जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 2% की वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी बीपी पीएलसी (BP PLC, British Corporation) द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार, 2010-2011 के बाद वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में उच्चतम दर से वृद्धि हुई है।
- उल्लेखनीय है कि इस समीक्षा के आधार पर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में पिछले वर्ष वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 2.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक कार्बन उत्सर्जन की उच्चतम दर का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन तथा विकास के नाम पर लोगों द्वारा किया गया प्रकृति का अत्यधिक दोहन है।
- यदि प्रकृति का दोहन इसी गति से चलता रहा तो पृथ्वी ग्रह का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
- बीपी पीएलसी द्वारा की गई वैश्विक ऊर्जा की सांख्यिकीय समीक्षा को ऊर्जा उद्योग मानक (Energy Industry Standard) के रूप में देखा जाता है।
- बीपी पीएलसी विभिन्न देशों के तेल भंडारों के आकार से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन और विभिन्न खपत दरों आदि के आँकड़े एकत्र करती है।
मांग में वृद्धि
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक ऊर्जा मांग में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। साथ ही दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में सबसे तेज़ी से वृद्धि दर्ज की गई।
- दुनिया भर की सरकारें वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के लिये चलाए जाने वाले अभियानों के दबाव के चलते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का प्रयास कर रही हैं।
क्या अक्षय ऊर्जा है समाधान?
- रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में अक्षय ऊर्जा के उपयोग में 14.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष बिजली उत्पादन में कुल वृद्धि का सिर्फ एक-तिहाई है।
- इसका तात्पर्य यह है कि ऊर्जा के ‘हरित’ (Green) रूप पर ध्यान देने से ‘नेट-शून्य’ उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता।
- इसके बजाय सरकार को प्रदूषणकारी कोयले और तेल के उपयोग में कटौती करने पर अधिक ज़ोर देना चाहिये।
बीपी पीएलसी (BP PLC, British Corporation)
- BP PLC तेल और गैस उत्पादन से संबंधित एक बहुराष्ट्रीय ब्रिटिश निगम है।
- इसका मुख्यालय लंदन, यूनाइटेड किंगडम में है।
- यह तेल और गैस उद्योग के सभी क्षेत्रों में काम करने वाली एक एकीकृत कंपनी है।
- इसके कार्यों में अन्वेषण (Exploration) और उत्पादन, शोधन, वितरण एवं विपणन, पेट्रोकेमिकल्स, बिजली उत्पादन तथा व्यापार शामिल हैं।
- यह जैव ईंधन और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में प्रमुख है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय एवं चीनी वरिष्ठ अधिकारियों के बीच नई दिल्ली में बैठक हुई, इस बैठक का मुख्य केंद्र बिंदु एक-दूसरे के बाज़ार तक पहुँच पर आम सहमति बनाना था।
प्रमुख बिंदु
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड सहित आसियान देशों के बीच किया जाने वाला एक मुक्त व्यापार समझौता है।
- प्रभाव में आने के पश्चात् यह विश्व का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता होगा, जिसमें विश्व की 45 प्रतिशत आबादी शामिल होगी व इसकी संयुक्त GDP लगभग 21.3 ट्रिलियन डॉलर होगी। साथ ही यह विश्व व्यापार के लगभग 40 प्रतिशत भाग को कवर करेगा।
- हालाँकि इन सब के बावजूद भारत अन्य देशों खासकर चीन से आयातित वस्तुओं के लिये बाज़ार उपलब्ध कराने पर सहमत नहीं है।
- भारत ने चीन को अन्य सदस्यों जैसे- आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया की अपेक्षा बाज़ार के कम हिस्से तक पहुँच प्रदान करने की पेशकश की है जिसे चीन स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है।
- इस दो दिवसीय बैठक में वस्तुओं, सेवाओं और निवेश जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई। चीन ने अपनी मांगों को अलग से रखते हुए सेवाओं के संदर्भ में सकारात्मक रुख अपनाया है, फिर भी वस्तुओं तथा निवेश के संदर्भ में अभी चर्चा होना बाकी है।
- भारत ने आने वाले समय में चीन से आयातित 70-80 प्रतिशत वस्तुओं पर पहले ही प्रशुल्क हटाने की पेशकश की है, तथा वह और छूट देने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि इससे भारतीय बाज़ार के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
- चीन पहले से ही भारत के साथ लगभग 60 बिलियन डॉलर से अधिक के व्यापार अधिशेष में है और भारत के घरेलू उद्योगों को चीनी वस्तुओं के कारण भारी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
- आसियान और चीन भारत पर जल्द-से-जल्द RCEP से संबंधित निर्णय लेने का दबाव बना रहे हैं ताकि इस वर्ष के अंत तक RCEP पर वार्ता को पूरा किया जा सके।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच किया जाना है।
- ज्ञातव्य है कि इन देशों का पहले से ही आसियान से मुक्त व्यापार समझौता है।
- वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी।
- RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
- RCEP के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 21.3 ट्रिलियन डॉलर और जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 45 प्रतिशत है।
- सदस्य देश: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।
स्रोत- बिज़नेस लाइन
जैव विविधता और पर्यावरण
वायु प्रदूषण और जीवन प्रत्याशा
चर्चा में क्यों?
‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (Center for Science and Environment) नामक पर्यावरण विशेषज्ञों के एक समूह ने अपनी रिपोर्ट ‘एट द क्रॉसरोड’ (At the Crossroads) में यह कहा है की भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली घातक बीमारियों के कारण जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 2.6 वर्ष तक कम हो गई है।
प्रमुख बिंदु
- यह रिपोर्ट तीन अलग-अलग संगठनों के अध्ययन पर आधारित है:
- द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 2017 (Global Burden of Disease Study 2017)
- WHO द्वारा प्रकाशित की गई ‘एयर पॉलूशन एंड चाइल्ड हेल्थ’ (Air Pollution and Child Health Report) रिपोर्ट
- अंतर्राष्ट्रीय श्वसन सोसायटी (International Respiratory Societies) के माध्यम से वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया समीक्षा पत्र
- रिपोर्ट के निष्कर्ष
- भारत में अब वायु प्रदूषण धूम्रपान से एक पायदान ऊपर स्वास्थ के सभी जोखिमों में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। यह बाहरी कणिका पदार्थों (Particulate Matter- PM 2.5), ओज़ोन और घरेलू वायु प्रदूषण का संयुक्त प्रभाव है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बाहरी भौतिक द्रव्य कणों के संपर्क में आने से जीवन प्रत्याशा में लगभग एक साल और छह महीने की कमी होती है, जबकि घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से जीवन प्रत्याशा में लगभग एक साल और दो महीने की कमी होती है। देश के घरेलू वायु प्रदूषण में लगभग एक चौथाई योगदान बाहरी वायु प्रदूषण का है।
- इस संयुक्त जोखिम के कारण भारतीयों सहित दक्षिण एशियाई लोगों की मृत्यु जल्दी हो रही है। उनकी जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) 2.6 वर्षों तक कम हो गई है।
- वायु प्रदूषण शरीर के प्रत्येक अंग को प्रभावित करता है, यह तेज़ी से नुकसान पहुँचाता है और इसका प्रभाव भी लंबे समय तक बरकरार रहता है।
- अतिसूक्ष्म कण फेफड़ों से गुज़रते हैं और रक्तप्रवाह के माध्यम से शरीर की सभी कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। वायु प्रदूषण हमारे शरीर के हर एक अंग और लगभग सभी कोशिकाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।
- रिसर्च के अनुसार, शरीर की लगभग सभी बीमारियाँ जैसे- हृदय और फेफड़ों की बीमारी, मधुमेह और मनोभ्रंश, यकृत की समस्याएँ, मस्तिष्क, पेट के अंगों, प्रजनन और मूत्राशय के कैंसर से लेकर भंगुर हड्डियों तक सभी कहीं न कहीं वायु प्रदूषण के ही कारण हैं।
- विषैली हवा से प्रजनन क्षमता, भ्रूण और बच्चे भी प्रभावित होते हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल मौतों के 49% मामलों में चिरकालिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (Chronic Obstructive Pulmonary Disease - COPD) ज़िम्मेदार हैं, इसके बाद फेफड़े के कैंसर से होने वाली मौतें (33%), डायबिटीज़ और इस्केमिक हार्ट डिज़ीज़ (22% प्रत्येक) और स्ट्रोक (15%) भी शामिल हैं।
