डेली न्यूज़ (14 Feb, 2024)



नज़ूल भूमि

प्रिलिम्स के लिये:

विध्वंस अभियान, नज़ूल भूमि (स्थानांतरण) नियम, 1956, नज़ूल भूमि, विध्वंस अभियान, अतिक्रमण।

मेन्स के लिये:

नज़ूल भूमि, विध्वंस अभियानों के खिलाफ कानून, निर्णय और मामले।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के हल्द्वानी में प्रशासन द्वारा कथित तौर पर नज़ूल भूमि पर एक मस्जिद और मदरसे की जगह पर अतिक्रमण हटाने के लिये विध्वंस अभियान (Demolition Drive) चलाने के बाद हिंसा भड़क गई।

  • प्रशासन के अनुसार, जिस संपत्ति पर दो संरचनाएँ स्थित हैं, वह नगर परिषद की नज़ूल भूमि के रूप में पंजीकृत है।

नज़ूल भूमि क्या है?

  • परिचय:
    • नज़ूल भूमि का स्वामित्व सरकार के पास है लेकिन अक्सर इसे सीधे राज्य संपत्ति के रूप में प्रशासित नहीं किया जाता है।
      • राज्य आम तौर पर ऐसी भूमि को किसी भी इकाई को 15 से 99 वर्ष के बीच एक निश्चित अवधि के लिये पट्टे पर आवंटित करता है।
    • यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो रही है, तो कोई व्यक्ति स्थानीय विकास प्राधिकरण के राजस्व विभाग को एक लिखित आवेदन जमा करके पट्टे को नवीनीकृत करने के लिये प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है।
    • सरकार पट्टे को नवीनीकृत करने या इसे रद्द करने- नज़ूल भूमि वापस लेने के लिये स्वतंत्र है।
      • भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में, विभिन्न प्रयोजनों के लिये विभिन्न संस्थाओं को नज़ूल भूमि आवंटित की गई है।
  • नज़ूल भूमि का उद्भव:
    • ब्रिटिश शासन के दौरान, ब्रिटिशों का विरोध करने वाले राजा-रजवाड़े अक्सर उनके खिलाफ विद्रोह करते थे, जिसके कारण उनके और ब्रिटिश सेना के मध्य कई लड़ाइयाँ हुईं। युद्ध में इन राजाओं को परास्त करने पर अंग्रेज़ अक्सर उनसे उनकी ज़मीन छीन लेते थे।
    • भारत को आज़ादी मिलने के बाद अंग्रेज़ों ने इन ज़मीनों को खाली कर दिया। लेकिन राजाओं और राजघरानों के पास अक्सर पूर्व स्वामित्व साबित करने के लिये उचित दस्तावेज़ों की कमी होती थी, इन ज़मीनों को नज़ूल भूमि के रूप में चिह्नित किया गया था- जिसका स्वामित्व संबंधित राज्य सरकारों के पास था
  • नज़ूल भूमि का उद्देश्य:
    • सरकार आम तौर पर नज़ूल भूमि का उपयोग सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे- स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत भवन आदि के निर्माण के लिये करती है।
    • भारत के कई शहरों में नज़ूल भूमि के रूप में चिह्नित भूमि के बड़े हिस्से को हाउसिंग सोसाइटियों के लिये उपयोग किया जाता है, आमतौर पर पट्टे पर।
    • जबकि कई राज्यों ने नज़ूल भूमि के लिये नियम बनाने के उद्देश्य से सरकारी आदेश जारी किये हैं, नज़ूल भूमि (स्थानांतरण) नियम, 1956 वह कानून है जिसका उपयोग ज़्यादातर नज़ूल भूमि निर्णय के लिये किया जाता है।

अतिक्रमण क्या होता है?

  • परिचय:
    • अतिक्रमण का आशय किसी और की संपत्ति का अनधिकृत उपयोग अथवा कब्ज़ा करने से है। सामान्यतः परित्यक्त अथवा अप्रयुक्त संपत्तियों के रखरखाव में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होने की स्थिति में संपत्ति स्वामी की संपत्ति पर अतिक्रमण कर लिया जाता है। संपत्ति के स्वामियों को ऐसे मामलों से संबंधित विधिक प्रक्रिया और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना अत्यावश्यक है।
    • शहरी अतिक्रमण का तात्पर्य शहरी क्षेत्रों में भूमि अथवा संपत्ति के अनधिकृत कब्ज़े अथवा उपयोग से है।
    • इसमें उचित अनुमति अथवा कानूनी अधिकारों के बिना संपत्ति पर अवैध निर्माण, कब्ज़ा अथवा किसी अन्य प्रकार का कब्ज़ा शामिल हो सकता है।
      • भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 441 में भूमि अतिक्रमण को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार किसी अन्य के कब्ज़े की संपत्ति पर अपराध करने अथवा व्यक्ति को, जिसके कब्ज़े में ऐसी संपत्ति है, भयभीत करने अथवा विधिपूर्वक रूप से संपत्ति में प्रवेश करने की अनुमति के बिना किसी और की संपत्ति में अवैध रूप से प्रवेश करने का कार्य अतिक्रमण है।
  • अवैध अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया:
    • संबद्ध विषय में कोई भी कार्रवाई करने से पूर्व नगर निगम अधिकारियों द्वारा आमतौर पर अवैध अतिक्रमण में शामिल व्यक्तियों अथवा प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी करना आवश्यक होता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय से साथ-साथ अन्य न्यायालयों ने ऐसे मामलों में उचित प्रक्रिया के महत्त्व पर ज़ोर दिया और अमूमन निर्णय किया कि किसी भी संपत्ति को विध्वंस करने से पूर्व संबद्ध व्यक्तियों को उचित नोटिस तथा सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक है।
      • वर्ष 1985 के ओल्गा टेलिस मामले में, आजीविका के अधिकार तथा झुग्गीवासियों के अधिकारों को आधार बनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है।
    • यदि संबद्ध व्यक्ति द्वारा प्रत्युत्तर देने में विफल रहने अथवा संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देने की दशा में नगर निगम अधिकारी संपत्ति को विध्वंस करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।
    • अधिकारियों से आमतौर पर उल्लंघन की प्रकृति और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन करने के लिये की गई प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए आनुपातिक रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।


भारत के AVGC-XR क्षेत्र की संभावनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स और एक्सटेंडेड रियलिटी (AVGC-XR) सेक्टर, बौद्धिक संपदा, भारत के AVGC-XR क्षेत्र की क्षमता।

मेन्स के लिये:

भारत के AVGC-XR क्षेत्र की संभावनाएँ, AVGC क्षेत्र , इसका महत्त्व और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत का एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स तथा एक्सटेंडेड रियलिटी (AVGC-XR) क्षेत्र अगले पाँच से छह वर्षों में लंबी छलांग लगाने के लिये तैयार है।

भारत के AVGC-XR क्षेत्र का आउटलुक क्या है?

  • उद्योग परिदृश्य:
    • भारत मुंबई, बंगलुरु, पुणे, हैदराबाद और चेन्नई में प्रमुख केंद्रों के साथ 4,000 से अधिक स्टूडियो के साथ एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र का दावा करता है। इसके अतिरिक्त छोटे शहरों में स्टूडियो प्रतिष्ठानों में वृद्धि देखी जा रही है जो इस क्षेत्र के व्यापक विस्तार को उजागर करता है।
    • भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, विविध कला रूप और कुशल कलाकार दृश्य कला में इसकी शक्ति की नींव के रूप में काम करते हैं। उद्योग अब इस क्षेत्र में मूल्य सृजन तथा रोज़गार सृजन की अपार संभावनाओं को पहचान रहा है।
  • रोज़गार:
    • अधिकांश प्रत्यक्ष नौकरी पद सामग्री डेवलपर्स, एनिमेटरों, प्री और पोस्ट-प्रोडक्शन कलाकार, प्री-विज़ुअलाइजेशन कलाकार, कंपोज़ीटर इत्यादि के लिये आएंगे।
    • उद्योग में विकास की उच्च गति देखी जा रही है और AVGC-XR के भीतर कुछ खंड पहले से ही वार्षिक 30 या 35% की दर से बढ़ रहे हैं।
  • अनुमानित वृद्धि:
    • AVGC-XR क्षेत्र, वर्तमान में 2.6 लाख व्यक्तियों को रोज़गार देता है, वर्ष 2032 तक 23 लाख प्रत्यक्ष नौकरियाँ पैदा करने का अनुमान है, साथ ही राजस्व वर्ष 2030 तक मौजूदा 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक AVGC-XR क्षेत्र में भारत का योगदान मात्र 0.5% है, भारत में लगभग 25-30% की वार्षिक वृद्धि और सालाना 1,60,000 से अधिक नई नौकरियाँ सृजित करने के साथ, वर्ष 2025 तक वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी का 5% (USD 40 बिलियन) हासिल करने की क्षमता है।

AVGC क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:

  • प्रामाणिक डेटा का अभाव:
    • AVGC क्षेत्र के लिये रोज़गार, उद्योग का आकार, शिक्षा आदि जैसे डेटा की अनुपलब्धता संस्थाओं के लिये निर्णय लेना कठिन बना देती है।
  • शिक्षा और रोज़गार क्षेत्र में कौशल अंतराल:
    • देश के भीतर AVGC पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये एनिमेटर्स, डेवलपर्स, डिज़ाइनर्स, स्थानीय विशेषज्ञों, उत्पाद प्रबंधकों आदि जैसी विभिन्न भूमिकाओं हेतु विशेष कौशल वाले कार्यबल की आवश्यकता होती है।
  • अवसंरचना बाधाएँ:
    • पर्याप्त प्रशिक्षण अवसंरचना के अभाव में छात्रों को दिये जा रहे प्रशिक्षण की गुणवत्ता में गिरावट आई है, जिससे AVGC उद्योग के लिये आउटपुट और मानव संसाधनों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
  • अनुसंधान विकास पर कम ध्यान:
    • AVGC-XR क्षेत्र के लिये अनुसंधान से संबंधित वातावरण विकसित करने की भी आवश्यकता है, ताकि इस पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके।
  • AVGC अकादमिक संदर्भ बिंदु की अनुपस्थिति:
    • इंजीनियरिंग, डिज़ाइन, प्रबंधन, पैकेजिंग आदि जैसे अन्य क्षेत्रों के विपरीत AVGC क्षेत्र के लिये भारत में कोई शीर्ष संस्थान नहीं है।
  • कोष का अभाव: 
    • वर्तमान में AVGC क्षेत्र के प्रचार के लिये कोई समर्पित कोष उपलब्ध नहीं है जो भारत में क्षेत्र के विकास हेतु एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
  •  विश्व स्तर पर लोकप्रिय भारतीय आईपी की कमी: 
    • AVGC क्षेत्र को सामान्य रूप से मूल भारतीय बौद्धिक संपदा (intellectual property ) की कमी का सामना करना पड़ा है क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकांश कार्य बाहरी स्रोत से किये जाते हैं।
    • एनीमेशन उद्योग में अन्य देशों की सेवाओं का प्रभुत्व है और इस प्रकार स्थानीय IP में वृद्धि करने हेतु अतिरिक्त रियायतों के साथ स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

AVGC-XR क्षेत्र के प्रोत्साहन से संबंधित सरकारी पहल कौन-सी हैं?

  • शैक्षणिक एकीकरण:
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में कक्षा 6 से स्कूल के पाठ्यक्रम में रचनात्मक कला, डिज़ाइन और खेल को एकीकृत किया गया है जिससे AVGC-XR के क्षेत्र में प्रतिभा के विकास के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
    • इस योजना का देशभर में विस्तार करने के उद्देश्य के साथ लगभग 5,000 CBSE और राज्य बोर्ड स्कूलों ने AVGC-XR अधिगम शुरू किया। इस पहल का उद्देश्य एनीमेशन को सभी आयु वर्ग के लिये उपयुक्त पारिवारिक मनोरंजन के रूप में प्रस्तुत करना है।
  • नीति ढाँचा:
    • AVGC क्षेत्र के अवसरों को उजागर करने के लिये केंद्रीय बजट 2022-23 में भारतीय बाज़ारों और वैश्विक मांग की पूर्ति करने हेतु घरेलू क्षमता का निर्माण करने की विधियों के संबंध में अनुशंसा करने के लिये एक AVGC प्रमोशन टास्क फोर्स की स्थापना की घोषणा की गई।
    • प्रत्येक राज्य के अनुरूप सुदृढ़ नीतियाँ बनाने के लिये FICCI, एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु एनिमेशन इंडस्ट्री (ABAI), सोसायटी ऑफ एवीजीसी इंस्टीट्यूशंस इन केरल (SAIK) तथा सरकारी संस्थाओं जैसे उद्योग निकायों के बीच संबद्ध क्षेत्र में सहयोगात्मक प्रयास किये जा रहे हैं।
      • कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों ने इस क्षेत्र के विकास को समर्थन देने के लिये सक्रिय रूप से नीतियाँ विकसित की हैं। 

 

आगे की राह

  • AVGC-XR उद्योग के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों पर निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके तहत इच्छुक पेशेवरों को आवश्यक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये स्कूल पाठ्यक्रम और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एकीकृत औपचारिक शिक्षा पहल सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिये बड़े उद्योगों तथा शैक्षणिक संस्थानों के बीच घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इंटर्नशिप के अवसर, अतिथि व्याख्यान और उद्योग-प्रायोजित परियोजनाएँ शिक्षा तथा उद्योग के बीच की दूरी को पाटने में सहायता प्रदान कर सकती हैं।

जलवायु परिवर्तन और व्हीट ब्लास्ट

प्रिलिम्स के लिये:

 व्हीट ब्लास्ट, अल-नीनो, व्हीट ब्लास्ट (WB), जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और व्हीट ब्लास्ट के बीच संबंध, भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है- जलवायु परिवर्तन के तहत व्हीट ब्लास्ट रोग के प्रति उत्पादन भेद्यता, जिसने उष्ण जलवायु और फफूंद पादप रोग व्हीट ब्लास्ट (WB) के बीच संबंधों की चेतावनी दी है।

  • रिपोर्ट के अनुसार WB के प्रकोप  का पता लगाया गया है, जिसमें दक्षिण अमेरिका में अपने मूल स्थान से आगे वर्ष 2016 में बांग्लादेश और वर्ष 2018 में जाम्बिया तक इसके फैलाव पर बल दिया गया है। यह रोग अल-नीनो जैसी घटनाओं से प्रभावित मौसम की स्थिति से जुड़ा हुआ है।

व्हीट ब्लास्ट रोग (WB) क्या है?

  • परिचय:
    • व्हीट ब्लास्ट रोग एक अत्यधिक विनाशकारी कवक संक्रमण है जो मुख्य रूप से गेहूँ की फसल को प्रभावित करता है।
    • यह विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका और दक्षिण एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा एवं संरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा पैदा करता है।
    • यह रोग मैग्नापोर्थे ओराइजी पैथोटाइप ट्रिटिकम (Magnaporthe oryzae pathotype triticum - MoT) कवक के कारण होता है।
  • लक्षण:
    • पत्ती के घाव (Leaf Lesions): पत्तियों पर छोटे, अंडाकार से धुरी के आकार के घाव दिखाई देते हैं। ये घाव प्रारंभ में पीले या भूरे रंग के हो सकते हैं और अंततः भूरे या नेक्रोटिक में बदल सकते हैं। उनके चारों ओर अक्सर एक पीला प्रभामंडल होता है।
    • तने पर घाव (Stem Lesions): इसी तरह के घाव गेहूँ के पौधों के तनों पर भी विकसित हो सकते हैं। ये घाव तने को घेर सकते हैं, जिससे पौधा मुरझा सकता है और गिर सकता है।
    • स्पाइकलेट लक्षण (Spikelet Symptoms): संक्रमित स्पाइकलेट्स काले और लंबे हो सकते हैं, जिससे वे स्पिंडल जैसी दिखने लगती हैं। यह लक्षण पौधे की प्रजनन अवस्था के दौरान विशेष रूप से प्रमुख होता है।
  • गेहूँ की फसल पर प्रभाव:
    • कवक सीधे गेहूँ की बाली को निशाना बनाता है, जिससे यह पहले लक्षणों से अक्सर एक सप्ताह से भी कम समय में सिकुड़ जाती है और विकृत हो जाती है।
    • इसकी तीव्र शुरुआत से किसानों को प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत कम समय मिलता है, जिससे उपज का काफी नुकसान होता है।
    • व्हीट ब्लास्ट संक्रमित बीजों, फसल के अवशेषों और लंबी दूरी तक यात्रा करने में सक्षम वायुजनित बीजाणुओं सहित विभिन्न माध्यमों से फैलता है।
    • रोगजनक गेहूँ के पौधे के सभी भागों को संक्रमित कर सकता है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण क्षति तब होती है जब यह गेहूँ की बाली को प्रभावित करता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • जलवायु परिवर्तन का व्हीट ब्लास्ट पर प्रभाव: 
    • व्हीट ब्लास्ट से वर्तमान में 6.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि को खतरा है और वर्ष 2050 तक, जलवायु परिवर्तन से स्थिति तथा खराब होने एवं 13.5 मिलियन हेक्टेयर फसल भूमि को खतरा होने की संभावना है।
    •  व्हीट ब्लास्ट (Wheat Blast) को अल नीनो जैसी मौसम स्थितियों से भी जोड़ा जाता है।
      • एनुअल रिव्यू ऑफ फाइटोपैथोलॉजी द्वारा वर्ष 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि वर्ष 1987, 1997, 2002, 2009, 2012 और 2015 के गीले तथा गर्म वर्षों के दौरान दक्षिण अमेरिका एवं एशिया में होने वाली व्हीट ब्लास्ट की सभी गंभीर महामारियाँ अल नीनो घटना के प्रभुत्व वाली मौसम स्थितियों के साथ मेल खाती हैं।
    • अकेले व्हीट ब्लास्ट से विश्व भर में गेहूँ के उत्पादन को 13% तक कम करने की क्षमता है, जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर इसके प्रभाव की गंभीरता को उजागर करता है।
  • क्षेत्र के अनुसार भेद्यता:
    • दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका को भविष्य की जलवायु में व्हीट ब्लास्ट के लिये सबसे संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है।
    • वर्ष 2050 तक इन क्षेत्रों में 75% तक गेहूँ का कुल रकबा (Wheat Acreage) खतरे में पड़ सकता है।

