (90 से अधिक रसायनों) द्वारा कवर किये गए पदार्थों बल्कि कुछ ऐसे पदार्थ जो कवर नहीं किये गए हैं (पाँच अतिरिक्त रसायन जिन्हें 'नए पदार्थ' कहा जाता है), को भी नियंत्रित व मॉनिटर करता है।
  • गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में हाइड्रोकार्बन के सुरक्षित उपयोग हेतु भारत के नियम:
    • आइसोब्यूटेन और साइक्लोपेंटेन सहित हाइड्रोकार्बन एरोसोल, फोम-ब्लोइंग तथा प्रशीतन (Refrigeration) क्षेत्रों में उपयोग के लिये गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में उपलब्ध हैं।
    • हाइड्रोकार्बन का सुरक्षित उपयोग भारत में पेट्रोलियम कानूनों द्वारा विनियमित किया जाता है।
      • पेट्रोलियम अधिनियम, 1934 और पेट्रोलियम नियम, 1976 विभिन्न प्रकार के पेट्रोलियम उत्पादों के संचालन से संबंधित हैं।
      • यह हाइड्रोकार्बन के प्रबंधन हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को भी निर्दिष्ट करता है।
      • गैस सिलेंडर नियम, 1981, सिलेंडर भरने, रखने, आयात और परिवहन को संबोधित करता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओजोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण करने और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने (फेजिंग आउट) के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b)

  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1944 तक 44 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मलेन में शामिल हुए थे। इसका तात्कालिक उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध एवं विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।
  • सम्मेलन की दो प्रमुख उपलब्धियाँ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD) की स्थापना थीं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन को कम करने वाले पदार्थों के उपयोग को समाप्त करके पृथ्वी की ओज़ोन परत की रक्षा के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौता है। 15 सितंबर, 1987 को अपनाया गया यह प्रोटोकॉल आज तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर हर देश द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • क्योटो प्रोटोकॉल UNFCCC से जुड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी GHG (ग्रीनहाउस गैसों) उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित करके पार्टियों के लिये प्रतिबद्धता सुनिश्चित करता है।
    • क्योटो प्रोटोकॉल 11 दिसंबर, 1997 को क्योटो, जापान में अपनाया गया और 16 फरवरी, 2005 से प्रभाव में आया।
    • प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत नियमों को 2001 में माराकेश (Marrakesh), मोरक्को में CoP7 के रूप में अपनाया गया था और इसे माराकेश समझौते के रूप में संदर्भित किया गया था।
    • भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (2008-2012) की पुष्टि की है, जो देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिये प्रतिबद्ध करता है और जलवायु कार्रवाई पर अपने रुख की पुष्टि करता है।
  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच पर नागोया प्रोटोकॉल और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण जैविक विविधता पर कन्वेंशन के तीन उद्देश्यों में से एक के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु एक पारदर्शी कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। साथ ही जैविक विविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित तथा न्यायसंगत बँटवारे का प्रावधान करता है। भारत ने 2011 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA)

प्रिलिम्स के लिये:

CAATSA, S-400 मिसाइल प्रणाली

मेन्स के लिये:

भारत के लिये CAATSA छूट के निहितार्थ, अमेरिका-भारत संबंध, रूस-भारत संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव ने नेशनल डिफेंस ऑथराइज़ेशन एक्ट (NDAA) में संशोधन को मंज़ूरी दी है, जिसमें काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत भारत को प्रतिबंधों के दायरे से बाहर रखने का प्रस्ताव किया गया है।

  • यह भारत को स्वतंत्र रूप से अमेरिकी प्रतिबंधों के भय के बिना रूस की S-400 मिसाइल प्रणाल को खरीदने की अनुमति देगा।
  • नेशनल डिफेंस ऑथराइज़ेशन (NDAA) कानून है जिसे कॉन्ग्रेस प्रत्येक वर्ष संयुक्त राज्य की रक्षा एजेंसियों की नीतियों और संगठन में बदलाव करने के लिये पारित करती है तथा इस पर मार्गदर्शन प्रदान करती है कि सैन्य क्षेत्र को आवंटित राशि को कैसे खर्च किया जा सकता है।

प्रस्तावित संशोधन:

  • संशोधन अमेरिकी प्रशासन से आग्रह करता है कि वह चीन जैसे हमलावरों को रोकने में मदद करने हेतु भारत को काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत छूट प्रदान करने के लिये अपने अधिकार का उपयोग करे।
  • कानून में कहा गया है कि महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त राज्य अमेरिका-भारत पहल (ICET) कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, एयरोस्पेस तथा अर्द्धचालक विनिर्माण में नवीनतम प्रगति को संबोधित करने के लिये दोनों देशों में सरकारों, शिक्षाविदों एवं उद्योगों के बीच घनिष्ठ साझेदारी विकसित करने हेतु एक स्वागत योग्य और आवश्यक कदम है।

