अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सऊदी अरब की बदलती विदेश नीति
प्रिलिम्स के लिये:ओपेक+, सऊदी अरब के पड़ोसी देश मेन्स के लिये:सऊदी अरब की नई विदेश नीति के निहितार्थ, पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
ईरान के प्रति अपने आक्रामक रुख में बदलाव करते हुए विश्व की बड़ी शक्तियों के साथ संतुलन बनाए रखने और अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से सऊदी अरब अपनी विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने जा रहा है।
सऊदी अरब की बदलती विदेश नीति:
- ईरान के प्रति रुख में बदलाव:
- सऊदी अरब की विदेश रणनीति ऐतिहासिक रूप से ईरान के इर्द-गिर्द घूमती रही है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे मध्य-पूर्व में अप्रत्यक्ष टकराव की स्थिति बनी हुई थी। इसने हमेशा से ही से ईरान के प्रति अमित्रतापूर्ण रुख अपनाया है।
- हालाँकि हाल ही में सऊदी अरब ने ईरान के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने के लिये चीन की मध्यस्थता वाली वार्ता के बाद एक समझौते की घोषणा की।
- सामरिक प्रतिद्वंद्विता और अप्रत्यक्ष टकराव ने शांतिपूर्ण समाधान एवं ईरान के साथ पारस्परिक सह-अस्तित्त्व का मार्ग प्रशस्त किया है।
- वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करना:
- सऊदी अरब भी अमेरिका- उसका सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता, रूस- उसका ओपेक-प्लस भागीदार और नई महाशक्ति चीन के साथ संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है।
- नीति में बदलाव का कारण:
- हालिया क्षेत्रीय दाँव या तो असफल रहे या फिर आंशिक रूप से सफल रहे।
- सीरिया और यमन में असफल क्षेत्रीय नीतियाँ, जिसमें सऊदी अरब का हस्तक्षेप ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को रोकने में विफल रहा।
- साथ ही हूती अपने ड्रोन और कम दूरी की मिसाइलों के साथ अब सऊदी अरब के लिये गंभीर सुरक्षा खतरा पैदा कर रहे हैं।
- अमेरिका द्वारा पश्चिम एशिया को प्राथमिकता के मामले में दूरी बनाना।
- अमेरिका द्वारा पश्चिम एशिया को प्राथमिकता से वंचित करना, सऊदी अरब को एहसास दिलाता है कि उसे अन्य बड़ी शक्तियों के साथ वफादार गठजोड़ करके अपनी स्वायत्तता स्थापित करने की आवश्यकता है।
- चीन, जिसके ईरान एवं सऊदी अरब दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, ने दोनों के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश की और सऊदी अरब ने इस अवसर का लाभ उठाया।
- हालिया क्षेत्रीय दाँव या तो असफल रहे या फिर आंशिक रूप से सफल रहे।
- यूएस-सऊदी संबंधों पर प्रभाव:
- हालाँकि सऊदी के बदलते विदेशी रुख का अर्थ यह नहीं है कि वह अमेरिका से दूर जा रहा है।
- अमेरिका जो कि सऊदी अरब का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है, इस क्षेत्र की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- सऊदी अरब इन क्षेत्रों में ईरान की बढ़त का मुकाबला करने के लिये अमेरिका तथा अन्य की मदद से उन्नत मिसाइल एवं ड्रोन क्षमताओं को विकसित करने की भी कोशिश कर रहा है।
- इसके अतिरिक्त अमेरिकी नीति में परिवर्तन के कारण उत्पन्न अंतराल को ध्यान में रखते हुए यह अपनी विदेश नीति को स्वायत्त बनाने का प्रयास कर रहा है।
- अमेरिका जो कि सऊदी अरब का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है, इस क्षेत्र की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- अमेरिका की प्रतिक्रिया: हालाँकि अमेरिका ने सऊदी-ईरान सामंजस्य का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया है, लेकिन ईरान समझौते पर "संभावित खतरों" के बारे में उसने सऊदी के क्राउन प्रिंस के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की है।
- अमेरिका काफी हद तक चीन एवं रूस के नेतृत्त्व में मध्यस्थता वार्ता में एक दर्शक के रूप में रहा, विशेष रूप से इस क्षेत्र में इसकी विशाल सैन्य उपस्थिति तथा इस तथ्य को देखते हुए कि अमेरिका लगभग सभी प्रमुख पुनर्गठन का हिस्सा रहा था।