  • भविष्य में प्रसार और प्रभाव:
    • उरुग्वे, इथियोपिया, केन्या और कांगो जैसे देशों सहित नए क्षेत्रों में गेहूँ विस्फोट का विस्तार संभावित है।
    • यह ओशिनिया और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों में बढ़ती भेद्यता के अनुमानों पर भी प्रकाश डालता है।
    • पहले जापान, इटली, स्पेन और न्यूज़ीलैंड जैसे अप्रभावित देशों को गेहूँ विस्फोट के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना जाता है, जो खतरे की वैश्विक प्रकृति को उजागर करता है।
  • यूरोपीय क्षेत्र पर प्रभाव:
    • यूरोप और अन्य देशों में जहाँ बर्फ गिरती है वहाँ की ठंडी जलवायु संक्रमण की संभावना को कम कर देती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन संभावित रूप से समय के साथ विभिन्न कीटों और बीमारियों के वितरण को बदल देगा।
    • भूमध्य सागर के निकट यूरोपीय स्थानों के लिये फंगल संक्रमण हेतु अनुकूल जलवायु का अनुभव करना संभव है।
      • इसमें इटली और दक्षिणी फ्राँस और स्पेन के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • भारत पर प्रभाव:
    • भारत में यदि भविष्य की जलवायु में गेहूँ उगाने के मौसम के उत्तरार्द्ध में अधिक गंभीर उच्च तापमान (35 डिग्री सेल्सियस से अधिक) के साथ शुष्क मौसमी परिस्थितियाँ होती हैं, तो देश के कुछ हिस्से व्हीट ब्लास्ट के प्रति कम संवेदनशील हो सकते हैं।
    • हालाँकि इतने ऊँचे तापमान से व्हीट ब्लास्ट संक्रमण का खतरा कम हो जाता है, लेकिन वे टर्मिनल हीट स्ट्रेस भी पैदा करते हैं, जिससे भारत का संभावित उत्पादन कम हो जाता है।

अध्ययन में सुझाई गई अनुकूलन रणनीतियाँ क्या हैं? 

