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डेली न्यूज़

  • 13 Apr, 2020
  • 55 min read
भूगोल

कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा ‘यूजेन्स’ ऋण पत्र जारी करने की सुविधा का विस्तार

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में कोयला उत्पादन, ऊर्जा संसाधनों का विद्युत् उत्पादन में योगदान, कॉल इंडिया लिमिटेड 

मेन्स के लिये:

यूजेन्स ऋण पत्रों के लाभ एवं सीमाएँ 

चर्चा में क्यों?

बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं को राहत देने और कोयले की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) ने ईंधन आपूर्ति समझौते (Fuel Security Agreement) के तहत अग्रिम नकद भुगतान की बजाय भविष्य में एक निश्चित अवधि में भुगतान की सुविधा वाला (यूजेन्स) ऋण पत्र जारी करने की सुविधा प्रदान की है। CIL ने इस वर्ष के अप्रैल महीने से गैर बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं के लिये भी ऐसी ही एक व्यवस्था की शुरुआत की है।

क्या हैं यूजेन्स ऋण पत्र:

  • यूजेन्स (या स्थगित) ऋण पत्र विशिष्ट प्रकार के ऋण पत्र हैं जो ऋण पत्र में उल्लिखित शर्तों को पूरा करने के पश्चात पूर्व निर्धारित समयावधि अथवा भविष्य में देय होते हैं।
  • इस पसंदीदा वित्तीय साधन में क्रेता और विक्रेता के बीच विश्वास प्रमुख तत्त्व होता है।
  • लेटर ऑफ क्रेडिट में ऋण परिपक्वता और वास्तविक भुगतान की अवधि निर्धारित कर दी जाती है। इसका दोनों पक्षों द्वारा संदर्भ के रूप में उपयोग किया जाता है।

यूजेन्स ऋण पत्र के लाभ:

  • यह क्रेता के लिये एक लचीला वित्तीय उपकरण है जो उसकी कार्यशील पूंजी में वृद्धि करने के साथ ही विक्रेता को भुगतान किये जाने से पहले ही बेचने के लिये स्टॉक की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। 
  • खरीददार को ब्याज मुक्त कार्यशील पूंजी मिलने तथा कुशल कार्यशील पूंजी प्रबंधन से पूंजी चक्र को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। 
  • खरीदार को भुगतान प्राप्त करने से पहले ही माल प्राप्त होने के कारण माल की गुणवत्ता की जाँच हो जाती है।

यूजेन्स ऋण पत्र की सीमाएँ:

  • खरीददार को क्रेडिट अवधि देने से विक्रेता को कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करना होता है।
  • यूजेन्स ऋण पत्र का उपयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब खरीदार की ऋण साख अधिक हो या वह क्रेता का बाजार हो इस कारण विक्रेता यूजेन्स ऋण पत्र की उदार शर्तों के लिये सहमत हो जाता है 

बिजली और गैर- बिजली उपभोक्ताओं को होने वाले लाभ: 

  • इससे बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी ही साथ ही विद्युत् प्रणाली में तरलता भी बढ़ाई जा सकेगी
  • इससे बिजली उत्पादकों को कार्यशील पूंजी चक्र को बेहतर बनाने में काफी मदद मिलेगी
  • कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित होने के साथ ही कोयले के उपभोक्ताओं को बहुप्रतीक्षित राहत मिलेगी 
  • तरलता में वृद्धि के कारण गैर बिजली उपभोक्ता लाभान्वित होंगे

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) 

  • राज्य के स्वामित्त्व वाली कोल इंडिया लिमिटेड कंपनी  नवंबर, 1975 में अस्तित्व में आई। 
  • अपनी स्थापना के वर्ष में 79 मिलियन टन (MT) के साधारण उत्पादन वाली कोल इंडिया लिमिटेड आज विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक तथा सबसे बड़े कॉर्पोरेट नियोक्ता में से एक है
  • यह एक महारत्न कंपनी है जो राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों का परिचालन एवं  विस्तार करने हेतु भारत सरकार द्वारा विशेषाधिकार प्राप्त है।

 भारत में कोयला उत्पादन 

  • भारत में कुल विद्युत् उत्पादन में कोयले का योगदान 54% है 
  • भारत के कुल संचित भंडार का 99% कोयला गोंडवाना संरचना में पाया जाता है, जिसका निर्माण कार्बोनिफेरस एवं पर्मियन काल में हुआ शेष कोयला टर्शियरी काल का है 
  • गोंडवाना कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी, पेंच, वर्धा आदि नदी घाटियों का कोयला क्षेत्र है- 
    • दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र- झारखंड एवं पश्चिम बंगाल में झरिया, बोकारो, गिरिडीह, कर्णपुरा आदि कोयला क्षेत्र  
    • सोन घाटी कोयला क्षेत्र- मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में सिंगरौली, सोहागपुर, उमरिया, तातापानी कोयला क्षेत्र  
    • महानदी घाटी कोयला क्षेत्र- छत्तीसगढ़ एवं ओडिसा में कोरबा एवं तालचर क्षेत्र  
    • गोदावरी घाटी कोयला क्षेत्र- तेलंगाना में सिंगरेनी कोयला क्षेत्र 
    • वर्धा घाटी कोयला क्षेत्र- महाराष्ट्र में चंद्रपुर, यवतमाल और नागपुर क्षेत्र 
  • टर्शियरी कोयला क्षेत्र मेघालय, ऊपरी असम, अरुणाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर में विस्तृत है  

विद्युत् उत्पादन में विभिन्न ऊर्जा स्रोतों का योगदान:

ऊर्जा स्रोत 

कुल विद्युत् उत्पादन में योगदान  (प्रतिशत में)

तापीय ऊर्जा 
• कोयला
• लिग्नाइट 
• गैस 
• डीज़ल 

62.8 
54.2 
1.7 
6.9 
0.1 

जल ऊर्जा (नवीकरणीय)

12.4 

परमाणु ऊर्जा 

1.9

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत

23.5  

स्रोत- पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सार्क COVID- 19 आपातकालीन निधि पर मतभेद

प्रीलिम्स के लिये:

सार्क COVID-19 आपातकालीन निधि

मेन्स के लिये:

सार्क देशों के मध्य विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) देशों द्वारा स्थापित ‘सार्क COVID- 19 आपातकालीन निधि’ (SAARC COVID-19 Emergency Fund) के प्रबंधन में नेतृत्त्व को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद देखने को मिले हैं।

मुख्य बिंदु:

  • पाकिस्तान ने सार्क COVID- 19 आपातकालीन निधि में 3 मिलियन का योगदान देने का वचन दिया है लेकिन साथ ही मांग की है कि इस पहल को सार्क संगठन के नियंत्रण में स्थापित करना चाहिये।
  • भारत सरकार ने पाकिस्तान के इस निर्णय के बाद कहा कि "सामूहिक रूप से COVID- 19 महामारी से लड़ने में प्रत्येक सार्क सदस्य-राष्ट्र की गंभीरता का अंदाज़ा उनके व्यवहार से लगाया जा सकता है।"

सार्क COVID-19 आपातकालीन निधि:

  • 15 मार्च, 2020 को भारतीय प्रधानमंत्री के आग्रह पर COVID-19 की चुनौती से निपटने की रणनीति पर विचार-विमर्श के लिये सार्क समूह के सदस्य देशों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
  • कॉन्फ्रेंस में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID- 19 महामारी की चुनौती से निपटने के लिये ‘सार्क COVID- 19 आपातकालीन निधि’ स्थापित किये जाने का प्रस्ताव रखा गया।  
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने इस फंड के लिये भारत की तरफ से शुरुआती सहयोग के रूप में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की।
  • इसके बाद नेपाल और अफगानिस्तान दोनों ने 1-1 मिलियन डॉलर, मालदीव ने 200,000 डॉलर भूटान ने 100,000 डॉलर, बांग्लादेश ने 1.5 मिलियन डॉलर तथा श्रीलंका 5 मिलियन डॉलर का योगदान देने का वचन दिया।

पाकिस्तान का तर्क: 

  • पाकिस्तान ने हाल में हुए सार्क देशों के व्यापार अधिकारियों के ‘आभासी सम्मेलन’ का बहिष्कार किया तथा भारत के नेतृत्त्व में किसी भी प्रकार के सहयोग करने से मना कर दिया है। 
  • पाकिस्तान का मानना है कि COVID- 19 प्रबंधन की दिशा में कोई भी पहल केवल तभी प्रभावी हो सकती है जब भारत के बजाय सार्क संगठन के सचिवालय द्वारा इस दिशा में सभी कार्यों का प्रबंधन किया जाए। 

भारत का तर्क:

  • भारत सरकार का मानना है कि COVID- 19 महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये तुरंत कार्यवाई करने की आवश्यकता है लेकिन सार्क सचिवालय मार्ग के माध्यम से कार्य करने में अनेक प्रक्रियागत औपचारिकताओं का पालन करना होगा। जबकि COVID-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया निधि का गठन ही तुरंत कार्रवाई करने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
  • भारत का मानना है कि आगे सार्क सदस्य देशों को ‘सार्क COVID-19 आपातकालीन निधि’ की प्रतिबद्धताओं के समय, तरीके तथा कार्यान्वयन के बारे में निर्णय लेना है।

आगे की राह:

  • भारत पर कई बार ये आरोप लगे हैं कि भारत अपनी मज़बूत स्थिति का उपयोग कर क्षेत्र के देशों पर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है। वर्तमान के अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में भारत के लिये एक ज़िम्मेदार पड़ोसी के रूप में अपनी नेतृत्त्व क्षमता का प्रदर्शन कर क्षेत्र के देशों के बीच अपनी एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने का यह महत्त्वपूर्ण अवसर है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

COVID-19 से राशन वितरण में बाधा

प्रीलिम्स के लिये:

एकीकृत बाल विकास योजना

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 के कारण देशभर में लागू लॉकडाउन की वजह से बच्चों एवं महिलाओं हेतु राशन वितरण में बाधा उत्पन्न हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • महाराष्ट्र में लॉकडाउन के कारण आँगनवाड़ी केंद्रों को बंद कर दिया गया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में राशन वितरण की प्रक्रिया बाधित हुई है।
    • वर्तमान में राज्य के कुछ क्षेत्रों में लाभार्थियों को तैयार किये गए भोजन (Hot Cooked Meals-HCM) के बजाय राशन की आपूर्ति की जा रही है।
  • जिन ज़िलों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है वहाँ भी राशन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
  • वितरण में समस्या:
    • पर्याप्त मात्रा में राशन का उपलब्ध न होना।
    • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के पास पर्याप्त मात्रा में मास्क एवं ग्लब्स का न होना।
    • आँगनवाड़ी केंद्रों पर लाभार्थियों के एकत्रित होने से सामाजिक दूरी (Social Distancing) में बाधा उत्पन्न होने से आँगनवाड़ी केंद्रों का बंद होना।

एकीकृत बाल विकास योजना

(Integrated Child Development Services):

  • यह योजना वर्ष 1975 में 6 साल से कम आयु के बच्चों के सर्वांगीण विकास (स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा) के लिये एक पहल के रूप में शुरू की गई थी।
  • इसका उद्देश्य शिशु मृत्यु दर, बाल कुपोषण को कम करना और पूर्व-विद्यालय शिक्षा प्रदान करना है।
  • ICDS योजना की निगरानी संबंधी समग्र ज़िम्मेदारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development-MWCD) की है।
  • ICDS योजना के तहत प्रमुख छह सेवाएँ हैं- प्रतिरक्षा, पूरक पोषण, स्वास्थ्य जाँच, रेफरल सेवाएँ, प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण।
  • बाल विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न विभागों के बीच नीति और कार्यान्वयन का प्रभावी समन्वय प्राप्त करना।
  • महिलाओं और किशोरावस्था की लड़कियों की पहुँच पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा तक सुनिश्चित किया जाना।
  • 6 वर्ष तक की आयु के लगभग 87 लाख बच्चों को 90,000 आँगनवाड़ियों द्वारा सेवा दी जाती है।

आगे की राह:

  • योजनाबद्ध तरीके से राशन वितरण प्रक्रिया को संपन्न किया जाना चाहिये।
  • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को राशन वितरण हेतु एक विशेष वाहन आवंटित किया जाना चाहिये।
  • आँगनवाड़ी केंद्रों एवं कार्यकर्त्ताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है अतः उनकी सुरक्षा पर भी ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों में तरलता की कमी का संकट

प्रीलिम्स के लिये:

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ

मेन्स के लिये:

गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों में तरलता की कमी का संकट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने देश की सभी बैंकों और ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Finance Companies- NBFC) द्वारा अपने ग्राहकों को दिये गए ऋण के भुगतान हेतु तीन महीने की अतिरिक्त छूट देने के निर्देश दिये हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • RBI द्वारा बैंकों और NBFCs के द्वारा दिये गए ऋण पर तीन महीने का अतिरिक्त समय देने के निर्देश के बाद अधिकांश NBFCs पर तरलता की कमी का संकट बढ़ गया है।
  • वर्तमान में बैंकों द्वारा NBFCs को दिया गया कुल बकाया ऋण 32.2% की वार्षिक वृद्धि के साथ 7,37,198 करोड़ रुपए (31 जनवरी, 2020) तक पहुँच गया है।
  • वर्तमान में लॉकडाउन के दौरान उद्योगों के बंद होने और बेरोज़गारी के कारण ऋण के भुगतान में कमी आई है, एक अनुमान के अनुसार, जून 2020 तक NBFCs के लगभग 1.75 लाख के अतिरिक्त ऋण की अवधि पूरी हो जाएगी, ऐसे में इन कंपनियों पर दबाव और भी बढ़ जाएगा।

NBFCs के वर्तमान संकट का कारण:

  • वर्तमान में NBFCs द्वारा बाज़ार में वितरित अधिकांश धन वह है जो इन कंपनियों ने बैंकों से ऋण के रूप में लिया था।  
  • RBI के ऋण भुगतान पर राहत के आदेश के बाद NBFCs को दोहरी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि NBFCs को अपने ग्राहकों को दिये गए ऋण पर तीन महीने की छूट देनी पड़ रही है परंतु बैंकों ने इन कंपनियों इस छूट का लाभ देने से इनकार कर दिया है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, बैंकों द्वारा NBFCs को दिये गए ऋण पर छूट न देने से ऐसी कंपनियों की समस्याएँ और अधिक बढ़ सकती हैं, हालाँकि RBI के आदेश में NBFCs को छूट न दिये जाने की बात नहीं कही गई थी।
  • पहले से ही IL&FS और DHFL संकट से जूझ रही NBFCs को इस मुद्दे पर बैंकों, RBI और वित्त मंत्रालय से भी कोई राहत नहीं मिली है। 
  • भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (ASSOCHAM) द्वारा NBFCs के लिये एक ‘स्पेशल लिक्विडिटी विंडो’ (Special Liquidity Window) स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था परंतु RBI ने अभी तक इस संदर्भ में कोई रुचि नहीं दिखाई।  
  • हालाँकि RBI ने ‘टार्गेटेड लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन’ (Targeted Long-Term Repo Operations- TLTRO) विंडो के माध्यम से 1 लाख करोड़ रुपए उपलब्ध कराए हैं, परंतु इसमें से केवल आधी राशि को प्राइमरी इंश्योरेंस के रूप में जारी करने के लिये रखा गया है।  

प्रभाव:

  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) के अनुसार, NBFCs के पास बैंकों की तरह वित्तीय तरलता के प्रणालीगत स्रोत नहीं होते हैं, वे इनके लिये बड़े निवेशों या होलसेल फंडिंग पर निर्भर करते हैं। 
  • वर्तमान में ऋण वसूली में कमी और बैंकों से किसी सहयोग के अभाव में NBFCs की समस्या बढ़ सकती है, CRISIL के अनुमान के अनुसार, जून 2020 तक इन कंपनियों पर तरलता की कमी का दबाव 25% तक बढ़ जाएगा।   

  • बाज़ार में फंड की कमी के कारण RBI द्वारा प्रस्तावित फंड का लाभ भी उच्च रेटिंग वाली कंपनियों को ही मिल सकेगा, ऐसे में कम रेटिंग वाली NBFCs जो मुख्य रूप से बैंकों पर आश्रित हैं उनके लिये यह समस्या और भी गंभीर हो जाएगी।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सुधारों के बाद से सबसे धीमी वृद्धि दर: विश्व बैंक

प्रीलिम्स के लिये:

दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस; आर्थिक अद्यतन, भारत में पंजीकृत क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ

मेन्स के लिये:

COVID- 19 का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक के ‘दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस’ (South Asia Economic Focus) आर्थिक अद्यतन के अनुसार, COVID- 19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2021 में भारत की आर्थिक विकास दर की वर्ष 1991 के उदारीकरण के बाद से सबसे खराब रहने की संभावना है।

GDP-Growth

मुख्य बिंदु:

  • विश्व बैंक के अनुसार, दक्षिण एशियाई क्षेत्र के आठ देशों की आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2020-21 में 1.8 से 2.8% रहने का अनुमान है जो छह माह पूर्व 6.3 प्रतिशत अनुमानित थी। 
  • विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2019 के 5.4-4.1% आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान के विपरीत, वर्ष 2020-21 में 1.5-2.8% प्रतिशत रहने का अनुमान है।
  • वित्त वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 1.5% बढ़कर 2.8% होने का अनुमान है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 (अप्रैल से मार्च तक) में भारत की विकास दर 4.8-5% तक रहने का अनुमान है।

अन्य एजेंसियों का अनुमान:

  • विश्व बैंक के समान अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी भारत की विकास दर कम रहने का अनुमान लगाया है।  
  • एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) ने चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि में 4% तक कमी होने का अनुमान लगाया है।
  • स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (Standard & Poor's- S&P) ने विकास दर को 5.2% के अनुमान से घटाकर 3.5% कर दिया है।
  • फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) के अनुसार, भारत की विकास दर 2% रहने का अनुमान है, जबकि इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (India Ratings & Research) ने पूर्वानुमान को संशोधित कर 5.5% से कम करके 3.6% कर दिया है।
  • मूडीज (Moody’s) ने कैलंडर वर्ष (Calendar Year: जनवरी से दिसंबर) 2020 के लिये अनुमान 5.3% से घटाकर 2.5% कर दिया है। 

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी:   

  • साधारण शब्दों में क्रेडिट रेटिंग किसी भी देश, संस्था या व्यक्ति की ऋण लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन होती है।

भारत में पंजीकृत क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ:

  • क्रिसिल (CRISIL)
  • इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (India Ratings and Research)
  • आईसीआरए (ICRA)
  • क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च (CARE)
  • ब्रिकवर्क रेटिंग्स इंडिया (Brickwork Ratings India)
  • समेरा रेटिंग (SMERA) 
  • इंफोमेरिक्स वैल्यूएशन और रेटिंग (Infomerics Valuation and Rating)

दुनिया की बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ:

  • दुनिया के विभिन्न देशों या बड़ी संस्थाओं की रेटिंग दुनिया की तीन बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ; फिच, मूडीज़ और S&P तय करती हैं। इनमें S&P सबसे पुरानी एजेंसी है।

धीमी वृद्धि दर का कारण:

  • COVID- 19 महामारी से घरेलू आपूर्ति श्रंखला प्रभावित होने तथा मांग में व्यवधान उत्पन्न होने से वित्त वर्ष 2021 (अप्रैल 2020 से मार्च 2021) में तेज़ मंदी आने की संभावना है।
  • वर्ष 2022 तक COVID- 19 महामारी का प्रभाव समाप्त होने की संभावना है तथा वित्त वर्ष 2022 में आर्थिक वृद्धि दर 5% रहने की उम्मीद है। 

उपाय:

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये सही ढंग से तैयार किये गए राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जिसमें वायरस के प्रसार को रोकने के लिये स्वास्थ्य व्यय को प्राथमिकता और महामारी से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना शामिल हो।
  • सभी राष्ट्रों को कुछ तात्कालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो न केवल महामारी को रोकने और जीवन को बचाने की दिशा में कार्य करें बल्कि समाज में सबसे कमज़ोर व्यक्ति को आर्थिक संकट से बचाने और आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक हों।

दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस

(South Asia Economic Focus):

  • यह दक्षिण एशिया में हुए हालिया आर्थिक विकास तथा निकट भविष्य के आर्थिक दृष्टिकोण को पेश करने वाला एक अर्द्धवार्षिक आर्थिक अद्यतन (Economic Update) है। 
  • इसमें दक्षिण एशिया के आठ देशों- अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, और श्रीलंका को कवर किया जाता है।
  • इस आर्थिक अद्यतन में दक्षिण एशियाई देशों की आर्थिक स्थिरता, विकास, तथा समृद्धि का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत-अमेरिका डॉलर विनिमय समझौते पर बातचीत

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका मुद्रा विनिमय समझौता, विदेशी मुद्रा भंडार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक क्षेत्र में COVID-19 के प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार आने वाले दिनों में किसी भी अनिश्चितता की स्थिति से निपटने हेतु भारत और अमेरिका के बीच एक मुद्रा विनिमय समझौते (Currency Swap Agreement) पर सहमति के लिये प्रयास कर रही है।

मुख्य बिंदु:  

  • विश्व में COVID-19 से प्रभावित अन्य देशों की तरह भारत में भी स्वास्थ्य के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में भी इसके गंभीर प्रभाव देखने को मिले हैं। 
  • आर्थिक क्षेत्र में COVID-19 से उत्पन्न हुए दबाव के कारण मार्च और अप्रैल में अब तक भारतीय इक्विटी और ऋण बाज़ार में संस्थागत विदेशी निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में शेयर की बिक्री देखी गई है।    
  • ध्यातव्य है कि हाल ही में भारतीय रुपए में भारी गिरावट देखी गई और इस दौरान भारतीय रुपए की कीमत 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 76 रुपए तक हो गई थी।
  • 27 मार्च, 2020 तक भारत की विदेशी मुद्रा आस्तियां (Foreign Currency Assets) 7.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट के साथ 439.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई।  
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, भारतीय की कुल विदेशी मुद्रा अस्तियों में से 63.7% (256.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश विदेशी प्रतिभूतियों (विशेषकर अमेरिकी ट्रेज़री) में किया गया है। 

विदेशी मुद्रा भंडार

(Foreign exchange reserves):

  • किसी समय में एक देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है। 
  • किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार से आशय उसकी विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों, स्वर्ण भंडार और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में उसके ‘विशेष आहरण अधिकार’ (Special Drawing Rights-SDRs) तथा रिज़र्व ट्रेन्च (Reserve Tranche) आदि से है। 
  • विदेशी मुद्रा भंडार, राष्ट्रीय मुद्रा में गिरावट या अस्थिरता को दूर करने में केंद्रीय बैंक की सहायता करते हैं।   
  • भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार को ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के तहत विनियमित किया जाता है 

मुद्रा विनिमय (Currency Swap): 

  • एक द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौता दो देशों के बीच निश्चित विनिमय दर पर दी जाने वाली एक तरह की क्रेडिट लाइन है।
  • एक विनिमय समझौते (Swap Arrangement) में अमेरिकी फेडरल रिज़र्व विदेशी केंद्रीय बैंक को डॉलर प्रदान करता है और वह विदेशी केंद्रीय बैंक उस समय के बाज़ार विनिमय दर के आधार पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व को प्राप्त हुए डॉलर के बराबर अपनी मुद्रा देता है।
  • इसके साथ ही दोनों पक्ष एक निश्चित समय के बाद उसी विनिमय दर के आधार पर पुनः यह मुद्रा वापस करने के लिये एक समझौता करते हैं।
  • इस तरह के विनिमय में कोई बाज़ार जोखिम (Market Risk) नहीं होता है क्योंकि इसकी शर्तें पहले से ही निर्धारित होती हैं। 

लाभ:  

  • वर्तमान में COVID-19 के कारण आर्थिक क्षेत्र में उत्पन्न हुई चुनौतियों के बीच अमेरिका के साथ मुद्रा विनिमय की सुविधा से भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) को मुद्रा अस्थिरता से निपटने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • अमेरिका के साथ मुद्रा विनिमय समझौते से भारतीय मुद्रा में आयात और निवेश करने वाले व्यापारियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलेगा।    
  • हालाँकि विशेषज्ञों  के अनुसार, वर्तमान में भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मज़बूत स्थिति में है, कच्चे तेल की गिरती कीमतें भी भारत के पक्ष में है और चालू खाते (Current Account) की स्थिति भी मज़बूत हुई है, ऐसे में भारत बगैर किसी परेशानी के इस संकट से निपटने में सक्षम है, परंतु अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के साथ ‘स्वैप लाइन’ (Swap Line) का होना RBI को विदेशी मुद्रा बाज़ार के लिये अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगा। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

हरित प्रमाण पत्रों की बिक्री में उछाल

प्रीलिम्स के लिये 

RECs, स्वच्छ विकास तंत्र 

मेन्स के लिये 

RECs से लाभ, चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण पत्रों (Renewable Energy Certificates-RECs) की बिक्री मार्च महीने में 79% से अधिक बढ़कर 8.38 लाख यूनिट पहुँच गई पिछले साल मार्च महीने में यह संख्या 4.68 लाख यूनिट थी। 

प्रमुख बिंदु: 

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (Indian Energy Exchange-IEX) में मार्च महीने में 5.2 लाख इकाई RECs का कारोबार हुआ, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह संख्या 2.25 लाख थी
  • पावर एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (Power Exchange of India Limited-PXIL) ने मार्च महीने में 3.18 लाख इकाई RECs की रिकॉर्ड बिक्री की, जो मार्च 2019 में 2.43 लाख थी।
  • IEX और PXIL ‘RECs तथा बिजली’ के कारोबार में सलग्न हैं। 
  • IEX के आँकड़ों के अनुसार, सौर ऊर्जा और दूसरे नवीकरणीय ऊर्जा से संबद्ध RECs की आपूर्ति मांग की तुलना में अधिक रही। खरीद के लिये इस साल मार्च में 6.93 लाख RECs की मांग थी, जबकि बिक्री के लिये 26.84 लाख  RECs उपलब्ध थी।
  • PXIL में खरीद के लिये 3.73 लाख  RECs की मांग हुई , जबकि बिक्री के लिये 5.59 लाख से अधिक यूनिट उपलब्ध थी

नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण पत्र

  • RECs एक बाज़ार आधारित उपकरण है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से एक मेगावाट घंटा बिजली (MWh) उत्पन्न होने पर एक REC का निर्माण होता है 
  • जो इकाइयाँ स्वयं स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में सीधे निवेश करने की स्थिति में नहीं हो, वे इन प्रमाण पत्रों में निवेश के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को घटाने का प्रयास करती हैं।
  • इसका मुख्य उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार का विकास करना है।
  • यह उत्पादकों को परंपरागत बिजली की तरह नवीकरणीय स्रोतों से अपनी बिजली बेचने के लिये वैकल्पिक स्वैच्छिक मार्ग प्रदान करता है तथा कार्बन उत्सर्जन कम करने को बाध्य कंपनियों को उनके RPO (Renewal Energy Obligation) को पूरा करने में सहायता करता है।

स्वच्छ विकास तंत्र

(Clean Development Mechanism-CDM)

  • क्योटो प्रोटोकॉल में वर्णित CDM विकसित एवं विकासशील देशों के बीच अपनाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत उत्सर्जन कटौती या उत्सर्जन नियत्रंण हेतु प्रतिबद्ध कोई विकसित देश (Annexure-I पार्टीज़) या उनकी कंपनियाँ, अन्य विकासशील देशो में उत्सर्जन कटौती वाले प्रोजेक्ट में निवेश कर कार्बन क्रेडिट प्राप्त कर सकती हैं। 
  • ऐसे प्रोजेक्ट एक विक्रय योग्य सर्टिफाइड उत्सर्जन कटौती (Certified Emmission Reduction) यूनिट खरीद सकते है। यह कार्बन क्रेडिट कहलाता है 
  • यह एक टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर होता है, जिसकी गणना क्योटो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये की जा सकती है 

RECs से लाभ:

  • RECs कंपनियों, संस्थानों और व्यक्तियों को उनके कार्बन पदचिह्न (Carbon Footprint) को कम करने, स्वच्छ ऊर्जा का समर्थन करने तथा प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को कम करने का वैकल्पिक तरीका प्रदान करता है।
  • REC की खरीद नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने के बराबर है। यह नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार का समर्थन करता है। 
  • यह कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा के लिये अपनी प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।

Renewable-Energy

चुनौतियाँ

  • RECs बाज़ार का विकास RPO के सख़्त अनुपालन के बिना नहीं हो सकता। केंद्रीय स्तर पर RPO निगरानी प्रणाली द्वारा समय पर कार्रवाई का अभाव देखा गया है। 
  • RECs के बाज़ार में मांग और आपूर्ति के मध्य बड़ा असंतुलन विद्यमान है। मांग की तुलना में आपूर्ति अधिक है। इससे पता चलता है की बाज़ार में स्वैच्छिक भागीदारों की कमी है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार के डिज़ाइन से संबंधित मुद्दे भी प्रमुख चुनौती हैं, जैसे-उत्पादकों को RECs के अंतर्गत पंजीकृत किया जाता है, लेकिन उन्हें केवल दो प्रकार के RECs- सौर और गैर-सौर जारी किये जा रहे हैं। 

आगे की राह:

  • राज्य द्वारा RPO के सख्त प्रवर्तन करवाने के साथ ही RECs के बारे में जागरूकता पैदा करने की भी आवश्यकता है। RECs बाजार में स्वैच्छिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये 

स्रोत- इकोनॉमिक टाइम्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

FMCG कंपनियों की क्षमताओं का आधे से भी कम उपयोग

प्रीलिम्स के लिये 

FMCGs, सरकार द्वारा की गई पहलें

मेन्स के लिये 

FMCG कंपनियों के प्रभावित होने के कारण

चर्चा में क्यों?

COVID-19 के प्रसार के कारण देश में लॉकडाउन की स्थिति और ‘कंटेनमेंट जोन्स’ के निर्माण के कारण तीव्र बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं ( Fast Moving Consumer Goods-FMCGs) का निर्माण करने वाली कंपनियों के अधिकांश संयत्रों में विनिर्माण गतिविधियों में कमी है

तेजी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएँ (FMCGs)

  • FMCGs से अभिप्राय उन उत्पादों से है, जिन्हें अपेक्षाकृत कम कीमत पर किंतु तीव्रता के साथ बेचा जाता है। 
  • हालाँकि FMCGs की बिक्री पर परिशुद्ध लाभ अपेक्षाकृत कम होता है, लेकिन आम तौर पर इन वस्तुओं को बड़ी मात्रा में बेचे जाने के फलस्वरूप इन उत्पादों पर संचयी लाभ काफी अधिक होता है।
  • इन वस्तुओं के सामान्य उदाहरणों में दैनिक उपयोग में आने वाली उपभोक्ता वस्तुएँ है, जैसे- साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, टूथपेस्ट, शेविंग का सामान और डिटर्जेंट तथा गैर-टिकाऊ वस्तुएँ, जैसे- काँच का सामान, बल्ब, बैटरी, कागज के उत्पाद और प्लास्टिक आदि।

FMCG कंपनियों के प्रभावित होने के कारण:

  • कच्चा माल, वस्तुओं और श्रम की आवाजाही प्रतिबंधित होने से, आवश्यक उत्पाद बनाने के बावजूद, FMCGs की बिक्री प्रभावित हुई है।
  • FMCG कंपनियाँ पहले से ही सामान्य मंदी से उबरने की कोशिश कर रही थीं। इसलिये केवल 20 % से 40% क्षमता उपयोग ही कर पाना चिंता का विषय है। 
  • वर्तमान संकट से निपटने और बाज़ार में तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये खाद्य और स्वच्छता वस्तुओं के उत्पादन पर ही अधिक बल दिया जा रहा है।
  • परिवहन सुविधाओं के बंद होने की वजह से FMCGs की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है। 
  • लॉकडाउन के कारण FMCGs कंपनियों में श्रमिकों की उपस्थिति संख्या 25% तक ही  रह गई है। 

पूर्व में सरकार द्वारा की गई पहलें

  • भारत सरकार द्वारा सिंगल-ब्रांड रिटेल में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और मल्टी-ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत FDI को मंज़ूरी री दी गई है।
  • भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के लिये सरल, त्वरित, सुलभ, सस्ती और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये  एक व्यापक तंत्र स्थापित करने पर विशेष बल देने के साथ एक नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक का मसौदा तैयार किया है।
  • वस्तु एवं सेवा कर (Goods &Service tax-GST) FMCGs उद्योग के लिये लाभकारी है। उदाहरण स्वरूप बुनियादी खाद्य उत्पाद जैसे दूध, चावल, गेहूं और ताजी सब्ज़ियाँ  0% दर के अंतर्गत रखे गए हैं।
  •  GST से FMCG क्षेत्र में लॉजिस्टिक्स को एक आधुनिक और कुशल मॉडल में परिवर्तित करने की उम्मीद है।

आगे की राह:

  • आवश्यक वस्तुओं के खुदरा विक्रेताओं और विनिर्माताओं ने विभिन्न सरकारी विभागों से सिफारिशें की हैं कि आवश्यक वस्तुओं का विनिर्माण और बिक्री सुचारु रूप से जारी रहे जिससे लॉकडाउन में बंद परिवारों को आपूर्ति में कोई कमी ना आए।
  • लोकडाउन की समाप्ति के पश्चात खुदरा और विनिर्माण कंपनियाँ चरणबद्ध तरीके से क्षमता उपयोग पर काम कर सकती है।

स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड


भारतीय अर्थव्यवस्था

FPIs लाभांश पर उच्च प्रतिधारण/विथहोल्डिंग कर

प्रीलिम्स के लिये:

विथहोल्डिंग कर, वित्त विधेयक, आयकर अधिनियम धारा 196D तथा धारा 195, लाभांश वितरण कर 

मेन्स के लिये:

लाभांश वितरण कर

चर्चा में क्यों?

बजट 2020-21 में ‘विथहोल्डिंग कर’ (Withholding Tax) के भुगतान के संबंध में उत्पन्न अनिश्चितता को हाल ही में संसद द्वारा पास किये गए ‘वित्त अधिनियम’, वर्ष 2020 (Finance Act, 2020) माध्यम से दूर किया गया। 

मुख्य बिंदु:

  • वित्त अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि गैर-निवासियों के लाभांश पर 20% कर की दर (प्लस अधिभार तथा उपकर) लागू होगी।  
  • निवासियों पर न्यून कर की दर लागू की जा सकती है यदि भारत तथा ‘विदेशी पोर्टफोलियो निवेश’ (Foreign portfolio investment- FPIs) निवेशक देशों के मध्य ‘दोहरा कराधान अपवंचन समझौता' (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA) संधि है।

विथहोल्डिंग कर: 

  • एक ऐसी राशि है जो नियोक्ता द्वारा कर्मचारी की आय से सीधे काटी जाती है और सरकार को व्यक्तिगत कर देयता के हिस्से के रूप में भुगतान की जाती है। 

लाभांश वितरण कर

(Dividend Distribution Tax):

  • लाभांश वितरण कर वह कर है जो कॉर्पोरेट द्वारा अपने शेयरधारकों को दिये गए लाभांश पर देय होता है।
  •  एक कॉर्पोरेट इकाई के लिये उच्च लाभांश का मतलब होता है कर का अधिक बोझ।

क्यों थी अनिश्चितता की स्थिति?

  • बजट 2020-21 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के DDT भुगतान के मामलें में अनिश्चितता थी। आयकर अधिनियम की धारा 195; जो स्रोत में कटौती कर (Tax Deducted at Source- TDS) या गैर-निवासियों के विथहोल्डिंग कर से संबंधित है, के तहत कर की दर को सही से निर्दिष्ट नहीं किया गया है।  
  • धारा 196D केवल FPIs से संबंधित है। FPIs को गैर-निवासियों के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है तथा इन पर आयकर अधिनियम की धारा 196D के तहत विथहोल्डिंग कर की दर निर्धारित की जाती है।
  • धारा 196D के अनुसार लाभांश भुगतान पर 20% (प्लस अधिभार और उपकर) की दर लागू होती है तथा कर संधि के कारण FPIs की कर देयता कम होने पर भी विथहोल्डिंग कर की दर में कमी का प्रावधान नहीं है।
  • जबकि FPIs के अलावा अन्य गैर- निवासियों के कर प्रावधानों को धारा 195 में संहिताबद्ध किया गया है। DTAA कर संधि के तहत FPIs की देनदारी 5, 10 या 15 प्रतिशत है, तो वैचारिक रूप से, कंपनियों को इसी दर पर कर भुगतान करना होता है।
  • सवाल यह है कि क्या धारा 196D तथा धारा 195 को एक साथ पढ़ना चाहिये या केवल धारा 196D को जो केवल FPIs से संबंधित है। 

संशोधन का महत्त्व:

  • ऐसी संभावना थी कि गैर-निवासियों (FPIs के अलावा) के लिये TDS कर संधि की व्यवस्था नहीं होने पर यह 30-40 प्रतिशत तक हो सकता है। वित्त अधिनियम में संशोधन द्वारा इस मुद्दे का समाधान करने का प्रयास किया गया है। 

वित्त विधेयक:

  • संसद के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करते समय संविधान के अनुच्छेद 110(1)(क) की अपेक्षा को पूरा करने के लिये वित्त विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें बजट में प्रस्तावित कर लगाने, हटाने, माफ करने अथवा विनियमन का ब्यौरा दिया जाता है। 
  • इसमें बजट संबंधी अन्य उपबंध भी होते हैं जिन्हे धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 110 में परिभाषित है, वित्त विधेयक एक धन विधेयक है। 

स्रोत: द हिंदू 


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 अप्रैल, 2020

उन्नयन: मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय

बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (Bihar Education Project Council-BEPC) ने राज्य के सरकारी स्कूलों में पढने वाले 6वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिये ‘उन्नयन बिहार कार्यक्रम’ के तहत ‘उन्नयन: मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय’ नामक मोबाइल एप की शुरुआत की है। इस एप के माध्यम से लॉकडाउन के दौरान घरों में रहकर भी छात्र अपनी पढाई कर सकेंगे। इस एप पर 6वीं कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक के छात्र किसी भी विषय विशिष्ट की पुस्तकें डाउनलोड कर उसे पढ़ सकते हैं। इस एप पर पढाई के साथ-साथ प्रश्न भी पूछ सकते हैं। इसके अलावा BEPC ने स्कूली छात्रों के लिये अध्ययन सामग्री के ऑडियो प्रसारण हेतु ऑल इंडिया रेडियो (AIR) के साथ कार्य करने की भी योजना बना रहा है। ध्यातव्य है कि अब तक ‘उन्नयन बिहार कार्यक्रम’ के तहत केवल 8वीं कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक की सामग्री ही उपलब्ध कराई गई थी, किंतु अब इस एप पर 6वीं से लेकर 12वीं तक का कंटेंट अपलोड किया जाएगा। इसके अलावा BEPC कक्षा 4 और 5 के लिये सामग्री उपलब्ध कराने पर भी कार्य कर रहा है, इन कक्षाओं के लिये सामग्री तैयार की जा रही है। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस के तीव्र प्रसार को रोकने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 दिन के लिये देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, जिसे मौजूदा परिस्थिति के मद्देनज़र और अधिक बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है, ऐसी स्थिति में स्कूली छात्रों की पढाई सर्वाधिक प्रभावित हो रही है।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड की वर्षगाँठ

13 अप्रैल, 2020 को जलियाँवाला बाग हत्याकांड की 101वीं वर्षगाँठ है। ध्यातव्य है कि 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर (पंजाब) के जलियाँवाला बाग में ‘बैशाखी’ के दिन सैंकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी, इसे भारतीय इतिहास में सर्वाधिक दुखद नरसंहार के रूप में जाना जाता है। दरअसल 9 अप्रैल, 1919 को (कुछ स्रोतों में 10 अप्रैल भी) रोलैट एक्ट का विरोध करने के आरोप में पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉ. सत्यपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर (पंजाब) के जलियाँवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया। जनरल डायर ने इस विशाल सभा को अपने आदेश की अवहेलना माना और सभास्थल पर मौजूद निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। आँकड़ों के अनुसार, इस घटना में मरने वाले लोगों की संख्या 379 थी, किंतु वास्तव में इससे कहीं ज्यादा लोग मारे गए थे। इस नरसंहार के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई ‘नाइटहुड’ (Knighthood) की उपाधि त्याग दी थी। इस हत्याकांड की जाँच के लिये कॉन्ग्रेस ने मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। ब्रिटिश सरकार ने भी इस हत्याकांड की जाँच के लिये हंटर आयोग का गठन किया था।

हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्विन के उत्पाद और निर्यात में शीर्ष स्थान पर भारत

दुनिया में हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्विन (Hydroxychloroquine- HCQ) के उत्‍पादन और निर्यात में भारत शीर्ष स्थान पर है। आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक आपूर्ति में भारत की हिस्‍सेदारी तकरीबन 70 प्रतिशत है। फार्मास्‍क्‍युटिकल्‍स विभाग (Department of Pharmaceuticals) के अनुसार, हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्विन की उत्‍पादन क्षमता देश की आवश्‍यकता और निर्यात की मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्‍त है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन एक मलेरियारोधी दवा है। यह क्लोरोक्विन (Chloroquine) का एक यौगिक/डेरिवेटिव (Derivative) है, जिसे क्लोरोक्विन से कम विषाक्त (Toxic) माना जाता है। रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और लूपस (Lupus) जैसी कुछ अन्य बीमारियों के मामलों में भी डॉक्टर की सलाह पर इस दवा का उपयोग किया जाता है। मार्च, 2020 में प्रकाशित एक फ्राँसीसी वैज्ञानिक के शोध के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित 20 मरीज़ों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रयोग से अन्य मरीज़ो की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए। हालाँकि, विश्व की किसी भी स्वास्थ्य संस्था द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को COVID-19 के उपचार के लिये प्रमाणित नहीं किया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन एक रोग प्रतिरोधक है और यह इलाज नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस

प्रत्येक वर्ष 12 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस का आयोजन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 7 अप्रैल, 2011 को पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से 12 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस के रूप में घोषित किया गया था। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य मानव जाति के लिये अंतरिक्ष युग की शुरुआत का जश्न मनाने और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्त्व को याद करना है। ध्यातव्य है कि पूर्व सोवियत संघ के नागरिक यूरी गेगरिन ने 12 अप्रैल, 1961 को वोस्टॉक नामक अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष के लिये पहली उड़ान भरी थी, जिसके साथ वे अंतरिक्ष पर जाने वाले पहले व्यक्ति बन गए थे। इस एतिहासिक घटना ने मानव जाति के लिये अंतरिक्ष की खोज के रास्ते खोल दिये और इस क्षेत्र में आज भी नई-नई खोज की जा रही हैं।


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