भारतीय अर्थव्यवस्था
आरबीआई एकीकृत लोकपाल योजना
प्रिलिम्स के लिये:एकीकृत लोकपाल योजना,लोकपाल, भारतीय रिज़र्व बैंक मेन्स के लिये:एकीकृत लोकपाल योजना की विशेषताएँ और महत्त्व, शिकायत प्रबंधन प्रणाली (CMS) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने एकीकृत लोकपाल योजना लॉन्च की है।
- वर्ष 2019 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकिंग सेवाओं की शिकायत निवारण प्रक्रिया में ग्राहक अनुभव को बेहतर बनाने के लिये शिकायत प्रबंधन प्रणाली (CMS) शुरू की थी।
- पीएम ने आरबीआई की रिटेल डायरेक्ट स्कीम भी लॉन्च की है।
लोकपाल:
- यह एक सरकारी अधिकारी होता है जो सार्वजनिक संगठनों के खिलाफ आम लोगों द्वारा की गई शिकायतों का समाधान करता है। लोकपाल (ओम्बड्समैन) का यह कॉन्सेप्ट स्वीडन से आया है।
- लोकपाल किसी सेवा या प्रशासनिक प्राधिकरण के खिलाफ शिकायतों के समाधान के लिये विधायिका द्वारा नियुक्त एक अधिकारी है।
- भारत में निम्नलिखित क्षेत्रों में शिकायतों के समाधान के लिये लोकपाल की नियुक्ति की जाती है।
- बीमा लोकपाल
- आयकर लोकपाल
- बैंकिंग लोकपाल
प्रमुख बिंदु
- एकीकृत लोकपाल योजना:
- यह आरबीआई (RBI) की तीन लोकपाल योजनाओं- वर्ष 2006 की बैंकिंग लोकपाल योजना, वर्ष 2018 की एनबीएफसी ( NBFCs) के लिये लोकपाल योजना और वर्ष 2019 की डिजिटल लेन-देन की लोकपाल योजना को समाहित करता है।
- एकीकृत लोकपाल योजना भारतीय रिज़र्व बैंक विनियमित संस्थाएँ जैसे बैंक, एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ) और प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट प्लेयर द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में कमी से संबंधित ग्राहकों की शिकायतों का निवारण प्रदान करेगी, अगर शिकायत का समाधान ग्राहकों की संतुष्टि के अनुसार नहीं किया जाता है या विनियमित इकाई द्वारा 30 दिनों की अवधि के भीतर जवाब नहीं दिया जाता है।
- इसमें गैर-अनुसूचित प्राथमिक सहकारी बैंक भी शामिल हैं जिनकी जमा राशि 50 करोड़ रुपए या उससे अधिक है। यह योजना आरबीआई लोकपाल तंत्र के क्षेत्राधिकार को तटस्थ बनाकर 'एक राष्ट्र एक लोकपाल' दृष्टिकोण अपनाती है।
- आवश्यकता:
- पहली लोकपाल योजना वर्ष 1990 के दशक में शुरू की गई थी। इस प्रणाली को हमेशा उपभोक्ताओं द्वारा एक मुद्दे के रूप में देखा जाता था।
- इसकी प्राथमिक चिंताओं में से एक रखरखाव योग्य आधारों की कमी थी जिस पर उपभोक्ता लोकपाल में एक विनियमित इकाई के कार्यों को चुनौती दे सकता था या तकनीकी आधार पर शिकायत को अस्वीकार कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप निवारण के लिये विस्तारित समय सीमा के अलावा उपभोक्ता न्यायालय को वरीयता दी गई।
- सिस्टम (बैंकिंग, एनबीएफसी और डिजिटल भुगतान) को एकीकृत करने तथा शिकायतों के आधार का विस्तार करने के कदम से उपभोक्ताओं की सकारात्मक प्रतिक्रिया देखे जाने की उम्मीद है।
- विशेषताएँ:
- यह योजना अपवर्जनों की निर्दिष्ट सूची के साथ शिकायत दर्ज करने के आधार के रूप में 'सेवा में कमी' को परिभाषित करती है।
- अतः शिकायतों को अब केवल "योजना में सूचीबद्ध आधारों के अंतर्गत शामिल नहीं" होने के कारण खारिज नहीं किया जाएगा।
- यह योजना क्षेत्राधिकार तटस्थ है और किसी भी भाषा में शिकायतों के प्रारंभिक निपटान के लिये चंडीगढ़ में एक केंद्रीकृत रिसीप्ट और प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया गया है।
- आरबीआई ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल के इस्तेमाल के लिये एक प्रावधान किया था ताकि बैंक और जाँच एजेंसियाँ तीव्रता के साथ बेहतर तरीके से समन्वय कर सकें।
- बैंक ग्राहक शिकायत दर्ज करने, दस्तावेज़ जमा करने, वर्तमान स्थिति को ट्रैक करने और एक ईमेल के माध्यम से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होंगे।
- इसके लिये एक बहुभाषी टोल-फ्री नंबर भी होगा जो शिकायत निवारण संबंधी सभी प्रासंगिक जानकारी प्रदान करेगा।
- विनियमित संस्था को उन मामलों में अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा जहाँ लोकपाल द्वारा उसके विरूद्ध संतोषजनक और समय पर जानकारी प्रस्तुत नहीं करने के लिये नोटिस जारी किया गया हो।
- यह योजना अपवर्जनों की निर्दिष्ट सूची के साथ शिकायत दर्ज करने के आधार के रूप में 'सेवा में कमी' को परिभाषित करती है।
- अपीलीय प्राधिकरण:
- एकीकृत योजना के तहत उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण विभाग के प्रभारी आरबीआई के कार्यकारी निदेशक अपीलीय प्राधिकारी होंगे।
- महत्त्व:
- इससे आरबीआई द्वारा विनियमित संस्थाओं के खिलाफ ग्राहकों की शिकायतों के समाधान के लिये शिकायत निवारण तंत्र में सुधार करने में मदद मिलेगी।
- साथ ही यह एकरूपता सुनिश्चित करने और उपयोगकर्ता के अनुकूल तंत्र को सुव्यवस्थित करने में मदद करेगा तथा ग्राहकों की संतुष्टि एवं वित्तीय समावेशन बढ़ावा देगा।
- 44 करोड़ ऋण खाताधारकों और 220 करोड़ जमा खाताधारकों को लोकपाल योजना से सीधे लाभ होगा, वे अब एक ही मंच पर शिकायत दर्ज करने तथा अपनी शिकायतों की वर्तमान स्थिति जानने में सक्षम होंगे।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण,राष्ट्रीय शिक्षा नीति मेन्स के लिये:राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण का उद्देश्य तथा महत्त्व, भारत में शिक्षा से संबंधित कानून एवं संवैधानिक प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने पूरे भारत में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (National Achievement Survey) किया है, जिसमें 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 733 ज़िलों के 1.23 लाख स्कूलों के लगभग 38 लाख छात्रों का आकलन किया गया।
- सर्वेक्षण को आखिरी बार वर्ष 2017 में किया गया था और वर्ष 2020 में इसका आयोजन किया जाना था, लेकिन कोविड-19 के कारण इसे वर्ष 2021 तक के लिये स्थगित कर दिया गया था।
प्रमुख बिंदु:
- राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण:
- यह शिक्षा प्रणाली के सीखने के परिणामों और स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है।
- यह पूरे भारत में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा, राष्ट्रव्यापी, नमूना आधारित शिक्षा सर्वेक्षण है।
- यह सर्वेक्षण शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- यह सर्वेक्षण केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा आयोजित किया गया है।
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, 2021 के लिये एक मूल्यांकन ढाँचा और उपकरण तैयार किये हैं ।
- यह स्कूली शिक्षा की प्रभावशीलता पर एक प्रणाली-स्तरीय प्रतिबिंब प्रदान करता है।
- यह प्रासंगिक पृष्ठभूमि के कारकों जैसे- स्कूल का वातावरण, शिक्षण प्रक्रियाओं, छात्रों के परिवार एवं वातावरण के बारे में जानकारी एकत्र करता है।
- यह भारत के सरकारी स्कूलों (राज्य और केंद्र सरकार दोनों), सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों तथा निजी स्कूलों सहित स्कूलों के पूरे स्पेक्ट्रम को कवर करता है।
- यह शिक्षा प्रणाली के सीखने के परिणामों और स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है।
- माध्यम और ग्रेड:
- सर्वेक्षण को शिक्षा के 22 माध्यमों में आयोजित किया गया जिसमें अंग्रेज़ी, असमिया, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, हिंदी, मलयालम, मराठी, मणिपुरी, मिज़ो, पंजाबी, ओडिया, तेलुगू, तमिल, बोडो, उर्दू, गारो, कोंकणी, खासी, भूटिया, नेपाली और लेप्चा शामिल हैं।
- यह अलग-अलग ग्रेड के लिये अलग-अलग विषयों में आयोजित किया गया है। विषय और ग्रेड का विवरण निम्नलिखित है:
- ग्रेड 3 और 5: भाषा, ईवीएस (EVS) और गणित
- ग्रेड 8: भाषा, विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान
- ग्रेड 10: भाषा, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और अंग्रेज़ी
- उद्देश्य:
- ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर छात्रों के सीखने की गुणवत्ता को बेहतर करने हेतु नीति नियोजन, योजना निर्माण व सिखने सिखाने की प्रक्रियाओं के माध्यम से गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।
- महत्त्व:
- यह कोविड-19 महामारी के दौरान सीखने में उत्पन्न रुकावट और छात्रो के सिखने की प्रक्रिया का आकलन करने में मदद करेगा जो बदले में उपचारात्मक उपायों को बढ़ावा देगा।
- सर्वेक्षण के निष्कर्ष छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास के संदर्भ में स्कूलों के बंद होने का छात्रों की शिक्षा पर असर का मुल्यांकन करने के लिये लॉकडाउन से पहले और बाद में शिक्षा व्यवस्था का आकलन करने में मदद करेगा।
- यह छात्रों के सीखने के अंतराल का समाधान करने, शिक्षा नीतियों, सीखने तथा शिक्षण प्रथाओं को तैयार करने में मदद करेगा।
- सर्वेक्षण के निष्कर्ष अपने नैदानिक रिपोर्ट कार्ड के माध्यम से शिक्षकों, शिक्षा के विस्तार में शामिल अधिकारियों के लिये क्षमता निर्माण में मदद करते हैं।
भारत में शिक्षा:
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के भाग IV, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषित समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान है।
- वर्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन द्वारा शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- वर्ष 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा को अनुच्छेद 21(A) के तहत प्रवर्तनीय अधिकार बना दिया गया।
- संबंधित कानून:
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।
- यह समाज के वंचित वर्गों के लिये 25% आरक्षण को भी अनिवार्य करता है।
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।
- सरकार की पहल:
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना, नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी मेन्स के लिये:राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी (NIRA) के गठन पर विचार कर रही है।
- NIRA को देश में नदियों को जोड़ने से संबंधित परियोजनाओं की योजना, अन्वेषण, वित्तपोषण और कार्यान्वयन के लिये एक स्वतंत्र स्वायत्त निकाय के रूप में जाना जाएगाI
प्रमुख बिंदु
- NIRA नदियों को जोड़ने वाली सभी परियोजनाओं के लिये एक अम्ब्रेला निकाय के रूप में कार्य करेगा और इसकी अध्यक्षता भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी।
- यह मौजूदा राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) का स्थान लेगा।
- यह पड़ोसी देशों और संबंधित राज्यों एवं विभागों के साथ समन्वय करेगा तथा नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं और उनके विधिक पहलुओं के तहत पर्यावरण, वन्यजीव एवं वन मंज़ूरी से संबंधित मुद्दों पर भी अधिकार रखेगा।
- NIRA के पास धन सृजित करने और उधार ली गई धनराशि या जमा पर प्राप्त धन या ब्याज पर दिये गए ऋण की रिकवरी के रूप में कार्य करने की शक्ति होगी।
- इसके पास व्यक्तिगत/एकल लिंक परियोजनाओं के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) स्थापित करने की शक्ति भी होगी।
नदी जोड़ो परियोजना:
- उत्पत्ति: यह विचार पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान रखा गया था, जब एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन (Sir Arthur Thomas Cotton) ने नौवहन उद्देश्यों के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ने का सुझाव दिया था।
- उद्देश्य: नदी जोड़ो परियोजना (ILR) का उद्देश्य देश की ‘जल अधिशेष' वाली नदी घाटियों (जहाँ बाढ़ की स्थिति रहती है) से जल की ‘कमी’ वाली नदी घाटियों (जहाँ जल के अभाव या सूखे की स्थिति रहती है) को जोड़ना है ताकि अधिशेष क्षेत्रों से अतिरिक्त जल को कम क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सके।
- इन परियोजनाओं की आवश्यकता:
- क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: भारत मानसून की वर्षा पर निर्भर है जो अनियमित होने के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर असंतुलित भी है। नदियों को आपस में जोड़ने से अतिरिक्त वर्षा और समुद्र में नदी के जल प्रवाह की मात्रा में कमी आएगी।