CAATSA

  • परिचय:
    • अमेरिकी कानून:
      • CAATSA एक अमेरिकी कानून है जिसे वर्ष 2017 में लागू किया गया था तथा इसका मुख्य उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तर कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है।
      • अका शीर्षक II मुख्य रूप से यूक्रेन में इसके सैन्य हस्तक्षेप और वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में इसके कथित हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में इसके तेल और गैस उद्योग, रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र, वित्तीय संस्थानों जैसे रूसी हितों पर प्रतिबंधों से संबंधित है।
      • अधिनियम की धारा 231 अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों के साथ "महत्त्वपूर्ण लेन-देन" में लगे व्यक्तियों पर अधिनियम की धारा 235 में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच प्रतिबंधो को आरोपित  करने का अधिकार देती है।
        • अधिनियम की धारा 231 के भाग के रूप में अमेरिकी विदेश विभाग ने 39 रूसी संस्थाओं को अधिसूचित किया है, जिनके साथ संबंध रखने पर तीसरे पक्ष को प्रतिबंधों के लिये उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
    • प्रतिबंध जो भारत को प्रभावित कर सकते हैं: केवल दो प्रतिबंध ऐसे हैं जो भारत-रूस संबंधों या भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
      • बैंकिंग लेन-देन का निषेध: इनमें से पहला, जिसका भारत-रूस संबंधों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, "बैंकिंग लेन-देन का निषेध" है।
        • इसका परिणाम यह होगा कि भारत के लिये एस-400 सिस्टम की खरीद हेतु रूस को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करने में कठिनाई होगी। यह भारत की स्पेयर पार्ट्स, घटकों, कच्चे माल और अन्य सेवाओं की खरीद को भी प्रभावित करेगा।
        • वर्ष 2020 में तुर्की को S-400 प्रणाली की खरीद के लिये मंज़ूरी प्रदान की गई थी।
      • निर्यात मंज़ूरी:
        • "निर्यात मंज़ूरी " प्रतिबंध के संदर्भ में देखा जाए तो इसमें भारत-अमेरिका सामरिक और रक्षा साझेदारी के पूरी तरह से पटरी से उतरने की आशंका है, क्योंकि यह अमेरिका द्वारा नियंत्रित किसी भी वस्तु के लाइसेंस एवं निर्यात को अस्वीकार कर देगा।
    • छूट मानदंड:
      • अमेरिकी राष्ट्रपति को वर्ष 2018 में ‘केस-बाइ-केस’ आधार पर CAATSA प्रतिबंधों को माफ करने का अधिकार दिया गया।

रूस की S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली:

  • परिचय:
    • यह रूस द्वारा डिज़ाइन किया गया एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (SAM) है।
    • यह दुनिया में सबसे खतरनाक परिचालन हेतु तैनात ‘मॉडर्न लॉन्ग-रेंज एसएएम’ (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ सिस्टम (THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।
    • यह एक मल्टीफंक्शन रडार, ऑटोनॉमस डिटेक्शन एंड टारगेटिंग सिस्टम, एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लॉन्चर और कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को एकीकृत करता है।
    • यह सतही रक्षा के लिये तीन तरह की मिसाइल दागने में सक्षम है।
    • यह प्रणाली 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. की सीमा के भीतर विमान, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
    • यह प्रणाली 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह पर एक साथ निशाना लगा सकती है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • भारत के दृष्टिकोण से चीन भी रूस से रक्षा उपकरण खरीद रहा है। वर्ष 2015 में चीन ने रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। और इसे  जनवरी 2018 में शुरू किया गया था।
    • चीन द्वारा S-400 प्रणाली के अधिग्रहण को इस क्षेत्र में "गेम चेंजर" के रूप में देखा गया है। हालाँकि भारत के खिलाफ इसकी प्रभावशीलता सीमित है।
    • इसका अधिग्रहण दो मोर्चों पर युद्ध में हमलों का मुकाबला करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, यहाँ तक कि इसमें उच्च स्तरीय एफ-35 यूएस लड़ाकू विमान भी शामिल है।

भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर CAATSA छूट:

  • NDAA संशोधन ने अमेरिका से रूस निर्मित हथियारों पर अपनी निर्भरता से भारत की धुरी को दूर करने में सहायता के लिये और कदम उठाने का भी आग्रह किया।
  • यह संशोधन हाल के द्विपक्षीय सामरिक संबंधों की अवधि के अनुरूप है।
    • महत्त्वपूर्ण वर्ष 2008 था और तब से भारत के साथ अमेरिकी रक्षा अनुबंध कम-से-कम 20 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक का है। वर्ष 2008 से पहले की अवधि में यह केवल 500 मिलियन अमेरिकी डाॅलर था।
    • इसके अलावा वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में मान्यता दी। क्वाड और अब I2U2 जैसे समूहों के माध्यम से रणनीतिक संबंधों को भी मज़बूत किया गया है।
  • भारत के लिये रूसी मंचों से दूर जाना उसके सामरिक हित में है।
    • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद चीन पर रूस की निर्भरता काफी बढ़ गई है, एक ऐसी स्थिति जिसमें भविष्य में बदलाव की संभावना नहीं है।
    • पहले से ही रूस के हथियारों के निर्यात के दूसरे सबसे बड़े प्राप्तकर्त्ता के रूप में चीन भारत के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • चीन के साथ भारत के लंबे समय से चले आ रहे सीमा प्रबंधन प्रोटोकॉल को देखते हुए रूसी हथियारों पर निर्भरता नासमझी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस