जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव
प्रीलिम्स के लिये:IFAD मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे, जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रोम में आयोजित इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (The International Fund for Agricultural Development- IFAD) की गवर्निंग काउंसिल की 43वीं बैठक में कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संदर्भित किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- IFAD के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक लगभग 100 मिलियन लोग गरीबी से प्रभावित हो सकते हैं जिनमें से लगभग आधे लोग कृषि क्षेत्र से संबंधित होंगे।
- वैश्विक विकास और सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीण विकास पर अधिक खर्च करने की अपील की गई, ताकि जलवायु आपातकाल से उत्पन्न होने वाली भयावह स्थिति से बचा जा सके।
कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से संबंधित तथ्य
- कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मौजूदा संघर्षों को बढ़ा रहे हैं जो कि दुनिया भर में नए संघर्ष पैदा करने की क्षमता रखते हैं। चूँकि संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं अतः संसाधनों पर अधिकार की महत्त्वाकांक्षा आपसी संघर्ष को जन्म देगी।
- वर्ष 2018 में आपदाओं के कारण लगभग 17.2 मिलियन लोग विस्थापित हुए जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत लोग मौसम और जलवायु संबंधी घटनाओं से प्रभावित थे।
- केवल अफ्रीका में वर्ष 2018 और वर्ष 2019 के बीच संघर्षों में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो कि यहाँ भूख और गरीबी में वृद्धि का प्रमुख कारण है। ध्यातव्य है कि आपसी संघर्ष कृषि उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है और लाखों लोगों के गरीबी से बाहर निकलने की प्रक्रिया को बाधित करता है।
- गरीबी में वृद्धि प्रायः प्राकृतिक आपदाओं के कारण होती है, जैसे- पूर्वी अफ्रीका में टिड्डी दलों द्वारा फसलों को नष्ट करना जो कि मौजूदा संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण अफ्रीकी खाद्य प्रणालियों के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। साथ ही ये प्रवासन और संघर्ष के सबसे बड़े कारक हैं।
- इसके अतिरिक्त वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण जलवायवीय दशाओं में परिवर्तन होता है जिसका कृषि क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
- IFAD की गवर्निंग काउंसिल ने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र में व्याप्त संकट का सामना करने के लिये ग्रामीण विकास में अधिक निवेश के लिये अपील की है।
इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (IFAD)
- यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट संस्था है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1977 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान के रूप में हुई।
- इस संस्था का मुख्य उद्देश्य विकासशील राष्ट्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी का निवारण करना है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारत- श्रीलंका संबंध
प्रीलिम्स के लिये:महाबोधि मंदिर, पाक जलडमरूमध्य, सागर, मित्र शक्ति, स्लीनेक्स मेन्स के लिये:भारत- श्रीलंका संबंध |
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने 8-11 फरवरी, 2020 तक भारत का दौरा किया।
- अपनी भारत यात्रा के दौरान श्रीलंका के प्रधानमंत्री वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर, बिहार के बोधगया में महाबोधि मंदिर और आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर भी गए।
मुख्य बिंदु:
- तमिल मुद्दा:
- श्रीलंका में तमिल मुद्दों के समाधान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये भारत ने श्रीलंका पर भरोसा जताया है।
- भारत ने श्रीलंका में समानता, न्याय, शांति और सम्मान हेतु तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करने का भी अनुरोध किया है।
- युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में विकास:
- श्रीलंका ने भारत से उत्तर और पूर्व में अधिक घर बनाने का अनुरोध किया है। जबकि भारत ने अब तक युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में 46,000 घरों का निर्माण करने में मदद की है।
- श्रीलंका ने गहरे समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने की तकनीक के लिये सहायता प्रदान करने का भी अनुरोध किया है जिससे श्रीलंकाई लोगों के लिये रोज़गार सृजित करने में मदद मिलेगी।
- संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण
(Joint Marine Resources Management Authority):- क्षेत्रीय जल से निकटता (विशेष रूप से पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी में) के कारण दोनों देशों के मछुआरों के भटकने की घटनाएँ आम हैं। ऐसी स्थिति के मद्देनज़र दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले मछुआरों के कारण उत्पन्न विवाद के समाधान के लिये कुछ व्यावहारिक व्यवस्थाओं पर सहमति व्यक्त की है।
- श्रीलंका ने दो देशों के बीच एक संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित करने का भी प्रस्ताव दिया है।
- इस प्राधिकरण में दोनों देशों के सात सदस्य होंगे जिनमें नौकरशाह, शोधकर्त्ता, मछुआरों के संघ के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- प्रस्तावित प्राधिकरण से पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) क्षेत्र में मछली पकड़ने को लेकर होने वाले मत्स्य संघर्ष का स्थायी समाधान खोजने में मदद मिलेगी।
- पाक जलडमरूमध्य, भारत के तमिलनाडु राज्य और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के जाफना ज़िले के बीच स्थित है।
- ऋण जाल (Debt Trap):
- भारत ने चीन की ऋण जाल कूटनीति में फँसे श्रीलंका से इस ऋण जाल के संबंध में चर्चा की।
- ऋण जाल कूटनीति का तात्पर्य चीन द्वारा विकासशील या अविकसित देशों जैसे- अफ्रीकी देश जो अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिये धन उधार लेते हैं, को लुभाने या फँसाने की रणनीति है।
- भारत ने चीन की ऋण जाल कूटनीति में फँसे श्रीलंका से इस ऋण जाल के संबंध में चर्चा की।
- हिंद महासागरीय क्षेत्र:
- दोनों देशों ने हिंद महासागरीय क्षेत्र और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिये आपस में सहयोग करने पर सहमति जताई।
- भारत ने अपनी पड़ोसी पहले (Neighbourhood First) की नीति और सागर- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा एवं संवृद्धि (SAGAR- Security and Growth for all in the Region) के तहत हिंद महासागर की सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया।
- सागर (SAGAR) कार्यक्रम को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मॉरीशस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शुरू किया गया था।
- इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सभी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री नियमों और मानदंडों का सम्मान, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता, समुद्री मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान तथा समुद्री सहयोग में वृद्धि करना इत्यादि है।
- आतंकवाद:
- दोनों देशों ने अपनी आतंकवाद विरोधी एजेंसियों के बीच संपर्क एवं सहयोग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।
भारत - श्रीलंका संबंध: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
- भारत श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी है। दोनों देशों के बीच संबंध 2,500 साल से अधिक पुराना है और दोनों पक्षों ने बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी सहयोग की विरासत का निर्माण किया है।
- श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान भारत ने विद्रोही ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये श्रीलंकाई सरकार का समर्थन किया था।
- भारतीय आवास परियोजना (Indian Housing Project) भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को विकासात्मक सहायता देने के लिये प्रमुख परियोजना है। इस परियोजना के तहत गृहयुद्ध से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों तथा चाय बागान क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये 50,000 घरों का निर्माण करना है।
- भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य अभ्यास (मित्र शक्ति- Mitra Shakti) और नौसेना अभ्यास (स्लीनेक्स- SLINEX) का आयोजन करते हैं।
- हाल ही में 41 वर्षों के अंतराल के बाद भारत के चेन्नई शहर से श्रीलंका के जाफना के लिये उड़ान सेवा फिर से शुरू हुई जिसे श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान बंद कर दिया गया था।
स्रोत- PIB
WHO द्वारा बीमारियों के नामकरण की प्रक्रिया
प्रीलिम्स के लियेविश्व स्वास्थ्य संगठन व कोरोना विषाणु मेन्स के लियेनामकरण की प्रक्रिया व कारण |
चर्चा में क्यों?
11 फरवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने कोरोना विषाणु (Coronavirus) द्वारा जनित बीमारी के आधिकारिक नाम के रूप में COVID-19 को मान्यता दी है।
प्रमुख बिंदु
- हुबेई प्रांत के वुहान शहर में निमोनिया (Pneumonia) जैसे कई मामलों के बारे में पता चलने पर चीन सरकार द्वारा सतर्क किये जाने के 40 दिन बाद WHO द्वारा इस बीमारी का नामकरण किया गया है।
- जिनेवा में COVID-19 के नाम की घोषणा करते हुए WHO के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने कहा कि हमें भविष्य में कोरोना विषाणु द्वारा जनित बीमारी की पहचान सुनिश्चित करने के लिये यह एक मानक प्रदान करेगा।
- WHO द्वारा इसका नामकरण वैश्विक एजेंसी विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health) और खाद्य एवं कृषि संगठन ( Food and Agriculture Organization) द्वारा वर्ष 2015 में जारी दिशानिर्देशों के अंतर्गत किया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन
- विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी देशों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की एक महत्त्वपूर्ण संस्था है।
- इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल, 1948 में की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक आनुषंगिक इकाई है।
- इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा शहर में स्थित है। इसका भारतीय मुख्यालय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली में है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देश हैं।
- वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) हैं।
उद्देश्य
- इसका उद्देश्य सभी लोगों को स्वास्थ्य के उच्चतम संभव स्तर की प्राप्ति में सहायता प्रदान करना है।
- यह अंतरिम स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित समन्वयकारी प्राधिकरण के रूप में भी कार्य करता है तथा स्वास्थ्य मामलों में सक्रिय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
- इसके कार्यक्रमों में स्वास्थ्य सेवाओं का विकास, रोग निवारण व नियंत्रण, पर्यावरणीय स्वास्थ्य का संवर्द्धन, जैव-चिकित्सा, स्वास्थ्य सेवाओं, शोध व स्वास्थ्य कार्यक्रमों का विकास एवं प्रोत्साहन शामिल है।
खाद्य एवं कृषि संगठन
- संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे बड़ी विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसियों में से एक है जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्थिति में सुधार करते हुए पोषण तथा जीवन स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
- खाद्य और कृषि संगठन का मुख्यालय रोम, इटली में स्थित है।
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन
- यह दुनिया-भर में पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हेतु उत्तरदाई एक अंतर-सरकारी संगठन (Iintergovernmental Organisation) है।
- इसे विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organizatio-(WTO) द्वारा संदर्भित संगठन (Reference Organisation) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- वर्तमान में कुल 182 देश इसके सदस्य थे।
- इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में स्थित है।
COVID-19 से तात्पर्य
- WHO के अनुसार COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिन्हित करता है।
बीमारी का नाम देने में शीघ्रता क्यों?
- WHO द्वारा बीमारी का नाम बताने की शीघ्रता इसलिये की जाती है ताकि इसके समरूप नामों के दुरुपयोग को रोका जा सके।
- प्रायः वैज्ञानिक समुदाय से संबंध न रखने वाले लोग किसी नई बीमारी को सामान्य नामों से पुकारते हैं। परंतु एक बार जब ये नाम इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से सामान्य तौर पर प्रयोग किये जाने लगते हैं तो उन्हें बदलना मुश्किल होता है, भले ही उस बीमारी के संबंध में अनुचित नाम का उपयोग क्यों न किया जा रहा हो।
- मई 2015 में WHO ने कहा कि पहली बार किसी नई बीमारी की रिपोर्ट मिलने पर यह आवश्यक हो जाता है कि उसे आधिकारिक रूप से उपयुक्त नाम दिया जाए जिससे यह वैज्ञानिक रूप से उचित और सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो।
- इसके पीछे मुख्य उद्देश्य ‘व्यापार, यात्रा, पर्यटन या पशु कल्याण पर बीमारी के नामों के अनावश्यक नकारात्मक प्रभाव को कम करना था, और किसी भी सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, पेशेवर या जातीय समूहों को अपराध करने से बचाना था’।
नामकरण के संदर्भ में सुझाव
- किसी नई बीमारी के नाम में शब्दों का संयोजन होना चाहिये। इन शब्दों में नैदानिक लक्षणों (श्वसन), शारीरिक प्रक्रियाओं (दस्त), और शारीरिक या रोग संबंधी संदर्भ के आधार पर सामान्य वर्णनात्मक शब्द शामिल हो सकते हैं।
- यह विशिष्ट वर्णनात्मक शब्द जैसे कि पीड़ित (शिशु, किशोर या मातृ), मौसम (गर्मी या सर्दी) और गंभीरता (सामान्य या गंभीर) का उल्लेख कर सकता है।
- नाम में अन्य तथ्यात्मक तत्त्व भी शामिल हो सकते हैं जैसे कि पर्यावरण (महासागर या नदी), रोग का कारण (जीवाणु या विषाणु) और वर्ष, जब नई बीमारी का पहली बार पता चला।
- वर्ष का उल्लेख तब किया जाता है जब विभिन्न वर्षों में एक ही कारण से हुई कई घटनाओं के बीच अंतर करना हो। जैसे- विभिन्न वर्षों में COVID-19 व अन्य बीमारियों (गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम और मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम) के प्रसार में कोरोना विषाणु ही प्रमुख कारण रहा है।
नामकरण के दौरान विशेष सावधानियाँ
- वर्ष 2015 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, रोगों का नामकरण करते समय भौगोलिक स्थिति जैसे देश, शहर या क्षेत्र के नाम का उल्लेख नहीं करना चाहिये। पूर्व में इबोला विषाणु तथा जापानी इंसेफेलाइटिस का नामकरण भौगोलिक स्थिति के आधार पर हुआ है।
- यदि रोग की पहचान किसी व्यक्ति, पशु या पक्षी में की गई है तो भी उनके नाम का उल्लेख नहीं होना चाहिये।
- यदि रोग का नामकरण भौगोलिक स्थिति, व्यक्ति, पशु या पक्षी के आधार पर होगा तो उस स्थान, व्यक्ति को सामाजिक-आर्थिक क्षति पहुँच सकती है।
स्रोत: द हिंदू
बिम्सटेक सम्मेलन
प्रीलिम्स के लियेबिम्सटेक समूह, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मेन्स के लियेबिम्सटेक का भारत के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
13 फरवरी 2020 को मादक द्रव्यों की तस्करी रोकने के उद्देश्य से नई दिल्ली में दो दिवसीय बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) सम्मेलन का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु
- यह सम्मेलन सभी सदस्य देशों को मादक पदार्थों की तस्करी के बढ़ते खतरों और विभिन्न देशों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेकर इन खतरों को समाप्त करने के लिये आवश्यक सामूहिक कदमों के बारे में बातचीत करने का अवसर प्रदान करेगा।
- सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में गृह मंत्री ने बताया कि सरकार ने मादक पदार्थों की तस्करी एवं व्यापार को नियंत्रित करने के लिये जो नीति बनाई है उससे भारत में न तो मादक पदार्थों को प्रवेश करने दिया जाएगा और न ही भारत की ज़मीन का प्रयोग मादक पदार्थों की तस्करी में होने दिया जाएगा।
- सरकार का यह विचार है कि पूरी दुनिया में मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिये एकजुट होना आवश्यक है और भारत इस कार्य में विश्व का नेतृत्व करने के लिये तैयार है।
- भारत ने बहुत कम समय के अंदर ही देश में मादक पदार्थों के नियंत्रण के प्रति कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिनका सकारात्मक प्रभाव सामने आया है।
- सरकार की मादक पदार्थों संबंधी एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की कुल आबादी का लगभग 5% मादक पदार्थों के प्रभाव से ग्रसित है अर्थात विश्व के 27 करोड़ से अधिक लोग ऐसे पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जो कि गंभीर चिंतन का विषय है।
- मादक पदार्थों का सेवन करना स्वयं, परिवार, समाज के साथ साथ देश की सुरक्षा के लिये भी खतरा है और यह देश विरोधी तत्त्वों की आमदनी का एक बड़ा ज़रिया बन गया है। आँकड़े बताते हैं कि विश्व में अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के चलते एक बड़ी राशि का लेन-देन होता है जिसका उपयोग अवैध सामाजिक गतिविधियों में किया जाता है।
बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल- बिम्सटेक
- एक उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग समूह के रूप में बिम्सटेक का गठन जून 1997 में बैंकाक में किया गया था।
- प्रारंभ में इस संगठन में बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे और इसका नाम BIST-EC यानि बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड इकॉनोमिक को-ऑपरेशन था।
- दिसंबर 1997 में म्याँमार भी इस समूह से जुड़ गया और इसका नाम BIMST-EC हो गया।
- इसके बाद फरवरी 2004 में भूटान और नेपाल भी इस समूह में शामिल हो गए।
- जुलाई 2004 में बैंकाक में आयोजित इसके प्रथम सम्मेलन में बिम्सटेक (बांग्लादेश, भारत, म्याँमार, श्रीलंका और थाईलैंड तकनीकी और आर्थिक सहयोग) का नाम बदलकर बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) रखा गया।
उद्देश्य
- सात देशों का यह संगठन मूल रूप से एक सहयोगात्मक संगठन है जो व्यापार, ऊर्जा, पर्यटन, मत्स्यपालन, परिवहन और प्रौद्योगिकी को आधार बनाकर शुरू किया गया था लेकिन बाद में इसमें कृषि, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद, संस्कृति, जनसंपर्क, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को भी शामिल किया गया।
- बिम्सटेक के मुख्य उद्देश्यों में बंगाल की खाड़ी के तट पर दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग प्रदान करना शामिल है।
भारत के लिये बिम्सटेक का महत्त्व
- बिम्सटेक दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के बीच एक सेतु की तरह काम करता है। इस समूह में दो देश दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं। म्याँमार और थाईलैंड भारत को दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों से जोड़ने के क्रम में अति महत्त्वपूर्ण है।
- बिम्सटेक देशों के बीच मज़बूत संबंध भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को गति प्रदान कर सकता है। इससे भारत-म्याँमार के बीच परिवहन परियोजना और भारत-म्याँमार-थाईलैंड राजमार्ग परियोजना के विकास में भी तेज़ी आएगी।
- चीन ने भूटान और भारत को छोड़कर लगभग सभी बिम्सटेक देशों में भारी निवेश कर रखा है। ऐसे में हिन्द महासागर तक पहुँचने के लिये बंगाल की खाड़ी तक पहुँच बनाना चीन के लिये ज़रूरी होता जा रहा है। जबकि भारत बंगाल की खाड़ी में अपनी पहुँच और प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है, इस उद्देश्य की सफलता में भी बिम्सटेक भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका के चलते भारत बिम्सटेक को काफी महत्त्व देता है। इससे भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- भारत सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिये कार्यरत विभिन्न एजेंसियों के बीच प्रवर्तन और समन्वय गतिविधियों को मज़बूत करने के लिये कई पहल की हैं। केंद्रीय और राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा अधिक सामंजस्य पूर्ण और समन्वित कार्यों को सुनिश्चित करने के लिये काम किया जा रहा है।
- सरकार नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (Narcotics Control Bureau-NCB) के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिये भोपाल में केंद्रीय अकादमी की स्थापना कर रही है।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की स्थापना स्वापक औषधियाँ और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act), 1985 द्वारा मार्च 1986 में की गई।
- यह गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं जो मुंबई, इंदौर, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ, जोधपुर, चंडीगढ़, जम्मू, अहमदाबाद, बंगलूरु, गुवाहाटी और पटना में स्थित हैं।
उद्देश्य
- इसका मुख्य उद्देश्य मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाना है।
- देश के सीमांत क्षेत्रों पर नज़र रखना ताकि विदेशी तस्करों की गतिविधियों को सीमा पर ही नियंत्रित किया जा सके।
- यह मादक पदार्थ प्रवर्तन एजेंसियों के कर्मियों को संसाधन और प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
- भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से होने वाले मादक पदार्थों की तस्करी के बारे में जागरुकता बढ़ाने की पहल की गई है।
- भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय स्थापित कर पिछले 5 वर्षों में बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्याँमार, सिंगापुर आदि देशों से मादक पदार्थों की तस्करी के मुद्दे पर चर्चा की है।
- भारत सरकार ने ‘ड्रग फ्री इंडिया (Drug Free India)’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मज़बूती से अपने कदम बढ़ाएं हैं।
स्रोत: PIB
अर्थ-गंगा परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:अर्थ-गंगा परियोजना, राष्ट्रीय गंगा परिषद मेन्स के लिये:रोज़गार वृद्धि हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम और उनकी महत्ता |
संदर्भ?
जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry Of Shipping) के अनुसार, अर्थ-गंगा परियोजना (Arth-Ganga Project) से गंगा नदी के किनारे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
अर्थ गंगा के बारे में:
- पृष्ठभूमि:
- दिसंबर 2019 में संपन्न हुई राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council- NGC) की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री ने गंगा नदी से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही ‘नमामि गंगे’ परियोजना को ‘अर्थ-गंगा’ जैसे एक सतत् विकास मॉडल में परिवर्तित करने का आग्रह किया था।
- अर्थ गंगा:
- इस प्रक्रिया में किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसमें शून्य बजट खेती, फलदार वृक्ष लगाना और गंगा के किनारों पर पौध नर्सरी का निर्माण करना शामिल है।
- इन कार्यों के लिये महिला स्व-सहायता समूहों और पूर्व सैनिक संगठनों को प्राथमिकता दी जाएगी।
- जल से संबंधित खेलों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास और शिविर स्थलों के निर्माण, साइकिलिंग एवं टहलने के लिये ट्रैकों आदि के विकास से नदी बेसिन क्षेत्रों में धार्मिक तथा साहसिक पर्यटन जैसी महत्त्वपूर्ण पर्यटन क्षमता बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
- पारिस्थितिक पर्यटन और गंगा वन्यजीव संरक्षण एवं क्रूज पर्यटन आदि को प्रोत्साहन देने से अर्जित आय को गंगा स्वच्छता के लिये आय का स्थायी स्रोत बनाने में सहायता मिलेगी।
महत्त्व
- अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास "अर्थ-गंगा" परियोजना के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है।
- जलमार्गों के विकास का नदियों के तटों और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- न केवल समावेशी विकास बल्कि राष्ट्रीय जलमार्ग से संबंधित क्षेत्र में रोज़गारों के सृजन में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- अर्थ-गंगा परियोजना किसानों, छोटे व्यापारियों और ग्रामीणों के लिये आर्थिक और समावेशी विकास को बढ़ावा देगी।
- भारत लगभग आधी आबादी गंगा नदी क्षेत्र के आसपास अधिवासित है। जो कि भारत के समग्र माल भाड़े का लगभग 20% भाग प्राप्ति का स्रोत है तथा एक-तिहाई गंतव्य का क्षेत्र है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम और उनकी महत्ता:
- राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (बनारस से हल्दिया तक के 1400 किमी० क्षेत्र में) पर किसानों, व्यापारियों और आम जनता के लिये कई प्रकार की गतिविधियाँ, जैसे- छोटे घाटों (Jetties) आदि का विकास किया गया है।
- परिणामस्वरूप इससे किसानों को अपनी उपज के लिये बेहतर लाभ मिलेगा क्योंकि माल का परिवहन आसान और वहनीय होगा।
- इसके अलावा इससे ईज़ ऑफ लिविंग (Ease of Living) में वृद्धि और व्यापार करने में आसानी (Ease of Doing Business) होगी।
- भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India- IWAI) माल/कार्गो के आसान और लागत प्रभावी परिवहन के लिये छोटे- छोटे घाटों (Jetties) और 10 रो-रो जहाज़ों को तैनात कर रहा है। जैसा कि नीचे दर्शाया गया है।
- इसके अलावा जहाज़रानी मंत्रालय अंतर्देशीय जलमार्ग के साथ तालमेल बनाने के उद्देश्य से वाराणसी (उत्तर प्रदेश) फ्रेट विलेज और साहिबगंज (झारखंड) औद्योगिक क्लस्टर-सह-लॉजिस्टिक्स पार्क को 200 करोड़ रुपए की लागत से विकसित कर रहा है।
- यह विशेष क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देते हुए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा करेगा।
अन्य तथ्य:
- भारत एक राष्ट्र के रूप में आर्थिक परिवर्तन हेतु सदैव नेपाल का समर्थन करता रहा है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग- 1 त्रिपक्षीय तरीके से {वाराणसी से नौतनवा (280 किमी), रक्सौल (204 किमी) और साहिबगंज विराटनगर (233 किमी)} नेपाल के साथ संबंधों को सुधारने के लिये एक मुख्य संघटन के रूप में कार्य करेगा।
- इससे पहले नेपाल माल परिवहन के लिये कोलकाता और विशाखापत्तनम पोर्ट से जुड़ा था।
- अब भारत और नेपाल सरकार के मध्य कार्गो के पारगमन के लिये संधि (Treaty for Transit of Cargo) के तहत अंतर्देशीय जलमार्ग, विशेष रूप से NW-1 को अनुमति दी जाएगी।
- इससे न केवल लॉजिस्टिक लागत घटेगी बल्कि कोलकाता पोर्ट पर भीड़ भी कम होगी।
राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council- NGC):
- इसकी स्थापना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (Environment (Protection) Act (EPA),1986) के तहत की गई थी।
- NGC की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
- इसका कार्य गंगा और उसकी सहायक नदियों सहित गंगा नदी बेसिन के प्रदूषण निवारण और कायाकल्प का अधीक्षण करना है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG), राष्ट्रीय गंगा परिषद के कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है।
- NMCG की स्थापना वर्ष 2011 में एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी।
स्रोत: PIB
राजनीति के अपराधीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
प्रीलिम्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोग मेन्स के लिये:भारत में राजनीतिक अपराधीकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों को अपने विधानसभा और लोकसभा उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास की जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ-साथ पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल में प्रकाशित होनी चाहिये।
- यह अनिवार्य रूप से उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख के दो सप्ताह से कम समय में (जो भी पहले हो) प्रकाशित किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि वे भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) के सामने 72 घंटे के भीतर अदालती कार्रवाई की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें अन्यथा उन दलों पर न्यायालय की अवमानना से संबंधित कार्रवाई की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय केंद्र और राज्य दोनों स्तर की पार्टियों पर लागू होता है।
