डेली न्यूज़ (16 Apr, 2020)



नगरीय-ग्रामीण अंतराल में कमी के लिये 'सिलेज' संबंधी विचार

प्रीलिम्स के लिये:

‘सिलेज' की अवधारणा

मेन्स के लिये:

ज्ञान आधारित तकनीक तथा नगरीय-ग्रामीण अंतर

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 के प्रसार को रोकने के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रवास की विपरीत धारा (Reverse Migration: सामान्य प्रवास के ठीक विपरीत स्थिति) देखने को मिली।

मुख्य बिंदु:

  • विपरीत प्रवास के दौरान जहाँ कई लोगों को अपना व्यवसाय छोड़ना पड़ा वहीं इसके विपरीत अनेक लोग ज्ञान-युग की तकनीकों (Knowledge-era Technologies) के माध्यम से घर से कार्य (Work From Home) जारी रखने में सक्षम हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों में प्रवास को रोकने के लिये नगर तथा ग्रामों के बीच ‘ज्ञान आधारित सेतु’ (Knowledge Bridge) का निर्माण किया जाना चाहिये। 

नगरीय प्रवास का ग्रामीण क्षेत्रों पर प्रभाव:

  • बेहतर अवसरों का अभाव:
    • नगरीय क्षेत्रों में प्रवास, नगर में उपलब्ध बेहतर अवसरों का एक स्वाभाविक परिणाम है, परंतु इस प्रवास के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन में बहुत अधिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई है। 
  • संसाधनों का केंद्रीकरण:
    संसाधनों के केंद्रीकरण के पीछे कई कारक हैं-
    • औद्योगिक युग की गतिशीलता, जिसने बड़े पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा देकर संसाधनों के संकेंद्रण को बढ़ाया है।
    • नगरीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा केंद्रों में लगातार वृद्धि होने कारण केवल नगरीय क्षेत्रों में ही अच्छी नौकरियों में वृद्धि हुई है।
  • जनसांख्यिकी लाभांश आधारित विकास: 
    • भारत में आर्थिक विकास मुख्यत: जनसांख्यिकीय लाभांश तथा भारतीय बाज़ार के बड़े आकार के कारण देखने को मिला है जबकि अनेक देशों में आर्थिक विकास मुख्यत: प्रौद्योगिकी के आधार पर हुआ है।
  • नीति निर्माण में ग्रामीण क्षेत्रों की अवहेलना:
    • दुग्ध उत्पादन की दिशा में आनंद डेयरी तथा चीनी सहकारी समितियों का निर्माण जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो आर्थिक विकास प्रक्रियाओं में हमेशा ग्रामीण क्षेत्रों  की अवहेलना की गई है।

ज्ञान आधारित तकनीक द्वारा नगरीय-ग्रामीण अंतर को कम करना:

  • वर्तमान में हम ज्ञान युग (Knowledge Era) में रह रहे हैं। ज्ञान-युग आधारित प्रौद्योगिकी, औद्योगिक-युग की प्रौद्योगिकी के विपरीत ‘लोकतंत्रीकरण’ (उदाहरण के लिये सोशल मीडिया) तथा ‘विकेंद्रीकरण’ (घर से कार्य करना) को बढ़ावा देती है।
  • इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स’, ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ जैसी तकनीकों में प्रशिक्षित लोग नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी स्थान से इन क्षेत्रों के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।
  • ज्ञान युग आधारित तकनीकों का उपयोग ग्रामीण युवाओं की ‘क्षमता निर्माण’ में करना चाहिये। ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों की तुलना में अधिक अवसर उपलब्ध होने चाहिये क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र अर्थव्यवस्था के तीनों (कृषि, विनिर्माण और सेवाओं) क्षेत्रों से लाभ उठा सकते हैं।

'सिलेज' संबंधी विचार (The Idea of Cillage):  

  • सिलेज (Cillage) पद दो शब्दों नगर (City) तथा ग्राम (Village) से मिलकर बना है। अर्थात ‘नगरीय ग्राम क्षेत्र’। 
  • ज्ञान युग में समग्र शिक्षा, प्रौद्योगिकी तथा आजीविका के संदर्भ में ग्रामीण युवाओं की क्षमता निर्माण पर ज़ोर दिया जाता है।
  • इसके लिये नगर तथा ग्रामों के बीच ‘ज्ञान आधारित सेतु’ (Knowledge Bridge) का निर्माण किया जाना चाहिये तथा ऐसे वातावरण निर्माण किया जाना चाहिये जिसमें नगरों तथा ग्रामों के बीच समान संयोजन हो। इस अवधारणा को ही 'सिलेज' कहा जाता है।
  • नगर और ग्राम के बीच ज्ञान के अंतराल को कम करने से दोनों क्षेत्रों के मध्य आय के अंतर में भी कमी आएगी।   

सिलेज की प्राप्ति के लिये आवश्यक पहल:

  • 'सिलेज' के लिये आवश्यक पारिस्थितियों के निर्माण के लिये समग्र शिक्षा, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास, प्रबंधन तथा ग्रामीण आजीविका में वृद्धि के लिये ‘एकीकृत दृष्टिकोण’ की आवश्यकता होगी।

COVID- 19 तथा 'सिलेज' की अवधरणा:

