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डेली न्यूज़

  • 13 Jul, 2020
  • 45 min read
भारतीय राजनीति

चुनाव स्थगन से संबंधित निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ

प्रीलिम्स के लिये

निर्वाचन आयोग, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम

मेन्स के लिये

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका, चुनाव के स्थगन अथवा निलंबन से संबंधित चुनाव आयोग की शक्तियाँ

चर्चा में क्यों?

देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के आँकड़े तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में लगातार बढ़ती महामारी के बीच बिहार में चुनाव आयोजित करने को लेकर राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ रही है। बिहार में कई राजनीतिक दल COVID-19 महामारी के प्रकोप की समाप्ति तक राज्य चुनाव स्थगित करने की मांग कर रहे हैं।

निर्वाचन आयोग और चुनाव निलंबन

  • निवार्चन आयोग (Election Commission-EC) के लिये कानून के तहत यह अनिवार्य है कि वह लोकसभा या विधानसभा के पाँच वर्ष के कार्यकाल के समाप्त होने से पूर्व छह माह के भीतर किसी भी समय चुनाव आयोजित कराए।
  • निर्वाचन आयोग के लिये यह आवश्यक है कि चुनावों की तारीख इस तरह निर्धारित की जाए कि जब निवर्तमान सदन विघटन हो तो नई विधानसभा अथवा लोकसभा मौजूद हो।
  • इस प्रकार बिहार के मामले में चुनाव आयोग को 29 नवंबर को निवर्तमान सदन की समाप्ति से पूर्व विधानसभा चुनाव कराना चाहिये।
  • वहीं यदि विधानसभा अथवा लोकसभा का विघटन अपने निर्धारित समय से पूर्व हो जाता है तो जहाँ तक संभव हो निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि विघटन के छह माह के भीतर एक नई लोकसभा अथवा विधानसभा स्थापित हो जाए।
  • नियमों के अनुसार, आमतौर पर एक बार चुनावों की घोषणा के बाद वे तय कार्यक्रम के अनुसार ही आयोजित किये जाते हैं।
  • हालाँकि अपवाद स्वरूप कुछ मामलों में असाधारण परिस्थितियों के मद्देनज़र इस प्रक्रिया को स्थगित किया जा सकता है अथवा इसे रोका जा सकता है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 153 के अनुसार, निवार्चन आयोग आवश्यकता अनुसार निर्धारित तिथि में परिवर्तन करके चुनाव आयोजित कराने की समय सीमा में विस्तार कर सकता है, हालाँकि इस तरह के विस्तार को लोकसभा या विधानसभा के सामान्य विघटन की तारीख से पूर्व होना अनिवार्य है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 153 के इसी प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 324 के साथ प्रयोग करते हुए तमिलनाडु में चुनाव अभियान के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद तीन सप्ताह के लिये तत्कालीन संसदीय चुनावों को स्थगित कर दिया था।
    • विदित हो कि मार्च 2020 में ही COVID-19 महामारी के कारण निर्वाचन आयोग द्वारा 18 राज्यसभा सीटों के चुनाव स्थगित कर दिये गए थे।

निर्वाचन आयोग

  • निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। 
  • यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्‍यसभा, राज्‍य विधानसभाओं, देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिये निर्वाचनों का संचालन करता है।
  • संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। प्रारम्भ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं।

बिहार में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 153 का प्रयोग?

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 153 के तहत चुनाव की समय सीमा में विस्तार करने की शक्ति का प्रयोग केवल चुनाव की अधिसूचना जारी करने के बाद ही किया जा सकता है।
  • इस प्रकार यदि चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव स्थगित करना चाहता है तो उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करना होगा।
  • निर्वाचन आयोग को चुनाव आयोजित न करा पाने की अपनी असमर्थता के बारे में सरकार को अधिसूचित करना होगा, जिसके पश्चात् भारत सरकार और राष्ट्रपति इस संबंध में आगे की रणनीति निर्धारित करेंगे।
    • गौरतलब है कि इस संबंध में मुख्यतः दो निर्णय लिये जा सकते हैं, पहला यह कि राज्य में मौजूदा सदन की समाप्ति पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है और दूसरा विकल्प यह है कि राष्ट्रपति राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री को विघटन के बाद भी कुछ समय तक कार्य जारी रखने की अनुमति दे सकते हैं।

चुनाव आयोग पर निर्भर है चुनाव का स्थगन

  • भारतीय संविधान अथवा किसी अन्य कानून में ऐसे कोई भी विशिष्ट प्रावधान नहीं है, जो उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करता हो, जिनके तहत चुनाव स्थगित किये जा सकते हैं।
  • हालाँकि कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘अशांति और अव्यवस्था, भूकंप और बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं अथवा अन्य किसी ऐसे परिस्थिति में, निर्वाचन आयोग चुनाव को स्थगित करने का निर्णय ले सकता है, जो कि आयोग के नियंत्रण में नहीं हैं।
  • आमतौर पर निर्वाचन आयोग केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों से सलाह लेने के बाद और तत्कालीन असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही चुनाव की समय सीमा में विस्तार संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

'सोरायसिस की दवा- इटोलिज़ुमैब'

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, इटोलिज़ुमैब

मेन्स के लिये:

इटोलिज़ुमैब दवा का COVID-19 के संदर्भ में महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बायोकॉन लिमिटेड कंपनी की दवा, इटोलिज़ुमैब ( Itolizumab) जो त्वचा संबंधित सोरायसिस बीमारी के इलाज में प्रयुक्त होती है COVID-19 महामारी से मध्यम/कम रूप से बीमार और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों के सफलतापूर्वक इलाज़ को लेकर सुर्खियों में है।

प्रमुख बिंदु:

  • इटोलिज़ुमैब दवा का कुछ COVID-19 मरीज़ों पर परीक्षण किया गया, विशेषज्ञों के अनुसार यह परीक्षण पूर्ण रूप से सफल रहा है।  
  • ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drug Controller General of India-DCGI  ) द्वारा COVID-19 महामारी के इलाज के लिये इटोलिज़ुमैब इंजेक्शन के सीमित आपातकालीन उपयोग को मंज़ूरी दे दी गई है। 
  • इसका इस्तेमाल उन मरीज़ों के इलाज के लिये किया जाएगा, जिन्हें COVID-19 संक्रमण के दौरान श्वास लेने से संबंधी समस्या है।
  • बायोकॉन लिमिटेड की इटोलिज़ुमैब दवा को बायोकॉन पार्क में एक इंजेक्शन के रूप में निर्मित किया जाएगा।

दवा हेतु परीक्षण: 

  • इस दवा का परीक्षण करने के लिये, बायोकॉन लिमिटेड कंपनी द्वारा  चार अस्पतालों में 30 रोगियों को भर्ती किया गया।  
  • 30 में से 20 रोगियों को ‘देखभाल उपचार के मानक’ (Standard of Care Treatment’) अर्थात देखभाल के साथ इटोलिज़ुमैब का सेवन कराया गया जबकि 10 अन्य रोगियों को  केवल देखभाल के मानकों (Standard of Care) अर्थात दवा के बिना रखा गया। 
  • दवा का सेवन करने वाले  वाले 20 मरीज़ों में से किसी की भी मृत्यु नहीं हुई। जबकि जिन 10 लोगों को दवा नहीं मिली, उनमें से तीन की मौत हो गई थी।

नियामक मंजूरी:

  • बायोकॉन लिमिटेड द्वारा COVID-19 के  क्लीनिकल ट्रायल के दूसरे चरण के परिणामों को ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। 
  • विस्तृत विचार-विमर्श के बाद DCGI द्वारा COVID-19 महामारी से मध्यम/कम रूप से बीमार और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों के लिये दवा के उपयोग को सशर्त मंज़ूरी प्रदान की गई है।
  • इसका प्रयोग उन मरीज़ों के लिये किया जाएगा जो COVID-19 से संक्रमित होने के बाद ‘तीव्र श्वास संकट सिंड्रोम’ (Acute respiratory distress syndrome- ARDS) से पीड़ित हैं। 
    • ‘तीव्र श्वास संकट सिंड्रोम’ की स्थिति में फेफड़े कार्य करना बंद कर देते हैं।
    • रोगी को श्वास लेने में दिक्कत होती है।
    • इसमें ऑक्सीजन शरीर के अन्य अंगों तक नहीं पहुँच पाती है।

इटोलिज़ुमैब इंजेक्शन: 

  • वर्ष 2013 से एल्ज्यूमैब ब्रांड (Alzumab Brand) नाम के तहत इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। 
  • अब इस स्वदेशी दवा को कोरोना वायरस के इलाज के लिये प्रयोग किया जाएगा।
  •  इटोलिज़ुमैब इंजेक्शन को बायोकॉन लिमिटिड द्वारा तैयार किया गया है।
  •  इसका इस्तेमाल प्लेग या सोरायसिस के इलाज के लिये किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

दिव्यांग व्यक्तियों को भी मिलेगा SC/ST उम्मीदवारों के समान लाभ

प्रीलिम्स के लिये

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

मेन्स के लिये

भारतीय आरक्षण व्यवस्था, दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के प्रयास, सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में पुष्टि की है कि दिव्यांग व्यक्ति भी देश में सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे सार्वजनिक रोज़गार तथा शिक्षा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।

प्रमुख बिंदु

  • जस्टिस रोहिंटन नरीमन (Rohinton Nariman) की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि वह पिता/प्राकृतिक संरक्षक के माध्यम से अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) के वर्ष 2012 के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय में निर्धारित सिद्धांत का 'अनुसरण' कर रही है।

विवाद

  • गौरतलब है कि याचिकाकर्त्ता, जो कि बौद्धिक रूप से 50 प्रतिशत तक अक्षम है, ने शारीरिक/मानसिक रूप से दिव्यांग छात्रों के लिये डिज़ाइन किये गए फाइन आर्ट डिप्लोमा कोर्स हेतु आवेदन किया था।
  • उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कॉलेज की विवरण-पुस्तिका (Prospectus) के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें याचिकाकर्त्ता ने मांग की थी कि शारीरिक रूप से दिव्यांग छात्रों और मानसिक/बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों के बीच, कुल सीटों का द्विभाजन किया जाना चाहिये।
    • याचिकाकर्त्ता ने रिट याचिका के माध्यम से बौद्धिक/मानसिक रूप से विकलांग छात्र को एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट प्रदान करने की भी मांग की थी।
  • हालाँकि सुनवाई के पश्चात् उच्च न्यायालय ने इस रिट याचिका को खारिज़ कर दिया। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि द्विभाजन के पहलू पर उच्च न्यायालय का निर्णय एकदम सही है।
  • इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट को लेकर भी उच्च न्यायालय के निर्णय पर सहमति व्यक्त की, जिसमें उच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट देने से इनकार कर दिया था। 
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 के अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) वाद में दिल्ली उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए सिद्धांत का अनुसरण करने की बात की, जिसमें उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया था कि दिव्यांग व्यक्तियों सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।
  • विवरण-पुस्तिका (Prospectus) का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को एप्टीट्यूड टेस्ट में उत्तीर्ण होने के लिये 35 प्रतिशत अंकों की आवश्यकता होती है, इसलिये यह नियम अब दिव्यांग छात्रों के मामले में भी लागू होगा।

नए पाठ्यक्रम की आवश्यकता

  • न्यायमूर्ति नरीमन की खंडपीठ ने अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय को रेखांकित करते हुए कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिये।
    • गौरतलब है कि अनमोल भंडारी (नाबालिक) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को ऐसा पाठ्यक्रम बनाने के निर्देश दिये थे, जो बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘हम इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि बौद्धिक/मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों की कुछ विशिष्ट सीमाएँ होती हैं, जो सामान्यतः शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों में नहीं पाई जाती है।

आगे की राह

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय, खासतौर पर शीर्ष न्यायालय द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि आने वाले समय में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों हेतु एक बड़ा प्रोत्साहन होगा।
  • सामान्य मानकों को पूरा न करने के कारण अक्सर दिव्यांग उम्मीदवारों को शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता। है
  • अब न्यायालय के इस निर्णय से सार्वजनिक क्षेत्र के नियोक्ताओं और कॉलेजों तथा विश्विद्यालयों को दिव्यांग व्यक्तियों को भी SC/ST उम्मीदवारों के समान छूट प्रदान करनी होगी।
  • आवश्यक है कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की दिशा में और अधिक कार्य किया जाए तथा न्यायालय के हालिया निर्णय के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाए।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

नौवहन सहायता विधेयक, 2020 का मसौदा

प्रीलिम्स के लिये:

दीपस्तंभ और दीपपोत महानिदेशालय, लाइटहाउस अधिनियम, 1927

मेन्स के लिये:

नौवहन सहायता विधेयक-2020 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) ने विभिन्न हितधारकों एवं आम जनता से सुझाव प्राप्त करने के लिये नौवहन सहायता विधेयक-2020 (The Aids to Navigation Bill, 2020) का मसौदा जारी किया है। 

प्रमुख बिंदु:  

  • नौवहन सहायता, एक प्रकार का निशान या संकेत है जो यात्री को नेवीगेशन में (आमतौर पर समुद्री या विमानन यात्रा में) सहायता करता है। इस तरह की सहायता के सामान्य प्रकारों में प्रकाशस्तंभ, प्लाव (Buoys), कोहरे के संकेत एवं दिन के दीपस्तंभ शामिल हैं।
  • नौवहन सहायता विधेयक, 2020 का यह मसौदा लगभग नौ दशक पुराने लाइटहाउस अधिनियम, 1927 (Lighthouse Act, 1927) को प्रतिस्थापित करने के लिये लाया गया है ताकि इसमें सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं, तकनीकी विकास और समुद्री नौवहन के क्षेत्र में भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्वों को समाहित किया जा सके।
    • इस विधेयक का उद्देश्य समुद्री नौवहन की अत्याधुनिक तकनीकों को विनियमित करना है जो पहले लाइटहाउस अधिनियम, 1927 के वैधानिक प्रावधानों में उलझी हुई थी।
    • लाइटहाउस अधिनियम, 1927 नौवहन के दौरान प्रकाशस्तंभ के रख-रखाव एवं नियंत्रण के प्रावधानों से संबंधित एक अधिनियम है। इसे वर्ष 1927 में अंग्रेज़ों द्वारा अधिनियमित किया गया था।
  • दीपस्तंभ और दीपपोत महानिदेशालय (Directorate General of Lighthouses and Lightships) का शक्तिकरण:
    • यह अधिनियम अतिरिक्त अधिकार एवं कार्यों जैसे- पोत यातायात सेवा, जहाज़ के मलबे को हटाना, प्रशिक्षण एवं प्रमाणन, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत अन्य दायित्त्वों का कार्यान्वयन जहाँ भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है, के साथ ‘दीपस्तंभ और दीपपोत महानिदेशालय’ (DGLL) को सशक्त बनाने का प्रावधान करता है।

दीपस्तंभ और दीपपोत महानिदेशाल

 (Directorate General of Lighthouses and Lightships-DGLL):

  • यह जहाज़रानी मंत्रालय के अंतर्गत अधीनस्थ कार्यालय है जो भारतीय तट से संबंधित समुद्री नेवीगेशन के लिये सामान्य सहायता प्रदान करता है।
  • इसका मुख्य लक्ष्य भारतीय जल में सुरक्षित जल यात्रा के लिये नाविकों को नौवहन सहायता प्रदान करना है।

Director-General

  • इस मसौदे में अपराधों की एक नई अनुसूची भी शामिल की गई है। जिसके तहत नौवहनीय सहायता में बाधा डालने एवं नुकसान के लिये तथा केंद्र सरकार एवं अन्य निकायों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं करने पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान है।
  • नौवहनीय उपकर के लिये सहायता: भारत में किसी भी बंदरगाह से आने या जाने वाले प्रत्येक जहाज़ को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित दरों पर उपकर का भुगतान करना होगा।  
    • वर्तमान में केंद्र सरकार लाइटहाउस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, भारत में किसी भी बंदरगाह से आने या जाने वाले सभी विदेशी जहाज़ों से प्रकाश देयताओं (Light Dues) की वसूली करती है।
    • प्रकाश देयताएँ (Light Dues), प्रकाशस्तंभों के रखरखाव एवं नेवीगेशन हेतु अन्य सहायता के लिये जहाज़ों पर लगाए गए शुल्क हैं।

महत्त्व:

  • यह मसौदा पुराने औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त करके तथा समुद्री उद्योग की आधुनिक एवं समकालीन ज़रूरतों के साथ प्रतिस्थापित करके जहाज़रानी मंत्रालय द्वारा अपनाए गए सक्रिय दृष्टिकोण का एक हिस्सा है।
  • अक्सर यह देखा जाता है कि वर्ष 1962 के सीमा शुल्क अधिनियम के तहत कस्टम विभाग द्वारा लाइटहाउस अधिनियम की गलत व्याख्या की गई है जिससे अधिक मात्रा में बकाया प्रकाश देयताओं का गलत तरीके से संग्रह हुआ जिससे नागरिकों पर वित्तीय एवं आर्थिक बोझ बढ़ा है।
  • आधुनिक तकनीक के कारण समुद्री नेवीगेशन को विनियमित एवं संचालित करने वाले अधिकारियों की भूमिका में तेज़ी से बदलाव आया है और साथ ही समुद्री नेवीगेशन के आवागमन में सुधार हुआ है। नए कानून में ‘लाइटहाउस’ से लेकर ‘नेवीगेशन में आधुनिक सहायता’ तक प्रमुख बदलाव शामिल किये गए हैं।
  • आम नागरिक एवं विभिन्न हितधारकों के सुझाव इस कानून के प्रावधानों को मज़बूत करेंगे। यह शासन में लोगों की भागीदारी और पारदर्शिता बढ़ाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

स्रोत: पीआईबी


आंतरिक सुरक्षा

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड

प्रीलिम्स के लिये:

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

NCRB तथा NATGRID द्वारा शुरू की गई सेवाओं का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड’ (National Intelligence Grid- NATGRID) द्वारा ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau- NCRB) के साथ ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (First Information Reports-FIR) तथा चोरी के वाहनों पर केंद्रीकृत ऑनलाइन डेटाबेस तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • NATGRID  ‘वन-स्टॉप डेस्टिनेशन’ (One-Stop Destination)  के माध्यम से सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों से डेटाबेस/सूचनाओं को एकत्र कर उनका उपयोग करने तथा बैंकिंग और टेलीफोन विवरण से संबंधित डेटाबेस/सूचनाओं तक पहुँचने सुनिश्चित करने के लिये एक सुरक्षित प्लेटफॉर्म  विकसित करने में मदद करेगा।
  • यह समझौता NATGRID को ‘अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम’ (Crime and Criminal Tracking Network and Systems- CCTNS) के माध्यम से डेटाबेस/सूचना तक पहुँच प्रदान करने वाला एक ऐसा मंच है जो लगभग 14,000 पुलिस स्टेशनों को आपस में जोड़ता है।
  • सभी राज्य पुलिस  स्टेशनों को ‘अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम’(Crime and Criminal Tracking Networks and Systems- CCTNS) में ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (First Information Reports-FIR) दर्ज करना अनिवार्य होगा।
  • इस समझौते के माध्यम से NATGRID द्वारा संदिग्ध के विवरण के बारे में जानकारी जैसे-पिता का नाम, टेलीफोन नंबर और अन्य विवरण को प्राप्त किया जा सकेगा।
  •  NATGRID खुफिया और जांच एजेंसियों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा।
  • इस परियोजना को 31 दिसंबर,2020 तक क्रियान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड

  • NATGRID आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये एक कार्यक्रम है 
  • भारत में 26/11 के आतंकवादी हमले के दौरान सूचनाओं के संग्रहण के अभाव की बात सामने आई। 
  • इस हमले का मास्टरमाइंड डेविड हेडली वर्ष 2006 से 2009 के बीच हमले की योजनाओं को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु कई बार भारत आया लेकिन उसके आवागमन की किसी भी सूचना का विश्लेषण नहीं किया जा सका।
  • 26/11 के बाद इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर NATGRID की स्थापना की गई।
  • यह संदिग्ध आतंकवादियों को ट्रैक करने और आतंकवादी हमलों को रोकने में विभिन्न खुफिया एवं प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता करता है।
  • NATGRID द्वारा बिग डेटा और एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करते हुए डेटा का बड़ी मात्रा में अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है।
  • यह विभिन्न चरणों में डेटा प्रदान करने वाले संगठनों और उपयोगकर्त्ताओं के समन्वय के साथ ही एक कानूनी संरचना विकसित करता है
  • NATGRID द्वारा प्राप्त सूचनाओं के माध्यम से कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ संदिग्ध गतिविधियों की जाँच करती हैं।

वर्तमान समय में NATGRID का महत्त्व :

  • वर्तमान समय में, एयरलाइन या टेलीफोन कंपनी में किसी संदिग्ध सूचना को जानने के लिये सुरक्षा एजेंसियाँ सीधे  एयरलाइन या टेलीफोन कंपनियों से संपर्क स्थापित करती हैं। 
  • डेटा को अंतर्राष्ट्रीय सर्वरों जैसे- गूगल (Google) आदि के माध्यम से साझा किया जाता है।
  • NATGRID यह सुनिश्चित करेगा कि इस तरह की जानकारी एक सुरक्षित मंच के माध्यम से साझा की जाए ताकि डाटा की गोपनीयता सुनिश्चित की जा सके।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण की पद्धति

प्रीलिम्स के लिये:

चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण की पद्धति 

मेन्स के लिये:

चावल बीजारोपण की पद्धति 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब, हरियाणा में श्रमिकों की कमी के बाद धान के बुवाई के लिये ‘पारंपरिक रोपण’ (Traditional Transplanting) पद्धति के स्थान पर ‘चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण’ (Direct Seeding of Rice- DSR) पद्धति का व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी के कारण बड़े पैमाने पर मज़दूरों का ‘प्रति-प्रवास’ (Reverse Migration) देखने को मिला है। जिससे पंजाब-हरियाणा जैसे क्षेत्रों में धान के रोपण के लिये श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 
  • पंजाब में लगभग 27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल लगाई गई है, जिसमें से लगभग 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ‘प्रत्यक्ष बीजारोपण की तकनीक’ को अपनाया गया है। 
  • विगत वर्ष लगभग 60,000 हेक्टेयर क्षेत्र में DSR पद्धति के तहत धान रोपण किया गया था।

चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

(Direct Seeding of Rice- DSR):

  • DSR तकनीक में पूर्व-अंकुरित बीजों (Pre-germinated Seeds) को ट्रैक्टर चालित मशीन द्वारा सीधे खेत में ड्रिल कर दिया जाता है।
  • इस पद्धति में धान की बुवाई से पूर्व नर्सरी तैयार करने या रोपण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • किसानों को केवल अपनी भूमि को समतल बनाना होता है और  धान की बुवाई से पूर्व एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • DSR पद्धति के माध्यम से धान का बीजारोपण अप्रैल-मई में तथा फसल की कटाई अगस्त-सितंबर में की जाती है। 

पारंपरिक धान की रोपाई

(Traditional Transplanting of Paddy):

  • धान की पारंपरिक रोपाई में किसानों द्वारा धान की नर्सरी तैयार की जाती है। 
    • धान के खेत की तुलना में नर्सरी का आकार लगभग 5-10% होता है। 
  • धान के बीजों की बुवाई करके धान के रोपों (युवा पौधों) को तैयार किया जाता है। धान के इन रोपों को बाद में उखाड़ कर धान के खेतों में रोपण किया जाता है। 
  • सामान्यत: पंजाब और हरियाणा में धान की फसल का रोपण मई-जून में तथा कटाई अक्तूबर के प्रथम सप्ताह से अक्तूबर के अंत तक की जाती है, जबकि गेहूं की फसल की बुवाई सामान्यतया नवंबर के पहले सप्ताह से शुरू होती है।

चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण का महत्त्व:

श्रम लागत में कमी:

  • पारंपरिक धान की रोपाई की तुलना में चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण की तकनीक में श्रम की लागत लगभग एक तिहाई तक रहती है। 
  • उदाहरणत: 8 एकड़ धान की पारंपरिक धान रोपण प्रक्रिया में श्रम लागत  30,000 रुपए तक होती है, वहीं चावल की प्रत्यक्ष बीजारोपण तकनीक में यह लागत केवल 10,000 रुपए तक होती है। 

जल की बचत:

  • DSR तकनीक में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, अत: पानी की बचत होती है।

अवशिष्ट दहन समस्या का समाधान:

  • सामान्यत धान की कटाई और अगली गेहूं की फसल की बुवाई के बीच 'विंडो पीरियड' (Window Period) 20-25 दिनों का होता है, अत: किसान अपने खेतों को साफ करने के लिये ‘फसल अवशेष दहन’ का सहारा लेते हैं।
    • सामान्यत: एक फसल की कटाई तथा दूसरी फसल के बुवाई के बीच के समय को ‘विंडो पीरियड’ कहा जाता है। 
  • DSR तकनीक में फसल 10-11 दिन पहले परिपक्व हो जाती है। जिससे रबी की फसल की तैयारी तथा धान की कटाई के बीच किसानों को पर्याप्त समय मिल सकेगा। अत: फसल अवशेष दहन की घटनाओं में भी कमी देखने को मिलेगी।

चुनौतियाँ:

  • पारंपरिक धान रोपाई में जहाँ 4-5 किग्रा./एकड़ बीज की आवश्यकता होती है वही DSR पद्धति में 8-10 किग्रा./एकड़ बीज आवश्यक होता है। अत: DSR पद्धति में बीज की लागत अधिक है।
  • DSR पद्धति में भूमि का समतल/लैंड लेवलिंग किया जाना अनिवार्य है, जबकि पारंपरिक धान रोपाई में ऐसा करना आवश्यक नहीं है।

आगे की राह:

  • चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण पर आधारित DSR पद्धति आर्थिक दृष्टि से वहनीय, पर्यावरणीय दृष्टि के अनुकूल तथा तकनीकी दृष्टि से व्यावहारिक पद्धति है, अत: अधिक से अधिक किसानों को इस तकनीक को अपनाने हेतु आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। 

चावल:

मौसमी दशाएँ:

  • यह एक खरीफ की फसल है जिसे उगाने के लिये उच्च तापमान (25°C से अधिक तापमान) तथा उच्च आर्द्रता (100 सेमी. से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। 
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में धान की फसल के उत्पादन के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है।

उत्पादन क्षेत्र:

परंपरागत उत्पादन क्षेत्र:

  • चावल का अधिकांश उत्पादन क्षेत्र उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में है।

गैर- परंपरागत उत्पादन क्षेत्र:

  • नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।
  • इन क्षेत्रों में चावल की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अधिक है। 

बहुफसलीय उत्पादन:

  • दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियों की अनुकूलता के कारण चावल की दो या तीन फसलों का उत्पादन किया जाता है।
  •  पश्चिम बंगाल के किसान चावल की तीन फसलों का उत्पादन करते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन और 'बोरो' कहा जाता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 जुलाई, 2020

अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी

हाल ही में अमेरिकी एविएशन कंपनी ‘बोइंग’ (Boeing) द्वारा भारतीय वायु सेना (Indian Air Force-IAF) को पाँच AH-64E अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर (Apache Attack Helicopters) की अंतिम डिलीवरी कर दी गई है। गौरतलब है कि भारत ने ‘बोइंग’ कंपनी के साथ कुल 22 अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर खरीदने का सौदा किया था, जिसमें से 17 अपाचे हेलीकाप्टरों की आपूर्ति वायुसेना को पहले ही की जा चुकी है। भारत सरकार ने सितंबर, 2015 में 22 अपाचे हेलिकॉप्टर्स (Apache Helicopters) तथा 15 चिनूक हेलीकॉप्टरों (Chinook Helicopters) के प्रोडक्शन तथा ट्रेनिंग के लिये अमेरिकी एविएशन कंपनी बोइंग के साथ 3 बिलियन डॉलर का सौदा किया था। एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों, हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों तथा रॉकेटों पर निशाना साधने के अलावा अपाचे हेलीकॉप्‍टर में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (Electronic Warfare- EW) क्षमताएँ विद्यमान हैं। यह हेलीकॉप्‍टर अनेक हथियारों की डिलीवरी करने में भी सक्षम हैं। अपाचे हेलीकॉप्‍टर में फायर कंट्रोल रडार भी है, जो 360 डिग्री का कवरेज प्रदान करता है और इसमें नाइट विज़न प्रणाली भी शामिल है। इस हेलीकॉप्‍टर का रख-रखाव करना भी काफी आसान है तथा यह उष्‍णकटिबंधीय एवं रेगिस्‍तानी क्षेत्रों में संचालन हेतु सक्षम है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में अपाचे हेलिकॉप्टर की आपूर्ति चीन के विरुद्ध एक मज़बूत घेराबंदी करने में मददगार साबित होगी। लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध के बीच अपाचे को लेह हवाई अड्डे पर तैनात कर दिया गया है। चीन के साथ सीमा विवाद के चलते 22 अपाचे हेलीकाप्टरों में से एक बेड़े को असम के जोरहाट वायुसेना बेस पर तैनात किया गया है। 

अखिल भारतीय बाघ आकलन का नया रिकॉर्ड

अखिल भारतीय बाघ आकलन, 2018 ने विश्व का सबसे बड़ा कैमरा ट्रैप वन्यजीव सर्वेक्षण होने का गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। नवीनतम गणना के अनुसार, देश में बाघों की अनुमानित संख्या 2,967 है। इसी के साथ भारत ने वर्ष 2010 में बाघों की संख्या दोगुनी करने वाले अपने संकल्प को निर्धारित लक्ष्य वर्ष 2022 से बहुत पूर्व ही प्राप्त कर लिया है। इस सर्वेक्षण के दौरान मोशन सेंसर्स के साथ लगे हुए बाहरी फोटोग्राफिक उपकरण का प्रयोग किया गया था, जो कि किसी भी जानवर के आवागमन को रिकॉर्ड करते हैं। इस दौरान कैमरा ट्रैप उपकरणों को कुल 26,838 स्थानों पर रखा गया था और 1,21,337 वर्ग किलोमीटर (46,848 वर्ग मील) के प्रभावी क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया। इन उपकरणों के माध्यम से वन्यजीवों की कुल 3,48,58,623 तस्वीरों को खींचा (जिनमें 76,651 बाघों के, 51,777 तेंदुए के; शेष अन्य जीव-जंतुओं के थे)।

ब्रिटेन में FDI का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत भारत

ब्रिटेन सरकार के तहत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग (DIT) द्वारा जारी हालिया आँकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत, यूनाइटेड किंगडम (UK) में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। DIT द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, अभी भी अमेरिका ब्रिटेन के लिये FDI का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है, अमेरिका से ब्रिटेन में कुल 462 परियोजनाओं में निवेश किया गया है, जिसके कारण कुल 20,131 नौकरियाँ सृजित हुई हैं। वहीं भारत ने ब्रिटेन की कुल 120 परियोजनाओं में निवेश किया। ब्रिटेन में निवेश के संदर्भ में अमेरिका और भारत के पश्चात् फ्रांँस, चीन और हॉन्गकॉन्ग का स्थान है। गौरतलब है कि इससे बीते वर्ष ब्रिटेन में भारत से कुल 106 परियोजनाओं में निवेश किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 4,858 नए रोज़गार सृजित हुए थे। भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) एक मज़बूत और ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं। अब भारत में ब्रिटेन के व्यवसायों की संख्या वर्ष 2000 से दोगुनी से अधिक हो गई है, और भारत में ब्रिटेन से निवेश आकर्षित करने वाले मुख्य क्षेत्रों में शिक्षा, उपभोक्ता वस्तुएँ, जीव विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा और इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि शामिल हैं। 

मस्जिद में परिवर्तित हुआ हागिया सोफिया संग्रहालय

हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन (Recep Erdoğan) ने औपचारिक तौर पर इस्तांबुल (Istanbul) के ऐतिहासिक हागिया सोफिया संग्रहालय (Hagia Sophia Museum) को मस्जिद में बदलने का आदेश पारित कर दिया है। गौरतलब है कि इससे पूर्व तुर्की के शीर्ष न्यायालय ने हागिया सोफिया को मस्जिद में परिवर्तित करने के पक्ष में निर्णय देते हुए वर्ष 1934 में इसे संग्रहालय के रूप में परिवर्तित करने के निर्णय को रद्द कर दिया था। इस्तांबुल की इस प्रतिष्ठित संरचना का निर्माण तकरीबन 532 ईस्वी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) के शासक जस्टिनियन (Justinian) के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था, उस समय इस शहर को कस्तुनतुनिया (Qustuntunia) के रूप में जाना जाता था। तकरीबन 1500 वर्ष पुराना यह ढाँचा (Structure) यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध है, गौरतलब है कि इस इमारत का निर्माण सर्वप्रथम एक गिरजाघर (Cathedral) के रूप में किया गया था, हालाँकि वर्ष 1453 में जब इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के सुल्तान मेहमत द्वितीय (Sultan Mehmet II) ने कस्तुनतुनिया पर कब्ज़ा किया, तो शहर का नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया। साथ ही हागिया सोफिया को एक मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। वर्ष 1934 में आधुनिक तुर्की गणराज्य के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Ataturk) ने तुर्की को अधिक धर्मनिरपेक्ष देश बनाने के प्रयासों के तहत मस्जिद को एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया। किंतु तुर्की के राष्ट्रवादी समूह बीते कई वर्षों से इसे मस्जिद के रूप में परिवर्तित करने की मांग कर रहे थे।


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