जैव विविधता और पर्यावरण
यमुना में प्रदूषण पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुपचारित सीवेज के कारण जल निकायों के प्रदूषित होने के मामले में संज्ञान लिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय हरियाणा द्वारा किये जा रहे यमुना जल प्रदूषण को रोकने के लिये दिल्ली जल बोर्ड द्वारा दायर एक तत्काल याचिका पर सुनवाई कर रहा था ताकि प्रदूषक तत्त्वों को यमुना नदी में बहाने से रोका जा सके।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2017 में ‘पर्यावरण सुरक्षा समिति बनाम भारत संघ’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स’ की स्थापना और/या संचालन के लिये फंड एकत्रित करने हेतु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 31 मार्च, 2017 से पहले मानदंडों को अंतिम रूप दिया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया था कि इन संयंत्रों को स्थापित करने में राज्य सरकार ऐसे शहरों, कस्बों और गाँवों को प्राथमिकता देगी जो औद्योगिक प्रदूषकों और सीवर को सीधे नदियों और जल निकायों में प्रवाहित करते हैं।
संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान का अनुच्छेद 243W, 12वीं अनुसूची के खंड 6 में सूचीबद्ध मामलों के संबंध में नगरपालिकाओं और स्थानीय अधिकारियों को उनके कार्यों के प्रदर्शन को विभिन्न योजनाओं के उस कार्यान्वयन के साथ निहित करता है, जो उन्हें सौंपा जा सकता है।
- 12वीं अनुसूची के खंड 6 में "सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता संरक्षण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन" नामक विषय शामिल है।
- अनुच्छेद-21:
- पर्यावरण को स्वच्छ रखने का अधिकार तथा प्रदूषण मुक्त जल को जीवन के अधिकार के व्यापक परिदृश्य के तहत संरक्षित किया गया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को दिये गए निर्देश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने CPCB को यमुना नदी के किनारे स्थित ऐसी नगरपालिकाओं की पहचान करने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिन्होंने सीवेज के लिये उचित संख्या में उपचार संयंत्र स्थापित नहीं किये हैं या यह सुनिश्चित करने में अयोग्य है कि सीवेज को नदी में प्रवाहित नहीं किया जाए।
यमुना में प्रदूषण
यमुना में प्रदूषण का कारण:
- औद्योगिक प्रदूषण
- यमुना नदी हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश करती है। हरियाणा के सोनीपत (यमुना के किनारे) में कई औद्योगिक इकाइयाँ हैं। यहाँ अमोनिया का उपयोग उर्वरकों, प्लास्टिक और रंजक के उत्पादन में एक औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
- जल निकास मार्गों का आपस में मिलना:
- पीने के पानी और सीवेज या औद्योगिक कचरे को प्रवाहित करने वाले निकास मार्गों के आपस में मिल जाने से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।
जल में बढ़ती अमोनिया की मात्रा का प्रभाव;
- अमोनिया जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है क्योंकि यह नाइट्रोजन के ऑक्सीकृत रूपों में बदल जाती है। इसलिये यह ‘बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड’ (Biochemical Oxygen Demand) भी बढ़ाती है।
- जैविक अपशिष्ट द्वारा जल प्रदूषण को BOD के संदर्भ में मापा जाता है।
- यदि पानी में अमोनिया की सांद्रता 1 PPM से ऊपर है, तो यह मछलियों के लिये विषाक्त होता है।
- मनुष्यों द्वारा 1 PPM या उससे अधिक के अमोनिया स्तर वाले जल के दीर्घकालिक अंतर्ग्रहण के कारण उनके आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
यमुना:
- यह गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में निम्न हिमालय के मसूरी रेंज में बंदरपूँछ चोटी के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
- यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में बहती हुई उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (संगम) में गंगा नदी में मिल जाती है।
- लंबाई: युमना नदी की कुल लंबाई 1376 किमी. है।
- महत्त्वपूर्ण बांँध: लखवार-व्यासी बांँध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
- सहायक नदियाँ: युमना नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा और केन हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
अमेरिकी राष्ट्रपति पर महाभियोग
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में दो बार महाभियोग का सामना करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हैं। अमेरिकी काॅन्ग्रेस ने उन पर विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया गया है।
- ज्ञात हो कि 06 जनवरी, 2021 को जब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन की जीत को प्रमाणित करने के लिये अमेरिकी काॅन्ग्रेस का सत्र शुरू हुआ तो डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने कैपिटल बिल्डिंग (जहाँ अमेरिकी संसद स्थित है) पर कब्ज़ा करने का असफल प्रयास किया।
प्रमुख बिंदु
अमेरिकी राष्ट्रपति पर महाभियोग
- दो सदन: संयुक्त राज्य अमेरिका की विधायिका यानी संयुक्त राज्य अमेरिका की काॅन्ग्रेस में कुल दो सदन हैं:
- सीनेट में प्रत्येक राज्य से दो प्रतिनिधि (सीनेटर) चुने जाते हैं, चाहे उस राज्य की आबादी कितनी भी हो।
- हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स, जिसमें सदस्यों का चुनाव राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है।
- महाभियोग का कारण: अमेरिकी संविधान के मुताबिक, अमेरिका के राष्ट्रपति को देशद्रोह, रिश्वत लेने अथवा किसी अन्य गंभीर अपराध या दुष्कर्म के कारण पद से हटाया जा सकता है।
- पूर्ववर्ती महाभियोग
- अब तक तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों- डोनाल्ड ट्रंप (वर्ष 2019), बिल क्लिंटन (वर्ष 1998) और एंड्रयू जॉनसन (वर्ष 1868) पर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स द्वारा महाभियोग चलाया गया है, हालाँकि सभी को सीनेट में विमुक्त कर दिया गया।
- इस प्रकार किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को अब तक महाभियोग द्वारा पद से हटाया नहीं गया है।
भारत में राष्ट्रपति पर महाभियोग संबंधी प्रावधान
- भारत में राष्ट्रपति को केवल 'संविधान का उल्लंघन' करने की स्थिति में ही हटाया जा सकता है, साथ ही भारतीय संविधान में 'संविधान के उल्लंघन' के अर्थ को परिभाषित नहीं किया गया है।
- महाभियोग की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन- लोकसभा अथवा राज्यसभा द्वारा शुरू की जा सकती है।
भारत और अमेरिका में राष्ट्रपति पर महाभियोग संबंधी तंत्र
भारतीय राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रकिया (अनुच्छेद 61) |
अमेरिकी राष्ट्रपति पर महाभियोग पर की प्रक्रिया |
भारतीय राष्ट्रपति को ‘संविधान के उल्लंघन’ के मामले में महाभियोग की प्रकिया के माध्यम से पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग की प्रकिया को संसद के किसी भी सदन द्वारा शुरू किया जा सकता है। |
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स का कोई भी सदस्य महाभियोग के प्रस्ताव को प्रस्तुत कर सकता है यदि उसे संदेह है कि राष्ट्रपति ‘राजद्रोह, रिश्वतखोरी अथवा किसी अन्य गंभीर अपराध या दुष्कर्म का दोषी है।’ |
जिस भी सदन में प्रकिया शुरू की गई है, उसके एक-चौथाई सदस्यों द्वारा संबंधित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया जाना आवश्यक है, तभी सदन द्वारा उस पर विचार किया जाता है, जिसके बाद राष्ट्रपति को 14 दिन का नोटिस दिया जाता है। |
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में सामान्य बहुमत (51 प्रतिशत) के माध्यम से महाभियोग की प्रकिया शुरू की जा सकती है, इसके बाद प्रकिया ट्रायल की और बढ़ती है। |
संसद के किसी एक सदन द्वारा महाभियोग प्रस्ताव के पारित (सदन की कुल सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से) होने के बाद, उसे विचार हेतु दूसरे सदन में भेजा जाता है। |
ट्रायल की शुरुआत होती है, सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश इसकी अध्यक्षता करता है, जबकि अभियोजन पक्ष के सदस्य और सीनेटर एक निर्णायक मंडल के रूप में कार्य करते हैं। राष्ट्रपति अपनी ओर से एक वकील की नियुक्ति कर सकता है। |
यदि अन्य सदन द्वारा भी दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव को पारित कर दिया जाता है, तो राष्ट्रपति को उस प्रस्ताव के पारित होने की तिथि से उसे पद से हटाया जा सकता है। |
ट्रायल के अंत में, सीनेट के सदस्यों द्वारा वोट किया जाता है और यदि कम-से-कम दो-तिहाई (67 प्रतिशत) सीनेटर राष्ट्रपति को अपराध का दोषी मानते हैं, तो राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है और शेष कार्यकाल के लिये उप-राष्ट्रपति पदभार संभाल लेता है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये अमेरिका की रणनीति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी सरकार ने एक गोपनीय दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया है जिसमें कहा गया है कि समान विचारधारा वाले देशों के सहयोग से भारत, रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन को प्रतिसंतुलित कर सकता है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये अमेरिका की रणनीति संबंधी वर्ष 2018 का यह गोपनीय दस्तावेज़ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन, उत्तर कोरिया, भारत और अन्य देशों के उद्देश्यों, चुनौतियों और रणनीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
प्रमुख बिंदु:
अमेरिका के समक्ष चुनौतियाँ:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के सामरिक महत्त्व को बनाए रखना तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना।
- यह सुनिश्चित करना कि उत्तर कोरिया अमेरिका के लिये किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न न करे।