- कृषि की सिंचाई: इंटरलिंकिंग द्वारा अतिरिक्त जल को न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करके न्यून वर्षा आधारित भारतीय कृषि क्षेत्रों में सिंचाई संबंधित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
- जल संकट को कम करना: यह सूखे और बाढ़ के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है।
- अन्य लाभ: इससे जल-विद्युत उत्पादन, वर्ष भर नौवहन, रोज़गार सृजन जैसे लाभों के साथ ही सूखे जंगल और भूमि क्षेत्रों में पारिस्थितिक गिरावट की भरपाई की जा सकेगी।
- संबंधित चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय लागत: परियोजना से नदियों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है।
- प्रस्तावित बाँध हिमालय के जंगलों को खतरे में डाल सकते हैं और मानसून प्रणाली के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: इंटरलिंकिंग सिस्टम में यह माना जाता है कि डोनर बेसिन में अधिशेष जल प्राप्त होता है जिसे प्राप्तकर्ता बेसिन को उपलब्ध कराया जा सकता है।
- यदि जलवायु परिवर्तन के कारण किसी भी प्रणाली की मूल स्थिति में व्यवधान उत्पन्न होता है तो इसकी अवधारणा निरर्थक हो जाती है।
- आर्थिक लागत: अनुमान है कि नदियों को आपस में जोड़ने से सरकार पर व्यापक वित्तीय बोझ पड़ेगा।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 15000 किमी. तक फैले नहरों के नेटवर्क से लगभग 5.5 मिलियन लोग विस्थापित होंगे, इनमें ज़्यादातर आदिवासी और किसान वर्ग अधिक प्रभावित होंगे।
- पर्यावरणीय लागत: परियोजना से नदियों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है।
नदियों को आपस में जोड़ने हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP)
आगे की राह
- नदियों को आपस में जोड़ने के फायदे और नुकसान दोनों हैं, लेकिन आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए इस परियोजना को केंद्रीकृत राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना एक बेहतर निर्णय नहीं हो सकता है।
- इसके अलावा नदियों को आपस में जोड़ने का काम विकेंद्रीकृत तरीके से किया जा सकता है तथा बाढ़ और सूखे को कम करने हेतु वर्षा जल संचयन जैसे अधिक टिकाऊ तरीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। उदाहरणतः केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बेलारूस-पोलैंड सीमा संकट
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, 1951 या शरणार्थी अभिसमय, अरब स्प्रिंग मेन्स के लिये:बेलारूस-पोलैंड सीमा संकट का वर्तमान कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बेलारूस और रूस के पैराट्रूपर्स (Paratroopers) द्वारा पोलैंड और लिथुआनियाई सीमाओं के पास संयुक्त अभ्यास किया गया।
- यह अभ्यास उस समय संपन्न हुआ जब सीमावर्ती जंगलों में डेरा डाले हुए प्रवासियों को लेकर बेलारूस और यूरोपीय संघ (European Union- EU) के मध्य गतिरोध की स्थिति है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- अगस्त 2020 के चुनाव के बाद से बेलारूस में महीनों विरोध प्रदर्शन हुए, जिसने सत्तावादी राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको को छठा कार्यकाल प्रदान किया।
- विपक्ष और पश्चिम देशों ने परिणाम को दिखावा बताकर खारिज कर दिया।
- बेलारूस के अधिकारियों द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक भीषण कार्रवाई की गई, जिसमें 35,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और पुलिस द्वारा हज़ारों लोगों को पीटा गया।
- यूरोपीय संघ और अमेरिका ने बेलारूस सरकार पर प्रतिबंध लगाकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
- मई 2021 में बेलारूस द्वारा एक यात्री जेट को जबरन डायवर्ट किया गया तथा "स्टेट पाइरेसी" (जहांँ राज्य शामिल है) के रूप में पश्चिमी शक्तियों द्वारा निंदा किये गए एक अधिनियम के तहत गिरफ्तार करने हेतु एक विपक्षी पत्रकार से हाथापाई की गई जिसके बाद प्रतिबंधों को और मज़बूत कर दिया गया।