  • COVID- 19 महामारी के दौरान देखी गई प्रवास की विपरीत धाराओं को ग्रामीण अनुभव तथा कौशल के एक सेट के रूप में देखा जा सकता है।
  • इसे नगर और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच दो-तरफा पुल के रूप में देखा जा सकता हैं लेकिन इसके लिये अनेक प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • इसके लिये निम्नलिखित पहल आवश्यक हैं;
    • नवीन कौशल आधारित प्रशिक्षण।   
    • नवीन उद्यम प्रारंभ करने के लिये प्रौद्योगिकी एवं सहायता प्रणाली की सुविधा प्रदान करना। 
    • आजीविका को समर्थन देने के लिये तात्कालिक उपाय करना।

निष्कर्ष:

  • COVID-19 संकट के कारण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है तथा इसका सभी क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। अत: सामान्य स्थिति में लौटने के लिये सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू 


IMD का मानसून संबंधी अनुमान

प्रीलिम्स के लिये:

सामान्य मानसून के आधार, सामान्य वर्षा की परिभाषा, हिंद महासागर द्विध्रुव, मानसून पूर्वानुमान के मॉडल

मेन्स के लिये:

मानसून को प्रभावित करने वाले कारक

चर्चा में क्यों?

मुख्य बिंदु:

  • IMD के अनुसार वर्ष 2020 में सामान्य मानसून (अगस्त तथा सितंबर में सामान्य से अधिक) रहने की संभावना है।
  • IMD दो-चरणीय मानसून पूर्वानुमान जारी करता है: 
    • पहला पूर्वानुमान अप्रैल माह में जबकि दूसरा मई माह के अंतिम सप्ताह में जारी किया जाता है। मई माह में विस्तृत मानसून पूर्वानुमान जारी किया जाता है।

सामान्य वर्षा की परिभाषा में बदलाव:

  • 'लंबी अवधि के औसत' (Long Period Average- LPA) वर्षा का उपयोग, मानसून की ‘सामान्य वर्षा’ की गणना करने में किया जाता है। LPA वर्ष 1961-2010 की अवधि के दौरान हुई वर्षा का औसत मान है। LPA के आधार पर पूरे देश में मानसून की सामान्य वर्षा 88 सेमी है।
  • 'सामान्य वर्षा' (Normal Rainfall) की परिभाषा को फिर से परिभाषित किया गया है। इसे 89 सेमी. से घटाकर 88 सेमी. कर दिया गया है। मानसून मौसमी में वर्षा के सामान्य से ± 5% विचलन के साथ के ‘सामान्य वर्षा’ होने की संभावना है।

सामान्य मानसून के आधार: 

  • मानसून पूर्वानुमान के मॉडल:
    • मानसून पूर्वानुमान के ‘गतिकीय मॉडल’ (Dynamical Model) जो सुपर कंप्यूटर पर आधारित है, के अनुसार, इस बार मानसून के समय सामान्य से अधिक वर्षा होने की उच्च संभावना (70%) है।
    • सांख्यिकीय मॉडल’ (Statistical Models) के अनुसार, इस बार सामान्य मानसून की 41% संभावना है जबकि इस मॉडल पर पूर्ववर्ती वर्षों में 33% संभावना रहती थी। 
  • अल-नीनो (El-Nino):
    • भारत में ‘अल-नीनो’ के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है जबकि, ‘ला-नीना’ के कारण अत्यधिक वर्षा होती है। 
    • IMD के अनुसार इस बार अल-नीनो का भारतीय मानसून पर नगण्य प्रभाव रहेगा।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD):
    • IOD भी भारतीय मानसून को प्रभावित करता है। सकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर सकारात्मक और नकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • पूर्वानुमान के अनुसार, ‘हिंद महासागर द्विध्रुव’ के 'तटस्थ' रहने की उम्मीद है।

सामान्य मानसून का महत्त्व:

  • खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि:  
    • वर्षा अच्छी होने का सबसे अच्छा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ता है। जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद नहीं है, वहाँ वर्षा होने से अच्छी फसल होने की संभावना बढ़ जाती है। 
  • विद्युत संकट में कमी:
    • यदि वर्षा कम हो और जलस्तर कम हो जाए तो बिजली उत्पादन भी प्रभावित होता है।
  • जल संकट का समाधान:   
    • अच्छे मानसून से पीने के पानी की उपलब्धता संबंधी समस्या का भी काफी हद तक समाधान होता है। दूसरे, भूजल का भी पुनर्भरण होता है।

आगे की राह:

  • वर्षा के पूर्वानुमान से, सरकार तथा किसानों को बेहतर रणनीति बनाने में सहायता मिलती है। सरकार इसके माध्यम से सूखा या बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिये सुरक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बेहतर तैयारियाँ कर सकती है।

स्रोत: द हिंदू


लॉकडाउन के तहत प्रतिबंधों में छूट पर रोक

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19

मेन्स के लिये:

भारत में COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 के तहत प्राप्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (National Executive Committee) के अध्यक्ष को वर्तमान में देशभर में लागू लॉकडाउन को 3 मई, 2020 तक जारी रखने का निर्देश दिया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने 14 अप्रैल, 2020 को देश में लॉकडाउन को 3 मई, 2020 तक जारी रखने का आदेश दिया है।  
  • इस आदेश के बाद केंद्रीय कैबिनेट सचिव (Union Cabinet secretary) ने देश भर में लॉकडाउन को जारी रखने और इस संदर्भ में भविष्य की रूपरेखा पर चर्चा करने के लिये 15 अप्रैल, 2020 को देश के सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक बैठक की थी। 

राष्ट्रीय कार्यकारी समिति

(National Executive Committee):