- निष्पक्ष और पारस्परिक व्यापार को आगे बढ़ाते हुए वैश्विक स्तर पर अमेरिका के आर्थिक हितों को आगे बढ़ाना।
भारत से संबंधित पहलू:
- भारत सुरक्षा संबंधित मुद्दों पर अमेरिका का एक पसंदीदा भागीदार देश है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री सुरक्षा के संरक्षण तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में सहयोग कर सकता है। अत: ऐसी स्थिति में अमेरिका का लक्ष्य भारत का सहयोग प्राप्त करना है:
- भारत के वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा का समर्थन किया जाना चाहिये , जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया दृष्टिकोण के साथ इसकी संगतता को उजागर करता है।
- भारत के साथ मिलकर ‘घरेलू आर्थिक सुधार की दिशा’ में कार्य करना।
- रक्षा क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और क्षमता में वृद्धि करना।
- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान के रक्षा मंत्रियों की प्लस बैठक (ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus) में भारत को अधिक-से-अधिक नेतृत्व की भूमिकाएँ प्रदान करना।
- भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) का समर्थन करना।
भारत बनाम चीन:
- भारत-चीन विवाद को हल करने में भारत की मदद करना: अमेरिका का उद्देश्य सैन्य, राजनयिक तथा खुफिया चैनलों के माध्यम से भारत का समर्थन करना है ताकि महाद्वीपीय चुनौतियों जैसे- चीन के साथ सीमा विवाद, नदियों को लेकर विवाद, ब्रह्मपुत्र और चीन की तरफ से भारत में बहने वाली नदियों संबंधी विवाद का समाधान किया जा सके।
- बेल्ट रोड इनिशिएटिव से अलग रहने की भारत की रणनीति का समर्थन: अमेरिका, चीन की बेल्ट रोड इनिशिएटिव के तहत चीनी वित्तपोषण के कारण ऋण चक्र में फँस चुके देशों को अवसंरचना विकास संबंधी ऋण देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता चाहता है।
- भारत और जापान के साथ कार्य करना: भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अन्य देशों के मध्य क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने वाली वित्त परियोजनाओं की सहायता करना।
भारत-अमेरिका संबंध:
- लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करना और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों से संबंधित हितों पर और अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- व्यापार और निवेश, रक्षा व सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी एवं साइबर सुरक्षा आदि व्यापक बहु-क्षेत्रीय संबंधों को मज़बूती प्रदान करना।
लोगों के मध्य जुड़ाव: दोनों देशों के राजनीतिक स्पेक्ट्रम/परिदृश्य लोगों के मध्य व्यापक संपर्क और समर्थन, दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों का पोषण करता है।
- दोनों देश ने एक-दूसरे को सैन्य सूचना और सैन्य-तंत्र से संबंधित सहायता प्रदान करने के लिये अनेक रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं-
- संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement -COMCASA)
- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement -LEMOA)
- सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (General Security Of Military Information Agreement -GSOMIA)
- मूल विनिमय और सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement -BECA): यह भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका 2 + 2 वार्ता का परिणाम था।
संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता:
- विश्व वित्त पर हावी होने की प्रतियोगिता: USA के प्रभुत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन का मुकाबला करने के लिये चीन एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक और न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसे वैकल्पिक वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित कर रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय समूहों पर प्रभावी प्रभाव: संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीन के उभार को नियंत्रित करने के लिये अपनी 'एशिया धुरी' (Pivot to Asia) नीति के तहत क्वाड पहल (Quad Initiative) और हिंद-प्रशांत नीति (Indo Pacific Narrative) शुरू की है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसमें चीन को शामिल किये बिना G-7 को G-11 तक विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा।
- नया शीत युद्ध: USA-चीन का टकराव वैचारिक और सांस्कृतिक सर्वोच्चता, व्यापार युद्ध जैसे कई मोर्चों पर है, जिन्हें अक्सर न्यू शीत युद्ध कहा जाता है।
आगे की राह