- मानव स्वास्थ पर प्रभाव: इस वर्ष लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के स्पष्ट लक्षण देखे गए हैं।
- स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार, वर्ष 2017 में 1.2 मिलियन से भी अधिक लोगो की मृत्यु असुरक्षित वायु के संपर्क में आने से हो गई।
- टाइप 2 मधुमेह- इस अध्ययन ने पहली बार वायु प्रदूषण से जुड़े टाइप-2 मधुमेह से होने वाले खतरों के बारे में भी बताया। भारत, जहाँ टाइप 2 मधुमेह ने महामारी का रूप ले लिया है, पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- PM 2.5 के प्रदूषण के कारण दुनिया भर में टाइप 2 मधुमेह से 276,000 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 15.2 मिलियन लोग DALYs से प्रभावित हुए।
- लगभग 80% भारतीय ऐसी हवा में साँस लेते हैं जो राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों द्वारा निर्धारित स्तर से भी बदतर है।
- देश की पूरी आबादी WHO द्वारा बताए गये PM 2.5 के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश 10 µg/m3 की खतरनाक स्थिति में रहती है।
- अकाल मृत्यु - भारत में सबसे ज़्यादा 5 वर्ष से कम बच्चों की अकाल मृत्यु विषैली हवा के कारण होती है। 5 वर्ष से कम आयु के लगभग एक लाख से भी अधिक बच्चे वायु प्रदूषण का शिकार हुए हैं।
- वर्ष 2016 में 5 वर्ष से नीचे की उम्र में मरने वाले हर 10 बच्चों में से एक की मृत्यु वायु प्रदूषण की वज़ह से हुई।
स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन
जैव विविधता और पर्यावरण
एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम
चर्चा में क्यों?
उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome-AES) के कारण कई बच्चों की मौत हो गई, जिसे स्थानीय स्तर पर चम्की बुखार (दिमागी बुखार) के रूप में जाना जाता है।
- अधिकतर अप्रैल से जून के बीच मुजफ्फरपुर, बिहार और आसपास के लीची उत्पादक ज़िलों में AES के मामले देखने को मिलते हैं।
- गर्मी के मौसम के दौरान उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण AES के फैलने के दर बहुत अधिक होती है।
- मुजफ्फरपुर में बच्चों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस के फैलने और लीची के उपभोग के बीच संबंध को नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल, दिल्ली (National Centre for Disease Control) द्वारा डिज़ीज़ कंट्रोल, यू.एस. के साथ मिलकर स्पष्ट किया गया।
- आधी पकी हुई लीची में टॉक्सिन्स हाइपोग्लाइसीन (Toxins Hypoglycin) A (यह स्वाभाविक रूप से एमीनो एसिड होता है) और मिथाइलीनसाइक्लोप्रोपाइल-ग्लाइसिन (Methylene Cyclopropyl-Glycine: MCPG) होते हैं, अधिक मात्रा में ऐसी लीची का सेवन उल्टियों (Vomiting) का कारण बनता है।
क्या है यह सिंड्रोम?