- हालाँकि सऊदी के बदलते विदेशी रुख का अर्थ यह नहीं है कि वह अमेरिका से दूर जा रहा है।
प्रभाव:
- सऊदी अरब की सीरिया और हूती लोगों के साथ चर्चा सऊदी-ईरान सुलह हेतु महत्त्वपूर्ण पहल है।
- यदि यमन युद्ध को हूती लोगों के साथ समझौते के माध्यम से समाप्त कर दिया जाए तो सऊदी अरब की सीमा पर अशांति कम होगी, साथ ही ईरान, सऊदी अरब के पड़ोस में अपना प्रभाव बना सकता है।
- ये समझौते पूरे खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता ला सकते हैं, हालाँकि ये इज़रायल और ईरान के बीच तनावपूर्ण स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
- सऊदी को अमेरिका को नाराज़ किये बिना स्वायत्तता बनाए रखने की भी ज़रूरत है, क्योंकि सीरिया को पश्चिम एशियाई मुख्यधारा में फिर से शामिल किये जाने से अमेरिका खुश नहीं होगा।
भारत के लिये मायने:
- सऊदी अरब मध्य-पूर्व में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता है और विदेश नीति में कोई भी परिवर्तन इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
- यह चीन-पाकिस्तान-सऊदी अरब के मध्य मज़बूत संबंध स्थापित कर सकता है।
- भारत के संबंध ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ सौहार्दपूर्ण हैं एवं यह संबद्ध क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों में मदद मिल सकती है।
- चीन द्वारा ईरान और सऊदी के बीच मध्यस्थता करना भारत के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह इस क्षेत्र में चीनी प्रभाव को बढ़ाने में योगदान करेगा।
- भारत को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में सतर्क रहने और मध्य-पूर्व में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सुरक्षित समुद्री संचार हेतु क्वांटम प्रौद्योगिकी
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय नौसेना, क्वांटम यांत्रिकी, अर्द्धचालक, इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता। मेन्स के लिये:क्वांटम प्रौद्योगिकी, महत्त्व और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
रमन शोध संस्थान (Raman Research Institute- RRI) ने सुरक्षित समुद्री संचार के विकास के लिये क्वांटम प्रौद्योगिकी पर भारतीय नौसेना के साथ समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- RRI विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) का एक स्वायत्त संस्थान है।
- इस समझौते के तहत RRI की क्वांटम इंफॉर्मेशन एंड कंप्यूटिंग (QuIC) लैब क्वांटम की वितरण (Quantum Key Distribution- QKD) प्रौद्योगिकी को विकसित करने की दिशा में अनुसंधान प्रयासों का नेतृत्त्व करेगी ताकि भारतीय नौसेना मुक्त अंतरिक्ष संचार सुनिश्चित करने की दिशा में देश के प्रयासों में इसका लाभ हासिल कर सके।
नोट:
- क्वांटम प्रौद्योगिकी विज्ञान और इंजीनियरिंग का एक क्षेत्र है जो क्वांटम यांत्रिकी सिद्धांतों के अध्ययन एवं अनुप्रयोग से संबंधित है।
- क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की वह शाखा है जो परमाणु और उप-परमाण्विक स्तर पर पदार्थ एवं ऊर्जा के व्यवहार का वर्णन करती है।
- क्वांटम प्रौद्योगिकी के चार डोमेन हैं:
- क्वांटम संचार
- क्वांटम सिमुलेशन
- क्वांटम कंप्यूटेशन
- क्वांटम सेंसिंग और मेट्रोलॉजी
क्वांटम संचार:
- परिचय:
- क्वांटम संचार क्वांटम प्रौद्योगिकी का एक उपक्षेत्र है जो क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों का उपयोग करने वाले सुरक्षित संचार प्रणालियों के विकास पर केंद्रित है।
- क्वांटम संचार एन्क्रिप्शन हेतु मौलिक रूप से भिन्न दृष्टिकोण का उपयोग करता है।
- क्वांटम संचार का सबसे आम उदाहरण QKD है, जो दो पक्षों को एक एन्क्रिप्शन कुंजी उत्पन्न करने की अनुमति देता है जो वस्तुतः अचूक है।
- क्वांटम संचार तंत्र :
- सांकेतिक सूचना: यह सूचना क्वांटम बिट्स (Qubits) पर आधारित होती है, जो एक साथ कई राज्यों में मौजूद हो सकती है।
- इस गुण को सुपरपोज़िशन के रूप में जाना जाता है।
- संचारण सूचना: सांकेतिक क्वांटम बिट्स एक क्वांटम संचार चैनल, जैसे- फाइबर ऑप्टिक केबल या एक फ्री-स्पेस लिंक पर प्रसारित होते हैं।