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को उसके कार्यों में सहयोग प्रदान करने के लिये आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा- 8 के तहत केंद्र सरकार द्वारा  NDMA की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया जाता है। 
  • केंद्रीय गृह सचिव इस समिति के पदेन अध्यक्ष होते हैं। 
  • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति एक समन्वयक और निगरानीकर्त्ता निकाय के रूप में कार्य करती है। 
  • यह समिति देश में आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति का निर्माण, इसकी योजना की रूपरेखा तैयार करने और उसके क्रियान्वयन के लिये राज्य सरकारों के बीच समन्वय और तकनीकी सहायता प्रदान करने का कार्य करती है। 

लॉकडाउन में वृद्धि:

  • भारतीय प्रधानमंत्री ने 14 अप्रैल, 2020 को एक वीडियो संदेश के माध्यम से देश को संबोधित करते हुए COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाए जाने की घोषणा की थी। 
  • इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश जारी कर दिया गया है।
  • इस आदेश के अनुसार, लॉकडाउन की अवधि में बढ़ोतरी के साथ ही देश में विभिन्न क्षेत्रों में लागू सभी प्रकार के प्रतिबंध 3 मई तक लागू रहेंगे।
  • आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि  कोई भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत लागू प्रतिबंधों में कोई ढील नहीं दे सकता।
  • ध्यातव्य है कि इससे पहले 24 मार्च, 2020 को भारतीय प्रधानमंत्री ने देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये 21 दिनों (14 अप्रैल, 2020) के लिये संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। 

COVID-19 और लॉकडाउन:  

  • COVID-19 कोरोनावायरस नामक विषाणु से होने वाली एक संक्रामक बीमारी है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के अनुसार,COVID-19 के शुरूआती मामले 31 दिसंबर, 2019 चीन के वुहान प्रांत में निमोनिया (Pneumonia) जैसे लक्षणों वाली अज्ञात बीमारी के रूप में मिले थे। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस वायरस का 'इनक्यूबेशन पीरियड' (Incubation Period) 14 दिनों का होता है, अर्थात किसी भी व्यक्ति के इस वायरस से संक्रमित होने से 14 दिनों के अंदर उसमें COVID-19 के लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • वर्तमान में इस बीमारी के किसी प्रामाणिक उपचार या टीकाकरण के अभाव में इसके प्रसार को रोकना ही इस बीमारी के नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय है।

लॉकडाउन की अवधि में वृद्धि के लाभ: 

  • भारत में 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के बाद भी कई क्षेत्रों में कुछ लापरवाहियों के कारण COVID-19 के मामले बढ़ गए थे।
  • अतः देश में लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाकर इस बीमारी के प्रसार को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।  
  • वर्तमान में विश्व के किसी भी देश के पास COVID-19 के संदर्भ में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, पिछले कुछ दिनों में देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के शीर्ष संस्थानों और औद्योगिक क्षेत्र के बीच आपसी सहयोग से इस क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई है। जैसे-  COVID-19 के संक्रमण की पहचान के लिये स्वदेशी परीक्षण किट का निर्माण, इसकी रोकथाम के लिये पहले से उपलब्ध दवाइयों पर प्रयोग आदि।
  • लॉकडाउन में वृद्धि करने से लोगों के किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने की संभावनाओं को कम किया जा सकेगा और इस दौरान देश में अधिक-से-अधिक लोगों का परीक्षण करना संभव हो सकेगा।

आगे की राह: 

  • वर्तमान में इस बीमारी के नियंत्रण के लिये अधिक-से अधिक लोगों का परीक्षण कर उन्हें चिकित्सीय सहायता उपलब्ध की जानी चाहिये।
  • इस बीमारी के प्रसार को रोकने में जनता के सहयोग का होना बहुत महत्त्वपूर्ण है, अतः लोगों को सरकार के निर्देशों का अनुसरण करते हुए इस बीमारी के नियंत्रण में अपना सहयोग देना चाहिये। 
  • वर्तमान में लोगों को इस बीमारी के बारे में सही जानकारी की पहुँच को सुनिश्चित करना चाहिये, जिससे समय रहते इस बीमारी की पहचान कर इसके रोकथाम के उचित प्रयास किये जा सकें।
  • विश्व के अन्य देशों की तरह ही भारत में भी इस लॉकडाउन के कारण आर्थिक क्षेत्र में लोगों को नुकसान का सामना करना पड़ा है, ऐसे में किसी बड़ी आर्थिक चुनौती से बचने और अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये एक मज़बूत राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता होगी।

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 के कारण कैदियों की रिहाई

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, COVID-19

मेन्स के लिये 

COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं से निपटने में न्याय तंत्र की भूमिका, COVID-19 से निपटने में सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में COVID-19 के प्रसार को देखते हुए सुरक्षात्मक कदम के तहत देश की विभिन्न जेलों से लगभग 11,077 विचाराधीन कैदियों को रिहा कर दिया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) के अनुसार, COVID-19 के कारण देश की विभिन्न जेलों में भीड़ को कम करने के मिशन के तहत इन कैदियों को रिहा किया गया है।
  • NALSA के अनुसार, वर्तमान नियमों में दी गई राहत के तहत जो भी कैदी पैरोल (Parole) या अंतरिम जमानत पर रिहा होने के पात्र हैं, उन्हें NALSA के वकीलों के माध्यम से विधिक सहायता प्रदान की गई है। इसी प्रकार दोषियों (Convicts) को भी आवश्यक विधिक सहायता प्रदान की जा रही है।
  • वर्तमान में NALSA को देश के 232 ज़िलों से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार, अब तक लगभग 11,077 विचाराधीन कैदियों और 5,981 दोषियों को रिहा किया जा चुका है।

