17वीं एशिया प्रशांत क्षेत्रीय बैठक
प्रिलिम्स के लिये:एशिया प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (Asia Pacific Regional Meeting- APRM), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO), श्रम संहिता, ई-श्रम पोर्टल, कर्मचारी राज्य बीमा योजना (Employees' State Insurance Scheme- ESIC) मेन्स के लिये:भारत में श्रमिकों से संबंधित रूपरेखा, वर्तमान श्रम सुधारों से संबंधित ग्रे क्षेत्र और सुझाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 17वीं एशिया प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (APRM) आयोजित की गई।
प्रमुख बिंदु:
- यह एशिया, प्रशांत और अरब देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों को एकजुट करता है।
- 17वें APRM के चार प्रमुख विषयगत क्षेत्र हैं:
- समावेशी, टिकाऊ और लचीले मानव-केंद्रित रिकवरी हेतु एकीकृत नीति एजेंडा
- औपचारिक और सम्मानजनक कार्य की ओर प्रस्थान की सुविधा के लिये संस्थागत ढाँचा
- सामाजिक और रोज़गार संरक्षण के लिये मज़बूत नींव
- अधिक और बेहतर नौकरियों के लिये उत्पादकता में वृद्धि और कौशल को विकसित करना
- यह बैठक 'सिंगापुर स्टेटमेंट' के लॉन्च के साथ संपन्न हुई।
- यह स्टेटमेंट आने वाले वर्षों में ILO के समर्थन के साथ राष्ट्रीय कार्रवाई के लिये संबद्ध क्षेत्र के लक्ष्यों के ILO घटकों के बीच एक साझा दृष्टि प्रदान करता है।
- यह स्टेटमेंट ILO मौलिक सम्मेलनों की पुष्टि करने और प्रभावी सामाजिक संवाद करने हेतु सरकार, नियोक्ता और कार्यकर्त्ता प्रतिनिधियों की क्षमताओं को और मज़बूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- यह ILO सदस्य देशों से आग्रह करता है कि वे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की पुष्टि करने और प्रभावी ढंग से लागू करने पर विचार करें, अनौपचारिक से औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तन में तेज़ी लाने का प्रयास करें और प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये शासन संबंधी संरचनाओं को और मज़बूत बनाएँ।
- यह स्टेटमेंट वैश्विक सामाजिक न्याय गठबंधन के विकास की दिशा में सहयोग में संलग्न होने के लिये संबद्ध क्षेत्रों में सरकारों और सामाजिक भागीदारों की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करता है।
- यह न्यायोचित संक्रमण(ट्रांजीशन) का भी आह्वान करता है जो जलवायु परिवर्तन की स्थिति में पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के निर्माण में मदद करता है।
भारत की आलोचना के बिंदु
- श्रम नीति का पुनर्मूल्यांकन:
- भारत की नई श्रम संहिता श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करती हैं एवं नियोक्ताओं को खुली छूट देती है क्योंकि नई संहिता के माध्यम से निरीक्षण की शक्ति नियोक्ताओं को प्रदान की गई है।
- अन्य चिंताएँ:
- उत्पादकता वृद्धि में गिरावट का श्रमिकों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (MSMEs) की स्थिरता, अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है और देश भर में स्टार्ट-अप एवं छोटे व्यवसायों के साथ तकनीकी तथा उद्यमशीलता में तेज़ी देख रहा है। हालाँकि 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र से संबंधित है जो कम वेतन वाली नौकरियों एवं खराब कार्यस्थल संबंधी चुनौतियो का सामना करते हैं।
भारत के संदर्भ में सुझाव:
- नया सामाजिक अनुबंध:
- सरकारों और नियोक्ताओं के साथ, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर एक अनुबंध।
- यह सभी के लिये अच्छी नौकरियों की उपलब्धता; सभी के अधिकारों का सम्मान; न्यूनतम मज़दूरी सहित उचित मज़दूरी; पर्याप्त और आसानी से उपलब्ध सामाजिक सुरक्षा; समानता, सम्मान; समावेशिता को
- उत्पादकता में वृद्धि:
- उत्पादकता वृद्धि से आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार तथा उचित काम के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
- निरंतर कौशल चुनौतियों को पहचानना और प्रभावी एवं मांग-संचालित कौशल विकास से सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को रोज़गार, सतत् विकास, उत्पादकता वृद्धि और आर्थिक समृद्धि को आगे बढ़ाने से लाभ होता है।
- डिजिटल स्किल्स, कोर स्किल्स, एंटरप्रेन्योरियल स्किल्स और सॉफ्ट स्किल्स का बेहतर इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
- असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की पहचान:
- सभी के विकास को सुनिश्चित करने के लिये, असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की पहचान करने और ई-श्रम पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से उनकी ज़रूरतों को प्राथमिकता देने और कर्मचारी राज्य बीमा योजना (Employees' State Insurance Scheme- ESIC) के माध्यम से स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार करने जैसे उपाय सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करने के उपाय हैं जो असमानता में कमी ला रहे हैं।
- देश में अब तक लगभग 29 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत किया जा चुका है।
- सभी के विकास को सुनिश्चित करने के लिये, असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की पहचान करने और ई-श्रम पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से उनकी ज़रूरतों को प्राथमिकता देने और कर्मचारी राज्य बीमा योजना (Employees' State Insurance Scheme- ESIC) के माध्यम से स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार करने जैसे उपाय सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करने के उपाय हैं जो असमानता में कमी ला रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है जिसमें सरकारें, नियोक्ता और श्रमिक शामिल हैं।
- यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाने का कार्य करता है।
- मुख्यालय: जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- रिपोर्ट्स:
- वैश्विक वेतन रिपोर्ट (Global Wage Report)
- विश्व रोज़गार एवं सामाजिक दृष्टिकोण (World Employment and Social Outlook)
- विश्व सामजिक संरक्षण रिपोर्ट (World Social Protection Report)
- सोशल डायलॉग रिपोर्ट
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रारंभिक परीक्षा प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b)
प्रश्न: भारत में, निम्नलिखित में कौन एक, उन फैक्टरियों में जिनमें कामगार नियुक्त हैं, औद्योगिक विवादों, समापनों, छँटनी और कामबंदी के विषय में सूचनाओं को संकलित करता है? (2022) (a) केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय उत्तर: C मेन्सप्रश्न: "मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की सफलता 'स्किल इंडिया' कार्यक्रम की सफलता और क्रांतिकारी श्रम सुधारों पर निर्भर करती है।" संगत तर्कों के साथ विवेचना कीजिये। (2015) प्रश्न: ''हाल के दिनों का आर्थिक विकास श्रम उत्पादकता में वृद्धि के कारण संभव हुआ है।'' इस कथन को समझाइये। ऐसे संवृद्धि प्रतिरूप को प्रस्तावित कीजिये जो श्रम उत्पादकता से समझौता किये बिना अधिक रोज़गार उत्पत्ति में सहायक हो। (2022) |
स्रोत: द हिंदू
विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, लोक अदालत, विधि आयोग, NCRB, जेल सुधार। मेन्स के लिये:विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति और जेल सुधार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय राष्ट्रपति ने जेलों में बंद बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों की दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया है।
विचाराधीन कैदी
- विचाराधीन कैदी वह व्यक्ति होता है जिस पर वर्तमान में मुकदमा चल रहा है या जिसे मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए रिमांड पर रखा गया है या एक व्यक्ति जो न्यायालय में विचाराधीन है।
- विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में 'विचाराधीन कैदी' की परिभाषा में जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में कैद व्यक्ति को भी शामिल किया गया है।
भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति
- राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (National Crime Report Bureau- NCRB) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में, जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या लगातार बढ़ी है और वर्ष 2021 में चरम पर पहुँच गई है।
- वर्ष 2020 में देश के सभी जेल कैदियों में से लगभग 76% विचाराधीन थे, जिनमें से लगभग 68% या तो निरक्षर थे या स्कूल छोड़ने वाले थे।
- दिल्ली एवं जम्मू और कश्मीर में जेलों में विचाराधीन कैदियों का उच्चतम अनुपात 91% पाया गया, इसके बाद बिहार और पंजाब में 85% तथा ओडिशा में 83% था।
- सभी विचाराधीन कैदियों में से लगभग 27% निरक्षर पाए गए और 41% ने दसवीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ दी थी।
चुनौतियाँ:
- संसाधनहीन कैदी
- कई गरीब और संसाधनहीन विचाराधीन कैदी हैं जिन्हें असंगत रूप से गिरफ्तार किया जा रहा है, नियमित रूप से जेलों में न्यायिक हिरासत में भेजा जा रहा है।
- वे या तो आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण या बाहर सामाजिक कलंक के डर से जमानत लेने और सुरक्षित करने में असमर्थ हैं।
- जेल में हिंसा और दुर्व्यवहार:
- जेल अक्सर लोगों के लिये खतरनाक स्थान होते हैं। यहाँ हिंसा भी स्थानिक है और दंगे आम हैं।
- भारत में आमतौर पर जेल अधिकारियों द्वारा शारीरिक दुर्व्यवहार और न्यायेतर यातनाएँँ देखी जाती हैं।
- जेल प्राधिकरण के किसी भी आचरण को अपराध नहीं माना जाता है, जिससे प्राधिकरण लापरवाही से कार्य करता है जिसके परिणामस्वरूप कैदियों की मौत हो सकती है।
- स्वास्थ्य समस्याएँ:
- अधिकांश जेलों में भीड़भाड़ और कैदियों को सुरक्षित एवं स्वस्थ परिस्थितियों में रखने के लिये पर्याप्त जगह की कमी की समस्या है।
- अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में लोग एक-दूसरे के साथ तंग हो जाते हैं, संक्रामक और संचारी रोग आसानी से फैल जाते हैं। उदाहरण: तपेदिक (TB) का प्रसार।
- परिवारों की पीड़ा और सामाजिक कलंक:
- कई बार कैदी का परिवार गरीबी में मजबूर हो जाता है और बच्चे भटक जाते हैं।
- परिवार को सामाजिक कलंक और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है, जिससे परिस्थितियाँ परिवार को अपराध और दूसरों द्वारा शोषण की ओर प्रेरित करती हैं।
- विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अक्सर इस स्थिति का फायदा उठाकर शेष परिवार के सदस्यों का पूरी तरह से शोषण करता है। यह बलात्कार या जबरन वेश्यावृत्ति का रूप ले सकता है।
विचाराधीन कैदियों हेतु संवैधानिक संरक्षण:
- राज्य का विषय:
- भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 4 के तहत 'जेल/उसमें हिरासत में लिये गए व्यक्ति' राज्य का विषय है।
- जेलों का प्रशासन और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
- हालाँकि गृह मंत्रालय जेलों और कैदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को नियमित मार्गदर्शन तथा सलाह देता है।
- अनुच्छेद 39A:
- संविधान का अनुच्छेद 39A राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं द्वारा या किसी अन्य तरीके से निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि अवसरों को सुनिश्चित किया जा सके। आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण कोई भी नागरिक न्याय प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जाए।
- निःशुल्क कानूनी सहायता या निःशुल्क कानूनी सेवा का अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत आवश्यक मौलिक अधिकार है।
- अनुच्छेद 21:
- यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण स्वतंत्रता का आधार है, जिसके अनुसार, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।
जेल सुधार संबंधी सिफारिश:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय समिति ने जेलों में सुधार के लिये निम्नलिखित सिफारिशें की हैं।
- भीड़-भाड़ संबंधी
- तीव्र ट्रायल: समिति की सिफारिशों में भीड़भाड़ की अवांछित घटनाओं को कम करने के लिये तीव्र ट्रायल को सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना गया है।
- वकील व कैदी अनुपात: प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना अनिवार्य है, जबकि वर्तमान में ऐसा नहीं है।
- विशेष न्यायालय: पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
- इसके अलावा जिन अभियुक्तों पर छोटे-मोटे अपराधों का आरोप लगाया गया है और जिन्हें ज़मानत दी गई है, लेकिन जो ज़मानत की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, उन्हें व्यक्तिगत पहचान (PR) बाॅॅण्ड पर रिहा किया जाना चाहिये।
- स्थगन से बचाव: उन मामलों में स्थगन नहीं दिया जाना चाहिये, जहाँ गवाह मौजूद हैं और साथ ही प्ली बारगेनिंग की अवधारणा, जिसमें आरोपी कम सज़ा के बदले अपराध स्वीकार करता है, को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- कैदियों के लिये:
- उदारता: प्रत्येक नए कैदी को जेल में अपने पहले सप्ताह के दौरान अपने परिवार के सदस्यों को एक दिन निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- कानूनी सहायता: कैदियों को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करना और कैदियों को व्यावसायिक कौशल और शिक्षा प्रदान करने हेतु आवश्यक कदम उठाना।
- ICT का उपयोग: परीक्षण के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग।
- विकल्प: अपराधियों को जेल भेजने के बजाय अदालतों को उनकी "विवेकाधीन शक्तियों" का उपयोग कर "जुर्माना और चेतावनी" भी दी जा सकती है।
- इसके अलावा, न्यायालयों को पूर्व-परीक्षण चरण में अथवा परिस्थितियों के अनुरूप अपराधियों को परिवीक्षा (प्रोबेशन) पर रिहा करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- वर्ष 2017 में, भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि जिन विचाराधीन कैदियों ने सात साल तक के कारावास के अपराधों के लिये अपनी अधिकतम सज़ा का एक तिहाई हिस्सा पूरा कर लिया है, उन्हें ज़मानत पर रिहा कर देना चाहिये।
आगे की राह
- विचाराधीन कैदी कई प्रकार असफलताओं के शिकार होते हैं जिसकी शुरुआत अनुचित अपराधीकरण से शुरू होती हैं, इसके बाद अंधाधुंध गिरफ्तारियाँ, कमज़ोर जमानत संबंधी अधिकार और लोक अदालतों के माध्यम से अपर्याप्त/अस्पष्ट रूप से मामले का निपटान।
- इस संबंध में एक समग्र विधायी सुधार की आवश्यकता है जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विस्तार करना हो।
- आरोपी विचाराधीन कैदियों के मामले में पुलिस जाँच की समय सीमा के संबंध में CRPC की धारा 167 के प्रावधानों का पुलिस और अदालतों दोनों में सख्ती से पालन किया जाना चाहिये।
- रिमांड की समय सीमा में स्वत: वृद्धि पर नियंत्रण करना होगा जो कि केवल अधिकारियों की सुविधा के लिये दिया जाता है। प्राधिकारियों की सुविधा मात्र हेतु अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक गारंटियों का अधिक्रमण नहीं किया जाना चाहिये।
- संशोधित वैधानिक प्रावधानों को लागू करके, विचाराधीन कैदियों के अधिकारों के बारे में न्यायिक निर्णयों, गिरफ्तारी और ज़मानत देने और जेल सुधारों पर विभिन्न समितियों की सिफारिशों को लागू करके विचाराधीन कैदियों की संख्या कम करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- दोषियों की तुलना में कैदियों को भोजन, कपड़े, पानी, चिकित्सा सुविधाएँ, स्वच्छता, मनोरंजन और रिश्तेदारों तथा वकीलों के साथ मिलने आदि की बेहतर सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति
प्रिलिम्स के लिये:दुर्लभ रोगों की राष्ट्रीय नीति, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, दुर्लभ रोग, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी), पोम्पे रोग, सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, हीमोफिलिया मेन्स के लिये:भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एक राज्यसभा सांसद (सांसद) ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) पर चिंता जताई क्योंकि इसकी शुरुआत के कई महीनों बाद भी दुर्लभ रोगों वाले किसी भी रोगी को इस नीति से संबद्ध सुविधा का लाभ नहीं मिला।
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD):
- परिचय:
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दुर्लभ रोग के रोगियों के इलाज हेतु वर्ष 2021 में NPRD की शुरुआत की।
- लक्ष्य:
- दवाओं के स्वदेशी अनुसंधान और स्थानीय उत्पादन पर ध्यान बढ़ाना।
- दुर्लभ रोगों के उपचार की लागत को कम करना।
- शुरुआती चरणों में दुर्लभ रोगों की स्क्रीनिंग और पता लगाना।
- नीति के प्रमुख प्रावधान:
- वर्गीकरण:
- इस नीति ने दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है:
समूह 1: एक बार उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
समूह 2: दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
समूह 3: ऐसे रोग जिनके लिये निश्चित उपचार उपलब्ध है, लेकिन इनके उपचार की लागत बहुत अधिक है।
- इस नीति ने दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है:
- वित्तीय सहायता:
- जो लोग समूह 1 के तहत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि: इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवनयापन करने वाले ऐसे रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, ताकि वे सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा प्राप्त कर सकें। इसके अंतर्गत गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों को सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों/संस्थानों और सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
- ऐसी वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिये लाभार्थी बीपीएल परिवारों तक ही सीमित नहीं होंगे, बल्कि इसे लगभग 40% ऐसी आबादी तक बढ़ाया जाएगा जो केवल सरकारी तृतीयक अस्पतालों में इलाज के लिये प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) के मानदंडों के अनुसार पात्र हैं।
- जो लोग समूह 1 के तहत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- वैकल्पिक वित्तपोषण:
- इसके अंतर्गत स्वैच्छिक व्यक्तिगत योगदान के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित कर स्वैच्छिक क्राउडफंडिंग उपचार और दुर्लभ रोग के रोगियों के उपचार लागत में स्वेच्छा से योगदान करने वाले कॉर्पोरेट दाता शामिल हैं।
- उत्कृष्टता केंद्र:
- इस नीति का उद्देश्य आठ स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों को 'उत्कृष्टता केंद्र' के रूप में नामित करके दुर्लभ बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिये तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को सुदृढ़ करना है और इनके डायग्नोस्टिक सुविधाओं के उन्नयन के लिये 5 करोड़ रुपए तक की एकमुश्त वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाएगी।
- राष्ट्रीय रजिस्ट्री:
- अनुसंधान और विकास में रुचि रखने वालों के लिये पर्याप्त डेटा और ऐसी बीमारियों की व्यापक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये दुर्लभ बीमारियों की एक राष्ट्रीय अस्पताल-आधारित रजिस्ट्री बनाई जाएगी।
- वर्गीकरण:
दुर्लभ रोग:
- दुर्लभ रोग एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति होती है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
- वर्गीकृत दुर्लभ बीमारियों की संख्या लगभग 6,000-8,000 है, लेकिन सिर्फ 5% से भी कम का उपचार उपलब्ध है।
- उदाहरण: लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal Storage Disorder), पोम्पे डिज़ीज़, सिस्टिक फाइब्रोसिस (सिस्टिक फाइब्रोसिस एक विकार है जो फेफड़ों, पाचन तंत्र और शरीर के अन्य अंगों को गंभीर नुकसान पहुँचाता है।) हीमोफिलिया आदि।
- लगभग 95% दुर्लभ बीमारियों का कोई प्रमाणित उपचार उपलब्ध नहीं है और इनसे प्रभावित सिर्फ 10 में से 1 रोगी का ही रोग-विशिष्ट उपचार हो पाता है।
- 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं।
- इन बीमारियों को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और ये प्रति 10,000 आबादी में 1 से 6 लोगों में पाई जाती हैं।
- हालाँकि सामान्य बीमारियों की तुलना में इनसे बहुत कम लोग प्रभावित होते हैं। फिर भी इनके कई मामले गंभीर, पुराने और जानलेवा हो सकते हैं।
- भारत में दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित करीब 50-100 मिलियन लोग हैं। इस नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रोगियों में से लगभग 80% बच्चे हैं, जिनमें से अधिकांश उच्च रुग्णता और मृत्यु दर के कारण वयस्कता तक नहीं पहुँच पाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 केवल उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। प्रश्न: भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्वपेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: द हिंदू
पश्चिमी विक्षोभ
प्रिलिम्स के लिये:पश्चिमी विक्षोभ, कैस्पियन सागर, भूमध्य सागर, भारत मौसम विज्ञान विभाग, आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन, शीत लहर मेन्स के लिये:भौतिक भूगोल, पश्चिमी विक्षोभ और इसका असामान्य प्रवृत्ति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली में दिन का तापमान दिसंबर 2022 में पश्चिमी विक्षोभ के कम होने के कारण सामान्य से अधिक था।
- सर्दियों में, पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश और बर्फ आदि का कारण पश्चिमी विक्षोभ होता है और यह मैदानी इलाकों में अधिक नमी का कारण बनता है। मेघाच्छादन के परिणामस्वरूप रात में न्यूनतम तापमान और दिन के समय अधिक तापमान हो जाता है।
पश्चिमी विक्षोभ:
- परिचय:
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ ऐसे तूफान हैं जो कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं तथा उत्तर-पश्चिम भारत में गैर-मानसूनी वर्षा के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
- इन्हें भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो एक निम्न दबाव का क्षेत्र है तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अचानक वर्षा, बर्फबारी एवं कोहरे के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- यह विक्षोभ ‘पश्चिम’ से ‘पूर्व’ दिशा की ओर आता है।
- यह विक्षोभ अत्यधिक ऊँचाई पर पूर्व की ओर चलने वाली ‘वेस्टरली जेट धाराओं’ (Westerly Jet Streams) के साथ यात्रा करते हैं।
- वे ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करती है।
- विक्षोभ का तात्पर्य ‘विक्षुब्ध’ क्षेत्र या कम हवा वाले दबाव क्षेत्र से है।
- किसी क्षेत्र की वायु अपने दाब को सामान्य करने का प्रयास करती है, जिसके कारण प्रकृति में संतुलन विद्यमान रहता है।
- यह विक्षोभ ‘पश्चिम’ से ‘पूर्व’ दिशा की ओर आता है।
- भारत में प्रभाव:
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances- WD) उत्तरी भारत में वर्षा, हिमपात और कोहरे से संबंधित है। यह पाकिस्तान और उत्तरी भारत में वर्षा एवं हिमपात के साथ आता है।
- WD भूमध्य सागर और/या अटलांटिक महासागर से नमी प्राप्त करता है।
- WD के कारण शीत ऋतु में और मानसून पूर्व वर्षा होती है और उत्तरी उपमहाद्वीप में रबी फसल के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- WD हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी WDs बाढ़, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, धूल भरी आँधी, ओलावृष्टि और शीत लहर जैसी चरम मौसमी घटनाओं का कारण बन सकते हैं जो लोगों की जान ले लेते हैं, बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर देते हैं और आजीविका को प्रभावित करते हैं।
- अप्रैल और मई के गर्मियों के महीनों के दौरान, WD पूरे उत्तर भारत में प्रवाहित होते हैं एवं समय-समय पर उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में मानसून की सक्रियता में मदद करते हैं।
- मानसून के मौसम के दौरान, पश्चिमी विक्षोभ कभी-कभी घने बादल और भारी वर्षा का कारण बन सकता है।
- कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ पूरे उत्तर भारत में फसल उपज की विफलता और जल की समस्याओं से संबंधित है।
- मज़बूत पश्चिमी विक्षोभ निवासियों, किसानों और सरकारों को जल की कमी से जुड़ी कई समस्याओं से बचने में मदद कर सकता है।
पश्चिमी विक्षोभ के हाल के उदाहरण/प्रभाव:
- जनवरी और फरवरी 2022 में अत्यधिक बारिश दर्ज की गई थी। इसके विपरीत, नवंबर 2021 और मार्च 2022 में कोई बारिश नहीं हुई थी जबकि मार्च 2022 के अंत में ग्रीष्म लहरों के आगमन के साथ ही असामान्य रूप से गर्मी की शुरुआत हो गई थी।
- पश्चिमी विक्षोभ की विविध घटनाओं के कारण बादल छाए रहने से फरवरी 2022 में तापमान कम रहा है, जो कि 19 वर्षों में दर्ज सबसे कम तापमान था।
- मार्च 2022 में सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर पश्चिम भारत से विस्थापित हो गया तथा मेघाच्छादन और वर्षा न होने के कारण तापमान अधिक बना रहा।
- पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति में तो वृद्धि हुई है लेकिन उनके कारण होने वाली वर्षा में नहीं, संभवतः इसके लिये आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग को उत्तरदायी माना जा सकता है।
- वर्ष 2021 में पश्चिमी विक्षोभ के कारण दिसंबर के पहले सप्ताह में दिल्ली में बारिश हुई थी।
- हालाँकि 15 दिसंबर, 2022 तक अधिकतम तापमान में 24 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट के साथ दिल्ली में अधिक ठंड पड़ने की संभावना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
श्री अरबिंदो: भारतीय राष्ट्रवाद के पैगंबर
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने आज़ादीी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में पुडुचेरी में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया।
- प्रधानमंत्री ने श्री अरबिंदो के सम्मान में एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया।
श्री अरबिंदो
- परिचय:
- अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया अर्थात् नव्य वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया।
- 5 दिसंबर, 1950 को पुद्दुुचेरी में उनका निधन हो गया।
- ब्रिटिश शासन से छुटकारा पाने के लिये अरबिंदो की व्यावहारिक रणनीतियों ने उन्हें "भारतीय राष्ट्रवाद के पैगंबर" के रूप में चिह्नित किया।
- शिक्षा:
- उनकी शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई।
- उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ वे दो शास्त्रीय और कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में कुशल हो गए।
- वर्ष 1892 में उन्होंने बड़ौदा (वडोदरा) और कलकत्ता (कोलकाता) में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
- उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत सहित योग और भारतीय भाषाओं का अध्ययन शुरू किया।
- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन:
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के संघर्ष में भाग लिया।
- वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन ने अरबिंदो को बड़ौदा में अपनी नौकरी छोड़ने और राष्ट्रवादी आंदोलन में उतरने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने देश भक्ति पत्रिका ‘वन्दे मातरम’ की शुरुआत की, जो कि याचना के बजाय कट्टरपंथी तरीकों और क्रांतिकारी रणनीति का प्रचार करती थी।
- अंग्रेजों ने उन्हें तीन बार ने गिरफ्तार किया था, दो बार देशद्रोह के आरोप में और एक बार "युद्ध छेड़ने" की साजिश रचने के आरोप में।
- उन्हें वर्ष 1908 (अलीपुर बम कांड) में गिरफ्तार किया गया था।
- दो वर्ष के बाद वे ब्रिटिश भारत से भाग गए और पांडिचेरी (फ्रांँसीसी उपनिवेश) में शरण ली तथा राजनीतिक गतिविधियों का त्याग कर दिया और आध्यात्मिक गतिविधियों को अपना लिया ।
- उन्होंने पुद्दुचेरी में मीरा अल्फासा से मुलाकात की और उनके आध्यात्मिक सहयोग से “योग समन्वय" हुआ।
- योग समन्वय का उद्देश्य जीवन से पलायन या सांसारिक अस्तित्व से बचना नहीं है, बल्कि इसके बीच रहते हुए भी हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करना है।
- द्वितीय विश्व युद्ध पर अरबिंदो के विचार:
- कई भारतीयों ने द्वितीय विश्व युद्ध को औपनिवेशिक कब्जे से छुटकारा पाने हेतु एक उपयुक्त समय के रूप में देखा तथा अरबिंदो ने अपने हमवतन लोगों से मित्र राष्ट्रों का समर्थन करने और हिटलर की हार सुनिश्चित करने के लिये कहा।
- आध्यात्मिक यात्रा:
- पुद्दुुचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के एक समुदाय की स्थापना की, जिसने वर्ष 1926 में श्री अरबिंदो आश्रम के रूप में आकार लिया।
- उनका मानना था कि पदार्थ, जीवन और मन के मूल सिद्धांतों को स्थलीय विकास के माध्यम से सुपरमाइंड के सिद्धांत द्वारा अनंत और परिमित दो क्षेत्रों के बीच एक मध्यवर्ती शक्ति के रूप में सफल किया जाएगा।
- साहित्यिक रचनाएँ:
- बंदे मातरम नामक एक अंग्रेज़ी अखबार (वर्ष 1905 में)।
- योग के आधार
- भगवतगीता और उसका संदेश
- मनुष्य का भविष्य विकास
- पुनर्जन्म और कर्म
- सावित्री: एक किंवदंती और एक प्रतीक
- आवर ऑफ गॉड
- मृत्यु:
- 5 दिसंबर, 1950 को पुद्दुचेरी में उनका निधन हो गया।