- AES मच्छरों द्वारा प्रेषित एन्सेफलाइटिस की एक गंभीर स्थिति है, इसकी मुख्य विशेषता तीव्र बुखार और मस्तिष्क में सूजन आना है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने वर्ष 2006 में AES शब्द को एक ऐसे रोग समूह के रूप में दर्शाया, जो ऐसे ही एक अन्य रोग के समान प्रतीत होता है, लेकिन इसके प्रसार के अव्यवस्थित वातावरण के कारण इनमें अंतर करना मुश्किल है।
- यह बीमारी विशेष रूप से बच्चों और युवा वयस्कों को सबसे अधिक प्रभावित करती है।
- कारक: AES के प्रसार में वायरस मुख्य प्रेरक एजेंट के रूप में कार्य करते हैं, हालाँकि पिछले कुछ दशकों में अन्य स्रोत जैसे कि बैक्टीरिया, कवक, परजीवी, स्पाइरोकेट्स (spirochetes), रसायन, विषाक्त पदार्थ और गैर-संक्रामक एजेंट के कारण भी इसके प्रसार की घटनाएँ सामने आई हैं। यह वैक्सीन-निवारक रोग नहीं है।
- JEV भारत में इसका प्रमुख कारण है (5% -35% से लेकर)।
- हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस (Herpes simplex virus), निपाह वायरस (Nipah virus), जीका वायरस (Zika virus), इन्फ्लुएंजा ए वायरस (Influenza A virus), वेस्ट नाइल वायरस (West Nile virus), चंडीपुरा वायरस (Chandipura virus), मम्प्स (mumps), खसरा (measles), डेंगू (dengue), स्क्रब टाइफस (scrub typhus), एस. न्यूमोनिया (S.Pneumoniae) भी AES के लिये प्रेरक एजेंट के रूप में कार्य करते हैं।
- लक्षण: भ्रम, भटकाव, कोमा या बात करने में असमर्थता, तीव्र बुखार, उल्टी और बेहोशी आदि इसके लक्षणों में शामिल हैं।
इंसेफलाइटिस क्या है?
- इंसेफलाइटिस को प्राय: जापानी बुखार भी कहा जाता है, क्योंकि यह जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) नामक वायरस के कारण होता है।
- यह एक प्राणघातक संक्रामक बीमारी है, जो फ्लैविवायरस (Flavivirus) के संक्रमण से होती है। यह मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करती है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली वयस्कों की तुलना में काफी कमज़ोर होती है।
- क्यूलेक्स मच्छर इस बीमारी का वाहक होता है। सूअर तथा जंगली पक्षी मस्तिष्क ज्वर के विषाणु के स्रोत होते हैं।
- केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Vector Borne Disease Control Programme-NVBDCP) निदेशालय के आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी अधिक है।
सरकार की पहल
JE/AES के कारण बच्चों में होने वाली रुग्णता, मृत्यु दर और विकलांगता को कम करने के लिये भारत सरकार ने संबंधित मंत्रालयों के सहयोग से जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis-JE)/एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम [National Programme for Prevention and Control of Japanese Encephalitis(JE)/ Acute Encephalitis Syndrome (NPPCJA)] के तहत एक बहु-आयामी रणनीति तैयार की है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय:
- JE टीकाकरण को मज़बूत बनाना और विस्तारित करना
- सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों को मज़बूत बनाना
- JE/AES मामलों का बेहतर नैदानिक प्रबंधन
- भौतिक चिकित्सा और पुनर्वास (Physical medicine and rehabilitation)
- ज़िला परामर्श केंद्र की स्थापना
- निगरानी, पर्यवेक्षण और समन्वय
- सुरक्षित जल आपूर्ति के प्रावधान हेतु पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय।
- कमज़ोर बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाला पोषण प्रदान करने हेतु महिला और बाल विकास मंत्रालय।
- विकलांगता प्रबंधन और पुनर्वास हेतु ज़िला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों की स्थापना के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय।
- मलिन बस्तियों और कस्बों में सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय।
- विकलांग बच्चों को शिक्षा हेतु विशेष सुविधाएँ प्रदान करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय (स्कूली शिक्षा विभाग)।
स्रोत: द हिंदू
इंसेफलाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) के नए कारक की खोज