- क्वांटम बिट्स (Qubits) सामान्यतः एक समय में एक ही बार प्रेषित की जाती हैं।
- सूचना प्राप्त करना: प्राप्तकर्त्ता समूह क्वांटम माप उपकरण का उपयोग करके क्वांटम बिट्स (Qubits) का मापन करता है।
- गुप्त जानकारी को उजागर करते हुए क्यूबिट की सुपरपोज़िशन स्थिति को मापन प्रक्रिया द्वारा एकल स्थिति में से घटा दिया जाता है।
- गुप्त रूप से सुनने वाली बातों का पता लगाना: क्वांटम संचार की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि संचार पर ध्यान देने के किसी भी प्रयास से क्यूबिट की क्वांटम स्थिति बदल जाएगी, जिससे यह तुरंत पता लगाया जा सकेगा।
- इसे "नो-क्लोनिंग प्रमेय" के रूप में जाना जाता है, यह क्वांटम यांत्रिकी का एक मूलभूत सिद्धांत है।
- एक गुप्त कुंजी की स्थापना: क्वांटम बिट्स (Qubits) के अनुक्रम का आदान-प्रदान करके प्रेषण और प्राप्त करने वाले समूहों की एक गुप्त कुंजी स्थापित कर सकते हैं जिसका उपयोग सुरक्षित संचार हेतु किया जा सकता है।
- प्रेषित जानकारी की गोपनीयता और अखंडता सुनिश्चित करने हेतु इस कुंजी का उपयोग पारंपरिक कूटलेखन (एन्क्रिप्शन) और एल्गोरिदम के साथ किया जा सकता है।
- सांकेतिक सूचना: यह सूचना क्वांटम बिट्स (Qubits) पर आधारित होती है, जो एक साथ कई राज्यों में मौजूद हो सकती है।
समुद्री संचार में क्वांटम प्रौद्योगिकी:
- सुरक्षित संचार:
- क्वांटम कूटलेखन (एन्क्रिप्शन) का उपयोग जहाज़ों और उनके तटीय ठिकानों के बीच सुरक्षित संचार सुनिश्चित करने हेतु किया जा सकता है, जिससे हैकर्स के लिये संचार को रोकना या छिपकर सुनना मुश्किल होता है।
- हाई-स्पीड संचार:
- क्वांटम प्रौद्योगिकी लंबी दूरी पर सूचनाओं को तुरंत प्रसारित करने हेतु क्वांटम एलुसिव का उपयोग करके जहाज़ों और उनके तटीय ठिकानों के बीच तीव्र संचार को सक्षम कर सकती है।
- सीमित और पारंपरिक संचार विधियों वाले दूरस्थ क्षेत्रों में संचार के लिये इसका विशेष रूप से उपयोग किया सकता है।
- क्वांटम प्रौद्योगिकी लंबी दूरी पर सूचनाओं को तुरंत प्रसारित करने हेतु क्वांटम एलुसिव का उपयोग करके जहाज़ों और उनके तटीय ठिकानों के बीच तीव्र संचार को सक्षम कर सकती है।
- सटीक नौपरिवहन:
- उच्च सटीकता के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मापन करके नौपरिवहन सटीकता में सुधार के लिये क्वांटम सेंसर का उपयोग किया जा सकता है।
- यह जहाज़ों के परिचालन को आसान बनाने, बाधाओं से बचने और समग्र सुरक्षा में सुधार करने में मदद कर सकता है।
- उच्च सटीकता के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मापन करके नौपरिवहन सटीकता में सुधार के लिये क्वांटम सेंसर का उपयोग किया जा सकता है।
- मौसम संबंधी पूर्वानुमान में सुधार:
- क्वांटम कंप्यूटर का उपयोग मौसम के पैटर्न के जटिल सिमुलेशन के लिये किया जा सकता है जिसकी सहायता से संभावित तूफान अथवा अन्य खतरनाक मौसम की स्थिति के बारे में नाविकों को सटीक और समय पर जानकारी प्रदान की जा सकती है।
आगे की राह
- विकास और कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में होने के कारण QKD जैसी क्वांटम संचार प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर लागू करना एक बड़ी चुनौती है।
- व्यावहारिक परिस्थितियों में इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण करने और कार्यान्वयन प्रक्रिया को परिष्कृत करने के लिये पायलट प्रोजेक्ट तैयार किये जा सकते हैं।
- क्वांटम संचार प्रौद्योगिकियाँ विकसित करना और क्रियान्वित करना काफी महँगा है। अनुसंधान एवं विकास के लिये पर्याप्त वित्तपोषण की सहायता से अधिक लागत प्रभावी समाधान प्राप्त किया जा सकता है।
- क्वांटम संचार प्रौद्योगिकियों के मानकीकृत नहीं होने के कारण विभिन्न प्रणालियों के लिये एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल है।
- विभिन्न क्वांटम संचार प्रौद्योगिकियों को एक-दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम बनाने के लिये कुछ मानक और प्रोटोकॉल विकसित किये जा सकते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
