भारतीय राजनीति
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प्रीलिम्स के लियेभारतीय निर्वाचन आयोग मेन्स के लियेपोस्टल बैलेट की आवश्यकता व महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग ने वैश्विक महामारी COVID-19 के बढ़ते जोखिम को देखते हुए 65 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को पोस्टल बैलेट द्वारा मतदान करने की सुविधा प्रदान कर दी है।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा पूर्व में 80 वर्ष की आयु से अधिक वरिष्ठ नागरिकों व दिव्यांग नागरिकों को पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान करने की सुविधा प्रदान की जा चुकी है।
- कोरोना संकट का असर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। सोशल डिस्टेंसिंग और बूथों पर भीड़ कम करने के लिये चुनाव आयोग ने पोस्टल बैलेट से मतदान की आयु को 80 वर्ष से घटाकर अब 65 वर्ष कर दी है।
- केंद्र सरकार द्वारा निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव को अनुमति देने के बाद अब 65 वर्ष और इससे अधिक आयु वाले मतदाता घर से ही मतदान कर सकेंगे। इससे मतदान केंद्रों पर भीड़ को कम करने में भी मदद मिलेगी।
पोस्टल बैलेट से तात्पर्य
- जो व्यक्ति किसी निर्दिष्ट सेवा में कार्यरत होने के कारण अथवा दिव्यांग या वरिष्ठ नागरिक होने के कारण मतदान केंद्र तक पहुँचने में असमर्थ हैं। उन लोगों को डाकपत्र के माध्यम से मताधिकार का प्रयोग करने की सुविधा देना ही पोस्टल बैलेट कहलाता है।
- भारत निर्वाचन आयोग ‘अनुपस्थित मतदाता’ की सभी श्रेणियों के मतदाताओं के लिये सरल तथा सहज मताधिकार प्रयोग करने की प्रकिया उपलब्ध कराने के लिये प्रतिबद्ध है। इस पहल से इस बात की आश्वस्तता बढ़ी है कि वरिष्ठ नागरिक तथा दिव्यांग व्यक्ति भी अपने मताधिकार का सहज रूप से प्रयोग कर सकेंगे।
प्रवासियों के मताधिकार का मुद्दा
- विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने निर्वाचन आयोग से आग्रह किया है कि पोस्टल बैलेट के माध्यम से मताधिकार करने की सुविधा का विस्तार प्रवासी मज़दूरों तक किया जाए।
- वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, घरेलू प्रवासियों की संख्या तकरीबन 13.9 करोड़ है। यह भारत की श्रमशक्ति का लगभग एक-तिहाई है।
- घरेलू प्रवासी श्रमिक बेहतर कार्य की तलाश में महानगरों की ओर पलायन करते हैं, उनका महानगरों में स्थायी निवास का लक्ष्य नहीं होता है परिणामस्वरूप महानगरों के निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत न होने के कारण वे अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
- जनप्रतिनिधियों को चुनने में प्रवासी श्रमिकों की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है इसलिये इस वर्ग की समस्याओं को किसी भी प्रकार की तवज्जों नहीं मिल पाती है।
- बड़ी संख्या में होने के बावजूद अपने मताधिकार का प्रयोग न कर पाने के कारण प्रवासी श्रमिकों को ‘विस्मृत मतदाता’ की संज्ञा दी गई है।
निर्वाचन आयोग की भूमिका
- वर्तमान में भारतीय पंजीकृत मतदाताओं की संख्या लगभग 91.05 करोड़ है, जो वास्तव में गर्व का विषय है।
- वर्ष 2019 में हुए आम चुनाव में लगभग 67.4 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। निर्वाचन आयोग को अपना ध्यान 29.68 करोड़ उन मतदाताओं पर लगाना चाहिये जिन्होंने पंजीकृत होने के बाद भी अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया।
- राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन सर्वेक्षणों से पता चला है कि लगभग 10 प्रतिशत पंजीकृत मतदाता राजनीति में रुचि की कमी के कारण मतदान करने से बचते हैं।
- लगभग 20 करोड़ मतदाता ऐसे हैं जो मतदान करना चाहते हैं परंतु अनुकूल परिस्थितियाँ न होने के कारण वे मतदान नहीं कर पाते हैं। इनमें घरेलू प्रवासी और अनिवासी भारतीय शामिल हैं।
- वस्तुतः अनिवासी भारतीयों को मताधिकार उपलब्ध कराने के लिये निर्वाचन आयोग ने अधिकृत व्यक्ति (Authorised proxies) के माध्यम से मत देने की व्यवस्था की है।
मतदाता वहनीय सुविधाएँ
- अपने पंजीकृत निर्वाचन क्षेत्र से दूर सेवा दे रहे सरकारी कर्मचारी इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम (Electronically Transmitted Postal Ballot System-ETPBS) के माध्यम से मतदान कर सकते हैं।