- संवैधानिक पीठ ने कहा है कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल रहे राजनीतिक पार्टियों के पदाधिकारी और उम्मीदवार देश की राजनीतिक और चुनावी गरिमा का अतिक्रमण करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों से उन कारणों को भी बताने के लिये कहा है जो उन्हें सभ्य लोगों की तुलना में संदिग्ध अपराधियों को आगे लाने के लिये प्रेरित करते हैं।
पृष्ठभूमि:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 2018 के ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ’ (Public Interest Foundation vs Union of India) मामले में गठित एक संवैधानिक पीठ के फैसले के आधार पर दिया गया है जो कि राजनीतिक दलों द्वारा अपनी वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक विवरण प्रकाशित करने और सार्वजनिक जागरूकता फैलाने संबंधी एक अवमानना याचिका पर आधारित था।
- इस फैसले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और नागरिकों के बीच इस तरह के अपराधीकरण के बारे में जानकारी की कमी बताई थी।
जानकारी का स्वरूप:
- उम्मीदवारों के पूर्व अपराधों पर प्रकाशित जानकारी विस्तृत होनी चाहिये जिसमें उनके अपराधों की प्रकृति, उनके खिलाफ लगाए गए आरोप, संबंधित न्यायालय, मामले की संख्या आदि शामिल हैं।
- एक राजनीतिक दल को अपनी प्रकाशित सामग्री के माध्यम से जनता को यह भरोसा दिलाना होगा क्योंकि किसी भी अभ्यर्थी की ‘योग्यता या उपलब्धियाँ’ आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण प्रभावित होती हैं।
- एक पार्टी को मतदाता को बताना होगा कि किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिये टिकट देने का निर्णय केवल चुनावों में विजय प्राप्त करना ही नहीं था।
राजनीतिक अपराध संबंधी आँकड़े:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पिछले चार आम चुनावों में राजनीतिक अपराधों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे जो कि वर्ष 2009 में बढ़कर 30%, वर्ष 2014 में 34% और वर्ष 2019 में 43% हो गए।
आगे की राह:
- देश की राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि संसद ऐसा कानून लाए ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें। जन प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने वाले लोग अपराध की राजनीति से ऊपर हों। राष्ट्र को संसद द्वारा कानून बनाए जाने का इंतजार है। भारत की दूषित हो चुकी राजनीति को साफ करने के लिये बड़ा प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत- द हिंदू
भारत में कुपोषण उन्मूलन
प्रीलिम्स के लिये:पोषण अभियान, पोषण संबंधी तथ्य मेन्स के लिये:कुपोषण उन्मूलन में सरकारी प्रयास |
चर्चा में क्यों?
स्टेट ऑफ़ इंडियाज़ एन्वायरनमेंटल रिपोर्ट 2020 (The State of India’s Environment Report 2020) के अनुसार, भारत सरकार के पोषण अभियान को कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु
- इस नवीनतम रिपोर्ट को 9 फरवरी, 2020 को जारी किया गया जिसके अनुसार वर्ष 2022 तक भारत में कुपोषण उन्मूलन के लक्ष्यप्राप्ति में समस्याएँ आ सकती है।
- यह स्थिति इस तथ्य के बावजूद है कि भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 1991 की तुलना में दोगुनी वृद्धि हुई है और बाल कुपोषण से निपटने के लिये वर्ष 1975 से देश में ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (Integrated Child Development Services-ICDS) लागू है जो कि कुपोषण से मुक्ति हेतु दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है।
भारत में कुपोषण की स्थिति:
- वर्ष 2017 मे पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 1.04 मिलियन मौतों में से 68.2% से ज़्यादा मौतें कुपोषण के कारण हुई।
- ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (Global Hunger Index) के नवीनतम संस्करण में 117 देशों की सूची में भारत 102वें स्थान पर रहा।
- पिछले दो दशकों में भारत के GHI स्कोर में केवल 21.9% का सुधार हुआ है, जबकि ब्राज़ील के स्कोर में 55.8%, नेपाल में 43.5% और पाकिस्तान में 25.6% का सुधार हुआ है।
भारत सरकार की पहल:
- इस चुनौती का सामना करने के लिये केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में ‘प्रधानमंत्री पोषण अभियान’ की शुरुआत की।
- सरकार ने वर्ष 2017-18 की शुरुआत में इस योजना हेतु तीन वर्ष के लिये 2,849.54 करोड़ रुपए आवंटित किये और वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ का लक्ष्य रखा।
योजना से जुड़ी समस्याएँ:
- योजना द्वारा प्रवर्तित ‘नवजात शिशु आहार कार्यक्रमों’ का क्रियान्वयन खराब रहा है, परिणामस्वरूप ज़मीनी स्तर पर इसके प्रभाव नहीं दिखाई दिये।
- कुपोषण समस्या की गंभीरता पर विचार करने पर योजना का लक्ष्य, वर्ष-दर-वर्ष असंभव प्रतीत होता है।
- पूर्वानुमान बताते हैं कि मौजूदा दर पर स्टंटिंग (Stunting) के मानक पर SDG लक्ष्यों को प्राप्त करने में पंजाब को 23 वर्ष और झारखंड को 100 वर्ष लगेंगे।
- इसी तरह वेस्टिंग (Wasting) संबंधी SDG लक्ष्यों को पूरा करने में मध्य प्रदेश को 28 वर्ष और झारखंड को 88 वर्ष लगेंगे।
आगे के प्रमुख कदम :
- आँगनवाड़ी केंद्रों को क्रेच (पालना-घर) में बदलना।
- सार्वभौमिक रूप से मज़दूरी क्षतिपूर्ति आधारित मातृत्व लाभ प्रदान करना।
- भोजन और पोषण सुरक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में अपनाना।
- कुपोषण से लड़ने में समुदाय आधारित प्रबंधन के लिये प्रतिबद्धता।
अतः आवश्यकता है कि हम अधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करें परंतु साथ ही इस संबंध में की गई प्रगति के आकलन की प्रक्रिया को भी अपनाना चाहिये।
स्रोत:द हिंदू
वर्ल्ड वाइड फंड की रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड मेन्स के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड द्वारा जारी रिपोर्ट से संबंधित तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature) ने ‘ग्लोबल फ्यूचर्स: द ग्लोबल इकोनॉमिक इमपैक्टस ऑफ एन्वायरनमेंट चेंज टू सपोर्ट पॉलिसी मेकिंग’ (Global Futures: Assessing The Global Economic Impacts of Environmental Change To Support Policy-Making) नामक एक रिपोर्ट जारी की है।
मुख्य बिंदु:
- इस रिपोर्ट में प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारणों पर वैश्विक आर्थिक प्रभावों का पता लगाने के लिये अत्याधुनिक मॉडलिंग का उपयोग करते हुए एक ऐतिहासिक अध्ययन किया गया है।
- इस रिपोर्ट को वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा ‘द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट’ (The Global Trade Analysis Project) द्वारा ‘नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट’ (Natural Capital Project) के सहयोग से तैयार किया गया है।
द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट:
- द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट को वर्ष 1992 में स्थापित किया गया था।
- यह 17,000 से अधिक व्यक्तियों के वैश्विक नेटवर्क के साथ 170 से अधिक देशों में व्यापार और पर्यावरण नीतियों के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करता है।
नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट:
- द नैचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट (NatCap) चार विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों- स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, द चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज़, मिनसोटा विश्वविद्यालय और स्टॉकहोम रेजिलिएशन सेंटर तथा दुनिया के दो सबसे बड़े गैर सरकारी संगठनों की साझेदारी से बना समूह है।
- यह अध्ययन 140 देशों और सभी प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में पर्यावरण निम्नीकरण लागत की गणना के लिये नए आर्थिक और पर्यावरणीय मॉडल का उपयोग करता है।
रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:
- यह रिपोर्ट प्रकृति द्वारा प्रदत्त निम्नलिखित छह महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का विश्लेषण करती है-
- कृषि के लिये पानी की आपूर्ति
- लकड़ी की आपूर्ति
- समुद्री मत्स्य पालन
- फसलों का परागण
- बाढ़, तूफान की वृद्धि और कटाव से सुरक्षा
- जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये कार्बन संग्रहण
- यह रिपोर्ट पर्यावरण और जैव विविधता के नुकसान की स्थिति में कार्रवाई करने में विफल रहने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के लिये भविष्य की लागत का विश्लेषण करती है।
नया परिदृश्य:
- इस रिपोर्ट को तैयार करने में अब ‘ग्लोबल कंज़र्वेशन’ (Global Conservation) के साथ -साथ 'बिज़नेस एज़ यूज़ुअल' (Business as Usual) नामक नया परिदृश्य जोड़ा गया है।
- जिसका उद्देश्य यह बताना है कि प्रकृति के निरंतर नुकसान के गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे तथा भविष्य में वैश्विक आर्थिक समृद्धि के लिये प्रकृति में निवेश किया जाना आवश्यक है।
वैश्विक स्थिति:
- इस रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण का संरक्षण नहीं किये जाने से वर्ष 2050 तक दुनिया को लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि छह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की विफलता के कारण वर्ष 2050 तक वार्षिक वैश्विक जीडीपी में 0.67 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
- इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर दुनिया ने जीवन यापन का उत्कृष्ट सतत् मॉडल अपनाया तो वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2050 तक 0.02 प्रतिशत अधिक होगा।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को 'बिज़नेस एज़ यूज़अल' परिदृश्य के तहत वर्ष 2050 तक महत्त्वपूर्ण वार्षिक जीडीपी घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और जापान को वर्ष 2050 तक एक वर्ष में $80 बिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान होने की संभावना है।
भारत की स्थिति:
- ब्रिटेन और भारत को भी इस सदी के मध्य तक एक वर्ष में $20 बिलियन से अधिक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत को सर्वाधिक नुकसान पानी की कमी के कारण होगा।
- इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन, भारत और अमेरिका द्वारा दुनिया का लगभग 45% फसल उत्पादन किया जाता है, जो कि गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
प्राकृतिक असंतुलन का खतरा:
- इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जंगल, आर्द्रभूमि और प्रवाल भित्ति जैसे प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन प्रभावित हो रहा है। इससे मछलियों के भंडार में कमी हो रही है, इमारती और जलावन में उपयोग की जाने वाली लकड़ियाँ खत्म हो रही हैं तथा पादपों के परागण के लिये कीट समाप्त हो रहे हैं।
- मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, मौसमी घटनाओं और बाढ़ में बढ़ोतरी, पानी की कमी, मिट्टी का क्षरण जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी एवं प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।
खाद्य सुरक्षा भी होगी प्रभावित:
- अगर पर्यावरणीय क्षरण इसी प्रकार जारी रहा तो दुनिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू सकती हैं।
- प्रकृति के नुकसान का सर्वाधिक नकारात्मक असर कृषि को झेलना पड़ता है। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक लकड़ी 8 प्रतिशत तक महँगी हो सकती है। कॉटन, ऑयल सीड और फल व सब्जियों की कीमतों में क्रमश: 6, 4 एवं 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।
आगे की राह:
प्रकृति को नुकसान पहुँचाने के गंभीर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे हैं। असमय बाढ़, सूखा, मौसम चक्र में बदलाव, कृषि उत्पादकता में कमी, जैव विविधता का क्षरण और सबसे गंभीर समस्या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आई है। ये कुछ ऐसे बदलाव हैं जिन्हें हम देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। उपर्युक्त रिपोर्ट में प्रकृति से छेड़छाड़ के आर्थिक नुकसान का आकलन सामने आया है। अतः मानव समुदाय को इन बदलावों को देखते हुए सचेत होना चाहिये तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने चाहिये।
स्रोत- डाउन टू अर्थ
जलवायु परिवर्तन और अर्थव्यवस्था
प्रीलिम्स के लिये:आर्द्र बल्ब तापमान, शहरी ऊष्मा द्वीप मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती ऊष्मा (Heat) से भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।
मुख्य बिंदु:
- रिपोर्ट में मुख्यतः बढ़ती ऊष्मा और श्रमबल पर उसके प्रभाव का अध्ययन किया गया है।
- रिपोर्ट में अगले तीन दशकों में जलवायु परिवर्तन के भौतिक जोखिमों और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण एक सामान्य व्यावसायिक परिदृश्य में किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- अगले तीन दशकों में अत्यधिक ऊष्मा के कारण भारत के श्रमबल की कार्यक्षमता में काफी कमी आएगी तथा भारत की लगभग 75% श्रम शक्ति (लगभग 380 मिलियन लोग) ऊष्मा संबंधी तनाव से प्रभावित होगी।
- वर्ष 2030 तक दिन के कार्य घंटों (Daylight Working Hours) में कमी होने से सकल घरेलू उत्पादन (GDP) में सालाना 2.5%-4.5% तक नुकसान हो सकता है।
- यदि प्रमुख अनुकूलन और शमन उपायों को नहीं अपनाया गया तो भारत का एक बड़ा हिस्सा बहुत गर्म हो जाएगा जहाँ जीवित रहना और खुले में काम करना मुश्किल होगा।
- बढ़ती ऊष्मा और आर्द्रता का स्तर वर्ष 2030 तक 160 मिलियन से 200 मिलियन भारतीयों को भीषण गर्म-लहरों से प्रभावित कर सकता है।
आर्द्र बल्ब तापमान (Wet Bulb Temperature):
- ‘आर्द्र बल्ब तापमान’ में ऊष्मा और आर्द्रता दोनों पर विचार किया जाता है, अर्थात् यदि सापेक्ष आर्द्रता 100% है, तो ‘आर्द्र बल्ब’ का तापमान वायु के तापमान के बराबर होता है तथा यदि आर्द्रता 100% से कम है तो तापमान वायु के तापमान से कम होगा।
घातक उष्म-धाराएँ (Lethal Heat Waves) व शहरी ऊष्मा द्वीप (Urban Heat Island):
- यदि तीन या अधिक दिनों तक 34°C तापमान हो तथा आर्द्र बल्ब तापमान' की स्थिति हो तब घातक उष्म-धाराएँ उत्पन होंगी परंतु यदि तापमान 35°C से अधिक हो तो ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ प्रभाव होगा।
100% आर्द्रता और तापमान 35°C के ऊपर होने पर मानव शरीर, पसीना आने तथा ठंडा होने की अपनी प्राकृतिक क्षमता को खो देता है। 35°C तापमान से अधिक के ‘आर्द्र बल्ब’ के तापमान पर हम कुछ घंटे ही खुले में रह सकते हैं।
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2050 तक सिर्फ 700 मिलियन से 1.2 बिलियन लोग ‘घातक उष्म-धाराएँ’ जैसे गैर-शून्य संभावना क्षेत्र (Non-Zero Chance Zone) में रह रहे होंगे।
- उच्च तापमान और ‘घातक उष्म-धाराएँ’ श्रम शक्ति की बाह्य कार्यक्षमता में बाधा उत्पन्न करेंगी।
- अनुमान बताते हैं कि अत्यधिक ऊष्मा के कारण कार्यशील घंटों की संख्या में होने वाली कमी वर्ष 2050 तक वर्तमान के 10% से बढ़कर 15-20% हो जाएगी तथा इससे आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित होगा।
- कई अध्ययनों से पता चला है कि विकासशील गरीब देश जिनका प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद कम है वे अपनी भौतिक थ्रेसहोल्ड सीमा (वह न्यूनतम स्तर जिस पर परिसंपत्ति का प्रदर्शन और स्थिति स्वीकार्य है) के करीब हैं तथा आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित होंगे।
अन्य प्रभाव:
1. ग्लोबल वार्मिंग और महासागर:
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण अतिरिक्त ऊष्मा का एक बड़ा भाग (लगभग 90%) महासागरों में संग्रहीत हो रहा है जो सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाएगा।
- रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते सागरीय तापमान के कारण कम होती मत्स्य संख्या इस उद्योग से जुड़े 650-800 मिलियन लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगी।
- दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन से शीतोष्ण कटिबंधीय विकसित देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। यथा उत्तरी यूरोप और कनाडा के कृषि, पर्यटन जैसे क्षेत्रों को बढ़ते तापमान से कुछ फायदा हो सकता है।
2. टिपिंग पॉइंट्स (Tipping Points) प्रभाव:
- परिवर्तन की एक सीमा को पार करने के बाद जलवायु के गैर-रेखीय प्रभाव उत्पन्न होते है इस सीमा को ’टिपिंग पॉइंट्स’ कहते है। टिपिंग पॉइंट्स के बाद छोटे-छोटे परिवर्तन या घटनाएँ एक बड़े तथा अधिक परिवर्तन का कारण बन जाती हैं। अत्यधिक ऊष्मा के उपर्युक्त प्रभावों के अलावा सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र पर ’टिपिंग पॉइंट्स’ प्रभाव पड़ेगा।
- उदाहरण के लिये वियतनाम में हो ची मिन्ह सिटी मानसून व तूफान के कारण बाढ़ से प्रभावित है जहाँ अनुकूलन के बिना 100 वर्षों की बाढ़ से बुनियादी ढाँचे को होने वाला प्रत्यक्ष नुकसान 2050 तक 1 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है।
3. खाद्य उत्पादन पर प्रभाव:
- यह वैश्विक उष्णता के ‘टिपिंग प्रभाव’ से प्रभावित होने वाला अन्य क्षेत्र है। यहाँ कृषि पद्धतियों को विशिष्ट मौसम और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार विकसित तथा अनुकूलित किया गया है। अतः इन सामान्य परिस्थितियों में कोई भी बदलाव, उत्पादकता को उच्च जोखिम में डालता है।
- वैश्विक अनाज उत्पादन का लगभग 60% केवल पाँच ‘अनाज की टोकरी’ (Breadbasket) क्षेत्रों में होता है। ‘अनाज की टोकरी’ एक ऐसे क्षेत्र को कहते हैं जो मिट्टी और लाभप्रद जलवायु के कारण बड़ी मात्रा में गेहूँ या अन्य अनाज पैदा करती है। जलवायु परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों को हुए किसी भी प्रकार के नुकसान का वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
आगे की राह:
- रिपोर्ट में सरकारों और व्यापार जगत से आग्रह किया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने के लिये सही उपकरणों और विश्लेषण क्षमता को आगे बढ़ाएँ।
- जलवायु जोखिम को संबोधित करने के लिये उचित शासन व्यवस्था एवं कम कार्बन वाली तकनीकों पर काम करें।
स्रोत: द हिंदू
कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020
प्रीलिम्स के लिये:कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 मेन्स के लिये:कीटनाशकों के उपयोग से संबंधित मुद्दे, कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2020 के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 (Pesticides Management Bill, 2020) को मंज़ूरी दे दी है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- यह विधेयक कीटनाशकों के व्यवसाय को विनियमित करने के लिये लाया जा रहा है।
इस विधेयक की आवश्यकता क्यों?