स्क्रब टाइफस : पूर्वी उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस का प्रमुख कारण
जैव विविधता और पर्यावरण
फॉस्फीन एक सुरक्षित और प्रभावी फ्यूमिगेंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, कीटों को नष्ट करने के लिये मिथाइल ब्रोमाइड (Methyl Bromide- MB) के स्थान पर फॉस्फीन का प्रयोग भी किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि मिथाइल ब्रोमाइड एक ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (Ozone-Depleting Substance) है।
विस्तृत अध्ययन
- राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र (National Centre for Integrated Pest Management-NCIPM) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) संस्थानों के वैज्ञानिकों ने चार अलग-अलग कृषि-जलवायु क्षेत्रों (Agro-Climatic Locations) में गेहूं और चावल जैसे अनाज पर अध्ययन किया।
- अध्ययन के अनुसार ‘फॉस्फीन’ कीटों से सुरक्षा करने में 100 प्रतिशत प्रभावी है।
- फॉस्फीन (गैसीय रूप में एक फ्यूमीगेंट/संगरोधी) को सामान्यतः अधःस्तरA सब्सट्रेट के रूप में एल्यूमीनियम फॉस्फेट (Aluminium Phosphate) से प्राप्त किया जाता है।
कृषि-जलवायु क्षेत्र
संसाधन विकास के लिये देश को कृषि-जलवायु विशेषताओं, विशेष रूप से तापमान और वर्षा सहित मृदा कोटि, जलवायु और जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है:
1. पश्चिमी हिमालय
2. पूर्वी हिमालय
3. गंगा का निचला मैदानी क्षेत्र
4. गंगा का मध्य मैदानी क्षेत्र
5. गंगा का उपरी मैदानी क्षेत्र
6. गंगा-पार (ट्रांस) मैदानी क्षेत्र
7. पूर्वी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
8. मध्य पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
9. पश्चिमी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
10. दक्षिणी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
11. पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र
12. पश्चिमी तटीय मैदानी क्षेत्र और पश्चिमी घाट
13. गुजरात का मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र
14. पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (शुष्क प्रदेश) और पर्वतीय क्षेत्र
15. द्वीपीय क्षेत्र
फ्यूमीगेंट/संगरोधी (Fumigant)
- फ्यूमीगेंट/संगरोधी संक्रामक रोग को रोकने के लिये की गई एक व्यवस्था है।
- सामान्यतः इसका प्रयोग अनाजों जैसे- गेहूं, चावल की कीटों से रक्षा करने के लिये किया जाता है।
राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र
(National Centre for Integrated Pest Management-NCIPM
- इसकी स्थापना फरवरी,1988 में हुई। एकीकृत कीट प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली में स्थित है।
- भारत के विभिन्न कृषि पारिस्थिकी क्षेत्रों की सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
- यहाँ कीटों (कीटों, रोगों, नेमाटोड, खरपतवार, कृन्तकों, पक्षियों आदि) से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिये फसल उत्पादन और संरक्षण प्रणालियों पर विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
- यह अखिल भारतीय समन्वित फसल सुधार कार्यक्रमों के साथ प्रभावी सहयोग के लिये प्रयासरत है।
मिथाइल ब्रोमाइड
(Methyl Bromide- MB)
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) का हस्ताक्षरकर्त्ता देश होने के कारण भारत मिथाइल ब्रोमाइड और अन्य ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों (Ozone-Depleting Substances- ODS) का प्रयोग न करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- वर्तमान समय में फ्यूमिगेंट/धूमक (Fumigant) का उपयोग भारतीय बंदरगाहों पर दूसरे देशों से आयातित अनाज और दालों की कीटों से सुरक्षा करने के लिये किया जाता है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, फ्यूमिगेंट में शीतलक/रेफ्रिजरेंट क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Refrigerant Chlorofluorocarbons- CFC) की तुलना में ओज़ोन क्षरण की क्षमता 60 गुना अधिक होती है। वैश्विक स्तर पर CFC का उपयोग प्रतिबंधित है।