- वर्गीकृत सेवा मतदाता (सैन्य कर्मी, केंद्रीय सुरक्षा बल) अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है।
- निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह आधार-लिंक्ड मतदान पहचान पत्र के निर्माण हेतु आवश्यक तकनीकी का परीक्षण कर रहा है। यह मतदाताओं को देश में किसी भी स्थान से डिजिटल माध्यम का प्रयोग करते हुए मतदान करने में सक्षम बनाएगा।
आगे की राह
- भारतीय निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदान योग्य कोई भी व्यक्ति निर्वाचन प्रक्रिया में पीछे न छूट जाए।
- निर्वाचन आयोग को पोस्टल बैलेट की सुविधा में विस्तार करते हुए इसे प्रवासी श्रमिकों तक ले जाना चाहिये।
- COVID-19 संकट ने सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को प्रवासी श्रमिकों तक पहुँचने के लिये विभिन्न पोर्टल व एप स्थापित करने के लिये प्रेरित किया है। निर्वाचन आयोग को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये।
- मतदान को न केवल नागरिक कर्तव्य के रूप में देखा जाना चाहिये, बल्कि नागरिक अधिकार के रूप में भी देखा जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हॉन्गकॉन्ग के विशेष दर्जे की समाप्ति
प्रीलिम्स के लियेहॉन्गकॉन्ग संकट, हॉन्गकॉन्ग की अवस्थिति मेन्स के लियेअमेरिका का हालिया निर्णय और हॉन्गकॉन्ग पर उसका प्रभाव, अमेरिका-चीन संबंध और भारत |
चर्चा में क्यों?
हॉन्गकॉन्ग के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, इसी परिप्रेक्ष्य में हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हॉन्गकॉन्ग के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- इसके साथ ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हॉन्गकॉन्ग स्वायत्तता अधिनियम (Hong Kong Autonomy Act) पर भी हस्ताक्षर किये हैं, जो कि उन चीनी अधिकारियों और हॉन्गकॉन्ग पुलिस के अधिकारियों को भी प्रतिबंधित किया जाएगा, जो हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता को नष्ट करने और मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल हैं।।
- इसके अलावा उन बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाए जाएंगे जो प्रतिबंधित लोगों के साथ आर्थिक लेन-देन में शामिल होंगे।
- इस संबंध में घोषणा करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अब हॉन्गकॉन्ग को मुख्य चीन का एक हिस्सा माना जाएगा और उसे किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार नहीं दिया जाएगा और न ही उसे संवेदनशील प्रौद्योगिकियों का निर्यात किया जाएगा।
- अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ‘चीन द्वारा इस कानून के माध्यम से हॉन्गकॉन्गवासियों की स्वतंत्रता छीनी जा रही है और उनके मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है।
हॉन्गकॉन्ग के विशेषाधिकार
- वर्ष 1842 में चीन राजवंश के प्रथम अफीम युद्ध में पराजित होने के बाद चीन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हॉन्गकॉन्ग द्वीप सौंप दिया था, उसके बाद हॉन्गकॉन्ग का (एक अलग भू-भाग) अस्तित्त्व सामने आया।
- लगभग एक शताब्दी तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहने के पश्चात् वर्ष 1997 में यह क्षेत्र चीन को वापस सौंप दिया गया और इसी के साथ ही एक देश दो व्यवस्था (One Nation Two System) की अवधारणा भी सामने आई।
- इस व्यवस्था के अनुसार हॉन्गकॉन्ग को विशेष दर्जा दिया गया अर्थात् हॉन्गकॉन्ग की शासन व्यवस्था चीन के मुख्य क्षेत्र से अलग होनी थी।
- अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर अपनी कूटनीति में हॉन्गकॉन्ग और चीन के बीच अंतर को मान्यता दी, जिसे अमेरिका-हॉन्गकॉन्ग नीति अधिनियम, 1992 के तहत शामिल किया गया।
- तदनुसार, हॉन्गकॉन्ग को अमेरिका के साथ लेन-देन में उन सभी तरजीहों का फायदा मिलता है जो या तो चीन को नहीं मिलता या चीन के लिये प्रतिबंधित है।
- इसमें न्यून व्यापार शुल्क और एक अलग आव्रजन नीति जैसे विषय शामिल हैं।
चीन का पक्ष
- अमेरिका के इस कदम का विरोध करते हुए चीन ने कहा कि अमेरिका का यह हॉन्गकॉन्ग स्वायत्तता अधिनियम स्पष्ट तौर पर हॉन्गकॉन्ग में चीन के कानून को दुर्भावनापूर्ण रूप से बदनाम करने का कार्य कर रहा है।
- चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ‘चीन अपने हितों की रक्षा के लिये आवश्यक प्रतिक्रिया देगा और इस संबंध में आवश्यक पड़ने पर अमेरिका के अधिकारियों और संस्थाओं पर प्रतिबंधों की घोषणा भी करेगा।’
- कड़े शब्दों में अमेरिका का विरोध करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इस कदम को चीन के घरेलू मामले में ‘अमेरिकी हस्तक्षेप’ के रूप में परिभाषित किया है।
इस कदम के निहितार्थ
- हॉन्गकॉन्ग के संबंध में अमेरिका द्वारा चीन के अधिकारियों पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध और अमेरिका के नए कानून को लेकर चीन की धमकी स्पष्ट तौर पर दोनों देशों के संबंधों में पहले से मौजूद तनाव को और अधिक बढ़ाएगी।
- विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के इस कदम के कारण सबसे अधिक नुकसान ‘हॉन्गकॉन्ग’ को झेलना पड़ेगा और इस कदम से चीन के हित काफी सूक्ष्म स्तर पर प्रभावित होंगे।
- हॉन्गकॉन्ग में बीजिंग की कार्रवाई के अलावा डोनल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने, दक्षिण चीन सागर में सैन्य निर्माण, उइगर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार उल्लंघन और कई देशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार अधिशेषों को लेकर भी चीन की आलोचना की।
- हॉन्गकॉन्ग के विशेष दर्जे को रद्द करने के निर्णय से गैर-चीनी कंपनियां हॉन्गकॉन्ग में अपने कार्य को संचालित करने पर विचार करने के लिये बाध्य होंगी।
- गौरतलब है कि अधिकांश पश्चिमी देशों की कंपनियों ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के रूप में हॉन्गकॉन्ग को चुना है, क्योंकि इसके माध्यम से चीन के साथ-साथ जापान, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत जैसे देशों को भी कवर किया जा सकता है।
- अनुमान के अनुसार, हॉन्गकॉन्ग में 1,500 से भी अधिक विदेशी व्यवसायों का एशियाई मुख्यालय स्थित है, जिसमें से 300 अमेरिकी कंपनियाँ हैं, यही कारण है कि यह स्थान काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- यदि कुछ कंपनियाँ भी अपने व्यवसाय को किसी अन्य क्षेत्र पर हस्तांतरित करती हैं, तो इससे हॉन्गकॉन्ग की स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी अधिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- हालाँकि विशेषज्ञों के मतानुसार, अमेरिका के इस निर्णय का चीन की अर्थव्यवस्था पर कुछ खासा प्रभाव नहीं पड़ेगा। गौरतलब है कि जब ब्रिटेन ने एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में हॉन्गकॉन्ग को चीन को दिया था, तब चीन की अर्थव्यवस्था में हॉन्गकॉन्ग की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और हॉन्गकॉन्ग चीन के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 18 प्रतिशत हिस्से का उत्तरदायी था।
- हालाँकि वर्तमान में यह आँकड़ा पूरी तरह से बदल चुका है, चीन ने बीते 25 वर्षों में काफी बड़े पैमाने पर विकास किया है और अब हॉन्गकॉन्ग चीन की अर्थव्यवस्था में केवल 2-3 प्रतिशत का ही योगदान देता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव', आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना, कोहाला परियोजना मेन्स के लिये:‘आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना का भारत के हितों पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पाकिस्तान एवं चीन के मध्य ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ (Pakistan Occupied Kashmir-PoK) के सुधोटी ज़िले (Sudhoti District) में 700 मेगावाट की ‘आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना’ (Azad Pattan Hydel Power Project) के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- झेलम नदी पर स्थित आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना 2.4 अरब डॉलर का एक हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट है।
- इस परियोजना का निर्माण ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (China Pakistan Economic Corridor-CPEC) जो कि चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (Belt and Road Initiative) का हिस्सा है, के अंतर्गत किया जाना है।
- ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ के तहत PoK में निर्मित की जाने वाली यह दूसरी परियोजना है।
- CPEC के तहत पाकिस्तान- चीन में बीच पहली परियोजना ‘कोहाला परियोजना’ (Kohala project) है। 1,100 मेगावाट की ‘कोहाला परियोजना’ को लेकर जून 2020 में पाकिस्तान- चीन के मध्य हस्ताक्षर किये गए थे।
- 2.3 अरब डॉलर की ‘कोहाला परियोजना’, मुजफ्फराबाद के पास झेलम नदी पर विकसित की जाएगी।
- आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना झेलम की पाँच जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है।
- आज़ाद पट्टन से ऊपर की ओर महाल (Mahl), कोहाला (Kohala) और चकोथी हट्टियन (Chakothi Hattian) परियोजनाएँ हैं, जबकि करोट (Karot) परियोजना नीचे की ओर अवस्थित है।
आज़ाद पट्टन हाइडल प्रोजेक्ट के बारे में:
- ईपीसी (Engineer, Procurement and Contract-EPC) समझौते/ कंस्ट्रक्शन के अनुसार, यह परियोजना एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है।
- ‘रन ऑफ द रिवर’ जल-विद्युत परियोजना से तात्पर्य ऐसी परियोजना से है, जिसमें घाटी/वादियों के प्रवाहित जल को बाधित करते हुए जल-विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
- रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना में नदी के मार्ग में बड़े बांध बनाए बनाए बिना ही प्रवाहित जल का उपयोग किया जाता है।
ईपीसी कंस्ट्रक्शन:
- ईपीसी कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में कॉन्ट्रैक्टिंग एग्रीमेंट का एक प्रमुख रूप है।
- इंजीनियरिंग और ठेकेदार परियोजना के डिज़ाइन को पूरा करते हैं तथा परियोजना के लिये आवश्यक सभी उपकरण और सामग्री की खरीद करते हैं।
- इस परियोजना का जलाशय मुस्लिमबाद गाँव के पास आजाद पट्टन पुल से 7 किमी. दूर PoK के सुद्धोटी ज़िले (Sudhnoti district) में स्थित है।
- इस परियोजना को वर्ष 2024 तक पूरा किया जाना प्रस्तावित है।
- इस परियोजना में 90 मीटर ऊंचा बांध का निर्माण किया जाएगा, जिसमें 3.8 वर्ग किमी का जलाशय होगा।
- जून 2016 में PoK सरकार द्वारा ‘निजी पावर इन्फ्रास्ट्रक्चर बोर्ड’ (Private Power Infrastructure Board) के माध्यम से इस परियोजना को मंज़ूरी प्रदान की गई थी -
- यह बिजली परियोजनाओं में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1994 में पाकिस्तान की सरकार द्वारा बनाई गई एकल-खिड़की सुविधा है
- ‘पावर यूनिवर्सल कंपनी लिमिटेड’ पूर्ण रुप से चीन के जियज़ोबा समूह (Gezhouba Group) के स्वामित्त्व एवं नियंत्रण में है।
- जियज़ोबा समूह द्वारा लाराब समूह (Laraib Group) के साथ जो एक पाकिस्तानी अक्षय ऊर्जा विकास समूह है, परियोजना के लिये एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया गया है।
- 30 वर्षों के बाद इस परियोजना को चीन द्वारा पाकिस्तान सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाएगा ।
निष्कर्ष:
वर्तमान समय में चीन- भारत सामरिक एवं आर्थिक हितों को ध्यान में रखा जाए तो पाकिस्तान भारत-चीन विवाद का लाभ अपने आर्थिक एवं सामरिक हितों को पूर्ण करने में कर रहा है। भारत द्वारा PoK क्षेत्र में पाकिस्तान की आर्थिक, सामरिक या किसी भी अन्य प्रकार की गतिविधियों का विरोध हमेशा ही किया गया है।आज़ाद पट्टन जल विद्युत परियोजना भी PoK क्षेत्र में है, जिस पर भारत द्वारा निकट भविष्य में भारत का विरोध देखा जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सक्रिय दवा सामग्री पर TIFAC की सिफारिशें
प्रीलिम्स के लिये:सक्रिय दवा सामग्री, TIFAC, भारत में दवा उद्योग मेन्स के लिये:सक्रिय दवा सामग्री |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन 'प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद' (Technology Information Forecasting and Assessment Council- TIFAC) द्वारा हाल ही में 'सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredients- API): स्थिति, मुद्दे, प्रौद्योगिकी की तत्परता और चुनौतियाँ’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई।
प्रमुख बिंदु:
- यह रिपोर्ट 'पोस्ट COVID-19 पीरियड' में 'आत्मनिर्भर भारत' के निर्माण की दिशा में 'मेक इन इंडिया’ पहल के तहत जारी श्वेत पत्र; 'हस्तक्षेप के मुख्य क्षेत्र’ के तहत सुझाव देने की दिशा में है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और बदलते व्यापार परिदृश्य के मद्देनज़र भारत को API के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है।
‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API):
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में दवा उद्योग:
- कुल आयतन के अनुसार, भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग चीन और इटली के बाद विश्व में तीसरे जबकि मूल्य के संदर्भ में चौदहवें स्थान पर है।
- भारत में 3,000 दवा कंपनियों का मज़बूत नेटवर्क है। वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, 20.03 बिलियन डॉलर के घरेलू टर्नओवर के साथ लगभग 10,500 विनिर्माण इकाइयाँ देश में कार्यरत हैं, जो दुनिया के 200 से अधिक देशों में निर्यात करती हैं।
API उद्योग के साथ समस्या:
- बहुत मज़बूत आधार के बावजूद कम-लाभ होने के कारण घरेलू दवा कंपनियों ने धीरे-धीरे API का उत्पादन बंद कर दिया है और API का आयात करना शुरू कर दिया है, जो दवाओं पर बढ़ते लाभ मार्जिन के कारण एक सस्ता विकल्प था।
- चीन से भारत का API का आयात लगातार बढ़ रहा है, जो वर्तमान में भारत कुल API आयात का लगभग 68% है।
प्रमुख सिफारिशें:
- चीन के साथ बढ़ते API आयात को कम करने तथा देश को दवा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिये ‘प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद’ (TIFAC) ने निम्नलिखित सिफारिश की है:
व्यापक पैमाने पर उत्पादन:
- इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी विकास के मुख्य ध्यान 'व्यापक पैमाने पर उत्पादन' पर केंद्रित करना चाहिये।
- API के संश्लेषण के लिये परिभाषित लक्ष्य के साथ केमिकल इंजीनियरिंग में ‘मिशन मोड परियोजना’ की आवश्यकता है।
- 'मेगा ड्रग मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स' बनाए जाने की आवश्यकता है।
- API के उत्पादन में लागत अनुकूलन के लिये प्रक्रिया चरणों को कम करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
चिरल बिल्डिंग ब्लॉक का उत्पादन:
- चिरल बिल्डिंग ब्लॉक (Chiral Building Blocks) दवाओं के संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाले मूल्यवान मध्यवर्ती होते हैं।
- भारतीय API उद्योग को अधिकतम सफल बनाने के लिये जैव उत्प्रेरकों के माध्यम से चिरल बिल्डिंग ब्लॉक के उत्पादन पर बल देने की आवश्यकता है। क्योंकि अनेक एंटीवायरल दवाओं के उत्पादन में ‘न्यूक्लिक एसिड बिल्डिंग ब्लॉकों’ की आवश्यकता होती है।
अकादमिक-उद्योग संपर्क:
- प्रौद्योगिकी विकास, त्वरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा दवा उद्योग के व्यवसायीकरण के लिये अकादमिक/शिक्षा व्यवस्था और उद्योगों के मध्य बेहतर संपर्क की आवश्यकता है।
सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता:
- कुछ क्षेत्रों जैसे रासायनिक खंडों जैसे स्टेरॉयड, अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लियोसाइड्स आदि में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को सरकारी प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है।
'प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद'
(Technology Information Forecasting and Assessment Council- TIFAC):
- वर्ष 1985 में 'प्रौद्योगिकी नीति कार्यान्वयन समिति' (Technology Policy Implementation Committee- TPIC) की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1986 में कैबिनेट द्वारा TIFAC के गठन को मंज़ूरी दी गई।
- 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में फरवरी, 1988 प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (TIFAC) का गठन किया गया।
- इसका गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में किया गया है।
- यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का आकलन करने और महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में भारत में भविष्य के तकनीकी विकास की दिशा निर्धारित करने में कार्य करता है।
स्रोत: पीआईबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
गैर-व्यक्तिगत डेटा
प्रीलिम्स के लियेव्यक्तिगत डेटा, गैर-व्यक्तिगत डेटा मेन्स के लियेगैर-व्यक्तिगत डेटा का महत्त्व और इसके संरक्षण की चुनौती |
चर्चा में क्यों?
इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की अध्यक्षता में गठित समिति ने सुझाव दिया है कि देश की विभिन्न घरेलू कंपनियों और संस्थाओं को भारत में उत्पन्न होने वाले गैर-व्यक्तिगत डेटा (Non-Personal Data) के दोहन की अनुमति दी जानी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि बीते वर्ष नवंबर माह में सरकार ने उद्योग जगत के विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों और अकादमिक जगत के विशेषज्ञों को मिलाकर एक 9 सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसमें इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन को अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया था।
- इस समिति का मुख्य उद्देश्य भारत में उत्पन्न होने वाले डेटा के संग्रहण से संबंधित नियम कानूनों का खाका (Blueprint) तैयार करना था।
- इस समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में एक नए प्राधिकरण की स्थापना का भी सुझाव दिया है, जिसके पास मुख्य तौर पर भारत में उत्पन्न हुआ गैर-व्यक्तिगत डेटा के उपयोग और दोहन की निगरानी करने से संबंधित अधिकार होंगे।
- फिलहाल समिति की इस मसौदा रिपोर्ट को आम जनता की टिप्पणी और सुझावों के लिये सार्वजनिक मंच पर जारी कर दिया गया है।
गैर-व्यक्तिगत डेटा का अर्थ?
- सरल और बुनियादी रूप में गैर-व्यक्तिगत डेटा किसी भी प्रकार के डेटा का वह समूह होता है, जिसमें व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य कोई भी जानकारी शामिल नहीं होती है।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गैर-व्यक्तिगत डेटा को देखकर अथवा उसका विश्लेषण कर किसी व्यक्ति विशिष्ट की पहचान करना संभव नहीं होता है।
- उदाहरण के लिये किसी खाद्य वितरण सेवा प्रदान करने वाली कंपनी द्वारा मुख्य रूप से व्यक्ति का नाम, आयु, लिंग और अन्य संपर्क (Contact) संबंधी जानकारी मांगी जाती है।
- अब यदि डेटा के इस समूह से नाम और संपर्क संबंधी सूचना हटा दी जाए तो यह गैर-व्यक्तिगत डेटा बन जाएगा और इसके आधार पर किसी व्यक्ति विशिष्ट की पहचान करना संभव नहीं होगा।
- सरकार द्वारा गठित समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में डेटा के स्रोत और इस तथ्य के आधार पर कि डेटा के माध्यम से व्यक्ति विशिष्ट की पहचान की जा सकती है अथवा नहीं, गैर-व्यक्तिगत डेटा को मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभाजित किया है-
- सार्वजनिक गैर-व्यक्तिगत डेटा (Public Non-Personal Data)
- सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत डेटा (Community Non-Personal Data)
- निजी गैर-व्यक्तिगत डेटा (Private Non-Personal Data)
सार्वजनिक गैर-व्यक्तिगत डेटा (Public Non-Personal Data)
- समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा एकत्र किये गए सभी प्रकार के डेटा जैसे कि जनगणना, नगर निगम द्वारा कर रसीद के माध्यम एकत्र डेटा और सभी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित कार्यों के निष्पादन के दौरान एकत्र की गई जानकारी को सार्वजनिक गैर-व्यक्तिगत डेटा की परिभाषा में शामिल किया है।
सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत डेटा (Community Non-Personal Data)
- सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत डेटा के अंतर्गत व्यक्तियों के एक विशिष्ट समूह से संबंधित डेटा को शामिल किया गया है, जैसे- एक ही भौगोलिक स्थिति साझा करने वाले लोगों का डेटा, किसी एक विशिष्ट स्थान पर रहने वाले लोगों का डेटा अथवा एक जैसा रोज़गार करने वाले लोगों का डेटा आदि।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक परिवहन संबंधी सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों, टेलीकॉम कंपनियों, बिजली वितरण कंपनियों आदि द्वारा एकत्र डेटा, सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत डेटा की श्रेणी में आता है।
निजी गैर-व्यक्तिगत डेटा (Private Non-Personal Data)
- अंततः निजी गैर-व्यक्तिगत डेटा की श्रेणी में उस डेटा को शामिल किया गया है, जो कि एक व्यक्ति विशिष्ट के माध्यम से उत्पन्न होता है।
कितना संवेदनशील है गैर-व्यक्तिगत डेटा?