- बेलारूस सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वह अब अवैध प्रवासन को रोकने हेतु समझौते का पालन नहीं करेगा तथा तर्क दिया कि प्रवासियों के प्रवाह को रोकने के लिये यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधों द्वारा आवश्यक धन से उनकी सरकार को वंचित कर दिया।
- यह अनिर्दिष्ट प्रवासियों और शरणार्थियों को यूरोपीय संघ तक पहुंँचने की कोशिश से रोक देगा।
- बेलारूस में विपक्ष ने यूरोपीय संघ से और भी सख्त कदम उठाने का आग्रह किया है, जिसमें व्यापार प्रतिबंध तथा बेलारूस के माध्यम से कार्गो के पारगमन पर प्रतिबंध लगाना शामिल है।
- हालाँकि बेलारूस सरकार ने बेलारूस से पाइपलाइनों के माध्यम से यूरोप को रूस से गैस की आपूर्ति में कटौती करने की धमकी दी है लेकिन रूस उस खतरे से खुद को दूर करता हुआ दिखाई दिया।
- अगस्त 2020 के चुनाव के बाद से बेलारूस में महीनों विरोध प्रदर्शन हुए, जिसने सत्तावादी राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको को छठा कार्यकाल प्रदान किया।
- वर्तमान संकट:
- पोलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य है।
- पोलैंड पर दक्षिणपंथी लोकलुभावन लॉ एंड जस्टिस पार्टी (PiS) का शासन है जो अप्रवासियों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखती है।
- मध्य पूर्व से आने वाले हज़ारों लोग पोलैंड के साथ सीमा पर डेरा डाले हुए हैं, ठंड की स्थिति को सहन करने वाले प्रवासियों में महिलाएंँ और बच्चे भी शामिल हैं।
- पोलैंड में सरकार सहायता संगठनों को आपूर्ति प्रदान करने की अनुमति भी नहीं दे रही है। यह संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, 1951 या शरणार्थी अभिसमय का उल्लंघन करता है।
- पोलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य है।
- रूस का समर्थन:
- बेलारूस को अपने मुख्य सहयोगी रूस से मज़बूत समर्थन प्राप्त है, जिसने लुकाशेंको की सरकार को ऋण और राजनीतिक समर्थन के साथ मदद की है।
- रूस ने कहा कि इराक और अफगानिस्तान में प्रवासियों का प्रवाह अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्धों और मध्य पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका में पश्चिमी समर्थित अरब स्प्रिंग विद्रोह के परिणामस्वरूप हुआ।
- बेलारूस के साथ अपनी सीमा पर पोलैंड की सेना द्वारा किये गए निर्माण कार्य के जवाब में रूस ने सीमा क्षेत्र में गश्त के लिये दो रणनीतिक, लंबी दूरी के टीयू-22एम3 बमवर्षक भेजे।
- रूस ने भी यह तर्क देते हुए प्रवासी संकट के लिये यूरोपीय संघ को पूरी तरह से दोषी ठहराया है कि यह संकट पैदा होने का मुख्य कारण शरणार्थियों को स्वीकार करने से यूरोपीय संघ का इनकार था।
- यूरोपियन संघ का पक्ष:
- यूरोपीय संघ ने पोलैंड, लिथुआनिया और लातविया के साथ एकजुटता का मज़बूत प्रदर्शन किया है। यूरोपीय संघ के अधिकारियों से बेलारूस के खिलाफ प्रतिबंधों के एक और दौर पर चर्चा किये जाने की उम्मीद है।
- यूरोपीय संघ ने बेलारूस पर हज़ारों प्रवासियों, मुख्य रूप से पश्चिम एशिया से उड़ान भरने और पोलैंड में अवैध रूप से सीमा पार करने की कोशिश करने से रोककर इस ब्लॉक पर "हाइब्रिड हमला" करने का आरोप लगाया है।
- बेलारूस के पड़ोसियों ने चिंता व्यक्त की है कि यह संकट एक सैन्य टकराव के रूप में आगे बढ़ सकता है।
- हालाँकि बेलारूस ने भी प्रवासियों के प्रवाह को प्रोत्साहित करने से इनकार किया है और कहा कि यूरोपीय संघ प्रवासियों के अधिकारों का उल्लंघन कर उन्हें सुरक्षित मार्ग से वंचित कर रहा है।
- वैश्विक प्रतिक्रिया:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पश्चिमी सदस्यों ने पोलैंड से लगी सीमा पर फँसे प्रवासियों के बढ़ते संकट के लिये बेलारूस की निंदा की है।
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और प्रवासन हेतु अंतर्राष्ट्रीय संगठन (आईओएम) स्थिति के तत्काल समाधान तथा यूरोपीय संघ के लिये तत्काल एवं निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहे हैं ताकि मानवीय सहायता प्रदान की जा सके।
