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डेली न्यूज़

  • 15 Nov, 2019
  • 67 min read
भूगोल

पम्बा-अचनकोविल-वैपर नदी जोड़ो परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में नदी जोड़ों परियोजनाएँ

मेन्स के लिये:

परियोजना के लाभ और हानियाँ

चर्चा में क्यों?

केरल सरकार प्रस्तावित पम्बा-अचनकोविल-वैपर (Pamba-Achankovil-Vaippar) नदी परियोजना के कार्यान्वयन का विरोध कर रही है क्योंकि इस परियोजना से केरल-तमिलनाडु के मध्य जल का डायवर्ज़न बढ़ जाएगा। केरल के अनुसार राज्य की नदियों में अतिरिक्त जल नहीं है।

परियोजना के बारे में:

  • इस परियोजना की परिकल्पना वर्ष 1995 में केरल के लिये 500 मेगावाट बिजली का उत्पादन तथा तमिलनाडु में भूमि सिंचाई हेतु की गई थी।
  • राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (National Water Development Agency-NWDA) की परियोजनाओं में सूचीबद्ध इस परियोजना के तहत केरल में पम्बा और अचनकोविल नदियों से तमिलनाडु के वैपर बेसिन के लिये 634 क्यूबिक मिलीमीटर पानी के डायवर्जन की परिकल्पना की गई है।
    • हालाँकि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार इस परियोजना को इसमें शामिल राज्यों की मंज़ूरी के बाद ही क्रियान्वित किया जाएगा।

india

नदी जोड़ो परियोजनाओं के लाभ:

  • ये परियोजनाएँ देश की जल और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ सूखे की समस्या से निपटने के लिये आवश्यक हैं।
  • परियोजना द्वारा जल का संग्रहण करना या जल अधिशेष क्षेत्र से कम उपलब्धता वाले क्षेत्र में जल स्थानांतरित करना, मानसून की विफलता के कारण होने वाली समस्या का एक व्यावहारिक समाधान है।
  • चूँकि ग्रामीण भारत का मुख्य व्यवसाय कृषि है और यदि किसी वर्ष मानसून  विफल हो जाता है, तो कृषि गतिविधियों में ठहराव आ जाता है जो ग्रामीण गरीबी बढ़ने का एक कारक है।
  • इसके अलावा ये परियोजनाएँ, आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये एक नया व्यवसाय सृजित करती हैं जैसे- मछली पालन

इनसे संबंधित मुद्दे:

  • इस परियोजना का विरोध करने वालों ने जल-जमाव, लवणता और मरुस्थलीकरण जैसे सामाजिक-पारिस्थितिकीय प्रभावों के समग्र मूल्यांकन के अभाव का हवाला देते हुए इसकी उपादेयता पर प्रश्न उठाए हैं।
  • नहरों और जलाशयों के निर्माण के लिये बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जाती है इससे वर्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

पम्बा नदी

  • इस नदी का उद्भव केरल के इडुक्की ज़िले में स्थित पीरमेड पठार (Peermade Platue) से होता है और यह अंत में अरब की खाड़ी में गिरती है।
  • पम्बा नदी का पूरा जलग्रहण क्षेत्र केरल राज्य में है।
  • पम्बा बेसिन पूर्व में पश्चिमी घाट से और पश्चिम में अरब सागर से घिरा हुआ है।

अचनकोविल नदी

  • इस नदी का उद्भव पश्चिमी घाट में केरल के पठानमथिट्टा ( Pathanamthitta) ज़िले से होता है।
  • यह वीयपुरम (Veeyapuram) में पम्बा नदी से मिलती है।
  • यह नदी पूरी तरह से केरल राज्य में विस्तारित है।

वैपर नदी

  • इस नदी का उद्भव तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के वरुशनाड पहाड़ी शृंखला ( Varushanad hill) रेंज के पूर्वी ढलानों से होता है।

राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (National Water Development Agency-NWDA):

  • NWDA की स्थापना जुलाई 1982 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत स्वायत्त सोसाइटी के रूप में की गई थी।
  • इसके कार्य इस प्रकार हैं-
    • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में परियोजना के प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को ठोस आकार देना।
    • जल संसाधनों के ईष्टतम उपयोग के लिये वैज्ञानिक और यथार्थवादी आधार पर जल संतुलन तथा अन्य अध्ययन करने एवं संभाव्यता रिपोर्टें तैयार करना।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

विदेशी योगदान  (विनियमन) अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये - FCRA के दिशा-निर्देश

मेन्स के लिये - विदेशी फंड्स का दुरुपयोग रोकने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई गैर सरकारी संगठनों और शिक्षण संस्थानों का एफसीआरए (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) के तहत पंजीकरण रद्द कर दिया है।

प्रमुख बिंदु-

  • 1800 से अधिक गैर-सरकारी संगठन और शैक्षणिक संस्थान जो कानून का उल्लंघन करते पाए गए हैं, उनके विदेशी धन प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • FCRA के तहत जिन संस्थाओं का पंजीकरण रद्द किया गया है, उनमें राजस्थान विश्वविद्यालय, इलाहाबाद कृषि संस्थान, यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन, तमिलनाडु (Young Mens Christian Association-YMCA) और स्वामी विवेकानंद एजुकेशनल सोसाइटी, कर्नाटक भी शामिल हैं।
  • मंत्रालय के अनुसार पंजीकरण रद्द करने का प्रमुख कारण संस्थाओं द्वारा FCRA कानून का उल्लंघन करना है।
  • FCRA के दिशा निर्देशों के अनुसार पंजीकृत संस्थाओं को वित्तीय वर्ष के पूरा होने के 9 महीने के भीतर आय और व्यय का विवरण, प्राप्ति और भुगतान खाते, बही खाते इत्यादि की स्कैन प्रतियों के साथ एक ऑनलाइन वार्षिक रिपोर्ट जमा करनी होती है।
  • जिन पंजीकृत संगठनों को जिस वर्ष विदेशी योगदान नहीं मिलता, उन्हें भी उक्त अवधि के तहत उस वित्त वर्ष के लिये निल रिटर्न (Nil Return) भरना होता है।

विदेशी योगदान  (Foreign contribution)

व्यक्तिगत उपयोग के लिये मिले उपहार के अलावा विदेशी स्रोत से मिली वस्तुएं, मुद्रा और   प्रतिभूतियाँ विदेशी योगदान के अंतर्गत आती हैं। 

विदेशी योगदान  (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA)