अग्निपथ योजना और प्रॉमिसरी एस्टोपेल का सिद्धांत
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, अग्निपथ योजना, प्रॉमिसरी एस्टोपेल का सिद्धांत मेन्स के लिये:प्रॉमिसरी एस्टोपेल के सिद्धांत पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सशस्त्र बलों में भर्ती के लिये अग्निपथ योजना को बरकरार रखने का फैसला लिया, दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसले को कुछ याचिकाओं के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसे खारिज़ कर दिया गया है।
- अग्निपथ योजना की घोषणा के साथ ही थलसेना और वायु सेना के लिये पहले की भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया जिस कारण शॉर्टलिस्ट किये गए उम्मीदवारों की याचिकाओं से संबंधित प्रॉमिसरी एस्टोपेल के सिद्धांत पर सर्वोच्च न्यायालय में तर्क प्रस्तुत किया गया था।
प्रॉमिसरी एस्टोपेल का सिद्धांत:
- परिचय:
- प्रॉमिसरी एस्टॉपेल संविदात्मक कानूनों के रूप में विकसित एक अवधारणा है। इसके तहत एक "वचनकर्त्ता/प्रॉमिसरी" विचार करने योग्य नहीं होने के आधार पर किसी समझौते से पीछे हट सकता है।
- इस सिद्धांत का उपयोग न्यायालय में किसी वादी द्वारा अनुबंध के निष्पादन को सुनिश्चित करने अथवा अनुबंध के गैर-निष्पादन की स्थिति में मुआवज़ा प्राप्त करने के लिये प्रतिवादी के खिलाफ किया जाता है।
- संबंधित मामले:
- छगनलाल केशवलाल मेहता बनाम पटेल नरेंद्रदास हरिभाई (1981) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सिद्धांत को लागू किये जाने संबंधी एक चेकलिस्ट सूचीबद्ध की।
- वचनबद्धता में स्पष्टता होनी चाहिये।
- वादी ने उस वचन पर यथोचित रूप से भरोसा करते हुए काम किया हो।
- वादी को नुकसान हुआ हो।
- छगनलाल केशवलाल मेहता बनाम पटेल नरेंद्रदास हरिभाई (1981) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सिद्धांत को लागू किये जाने संबंधी एक चेकलिस्ट सूचीबद्ध की।
- अग्निपथ याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान रुख:
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, "प्रॉमिसरी एस्टोपेल हमेशा व्यापक जनहित के अधीन होता है"।
- इसके अतिरिक्त यह कहा गया है कि "यह एक सार्वजनिक रोज़गार है, न कि एक अनुबंध मामला जहाँ सार्वजनिक कानून में वचनबद्धता लागू की गई थी" और "इस सिद्धांत को लागू करने का सवाल इस मामले में नहीं उठेगा।"
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, "प्रॉमिसरी एस्टोपेल हमेशा व्यापक जनहित के अधीन होता है"।
अग्निपथ योजना:
- परिचय:
- यह युवाओं को देशभक्ति के प्रति प्रेरित करने हेतु चार वर्ष की अवधि के लिये सशस्त्र बलों में सेवा करने की अनुमति देता है।
- सेना में शामिल होने वाले युवा अग्निवीर कहलाएंगे।
- नई योजना के तहत वार्षिक तौर पर लगभग 45,000 से 50,000 सैनिकों की भर्ती की जाएगी।
- हालाँकि चार वर्ष के बाद बैच के केवल 25% सैनिकों को 15 वर्ष की अवधि हेतु संबंधित सेवाओं में वापस भर्ती किया जाएगा।
- यह युवाओं को देशभक्ति के प्रति प्रेरित करने हेतु चार वर्ष की अवधि के लिये सशस्त्र बलों में सेवा करने की अनुमति देता है।
- उद्देश्य:
- इससे भारतीय सशस्त्र बलों की औसत आयु के संदर्भ में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी आने की उम्मीद है।
- इस योजना में कल्पना की गई है कि बलों के लिये औसत आयु वर्तमान में 32 वर्ष है, जो छह से सात वर्ष घटकर 26 हो जाएगी।
- इससे भारतीय सशस्त्र बलों की औसत आयु के संदर्भ में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी आने की उम्मीद है।
- पात्रता मापदंड:
- यह केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के लिये है (वे जो अधिकृत अधिकारियों के रूप में सेना में शामिल नहीं होते हैं)।
- सेना में सर्वोच्च पद कमीशन अधिकारी का होता है। वे भारतीय सशस्त्र बलों में एक विशेष रैंक रखते हैं। वे अक्सर राष्ट्रपति की संप्रभु शक्ति के अधीन आयोग में कार्य करते हैं, उन्हें आधिकारिक तौर पर देश की रक्षा करने का निर्देश दिया जाता है।
- 17.5 वर्ष से 23 वर्ष के बीच के उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र होंगे।
- यह केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के लिये है (वे जो अधिकृत अधिकारियों के रूप में सेना में शामिल नहीं होते हैं)।
- अग्निवीरों को मिलने वाले लाभ:
- 4 वर्ष की सेवा पूरी होने पर अग्निवीरों को 11.71 लाख रुपए की 'सेवा निधि' इकमुश्त दी जाएगी, जिसमें उनका अर्जित ब्याज शामिल होगा।
- उन्हें चार वर्ष के लिये 48 लाख रुपए की जीवन बीमा सुरक्षा भी मिलेगी।
- मृत्यु के मामले में 1 करोड़ रुपए से अधिक भुगतान होगा, जिसमें सेवा न की गई अवधि के लिये भुगतान भी शामिल है।
- सरकार चार वर्ष बाद सेवा छोड़ने वाले सैनिकों के पुनर्वास में सहायता करेगी। उन्हें सरकार द्वारा स्किल सर्टिफिकेट और ब्रिज कोर्स मुहैया कराया जाएगा।
- 4 वर्ष की सेवा पूरी होने पर अग्निवीरों को 11.71 लाख रुपए की 'सेवा निधि' इकमुश्त दी जाएगी, जिसमें उनका अर्जित ब्याज शामिल होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
रंगनाथ रिपोर्ट और धर्मांतरित दलितों के लिये आरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति की मान्यता हेतु मानदंड, 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, भारत का महारजिस्ट्रार मेन्स के लिये:अनुसूचित जाति के दर्जे के लिए मानदंड और दलित ईसाइयों एवं मुसलमानों को शामिल करने के पक्ष व विपक्ष में तर्क |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की वर्ष 2007 की एक रिपोर्ट का पुनः अवलोकन किया, जिसमें ईसाई और इस्लाम में परिवर्तित दलितों के लिये अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण की सिफारिश की गई थी।
- केंद्र ने इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया था, लेकिन शीर्ष न्यायालय का मानना है कि इसमें मौजूद जानकारियाँ महत्त्वपूर्ण हैं जिनका उपयोग यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि वर्ष 1950 के संविधान आदेश के अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग से धर्मांतरित दलितों को बाहर करना असंवैधानिक है अथवा नहीं।
नोट:
- मिश्रा रिपोर्ट को खारिज़ करते हुए सरकार ने हाल ही में एक पूर्व न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता में नया आयोग गठित किया था। सरकार ने "ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जातियों से संबंध रखने वाले परंतु हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले" लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के सवाल पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिये दो वर्ष का समय दिया।
- इस रिपोर्ट को खारिज़ करने के पीछे केंद्र का तर्क है कि "ऐसे दलित जो जाति के कारण होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये ईसाई अथवा इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं, वे उन लोगों द्वारा प्राप्त आरक्षण लाभों का दावा नहीं कर सकते हैं जिन्होंने हिंदू धार्मिक व्यवस्था में बने रहने का विकल्प चुना है।"
रंगनाथ रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की वर्ष 2007 की रिपोर्ट में ईसाई तथा इस्लाम धर्म में धर्मांतरित होने वाले दलितों हेतु अनुसूचित जाति आरक्षण प्रदान किये जाने की सिफारिश की गई थी।
- दलित ईसाइयों और मुसलमानों को न केवल अपने धर्म के उच्च जाति के सदस्यों से बल्कि व्यापक हिंदू-वर्चस्व वाले समाज से भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को SC श्रेणी से बाहर रखना समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है तथा इन धर्मों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जो जातिगत भेदभाव को अस्वीकार करते हैं।
- ईसाई और इस्लाम धर्म में धर्मांतरित होने वाले दलितों को SC का दर्जा देने से इनकार करने के कारण वे सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक रूप से पीछे रह गए हैं तथा उन्हें शिक्षा एवं रोज़गार के अवसरों में आरक्षण तक पहुँच से वंचित किया गया है (जैसा कि अनुच्छेद 16 के तहत प्रदान किया गया है)।
वर्ष 1950 के संविधान आदेश में कौन शामिल हैं?
- अधिनियम पारित होने पर 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश शुरू में केवल हिंदुओं को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने के लिये प्रदान किया गया था, ताकि अस्पृश्यता के कारण उत्पन्न होने वाली सामाजिक अक्षमता को दूर किया जा सके।
- इस आदेश में वर्ष 1956 में संशोधन किया गया था ताकि सिख धर्म अपनाने वाले दलितों को इसमें शामिल किया जा सके तथा वर्ष 1990 में एक बार फिर बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों को इसमें शामिल करने हेतु संशोधन किया गया।
- दोनों संशोधनों को वर्ष 1955 में काका कालेलकर आयोग और वर्ष 1983 में क्रमशः अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों पर उच्चाधिकार प्राप्त पैनल (HPP) की रिपोर्टों से सहायता मिली थी।
- 1950 का आदेश (1956 और 1990 में संशोधन के बाद) यह अनिवार्य करता है कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध नहीं है, उसे अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
दलित ईसाइयों और मुसलमानों को बाहर रखने का कारण:
- अनुसूचित जाति की जनसंख्या में वृद्धि से बचने हेतु: भारत के महापंजीयक (RGI) कार्यालय ने सरकार को आगाह किया था कि अनुसूचित जाति का दर्जा अस्पृश्यता की प्रथा (जो कि हिंदू और सिख समुदायों में प्रचलित थी) से उत्पन्न होने वाली सामाजिक अक्षमताओं से पीड़ित समुदायों के लिये है।
- यह भी उल्लेख किया गया कि इस तरह के कदम से देश भर में अनुसूचित जाति की आबादी में काफी वृद्धि होगी।
- विविध नृजातीय समूह जिन्होंने धर्मांतरण किया: RGI के अनुसार, वर्ष 2001 में इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलित किसी एक नृजातीय समूह से नहीं बल्कि अलग-अलग जातिगत समूहों से संबंधित हैं।
- इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस सूची में शामिल किये जाने हेतु एकल जातीय समूह से संबंधित होने की आवश्यकता होती है।
- अस्पृश्यता अन्य धर्मों में प्रचलित नहीं: RGI ने आगे कहा है कि चूँकि "अस्पृश्यता" की प्रथा हिंदू धर्म और इसकी शाखाओं की एक विशेषता थी ऐसे में दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को SCs के रूप में सूचीबद्ध करने किये जाने की अनुमति को "अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गलत समझा जा सकता है" और यह माना जा सकता है कि भारत ईसाइयों तथा मुसलमानों पर "अपनी जाति व्यवस्था को थोपने" की कोशिश कर रहा है।
- वर्ष 2001 के नोट में यह भी कहा गया है कि दलित मूल के ईसाई और मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन के माध्यम से अपनी जातिगत पहचान खो दी थी और उनके नए धार्मिक समुदाय में अस्पृश्यता की प्रथा प्रचलित नहीं है।
भारत का महापंजीयक:
- भारत का महापंजीयक की स्थापना वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा की गई थी।
- यह भारत की जनगणना और भारतीय भाषाई सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षणों के परिणामों की व्यवस्था, संचालन एवं विश्लेषण करता है।
- महापंजीयक का पद सामान्यतः एक सिविल सेवक के पास होता है जो संयुक्त सचिव का पद धारण करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. वर्ष 2001 में आर.जी.आई. ने कहा कि दलित जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे एक भी जातीय समूह नहीं हैं क्योंकि वे विभिन्न जाति समूहों से संबंधित हैं। इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, जिसमें शामिल करने हेतु एकल जातीय समूह की आवश्यकता होती है। (मुख्य परीक्षा, 2014) प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़रायल और सीरिया के बीच संघर्ष
प्रिलिम्स के लिये:इज़रायल और सीरिया के बीच संघर्ष, अल-अक्सा मस्जिद, मध्य-पूर्व, गोलन हाइट्स कानून, UNSC। मेन्स के लिये:मध्य-पूर्व क्षेत्र की स्थिरता पर सीरिया-इज़रायल संघर्ष का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीरिया द्वारा इज़रायल पर तीन रॉकेट दागे जाने के बाद इज़रायल ने भी इसके जवाब में रॉकेट दागे।
दोनों के बीच हालिया संघर्ष की पृष्ठभूमि:
- इज़रायल और उसके पड़ोसी देशों में स्थिति पिछले कई महीनों से तनावपूर्ण है, इज़रायल में अति-राष्ट्रवादी सरकार के सत्ता में आने से उसके पड़ोसियों के बीच चिंता बढ़ गई है।
- हाल ही में यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद पर इज़रायल द्वारा किये गए हमले ने लेबनान, गाज़ा पट्टी एवं सीरिया से रॉकेट हमले तेज़ कर दिये हैं।
- इज़रायल को डर है कि कट्टर प्रतिद्वंद्वी ईरान, सीरिया में लंबे समय से चल रहे युद्ध का इस्तेमाल अपने लड़ाकों और हथियारों को इज़रायल की सीमाओं के करीब तैनात करने हेतु कर रहा है।
- इज़रायल हाल के हफ्तों में दमिश्क और अलेप्पो के हवाई अड्डों सहित ईरान से जुड़े स्थानों एवं बुनियादी ढाँचे को लक्षित करते हुए सीरिया में हमले कर रहा है।
- इस क्षेत्र में स्थिति जटिल और अस्थिर है, जिसमें कई अभिकर्त्ता शामिल हैं जिनके प्रतिस्पर्द्धी हित जुड़े हैं।
- चल रहे संघर्षों के परिणामस्वरूप लाखों लोगों का विस्थापन हुआ है और अनगिनत लोगों की जान चली गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने संघर्षों के शांत और शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है लेकिन इसके बावजूद स्थिति तनावपूर्ण एवं अनिश्चित बनी हुई है।
इज़रायल और सीरिया के बीच संघर्ष का घटनाक्रम:
- वर्ष 1967 का छह दिवसीय युद्ध:
- इज़रायल और सीरिया के बीच संघर्ष का मूल कारण वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध है जिसमें इज़रायल ने सीरिया को हरा दिया और गोलन हाइट्स पर नियंत्रण एवं कब्ज़ा कर लिया था।
- गोलन हाइट्स का उपजाऊ पठार इज़रायल और सीरिया दोनों हेतु महत्त्वपूर्ण है, साथ ही एक कमांडिंग सैन्य सुविधा प्रदान करता है।
- वर्ष 1973 में सीरियाई सेना ने योम किप्पुर युद्ध के दौरान इस क्षेत्र पर फिर से कब्ज़ा करने का असफल प्रयास किया। हालाँकि वर्ष 1974 में एक युद्धविराम समझौता हुआ था, तब से गोलन हाइट्स का अधिकांश हिस्सा इज़रायल के नियंत्रण में है।
- योम किप्पुर युद्ध, जिसे अक्तूबर युद्ध भी कहा जाता है, चौथा अरब-इज़रायल युद्ध था, जिसे योम किप्पुर के यहूदी पवित्र दिन पर मिस्र एवं सीरिया द्वारा शुरू किया गया था।
- युद्ध ने अंततः अमेरिका और तत्कालीन USSR दोनों को अपने संबंधित सहयोगियों की रक्षा के लिये अप्रत्यक्ष मुकाबले की ओर आकर्षित कर लिया।
- इज़रायल और सीरिया के बीच संघर्ष का मूल कारण वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध है जिसमें इज़रायल ने सीरिया को हरा दिया और गोलन हाइट्स पर नियंत्रण एवं कब्ज़ा कर लिया था।
- इज़रायल का गोलन हाइट्स कानून:
- वर्ष 1981 में इज़रायल ने गोलन हाइट्स कानून पारित करके इस क्षेत्र पर प्रभावी ढंग से कब्ज़ा कर लिया और वहाँ अपने "कानून, अधिकार क्षेत्र और प्रशासन" का विस्तार किया।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के एक प्रस्ताव द्वारा कब्ज़े वाले सीरियाई गोलन हाइट्स में इज़रायल के कानून को "अमान्य, शून्य और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रभाव के बिना" माना गया था।
- परिणामस्वरूप ज़मीनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन सीमा पर गंभीर टकराव हुए 40 वर्ष से अधिक समय हो गया है।
- इज़रायल और सीरिया ने वर्ष 2000 में समझौता करने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे।
- सीरियाई गृहयुद्ध:
- वर्ष 2011 में सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद इज़रायल और सीरिया के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में वृद्धि हुई।
- ईरान, जो इज़रायल के अस्तित्त्व के अधिकार का विरोध करता है, संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका के रूप में उभरा है और लड़ाकों, धन एवं हथियारों के साथ सीरियाई राष्ट्रपति के प्रशासन का समर्थन करता रहा है।