आगे की राह
- यूरोपीय संघ के बेलारूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने के साथ ही पोलैंड ने प्रवासियों को बाहर रखने का दृढ़ संकल्प किया, बेलारूस बिना भोजन या पानी के जंगलों में डेरा डाले हुए प्रवासियों की सहायता के लिये उपाय करने को तैयार नहीं है और हज़ारों प्रवासियों का भाग्य इस पर टिका हुआ है।
- यूरोपीय संघ को अपने हिस्से के लिये पोलैंड के साथ एकजुटता की अपनी अंधी घोषणाओं को रोकना चाहिये और सीमा पर मानवीय समाधान हेतु तुरंत काम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की मदद से सरकार पर दबाव डालना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कामो-ओलेवा
प्रिलिम्स के लिये:कामो-ओलेवा, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, नियर अर्थ ऑब्जेक्ट,अपोलो मिशन मेन्स के लिये:क्षुद्रग्रह तथा उनसे संबंधित विभिन्न तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) नामक एक अर्द्ध-उपग्रह (Quasi-satellite) का पता लगाया है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा का अनुसरण करता है, यह चंद्रमा से निकला एक खंड हो सकता है।
- कामो-ओलेवा के नमूने को एकत्र करने हेतु वर्ष 2025 में एक मिशन लॉन्च करने की योजना निर्धारित की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कामो-ओलेवा:
- वर्ष 2016 में खोजा गया (हवाई में PanSTARRS टेलीस्कोप के माध्यम से) कमो-ओलेवा एक ऐसा शब्द है जो एक हवाईयान चैंट (गीत) का हिस्सा है अर्थात् एक घूमता हुआ अंतरिक्ष का टुकड़ा है।
- यह पृथ्वी के अर्द्ध-उपग्रहों में से एक है, एक अंतरिक्ष चट्टान जो सूर्य की परिक्रमा करती है, लेकिन ग्रह के अपेक्षाकृत नज़दीक मौजूद होती है, अर्थात् लगभग 9 मिलियन मील दूर।
- क्षुद्रग्रह सामान्यत: फेरिस व्हील के आकार के होते हैं जिनका व्यास 150 से 190 फीट के मध्य होता है।
- इसके छोटे आकार (लगभग 50 मीटर चौड़े) के कारण इस अर्द्ध-उपग्रह का अध्ययन करना वैज्ञानिकों के लिये कठिन रहा है और इसके बारे में अब तक बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी।
- तीन परिणामी संभावनाएँ:
- पृथ्वी के चंद्रमा का हिस्सा:
- एक संभावित प्रभाव के कारण यह चंद्रमा से अलग हुआ होगा और पृथ्वी के बजाय सूर्य की कक्षा में चला गया, जैसा कि उसके स्रोत ग्रह या उपग्रह करते हैं।
- कामो-ओलेवा से परावर्तित प्रकाश का स्पेक्ट्रम नासा के अपोलो मिशन द्वारा प्राप्त चंद्रमा के चट्टानों से काफी मिलता-जुलता है तथा यह संभावना है कि यह चंद्रमा से उत्पन्न हुआ है।
- यह एक असामान्य कक्षा में है, क्योंकि मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद क्षुद्रग्रह बेल्ट से वस्तुओं का पृथ्वी की ओर आना असंभव होगा।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा अभी यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि चंद्रमा का टुकड़ा आंशिक रूप से अंतरिक्ष में कैसे आया, क्योंकि चंद्रमा की उत्पत्ति के समय कोई अन्य ज्ञात क्षुद्रग्रह नहीं था। हालाँकि उन्होंने 1,00,000 से 500 वर्षों पहले हुई विध्वंशक घटना की समयसीमा को कम कर दिया है।
- नियर अर्थ ऑब्जेक्ट:
- नियर अर्थ ऑब्जेक्ट की समानता वाले क्षेत्र से पृथ्वी के समान कक्षा में कैप्चर किया गया।
- पृथ्वी के ट्रोजन क्षुद्रग्रह:
- यह पृथ्वी के ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की अभी तक अपरिभाषित एक अर्द्ध-स्थिर आबादी से उत्पन्न हुआ है (ट्रोजन क्षुद्रग्रहों का एक समूह है जो एक बड़े ग्रह के साथ एक कक्षा (Orbit) साझा करते हैं)।
- पृथ्वी के चंद्रमा का हिस्सा:
नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (NEOs)
- ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) का आशय ऐसे धूमकेतु या क्षुद्र ग्रह से है जो पास के ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उनके ऑर्बिट/कक्षा में आ जाते हैं, यह उन्हें पृथ्वी के करीब आने की अनुमति देता है।