- कीटनाशकों का प्रयोग कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों रूपों में प्रभावित करता है, इसलिये कीटनाशकों के व्यवसाय का प्रबंधन करना आवश्यक हो जाता है।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में कीटनाशक व्यवसाय को कीटनाशक अधिनियम, 1968 (Insecticides Act of 1968) के नियमों द्वारा विनियमित किया जाता है। यह कानून अत्यंत पुराना हो गया है और इसमें तत्काल संशोधन की आवश्यकता है।
कीटनाशक विधेयक, 2020 के मुख्य बिंदु
- कीटनाशक से संबंधित डेटा: यह कीटनाशकों की ताकत और कमज़ोरी, जोखिम और विकल्पों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करके किसानों को सशक्त करेगा। ध्यातव्य है कि सभी जानकारियाँ डिजिटल प्रारूप में और सभी भाषाओं में डेटा के रूप में खुले तौर पर उपलब्ध होंगी।
- मुआवज़ा: यह विधेयक नकली कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले नुकसान के संदर्भ में क्षतिपूर्ति का प्रावधान करता है। ध्यातव्य है कि यह प्रावधान इस विधेयक का सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु है।
- साथ ही इसमें यह भी वर्णित है कि यदि आवश्यक हुआ तो क्षतिपूर्ति के लिये एक केंद्रीय कोष भी बनाया जाएगा।
- यह विधेयक जैविक कीटनाशकों के निर्माण एवं उपयोग को भी बढ़ावा देता है।
- कीटनाशक निर्माताओं का पंजीकरण: इस विधेयक के पारित होने के बाद सभी कीटनाशक निर्माता नए अधिनियम के तहत पंजीकरण हेतु बाध्य होंगे। कीटनाशकों संबंधी विज्ञापनों को विनियमित किया जाएगा ताकि निर्माताओं द्वारा कोई भ्रम न फैलाया जा सके।
भारत में कीटनाशकों का उपयोग:
- एशिया में भारत कीटनाशकों के उत्पादन में अग्रणी है।
- घरेलू बाज़ार में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा सबसे अधिक कीटनाशक खपत वाले राज्यों में शामिल हैं।
नकली कीटनाशकों के दुष्प्रभाव
- ये फसल, मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
- इनकी बिक्री से न केवल कृषकों बल्कि कीटनाशक के वास्तविक निर्माताओं एवं सरकार को नुकसान होता है, ध्यातव्य है कि नकली कीटनाशकों की बिक्री से सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व की हानि होती है।
कीटनाशक अधिनियम, 1968
- यह अधिनियम मनुष्यों और जानवरों के लिये जोखिम को रोकने के लिये कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को विनियमित करने के दृष्टिकोण के साथ अगस्त, 1971 से लागू किया गया था।
- केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड इस अधिनियम की धारा 4 के तहत स्थापित किया गया था और यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है।
- यह बोर्ड केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अधिनियम के प्रशासन में उत्पन्न तकनीकी मामलों और उसे सौंपे गए अन्य कार्यों को करने की सलाह देता है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 फरवरी, 2020
रक्षा और आंतरिक सुरक्षा पर समूह का गठन
15वें वित्त आयोग ने रक्षा और आंतरिक सुरक्षा पर एक समूह का गठन किया है। 5 सदस्यों वाले इस समूह की अध्यक्षता स्वयं 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह द्वारा की जा रही है। एन.के. सिंह के अतिरिक्त समूह में ए.एन. झा (15वें वित्त आयोग के सदस्य), गृह मंत्रालय के सचिव, रक्षा मंत्रालय के सचिव और वित्त मंत्रालय के सचिव भी शामिल हैं। 15वें वित्त आयोग द्वारा गठित इस समूह का उद्देश्य यह परीक्षण करना होगा कि ‘क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के वित्तपोषण के लिये एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, और यदि ऐसा है, तो इस तरह के तंत्र का संचालन किस प्रकार किया जा सकता है।
प्रवासी भारतीय केंद्र का नाम परिवर्तन
केंद्र सरकार ने प्रवासी भारतीय केंद्र का नाम बदलकर पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नाम पर करने का निर्णय लिया है। इस संदर्भ में सूचना देते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अमूल्य योगदान को देखते हुए भारतीय प्रवासी केंद्र को सुषमा स्वराज भवन और विदेश सेवा संस्थान को सुषमा स्वराज इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस के रूप में जाना जाएगा। ज्ञात हो कि 14 फरवरी को सुषमा स्वराज की जयंती है। इस अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि ‘वे सार्वजनिक सेवा के संदर्भ में गरिमा, शालीनता और अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भारतीय मूल्यों और लोकाचार से गहरे जुड़े रहते हुए हमारे राष्ट्र के लिये उन्होंने महान सपने संजोए थे। वह एक असाधारण सहयोगी और एक उत्कृष्ट मंत्री थीं।’ ध्यातव्य है कि सुषमा स्वराज का 6 अगस्त, 2019 को 67 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था।
राजीव बंसल
वरिष्ठ IAS अधिकारी राजीव बंसल को एयर इंडिया (Air India) का चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक (CMD) नियुक्त किया गया है। बंसल वर्ष 1988 बैच के नगालैंड कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी हैं। वह अभी पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के पद पर कार्यरत हैं। इस संदर्भ में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार उनका पद और वेतनमान अतिरिक्त सचिव के समकक्ष होगा। ध्यातव्य है कि अश्वनी लोहानी का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात् से एयर इंडिया के CMD का पद खाली था। हाल ही में सरकार ने एयर इंडिया का 100 प्रतिशत विनिवेश करने का निर्णय लिया था।