- हितों और रिश्तों में संतुलन रखना: भारत को USA-चीन प्रतिद्वंद्विता में पड़ने की बजाय अपनी बढ़ती वैश्विक शक्ति को पहचानना चाहिये। दोनों देशों के साथ रिश्तों को शांतिपूर्ण बनाए रखते हुए अपने स्वयं के हित और विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- बहुपक्षीयता को बढ़ावा: भारत नए बहुपक्षवाद द्वारा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को बढ़ावा दे सकता है जो न्यायसंगत धारणीय विकास के लिये आर्थिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवहार दोनों पर निर्भर करता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का अफगानिस्तान दौरा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) द्वारा रणनीतिक मुद्दों पर बातचीत करने के लिये अफगानिस्तान का दौरा किया गया।
प्रमुख बिंदु
अंतर-अफगान वार्ता की शुरुआत के बाद पहली आधिकारिक यात्रा:
- यह यात्रा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अंतर-अफगान वार्ता (Intra-Afghan Discussion) के बीच किसी वरिष्ठ भारतीय अधिकारी की यह पहली यात्रा है।
- इस वार्ता की शुरुआत वर्ष 2020 में तालिबान और अफगान सरकार के बीच बैठक (दोहा) में हुई थी।
- इन वार्ताओं की व्यवस्था और संचालन का कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा किया जाता है, बैठक में अफगान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधि दशकों पुराने युद्ध को समाप्त करने तथा एक राजनीतिक समझौता करने पर सहमत हुए हैं।
चर्चित मुद्दे:
- शांति प्रक्रिया पर विचारों का आदान-प्रदान, अंतर-अफगान वार्ता के दूसरे दौर की शुरुआत और अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका।
- दोहा शांति समझौते (2020) के बाद अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य के सैनिकों के वापस जाने से आतंकवाद का मुकाबला करना और अफगानिस्तान में शांति बनाए रखना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जिसका मुकाबला दोनों देश साथ मिलकर करेंगे।
- दोहा शांति समझौता: USA और तालिबान द्वारा फरवरी 2020 में दोहा (कतर की राजधानी) में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए:
- इस समझौते के तहत अमेरिका ने अगले 14 महीनों के अंदर अफगानिस्तान में तैनात अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने और अफगान सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गए तालिबानी लड़ाकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की थी।
- तालिबान ने आश्वासन दिया कि वह अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे अंतर्राष्ट्रीय ज़िहादी संगठनों को अपने बेस के रूप में अफगानिस्तान का उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा। साथ ही तालिबान ने अफगान सरकार के साथ सीधी बातचीत शुरू करने के लिये भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका:
- भारत ने अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिये दोहा में आयोजित अंतर-अफगान वार्ता में भाग लेकर तालिबान सहित सभी अफगान दलों के साथ जुड़ने की इच्छा जताई।
- शांति प्रक्रिया हेतु भारत का संदेश
- अफगान के नेतृत्व और स्वामित्व वाली तथा अफगान-नियंत्रित होनी चाहिये।
- अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने वाली होनी चाहिये।
- मानव अधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिये।
- भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास के लिये एक बड़ी धनराशि निवेश की गई है।
भारत के लिये अफगानिस्तान में स्थिरता का महत्त्व
- अफगानिस्तान की स्थिरता और वहाँ एक स्थिर सरकार की मौजूदगी भारत के लिये रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने अफगानिस्तान में कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में निवेश किया है।
- अफगानिस्तान की राजनीति और सैन्य प्रणाली में तालिबान की बढ़ी हुई भूमिका और उसके क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार, भारत के लिये बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि तालिबान का झुकाव पाकिस्तान की ओर माना जाता है।
- ज्ञात हो कि अफगानिस्तान उत्तर में मध्य एशियाई देशों (तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, और ताजिकिस्तान), पूर्व एवं दक्षिण में पाकिस्तान तथा पश्चिम में ईरान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
- अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे विभिन्न भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों के लिये सुरक्षित स्थान बन सकता है।
आगे की राह
- भारत ने दोहा समझौते (वर्ष 2020) और अफगान शांति वार्ता के लिये अपने समर्थन की पुष्टि की है, साथ ही भारत ने अफगानिस्तान में ‘स्थायी शांति एवं सुलह’ के लिये भी अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।
- भारत एक संप्रभु, एकजुट, स्थिर और लोकतांत्रिक अफगानिस्तान के दृष्टिकोण पर विश्वास करता है।
- इस तरह के सक्रिय जुड़ाव और वार्ताओं को जारी रखने से भारत इस क्षेत्र में समान विचारधारा वाली शक्तियों और महत्त्वपूर्ण हितधारकों के साथ काम कर सकेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहाँ पैदा होने वाली अस्थिरता के कारण पिछले दो दशकों के दौरान आतंकवाद के खिलाफ भारत को मिली बढ़त बेकार न हो जाए।