  • भारत सरकार ने विदेशी योगदान की स्वीकृति और विनियमन के उद्देश्य से वर्ष 1976 में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) लागू किया।
  • वर्ष 2010 में इस अधिनियम को प्रमुखता से संशोधित किया गया। एफसीआरए, 1976 के प्रावधानों को आमतौर पर बरकरार रखते हुए इसमें कई नए प्रावधान भी जोड़े गये।
  • इसके तहत राजनीतिक प्रकृति का कोई भी संगठन, ऑडियो, ऑडियो विजुअल न्यूज या करंट अफेयर्स कार्यक्रम के निर्माण और प्रसारण में लगे किसी भी संगठन को विदेशी योगदान स्वीकार करने के लिये प्रतिबंधित किया गया है।
  • FCRA, 2010 के तहत दिया गया प्रमाण-पत्र पाँच साल तक के लिये वैध होगा तथा पूर्व अनुमति, विशेष कार्य या विदेशी योगदान जिसके लिए अनुमति दी गई है, उस विशेष राशि की प्राप्ति के लिए वैध होगा। 
  • नए प्रावधानों के तहत कोई भी व्यक्ति जो FCRA के प्रावधानों के अनुसार विदेशी योगदान  प्राप्त करता है, उस राशि को तब तक हस्तांतरित नहीं कर सकता जब तक कि वह व्यक्ति भी केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार विदेशी योगदान प्राप्त करने के लिये अधिकृत न हो।
  • FCRA के तहत पंजीकृत होने के लिये एक गैर सरकारी संगठन को पूर्व में कम से कम तीन वर्षों के तक सक्रिय होना चाहिये। इसके अलावा इसकी गतिविधियों पर इसके आवेदन की तारीख से पूर्व के तीन वर्षों में 1,000,000 रुपए तक खर्च किये गए हों।
  • नए प्रावधानों के तहत एक वित्तीय वर्ष में एक करोड़ रूपए से अधिक या उसके समकक्ष विदेशी योगदान की प्राप्ति होने पर आँकड़ों को तथा उस साल के साथ-साथ अगले वर्ष के विदेशी योगदान के प्रयोग को भी सार्वजनिक करना होगा।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड

प्रीलिम्स के लिये: हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड, विश्व सीमा शुल्क संगठन

मेन्स के लिये: हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड से संबंधित विभिन्न तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा खादी को एक अलग ‘हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड’ आवंटित किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय संस्कृति की अभिन्न पहचान खादी को हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड (Harmonised System Code-HS Code) प्रदान किया गया है।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय महात्मा गांधी ने हाथ की कताई तथा बुनाई वाले खादी के वस्त्रों को ही पहना था।
  • केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) मंत्रालय के अनुसार, खादी को HS कोड मिलने से इसकी रूढ़िगत छवि से छुटकारा मिलेगा तथा इसके उत्पादों का निर्यात बढ़ेगा।

 हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड:
 (Harmonised System Code-HS Code)

  • हार्मोनाइज़्ड सिस्टम कोड छह अंकों का एक कोड है, जिसे विश्व सीमा शुल्क संगठन  (World Customs Organization) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इस कोड के मिलने का अर्थ है किसी वस्तु का बहुउद्देशीय अंतर्राष्ट्रीय उत्पाद के रूप में पहचान प्राप्त करना।
  • वर्तमान में 200 से अधिक देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आँकड़ों के संग्रह, व्यापार नीतियाँ बनाने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपने सामान की निगरानी तथा अपने सीमा-शुल्क की दरों को सुनिश्चित करने के लिये HS कोड प्रणाली का उपयोग करते हैं।
  • HS कोड प्रणाली उत्पादों की व्यापार प्रक्रियाओं तथा सीमा शुल्क को सुसंगत बनाती है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लागत को कम करती है।
  • विश्व सीमा-शुल्क संगठन के अनुसार, वर्तमान में HS कोड प्रणाली में लगभग 5000 कमोडिटी समूह शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक समूह को 6 अंकों वाला एक यूनिक (Unique) नंबर प्रदान किया जाता है, इस कोड में संख्याओं को कानूनी और तार्किक ढंग से व्यवस्थित किया जाता है। यह कोड विश्व में सीमा-शुल्क दरों में समान वर्गीकरण नियमों को अच्छी तरह परिभाषित करता है।
  • HS कोड में प्रथम दो अंक HS अध्याय, अगले दो अंक HS शीर्षक तथा बाकी दो अंक HS उप-शीर्षक को प्रदर्शित करते हैं।
  • उदाहरण के लिये, अनन्नास का HS कोड 0804.30 है। यहाँ 08 खाद्य फलों, नट्स, छिलके वाले साइट्रस (Citrus) फलों के लिये अध्याय कोड है, 04 खजूर, अनन्नास, अवागेदो जैसे रसीले और सूखे फलों के लिये शीर्षक है तथा 30 विशेषतः अनन्नास के लिये उप-शीर्षक है।

खादी को HS कोड प्रदान करने के निहितार्थ:

  • केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा उठाए गए इस कदम से आने वाले वर्षों में खादी उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2006 में केंद्र सरकार ने MSME के अधीन स्थापित खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग को निर्यात संवर्द्धन परिषद का दर्जा दिया गया था।
  • परंतु खादी के लिये अलग HS कोड न होने के कारण इसके निर्यात को वर्गीकृत तथा इसकी गणना करना कठिन था। इस नवीनतम कदम से इस समस्या को हल करने में सहायता मिलेगी।
  • खादी को HS कोड न मिलने के कारण इसके निर्यात संबंधी आँकड़ों को सामान्य कपड़ों से संबंधित आँकड़ों के रूप में ही लिया जाता था। परंतु अब खादी को HS कोड मिलने से खादी के निर्यात से संबंधित न केवल शुद्ध आँकड़े प्राप्त होंगे बल्कि भविष्य में यह कोड निर्यात रणनीति बनाने में भी सहायता करेगा।

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र विकास गतिविधियाँ

प्रीलिम्स के लिये: संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियाँ

मेन्स के लिये: भारत द्वारा विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को दिया गया आर्थिक योगदान से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) की विभिन्न एजेंसियों को वर्ष 2020 में विकास संबंधी विभिन्न गतिविधियों के परिचालन के लिये 13.5 मिलियन यूएस डॉलर के योगदान की घोषणा की है।

मुख्य बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के अनुसार, भारत ने ‘यूएन जनरल असेंबली प्लेजिंग कॉफ्रेंस’ (UN General Assembly Pledging Conference) के दौरान वर्ष 2020 में UN द्वारा परिचालित विकास गतिविधियों के लिये 13.5 मिलियन यूएस डॉलर के योगदान की प्रतिबद्धता जताई है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र की विकास संबंधित गतिविधियों में अपने योगदान की दीर्घकालिक परंपरा को जारी रखते हुए यह प्रतिबद्धता जताई है।

संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों को भारत द्वारा आर्थिक योगदान:

  • भारत संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UN Relief and Works Agency) को फिलिस्तीनी शरणार्थियों के सहयोग के लिये 5 मिलियन यूएस डॉलर का योगदान तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UN Development Programme) को 4.5 मिलियन यूएस डॉलर का योगदान करेगा।
  • भारत द्वारा विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) को 1.92 मिलियन यूएस डॉलर, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UN Children’s Fund) को 900,000 यूएस डॉलर, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund) को 500,000 यूएस डॉलर त्तथा ‘यूएन वॉलेंटरी फंड फॉर टेक्निकल को-ऑपरेशन’ (UN Voluntary Fund For Technical Co-operation) को 200’000 यूएस डॉलर का आर्थिक योगदान दिया जाएगा।
  • भारत संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme) और संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स एवं अपराध कार्यालय (UN Office on Drugs and Crime) को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये 100,000 यूएस डॉलर का योगदान करेगा।
  • भारत ‘यूएन कमीशन ऑन ह्यूमन सैटलमेंट प्रोग्राम’ (UN Commission on Human Settlement Programme) में 150,000 यूएस डॉलर का योगदान करेगा।

भारत के अन्य प्रयास:

  • भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी गतिविधियों को उचित और संतुलित रूप से चलाने के लिये पर्याप्त संसाधन होने चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र को प्रत्येक वर्ष विभिन्न माध्यमों से लगभग 50 बिलियन यूएस डॉलर के संसाधनों का योगदान होता है, जिसमें से 65% संसाधनों को उपयोग के लिये चिह्नित किया जाता है और अंतिम रूप से 35% से कम संसाधनों का उपयोग विकास तथा तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में हो पाता है।
  • भारत ने वर्ष 2017 में ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ (UN Office for South-South Cooperation) के साथ मिलकर भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष (India-UN Development Partnership Fund) की स्थापना की थी जिसके अंतर्गत आवश्यक विकास परियोजनाओं के लिये 150 मिलियन यूएस डॉलर की व्यवस्था की गई।
  • भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष की स्थापना के बाद इसमें अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियाई और एशिया-प्रशांत क्षेत्रों के 35 से अधिक देशों ने भागीदारी की है।
  • भारत ने ‘कैरेबियन कम्युनिटी एंड कॉमन मार्केट’ (Caribbean Community and Common Market- CARICOM) समूह के देशों में सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिये 14 मिलियन यूएस डॉलर तथा सौर नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र से संबंधित परियोजनाओं के लिये 150 मिलियन यूएस डॉलर के ऋण की व्यवस्था की है।
  • न्यूयॉर्क में भारत तथा ‘पैसिफिक स्माल आइलैंड्स डेवलपिंग स्टेट्स (Pacific Islands Developing States- PSIDS) देशों की बैठक के दौरान भारत ने PSIDS देशों को 12 मिलियन यूएस डॉलर का अनुदान देने का निर्णय लिया, PSIDS समूह के देश अपनी पसंद के विकासात्मक क्षेत्र में किसी परियोजना का कार्यान्वयन कर सकें।
  • बीते दशक के दौरान, भारत ने 60 विकासशील देशों के लिये लगभग 26 बिलियन यूएस डॉलर की सहायता उपलब्ध कराई है।

अन्य तथ्य:

  • वर्ष 2019 की ‘यूएन जनरल असेंबली प्लेजिंग कॉफ्रेंस’ (UN General Assembly Pledging Conference) के दौरान लगभग 16 देशों ने कुल 516 मिलियन यूएस डॉलर के योगदान की प्रतिबद्धता जताई है जो कि वर्ष 2018 के दौरान 425.69 मिलियन यूएस डॉलर था।
  • संयुक्त राष्ट्र को वर्ष 2017 में संपूर्ण रूप से 33.6 बिलियन यूएस डॉलर का योगदान मिला था जो कि 2016 से 3% अधिक था।

स्रोत-द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

मैंग्रोव वनों का घटता क्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये :

मैंग्रोव वन क्या है?

मेन्स के लिये : 

जैव पारिस्थितिकी के संरक्षण में मैंग्रोव वनों का योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बंगाल की खाड़ी में आए तीव्र चक्रवात ‘बुलबुल’ से बचाव में मैंग्रोव वनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई किंतु मैंग्रोव वनों का घटता क्षेत्रफल जैव पारिस्थितिकी के लिये एक चिंता का विषय है।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय सुंदरबन क्षेत्र में पड़ने वाले सागर द्वीप (Sagar Island) से बुलबुल चक्रवात (Bulbul Cyclone) के तेजी से टकराने से वहाँ के मछुआरों तथा उनकी नावों को काफी नुकसान हुआ।
  • परंतु इसी बीच कलश द्वीप (Kalash Island) पर फँसे कुछ पर्यटक इसलिये सुरक्षित बचे क्योंकि उन्होंने वहाँ स्थित मैंग्रोव क्षेत्र में शरण ली।
  • पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, 110 से 135 किलोमीटर/घंटा की रफ़्तार से चलने वाली चक्रवाती हवाओं से सुंदरबन को बचाने में मैंग्रोव की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इनकी अनुपस्थिति में यह चक्रवात खतरनाक साबित हो सकता था।
  • ‘जादवपुर विश्वविद्यालय’ द्वारा किये गए एक अध्ययन में बताया गया है कि लगभग 10,000 वर्ग किमी. मैंग्रोव क्षेत्र, जो लाखों लोगों के भोजन, पानी और वन उत्पादों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, के लिये जलवायु परिवर्तन एक उभरता हुआ खतरा उत्पन्न कर रहा है।
  • आम तौर पर नदियों द्वारा लाई गई तलछट, यहाँ अवस्थित द्वीपों के क्षेत्रफल में वृद्धि करती थी, अब यह तलछट नदियों पर बनाए जा रहे बांधों द्वारा रोक ली जाती है। फलस्वरूप द्वीपों के क्षेत्रफल में कमी के साथ ही मैंग्रोव वनों के क्षेत्रफल में भी कमी देखी जा रही है।

मैंग्रोव क्या है?

  • ये छोटे पेड़ या झाड़ी होते हैं जो समुद्र तटों, नदियों के मुहानों पर स्थित ज्वारीय, दलदली भूमि पर पाए जाते हैं। मुख्यतः खारे पानी में इनका विकास होता है।
  • इस शब्द का इस्तेमाल उष्णकटिबंधीय तटीय वनस्पतियों के लिये भी किया जाता है, जिसमें ऐसी ही प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • मैंग्रोव वन मुख्यतः 25 डिग्री उत्तर और 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • भारत में सुंदरबन का क्षेत्र 9,630 वर्ग किमी. में फैला हुआ है जिसमें 4,263 वर्ग किमी. में मैंग्रोव विद्यमान है।
  • यह दम्पियर-हॉज़स रेखा (Dampier-Hodges line) के दक्षिण में पश्चिम बंगाल के उत्तरी तथा दक्षिणी चौबीस परगना जिलों में स्थित है।

दम्पियर-हॉज़स रेखा (Dampier-Hodges line) - 

यह एक काल्पनिक रेखा है जिसका निर्माण वर्ष 1829-30 में सुंदरबन डेल्टा के उत्तरी सीमा के निर्धारण के लिये किया गया था। यह पश्चिम बंगाल के उत्तरी तथा दक्षिणी चौबीस परगना ज़िलों में स्थित है।

मैंग्रोव के दोहन का कारण: 

  • हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने मैंग्रोव वनों के दोहन की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया जिसमें पाया गया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने बंगलर आबास (Banglar Abas) नामक योजना में घरों के वितरण के लिये मैंग्रोव वनों की कटाई की। 
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) द्वारा सैटेलाइट से लिये गए आँकड़ों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार, फरवरी 2003 से फरवरी 2019 के मध्य 9990 हेक्टेयर भूमि का अपरदन हुआ है। इसके अलावा 3.71 प्रतिशत मैंग्रोव तथा अन्य वनों का ह्रास हुआ है।
  • मैंग्रोव वनों का दोहन न सिर्फ एक्वाकल्चर के लिये बल्कि तटबंधों तथा मानवीय आवासों के लिये भी हुआ है।

मैंग्रोव संरक्षण के उपाय:

  • सुंदरबन के कुछ हिस्सों को कानूनी तौर पर राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों (विशेष रूप से बाघ संरक्षण) के रूप में संरक्षित किया गया है। 
  • वैज्ञानिकों ने नीदरलैंड की तर्ज़ पर समुद्रतटीय मृदा के कटाव को रोकने हेतु डाइकों (Dikes) के निर्माण का सुझाव दिया है।
  • सुंदरबन को रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत शामिल किया जाना एक सकारात्मक कदम है। यह कन्वेंशन नमभूमि (Wetlands) और उनके संसाधनों के संरक्षण तथा बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का ढाँचा उपलब्ध कराता है।
  • सुभेद्यता के अनुसार सुंदरबन को विभिन्न उपक्षेत्रों में विभाजित कर प्रत्येक के लिये एक निर्देशित समाधान कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में नदियों के अलवणीय जल की मात्रा में वृद्धि के उपाय किये जाने चाहिये।
  • मानवीय कारणों से होने वाले निम्नीकरण को रोकने के लिये-
    • स्थानीय समुदायों को जागरूक करना एवं उनकी समस्याओं के लिये वैकल्पिक समाधानों को लागू करना।
    • सामान्य पर्यटन की जगह जैव-पर्यटन (Eco-Tourism) को बढ़ावा देना।
    • वनोन्मूलन (Deforestration) पर रोक एवं वनीकरण को बढ़ावा देना।
    • संकटग्रस्त जीवों एवं वनस्पतियों की सुरक्षा को बढ़ावा देना।
    • जैव-तकनीक के माध्यम से मैंग्रोव का संरक्षण एवं पुनर्स्थापन।

स्रोत : द हिंदू 


भारतीय इतिहास

2000 वर्ष पुरानी बस्ती की खोज

प्रीलिम्स के लिये: खुदाई के निष्कर्ष, खुदाई स्थल की अवस्थिति

मेन्स के लिये: भारत में भारत प्रागैतिहासिक व्यापार गतिविधियाँ

चर्चा में क्यों?

आंध्रप्रदेश के नेल्लोर में नायडूपेट के निकट गोट्टीप्रोलू में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम द्वारा की गई खुदाई के पहले चरण में व्यापक तौर पर ईंटों वाली संरचना से घिरी एक विशाल बस्ती के अवशेष मिले हैं।

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स्थल के विषय में

  • गोट्टीप्रोलू (13° 56’ 48” उत्तर; 79° 59’ 14” पूरब) में नायडूपेट से लगभग 17 किलोमीटर पूरब और तिरूपति तथा नेल्लोर से 80 किलोमीटर दूर स्वर्णमुखी की सहायक नदी के दाएँ किनारे पर स्थित है।

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  • विस्तृत कटिबंधीय अध्ययन और ड्रोन से मिली तस्वीरों से एक किलेबंद प्राचीन बस्ती की पहचान करने में मदद मिली है।
  • बस्ती की पूर्वी और दक्षिणी ओर किलाबंदी काफी स्पष्ट है, जबकि दूसरी ओर आधुनिक बस्तियों के कारण यह अस्पष्ट प्रतीत होती है।
  • इस स्थान की खुदाई से ईंट से निर्मित विभिन्न आकारों और रूपों की संरचना मिली है।
  • खुदाई में मिली कई अन्य प्राचीन वस्तुओं में विष्णु की एक आदमकद मूर्ति और वर्तमान युग की शुरूआती शताब्दियों के दौरान प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के बर्तन शामिल हैं।

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  • इस खुदाई में पक्की ईंटों से निर्मित संरचना मिली है, जो 75 मीटर से अधिक लंबी, लगभग 3.40 मीटर चौड़ी और लगभग 2 मीटर ऊँची है।
  • खुदाई में ईंटों से बना आयताकार टैंक भी मिला है।

स्थल के निर्माण की समायावधि 

  • ईंटों का आकार 43-40 सेमी आकार है, जिसकी तुलना कृष्णा घाटी यानी अमरावती और नागार्जुनकोंडा की सातवाहन/इक्ष्वाकु काल की संरचनाओं से की जा रही है।
  • ईंटों के आकार और अन्य खोजों के आधार पर इन्हें दूसरी-पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व अथवा उसके कुछ समय बाद (लगभग 2000 वर्ष पूर्व) के समय का माना जा रहा है।

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  • खुदाई में मिले अवशेषों के अलावा, गाँव के पश्चिमी हिस्से की खुदाई से विष्णु की मूर्ति भी मिली है।
  • इस क्षेत्र के लोगों ने, प्राचीनकाल में व्यापार में सुगमता के लिये समुद्र, नदी और झील (पुलिकट) से निकटता को ध्यान में रखते हुए, 15 किलोमीटर की दूरी पर दो नगरों को बसाने को प्रमुखता दी थी।

विष्णु की आदमकद मूर्ति

  • खुदाई से प्राप्त विष्णु की मूर्ति की ऊँचाई लगभग 2 मीटर है।
  • विष्णु की यह प्रतिमा चार भुजाओं वाली है जिसमें ऊपर की ओर दाहिनी तथा भुजाओं में क्रमशः चक्र और शंख विद्यमान है।
  • नीचे की ओर दाहिनी भुजा श्रेष्ठ वरदान मुद्रा में है और बायाँ हाथ कटिहस्थ मुद्रा (कूल्हे पर आराम की मुद्रा) में है।
  • अलंकृत शिरोवस्त्र, जनेऊ/यज्ञोपवीत (तीन सूत्रों वाला धागा) और सजावटी वस्त्र जैसी मूर्तिकला विशेषताएँ इस तथ्य की और संकेत करती हैं कि यह मूर्ति पल्लव काल (लगभग 8 वीं शताब्दी) की है।

टेराकोटा से निर्मित स्त्री की लघुमूर्ति

  • दूसरी प्राचीन वस्तु जो खुदाई से प्राप्त हुई है वह है स्त्री की लघु मूर्ति (टेराकोटा से निर्मित) जिसमें दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं।

शंक्वाकार घड़े

  • मिटटी के बर्तनों में सबसे आकर्षक खोज निर्माण संरचना के पूर्व दिशा में रखे गए शंक्वाकार घड़ों या जार का तल/आधार है।
  • इस तरह के शंक्वाकार जार तमिलनाडु में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि इन्हें रोमन एम्फ़ोरा जार (ऐसे जार जिन्हें पकड़ने के लिये दो हैंडल बने होते थे) की नकल करके बनाया गया है।
  • खुदाई से प्राप्त टूटी हुई टेराकोटा पाइप की एक शृंखला जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, से इस स्थल के निवासियों द्वारा निर्मित नागरिक सुविधाओं के बारे में पता चलता है।

जल निकासी की व्यवस्था (Drainage system)

  • स्थल की खुदाई से प्राप्त जल निकासी के अवशेषों से उस समय की जल निकासी व्यवस्था को समझा सकता है।
  • पुरापाषाण और नवपाषाण काल के मिश्रित पत्थर के औजार इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक जीवन की और भी संकेत करते हैं।

स्थल का महत्त्व

  • खुदाई स्थल पर एम्फोरा जारों की उपस्थिति इस बात की ओर संकेत करती है कि ये बस्तियाँ व्यापार का महत्त्वपूर्ण केंद्र रही होंगी।
  • समुद्र तट से स्थल की निकटता से पता चलता है कि यह स्थल समुद्री व्यापार में शामिल रणनीतिक बस्ती के रूप में कार्य करता होगा। स्थल पर भविष्य में किये जाने वाला शोध कार्यों से इस स्थल के बारे में और अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे।
  • गोट्टीप्रोलू और इसके चारों और 15 किमी. के दायरे में किये अन्वेषणों से महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं जैसे- पुडुुरु में ऐतिहासिक ऐतिहासिक बस्ती, मल्लम में सूर्यब्रह्मण्य मंदिर, यकासिरी (Yakasiri) में अद्वितीय रॉक-कट लेटराइट वापी/बावड़ी (Step-well) तथा तिरुमुरु के विष्णु मंदिर।
  • इसके अलावा इस स्थल के पूर्व में समग्र समुद्री तट विभिन्न प्रकार के पुरावशेषों से भरा हुआ है, जो सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से संबंधित हैं।
  • प्रागैतिहासिक समय के दौरान 15 किलोमीटर के दायरे में स्थित ये दोनों किलेबंद नगरीय बस्तियाँ इस बात का संकेत देती हैं कि महत्त्वपूर्ण रणनीतिक उपस्थिति (समुद्र तट, नदी तथा पुलीकट झील से निकटता) के चलते इस स्थान को व्यापार हेतु अधिक प्रमुखता दी गई थी।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पेरिस पीस फोरम

प्रीलिम्स के लिये:

पेरिस पीस फोरम, क्राइस्टचर्च कॉल

मेन्स के लिये:

वैश्विक मुद्दों के समाधान में असफलता का कारण एवं इन मुद्दों का भारत पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

11-12 नवंबर, 2019 को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने फ्राँस की यात्रा की।

  • फ्राँस में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन (Emmanuel Macron) से पेरिस पीस फोरम/पेरिस शांति मंच (Paris Peace Forum) के सम्मलेन के दौरान मुलाकात की।

भारत और फ्राँस:

  • वर्ष 1998 में भारत और फ्राँस ने एक रणनीतिक साझेदारी स्थापित की जिसमें रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग तथा असैनिक परमाणु सहयोग जैसे क्षेत्र सामरिक भागीदारी के प्रमुख आधार हैं।
  • भारतीय वायुसेना ने पिछले महीने फ्राँस से 36 राफेल लड़ाकू जेट की शृंखला का पहला जेट प्राप्त किया।
  • भारत और फ्राँस ने आतंकवादी एवं हिंसक गतिविधियों हेतु ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग रोकने के लिये क्राइस्टचर्च कॉल का समर्थन किया है।

क्राइस्टचर्च कॉल (Christchurch Call)

  • इसका नाम न्यूज़ीलैंड के एक शहर के क्राइस्टचर्च के नाम पर गया है। यहाँ पर इंटरनेट के माध्यम से प्रसारित सूचनाओं के आधार पर एक अतिवादी दक्षिणपंथी व्यक्ति द्वारा 15 मार्च 2019 को आतंकवादी हमला किया गया था, जिसमें मुस्लिम समुदाय के 51 लोग मारे गए थे।
  • इस कार्यपरियोजनाके तहत सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और इंटरनेट विशेषज्ञों द्वारा इंटरनेट पर आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी सामग्री के प्रसार को रोका जाता है।

भारत में क्राइस्टचर्च कॉल जैसी कार्यपरियोजनाका महत्त्व: 

  • भारतीय सामाजिक पृष्ठभूमि
    • भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि समरसतावादी रही है यहाँ पर विभिन्न धर्मों और वर्गों का समुचित और समष्टि विकास एक-दूसरे के बीच आपसी मेलजोल से उत्पन्न नवजागरण की ऊर्जा का समग्र परिणाम है।
    • वर्तमान समय में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बढ़ते आपसी अविश्वास की स्थिति में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में सोशल मीडिया का काफी योगदान रहा है। सोशल मीडिया का प्रयोग समाज के अराजक तत्त्वों द्वारा अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिये किया जा रहा है।
    • इसके परिणामस्वरूप त्वरित स्तर पर लोक व्यवस्था और दीर्घकालिक स्तर पर सामाजिक समरसता का क्षरण हो रहा है।
  • भारत में सोशल मीडिया पर नियंत्रण:
    • भारत में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाली कोई विशेषीकृत एजेंसी नहीं है, जबकि सांप्रदायिकता, भीड़ हिंसा जैसे मुद्दों के संदर्भ में यह देखा गया है कि ऐसी स्थितियों में विचारों का आदान-प्रदान सोशल मीडिया के माध्यम से बड़ी तेज़ी से होता है।
    • इसके अतिरिक्त चुनावों के दौरान मुद्दों का राजनीतिकरण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जाता है।
  • आगे की राह: 
    • भारत को निजता के अधिकार और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बीच एक संवैधानिक रूपरेखा तैयार की जानी चाहिये, जहाँ समुचित तरीके से लोगों के निजता के अधिकार को नुकसान पहुँचाए बिना सोशल मीडिया पर संवैधानिक उपबंध लगाए जा सकें।
    • CIRT-IN जैसी एजेंसियों के समुचित तंत्र के अंतर्गत ही एक सोशल मीडिया विंग बनाना एक स्थायी समाधान हो सकता है।

वैश्विक परिदृश्य:

  • जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, प्रवास, साइबर असुरक्षा और सीमाओं की अनदेखी जैसे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
  • इन मुद्दों को लेकर देशों के बीच लगातार मतभेद बना हुआ है क्योंकि इन्हीं मुद्दों के कारण देशों के आपसी हित टकराते रहते हैं, जिस कारण से सभी देशों की रणनीतियों में समग्रता नहीं आ पाती है।
  • राज्य लाभ के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं तथा वैश्विक संस्थानों द्वारा सामूहिक हितों के लिये की जा रही अपर्याप्त शिथिल कार्रवाई विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रतिकूल ढ़ंग से प्रभावित कर रही है फलस्वरूप सामाजिक असमानताएँ बढ़ रही हैं।
  • देशों द्वारा सामाजिक कार्यों की अपेक्षा सैन्य व्यय पर अधिक खर्च किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मानदंड, विशेष रूप से मानवाधिकारों की लगातार अवहेलना की जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापन जैसे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा पूरी तरह से गंभीरता नहीं प्रदर्शित की जा रही है, यह वर्ग शायद इस बात को भूल गया है कि दरअसल ये सभी केवल मुद्दे नहीं हैं बल्कि मानवता की गरिमा और अस्तित्व से जुड़ी समस्याएँ हैं जो एक दिन मानव सभ्यता के अस्तित्व को समाप्त कर देंगी।

पेरिस पीस फोरम का लक्ष्य: 

  • इस फोरम का लक्ष्य उपर्युक्त वैश्विक परिस्थितियों में कल्याण और समरसता के लिये शासन व्यवस्था को और बेहतर करना है।
  • यह फोरम शासन के निम्न छह प्रमुख विषयों के समाधान पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है:

1. शांति और सुरक्षा
2. विकास
3. पर्यावरण (Environment)
4. नई तकनीकें (New Technologies)
5. समावेशी अर्थव्यवस्था
6. संस्कृति और शिक्षा

हितधारक (Stakeholder):

  • वैश्विक हितों के लिये कार्यरत शासन के पुराने और नए अभिकर्त्ता (Actor), गैर-सरकारी संगठन, परोपकारी संगठन, विकास एजेंसियाँ, ट्रेड यूनियन, थिंक टैंक, विश्वविद्यालयों और नागरिक समाज जैसे हितधारकों के माध्यम से यह फोरम अपनी गतिविधियों तथा लक्ष्यों को संचालित करता है।

पेरिस पीस फोरम का आयोजन:

  • इस फोरम का आयोजन प्रत्येक वर्ष 11-13 नवंबर को पेरिस में किया जाता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक शासन (Global Governance) को अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे के शीर्ष पर रखना है। इस फोरम में हितधारक वैश्विक शासन के मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड 


सामाजिक न्याय

वैश्विक आपूर्ति शृंखला और बाल श्रम

प्रीलिम्स के लिये:

ILO, OECD, IOM, Unicef

मेन्स के लिये:

बाल श्रम से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र (United Nation) द्वारा जारी की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक आपूर्ति शृंखला (Supply Chains) में बाल श्रम का सर्वाधिक प्रयोग होता है।

रिपोर्ट का निष्कर्ष:

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला के क्षेत्र में भी विशेष रूप से एशिया में सबसे अधिक बाल श्रमिक हैं।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बाल श्रम का स्तर अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में बाल श्रम स्तर सर्वाधिक 26%, इसके पश्चात् लैटिन अमेरिका एवं कैरेबियाई क्षेत्र में 22%, मध्य तथा दक्षिणी एशिया में 12% और उत्तरी अफ्रीका व पश्चिमी एशिया में 9% है।
  • वैश्विक रूप से एकीकृत व्यवसाय (Integrated Business) में एक उत्पाद उपभोग या उपयोग के लिए तैयार होने तक कई चरणों से गुज़रता है। वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लगभग सभी चरणों में बाल श्रम का उपयोग किया जाता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अधिकांश बाल श्रमिक मूल के देशों में तैनात हैं, जिन्हें एक शृंखला की अपस्ट्रीम रीचेज (Upstream Reaches) के रूप में जाना जाता है।
  • कृषि क्षेत्र के निर्यात में योगदान देने वाले अनुमानित बाल श्रम का 97% कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाले बच्चें है।

रिपोर्ट के बारे में?

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बाल श्रम, ज़बरन श्रम और मानव तस्करी इत्यादि में बाल श्रम की जाँच करने वाली यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है।
  • यह सर्वेक्षण अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD), अंतर्राष्ट्रीय संगठन प्रवासन (International Organization for Migration- IOM) तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (Unicef) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।

रिपोर्ट के सर्वेक्षण से संबंधित मुद्दे:

  • इस रिपोर्ट में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का अध्ययन किया गया, जबकि बाल श्रम का प्रयोग घरेलू उत्पादन प्रक्रियाओं (Domestic Production Processes) में अधिक किया जाता है। इसलिये इस प्रकार की रिपोर्ट पूरी तरह से बल श्रम की स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाती है क्योंकि बड़े कॉर्पोरेट घराने सामान्यतः बाल श्रम से मुक्त होने का दावा करते हैं।

आगे की राह:

  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) में लक्ष्य 8.7 वर्ष 2030 तक बाल श्रम की समाप्ति की प्रतिबद्धता से संबंधित है।
  • ILO के अनुसार, यह रिपोर्ट श्रम अधिकारों के उल्लंघन से निपटने के लिये प्रभावी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है। इसलिये सरकारों को अपने परिचालन (Operation) और आपूर्ति शृंखलाओं में मानवाधिकारों का सम्मान करने के प्रयासों को बढ़ाने तथा मज़बूत करने पर बल देने की ज़रूरत है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


सामाजिक न्याय

हाथ से मैला उठाने की प्रथा (मैन्युअल स्कैवेंजिंग)

प्रीलिम्स के लिये-

WHO

मेन्स के लिये-

वैश्विक स्तर पर मैन्युअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक स्तर पर स्वच्छता कर्मचारियों के संदर्भ में स्वच्छता श्रमिकों की स्वास्थ्य, सुरक्षा और गरिमा -एक प्रारंभिक मूल्यांकन (Health, Safety and Dignity of Sanitation Workers- An Initial Assesment) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में टॉयलेट, सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई में कार्यरत श्रमिकों का जीवन स्तर चिंताजनक है।
  • इस क्षेत्र में निवेश की कमी और खराब बुनियादी ढाँचे के कारण लाखों लोग अपर्याप्त जल आपूर्ति और अस्वच्छता से जुडी बीमारियों से मर जाते हैं।
  • जब श्रमिक मानव अपशिष्ट के सीधे संपर्क में आते हैं और बिना किसी उपकरण या सुरक्षा के साथ काम करते हुए इसे हाथ से साफ करते हैं, तो प्रायः उन्हें जानलेवा बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के श्रम में सबसे अधिक शोषण अनौपचारिक श्रमिकों का होता है। इन्हें अपेक्षाकृत कम वेतन और सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
  • इनके हितों की रक्षा के लिये सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों और नीतियों का भी उचित रूप से पालन नहीं किया जाता।
  • WHO के अनुसार, अस्वच्छता के कारण प्रतिवर्ष डायरिया से 432,000 मौतें होती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, वाटरएड, वर्ल्ड बैंक और WHO द्वारा संयुक्त रूप से जारी इस रिपोर्ट में नौ निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में स्वच्छता श्रमिकों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है।
  • इन देशों में भारत, बांग्लादेश, बोलीविया, बुर्किना फासो, हैती, केन्या, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा शामिल हैं।

भारत के संदर्भ में:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवांछनीय और उच्च जोखिम वाले कार्य प्रायः अस्थायी और अनौपचारिक श्रमिकों से करवाए जाते हैं।
  • श्रमिकों द्वारा हाथ से किये जाने वाले स्वच्छता कार्यों में शौचालयों, खुली नालियों, रेल के पटरियों से मानव अपशिष्ट को इकठ्ठा करना, ले जाना और निपटान करना शामिल है।
  • हाथ से किये जाने निम्न श्रेणी के स्वच्छता कार्यों के लिये श्रमिकों को पर्याप्त मज़दूरी भी नहीं दी जाती है।
  • सीवर की सफाई में कार्यरत श्रमिक मैनहोल से सीवर में प्रवेश करते हैं और ठोस अपशिष्ट को हाथ से साफ करते हैं।
  • इस रिपोर्ट में BBC द्वारा जारी रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार, भारत में हर पाँचवे दिन एक सीवर श्रमिक की मौत होती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 5 मिलियन स्वच्छता श्रमिक कार्य करते हैं।इनमे से 2 मिलियन श्रमिक उच्च जोखिम वाली परिस्थितियों (High Risk Condition) में कार्य करते हैं।
  • भारत में हाथ से मैला ढोने पर लगी रोक के बाद भी कुल 700 ज़िलों में से 163 ज़िलों में 20,596 ऐसे श्रमिकों की पहचान की गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार इन श्रमिकों की 60-70% संख्या शहरों में पाई गई, जिसमें 50% महिला श्रमिक हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO)

विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को की गई, इस दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


सामाजिक न्याय

ईको एंज़ायटी

प्रीलिम्स के लिये

ईको एंज़ायटी (Eco anxiety) क्या है?

मेन्स के लिये

मानव स्वास्थ्य पर ईको एंज़ायटी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विश्व में बढ़ते प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों से लोगों में एक विशेष प्रकार का मानसिक विकार उत्पन्न हो रहा है जिसे मनोवैज्ञानिकों ने ईको एंज़ायटी (Eco anxiety) नाम दिया है।

क्या है ईको एंज़ायटी?

यह एक ऐसी मानसिक दशा है जिसमें व्यक्ति इस बात से भयभीत रहता है कि आने वाले समय में पर्यावरण का अंत हो जाएगा। इसमें व्यक्ति जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों को लेकर अपने, बच्चों के तथा आगामी पीढ़ी के भविष्य को लेकर चिंतित रहता है।

ईको एंज़ायटी का प्रभाव:

  • ईको एंज़ायटी से प्रभावित व्यक्ति, जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण में अपनी व्यक्तिगत अक्षमता को लेकर शक्तिहीन, असहाय तथा अवसादित महसूस करता है।
  • Anxiety UK द्वारा किये गए एक सर्वे के अनुसार, प्रत्येक 10 में से 1 ब्रिटिश वयस्क अपने जीवन में कुछ समय के लिये इस प्रकार के अवसाद से ग्रसित रहता है।
  • हालाँकि इस संबंध में अभी तक कोई स्पष्ट आँकड़े नहीं उपलब्ध हैं किंतु लोगों का एक बड़ा हिस्सा जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण के संभावित खतरों को लेकर अवसादित तथा चिंतित रहता है, साथ ही ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है।
  • वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (UN Inter-governmental Panel on Climate Change; UN-IPCC) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी पर ज़ोर दिया गया था। साथ ही इसमें कहा गया था कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये हमें शीघ्र तथा अप्रत्याशित प्रयास करना होगा, वरना बाढ़, सूखा, अकाल, प्रतिकूल मौसम की दशा आदि समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस रिपोर्ट का ईको एंज़ायटी से प्रभावित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • इस अवसाद से ग्रसित कुछ लोग भविष्य को लेकर संदेह की स्थिति में रहते हैं तथा इस अवसाद से छुटकारा पाने के लिये वे शराब एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैं।
  • भारत में भी इस प्रकार के लक्षण लोगों में देखने को मिले हैं। खासकर दिल्ली जैसे महानगरों में लोग प्रदूषण बढ़ने की वजह से अपने तथा अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं।
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ईको एंज़ायटी एक हद तक ठीक है क्योंकि यह आपको पर्यावरण के प्रति सचेत करता है तथा जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये लोगों को जागरूक करता है किंतु इसकी अधिकता एक गंभीर समस्या बन सकती है।

ईको एंज़ायटी पर नियंत्रण के उपाय:

  • इस प्रकार के अवसाद पर नियंत्रण पाने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति को आशावादी बनना चाहिये। इसके साथ ही स्वयं के स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रयास करना चाहिये।
  • प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले साधनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। जैसे- निजी वाहनों के प्रयोग के स्थान पर सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करना, जैव-अपघटित (Bio-Degradable) वस्तुओं के उपयोग को प्रोत्साहन आदि।
  • ईको एंज़ायटी से प्रभावित व्यक्ति को अपने नैतिक मूल्यों के साथ जीने के लिये अपनी जीवन शैली में परिवर्तन करना चाहिये जिससे पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े। जैसे- मांस व डेरी उत्पादों के उपयोग को सीमित करना, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं की खरीदारी न करना आदि।
  • अपने आसपास वृक्षारोपण करना चाहिये तथा पहले से उपस्थित पेड़-पौधों का संरक्षण करना चाहिये।
  • ईको एंज़ायटी से ग्रसित व्यक्ति को अपने जैसे लोगों के साथ बातचीत करना चाहिये तथा सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से जन-जागरूकता फैलानी चाहिये। इससे जहाँ लोगों में आपसी सहयोग तथा मित्रता की भावना का विकास होगा, वहीं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मदद मिलेगी।

स्रोत : द हिंदू 


शासन व्यवस्था

सबरीमाला मामला

प्रीलिम्स के लिये: सबरीमाला मंदिर, केरल हिंदू प्लेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल, समानता का अधिकार

मेन्स के लिये: सबरीमाला मंदिर तथा महिलाओं के अधिकार से जुड़े मामले, धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने 14 नवंबर 2019 को केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के संबंध में गत वर्ष यानी वर्ष 2018 में दिये गए निर्णय के विरुद्ध दर्ज की गई पुनर्विचार याचिका को पाँच जजों की पीठ ने सात जजों की बड़ी पीठ के पास भेज दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा की गई। ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 2019 में ही पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी।

वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हर उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दे दी थी।
  • 4:1 के बहुमत से हुए फैसले में पाँच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि हर उम्र की महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।
  • इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा वर्ष 1991 में दिये गए उस फैसले को भी निरस्त कर दिया था जिसमें कहा गया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना असंवैधानिक नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘केरल हिंदू प्लेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल’, 1965 (Kerala Hindu Places of Public Worship Rules, 1965) के नियम संख्या 3 (b) जो मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है को संविधान की कानूनी शक्ति से परे घोषित कर दिया था।

सबरीमाला कार्यसमिति का पक्ष

  • सबरीमाला कार्यसमिति ने आरोप लगाया था कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देकर उनके रीति-रिवाज तथा परंपराओं को नष्ट किया है।
  • लोगों की मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं। जिस कारण से मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित किया गया था।

पृष्ठभूमि

  • सबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है।
  • मंदिर ट्रस्ट के अनुसार, यहाँ 1500 वर्षों से महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। इसके लिये कुछ धार्मिक कारण बताए जाते हैं।
  • सबरीमाला मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक श्रद्धालु भगवान अयप्पा के दर्शन के लिये आते हैं, इसके अलावा पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिये बंद रहता है।
  • भगवान अयप्पा के भक्तों के लिये मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिये उस दिन यहाँ सबसे ज़्यादा भक्त पहुँचते हैं।
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का एक रूप) का पुत्र माना जाता है।
  • केरल के ‘यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ ने इस प्रतिबंध के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2006 में जनहित याचिका दायर की थी।

स्रोत: द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (15 नवंबर)

  • सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की राफेल पुनर्विचार याचिका: चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने राफेल मामले में दायर की गईं सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर फैसला पढ़ते हुए याचिकाकर्त्ताओं के द्वारा सौदे की प्रक्रिया में गड़बड़ी की दलीलें खारिज की हैं। न्यायालय में दायर याचिका में डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। साथ ही 'लीक' दस्तावेज़ों के हवाले से आरोप लगाया गया था कि डील में PMO ने रक्षा मंत्रालय को बगैर भरोसे में लिये अपनी ओर से बातचीत की थी। न्यायालय में विमान डील की कीमत को लेकर भी याचिका डाली गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले फैसले में कहा था कि बिना ठोस सबूतों के वह रक्षा सौदे में कोई भी दखल नहीं देगा।
  • बड़ी बेंच को सौंपा गया सबरीमाला केस: सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला बड़ी बेंच को सौंप दिया है। न्यायालय इस बारे में गुरुवार को फैसला सुनाने वाला था लेकिन 5 जजों की बेंच ने कहा कि परंपराएँ धर्म के सर्वमान्य नियमों के मुताबिक हों और आगे 7 जजों की बेंच इस बारे में अपना फैसला सुनाएगी। साफ है कि फिलहाल मंदिर में न्यायालय के पुराने फैसले के मुताबिक महिलाओं का प्रवेश जारी रहेगा।
  • प्रसिद्ध गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन: प्रसिद्ध गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन की खबर मिलते ही पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई है। पिछले कई सालों से वशिष्ठ नारायण सिंह बीमार चल रहे थे। उनका इलाज पटना के पीएमसीएच अस्पताल में चल रहा था। उन्होंने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। वशिष्ठ नारायण सिंह जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ रहे थे तभी कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी। प्रोफेसर कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना तथा उन्हें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया।
  • सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन: महिलाओं को सेना में समान अवसर प्रदान करने के लिये वर्ष 2008-09 में नौसेना कंस्ट्रक्टर काडर तथा एजुकेशन ब्रांच की शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर्स बैच से सात महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिये जाने की स्वीकृति दे दी गई। सेना में महिलाओं के लिये एक विशेष कैडर का निर्माण कर उन्हें कई क्षेत्रों में स्थायी कमीशन देने की योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है। महिलाओं को लड़ाकू भूमिका छोड़कर बाकी भूमिकाओं में स्थायी कमीशन दिया जायेगा। अभी तक सेना महिलाओं को केवल सेना शिक्षा कोर (एईसी) और न्यायाधीश महाधिवक्ता (जेएजी) विभाग में ही स्थायी कमीशन देती है। सेना में अधिकतर महिलाओं की भर्ती शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारियों के रूप में होती है और उनका कार्यकाल अधिकतम 14 वर्ष का होता है। वायुसेना में महिलाएँ पहले ही लड़ाकू पायलट की भूमिका में आ चुकी हैं। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ही सेना में स्थायी कमीशन मिलता है। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से पास होने के उपरांत, सेना के कैडेट्स को उनके चयन के अनुसार, भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून; नौ सेना के कैडेट्स को भारतीय नौसेना अकादमी, एझिमाला और वायु सेना के कैडेट्स को वायु सेना अकादमी, हैदराबाद में भेज दिया जाता है।
  • छत्तीसगढ़ में मुफ्त इलाज़: छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के नागरिकों को 20 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा देने का निर्णय लिया है। राज्य कैबिनेट की शुक्रवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया है। वहीं पहले से संचालित स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीपीएल परिवारों को पाँच लाख और अन्य परिवारों को सालभर में 50 हजार रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा दी जाएगी। गौरतलब है कि वे बीमारियाँ जो योजना के अंतर्गत शामिल नहीं हैं या हितधारक का नाम सूची में नहीं है या नई योजना अंतर्गत बीमा कवर राशि इलाज के लिए पर्याप्त नहीं है तो ऐसे  परिवारों के लिये वर्तमान में लागू संजीवनी सहायता कोष का विस्तार करते हुए मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना शुरू करने का निर्णय लिया गया है।

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