कैदियों की रिहाई से जुड़े नियमों में ढील का कारण:

  • हाल ही में देश के विभिन्न भागों में COVID-19 के मामलों की संख्या में तीव्र वृद्धि देखी गई है।
  • ध्यातव्य है कि देश में COVID-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने 23 मार्च, 2020 को देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों में बंद कैदियों के मामलों की जाँच करने और उनमें से अंतरिम जमानत या पेरोल पर रिहा किये जा सकने वाले कैदियों की सूची तैयार करने के लिये एक विशेष समिति का गठन करने का आदेश दिया था। 
  • इसी संबंध में 13 अप्रैल, 2020 की सुनवाई उच्चतम न्यायालय ने असम के विदेशी निरोध केंद्रों/फाॅरेनर्स डिटेंशन सेंटर्स (Foreigners’ Detention Centres) में दो वर्ष से अधिक समय तक बंद कैदियों को रिहा किये जाने पर सहमति ज़ाहिर की थी।
  • हालाँकि न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कैदियों को रिहा करने से पहले उनके COVID-19 से संक्रमित होने की जाँच की जाएगी और ऐसे किसी भी कैदी को रिहा नहीं किया जाएगा जो परीक्षण में COVID-19 से संक्रमित पाया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा पिछले वर्ष जारी ‘भारतीय कारावास आँकड़े’ (Prison Statistics India), 2016 के अनुसा, वर्ष 2016 तक भारतीय जेलों में बंद कुल कैदियों में से 68 प्रतिशत विचाराधीन कैदी (undertrials) थे अर्थात् वे लोग जिन पर दोषसिद्धि होना अभी बाकी था। 
  • COVID-19 की महामारी को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने जेलों में भीड़ (Overcrowding) तथा जेल प्रशासन के दबाव को कम करने के लिये यह फैसला लिया था, जिससे किसी भी आपातकालीन स्थिति को आसानी नियंत्रित किया जा सके।  
  • NALSA के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद ज़मानत पर रिहा किये जा सकने वाले विचाराधीन कैदियों की पहचान के लिये बनी इन उच्चाधिकार प्राप्त समितियों (High-Powered Committee) को स्थानीय विधिक सेवा प्राधिकारियों द्वारा सहयोग प्रदान किया जा रहा है। 

विधिक सहायता उपलब्ध करने में NALSA की भूमिका: 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भारतीय सीमा के अंदर सभी को विधि के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है और संविधान के अनुच्छेद 39A में राज्यों के लिये विधि तंत्र के माध्यम से न्याय के सामान अवसर तथा उचित कानून व योजनाओं द्वारा या अन्य किसी भी तरीके से नि:शुल्क कानूनी सेवाएँ उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी नागरिक न्याय पाने से वंचित न रहे
  • वर्ष 1995 में NALSA ने अपनी स्थापना के साथ ही भारतीय संविधान के इन मूल्यों को मज़बूत आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
  • ध्यातव्य है कि NALSA की स्थापना ‘विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम” (Legal Services Authorities Act) 1987 के तहत की गई थी तथा भारत का मुख्य न्यायाधीश इसका मुख्य संरक्षक होता है। 
  • देश के न्याय तंत्र के हर स्तर तक NALSA पहुँच ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। NALSA राष्ट्रीय स्तर (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से), राज्य स्तर (राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से), ज़िला स्तर (जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से) एवं तालुका स्तर पर (तालुका विधिक सेवा समितियों के माध्यम से) निःशुल्क विधिक सेवाएँ प्रदान करता है।
  • वर्तमान में COVID-19 के कारण देश में लागू लॉकडाउन से अन्य सेवाओं के साथ ही लोगों को विधिक सहायता मिलने में भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में NALSA ने देश के दूरस्थ क्षेत्रों में भी ज़रूरतमंद लोगों तक विधिक एवं अन्य सहायता उपलब्ध करा कर COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।            

अन्य मामलों में NALSA द्वारा सहयोग:  

  • NALSA के अनुसार, विधिक सेवा प्राधिकारी विधिक सहायता हेल्पलाइन नंबरों और विशेषकर राष्ट्रीय विधिक सहायता हेल्पलाइन नंबर- 15100 पर लगातार लोगों को सहायता उपलब्ध करा रहें हैं। 
  • वर्तमान में हेल्पलाइन नंबरों पर प्राप्त होने वाले मामलों में ज़्यादातर खाद्य पदार्थों की कमी, अपने गृह राज्यों से दूर फँसे प्रवासी मज़दूरों की समस्याएँ, मज़दूरी न मिलने के मामले या किसी हिंसा के शिकार लोगों से संबंधित हैं। 
  • NALSA के अनुसार, विधिक सेवा प्राधिकारियों द्वारा वकीलों के पैनल,  पैरा-लीगल वालंटियर्स (Para Legal Volunteers) और ज़िला प्रशासन के सहयोग से हेल्पलाइन नंबरों पर प्राप्त होने वाली समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।
  • साथ ही  पैरा-लीगल वालंटियर दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर भोजन और मास्क वितरण में ज़िला प्रशासन और स्थानीय लोगों का भी सहयोग कर रहे हैं। 

स्रोत: द हिंदू


विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग पर रोक

प्रीलिम्स के लिये

विश्व स्वास्थ्य संगठन, COVID-19

मेन्स के लिये 

WHO की फंडिंग रोकने के कारण और इसके प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाने के पश्चात् हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने WHO को दी जाने वाली फंडिंग (Funding) पर रोक लगाने की घोषणा की है। 

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने WHO की फंडिंग को कुछ समय के लिये रोकने की धमकी दी थी।
  • अमेरिका का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब कोरोनावायरस संपूर्ण विश्व को काफी बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कोरोना संक्रमण के कुल मामले 20 लाख के पार जा चुके हैं, इसके अतिरिक्त तकरीबन 134000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • ज्ञात हो कि 500 मिलियन डॉलर के साथ अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है और मौजूदा समय में अमेरिका ही कोरोनावायरस महामारी से सर्वाधिक प्रभावित है। नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक अमेरिका में कोरोनावायरस संक्रमण के लगभग 600000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और तकरीबन 28000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

कारण 

  • अमेरिका के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने में विफल रहा है और संगठन ने वायरस के बारे में चीन के ‘दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण संभवतः वायरस ने और अधिक गंभीर रूप धारण कर लिया है।
  • विदित हो कि अमेरिका ने कई अवसरों पर कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कुप्रबंधन और वायरस के प्रसार को रोकने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं। अमेरिका का मत है कि WHO यथासमय और पारदर्शी तरीके से वायरस से संबंधित सूचना एकत्र करने और उसे साझा करने में पूरी तरह से विफल रहा है।

प्रभाव 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी के इस महत्त्वपूर्ण समय पर फंडिंग को रोकना न केवल वैश्विक निकाय के कामकाज को प्रभावित करेगा बल्कि मानवता को भी चोट पहुँचाएगा।
  • अमेरिका WHO की कुल फंडिंग में 15 प्रतिशत का योगदान देता है और अमेरिका द्वारा फंडिंग को रोकना WHO की कार्यप्रणाली को तो प्रभावित करेगा ही बल्कि यह संपूर्ण विश्व की स्वास्थ्य प्रणाली को भी प्रभावित करेगा।
  • साथ ही इसके कारण वैश्विक स्तर पर महामारी के विरुद्ध हो रहे प्रयास भी कमज़ोर होंगे।
  • कई निम्न और मध्यम-आय वाले देश जो मार्गदर्शन तथा सलाह के अतिरिक्त परीक्षण किट और मास्क जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिये WHO पर निर्भर हैं, पर भी अमेरिका के इस निर्णय का प्रभाव पड़ेगा।

‘अमेरिका प्रथम’ नीति 

  • कई विश्लेषक अमेरिका के इस निर्णय को अमेरिका की ‘अमेरिका प्रथम’ (America First) नीति का हिस्सा मान रहे हैं।
  • ध्यातव्य है कि जब से राष्ट्रपति ट्रंप ने पदभार संभाला है, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक संस्था यूनेस्को (UNESCO), जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक समझौते और ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र की माइग्रेशन संधि का भी विरोध कर रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त ट्रंप प्रशासन ने वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund) के वित्तपोषण में और वर्ष 2018 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था के वित्तपोषण में कटौती की घोषणा की थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन का वित्त पोषण मुख्य रूप से सदस्य-देशों, लोकोपकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों द्वारा किया जाता है।
  • WHO द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, संगठन को 35.41 प्रतिशत फंड सदस्य-देशों (जैसे अमेरिका) के स्वैच्छिक योगदान से, 9.33 प्रतिशत फंड लोकोपकारी संगठनों के योगदान से और लगभग 8.1 प्रतिशत संयुक्त राष्ट्र के संगठनों के योगदान से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त शेष फंडिंग कई अन्य माध्यमों से आती है।
  • सदस्य देशों द्वारा दिये जाने वाले स्वैच्छिक योगदान में भारत की तकरीबन 1 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

WHO द्वारा फंड का प्रयोग

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा इस धन राशि का प्रयोग स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिये WHO ने अपने वित्तीय वर्ष 2018-19 के कुल बजट का 19.36 प्रतिशत पोलियो उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रमों पर खर्च किया गया था, इसके अतिरिक्त आवश्यक स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं की बढ़ती पहुँच पर संगठन ने 8.77 प्रतिशत खर्च किया था।

आगे की राह 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप का दावा पूरी तरह से सत्य नहीं है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) व्यक्तिगत रूप से किसी भी देश में जाकर जाँच नहीं कर सकता है और वह पूर्ण रूप से सदस्य-राज्यों द्वारा साझा की गई सूचना पर निर्भर करता है। 
  • दावे के विपरीत WHO लगातार सदस्य-देशों से आग्रह करता रहा है कि वे अपनी परीक्षण पद्धति में तेज़ी लाएँ और अधिक-से-अधिक लोगों को ट्रेस करने, क्वारंटाइन करने की व्यवस्था करें।
  • अपनी असफलताओं के लिये पूर्ण रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन को ज़िम्मेदार ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं है और यह निर्णय अमेरिका को अपनी प्रशासनिक विफलताओं को छिपाने में मदद नहीं कर सकता है।
  • मुसीबत के समय में दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराने के स्थान पर सभी हितधारकों को एक मंच पर आकर इस समस्या का हल खोजने का प्रयास करना चाहिये, ताकि लगातार बढ़ रही मौतों और संक्रमण की संख्या को कम किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


रक्षा खरीद स्वीकृति

प्रीलिम्स के लिये:

AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइल, MK-54 ऑल-अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडो

मेन्स के लिये:

रक्षा खरीद स्वीकृति से भारत और अमेरिका के संबंधों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने भारत को 155 मिलियन डॉलर की AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइलों और MK-54 ऑल-अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडों की बिक्री को मंजू़री दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • 10 AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइल (AGM-84L Harpoon Block II Air Missiles) की अनुमानित कीमत 92 मिलियन डॉलर है, जबकि 16 MK-54 ऑल-अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडो (MK 54 All Up Round Lightweight Torpedoes) और तीन MK-54 एक्सरसाइज टॉरपीडो (MK 54 Exercise Torpedoes) की कीमत 63 मिलियन डॉलर है।
  • AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइलों का विनिर्माण बोइंग (Boeing) कंपनी द्वारा तथा MK-54 ऑल-अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडों का विनिर्माण रेथियॉन (Raytheon) कंपनी द्वारा किया जाएगा।
  • पेंटागन के अनुसार, हार्पून मिसाइल समुद्री सीमा की रक्षा हेतु सतह से सतह पर वार करने के लिये P-8I विमान में प्रयुक्त की जाएगी।

पेंटागन (Pentagon):

  • पेंटागन संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग जिसमें तीनों थलसेना, नौसेना और वायु सेना शमिल हैं, का मुख्यालय है। पेंटागन में 14 जनवरी, 1943 से कार्य प्रारंभ कर दिया गया था। 

लाभ:

  • मिसाइल और टॉरपीडो से भारत को क्षेत्रीय खतरों से निपटने में मदद मिलेगी साथ ही यह देश की रक्षा प्रणाली को मज़बूती प्रदान करेगा।
  • इस रक्षा खरीद स्वीकृति से भारत की विदेश नीति और भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध मज़बूत होंगे।
    • यह रक्षा खरीद स्वीकृति हिंद-प्रशांत एवं  दक्षिण एशिया क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण होगी।

AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइल

(AGM-84L Harpoon Block II air missiles):

  • AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइल (पेलोड क्षमता: 500 पाउंड) विमानों और बंदरगाहों या औद्योगिक स्थलों तथा बंदरगाहों पर स्थित जहाज़ों को नष्ट करने में सक्षम है। 
  • यह मिसाइल प्रत्येक मौसम में कार्य करने में सक्षम है। 
  • यह रडार से बचने में सक्षम है तथा इसका वजन 1,160 पाउंड है।
  • यह मिसाइल 67 नॉटिकल मील दूर स्थित किसी लक्ष्य को सफलतापूर्वक नष्ट कर सकती है।
  • इस मिसाइल में एयर-ब्रीदिंग टर्बोजेट इंजन (Air-breathing Turbojet Engine) तथा सॉलिड-प्रोप्लेंट बूस्टर (Solid-propellant Booster) का प्रयोग किया गया है।

Air-Missile

MK-54 ऑल-अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडो

(MK 54 All Up Round Lightweight Torpedoes):

  • रेथियॉन द्वारा वर्ष  2004 में टॉरपीडो मिसाइलों का विनिर्माण शुरू किया गया था।
  • यह मिसाइल परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाों को नष्ट करने में सक्षम है। जहाज़ों के सतह, फिक्स्ड-विंग विमानों और हेलीकॉप्टरों द्वारा टॉरपीडो मिसाइल को प्रक्षेपित किया जाता है।
  • MK 46 टॉरपीडो को संशोधित कर MK-54 ऑल-अप राउंड टॉरपीडो बनाया गया है जिसका वज़न कम है।
  • Mk 50 टारपीडो का उन्नत सोनार ट्रांसीवर (Advanced Sonar Transceiver) और Mk 46 का प्रोपल्शन सिस्टम (Propulsion System) को Mk 54 में उपयोग किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


साइबर धोखाधड़ी और COVID-19

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों:

COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर बढ़ते साइबर अपराधों से निपटना समाज और प्रशासन/सरकार के समक्ष  एक चुनौती भरा कदम होगा।

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के कारण अधिकांश कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं।
    • यदि किसी संगठन/संस्था के पास वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (Virtual Private Network- VPN) नहीं है तो घर से कार्य कर रहे कर्मचारियों को सार्वजनिक प्लेटफार्मों के उपयोग से संगठन/संस्था के गोपनीय डेटा का गलत प्रयोग हो सकता है।
  • सूचना एवं तकनीक की मदद से फर्जी तरीके से लोगों के अकाउंट से पैसे निकालने की घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 

साइबर धोखाधड़ी के हालिया मामले: 

  • पीएम-केयर्स फंड की नकली UPI: 
    • ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री ने COVID-19 से निपटने हेतु पीएम-केयर्स फंड लॉन्च किया था।
    • पीएम-केयर्स फंड को लेकर एक अलर्ट जारी किया गया है जिसके अनुसार, कुछ अपराधियों द्वारा पीएम-केयर्स फंड की नकली UPI आईडी बनाई है। 

एकीकृत भुगतान प्रणाली

(Unified Payments Interface-UPI):

  • यह एक ऐसी प्रणाली है जो एक मोबाईल एप्लीकेशन के माध्यम से कई बैंक खातों का संचालन, विभिन्न बैंकों की विशेषताओं को समायोजित, निधियों का निर्बाध आवागमन और व्यापारियों का भुगतान कर सकता है। 
  • फेसबुक धोखाधड़ी:
    • फर्जी फेसबुक खातों के कई मामले सामने आ रहे हैं, जहाँ कथित तौर पर लोगों के  फेसबुक अकाउंट को हैक कर पैसे की मांग की जा रही है। 
  • ज़ूम एप (Zoom App):
    • ज़ूम एप को भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (Indian Computer Emergency Response Team - CERT-In) ने ‘मध्यम सुरक्षा रेटिंग (ऐसा एप जिसमें सुरक्षा संबंधी खामियाँ हों)’ का एप बताया है।
    • उपयोगकर्त्ताओं द्वारा ज़ूम एप को माइक्रोफोन, वेब-कैम और डेटा स्टोरेज तक पहुँचने की अनुमति देने से निजी डेटा चोरी होने की घटना सामने आई है। 

ज़ूम एप (Zoom App):

  • ज़ूम एप एक फ्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप है। इसके जरिये यूज़र एक बार में अधिकतम 100 लोगों के साथ बात कर सकता है। एप में वन-टू-वन मीटिंग और 40 मिनट की ग्रुप कॉलिंग की सुविधा है।

समाधान:

  • भुगतान:
    • भुगतान करते समय UPI ID का सत्यापन करना, मोबाइल चोरी होने पर UPI ID को शीघ्रता से ब्लॉक करवाना, RBI द्वारा जारी KYC के दिशा-निर्देशों का पालन करना।
  • सोशल मीडिया:
    • गोपनीयता की रक्षा के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करना।
  • वीडियोकांफ्रेंसिंग: 
    • गोपनीय बैठकों में मुफ्त एप द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करने से बचना,  संगठन/संस्था के कार्य हेतु वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का उपयोग करना।

इंटरपोल की सलाह:

  • लोगों को संदिग्ध ई-मेल खोलने और गैर-मान्यता प्राप्त ई-मेल और अनुलग्नकों में लिंक पर क्लिक करने से बचने के साथ ही नियमित रूप से बैकअप फाइल तैयार करने, मज़बूत पासवर्ड का उपयोग करने, सॉफ्टवेयर को अपडेट रखने, आदि की सिफारिश की जाती है।
  • इंटरपोल ने चिकित्सा उत्पादों के बारे में झूठे या भ्रामक विज्ञापनों की उभरती प्रवृत्ति, महामारी के दौरान फर्जी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की स्थापना, इत्यादि के बारे में चेतावनी दी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


निर्यात संबंधी नियमों में परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये

WMA, CCyB 

मेन्स के लिये

निर्यात संबंधी नियमों में परिवर्तन का भारतीय निर्यात पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव से निपटने के लिये कुछ उपायों की घोषणा की है, जिसमें निर्यात आय की प्राप्ति तथा स्वदेश भेजने की अवधि में बढ़ोतरी और राज्यों को अधिक ऋण लेने की अनुमति देना शामिल है। 

प्रमुख बिंदु

  • मौजूदा नियमों के अनुसार, निर्यातकों द्वारा वस्तुओं और सॉफ्टवेयरों के निर्यात की पूरी राशि निर्यात की तारीख से 9 महीने के भीतर देश में वापस लाना अनिवार्य होता है।
  • RBI के अनुसार, कोरोनावायरस महामारी के कारण उत्पन्न हो रहे संकट के मद्देनज़र निर्यातों पर आय की प्राप्ति तथा उस आय को स्वदेश भेजने की अवधि 9 महीने से बढ़ाकर 15 महीने कर दी गई है।
  • केंद्रीय बैंक ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये ‘वेज़ और मीन्स एडवांस लिमिट’ (Ways and Means Advances Limit-WMA Limit) की समीक्षा करने के लिये एक सलाहकार समिति का गठन किया है। 
  • RBI के अनुसार, जब तक समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करती तब तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये WMA लिमिट को 30 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।
  • WMA लिमिट की संशोधित सीमा 1 अप्रैल, 2020 से लागू होगी और 30 सितंबर, 2020 तक मान्य होगी।
  • इसके अतिरिक्त RBI ने बैंकों के लिये काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर (Counter Cyclical Capital Buffer-CCyB) के कार्यान्वयन को भी टाल दिया है।
  • RBI के अनुसार, CCyB संकेतकों की समीक्षा और विश्लेषण के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि आगामी एक वर्ष की अवधि के लिये CCyB को सक्रिय करना आवश्यक नहीं है।

महत्त्व

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का यह निर्णय भारतीय निर्यातकों को विस्तारित अवधि के दौरान COVID-19 महामारी से प्रभावित देशों से निर्यात आय प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। 
  • इसके अलावा यह निर्यातकों को विदेशों में मौजूद खरीदारों के साथ भविष्य के निर्यात अनुबंधों पर बातचीत करने के लिये अधिक समय प्रदान करेगा।

‘वेज़ एंड मीन्स एडवांस’ 

(Ways and Means Advances-WMA)

  • सामान्यतः सरकारें एक पूरे वर्ष के लिये बजट का निर्माण करती हैं और उसमें सरकार की आय तथा प्राप्तियों का निर्धारण किया जाता है, किंतु कई अवसरों पर सरकार की आय उसके व्यय से कम हो जाती है। 
  • ऐसी स्थिति से निपटने के लिये सरकारें बाज़ार से ऋण लेने के स्थान पर प्रत्यक्ष तौर पर RBI से ऋण लेती हैं, जिसे ‘वेज़ और मीन्स एडवांस’ योजना कहा जाता है।
  • RBI द्वारा ‘वेज़ एंड मीन्स एडवांस’ की शुरुआत वर्ष 1997 में की गई थी।

काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर 

(Counter Cyclical Capital Buffer-CCyB) 

  • कैपिटल बफर वह अनिवार्य पूंजी होती है जिसे वित्तीय संस्थानों को अन्य न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं के अतिरिक्त रखने की आवश्यकता होती है।
  • काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर (CCyB) के तहत बैंकों के लिये यह अनिवार्य होता है कि वे उस समय अधिक पूँजी धारण करें जब क्रेडिट पूंजी से बढ़ रहा हो, ताकि वित्तीय चक्र में गिरावट आने या अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिति खराब होने के दौरान प्रतिरोध को कम किया सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 अप्रैल, 2020

कोवसैक (COVSACK)

हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (Defence Research and Development Laboratory-DRDL) ने COVID-19 परीक्षण के लिये नमूना संग्रहण हेतु कोवसैक (COVSACK) नाम से एक कियॉस्क (Kiosk) विकसित किया है। DRDL ने कोवसैक को कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC), हैदराबाद के डॉक्टरों के परामर्श से विकसित किया है। कोवसैक (COVSACK) संदिग्ध संक्रमित रोगियों से COVID-19 नमूने प्राप्त के लिये स्वास्थ्य कर्मियों के उपयोग हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है। ध्यातव्य है कि जब एक संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति कियॉस्क केबिन के अंदर जाता है और केबिन के बाहर से एक स्वास्थ्य पेशेवर दस्ताने के माध्यम से बाहर से ही परीक्षण हेतु नमूना ले सकता है। रोगी के केबिन से बाहर निकलने के पश्चात् चार नोज़ल स्प्रेयर कीटाणुनाशक को लगभग 70 सेकंड तक स्प्रे करते हैं। इसके अलावा केबिन को पानी और UV लाइट से स्वच्छ किया जाता है। कोवसैक (COVSACK) की लागत लगभग एक लाख रुपए है।

भारत में कोरोनावायरस का नया प्रकार

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भारत के चार राज्यों में चमगादड़ों के नमूनों में बैट कोरोना वायरस (BtCoV) होने की पुष्टि की है। वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत में पाए गए कोरोनावायरस के नए प्रकार की लगभग 95 प्रतिशत विशेषताएँ चीन के वुहान (Wuhan) शहर में उत्पन्न वायरस से मिलती हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित इस अध्ययन का उद्देश्य यह जानना है कि कोरोनावायरस की प्रजाति के कौन से प्रकार चमगादड़ या अन्य जीवों में मौजूद हो सकते हैं। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने भारत के दस राज्यों में मौजूद चमगादड़ की दो प्रजातियों के नमूने एकत्रित किये थे। इनमें पिटरोपस (Pteropus) एवं रोसेट्स (Rousettus) प्रजाति के चमगादड़ों के नमूने लिये गए थे। ICMR के वैज्ञानिकों ने भारत के 4 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में चमगादड़ों में बैट कोरोनावायरस (BtCoV) की पुष्टि की है, जिसमें केरल, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु और पुडुचेरी शामिल हैं। ICMR के अनुसार, इस तथ्य का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है कि चमगादड़ में पाया जाने वाला यह वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकता है।

रघुराम राजन 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) की प्रबंध निदेशक (MD) क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन  समेत 11 अन्य लोगों को IMF के बाह्य परामर्श समूह (External Advisory Group) का सदस्य नामित किया है। यह समूह दुनिया भर की घटनाओं और नीतिगत मुद्दों के विषय में IMF को अपनी राय देता है। वर्तमान परिदृश्य में बाह्य परामर्श समूह, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को कोरोनावायरस जैसी असाधारण चुनौतियों से निपटने के लिये उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों से संबंधित सुझाव देगा। 3 फरवरी, 1963 को मध्यप्रदेश के भोपाल में जन्मे भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रघुराम राजन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर हैं और तकरीबन 3 वर्ष तक RBI में सेवाएँ दे चुके हैं, मौजूदा समय में वे शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। IMF एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का कार्य करती है। यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने तथा आर्थिक विकास को सुगम बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।

अजय महाजन

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स (CARE Ratings) ने अजय महाजन को आगामी 5 वर्षों के लिये कंपनी का नया प्रबंध निदेशक (Managing Director-MD) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer-CEO) नियुक्त किया है। केयर रेटिंग्स के निदेशक मंडल ने अपनी बैठक में बोर्ड द्वारा गठित नामांकन और पारिश्रमिक समिति की सिफारिश के आधार पर यह नियुक्ति की है। अजय महाजन ने वर्ष 1990 में बैंक ऑफ अमेरिका (Bank of America) के साथ अपने कैरियर की शुरुआत की थी और कुछ ही समय में वे ग्लोबल मार्केट्स ग्रुप (Global Markets Group) के MD और कंट्री हेड (Country Head) नियुक्त किये गए। इसके अतिरिक्त वे यस बैंक (YES Bank) और IDFC बैंक के साथ भी कार्य कर चुके हैं। एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के रूप में केयर रेटिंग्स (CARE Ratings) की शुरुआत वर्ष 1993 में हुई थी। यह कंपनी क्रेडिट रेटिंग के माध्यम से बड़े निगमों को उनकी विभिन्न आवश्यकताओं के लिये पूंजी जुटाने में मदद करती है और निवेशकों को क्रेडिट जोखिम के आधार पर निवेश संबंधी निर्णय लेने में सहायता करती है।