- दुनिया के 95% देशों ने मिथाइल ब्रोमाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है, केवल भारत और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में ही इसके उपयोग की अनुमति है।
- मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग किये बिना खाद्य उत्पादों का निर्यात करने वाले देशों पर भारत द्वारा आर्थिक दंड अधिरोपित किया जाता है, हालाँकि कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में यह विवाद का मुद्दा बना हुआ है।
फॉस्फीन का उपयोग
- भारत ने घरेलू वेयरहाउसेज़ (Domestic Warehouses) में मिथाइल ब्रोमाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है, ऐसे में इसके स्थान पर फॉस्फीन का उपयोग (एक फ्यूमीगेंट के रूप में) किया जाता है।
- भारत सरकार द्वारा इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण अनाज में मिथाइल ब्रोमाइड के अवशेषों की उपस्थिति बने रहना है:
- वेयरहाउसेज में भंडारित अनाज को हर तीन महीने में फ्यूमिगेट करना पड़ता है,
- फॉस्फीन फ्यूमीगेंट जिसका कोई अवशिष्ट अनाजों में नहीं बचता, को मिथाइल ब्रोमाइड से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
ओजोन क्षयकारी पदार्थ
- ये मानव निर्मित ऐसी गैसें हैं जो ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाती हैं। ओज़ोन परत समताप मंडल (Stratosphere) में पाई जाती है। यह सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों की मात्रा को कम करती है। पराबैंगनी किरणों का मानव और पर्यावरण दोनों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, उदाहरण के लिये त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद, पौधों की प्राकृतिक वृद्धि का बाधित होना और समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुँचना।
- ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में शामिल हैं:
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Chlorofluorocarbons-CFCs)
- हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (Hydrochlorofluorocarbon-HCFCs)
- हाइड्रोब्रोमोफ्लोरोकार्बन (Hydrobromoflurocarbons-HBFCs)
- हैलोंस (Halons)
- मिथाइल ब्रोमाइड (Methyl Bromide)
- कार्बन टेट्राक्लोराइड (Carbon Tetrachloride)
- मिथाइल क्लोरोफॉर्म (Methyl Chloroform)
- इन पदार्थों का उपयोग वाणिज्यिक, घरेलू, वाहनों आदि में एयर कंडीशनर के रूप में, रेफ्रिजरेटर में शीतलक के रूप में, बिजली के उपकरणों में उनके कल- पुर्जों, औद्योगिक सॉल्वैंट्स, सफाई के लिये सॉल्वैंट्स (ड्राई क्लीनिंग सहित), एरोसोल स्प्रे प्रणोदक, आदि के रूप में किया गया है।
स्रोत- द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अल्ज़ाइमर रोग की नई वैक्सीन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यू मक्सिको विश्वविद्यालय में अमेरिकी वैज्ञानिक एक टीम ने अल्ज़ाइमर (Alzheimer) के निवारण के लिये वैक्सीन के एक नए प्रसंस्करण की खोज की है।
प्रमुख बिंदु
- यह वैक्सीन मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को मृत होने से रोकेगी और मस्तिष्क के अन्य भागों में बनने वाले टाऊ टैंग्लेस (tau tangles) को भी कम करेगी, जिससे किसी चीज़ को याद करने और सीखने में सहायता मिलेगी।
- इस वैक्सीन में वायरस के आकार के कणों का प्रयोग किया गया है जो टाऊ टैंग्लेस के विरुद्ध एंटीबॉडीज़ (Antibodies) का निर्माण करेंगे जिससे अल्ज़ाइमर रोग से छुटकारा मिलेगा। टाऊ टैंग्लेस के कारण ही अल्ज़ाइमर रोग मस्तिष्क में फैलता है।
- अल्ज़ाइमर से ग्रसित रोगी के मस्तिष्क में टाऊ (Tau) प्रोटीन पाया जाता है। इसकी संरचना काफी जटिल होती है। यह तंत्रिका कोशिकाओं को आपस में जुड़ने एवं उनके बीच होने वाली अंतःक्रियाओं को बाधित करता है, जिस कारण व्यक्ति सही से संतुलन नहीं बना पाता है।
- हालाँकि हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र भी टाऊ टैंग्लेस को नष्ट करने हेतु इनके विरुद्ध एंटीबॉडीज़ (Antibodies) का निर्माण करता है।
अल्ज़ाइमर क्या है?
- अल्ज़ाइमर रोग एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological Disorder) है जो मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को नष्ट करता है। इसके कारण रोगी की शारीरिक और मानसिक स्थिति क्षीर्ण हो जाती है उसे कुछ भी याद नहीं रहता है, उसकी निर्णय लेने की क्षमता घट जाती है, स्वभाव में लगातार परिवर्तन होता रहता है, आदि। प्रारंभ में ये लक्षण कम मात्रा में होते हैं लेकिन समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह गंभीर और असाध्य हो जाता है।
- 55-60 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों में अल्ज़ाइमर, डिमेंशिया (dementia) का प्रमुख कारण है। डिमेंशिया रोग मानसिक रोगों का एक समूह होता है जिसमें व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता घट जाती हैं।
- यह रोग मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार की टैंगल्स (Tangles) नामक प्रोटीन निर्माण के कारण होता है। जिसे टाइप-3 डायबिटीज़ के नाम से भी जानते हैं।
- उम्र बढ़ने के साथ साथ इसका खतरा और बढ़ जाता है लेकिन कभी कभी लेकिन कभी-कभी में दुर्लभ आनुवंशिक परिवर्तनों के कारण इसके लक्षण 30 वर्ष की आयु के लोगो में भी देखने को मिल जाते है।
- अल्ज़ाइमर एक असाध्य रोग है क्योंकि इसमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएँ मृत हो जाती है, जो पुनः जीवित नहीं हो सकती हैं।
- यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेस के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अल्ज़ाइमर होने का खतरा दोगुना होता है।
तथ्य और निष्कर्ष
- वर्तमान में भारत में लगभग 4 मिलियन लोग डिमेंशिया से ग्रसित हैं जबकि वर्ष 2050 यह संख्या तीन गुनी होने की संभावना है।
- वैश्विक स्तर पर डिमेंशिया से लगभग 44 मिलियन लोग ग्रसित हैं जो पूरी दुनिया के लिये एक मुख्य समस्या बन गई हैं, इसलिये शीघ्रता से इसकी पहचान करना आवश्यक है।
- पश्चिमी देशों ने अल्ज़ाइमर रोग से ग्रसित लोगों की संख्या उच्च दर से बढ़ रही है लेकिन बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण इस रोग का निदान समय पर हो जाता है, परंतु भारत जैसे देशों में इसे अक्सर उम्र बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया मानकर अनदेखा किया जाता है।
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (12 June)
- हॉन्गकॉन्ग में प्रस्तावित नए प्रत्यर्पण कानून के विरोध में 9 जून को वर्ष 1997 के बाद अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसमें बड़ी संख्या में लोग चीन में प्रत्यर्पण की योजना के खिलाफ एकत्रित हुए। इनका कहना था कि चीन में किसी को न्याय नहीं मिलेगा, क्योंकि वहाँ मानवाधिकार नहीं हैं। हॉन्गकॉन्ग के चीन समर्थक राजनीतिज्ञ एक ऐसे विधेयक को लागू कराना चाहते हैं जिसे यदि मंज़ूरी मिल जाती है तो ऐसे भगोड़े लोगों को न्यायालयों में स्थानांतरित करने की अनुमति होगी, जिनके साथ हॉन्गकॉन्ग का कोई संबंधित समझौता नहीं हैं। हॉन्गकॉन्ग के मुख्य कार्यकारी कैरी लैम के अनुसार, यह (प्रत्यर्पण) विधेयक का एक बेहद महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो न्याय दिलाने में मदद करेगा और यह भी सुनिश्चित करेगा कि हॉन्गकॉन्ग सीमापार और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के संबंध में अपने दायित्वों को पूरा करे। वर्ष 2003 में भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को सख्त बनाने के विरोध में हॉन्गकॉन्ग में प्रदर्शन हुए थे। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 1997 में हॉन्गकॉन्ग को चीन को सौंपे जाने पर सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ था।
- हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित CSIR के हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान ने फसलों के अवशेष (पराली) से बायोडीज़ल बनाने की तकनीक तैयार की है। इससे न केवल वायु प्रदूषण कम होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। गौरतलब है कि देश के बड़े राज्यों में फसलों के अवशेषों को खेतों में ही जला दिया जाता है, जिससे वातावरण प्रदूषित होता है। बायोडीज़ल जैविक स्रोतों से प्राप्त और डीज़ल जैसा ईंधन है, जो परंपरागत डीज़ल इंजनों को बिना परिवर्तित किये ही चला सकता है। भारत का पहला बायोडीज़ल संयंत्र ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा SEZ में स्थापित किया गया है।
- हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने मिज़ोरम में वर्षा पसंद करने वाली साँप की एक नई प्रजाति की खोज की है। वैसे इस साँप का नाम ‘मिज़ो रेन स्नेक’ है, लेकिन ब्रिटिश सर्प-विज्ञानी मैलकम ए. स्मिथ के नाम पर इसे स्मीथोफिस एटेम्पोरैलिस (Smithophis Atemporalis) वैज्ञानिक नाम दिया गया है। काले-सफेद रंग का यह साँप ज़हरीला नहीं है और बारिश होने के बाद अक्सर इसे मानव बस्तियों के आस-पास देखा जा सकता है। शोधकर्त्ताओं के लिये साँप की यह नई प्रजाति है, लेकिन स्थानीय लोग इसे रूआहलावमरूल नाम से पहले से पुकारते रहे हैं।
- नासा के क्यूरोसिटी मार्स रोवर को अपने अभियान के दौरान मंगल ग्रह पर चिकनी मिट्टी के खनिजों का अब तक का सबसे बड़ा भंडार मिला है। क्यूरोसिटी रोवर ने मंगल के दो लक्ष्य स्थलों- एबेरलेडी और किलमारी से चट्टानों के नमूने लिये। हाल ही में रोवर की एक नई सेल्फी में इसका पता चला। खनिज संपन्न यह क्षेत्र लोअर माउंट शार्प के पास है, जहाँ पर 2012 में क्यूरोसिटी रोवर ने लैंडिंग की थी। गौरतलब है कि क्यूरोसिटी रोवर माउंट शार्प पर यह अन्वेषण कर रहा है कि क्या अरबों साल पहले वहाँ पर जीवन के लिये उपयुक्त वातावरण था या नहीं। रोवर के विशेष उपकरण केमिन (केमिस्ट्री और मिनरोलॉजी) ने चिकनी मिट्टी के खनिज वाले क्षेत्र में खुदाई से प्राप्त चट्टान के नमूने का पहली बार विश्लेषण किया है।
- ब्रिटेन सरकार ने भारतीय मूल के कुमार अय्यर को विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय में मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त किया है। वह विभाग के प्रबंधन बोर्ड में नियुक्त किये जाने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति हैं। कुमार अय्यर इससे पहले मुंबई में ब्रिटेन के उप-उच्चायुक्त रह चुके हैं और उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ ही आर्थिक कूटनीति एवं समृद्धि पर काम करने का अनुभव है।
- अपने समय के सर्वश्रेष्ठ आलराउंडरों में से एक भारत के युवराज सिंह ने क्रिकेट से संन्यास लेने का ऐलान किया है। 18 साल तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले 37 वर्षीय युवराज सिंह ने ‘मैन ऑफ द सीरीज़’ खिताब पर कब्ज़ा जमाते हुए भारत को 2011 में वर्ल्ड कप जीतने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। युवराज सिंह ने अपने इंटरनेशनल करियर की शुरुआत वर्ष 2000 में केन्या के खिलाफ की थी। वर्ष 2007 के T-20 वर्ल्ड कप में क्रिस ब्रॉड की 6 गेंदों पर 6 छक्के लगाकर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड कायम किया था। युवराज सिंह ने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर में 40 टेस्ट मैच खेले और 1900 रन बनाए। साथ ही 304 एकदिवसीय मैचों में उन्होंने 87.68 के औसत से 8701 रन बनाए। T-20 में युवराज सिंह ने 58 मैचों में 1177 रन बनाए। उन्होंने अपने करियर का आखिरी एकदिवसीय मैच 30 जून, 2017 को वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेला था। उन्हें 2012 में अर्जुन पुरस्कार और 2014 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया|
- फ्राँस के राफेल नडाल ने ऑस्ट्रिया के डॉमिनिक थिएम को हराकर रिकॉर्ड 12वीं बार फ्रेंच ओपन टेनिस का पुरुष एकल खिताब जीत लिया। नडाल ने फ्रेंच ओपन में अब तक सिर्फ दो मैच हारे हैं और 93 मैचों में जीत हासिल की है। नडाल 12 बार इस प्रतियोगिता के फाइनल में पहुँचे और हर बार उन्होंने खिताब जीता। उन्होंने 2005 से 2008, 2010 से 2014 और 2017 से 2019 तक फ्रेंच ओपन का पुरुष एकल खिताब जीता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया की एश्ले बार्टी ने अपना पहला ग्रैंड स्लैम खिताब जीता। इस ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के महिला एकल के फाइनल में उन्होंने चेक गणराज्य की माकेर्ता वोनद्रोउसोवा को पराजित किया।