- व्यक्तिगत डेटा के विपरीत, जिसमें किसी व्यक्ति का नाम, आयु, लिंग, यौन अभिविन्यास, बॉयोमीट्रिक्स और अन्य आनुवंशिक विवरण शामिल होते हैं, गैर-व्यक्तिगत डेटा के माध्यम से किसी व्यक्ति विशिष्ट की पहचान करना संभव नहीं होता है।
- हालाँकि, कुछ श्रेणियों में जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित डेटा या रणनीतिक हित जैसे सरकारी प्रयोगशालाओं या अनुसंधान सुविधाओं से संबंधित डेटा, यदि गलत हाथों में लग जाता है और इसका अनुचित ढंग से प्रयोग किया जाता है तो यह भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक हो सकता है।
- इसके अलावा समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी समुदाय के स्वास्थ्य से संबंधित गैर-व्यक्तिगत डेटा का मुक्त प्रवाह भी खतरनाक साबित हो सकता है।
- मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के नुकसान की संभावनाएँ तब और अधिक प्रबल हो जाएंगी जब मूल व्यक्तिगत डेटा संवेदनशील प्रकृति का हो, इसलिये ऐसे संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा से उत्पन्न होने वाले गैर-व्यक्तिगत डेटा को संवेदनशील गैर-व्यक्तिगत डेटा के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिये और इसकी सुरक्षा पर आवश्यक ध्यान दिया जाना चाहिये।
डेटा और इसका महत्त्व
- सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रायः मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन ट्रांसफर और सर्च हिस्ट्री आदि के लिये डेटा शब्द का उपयोग किया जाता है।
- तकनीकी रूप से डेटा को किसी ऐसी जानकारी के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे कंप्यूटर आसानी से पढ़ सके।
- गौरलतब है कि यह जानकारी दस्तावेज़, चित्र, ऑडियो क्लिप, सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या किसी अन्य प्रारूप में हो सकती है।
- वर्तमान समय में व्यक्तिगत जानकारी का यह भंडार मुनाफे का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है और विभिन्न कंपनियाँ अपने उपयोगकर्त्ताओं के अनुभव को सुखद बनाने के उद्देश्य से इसे संग्रहीत कर इसका प्रयोग कर रही हैं।
- सरकार एवं राजनीतिक दल भी नीति निर्माण एवं चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिये सूचनाओं के भंडार का उपयोग करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में डेटा का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
गैर-व्यक्तिगत डेटा से संबंधित वैश्विक मानक
- मई 2019 में यूरोपीय संघ (European Union-EU) ने गैर-व्यक्तिगत डेटा के मुक्त प्रवाह के लिये एक विनियमन ढाँचा प्रस्तुत किया था, जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि डेटा साझाकरण के मुद्दे पर संघ के अभी सदस्य देश एक-दूसरे का सहयोग करेंगे।
- हालाँकि यूरोपीय संघ (EU) के इस विनियमन में गैर-व्यक्तिगत डेटा को स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया था, इस विनियमन में केवल इतना कहा गया था कि वह डेटा जो व्यक्तिगत डेटा नहीं है, वह गैर-व्यक्तिगत डेटा में शामिल है।
- इसके अलावा दुनिया के विभिन्न देश ऐसे हैं, जिनमें न तो व्यक्तिगत और न ही गैर-व्यक्तिगत डेटा के लिये कोई राष्ट्रव्यापी डेटा संरक्षण कानून बनाया गया है।
समिति द्वारा प्रस्तुत मसौदा रिपोर्ट में निहित समस्याएँ
- विशेषज्ञों के अनुसार, गैर-व्यक्तिगत डेटा के संरक्षण से संबंधित इस मसौदा रिपोर्ट में ऐसे डेटा की शक्ति, भूमिका और उपयोग की पहचान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है, हालाँकि इस मसौदा रिपोर्ट में कई बिंदु ऐसे हैं, जिन्हें और अधिक स्पष्ट किया जा सकता था।
- इस मसौदा रिपोर्ट में सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत डेटा के संबंध में चर्चा करते हुए सामुदायिक अधिकारियों के मुद्दे को और सही ढंग से संबोधित किया जा सकता था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जुलाई, 2020
विश्व सर्प दिवस
विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 16 जुलाई को विश्व सर्प दिवस (World Snake Day) के रूप में मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर विश्व सर्प दिवस का आयोजन मुख्यतः विश्व भर में पाए जाने वाले सांपों की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। विश्व सर्प दिवस के अवसर पर आम लोगों को इन सरीसृपों और विश्व में इनके योगदान को जानने के लिये प्रेरित किया जाता है। गौरतलब है कि सांप विश्व में मौजूद सबसे पुराने जीवों में से एक माना जाता है और विश्व की अधिकांश सभ्यताओं में इसका उल्लेख देखने को मिलता है। गौरतलब है कि विश्व में सांप की ढेर सारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि सांप की केवल कुछ ही प्रजातियाँ है जिनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता होती है। सांप को काफी तीव्र शिकार करने वाले जीव के रूप में जाना जाता है, जिससे यह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सांप अपनी विविधता और अपनी बनावट के कारण भी काफी आकर्षक होते हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में सांप पाए जाते हैं, ये समुद्र, जंगल, रेगिस्तान और कभी-कभी हमारे निवास स्थानों पर भी देखने को मिलते हैं। वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, और कई अन्य कारकों के कारण सांपों के प्राकृतिक आवास खत्म होते जा रहे हैं, ऐसे में उन्हें जबरन मानवीय स्थानों पर आने के लिये प्रेरित किया जा रहा है। आवश्यक है कि सामूहिक रूप से सांपों के संरक्षण के लिये प्रयास किये जाएँ।
अशोक लवासा
भारत के मौजूदा चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank-ADB) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। अशोक लवासा एशियाई विकास बैंक (ADB) के मौजूदा उपाध्यक्ष दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे, जो कि 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं। हालाँकि अशोक लवासा ने अभी तक चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा नहीं दिया है, उन्हें कुल 3 वर्षों के लिये ADB के उपाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया है। अशोक लवासा 1980 बैच के हरियाणा कैडर के IAS अधिकारी हैं और वे 31 अक्तूबर, 2017 को केंद्रीय वित्त मंत्रालय में वित्त सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्त होने के पश्चात् अशोक लवासा ने 23 जनवरी, 2018 को भारत के चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला था, और उनका कार्यकाल वर्ष 2022 तक चलने वाला था। इससे पहले वर्ष 1973 में मुख्य चुनाव आयुक्त नगेन्द्र सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि उन्हें हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। एशियाई विकास बैंक (ADB) एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसकी स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को हुई थी। ADB का मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है। वर्तमान में ADB में 68 सदस्य हैं, जिनमें से 49 एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हैं।
भारत में निवेश करेगा गूगल
दिग्गज प्रौद्योगिकी कंपनी गूगल के CEO सुंदर पिचाई (Sundar Pichai) ने भारत में डिजिटल परिवर्तन लाने और ऑनलाइन शिक्षा तथा छोटे व्यवसायों/स्टार्टअप्स का समर्थन करने के लिये आगामी 5-7 वर्षों में भारत में लगभग 10 बिलियन डॉलर अर्थात 75000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की है। गूगल के अनुसार, 10 बिलियन डॉलर का यह निवेश मुख्य तौर पर भारत में इंटरनेट तक आसान पहुँच सुनिश्चित करने, प्रत्येक भारतीय को अपनी भाषा में जानकारी प्रदान करने; उपभोक्ता तकनीक, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में नए उत्पादों और सेवाओं का निर्माण करने; डिजिटल रूप से परिवर्तन करने के लिये व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम व्यवसायों को सशक्त बनाने; डिजिटल साक्षरता के लिये प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का लाभ उठाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के उद्देश्य से उपयोग किया जाएगा। इससे पूर्व भी गूगल ने विभिन्न माध्यमों से भारत में कई स्टार्टअप्स और उपक्रमों में निवेश किया है। गौरतलब है कि 1 जनवरी, 2010 और 13 जुलाई, 2020 के बीच गूगल ने वैश्विक स्तर पर 900 से अधिक कंपनियों में निवेश किया है।
एनाबिन डेटाबेस
जर्मनी ने भारत के सभी राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थानों (National Institute of Design-NID) को एनाबिन डेटाबेस (Anabin Database) में शामिल कर लिया है, जिसका अर्थ है कि अब राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (NID) के विद्यार्थी जर्मनी में वर्क परमिट के लिये आसानी से आवेदन कर सकेंगे। गौरतलब है कि जर्मनी ने विदेशी शिक्षा के लिये एक केंद्रीय कार्यालय खोला है, जो जर्मनी में विदेशी योग्यता का मूल्यांकन करने के लिये एकमात्र प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है। इस प्राधिकरण ने अपने कार्य के लिये एनाबिन (Anabin) नामक एक डेटाबेस तैयार किया है जो जर्मन डिप्लोमा और डिग्री के संबंध में विदेशी डिग्रियों और उच्च शिक्षा योग्यताओं को सूचीबद्ध करता है। जर्मनी में विदेशी विश्वविद्यालय-स्तर की योग्यता की पहचान अक्सर जर्मन वर्क वीज़ा, जॉब सीकर्स वीज़ा या जर्मन ब्लू कार्ड हासिल करने के लिये एक आवश्यक शर्त होती है। वीज़ा आवेदन की सफलता अक्सर इस प्रमाण पर निर्भर करती है कि जर्मनी के बाहर अर्जित विश्वविद्यालय-स्तरीय योग्यता को समकक्ष जर्मन की किस डिप्लोमा अथवा डिग्री के बराबर माना जाता है। भारत में कुल पाँच NID हैं, जिसमें NID अहमदाबाद, NID आंध्र प्रदेश, NID हरियाणा, NID असम और NID मध्य प्रदेश शामिल हैं। गौरतलब है कि NID अहमदाबाद को वर्ष 2015 में एनाबिन डेटाबेस में शामिल किया गया था और शेष चार NIDs को अब डेटाबेस में शामिल कर लिया गया है।