  • कम संवेदनशील फसलों की ओर बदलाव:
    • व्हीट ब्लास्ट से दुनिया भर के महत्त्वपूर्ण गेहूँ उगाने वाले क्षेत्रों के खतरे को देखते हुए, किसानों को उत्पादन और वित्तीय नुकसान को कम करने के लिये कम संवेदनशील फसलों की ओर रुख करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • एकाधिक रणनीतियाँ:
    • इस बीमारी के प्रबंधन के लिये कई रणनीतियों को अपनाने का सुझाव दिया गया है, उदाहरणतः मध्य पश्चिम ब्राज़ील में मक्के की खेती धीरे-धीरे गेहूँ की जगह ले रही है।
    • ब्लास्ट-प्रतिरोधी गेहूँ का प्रजनन भी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण रणनीति है जो नए संवेदनशील क्षेत्रों में भविष्य के नुकसान को कम कर सकता है और इसकी शुरुआत पहले ही की जा चुकी है।
  • उपयुक्त बुआई तिथि:
    • उचित बुआई तिथि का चयन करके गेहूँ के ब्लास्ट को बढ़ावा देने वाली स्थितियों से भी बचा जा सकता है। रोपण तिथियों में समायोजन रोग के खिलाफ एक और प्रभावी शमन रणनीति है।
  • अनुपयुक्त समय पर रोपण करने से बचना:
    • गेहूँ की फसल में फूल खिलने के चरण के दौरान बारिश और उसके बाद ऊष्म, आर्द्र मौसम उक्त रोग के संक्रमण को बढ़ा सकता है। मध्य ब्राज़ील में अनुपयुक्त समय पर रोपण और बांग्लादेश में देर से रोपण करने से बचने की आवश्यकता है क्योंकि यह अवधि उच्च वर्षा के स्तर के कारण उच्च तापमान तथा सापेक्ष आर्द्रता के अनुरूप होती है।

व्हीट ब्लास्ट की रोकथाम से संबंधित क्या उपाय हैं?

  • राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली भागीदारों के सहयोग से इंटरनेशनल मेज़ एंड व्हीट इम्प्रूवमेंट सेंटर (CIMMYT) द्वारा उत्पादित व्हीट ब्लास्ट-रोधी किस्में व्हीट ब्लास्ट के प्रभाव को कम करने में उपयोगी साबित हुई हैं।
  • व्हीट ब्लास्ट के प्रति प्रतिरोधी गेहूँ की किस्मों को विकसित करना और उनके उत्पादन को प्रोत्साहन देना इस हानिकारक रोग के प्रभाव को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। व्हीट ब्लास्ट-रोधी गेहूँ की किस्मों में Rmg8 और 2NS शामिल हैं।
    • Rmg8, CIMMYT के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित गेहूँ की एक किस्म है जिसमें आनुवंशिक रूप से Rmg8 नामक एक विशिष्ट जीन द्वारा प्रदत्त व्हीट ब्लास्ट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता होती है।
    • 2NS में गेहूँ की एक वन्य किस्म, थिनोपाइरम पोंटिकम से गुणसूत्र 2N के एक खंड को कृषि  की गई गेहूँ की किस्मों में स्थानांतरित करना शामिल है। इससे विभिन्न फंगल रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस तरह भिन्न है? (2021)

  1. स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है।  
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि के कारण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है, किंतु इस तरह की परिघटना स्थायी कृषि में दृष्टिगोचर नहीं होती है।  
  3. पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है, किंतु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।  
  4. मल्च बनाने (मल्चिंग) की प्रथा स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 3                   
(b)  केवल 1, 2 और 4
(c)  केवल 4                     
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी मिश्रित खेती की प्रमुख विशषेता है? (2012)

(a) नकदी और खाद्य दोनों सस्यों की साथ-साथ खेती।
(b) दो या दो से अधिक सस्यों को एक ही खेत में उगाना।
(c) पशुपालन और सस्य-उत्पादन को एक साथ करना।
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

उत्तर: (c)


प्रश्न. सूक्ष्म सिंचाई के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2011) 

  1. उर्वरक/पोषक तत्त्वों की कमी को कम किया जा सकता है। 
  2. यह सूखे की खेती में सिंचाई का एकमात्र साधन है। 
  3. खेती के कुछ क्षेत्रों में भूजल तालिका की पुनरावृत्ति की जाँच की जा सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि विज्ञान के क्षेत्रें में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया तथा डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)