आंतरिक सुरक्षा
राष्ट्रीय पोषण मिशन और ‘कुपोषण’ की समस्या
- 04 Dec 2017
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संदर्भ
- हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय पोषण मिशन (national nutrition mission) आरंभ करने के लिये अपनी मंज़ूरी दे दी है।
- वर्ष 2017-18 में आरंभ हो रहे मिशन का लक्ष्य कुपोषण अैर जन्म के समय बच्चों का वज़न कम होने संबंधी समस्याओं को प्रत्येक वर्ष 2 प्रतिशत तक कम करना है।
- इस मिशन को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा नीति आयोग द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया जाएगा।
‘राष्ट्रीय पोषण योजना’ में तय लक्ष्य
- वर्ष 2017-18 में आरंभ हो रहे इस मिशन का लक्ष्य कुपोषण अैर जन्म के समय बच्चों का वज़न कम होने संबंधी समस्याओं को प्रत्येक वर्ष 2% तक कम करना है।
- मिशन का एक मुख्य लक्ष्य बच्चों में उनकी लम्बाई कम बढ़ने की समस्या (स्टंटिंग) का निवारण करना भी है।
- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में 38.4% बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं। मिशन का लक्ष्य है कि वर्ष 2022 तक इसमें कमी लाते हुए इसे 25% तक लाया जाए।
- मिशन का लक्ष्य एनीमिया से पीड़ित बच्चों, महिलाओं तथा किशोरों की संख्या में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की कमी लाना है।
- यह मिशन चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा, जिसमें वर्ष 2017-18 के दौरान 315 ज़िले, वर्ष 2018-19 में 235 ज़िले तथा वर्ष 2019-20 में शेष ज़िले कवर किये जाएंगे।
- इस मिशन में आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) जैसे कई घटक शामिल होंगे, जो रियल-टाइम निगरानी प्रणाली पर आधारित होंगे।
राष्ट्रीय पोषण मिशन से प्राप्त होने वाले लाभ
- इस कार्यक्रम से 10 करोड़ से अधिक लोगों को लाभ मिलेगा। चूँकि यह मिशन चरणबद्ध तरीके से कार्य करेगा, इसलिये प्रथम चरण में सर्वाधिक प्रभावित 315 ज़िलों को कवर किया जाएगा।
- इस मिशन का मुख्य उद्देश्य कुपोषण के उन्मूलन से संबंधित सभी मौजूदा योजनाओं एवं कार्यक्रमों को एकजुट कर एक बेहतर और समन्वित मंच प्रदान करना है।
कुपोषण क्या है?
- कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है और यह एक गंभीर स्थिति है।
- कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा नहीं होती है।
- दरअसल, भोजन के ज़रिये हम स्वस्थ रहने के लिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं।
कुपोषण का प्रभाव
- शरीर के लिये आवश्यक संतुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलने से बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं।
- बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं।
- दरअसल, कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। यह जन्म या उससे भी पहले शुरू होता है और 6 महीने से 3 वर्ष की अवधि में तीव्रता से बढ़ता है।
- सबसे भयंकर परिणाम इसके द्वारा होने वाला आर्थिक नुकसान है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है जो सकल घरेलू उत्पाद को 5-10 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
बालश्रम तथा बाल वैश्यावृत्ति को बढ़ावा
भारत में कुपोषण की स्थिति
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट:
► अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute- IFPRI) द्वारा हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार 119 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 100वें पायदान पर है और वह उत्तर कोरिया और बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे है।
► दरअसल, पिछले साल भारत इस इंडेक्स में 97वें स्थान पर था और अब 100वें स्थान पर है। यानी इस साल वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत 3 स्थान और पीछे चला गया है।
एशिया में एक बड़ी शक्ति के तौर पर पहचान रखने वाला भारत समूचे एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आगे है जबकि नेपाल, म्याँमार, श्रीलंका और बांग्लादेश से भी पीछे है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट:
► विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की संख्या के मामले में दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक है।
► भारत में कम वज़न वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, यहाँ तक कि यह संख्या उप सहारा अफ्रीका (Sub Saharan Africa) की तुलना में लगभग दोगुनी है।
► विश्व बैंक की ही एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रत्येक वर्ष भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद में से लगभग 12 अरब डॉलर विटामिन और खनिजों (minerals) की कमी को पूरा करने पर खर्च करता है।
► हालाँकि, बच्चों में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिये इस धनराशि को आवश्यक ही माना जाएगा, लेकिन अगर हम मुख्य पोषक तत्त्वों को पहले से ही उपलब्ध कराएँ तो इस खर्च को घटाकर 574 मिलियन डॉलर तक लाया जा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट:
► कुपोषण के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में पाँच साल से कम उम्र के 38.4% प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं, जबकि प्रजनन की आयु की 51.4% महिलाएँ एनीमिया की शिकार हैं।
► वर्तमान समय में भारत के लगभग 50 प्रतिशत गाँवों में कुपोषण एक व्यापक समस्या है। ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में प्रत्येक वर्ष जितनी मौतें होती हैं उनमें 5 फीसदी का कारण कुपोषण है।
कुपोषण और संविधान
- यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं।
- फिर भी भारतीय संविधान में ‘राईट टू फूड’ यानी भोजन के अधिकार को "मौलिक अधिकार" के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है।
- अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि राज्य का यह "कर्तव्य है कि वह लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिये निरंतर प्रयास करे।
- जबकि अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन अथवा निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अतः संविधान के मूल अधिकारों से संबंधित प्रावधानों में अप्रत्यक्ष जबकि राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से संबंधित प्रावधानों में प्रत्यक्ष रूप से कुपोषण को खत्म करने की बात की गई है।
आगे की राह?
- सरकारी योजनाओं का उचित क्रियान्वयन:
► भारत में भुखमरी से लड़ने में एक बड़ी बाधा सरकारी योजनाओं का उचित कार्यान्वयन न हो पाना है।
► विदित हो कि वितरित पोषणाहार का लगभग 51% लीकेज का शिकार हो जाता है, जिसे बाद में महँगे दामों पर बेच दिया जाता है।
► हमें इस व्यवस्था में बदलाव लाना होगा और इसके लिये भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।
- गरीबी उन्मुलक योजनाओं से बेहतर हो सामंजस्य
► कुपोषण की विकराल समस्या का प्रमुख कारण गरीबी है। धन के अभाव में गरीब जनता पौष्टिक चीजें जैसे दूध, फल, घी इत्यादि का सेवन नहीं कर पाती है।
► दरअसल, कुछ तो केवल अनाज से मुश्किल से पेट भर पाते हैं। अतः गरीबी उन्मूलन पर केंद्रित योजनाओं को पोषण मिशन से जोड़कर क्रियान्वित करना होगा।
- जागरूकता का प्रसार आवश्यक
► कुपोषण का एक बड़ा कारण अज्ञानता तथा निरक्षरता भी है। अधिकांश लोगों, विशेषकर गाँव, देहात में रहने वाले व्यक्तियों को संतुलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होती।
► यही कारण है कि वे स्वयं अपने बच्चों के भोजन में आवश्यक वस्तुओं का समावेश नहीं करते। इस कारण वे स्वयं तो इस रोग से ग्रस्त होते ही हैं साथ ही अपने परिवार को भी कुपोषण का शिकार बना देते हैं।
► अतः कुपोषण क्या है, कैसे इससे बचाव किया जाए, इस संबंध में लोगों को जागरूक बनाना अत्यंत ही आवश्यक है।
- फूड फोर्टीफिकेशन:
► फूड फोर्टीफिकेशन में विभिन्न पोषक तत्त्वों को मुख्य खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है, उदाहरण के लिये, आयोडीन का नमक में मिलाया जाना, विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ का आटे में मिलाया जाना इत्यादि।
► फिर इस भोज्य पदार्थ के माध्यम से बच्चों को आसानी से पोषक तत्त्व दिये जा सकते हैं, किन्तु भारत में फूड फोर्टीफिकेशन अभी तक मुख्य खाद्य वस्तुओं और अनाजों के साथ नहीं किया जा रहा है।
► यदि यह फूड फोर्टीफिकेशन दूध, वनस्पति तेल, आटा और चीनी के साथ भी किया जाता है, तो कुपोषण दूर करने की मुहिम में उल्लेखनीय प्रगति की जा सकती है।
निष्कर्ष
- किसी भी राष्ट्र को विकसित बनाने का सपना तभी पूरा हो सकता है जब इसके नागरिक स्वस्थ हों। कहा भी गया है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।
- गौरतलब है कि आज के स्वस्थ और सुपोषित बच्चे ही कल को स्वस्थ नागरिक बनेंगे और इन्हीं स्वस्थ नागरिकों से बेहतर और क्रियाशील मानव संसाधन का निर्माण होता है।
- अतः यह नितांत ही आवश्यक है कि ‘बच्चों में कुपोषण की इस समस्या का समाधान किया जाए। इसके लिये एक खाद्य और पोषण आयोग की स्थापना, सम्पूर्ण देश में पोषण के स्तर को बढ़ाए जाने की ज़रूरत जैसी बातों पर भी ध्यान देना होगा।
- जहाँ तक फूड फोर्टीफिकेशन का सवाल है तो इसे सुनिश्चित करने के लिये कानून बनाना भी एक क्रांतिकारी प्रयास होगा। दरअसल, इस कार्य के लिये हमें एक ऐसे कार्यक्रम की आवश्यकता है जिसे पूरे देश में लागू किया जा सके।
- अतः आवश्यक कानूनी संशोधनों के माध्यम से फूड फोर्टीफिकेशन को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये।
- बांग्लादेश और पाकिस्तान ने फूड फोर्टीफिकेशन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। पाकिस्तान ने आटे में लौह तत्त्व (iron) मिलाकर ‘एनीमिया’ जैसे रोग पर बहुत हद तक काबू पा लिया है।