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डेली न्यूज़

  • 15 Jun, 2021
  • 39 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

47वाँ जी-7 शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

जी-7, COVAX कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

47वाँ जी-7 शिखर सम्मेलन एवं भारत और विश्व पर इसकी प्रतिक्रिया

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 47वें जी-7 शिखर सम्मेलन 2021 को संबोधित किया।

  • इससे पहले जी-7 देशों के वित्त मंत्री ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ (GMCTR) की स्थापना करते हुए एक ऐतिहासिक समझौते पर पहुँचे थे।
  • भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी "अतिथि देशों" के रूप में शिखर सम्मेलन की कार्यवाही में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था।
  • इस वर्ष के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी ब्रिटेन ने की। पिछला जी-7 शिखर सम्मेलन वर्ष 2019 में फ्राँस में हुआ था, पिछले वर्ष अमेरिका में होने वाले कार्यक्रम को महामारी के कारण रद्द कर दिया गया था।

‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (जी-7)

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
  • वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये ब्लॉक की वार्षिक बैठक होती है।
  • जी-7 देश यूके, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका हैं।
    • सभी जी-7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
  • जी-7 का कोई औपचारिक संविधान या कोई निश्चित मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।

प्रमुख बिंदु:

एक विश्व परियोजना के लिये बेहतर निर्माण

  • इसका उद्देश्य चीन के ट्रिलियन-डॉलर की ‘बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर’ पहल के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना है, जिसकी छोटे देशों पर असहनीय ऋण भार के चलते उन्हें परेशान करने के कारण व्यापक आलोचना की गई है, लेकिन वर्ष 2013 में लॉन्च होने के बाद से इसमें जी-7 सदस्य इटली भी शामिल है।
  • यह सामूहिक रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एशिया और अफ्रीका में) हेतु सैकड़ों अरबों के बुनियादी ढाँचे के निवेश को उत्प्रेरित करेगा और जी-7 के साथ एक मूल्य-संचालित, उच्च-मानक और पारदर्शी साझेदारी की पेशकश करेगा।

डेमोक्रेसी 11:

  • जी-7 और अतिथि देशों द्वारा "खुले समाज" को लेकर एक संयुक्त बयान (डेमोक्रेसी 11) पर हस्ताक्षर किये गए, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हेतु मूल्यों की पुष्टि और उन्हें प्रोत्साहित करता है, जो लोकतंत्र की रक्षा करता है और लोगों को भय और दमन से मुक्त रहने में मदद करता है।
    • यह बयान राजनीतिक रूप से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन को स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिये खतरों में से एक के रूप में भी संदर्भित करता है।
    • जबकि यह बयान चीन और रूस पर निर्देशित है, भारत जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंधों की जाँच कर रहा है।
  • डेमोक्रेसी-11 को बढ़ते सत्तावाद, चुनावी हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, आर्थिक जबरदस्ती, सूचनाओं में हेराफेरी, दुष्प्रचार, ऑनलाइन नुकसान और साइबर हमलों, राजनीति से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन, मानवाधिकारों के उल्लंघन और दुरुपयोग, आतंकवाद एवं हिंसक उग्रवाद जैसे स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र के लिये खतरों का सामना करना पड़ रहा है।

‘कार्बिज़ बे’ घोषणा:

  • जी-7 ने ‘कार्बिज़ बे’ घोषणा पर हस्ताक्षर किये। इसका उद्देश्य भविष्य की महामारियों को रोकना है।
  • जी-7 ने गरीब देशों को 1 बिलियन से अधिक कोरोनावायरस वैक्सीन खुराक देने का भी वादा किया, जिसमें से आधा संयुक्त राज्य अमेरिका और 100 मिलियन ब्रिटेन प्रदान करेगा।
    • वर्ष 2022 के मध्य तक दुनिया की कम-से-कम 70% आबादी को टीका लगाने के लिये 11 अरब खुराक की आवश्यकता है।
  • यह खुराक सीधे और अंतर्राष्ट्रीय COVAX कार्यक्रम के माध्यम से प्रदान की जाएंगी।

जलवायु परिवर्तन:

  • गरीब देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने में मदद करने के लिये प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिदेय व्यय प्रतिज्ञा को पूरा करने हेतु योगदान को बढ़ाने की प्रतिज्ञा को नवीनीकृत किया गया।
  • वर्ष 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकने और इसमें सुधार की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई।
  • वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचने का संकल्प लिया गया।

चीन पर प्रतिक्रिया:

  • जी-7 का बयान जिस पर भारत और अन्य बाहरी देशों द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये गए थे, ने चीन पर झिंजियांग (उइगर मुस्लिम) और हॉन्गकॉन्ग में "मानवाधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रता" तथा दक्षिण चीन सागर में यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयासों पर प्रहार किया। 
  • इसने चीन में एक पारदर्शी और समय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से कोविड के मूल का अध्ययन करने का भी आह्वान किया।
    • भारत ने भी विश्व स्वास्थ्य सभा के दौरान एक बयान में ऐसा ही करने का आह्वान किया था।

भारत का पक्ष:

  • सत्तावाद, आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद, दुष्प्रचार एवं आर्थिक दबाव से उत्पन्न खतरों से साझा मूल्यों की रक्षा करने में भारत जी-7 देशों का एक स्वाभाविक सहयोगी है।
  • भारत ने चिंता व्यक्त की कि समाज विशेष रूप से दुष्प्रचार और साइबर हमलों की चपेट में हैं।
  • इसने कोविड -19 टीकों के लिये पेटेंट सुरक्षा के लिये समूह का समर्थन मांगा।
  • ग्रह का वातावरण, जैव विविधता और महासागरों की सुरक्षा के संबंध में काम करने वाले देशों द्वारा संरक्षित नहीं किया जा सकता है और जलवायु परिवर्तन पर सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया।
    • भारत एकमात्र जी-20 देश है जो अपनी पेरिस प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की राह पर है।
  • विकासशील देशों को जलवायु वित्त तक बेहतर पहुँच की आवश्यकता है और जलवायु परिवर्तन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें शमन, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, जलवायु वित्तपोषण, इक्विटी, जलवायु न्याय और जीवन शैली में परिवर्तन शामिल हैं।
  • आधार, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) और JAM (जन धन-आधार- मोबाइल) ट्रिनिटी जैसे अनुप्रयोगों के माध्यम से भारत में सामाजिक समावेश और सशक्तीकरण पर डिजिटल प्रौद्योगिकियों के क्रांतिकारी प्रभाव पर प्रकाश डाला गया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ओलिव रिडले कछुओं के लिये ऑपरेशन ओलिविया

प्रिलिम्स के लिये 

ओलिव रिडले कछुए, ओलिविया, भारतीय तटरक्षक बल के बारे में तथ्यात्मक जानकारी

मेन्स के लिये

ओलिव रिडले कछुओं के लिये ओलिविया और भारतीय तटरक्षक बल की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल ने ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा के लिये ऑपरेशन 'ओलिविया' हेतु एक विमान को सेवा में लगाया है।

भारतीय तटरक्षक बल

  • यह रक्षा मंत्रालय के तहत एक सशस्त्र बल, खोज और बचाव तथा समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी।
  • यह सतह और वायु दोनों स्तरों पर कार्य करने में सक्षम है। यह विश्व के सबसे बड़े तट रक्षक बलों में से एक है।

प्रमुख बिंदु

ओलिविया:

  • प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले भारतीय तटरक्षक बल का "ऑपरेशन ओलिविया" 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, यह ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद करता है क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन और घोंसले बनाने के लिये ओडिशा तट पर एकत्र होते हैं।
    • यह अवैध ट्रैपिंग गतिविधियों को भी रोकता है।
  • कानूनों को लागू करने के लिये तटरक्षक बल की संपत्ति जैसे- तेज़ गश्ती जहाज़ों, एयर कुशन जहाज़ों, इंटरसेप्टर क्राफ्ट और डोर्नियर विमान का उपयोग करते हुए नवंबर से मई तक चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है।
    • नवंबर 2020 से मई 2021 तक ओडिशा तट पर अंडे देने वाले 3.49 लाख कछुओं की रक्षा के लिये तटरक्षक बल के 225 जहाज़ और 388 विमान हर समय समर्पित रहें।

ओलिव रिडले कछुए:

Olive-Ridley-Turtles

  • विशेषताएँ:
    • ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं।
    • ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका पृष्ठवर्म ओलिव रंग (Olive Colored Carapace) का होता है जिसके आधार पर इनका यह नाम पड़ा है।
    • वे हर वर्ष भोजन और संभोग के लिये हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
    • ये कछुए अपने अद्वितीय सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं, अंडे देने के लिये हज़ारों मादाएँ एक ही समुद्र तट पर एक साथ यहाँ यहाँ आती हैं।
  • पर्यावास
    • ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं।
    • ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं के सबसे बड़े प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता है।
  • संरक्षण की स्थिति:
  • संकट:
    • इन कछुओं के मांस, खाल, चमड़े और अंडे के लिये इनका शिकार किया जाता है।
    • हालाँकि उनके सामने सबसे गंभीर खतरा घोंसले का नुकसान, संभोग के मौसम के दौरान समुद्र तटों के आसपास अनियंत्रित रूप से मछली पकड़ने के कारण ट्रॉल नेट और गिल नेट में उलझने से उनकी आकस्मिक मौत है।
    • प्लास्टिक, मछली पकड़ने के जाल, पर्यटकों और मछली पकड़ने वाले श्रमिकों द्वारा फेंके गए अन्य कचरे का बढ़ता मलबा।

अन्य पहलें:

  • भारत में इनकी आकस्मिक मौत की घटनाओं को कम करने के लिये, ओडिशा सरकार ने ट्रॉल के लिये टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (Turtle Excluder Devices- TED) का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया है, जालों को विशेष रूप से एक निकास कवर के साथ बनाया गया है जो कछुओं के जाल में फसने के दौरान उन्हें भागने में सहायता करता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पैसिफाइ: आकाश सर्वेक्षण परियोजना

प्रिलिम्स के लिये

‘पैसिफाइ’ सर्वेक्षण परियोजना, ‘वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर’ उपकरण 

मेन्स के लिये

इन परियोजनाओं और उपकरणों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

‘इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स’ में ‘पैसिफाइ’ (PASIPHAE) परियोजना के एक महत्त्वपूर्ण उपकरण ‘वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर’ को विकसित किया जा रहा है।

  • ‘पोलर-एरिया स्टेलर-इमेजिंग इन पोलेराइज़ेशन हाई-एक्यूरेसी एक्सपेरीमेंट’ यानी ‘पैसिफाइ’ परियोजना एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी आकाश सर्वेक्षण परियोजना है।

खगोलीय पोलारिमेट्री

  • पोलारिमेट्री यानी प्रकाश के ध्रुवीकरण को मापने की एक तकनीक, यह एक महत्त्वपूर्ण शक्तिशाली उपकरण होता है जो खगोलविदों को खगोलीय निकायों जैसे धूमकेतु और आकाशगंगाओं आदि के बारे में ऐसी जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, जिसे अन्य तकनीकों का उपयोग कर प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  • ध्रुवीकरण प्रकाश का एक गुण है जो उस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे प्रकाश तरंग दोलन करती है।
  • तकरीबन दो दशक पूर्व एक भारतीय खगोल भौतिक विज्ञानी सुजान सेनगुप्ता ने एक विचार प्रस्तुत किया कि एक ‘क्लाउडी ब्राउन ड्वार्फ’ द्वारा उत्सर्जित प्रकाश या एक एक्स्ट्रासोलर ग्रह से परावर्तित प्रकाश प्रायः ध्रुवीकृत होगा।

प्रमुख बिंदु

‘पैसिफाइ’ सर्वेक्षण के विषय में:

  • यह एक ऑप्टो पोलारिमेट्रिक सर्वेक्षण है जिसका लक्ष्य लाखों सितारों के रैखिक ध्रुवीकरण को मापना है।
  • सर्वेक्षण में उत्तरी और दक्षिणी आसमान को एक साथ देखने के लिए दो हाई-टेक ऑप्टिकल पोलीमीटर का उपयोग किया जाएगा।
  • यह सर्वेक्षण दक्षिणी गोलार्द्ध में सदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका में ‘दक्षिण अफ्रीकी खगोलीय वेधशाला’ और उत्तर में ग्रीस के क्रीत में ‘स्किनकास वेधशाला’ से समवर्ती रूप से आयोजित किया जाएगा।
  • यह काफी दूरी पर स्थित तारों के ध्रुवीकरण पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो इतनी दूर पर स्थित है कि वहाँ से ध्रुवीकरण संकेतों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता  है।
  • इन तारों की दूरी GAIA उपग्रह के मापन से प्राप्त की जाएगी।
    • GAIA हमारी आकाशगंगा यानी ‘मिल्की वे’ के त्रि-आयामी मानचित्र के निर्माण संबंधी एक मिशन है, जिसके माध्यम से आकाशगंगा की संरचना, गठन और विकास की प्रक्रिया आदि को जानने में मदद मिलेगी।
  • इस परियोजना में क्रीत विश्वविद्यालय (ग्रीस), कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (अमेरिका), ‘इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स’ (भारत), दक्षिण अफ्रीकी खगोलीय वेधशाला और ओस्लो विश्वविद्यालय (नॉर्वे) के वैज्ञानिक शामिल हैं, जबकि इसका संचालन ग्रीस के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा किया जा रहा है।

परियोजना का महत्त्व

  • लगभग 14 अरब साल पूर्व अपने जन्म के बाद से, ब्रह्मांड लगातार विस्तार कर रहा है, जो कि कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) विकिरण की उपस्थिति से सिद्ध हो चुका है।
    • मिल्की वे आकशगंगा में क्लस्टर के रूप में बहुत सारे धूल के बादल मौजूद हैं और जब इन धूल के बादलों से तारों का प्रकाश गुज़रता है, तो वह बिखर जाता है और ध्रुवीकृत हो जाता है।
  • ‘पैसिफाइ’ पोलारिमेट्रिक मैप का उपयोग मिल्की वे आकाशगंगा की चुंबकीय टोमोग्राफी के लिये किया जाएगा।
    • जिसका अर्थ है कि यह हमारी आकाशगंगा की चुंबकीय क्षेत्र की त्रि-आयामी संरचना और उसमें मौजूद धूल के कणों का पता लगाएगा।
    • यह मानचित्र भविष्य के कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड संबंधी B-मोड प्रयोगों के लिये गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज हेतु अमूल्य जानकारी प्रदान करेगा।
    • B-मोड प्रयोग का उपयोग कॉस्मिक इन्फ्लेशन के सिद्धांत का परीक्षण करने हेतु किया जाता है और इसके माध्यम से कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) के ध्रुवीकरण का सटीक माप करके प्रारंभिक ब्रह्मांड के इन्फ्लेशन मॉडल के बीच अंतर किया जाता है।
    • कॉस्मिक इन्फ्लेशन के सिद्धांत के अनुसार, बिग बैंग के बाद प्रारंभिक ब्रह्मांड एक सेकंड के एक अंश के भीतर काफी तीव्रता से विस्तारित हुआ।
  • प्रारंभिक ब्रह्मांड के अध्ययन के अलावा यह सर्वेक्षण खगोल भौतिकी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों जैसे- उच्च-ऊर्जा खगोल भौतिकी और तारकीय खगोल भौतिकी आदि में भी महत्त्वपूर्ण बढ़त प्रदान करेगा।

वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर (WALOP)

  • वर्ष 2012-2017 के दौरान ‘रोबोपोल’ प्रयोग सर्वेक्षण की सफलता के बाद इसकी योजना बनाई गई थी।
    • वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर और इसका पूर्ववर्ती ‘रोबोपोल’ दोनों ही ‘फोटोमेट्री सिद्धांत’ (आकाशीय पिंडों की चमक का मापन) साझा करते हैं।
    • किंतु ‘रोबोपोल’ के विपरीत WALOP उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों में समवर्ती रूप से मौजूद सैकड़ों सितारों को एक साथ देखने में सक्षम होगा, जबकि ‘रोबोपोल’ आकाश में काफी छोटा क्षेत्र कवर करने में सक्षम था।
  • कार्यविधि
    • वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर इस सिद्धांत के आधार पर कार्य करेगा कि किसी भी समय अवलोकन के दौरान आकाश के एक हिस्से से प्राप्त डेटा को चार अलग-अलग चैनलों में विभाजित किया जा सकता है।
    • प्रकाश के चार चैनलों से गुज़रने के तरीके के आधार पर तारे के ध्रुवीकरण संबंधी मूल्य प्राप्त किया जाएगा।
      • इस प्रकार प्रत्येक तारे में चार संगत चित्र होंगे जिन्हें एक साथ प्रयोग किये जाने पर किसी तारे के वांछित ध्रुवीकरण मान की गणना की जा सकेगी।
  • इंस्टॉलेशन
    • क्रीत (ग्रीस) स्थित 1.3-मीटर स्किनकास ऑब्ज़र्वेटरी और साउथ अफ्रीकन एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्ज़र्वेटरी के 1 मीटर टेलीस्कोप पर प्रत्येक में एक ‘वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर’ (WALOP) स्थापित किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल 

मेन्स के लिये:

AI के क्षेत्र में की गई पहलें और अवसर

चर्चा में क्यों?

28 मई, 2021 को 'राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल' (National AI Portal) ने अपनी पहली वर्षगाँठ मनाई।

प्रमुख बिंदु:

पोर्टल के संबंध में: 

  • यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and IT- MeitY), राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन (National e-Governance Division- NeGD) और नैसकॉम (NASSCOM) की एक संयुक्त पहल है।
    • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीज़न: वर्ष 2009 में डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (MeitY द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी कंपनी) के तहत NeGD को एक स्वतंत्र व्यापार प्रभाग के रूप में स्थापित किया गया था।
    • NASSCOM एक गैर-लाभकारी औद्योगिक संघ है जो भारत में IT उद्योग के लिये सर्वोच्च निकाय है।
  • यह भारत और उसके बाहर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित समाचार, सीखने, लेख, घटनाओं और गतिविधियों आदि के लिये एक केंद्रीय हब (Hub) के रूप में कार्य करता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संबंध में (AI):

  • कंप्यूटर विज्ञान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आशय किसी कंप्यूटर, रोबोट या अन्य मशीन द्वारा मनुष्यों के समान बुद्धिमत्ता के प्रदर्शन से है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता किसी कंप्यूटर या मशीन द्वारा मानव मस्तिष्क के सामर्थ्य की नकल करने की क्षमता है, जिसमें उदाहरणों और अनुभवों से सीखना, वस्तुओं को पहचानना, भाषा को समझना और प्रतिक्रिया देना, निर्णय लेना, समस्याओं को हल करना तथा ऐसी ही अन्य क्षमताओं के संयोजन से मनुष्यों के समान ही कार्य कर पाने की क्षमता आदि शामिल है। 
  • AI में जटिल चीज़ें शामिल होती हैं जैसे मशीन में किसी विशेष डेटा को फीड करना और विभिन्न स्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया देना।
  • AI का उपयोग वित्त और स्वास्थ्य सेवा सहित विभिन्न उद्योगों में किया जा रहा है।
  • PwC (फर्मों का एक वैश्विक नेटवर्क) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने AI के उपयोग में 45% की वृद्धि दर्ज की, जो कि कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद सभी देशों में सबसे अधिक है।

भारत में AI के उपयोग के हाल के उदाहरण:

  • कोविड-19 से निपटने में: MyGov द्वारा संचार सुनिश्चित करने के लिये AI- सक्षम चैटबॉट का उपयोग किया गया था।
  • न्यायिक प्रणाली में: AI आधारित पोर्टल 'SUPACE' का उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी शोध में सहायता करना है।
  • कृषि में: ICRISAT ने एक AI-पावर बुवाई एप विकसित किया है, जो स्थानीय फसल की उपज और वर्षा पर मौसम के मॉडल तथा डेटा का उपयोग करता है एवं स्थानीय किसानों को यह सलाह देता है कि उन्हें अपने बीज कब बोने चाहिये।
  • आपदा प्रबंधन में: बिहार में लागू किया गया AI-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल अब पूरे भारत को कवर करने के लिये विस्तारित किया जा रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लगभग 200 मिलियन लोगों को आसन्न बाढ़ जोखिम के बारे में 48 घंटे पहले अलर्ट और चेतावनी प्रदान की जा सके।
  • बैंकिंग और वित्तीय सेवा उद्योग में: भारत में कुछ बैंकों ने ग्राहक अनुभव को बेहतर बनाने और जोखिम प्रबंधन में एल्गोरिदम का उपयोग करने के लिये डिजिटलीकरण को बढ़ाने हेतु AI को अपनाया है (उदाहरण के लिये धोखाधड़ी का पता लगाना)।

AI के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये की गई पहल:

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये राष्ट्रीय रणनीति (नीति आयोग, जून 2018) जो कि समावेशी AI (सभी के लिये AI) पर केंद्रित है और नई शिक्षा नीति (NEP, 2020) जो पाठ्यक्रम में AI को शामिल करने की आवश्यकता को दर्शाती है, कोर और अनुप्रयुक्त अनुसंधान को प्रोत्साहित करने हेतु सही रणनीतिक कदम हैं।
  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MTA) ने एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों (EMRS) और आश्रम स्कूलों जैसे स्कूलों के डिजिटल परिवर्तन के लिये माइक्रोसॉफ्ट के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधों को बढ़ाने के लिये यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (US India Artificial Intelligence- USIAI) पहल शुरू की गई है।
  • वर्ष 2020 में भारत AI के जिम्मेदार और मानव-केंद्रित विकास तथा उपयोग को बढ़ाने के लिये एक संस्थापक सदस्य के रूप में 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी' (GPAI) में शामिल हुआ।
  • 'RAISE 2020 - सामाजिक सशक्तीकरण के लिये ज़िम्मेदार कृत्रिम बुद्धिमत्ता 2020', एक मेगा वर्चुअल समिट है जिसे NITI Aayog और MeitY द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।
  • "युवाओं के लिये जिम्मेदार AI" कार्यक्रम का बड़ा उद्देश्य सभी भारतीय युवाओं को भारत के शहरी, ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में मानव-केंद्रित डिज़ाइनर बनने के लिये समान अवसर प्रदान करना है जो भारत के आर्थिक तथा सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिये वास्तविक AI समाधान प्रदान कर सकते हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता को अपनाने में बाधाएँ:

  • AI की सीमित समझ: कई भारतीय कंपनियाँ अभी तक अपनी कंपनियों में AI के पूर्ण लाभों को नहीं समझ पाई हैं।
  • कम निवेश और कम विकसित स्टार्टअप इकोसिस्टम: भारत में स्टार्टअप/निवेश फंडिंग इकोसिस्टम को AI स्टार्टअप्स और सेवा प्रदाताओं के मामले में बढ़ाया जाना अभी बाकी है।

आगे की राह:

  • वैश्विक सबक: चीन, अमेरिका और इज़रायल जैसे देश वर्तमान में AI को अपनाने के मामले में आगे हैं। भारत समग्र सामाजिक विकास तथा समावेशी एजेंडे को ध्यान में रखते हुए अपने AI पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक बढ़ाने के लिये इन देशों की कुछ सीख पर विचार कर सकता है।
  • स्पष्ट केंद्रीय रणनीति और नीति ढाँचा: भारत में AI अपनाने को नवाचार से संबंधित अधिक केंद्रित नीतियों के निर्माण के माध्यम से तेज़ किया जा सकता है, उदाहरण के लिये पेटेंट नियंत्रण और सुरक्षा। साथ ही AI के दुर्भावनापूर्ण उपयोग को भी प्रबंधित किया जाना चाहिये।
  • सरकार, कॉरपोरेट्स और शिक्षाविदों के बीच सहयोग: इन तीन महत्त्वपूर्ण हितधारकों को उद्यमिता को पोषित करने, पुन: कौशल को बढ़ावा देने, अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने तथा नीतियों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने जैसे कार्यों के लिये सहयोगात्मक रूप से काम करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: पी.आई.बी


भूगोल

रेयर अर्थ धातु और चीन का एकाधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड, रेयर अर्थ तत्त्व

मेन्स के लिये:

रेयर अर्थ तत्त्वों का महत्त्व और चीन की उसके एकाधिकार संबंधी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

विनिर्माण के भविष्य की कुंजी रेयर अर्थ धातुओं पर चीन का प्रभुत्व पश्चिम के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है।

Rare-Earth-Metals

प्रमुख बिंदु:

चीन का एकाधिकार:

  • चीन ने समय के साथ रेयर अर्थ धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक ​​कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% रेयर अर्थ धातुओं का उत्पादन किया है।
  • वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष अन्य देशों द्वारा उत्पादित किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) शामिल हैं।
  • वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप को रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी, तो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई हैं।
  • फिर भी संसाधित रेयर अर्थ धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।

चीन पर भारी निर्भरता (भारत और विश्व):

  • भारत में रेयर अर्थ तत्त्वों का दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है, जो ऑस्ट्रेलिया से लगभग दोगुना है, लेकिन यह चीन से अपनी अधिकांश रेयर अर्थ धातुओं की ज़रूरतों को तैयार रूप में आयात करता है।
  • वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपने रेयर अर्थ खनिजों का 80% चीन से आयात किया, जबकि यूरोपीय संघ को इसकी आपूर्ति का 98% चीन से मिलता है।
  • भारत के लिये अवसर: भारत की रेयर अर्थ क्षमता को अधिकतम करने के लिये तीन संभावित दृष्टिकोण हैं।
  • रेयर अर्थ के लिये नया विभाग (DRE):
    • भारत को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत रेयर अर्थ (DRE) के लिये नया विभाग बनाना चाहिये जो अपस्ट्रीम क्षेत्र में सुविधाएँ स्थापित करने हेतु कंपनियों को व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण की पेशकश करके सामरिक महत्त्व के रेयर अर्थ तत्त्वों (REEs) तक पहुँच सुरक्षित कर सके।
    • यह भारतीय रेयर अर्थऑक्साइड (REOs) को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बना सकता है।
  • डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ और अनुप्रयोग:
    • वैकल्पिक रूप से यह डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं और अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जैसे कि रेयर अर्थ चुंबक और बैटरी का निर्माण।
    • इसके लिये बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे और व्यापार करने में आसानी जैसे उपायों पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी ताकि भारतीय निर्माताओं को सूचीबद्ध उत्पादकों से सस्ते में REOs आयात करने की अनुमति मिल सके।
  • अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय:
    • अंत में यह क्वाड जैसे समूहों के साथ सीधे साझेदारी करने के लिये अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय कर सकता है, यह वैश्विक आपूर्ति संकट के खिलाफ एक बफर के रूप में रणनीतिक रिज़र्व का निर्माण कर सकता है।
      • मौजूदा नीति में समायोजन के साथ भारत दुनिया के लिये एक दुर्लभ मिट्टी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर सकता है और इन संसाधनों का उपयोग 21वीं सदी की ज़रूरतों हेतु तैयार एक उच्च अंत विनिर्माण अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करने के लिये कर सकता है।

रेयर अर्थ तत्त्व (REE)

  • यह 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है। इसमें आवर्त सारणी में मौजूद 15 लैंथेनाइड और इसके अलावा स्कैंडियम तथा अट्रियम शामिल हैं, जो लैंथेनाइड्स के समान ही भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
  • 17 दुर्लभ तत्त्वों में सीरियम (Ce), डिसप्रोसियम (Dy), अर्बियम (Er), युरोपियम (Eu), गैडोलीनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेशियम (Lu), नियोडिमियम (Nd), प्रेजोडायमियम (Pr), प्रोमीथियम (Pm), समेरियम (Sm), स्कैंडियम (Sc), टर्बियम (Tb), थ्यूलियम (Tm), इटरबियम (Yb) और अट्रियम (Y) शामिल हैं।
  • इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनिसेंट और विद्युत रासायनिक गुण मौजूद रहते हैं और इस प्रकार ये तत्त्व उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों में काफी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
  • यहाँ तक ​​​​कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिये भी ये तत्त्व काफी महत्त्वपूर्ण हैं (उदाहरण के लिये उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, पोस्ट-हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था के लिये हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण एवं परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग और ऊर्जा दक्षता आदि)।
  • इन्हें ‘दुर्लभ’ तत्त्व कहा जाता है, क्योंकि पूर्व में इन्हें तकनीकी रूप से इनके ऑक्साइड स्वरूप से निकालना काफी मुश्किल था। 
  • ये कई खनिजों में मौजूद होते हैं, लेकिन प्रायः कम सांद्रता में किफायती तरीके से परिष्कृत किये जाते हैं।

Rare-Earth

रेयर अर्थ तत्त्वों पर भारत की मौजूद नीति

  • वर्तमान में भारत में दुर्लभ तत्त्वों का अन्वेषण ‘भारतीय खान ब्यूरो’ और ‘परमाणु ऊर्जा विभाग’ द्वारा किया जा रहा है।
  • पूर्व में इन तत्त्वों के खनन और प्रसंस्करण संबंधी कार्य कुछ छोटी निजी कंपनियों द्वारा किया जाता था, लेकिन वर्तमान में यह कार्य परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड (पूर्व में इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड) द्वारा किया जा रहा है।
  • भारत ने आईआरईएल (IREL) जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिज जैसे- दुर्लभ तत्त्वों और कई तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाजाइट समुद्र तट रेत आदि पर एकाधिकार प्रदान किया है।
  • IREL रेयर अर्थ ऑक्साइड (अल्प लागत वाली ‘अपस्ट्रीम’ प्रक्रिया) का उत्पादन करता है और इन्हें विदेशी फर्मों को बेचता है, जो धातुओं को निकालती हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत वाली ‘डाउनस्ट्रीम प्रक्रिया) का निर्माण करती हैं।
  • IREL का फोकस मोनाजाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।

स्रोत: द हिंदू


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