- ये क्षुद्रग्रह ज़्यादातर बर्फ और धूल के कण से मिलकर बने होते हैं।
- NEO कभी-कभी पृथ्वी के करीब पहुँचते हैं क्योंकि वे सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
- नासा का सेंटर फॉर नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडी (CNEOS) क्षुद्रग्रह वॉच विज़ेट के माध्यम से उस स्थिति में इन ऑब्जेक्ट्स के समय और दूरी को निर्धारित करता है, जब ये पृथ्वी के नज़दीक होते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
CBI और ED निदेशकों का कार्यकाल विस्तार
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय मेन्स के लिये:भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में प्रमुख संस्थानों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किये हैं, जो केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) के निदेशकों के कार्यकाल को दो साल से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने की अनुमति देते हैं।
- अध्यादेशों के माध्यम से ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946’ और ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003’ में संशोधन किया गया है, ताकि सरकार को दोनों संस्थानों के प्रमुखों को उनके दो वर्ष पूरे करने के बाद एक वर्ष के लिये अपने पदों पर रखने की शक्ति मिल सके।
- केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों का वर्तमान में निश्चित दो साल का कार्यकाल होता है, लेकिन अब उन्हें तीन वार्षिक विस्तार दिये जा सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ में संशोधन:
- सार्वजनिक हित में संबंधित समिति (प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्त्व वाली समिति) की सिफारिश के आधार पर निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- बशर्ते कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई विस्तार प्रदान नहीं किया जाएगा।
- सार्वजनिक हित में संबंधित समिति (प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्त्व वाली समिति) की सिफारिश के आधार पर निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम’ में संशोधन:
- सार्वजनिक हित में संबंधित समिति (जिसमें सीवीसी प्रमुख, राजस्व और गृह सचिव शामिल हैं) की सिफारिश के आधार पर निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- बशर्ते कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई विस्तार प्रदान नहीं किया जाएगा।
- सार्वजनिक हित में संबंधित समिति (जिसमें सीवीसी प्रमुख, राजस्व और गृह सचिव शामिल हैं) की सिफारिश के आधार पर निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’:
- इसकी स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
- वर्तमान में यह कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति (1962-1964) द्वारा इसकी स्थापना की सिफारिश की गई थी।
- यह एक वैधानिक निकाय नहीं है। यह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी शक्तियाँ प्राप्त करता है।
- यह केंद्र सरकार की प्रमुख जाँच एजेंसी है।
- यह केंद्रीय सतर्कता आयोग और लोकपाल को भी सहायता प्रदान करता है।
- यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।
- इसका नेतृत्व एक निदेशक करता है।
- CBI के पास आईपीसी के तहत शामिल 69 केंद्रीय कानूनों, 18 राज्य अधिनियमों और 231 अपराधों से संबंधित कानूनों के तहत जाँच करने का क्षेत्र है।
प्रवर्तन निदेशालय:
- प्रवर्तन निदेशालय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के तहत एक विशेष वित्तीय जांँच एजेंसी है।
- 1 मई 1956 को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 के तहत विनिमय नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन से निपटने के लिये आर्थिक मामलों के विभाग में एक 'प्रवर्तन इकाई' का गठन किया गया था।
- वर्ष 1957 में इस इकाई का नाम बदलकर 'प्रवर्तन निदेशालय' कर दिया गया।
- ED निम्नलिखित कानूनों को लागू करता है: