सतत् विकास लक्ष्यों में शामिल किये गए नए संकेतक
प्रीलिम्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग, संयुक्त राष्ट्र महासभा मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्यों में शामिल किये गए नए संकेतक तथा इन्हें शामिल किये जाने के कारण |
चर्चा में क्यों?
6 मार्च, 2020 को न्यूयॉर्क में संपन्न संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग (United Nations Statistical Commission- UNSC) के 51वें सत्र में सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के लिये ‘ग्लोबल इंडिकेटर फ्रेमवर्क’ (Global Indicator Framework) में 36 प्रमुख परिवर्तनों को मंज़ूरी दी गई है।
मुख्य बिंदु:
- ये परिवर्तन ‘यूएन इंटर-एजेंसी एंड एक्सपर्ट ग्रुप ऑन एसडीजी इंडीकेटर्स’ (UN Inter-Agency and Expert Group on SDG Indicators: IAEG-SDG) द्वारा जारी '2020 व्यापक समीक्षा’ (2020 Comprehensive Review) पर आधारित हैं।
- इस सत्र में रखे गए प्रस्तावों में वर्तमान फ्रेमवर्क के ढाँचे का प्रतिस्थापन, संशोधन संबंधी 36 महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और 20 कम महत्त्व के परिवर्तन शामिल हैं।
क्या हैं परिवर्तन?
- ग्लोबल इंडिकेटर फ्रेमवर्क के 36 प्रमुख परिवर्तनों को संक्षेप में निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:
- मौजूदा संकेतकों के प्रतिस्थापन हेतु 14 प्रस्ताव
- मौजूदा संकेतकों के संशोधन हेतु 8 प्रस्ताव
- अतिरिक्त संकेतकों के लिये 8 प्रस्ताव
- मौजूदा संकेतकों को हटाने के लिये 6 प्रस्ताव
इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है-
1. मौजूदा संकेतकों के प्रतिस्थापन हेतु 14 प्रस्ताव:
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-1 के 2 संकेतकों (1.a.1, 1.b.1) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-7 के 1 संकेतक (7.b.1) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-11 के 1 संकेतक (11.a.1) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-12 के 2 संकेतकों (12.a.1, 12.b.1) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-13 के 4 संकेतकों (13.2.1, 13.3.1, 13.a.1, 13.b.1) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-15 के 1 संकेतक (15.a.1 और 15.b.1 संयुक्त रूप से) का प्रतिस्थापन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-17 के 3 संकेतकों (17.3.1, 17.17.1, 17.18.1) का प्रतिस्थापन
2. मौजूदा संकेतकों में संशोधन हेतु 8 प्रस्ताव:
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-2 के 2 संकेतकों (2.5.2, परिभाषा) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-5 के 1 संकेतक (परिभाषा) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-6 के 1 संकेतक (6.3.1) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-8 के 1 संकेतक (8.3.1) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-11 के 1 संकेतक (11.6.1) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-15 के 1 संकेतक (15.9.1) में संशोधन
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-17 के 1 संकेतक (17.5.1) में संशोधन
3. अतिरिक्त संकेतकों के लिये 8 प्रस्ताव:
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-2 में 1 अतिरिक्त संकेतक (2.2.3) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-3 में 1 अतिरिक्त संकेतक (3.d.2) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-4 में 1 अतिरिक्त संकेतक (4.1.2) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-10 में 3 अतिरिक्त संकेतकों (10.4.2, 10.7.3, 10.7.4) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-13 में 1 अतिरिक्त संकेतक (13.2.2) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-16 में 1 अतिरिक्त संकेतक (16.3.3) जोड़ने संबंधी प्रस्ताव
4. मौजूदा संकेतकों को हटाने के लिये 6 प्रस्ताव:
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-1 से 1 संकेतक (1.a.1) हटाने का प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-4 से 1 संकेतक (4.2.1) हटाने का प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-8 से 1 संकेतक (8.9.2) हटाने का प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-11 से 1 संकेतक (11.c.1) हटाने का प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-13 से 1 संकेतक (13.3.2) हटाने का प्रस्ताव
- सतत् विकास लक्ष्य संख्या-17 से 1 संकेतक (17.6.1) हटाने का प्रस्ताव
ग्लोबल इंडिकेटर फ्रेमवर्क
(Global Indicator Framework):
- संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग ने वैश्विक निगरानी के लिये अप्रैल, 2015 में 28 सदस्य देशों के साथ मिलकर IAEG-SDG का गठन किया।
- भारत दक्षिण एशिया का प्रतिनिधित्व करने वाला IAEG-SDG का सदस्य है।
- IAEG-SDG की अनुशंसा के आधार पर, मार्च, 2017 में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग ने अपने 48वें सत्र में ग्लोबल इंडिकेटर फ्रेमवर्क को अपनाया, जिसमें 232 संकेतक शामिल थे।
- ग्लोबल इंडिकेटर फ्रेमवर्क को 6 जुलाई, 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया।
- ग्लोबल फ्रेमवर्क में निम्नलिखित 3 प्रकार के इंडिकेटर होते हैं-
- टियर-I इंडिकेटर:
ये इंडिकेटर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर स्थापित किये जाते हैं। इनसे संबंधित आँकड़े ऐसे देशों द्वारा नियमित रूप से प्रदान किये जाते हैं, जहाँ ये इंडिकेटर प्रासंगिक हैं। - टियर-II इंडिकेटर:
ये इंडिकेटर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार स्थापित किये जाते हैं, और इनसे संबंधित आँकड़े संबंधित देशों द्वारा नियमित रूप से जारी किये जाते हैं। - टियर-III इंडिकेटर:
इन इंडीकेटर्स के लिये अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्थापित कोई कार्यप्रणाली या मानक अभी तक उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कार्यप्रणाली/मानक का विकास या परीक्षण किया जा रहा है।
- टियर-I इंडिकेटर:
संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय आयोग:
- UNSC वैश्विक सांख्यिकीय प्रणाली की प्रगति हेतु प्रतिबद्ध एक संस्था है।
- UNSC वैश्विक सांख्यिकीय सूचनाओं का संकलन और प्रसार करने के साथ-साथ सांख्यिकीय गतिविधियों के लिये मानक और मानदंड विकसित करता है तथा राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणालियों को मज़बूत करने के लिये विभिन्न देशों के प्रयासों का समर्थन करता है।
- UNSC अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय गतिविधियों के समन्वय की सुविधा प्रदान करता है और वैश्विक सांख्यिकीय प्रणाली की सर्वोच्च इकाई के रूप में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय आयोग के कामकाज का समर्थन करता है।
स्रोत- डाउन टू अर्थ
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण मेन्स के लिये:इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) संकट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) ने केंद्र सरकार और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़ (IL&FS) संबंधी मामले में सुझाए गए एक नए वितरण ढाँचे को स्वीकार किया है।
मुख्य बिंदु:
- इस ढाँचे में सभी लेनदारों हेतु "उचित और न्यायसंगत" धन के वितरण का प्रावधान किया गया है।
- NCLAT के अनुसार, यह संकल्प प्रस्ताव केंद्र सरकार और SBI द्वारा सुझाए गए संशोधित ढाँचे के आधार पर 90 दिनों के भीतर पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिये।
क्या था IL&FS संकट?
- इस संकट की शुरुआत तब हुई जब SIDBI से लिये गए अल्पावधि ऋण को चुकाने में IL&FS असफल रही। डिफॉल्टर होने की वजह से IL&FS की रेटिंग लगातार गिरने लगी।
- IL&FS की सहायक कंपनियाँ भी 46 करोड़ रुपए का ऋण चुकाने में असफल रहीं।
- IL&FS द्वारा 10 वर्षों से अधिक अवधि की परियोजनाओं का वित्तपोषण किया जाता है, लेकिन इसके द्वारा लिया गया उधार कम अवधि का होता है, जो परिसंपत्ति-देयता अंतर को बढ़ा देता है।
- IL&FS का सबसे बड़ा शेयरधारक LIC है, जिसके पास 25.34% शेयर हैं। LIC के बाद ORIX के पास 23.54% शेयर हैं।
SBI और केंद्र सरकार का प्रस्ताव:
- केंद्र सरकार ने सुझाव दिया है कि संशोधित वितरण ढाँचे में सभी सार्वजनिक लेनदारों, जैसे-पेंशन और भविष्य निधि, सैन्य कल्याण, कर्मचारी भविष्य निधि, ग्रेच्युटी तथा सुपरनेशन फंड को उनके बकाया राशि का कम-से-कम कुछ हिस्सा चुकाया जाए।
- केंद्र सरकार के अनुसार, यदि इन सार्वजनिक निधियों को उनकी बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया तो ऋण संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसका असर देश के वित्तीय बाज़ारों पर पड़ सकता है।
- इसके अलावा IL&FS की होल्डिंग कंपनियों के ऋणदाताओं के लिये रिज़ॉल्यूशन प्लान के अंतर्गत ब्याज घटक का भुगतान करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने ’रेड’ और, एम्बर ’श्रेणी के तहत कंपनियों के लिये एक रिज़ॉल्यूशन फ्रेमवर्क का सुझाव दिया था, जिसे NCLAT ने भी स्वीकार कर लिया है।
- SBI ने यह सुझाव दिया है कि जिन कंपनियों में अब तक ‘कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स’ (Committee of Creditors- CoC) का गठन नहीं हुआ है, उनमें शीघ्र एक CoC का गठन किया जाए।
- ऐसी कंपनियाँ जहाँ CoC का गठन हो चुका है वहाँ रिज़ॉल्यूशन सलाहकार को नवीनतम निष्पक्ष बाज़ार और परिसमापन मूल्य रिपोर्ट (liquidation Value Reports) के साथ CoC से संपर्क करना चाहिये।
- SBI ने यह सुझाव दिया है कि एक पूर्व न्यायाधीश या वरिष्ठ अधिवक्ता की देखरेख में एक केंद्रीय समन्वय टीम, जिसमें IL&FS के 7-8 प्रतिनिधि शामिल हों, को वरिष्ठ ऋणदाता बैंक, रिज़ॉल्यूशन कंसल्टेंट की निगरानी के लिये गठित किया जा सकता है।
- इस ढाँचे का कुछ अन्य लेनदारों द्वारा यह कहते हुए विरोध किया गया कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) की धारा 53 का उपयोग इस ढाँचे के क्रियान्वयन के लिये किया जा सकता है, यह धारा परिचालन और अन्य सभी प्रकार के लेनदारों की तुलना में वित्तीय लेनदारों को वरीयता देती है।
- NCLAT ने लेनदारों की इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ होगा क्योंकि सार्वजनिक निधियों द्वारा निवेश किया गया धन शेयरधारकों का होता है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
बोडो समझौता: संभावित समस्याएँ
प्रीलिम्स के लिये:बोडो समझौता, कामतपुर राज्य, BTAD की जनसांख्यिकी संरचना मेन्स के लिये:बोडो समझौते की व्यावहारिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने बोडो समूहों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, परंतु ऐसा माना जा रहा है कि यह समझौता बोडो आंदोलन को समाप्त करने में कारगर साबित नहीं हो पाएगा।
मुख्य बिंदु:
- भारतीय ‘संविधान की छठी अनुसूची’ को ‘सत्ता में साझेदारी एवं बेहतर शासन के प्रयोग के लिये संविधान में शामिल किया गया था तथा ऐसी कल्पना की गई थी कि यह प्रावधान पूर्वोत्तर राज्यों के जातीय-राष्ट्रवादी पहचान संबंधी सवालों का समाधान करने में रामबाण साबित होगा।
- परंतु हाल ही में हस्ताक्षरित ‘तीसरे बोडो समझौते’ के प्रति गुस्से एवं उत्साह वाली मिलीजुली प्रतिक्रिया एक साथ दिखाई दी है, ऐसे में इस समझौते की व्यावहारिकता को लेकर प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं।
बोडो समझौता:
- ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (All Bodo Students’ Union- ABSU), यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (United Bodo People’s Organisation- UBPO) तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Boroland- NDFB) संगठन के सभी चार गुटों के बीच दिल्ली और दिसपुर में बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते के अनुसार, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (Bodoland Territorial Council- BTC) को छठी अनुसूची के तहत अधिक विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की जाएगी।
- इस समझौते में बोडोलैंड राज्य की मांग को स्वीकार नहीं किया गया है लेकिन BTC क्षेत्र का विस्तार किया गया है तथा इसमें बोडो वर्चस्व वाले गाँव जो वर्तमान में BTC क्षेत्र से बाहर हैं, उन्हें BTC क्षेत्र में शामिल किया जाएगा।
- बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (Bodo Territorial Area District- BTAD) जो BTC द्वारा शासित स्वायत्त क्षेत्र है, संवर्द्धित क्षेत्र के सीमांकन के बाद इसे बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (Bodoland Territorial Region- BTR) के रूप में जाना जाएगा।
पूर्ववर्ती बोडो समझौता:
- पूर्ववर्ती बोडो समझौते पर 10 फरवरी, 2003 को विद्रोही संगठन ‘बोडो लिबरेशन टाइगर्स’ (Bodo Liberation Tigers- BLT) द्वारा दिल्ली और दिसपुर में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रीय स्वायत्तता के एक नवीन प्रयोग के रूप में BTC का निर्माण किया गया था।
- हालाँकि BTC की विधायी शक्ति वास्तविकता में कम हो गई क्योंकि राज्यपाल ने BTC विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधान को स्वीकृति प्रदान नहीं की।
कमियाँ:
‘कामतपुर ’ (Kamatapur) राज्य की मांग:
- बोडो समूहों ने राज्य में जारी आंदोलन को रोक दिया है, लेकिन कूच-राजबंशी (Koch-Rajbongshi) समुदाय के संगठन ने ‘कामतपुर ’ (Kamatapur) राज्य की मांग को लेकर बोडो समझौते के खिलाफ आंदोलन को तेज़ कर दिया है।
- कामतपुर राज्य की मांग का क्षेत्र वर्तमान BTAD, प्रस्तावित BTR तथा बोडोलैंड राज्य के मांग क्षेत्र की सीमाओं का अतिव्यापन करता है।
- इस नृजातीय-केंद्रित शक्ति साझाकरण मॉडल (Ethno-Centric Power Sharing Model) में अनेक दोष उत्पन्न होने की संभावना है क्योंकि केंद्र सरकार ने आदिवासियों के साथ-साथ गैर-आदिवासियों को भी एसटी का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया है। ऐसे में BTC में आरक्षण सिर्फ बोडो समुदाय को प्रदान किया जाएगा या इसमें अन्य समूह भी शामिल किये जाएंगे, नए समझौते में ऐसे महत्त्वपूर्ण सवालों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।
कामतपुर (Kamatapur):
- ऑल कूच-राजबंशी स्टूडेंट यूनियन’ ( All Koch-Rajbongshi Students' Union- AKRSU) कामतपुर राज्य निर्माण तथा इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रही हैं।
- कूच-राजबंशी समुदाय की आबादी असम के 15 एवं पश्चिम बंगाल के 6 ज़िलों में फैली है।
- कूच-राजबंशी समुदाय की अलग राज्य की मांग कूच बिहार साम्राज्य की देन है। वर्ष 1949 में कूच बिहार को भारत में शामिल किया गया था।
BTAD की जनसांख्यिकी संरचना:
कुल जनसंख्या | 31,51,047 |
ST समुदाय | 33.50% |
ST में बोडो समुदाय | 90% |
- ‘छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त ज़िला परिषदों’ में BTAD के अलावा अन्य सभी 9 परिषदों में ST समुदाय बहुमत में हैं। BTAD की ऐसी जनसांख्यिकीय संरचना के कारण राजनेता गैर-बोडो समुदायों की राजनीतिक लामबंदी कर सकते हैं तथा इस बात को प्रचारित कर सकते हैं कि BTC एक दोषपूर्ण मॉडल है और यह अल्पसंख्यकों को बहुमत पर शासन करने की अनुमति देता है।
आयोग की नियुक्ति:
- नए समझौते के अनुसार संस्पर्शी (Contiguous: अविछिन्न रूप से) BTAD के निर्माण के लिये असम सरकार द्वारा एक आयोग की नियुक्ति की जाएगी ताकि ऐसे गाँव जहाँ बोडो जनसंख्या बहुमत में हो उनको BTAD में शामिल किया जा सके।
- हालाँकि BTAD के मुख्य क्षेत्र में बहुसंख्यक गैर-एसटी आबादी वाले कई गाँव, जिन्हें अस्थायी रूप से शामिल किया गया था, आगे भी BTAD में शामिल रहेंगे।
संवैधानिक प्रावधान:
- छठी अनुसूची के अनुसार, “अगर एक स्वायत्त ज़िले में विभिन्न अनुसूचित जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उन क्षेत्रों को स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।”
- हालाँकि यह प्रावधान BTAD के संबंध में लागू न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये कि पिछले बोडो समझौते के बाद संविधान में संशोधन किये गए थे।
क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद:
- तत्कालीन पावी-लखेर (Pawi-Lakher) क्षेत्रीय परिषद देश की एकमात्र क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद थी।
- 1972 में पावी-लखेर क्षेत्रीय परिषद को तीन क्षेत्रीय स्वायत्त परिषदों (चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद, लाई स्वायत्त ज़िला परिषद, मारा स्वायत्त ज़िला परिषद)में विभाजित किया गया। इन तीनों परिषदों को बाद में मिज़ोरम राज्य में छठी अनुसूची के तहत पूर्ण स्वायत्त ज़िला परिषद का दर्जा दिया गया।
राजनीतिक लामबंदी :
- बोडो समुदाय का उत्साह समझौते में NDFB के सभी चार गुटों को शामिल करने के साथ ही समाप्त हो गया। ये गुट दो खेमों में बँटे हैं: पहला, असम में सत्तारुढ़ भाजपा सरकार का एक सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (Bodoland People’s Front- BPF) तथा दूसरा ABSU समर्थित यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (United Peoples Party Liberal- UPPL)।
- नया समझौता BTC चुनावों के दौरान BTAD में राजनीतिक लामबंदी को बढ़ाएगा।
सरकार और अन्य एजेंसियों को गैर-अनुसूचित क्षेत्र की आबादी का विश्वास जीतने एवं उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही राजनीतिक दलों को लोकलुभावन राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
हिम पर निर्भर प्रजातियाँ
प्रीलिम्स के लिये:सबनिवियम उपहिम सतह मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन का परिहिमानी जैव पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
चीन की लिनई यूनिवर्सिटी (Linyi University) के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, जो प्रजातियाँ अपने अस्तित्व तथा आजीविका के लिये हिम आवरण पर निर्भर रहती हैं, उन प्रजातियों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण निकट भविष्य में संकट का सामना करना पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु:
- यह अध्ययन नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (Japan Aerospace Exploration Agency- JAXA) के आँकड़ों पर आधारित है।
- इस अध्ययन में वर्ष 2071-2100 के बीच शीतकालीन हिम आवरण में होने वाले संभावित बदलाव की तुलना वर्ष 1982-2014 के आँकड़ों से की गई है।
- अध्ययन के अनुसार, हिम परत का आधार तल तथा जमे शीर्ष पर हिमावरण के बीच का क्षेत्र जिसे ‘सबनिवियम’ (Subnivium) के रूप में जाना जाता है, को ग्लोबल वार्मिंग से खतरा है।
सबनिवियम (Subnivium):
- यह लैटिन शब्द Nivis अर्थात् हिम तथा Sub अर्थात उप से मिलकर बना है यानी उपहिम सतह।
- सबनिवियम उपहिम सतह का तापमान लगभग 32°F (0°C) पर स्थिर रहता है। हालाँकि तापमान का यह स्तर शीत प्रतीत होता है परंतु इस सतह का तापमान चरम सर्दियों के मौसम में आसपास की वायु के तापमान से 30-40°C अधिक गर्म होता है।
अधिक तापमान का कारण:
- सबनिवियम उपहिम सतह का तापमान हिम की गहराई तथा घनत्व पर निर्भर करता है।
- जब हिम की परतें (एक के ऊपर दूसरी) बहुत दबी हुई रहती हैं तो कठोर हिम सतह का निर्माण करती हैं परंतु जब इन परतों के मध्य अंतराल अधिक होता है तो वायु इन परतों के मध्य कैद हो जाती है तथा यह वायु ऊष्मा की कुचालक होने के कारण इन हिम सतहों को आसपास की वायु की अपेक्षा गर्म रखती है।
- प्रजातियों का संरक्षण:
- सबनिवियम तथा आसपास की वायु के तापांतर के कारण शीतकाल में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ जैसे- पक्षियों में रफ्ड ग्राउज (Ruffed Grouse), स्तनधारियों में छछूंदर (Shrews) तथा कई घास की प्रजातियाँ सुरक्षा के लिये सबनिवियम उपसतह पर निर्भर रहती हैं।
ताप वृद्धि का सबनिवियम पर प्रभाव:
- सामान्यतया ऐसा माना जाता है कि तापमान वृद्धि या ग्लोबल वार्मिंग का न्यून ताप क्षेत्रों यथा- आर्कटिक क्षेत्र, की प्रजातियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। परंतु सबनिवियम
- उपहिम सतह पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्ष 1970 के बाद से हिमपात की अवधि (वह अवधि जब बारिश की तुलना में हिमपात की संभावना अधिक होती है) कम हो गई है।
- अधिक बारिश के कारण हिम का घनत्व अधिक हो जाता है तथा इसकी इन्सुलेट क्षमता (उष्मारोधी क्रिया से तापमान वृद्धि ) भी कम हो जाती है और सबनिवियम उपसतह का तापमान अधिक होने के स्थान पर कम हो जाता है। इससे इस उपसतह पर निर्भर प्रजातियों की वातावरण के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है।
संभावित प्रभाव:
हिम आवरण युक्त दिनों की संख्या में कमी:
- वर्ष 1982-2014 के बीच शीत काल के दौरान प्रतिवर्ष 126 दिन हिमपात का समय रहा, जिसके आने वाले समय में इसके 110 दिन होने की संभावना है। सर्वाधिक हिम आवरण में कमी 40- 50 डिग्री अक्षांश के मध्य उत्तरी अमेरिका एवं एशिया में होने की संभावना है।
प्रजातियों की सुभेद्यता में वृद्धि:
- ऐसी प्रजातियाँ जिनका जीवन हिमावरण पर निर्भर रहता है उन्हें हिमपात के दिनों की संख्या कम होने पर जीवित रहने के लिये संकट का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि इन प्रजातियों की शिकारी जानवरों के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाएगी।
जैव विविधता में कमी:
- हिमीकरण तथा हिमद्रवन (Freeze and Thaw Cycle- रात्रि में हिम का जमना और दिन में हिम का पिघलना) चक्रों में वृद्धि होने से पौधों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा तथा अधिक शीत मिट्टी से जीवों की विविधता भी प्रभावित होगी और केवल वे प्रजातियाँ जो इन नवीन परिस्थितियों में वातावरण के अनुसार अपने को अनुकूल कर पाएंगी वे ही जीवित रहेंगी।
वैश्विक जैव विविधता का पुनर्वितरण:
- जलवायु परिवर्तन से प्रजातियों के वितरण तथा जैव विविधता प्रतिरूप में व्यापक पैमाने पर बदलाव होने की संभावना है क्योंकि इसका अलग-अलग जलवायु पर विभेदी प्रभाव होता है।
परिहिमानी (स्थायी हिमावरण) क्षेत्रों में मानवीय क्रियाकलापों के कारण कई प्रकार की समस्याएँ पैदा हो गई हैं, अत: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये इन क्षेत्रों में उपयुक्त भू-तकनीकी एवं इंजीनियरिंग उपायों को अपनाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
मीथेन शमन और मूल्यवर्द्धन
प्रीलिम्स के लिये:मीथेन-ऑक्सीकारक बैक्टीरिया मेन्स के लिये:मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया |
चर्चा में क्यों?
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology- DST) के स्वायत्त संस्थान अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (Scientists at Agharkar Research Institute- ARI) पुणे के वैज्ञानिकों ने मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया (Methanotrophic Bacteria) के विभिन्न प्रकार के 45 स्ट्रेंस (Strains) का पता लगाया है जो चावल के पौधों से उत्सर्जन मीथेन को कम करने में सक्षम हैं।
मुख्य बिंदु:
- वैज्ञानिकों ने मेथनोट्राॅफ के 45 अलग-अलग स्ट्रेंस (यह जीव विज्ञान में निम्न स्तर की प्रजातीय-वर्गीकरण श्रेणी है जिसका उपयोग एक ही प्रजाति के वर्गीकरण में किया जाता है ) को पृथक एवं संवर्द्धित कर पहली स्वदेशी मेथनोट्राॅफ-कल्चर का निर्माण किया है।
- वैज्ञानिकों ने पाया कि इन स्ट्रेंस की उपस्थिति से पौधों द्वारा मीथेन उत्सर्जन में कमी आई तथा पौधे के विकास में इसका सकारात्मक या निष्क्रिय प्रभाव पड़ा है। इन सूक्ष्म जीवों को धान के पौधों में स्थापित किया जा सकता है तथा ये सूक्ष्म जीव मिथेन उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
बैक्टीरिया की क्रिया-विधि:
- मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया उपापचयन की क्रिया द्वारा मीथेन को कार्बन-डाइऑक्साइड में परिवर्तित करते हैं तथा प्रभावी रूप से मीथेन के उत्सर्जन में कमी लाते हैं। ये मेथनोट्राॅफ धान के खेतों में पौधे की जड़ों तथा जल युक्त क्षेत्रों में सक्रिय रहते हैं।
- इससे चावल के खेतों से मीथेन शमन के लिये माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स का विकास किया जा सकता है।
माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स (Microbial Inoculants):
- वर्तमान कृषि पद्धतियाँ रासायनिक आगतों जैसे- उर्वरक, कीटनाशक, शाकनाशी आदि पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
- माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स का तात्पर्य उन लाभदायक सूक्ष्मजीवों से है जो सतत् कृषि की दिशा में मिट्टी के पारिस्थितिक तंत्र को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स पर्यावरण के अनुकूल होते हैं तथा रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के संभावित विकल्प हो सकते हैं।
- ये सूक्ष्मजीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाकर मिट्टी की पोषकता में वृद्धि करते हैं।
- ये पादप-वृद्धिकारक (Phyto-Stimulants), जैव-उर्वरक (Bio-Fertilizers), सूक्ष्मजीवीय (Microbial Bio-Control) जैव-नियंत्रक हो सकते हैं।
- ये विभिन्न रोगजनकों से फसल को सुरक्षा प्रदान करते हैं तथा प्रभावी जैव-उर्वरक हैं ।
धान की फसल एवं मीथेन:
- धान के खेतों में लंबे समय तक जल जमाव के कारण कार्बनिक तत्त्वों के अवायवीय विघटन होता है तथा मीथेन गैस बनती है।
- धान के खेत ‘वैश्विक मीथेन उत्सर्जन’ में 10 प्रतिशत का योगदान करते है। मीथेन दूसरी प्रमुख ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas- GHG) है तथा कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 26 गुना अधिक खतरनाक होती है।
शोध का महत्त्व:
- मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में मेथेनोट्रॉप्स उत्कृष्ट मॉडल साबित हो सकता है।
- अपशिष्ट से प्राप्त बायो-मीथेन को मेथेनोट्रॉप्स द्वारा बायो-डीज़ल जैसे उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।
- इस शोध से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने में सहायता मिलेगी।
स्रोत: PIB
जगुआर (Jaguar) को यूएन समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण
प्रीलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय जगुआर दिवस (International Jaguar Day) मेन्स के लिये:प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण, प्रवासी प्रजातियों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गुजरात के गांधीनगर में संपन्न हुए ‘प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के काॅप-13 सम्मेलन (United Nations 13th Conference of the Parties to the Convention on Migratory Species of Wild Animals) में जगुआर (Jaguar) को ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय’ के तहत अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रदान करने की घोषणा की गई है।
मुख्य बिंदु:
- काॅप-13 सम्मेलन में जारी घोषणा पत्र के अनुसार, जगुआर को वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) के परिशिष्ट-I व II में शामिल किया गया है।
- CMS के कार्यकारी निदेशक के अनुसार, अभिसमय में जगुआर के शामिल होने से इस जीव के संरक्षण के लिये सीमा पार सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही यह अभिसमय जगुआर के प्रवास क्षेत्र के देशों को उनके संरक्षण हेतु प्रवास गलियारों (Migration Cooridors) के रखरखाव जैसे प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मंच प्रदान करेगा।
- जगुआर को CMS के तहत संरक्षित सूची में जोड़ने का प्रस्ताव मध्य अमेरिका के देश कोस्टा रिका (Costa Rica) की तरफ से आया और साथ ही अर्जेंटीना, बोलीविया, पेरू, पराग्वे और उरुग्वे जैसे देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
जगुआर (Jaguar):
- वंश (Genus): पैंथेरा (Panthera)
- वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा ओंका (Panthera onca)
- जगुआर प्रायः अमेरिकी महाद्वीपों (उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका) में पाया जाता हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में विश्व में बचे कुल जगुआरों की संख्या लगभग 64,000 है, जो अमेरिकी महाद्वीप के 19 देशों के जंगलों में पाए जाते हैं।
- जगुआर के बच्चे दो वर्ष की आयु के बाद परिवार से अलग अपने आधिपत्य क्षेत्र की तलाश में निकल जाते हैं, इस दौरान वे 70 किमी. तक की यात्रा कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण की आवश्यकता क्यों?
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) के अनुमान के अनुसार, पिछले 21 वर्षों में जगुआर की आबादी में 20-25% तक गिरावट देखी गई है।
- संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लेकर अर्जेंटीना तक जगुआर के प्रवास क्षेत्र में 50% की कमी आई है और मध्य अमेरिका में इसके प्रवास स्थान का क्षेत्रफल घटकर 23% ही रह गए हैं। वहीं अल सल्वाडोर (El Salvador) और उरुग्वे जैसे देशों में यह जीव अब विलुप्त हो चुका है।
- अपने प्रवास के दौरान जगुआर कई बार अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हैं।
- वर्तमान में 90% जगुआर अमेज़न क्षेत्र के 9 देशों में पाए जाते हैं और इनके वास स्थान के क्षरण के कारण शेष 10% जगुआर 33 अन्य छोटे समूहों में रहते हैं।
- IUCN की रेडलिस्ट में जगुआर को ‘निकट संकटग्रस्त (Almost Threatened)’ की श्रेणी में रखा गया है।
अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण के लाभ:
- CMS के परिशिष्ट-I में संकटग्रस्त प्रवासी प्रजातियों को रखा जाता है, जबकि परिशिष्ट-II में उन प्रवासी प्रजातियों को रखा जाता है जिनके संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
- CMS के परिशिष्ट-I व परिशिष्ट-II में शामिल होने से जगुआर और उनके प्रवास स्थान के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- इस समझौते से जगुआर व इसके अंगों से बने उत्पादों के अवैध व्यापार के नियंत्रण में सहायता प्राप्त होगी।
जगुआर संरक्षण के अन्य प्रयास:
- वर्ष 2018 में 14 देशों ने जगुआर के संरक्षण के लिये ‘जगुआर 2030 रोडमैप (Jaguar 2030 Roadmap)’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की और 29 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय जगुआर दिवस (International Jaguar Day) के रूप में घोषित किया।
- क्षेत्र के कई देशों ने CITES के माध्यम से जगुआर और इसके अंगों से बने उत्पादों के अवैध व्यापार तथा व्यापार मार्गों की पहचान करने में शोध को बढ़ावा देने में सफलता प्राप्त की।
स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 मार्च, 2020
मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम परिवर्तन
12 मार्च, 2020 को महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने मुंबई सेंट्रल स्टेशन के नाम में परिवर्तन हेतु प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम नाना जगन्नाथ शंकर सेठ टर्मिनल किया जाएगा। यह प्रस्ताव रेल मंत्रालय के पास भेजा गया है। जगन्नाथ शंकर सेठ एक शिक्षाविद् थे। विदित है कि वर्ष 1845 में भारत में रेलवे की स्थापना के लिये उन्होंने जमशेदजी जीजीभाय के साथ मिलकर भारतीय रेलवे एसोसिएशन का गठन किया था। साथ ही नाना जगन्नाथ शंकर सेठ ने बॉम्बे एसोसिएशन की भी स्थापना की जो बॉम्बे प्रेसीडेंसी में पहला राजनीतिक संगठन था। रेलवे स्टेशन के नाम परिवर्तन के लिये कानून या संविधान में कोई नियम या प्रक्रिया नहीं है। आमतौर पर राज्य सरकार रेलवे स्टेशन के नाम परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू करती है। इसके पश्चात् यह प्रस्ताव केंद्र में रेलवे बोर्ड के पास भेजा जाता है। वहीं शहरों, कस्बों या गाँवों का नाम परिवर्तन प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा गृह मंत्रालय को भेजा जाता है और इस संदर्भ में अंतिम निर्णय गृह मंत्रालय का होता है।
आरोग्य मित्र
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक आरोग्य मित्र तैनात करने की घोषणा की है, जो सरकार की ओर से चलाई जा रही स्वास्थ्य योजनाओं के बारे में आम लोगों को जानकारी देंगे। आधिकारिक सूचना के अनुसार, ये आरोग्य मित्र अपने निर्धारित क्षेत्र में न सिर्फ प्रदेश व केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं और पोषण मिशन की जानकारी देंगे बल्कि इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिये मार्गदर्शन भी प्रदान करेंगे।
एशियाई विकास बैंक
एशियाई विकास बैंक (ADB) ने COVID -19 की महामारी से निपटने के लिये दवा निर्माता कंपनियों को 200 मिलियन डालर की सहायता देने की घोषणा की है। यह वित्तीय सहायता ADB की आपूर्ति श्रृंखला वित्त कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी और चयनित कंपनियों को प्रदान की जाएगी। इसका उद्देश्य कंपनियों को अतिरिक्त कार्यशील पूंजी प्रदान करना है ताकि कोरोनावायरस के प्रकोप को दूर किया जा सके। ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है, जिसकी स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को की गई थी। इस बैंक ने 1 जनवरी, 1967 को कार्य करना शुरू किया था। इस बैंक की स्थापना का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास को गति प्रदान करना था। इसकी अध्यक्षता जापान द्वारा की जाती है। इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में स्थित है। इसके सदस्य देशों की संख्या 68 है। वर्ष 2019 में निउए (Niue) को इस समूह में शामिल किया गया था।
‘प्रगति’ CSR पहल
फेसबुक ने हाल ही में ‘प्रगति’ नाम से भारत में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पाॅन्सिबिलिटी (CSR) पहल शुरू की है। इस पहला का उद्देश्य भारत में महिला उद्यमशीलता को बढ़ावा देना है। यह परियोजना महिलाओं के उद्यमिता पर कार्य करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं को सहायता उपलब्ध कराएगी। इस पहल के तहत प्रत्येक गैर-लाभकारी संगठन के लिए को 50 लाख रुपए तक के चार वित्तीय अनुदान प्रदान किये जाएंगे। CSR से अभिप्राय किसी औद्योगिक इकाई का उसके सभी पक्षकारों, जैसे- संस्थापकों, निवेशकों, ऋणदाताओं, प्रबंधकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों, वहाँ के स्थानीय समाज एवं पर्यावरण के प्रति नैतिक दायित्व से है।