- परिणामस्वरूप सीरिया में लड़ाई के दौरान रॉकेट कभी-कभी एर्रेंट फायर के रूप में इज़रायल में गिरते हैं।
- वर्ष 2011 में सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद इज़रायल और सीरिया के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में वृद्धि हुई।
- सीरिया में लक्षित हमले:
- इज़राइल पर हाल के वर्षों में सीरिया में लक्षित हमले करने का आरोप लगाया गया है, जबकि इज़राइल इससे इनकार करता है।
- हाल के हमलों से मिले संकेतों ने संघर्ष में वृद्धि को लेकर चिंताओं को बढ़ा दिया है, जो पहले से ही अस्थिर क्षेत्र को और अस्थिर कर रहा है।
संघर्ष में भारत की स्थिति:
- भारत, सीरिया-इज़रायल संघर्ष में एक संतुलित स्थिति रखता है, जिसने सभी पक्षों से संयम बरतने और अपने मतभेदों को बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का आग्रह किया है।
- भारत ने लगातार सीरिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है तथा इसके आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को समाप्त करने का आह्वान किया है।
- भारत के लिये संघर्ष के निहितार्थ:
- भारत के लिये सीरिया और इज़रायल के बीच संघर्ष, का मुख्य निहितार्थ ऊर्जा सुरक्षा के मामले में हो सकता है।
- भारत सीरिया सहित मध्य-पूर्व से तेल आयात पर अधिक निर्भर है। तेल आपूर्ति शृंखला में कोई भी व्यवधान भारतीय अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
- भारत के लिये इस संघर्ष के सुरक्षा निहितार्थ भी हो सकते हैं, क्योंकि क्षेत्र में चरमपंथी समूह अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये स्थिति का फायदा उठा सकते हैं।
- भारत में अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है, संघर्ष बढ़ने से देश के भीतर सांप्रदायिक तनाव भी उत्पन्न हो सकता है।
- भारत के लिये सीरिया और इज़रायल के बीच संघर्ष, का मुख्य निहितार्थ ऊर्जा सुरक्षा के मामले में हो सकता है।
आगे की राह
- अंतर्राष्ट्रीय नज़रिये से देखें तो सीरियाई संघर्ष को अमेरिका, रूस और ईरान जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच अप्रत्यक्ष टकराव के रूप में देखा जाता है जिसमें प्रत्येक देश एक-दूसरे पक्ष का समर्थन करते हैं। सीरिया में स्थिति जटिल और अनसुलझी है तथा इसमें शांति का कोई स्पष्ट मार्ग भी नहीं है।
- इसके लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो संघर्ष के मूल कारणों को समझने में मदद करता हो और इसमें शामिल सभी पक्षों की चिंताओं तथा हितों को ध्यान में रखता हो।
- इसका शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाधान खोजने के उद्देश्य से कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से आगे बढ़ जाना एक संभावित तरीका हो सकता है।
- इसमें इज़रायल, सीरिया, ईरान, हिज़बुल्लाह और अन्य क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्त्ताओं सहित सम्मिलित सभी पक्षों को शामिल किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय सहयोग और आपसी संवाद को एक अन्य दृष्टिकोण के रूप में देखा सकता है जो इन पक्षों के बीच विश्वास स्थापित करने और इस क्षेत्र में तनाव कम करने में मदद कर सकता है।
- इज़रायल और कई अरब राज्यों के बीच हाल ही में हस्ताक्षरित अब्राहम समझौता इस तरह के सहयोग और संवाद का एक सकारात्मक उदाहरण बन सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018) कभी-कभी समाचारों में चर्चित शहर: देश
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्य सागर तक नहीं फैला है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) प्रश्न.'गोलन हाइट्स' के नाम में जाना जाने वाला क्षेत्र निम्नलिखित में से किससे संबंधित घटनाओं के संदर्भ में यदा-कदा समाचारों में दिखाई देता है?(2015) (a) मध्य एशिया उत्तर: (b) प्रश्न. योम किप्पुर युद्ध किन पक्षों/देशों के बीच लड़ा गया था? (2008) (a) तुर्किये और ग्रीस उत्तर: (c) |