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डेली न्यूज़

  • 12 Apr, 2021
  • 48 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

E-9 देशों के शिक्षा मंत्रियों की बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में E-9 (बांग्लादेश, ब्राज़ील, चीन, मिस्र, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, नाइजीरिया और पाकिस्तान) देशों के शिक्षा मंत्रियों की एक परामर्श बैठक हुई।

  • यह बैठक सतत् विकास लक्ष्य संख्या-4 (Sustainable Development Goal4/SDG-4) की दिशा में प्रगति में तेज़ी लाने के लिये डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देने से संबंधित विषय पर आयोजित की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • SDG-4 की दिशा में तेज़ी से प्रगति के लिये डिजिटल लर्निंग स्केलिंग:
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) सभी के लिये डिजिटल शिक्षा और कौशल सुनिश्चित करने वाली वैश्विक पहल का नेतृत्व कर रहा है, जिसके अंतर्गत हाशिए पर मौजूद बच्चों और युवाओं को लक्षित कर उनको डिजिटल उपकरणों के पास लाने और शिक्षा प्रणालियों में तेज़ी से बदलाव लाने का लक्ष्य है।
    • इस पहल का प्रमुख उद्देश्य वर्ष 2020 में हुई वैश्विक शिक्षा बैठक (Global Education Meeting) की पाँच प्राथमिकताओं में से तीन (शिक्षकों को सहयोग,  कौशल में निवेश और डिजिटल विभाजन को कम करना) पर केंद्रित है।
    • E9 देश छोटी अवधि में डिजिटल लर्निंग और कौशल पर प्रगति तथा लंबी अवधि में SDG4 पर तेज़ी लाने के लिये एक शुरुआती एजेंडा पेश करते हैं

E9 देश:

  • E9 साझेदारी पहली बार वर्ष 1993 में स्थापित की गई थी, जिसका गठन यूनेस्को की ‘सभी के लिये शिक्षा’ (Education For All) पहल हेतु किया गया था।
  • E-9 समूह के देशों (बांग्लादेश, ब्राज़ील, चीन, मिस्र, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, नाइजीरिया और पाकिस्तान) का उद्देश्य सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करने हेतु राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं सामूहिक प्रयास को मज़बूत करना है।
  • E9 देश SDG4- शिक्षा 2030 (SDG4 – Education 2030) को प्राप्त करने के लिये काम कर रहे हैं।

सभी के लिये शिक्षा:

  • यह एक वैश्विक पहल है, जिसे पहली बार वर्ष 1990 में यूनेस्को, यूएनडीपी, यूएनएफपीए, यूनिसेफ और विश्व बैंक द्वारा थाईलैंड में शिक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शुरू किया गया था।
  • इसमें भाग लेने वालों द्वारा 'सीखने की विस्तारित दृष्टि' (Expanded Vision of Learning) का समर्थन किया गया और प्राथमिक शिक्षा को व्यापक बनाने तथा दशक के अंत तक निरक्षरता को कम करने का संकल्प लिया गया।
  • दस वर्ष बाद कई देशों के साथ राष्ट्रीय सरकारों, नागरिक समाज समूहों और विकास एजेंसियों के एक व्यापक गठबंधन ने डकार, सेनेगल में फिर से मुलाकात की और वर्ष 2015 तक EFA लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की।
    • उन्होंने छः प्रमुख शिक्षा लक्ष्यों की पहचान की जिनका उद्देश्य वर्ष 2015 तक सभी बच्चों, युवाओं और वयस्कों की सीखने की ज़रूरत को पूरा करना है (जैसे- डकार फ्रेमवर्क)।

वैश्विक शिक्षा बैठक घोषणा, 2020

  • वर्ष 2020 वर्ष GEM घोषणा ने SDG-4 पर प्रगति में तेज़ी लाने के लिये और कोविड-19 महामारी से लड़ने हेतु तत्काल कार्रवाई हेतु पाँच प्राथमिकताओं की पहचान की:
    • शिक्षा का वित्तपोषण;
    • स्कूल को पुनः खोलना;
    • सहायक शिक्षकों को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करना;
    • कौशल में निवेश करना; तथा
    • डिजिटल विभाजन को कम करना।
  • कोविड-19 संकट ने पूरे विश्व में वर्तमान शिक्षा प्रणालियों की कमज़ोरी और असमानता को प्रकट किया, जिससे लगभग सभी देशों में बड़े पैमाने पर स्कूल बंद होने से डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला।

SDG4

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्य राज्यों द्वारा वर्ष 2015 में सतत् विकास लक्ष्य, 2030 प्रयोजन को अपनाया गया।
    • इसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक 17 लक्ष्य और 169 विशिष्ट लक्ष्य प्राप्त करने के लिये निर्धारित हैं।
    • SDG कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।
  • SDG4 सभी के लिये समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा तथा आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करता है।

SDG4

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

B.1.617:भारतीय डबल म्यूटेंट स्ट्रेन

चर्चा में क्यों?

भारत में महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले ‘डबल म्यूटेंट’ (Double Mutant) वायरस को औपचारिक रूप से B.1.617 के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • उत्परिवर्तन एक जीवित जीव या किसी वायरस के कोशिका के आनुवंशिक पदार्थ (जीनोम) में एक परिवर्तन है जो कम या अधिक रूप से स्थायी होता है और जिसे कोशिका या वायरस के प्रतिरूपों में प्रेषित किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • डबल म्यूटेंट (B.1.617):
    • इससे पहले ‘जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम (INSACOG)' द्वारा वायरस के नमूनों के एक खंड की जीनोम अनुक्रमण प्रक्रिया से दो उत्परिवर्तनों, E484Q और L452R की उपस्थिति का पता चला।
      • हालाँकि ये उत्परिवर्तन व्यक्तिगत रूप से कई देशों में पाए गए हैं, पहली बार भारत में इन दोनों उत्परिवर्तन की उपस्थिति कोरोनोवायरस जीनोम में पाई गई है।
    • भारत में इसके ‘डबल म्यूटेंट’ को वैज्ञानिक रूप से B.1.167 नाम दिया गया है। हालाँकि इसे अभी तक ‘वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न ’के रूप में वर्गीकृत किया जाना है।
    • अब तक केवल तीन वैश्विक ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ की पहचान की गई है: यू.के. (B.1.1.7), दक्षिण अफ्रीकी (B.1.351) और ब्राज़ील (P.1)।
    • INSACOG के अनुसार, भारत में कोरोनावायरस रोगियों से प्राप्त जीनोम के नमूने का अनुक्रमण करते हुए B.1.617 के संक्रमण को पहली बार दिसंबर, 2020 में भारत में देखा गया था।
    • वर्तमान में B.1.617 उत्परिवर्तन की विशेषता वाले लगभग 70% जीन अनुक्रम भारत से संबंधित हैं। 
    • इसके बाद यूनाइटेड किंगडम (23%), सिंगापुर (2%) और ऑस्ट्रेलिया (1%) हैं।

 ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न ’:

  • ये ऐसे वेरिएंट हैं, जिनके संबंध में संक्रामकता में वृद्धि तथा अधिक गंभीर बीमारी (अस्पतालों में भर्ती होने वाले मामलों में वृद्धि) पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी द्वारा न्यूनीकरण में कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक ​​पता लगाने में विफलता से संबंधित प्रमाण उपस्थित हैं।
  • म्यूटेंटस से जुड़े मुद्दे:
    • ‘म्यूटेंट वायरस’ कुछ देशों में कोविड-19 मामलों के बड़े स्पाइक्स से जुड़ा हुआ है।
    • यह वायरस को और अधिक संक्रामक होने के साथ-साथ एंटीबॉडी भी बनने में सक्षम बनाता है। 
    • एक अन्य मुद्दा टीके की प्रभावकारिता में कमी से भी जुड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों ने विशेष रूप से फाइज़र, मॉडर्ना और नोवावैक्स द्वारा कुछ वैरिएंट्स में टीकों की कम प्रभावकारिता को दिखाया है। 
      • हालाँकि इसके बावजूद टीके काफी सुरक्षात्मक बने हुए हैं।
  • अन्य उत्परिवर्तन
    • INSACOG के अनुसार, दो उत्परिवर्तन (E484Q और L452R) के अलावा एक तीसरा महत्त्वपूर्ण उत्परिवर्तन, P614R भी है।
    • सभी तीनों उत्परिवर्तन स्पाइक प्रोटीन पर हैं। स्पाइक प्रोटीन वायरस का वह हिस्सा है जिसका उपयोग वह मानव कोशिकाओं में घुसने के लिए करता है।
      • वायरस की स्पाइक प्रोटीन जोखिम को बढ़ा सकती है और वायरस को प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने की अनुमति दे सकती है।
  • टी-कोशिका प्रतिरोधी
    • L452R कोरोनवायरस टी-कोशिकाओं के लिये प्रतिरोधी बन सकता है, यह वायरस संक्रमित कोशिकाओं को लक्षित करने और नष्ट करने के लिये आवश्यक कोशिकाओं का एक वर्ग है।
      • टी-कोशिकाएँ एंटीबॉडीज़ से भिन्न होती हैं जो कोरोनोवायरस कणों को अवरुद्ध करने और इसे फैलने से रोकने में उपयोगी होती हैं। 

टी-कोशिकाएँ

  • एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है और अनुकूली प्रतिरक्षा के लिये अत्यंत आवश्यक है।
  • ये विशिष्ट रोगजनकों के लिये शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का निर्माण करती हैं। 
  • टी-कोशिकाएँ सैनिकों की तरह व्यवहार करती हैं जो लक्षित हमलावर को खोजकर नष्ट कर देती हैं।

जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम

  • INSACOG जीनोमिक विविधता की निगरानी के लिये एक बहु-प्रयोगशाला, बहु-एजेंसी और एक अखिल भारतीय नेटवर्क है।
  • यह समझने में मदद करता है कि वायरस कैसे फैलता और विकसित होता है।
  • जीनोमिक निगरानी,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर रोगजनक संचरण और विकास पर नज़र रखने के लिये जानकारी का एक समृद्ध स्रोत उत्पन्न कर सकती है।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड -19 के दौरान महासागरीय ध्वनिक

चर्चा में क्यों?

कोविड -19 महामारी के दौरान लॉकडाउन और आर्थिक गतिविधियों (जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार) के रुकने की वजह से पृथ्वी की सतह पर ध्वनि प्रदूषण कम हो गया था।

  • महासागरों में पिछले कई महीनों से मानव निर्मित ध्वनि प्रदूषण (एन्थ्रोफोनी) काफी हद तक कम हो गया है।

प्रमुख बिंदु:

महासागरों में ध्वनिक:

  • महासागरीय  ध्वनिक के तीन व्यापक घटक हैं:
    • जियोफोनी (Geophony) : गैर-जैविक प्राकृतिक घटनाओं (जैसे: भूकंप, लहरों और बुदबुदाहट) से उत्पन्न ध्वनियाँ।
    • बायोफोनी(Biophony): समुद्री जीवों द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ ।
    • एंथ्रोफोनी(Anthrophony): मानव द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ (प्रमुख रूप से समुद्री जहाज़ों से होने वाली ध्वनि )।
  • वर्ष 2021 में साइंस जर्नल में प्रकाशित ‘द साउंडस्केप ऑफ एंथ्रोपोसीन ओशन रिपोर्ट’ के अनुसार, औद्योगिक युग से पहले जियोफोनी और बायोफोनी महासागरों के साउंडस्केप पर हावी थे।
    • हालाँकि अब एंथ्रोफोनी इन प्राकृतिक घटकों के साथ हस्तक्षेप करती है और इन्हें बदल देती  है।

आधुनिक समय में ध्वनि का स्तर:

  • वर्तमान भूगर्भीय युग के महासागर (एंथ्रोपोसीन युग , जब मानव निर्मित व्यवधान काफी हद तक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं) पूर्व-औद्योगिक समय के महासागरों की  तुलना में अधिक प्रदूषणकारी(ध्वनि) हैं।  
  • महामारी के शुरूआती दौर में, समुद्री ध्वनियों की निगरानी के समय कई स्थानों पर एक डेसीबल (डीबी) की गिरावट दर्ज की गई। 
  • कनाडा के ‘नेपच्यून ओशन ऑब्ज़र्वेटरी’ के एंडेवर नोड के हाइड्रोफोंस में  प्रतिवर्ष औसतन 1.5dB  की कमी परिलक्षित हुई, जिसका अभिप्राय 100 हर्ट्ज पर साप्ताहिक शोर शक्ति का वर्णक्रमीय घनत्व।

एंथ्रोफोनी का प्रभाव

  • एंथ्रोफोनी का अल्पावधि उपयोग समुद्री जीवों द्वारा उत्पन्न श्रवण संकेतकों की पहचान करने, खाद्य सामग्री में उनकी क्षमता को कमज़ोर करने, अन्य शिकारी जीवों से बचने के लिये किया जाता है|
  • लंबे समय तक इसका उपयोग, समुद्री प्रजातियों की आबादी को कम कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय शांत महासागर प्रयोग (IQOE)

  • यह अनुसंधान, निरीक्षण और प्रसारण  गतिविधियों के जरिये समुद्री जीवों और समुद्री जीवों पर पड़ने वाले ध्वनि के प्रभावों को समझने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम की अवधि 2015-2025 तक निर्धारित है I IQOE टीम ने कोविड -19 महामारी के दौरान बड़ी मात्रा में आँकडों को एकत्रित किया है।
  • IQOE महासागर ध्वनिक डेटा को अधिक तुलनीय बनाने की विधियाँ विकसित कर रहा है। इन आँकडों से  महासागरीय ध्वनि का आकलन करके और उन पर COVID-19 महामारी के प्रभावों की तलाश करने के लिये एक वैश्विक डेटा सेट में संकलित किया जाएगा।
  • IQOE ने दुनिया भर के महासागरों में 200 से अधिक गैर-सैन्य हाइड्रोफोन (समुद्री सतह के माइक्रोफोन) के एक नेटवर्क की पहचान की है।
    • इस परियोजना के नेटवर्क में अधिकांश हाइड्रोफोन संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के तटों पर स्थित हैं । अब दुनिया के कई अन्य हिस्सों (विशेष रूप से यूरोप में) में इनकी उपस्थिति बढ़ रही है।
  • इन हाइड्रोफोन (जो दूरस्थ आवृत्ति के संकेतों की भी पहचान करते है) में व्हेल और अन्य समुद्री जानवरों के साथ-साथ मानव गतिविधियों से उत्पन्न ध्वनियों को भी रिकॉर्ड किया गया है।

हाइड्रोफ़ोन

  • जिस तरह एक माइक्रोफोन हवा में उपस्थित ध्वनि को एकत्र करता है, उसी प्रकार से एक हाइड्रोफोन पानी के नीचे ध्वनिक संकेतों का पता लगाता है ।
  • अधिकांश हाइड्रोफोन सिरेमिक उत्पादों पर आधारित होते हैं जो जलदाब  परिवर्तन के कारण एक लघु विद्युत प्रवाह का उत्पादन करते हैं।
  • जब  एक सिरेमिक (चीनी मिटटी से निर्मित) हाइड्रोफोन समुद्र में डूबता है तो कई तरह की आवृत्तियों पर लघु विद्युत का  संकेत देता है क्योंकि यह चारों तरफ से पानी के नीचे उपस्थित ध्वनियों के संपर्क में होता है।
  • इन विद्युत संकेतों को परिवर्द्धित और रिकॉर्ड करके, हाइड्रोफोन बड़ी सटीकता के साथ महासागरीय ध्वनियों का मापन करते हैं।

Sofar-Channel

स्रोत- डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फिलिस्तीन के लिये अमेरिका की वित्तीय सहायता

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी पूर्ववर्ती नीति में महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए, फिलिस्तीन के लिये 235 मिलियन डॉलर से संबंधित योजना की बहाली की घोषणा की है।

  • अमेरिकी प्रशासन ने इससे पूर्व भी फिलिस्तीन को कोरोना वायरस राहत सहायता के तौर पर 15 मिलियन डॉलर देने की घोषणा की थी।

प्रमुख बिंदु

वित्तीय सहायता 

  • अमेरिका द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता में 75 मिलियन डॉलर वेस्ट बैंक और गाजा की आर्थिक मदद के लिये, 10 मिलियन डॉलर ‘यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ (USAID) के ‘शांति निर्माण’ कार्यक्रमों के लिये और 150 मिलियन डॉलर संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी (UNRWA) को मानवीय सहायता के लिये प्रदान किये जाएंगे।
    • UNRWA फंड के तहत पश्चिम एशिया में रहने वाले कम-से-कम 5,00,000 फिलिस्तीनी बच्चों के लिये शैक्षिक सहायता शामिल है।
    • पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन ने वर्ष 2018 में संगठन को दी जाने वाली सभी प्रकार की फंडिंग को समाप्त कर दिया था।
  • संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया है और उम्मीद ज़ाहिर की है इससे संयुक्त राष्ट्र को भी अपनी गतिविधियों के लिये अधिक धन मिल सकेगा। ऐसे कई देश हैं, जिन्होंने अमेरिका द्वारा वित्तीय सहायता बंद किये जाने के बाद स्वयं भी UNRWA में योगदान को बंद कर दिया था या कम कर दिया था।
  • फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री ने इस कदम का स्वागत किया और इसे एक ‘नए राजनीतिक मार्ग’ के रूप में परिभाषित किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर आधारित फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और आकांक्षाओं को पूरा करता है।
    • हालाँकि इज़राइल ने वित्त सहायता की बहाली को लेकर आपत्ति ज़ाहिर की है।

इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद

  • इज़रायल और फिलिस्तीनियों के बीच दशकों पुराना विवाद पवित्र भूमि पर दावों में निहित है, और इस विवाद में सीमा विवाद, येरुशलम, सुरक्षा और फिलिस्तीनी शरणार्थियों आदि से संबंधित विषय शामिल हैं।
    • इज़राइल और फिलिस्तीन के मध्य संघर्ष का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1917 में उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिये ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन किया।
    • येरुशलम यहूदियों, मुस्लिमों और ईसाइयों की समान आस्था का केंद्र है। यहाँ ईसाईयों के लिये पवित्र सेपुलकर चर्च, मुस्लिमों की पवित्र मस्जिद और यहूदियों की पवित्र दीवार स्थित है।
  • वर्ष 1967 में हुए ‘सिक्स डे वॉर’ को दोनों देशों के मध्य चल रहे विवाद में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। इसे तीसरे अरब-इज़राइल युद्ध के रूप में भी जाना जाता है।
    • इज़राइल ने युद्ध के दौरान वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था और उसके बाद से इज़राइल ने इन क्षेत्रों में कई घर और बस्तियाँ बनाई हैं तथा वर्तमान में इन क्षेत्रों में 1 मिलियन से भी अधिक लोग रहते हैं।

अमेरिका की हालिया नीति

  • अमेरिकी दूतावास को येरुशलम में स्थानांतरित करने संबंधी वर्ष 2017 के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना की गई थी।
  • मध्य पूर्व शांति योजना: इस योजना का अनावरण जनवरी 2020 में तत्कालीन अमेरिकी सरकार द्वारा किया गया था।
    • अमेरिका की शांति योजना के अनुसार, येरुशलम को विभाजित नहीं किया जाएगा और यह ‘इज़राइल की संप्रभु राजधानी’ होगी, साथ ही इज़राइल वेस्ट बैंक के लगभग 30 प्रतिशत हिस्से का अधिग्रहण करेगा।
    • फिलिस्तीन ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया था और स्वयं को ओस्लो शांति समझौते के प्रमुख प्रावधानों से भी अलग कर लिया था, जो कि 1990 के दशक में इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच हुए समझौतों की एक शृंखला है।
  • वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।

भारत का पक्ष

  • भारत ने वर्ष 1950 में इज़राइल को मान्यता दी थी, हालाँकि उस समय दोनों देशों में औपचारिक राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं हुए थे, साथ ही भारत पहला गैर-अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलिस्तीनी जनता के एकमात्र और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता प्रदान की थी।
    • भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले प्रारंभिक देशों में से एक है।
  • वर्ष 2014 में, भारत ने गाजा में इज़राइल द्वारा किये जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये UNHRC के प्रस्ताव का समर्थन किया था, हालाँकि जाँच में समर्थन करने के बावजूद, भारत ने वर्ष 2015 में UNHRC में इज़राइल के विरुद्ध मतदान से स्वयं को अलग कर लिया था।
  • अपनी ‘लिंक वेस्ट पॉलिसी’ के हिस्से के रूप में, भारत ने वर्ष 2018 में अपनी विदेश नीति के तहत इज़राइल और फिलिस्तीन को परस्पर स्वतंत्र रूप से परिभाषित करने के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी।
  • जून 2019 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़राइल द्वारा पेश किये गए एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें फिलिस्तीन के गैर-सरकारी संगठन को परामर्शात्मक दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
  • अभी तक भारत ने आत्मनिर्भर फिलिस्तीन के लिये अपने ऐतिहासिक समर्थन बनाए रखने और इज़राइल के साथ सैन्य, आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करने के माध्यम से संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है।

नोट

  • वेस्ट बैंक: वेस्ट बैंक इज़राइल और जॉर्डन के मध्य अवस्थित है। इसका एक सबसे बड़ा शहर ‘रामल्लाह’ (Ramallah) है, जो कि फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। 
    • इज़राइल ने वर्ष 1967 के युद्ध में इस पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
  • गाजा पट्टी: यह इज़राइल और मिस्र के मध्य स्थित है। इज़राइल ने वर्ष 1967 में गाजा पट्टी का अधिग्रहण किया था, किंतु गाजा शहर के अधिकांश क्षेत्रों के नियंत्रण तथा इनके प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण का निर्णय ओस्लो समझौते के दौरान किया गया था। 
    • वर्ष 2005 में इज़राइल ने इस क्षेत्र से यहूदी बस्तियों को हटा दिया यद्यपि वह अभी भी इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पहुँच को नियंत्रित करता है।
  • गोलन हाइट्स: गोलन हाइट्स एक सामरिक पठार है जिसे इज़राइल ने वर्ष 1967 के युद्ध में सीरिया से छीन लिया था। 
    • अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर येरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़राइल का एक हिस्सा माना है।
  • फतह: 1950 के दशक के अंत में यासिर अराफात द्वारा स्थापित, ‘फतह’ सबसे बड़ा फिलिस्तीनी राजनीतिक गुट है। 
    • हमास के विपरीत, फतह एक धर्मनिरपेक्ष आंदोलन है, और इसने आंशिक तौर पर इज़राइल को मान्यता दी है, और शांति प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • हमास: अमेरिका की सरकार द्वारा हमास को एक आतंकवादी संगठन माना जाता है। वर्ष 2006 में, हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के विधायी चुनाव जीते थे।
    • इसने वर्ष 2007 में गाजा से ‘फतह’ को हटा दिया था, साथ ही इसने फिलिस्तीनी आंदोलन को भौगोलिक रूप से विभाजित कर दिया है।

Israel

आगे की राह

  • इज़राइल-फिलिस्तीन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण: शांतिपूर्ण समाधान के लिये संपूर्ण वैश्विक समुदाय को एक साथ आने की आवश्यकता है, हालाँकि एक शांतिपूर्ण समाधान के प्रति इज़राइल सरकार और अन्य सभी हितधारकों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है।
    • इस प्रकार एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों और इज़राइल के साथ बेहतर संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।
  • अब्राहम समझौते: इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान तथा मोरक्को के बीच हाल ही में हुए सामान्यीकरण समझौते, जिसे अब्राहम समझौते के रूप में जाना जाता है,को शांति स्थापित करने की दिशा में सही कदम माना जा सकता है।
    • सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते के अनुरूप दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के EEZ क्षेत्र में अमेरिकी गश्ती

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर में अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) में कार्यवाही करने पर अमेरिका का विरोध किया, जिसमें अमेरिका के इस दावे को खारिज कर दिया कि भारत का घरेलू समुद्री कानून अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।

प्रमुख बिंदु

मुद्दा:

  • अमेरिकी गतिविधियों के विषय में:
    • अमेरिका के सातवें बेड़े (US Seventh Fleet) ने घोषणा की कि उसका एक युद्धपोत यूएसएस जॉन पॉल जोन्स (DDG 53) ने भारत के EEZ के अंदर लक्षद्वीप द्वीप समूह के पश्चिम में भारत की पूर्व सहमति के बिना ‘नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही’ (Freedom of Navigation Operation) को अंज़ाम दिया है।।
  • सातवाँ फ्लीट:
    • यह अमेरिकी नौसेना के तैनात बेड़े में सबसे बड़ा है।
  • नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही:
    • इसके अंतर्गत अमेरिकी नौसेना तटवर्ती देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्र में जल मार्ग को बनाने का प्रयास करती है।
    • यह कार्यवाही विश्व भर में अपने नौपरिवहन अधिकारों और स्वतंत्रताओं को आगे बढ़ाने तथा इस्तेमाल करने की अमेरिकी नीति की पुष्टि करता है।
    • इस प्रकार के अभिकथन इस बात का संकेत देते हैं कि अमेरिका अन्य देशों के समुद्री दावों को स्वीकार नहीं करता है और इस प्रकार इन देशों द्वारा किये गए अपने दावों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में स्वीकार होने से रोकता है।
    • यह पहली बार है जब अमेरिकी नौसेना ने ऐसे ऑपरेशन का विवरण देते हुए एक सार्वजनिक बयान जारी किया है।

अमेरिका का पक्ष:

  • भारत चाहता है कोई अन्य देश उसके EEZ या महाद्वीपीय शेल्फ में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास करने से पूर्व उसकी अनुमति ले।
  • भारत का EEZ पर दावा अंतर्राष्ट्रीय कानून (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि, 1982) के विरुद्ध है।
  • नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही ने भारत के समुद्री दावों को चुनौती देकर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के अंतर्गत मान्यता प्राप्त अधिकारों, स्वतंत्रता और समुद्र के वैध उपयोग इस्तेमाल करने के अधिकार को बरकरार रखा।

भारत का विरोध:

  • भारत का मानना है कि समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea) अन्य देशों को किसी देश की सहमति के बिना उसके EEZ क्षेत्र में और महाद्वीपीय शेल्फ में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास (विशेष रूप से हथियारों या विस्फोटकों का इस्तेमाल करने वाले) करने का अधिकार नहीं देता है।
  • भारत से अनुमति की ज़रूरत केवल तभी है जब EEZ में कोई "सैन्य युद्धाभ्यास" किया जाना हो, लेकिन इस मार्ग से सिर्फ गुज़रने पर अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है।
    • सैन्य युद्धाभ्यास शब्द कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।
  • अमेरिका के सातवीं फ्लीट की यह कार्यवाही भारतीय कानून (प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ, विशेष आर्थिक क्षेत्र और अन्य समुद्री क्षेत्र अधिनियम, 1976) का उल्लंघन है।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि, 1982

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के विषय में:

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिये एक नियामक ढाँचा प्रदान करती है।
  • यह संधि समुद्री संसाधनों और समुद्री पर्यावरण के संरक्षण तथा उनका एक समान उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करती है।
  • यह इस अवधारणा पर आधारित है कि किसी भी देश की सभी समुद्र समस्याओं का आपस में गहरा संबंध है और इसे समग्र रूप से संबोधित करने की आवश्यकता है।

अभिपुष्टि:

  • इस संधि को मान्यता देने के लिये दिसंबर 1982 में मोंटेगो की खाड़ी, जमैका में सबके सामने रखा गया।
  • यह संधि वर्ष 1994 में अपने अनुच्छेद 308 के अनुसार लागू हुई।
    • वर्तमान में यह समुद्री कानून से संबंधित सभी मामलों के लिये एक वैश्विक मान्यता प्राप्त कानून है।
  • इस अधिवेशन को 168 पक्षों द्वारा अनुमोदित किया गया है, जिसमें 167 राज्य (164 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों के अलावा इसके पर्यवेक्षक राज्य यथा फिलिस्तीन, कुक आइलैंड्स और नीयू) और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 14 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किया लेकिन अधिवेशन की पुष्टि नहीं की है।
  • भारत ने वर्ष 1995 में इसकी पुष्टि की, जबकि अमेरिका ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र

  • UNCLOS के अनुसार, EEZ भौगोलिक सीमा से अलग एक सामुद्रिक क्षेत्र है, जो विशेष कानूनी शासन के अधीन है, जिसके अंतर्गत तटवर्ती देशों और अन्य देशों के अधिकार क्षेत्र इस कानून द्वारा परिभाषित हैं।
  • यह सीमा आमतौर पर तट से 200 समुद्री मील तक फैली हुई है, जिसके भीतर तटीय राज्यों को अन्वेषण करने और इस क्षेत्र के संसाधनों (जीवित और गैर-जीवित दोनों) का दोहन, संरक्षण और प्रबंधन करने का अधिकार होता है।

Exclusive-Economic-Zone

भारतीय कानून

प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ, विशेष आर्थिक क्षेत्र और अन्य समुद्री क्षेत्र अधिनियम, 1976:

  • भारत का EEZ क्षेत्र उसके प्रादेशिक समुद्र (Territorial Sea) से अलग है लेकिन उससे सटा हुआ है, जिसकी सीमा आधार सीमा से दो सौ समुद्री मील दूर तक है।
  • भारत का प्रादेशिक समुद्र बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी तक फैला हुआ है।
  • प्रादेशिक जल के बीच से सभी विदेशी जहाज़ों (उप-मरीन, पनडुब्बी और युद्धपोत) को इनोसेंट पैसेज (Innocent Passage) पर जाने का अधिकार होता है।
    • इनोसेंट पैसेज: यह वह मार्ग है जो भारत की शांति, अच्छी व्यवस्था या सुरक्षा के प्रतिकूल नहीं है।

स्रोत: द हिन्दू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-सेशेल्स

चर्चा में ?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री और सेशेल्स के राष्ट्रपति के मध्य एक आभासी बैठक संपन्न हुई।

Seychelles

प्रमुख बिंदु:

बैठक में संपन्न कार्यक्रम:

  • संयुक्त उद्घाटन:
    • सेशल्स की राजधानी माहे में कुल 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से निर्मित नए मजिस्ट्रेट भवन (New Magistrates’ Court), 3.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर का 1 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र (Solar Power Plant) तथा सेशेल्स में 10 सामुदायिक विकास परियोजनाओं (Community Development Projects) का उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री और सेशेल्स के राष्ट्रपति द्वारा किया गया।  
      • इस सभी परियोजनाओं को भारत की मदद से पूरा किया गया है।
    • भारत द्वारा सेशेल्स में अब तक 29 छोटी जन-उन्मुख विकास परियोजनाओं (Small People-Oriented Development Projects )  को पूर्ण किया जा चुका गया है इनके अलावा 1 मेगावाट की  सौर परियोजना को 146 सरकारी भवनों को घरों में सौर प्रणाली स्थापित करने के लिये विकसित किया गया है।
    • यह सौर संयंत्र वर्ष भर में लगभग 400 घरों की बिजली की ज़रूरतों को पूरा करेगा।
  • तीव्र गश्ती पोत:
    • भारत द्वारा ‘पीएस ज़ोरोस्टर’ (PS Zoroaster) जो कि एक तीव्र गश्ती पोत (Fast Patrol Vessel) है, द्वीपीय राष्ट्र सेशेल्स को सौंपा गया है। 
    • कुल 100 करोड़ की लागत से निर्मित 48.9 मीटर लंबा तथा 35 नॉट गति वाले इस गश्ती पोत का निर्माण ‘गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियरिंग’ (रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में) द्वारा किया गया है।
    • इस पोत का इस्तेमाल बहुउद्देश्यीय संचालन हेतु किया जाएगा जिसमें गश्त, तस्करी विरोधी और अवैध शिकार विरोधी अभियान और खोज तथा बचाव कार्य शामिल होंगे।
    • भारत पहले भी वर्ष 2005, 2014 और 2016 में सेशेल्स को इस प्रकार के पोत दे चुका है।

सेशेल्स के प्रति भारत का रुख: 

  • सेशेल्स भारत की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) पहल के केंद्र में है।
  • भारत की सुरक्षा क्षमताओं को विकसित करने और अवसंरचनात्मक और विकासात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में सेशेल्स की भागीदार का होना भारत के लिये सम्मान की बात है।

भारत के प्रति सेशेल्स का रुख: 

  • भारत सेशेल्स का एक विश्वसनीय और भरोसेमंद साझेदार है।
  • अप्रैल, 2021 के अंत तक अर्थव्यवस्था के खुलने तथा भारत द्वारा सेशेल्स को कोविड-19 टीकों की 50,000 खुराक की मदद की जा चुकी है।
    • सेशेल्स भारत को कोविड -19 की वैक्सीन उपलब्ध कराने वाला पहला देश था। 

भारत-सेशेल्स संबंध: 

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1976 में सेशेल्स ने अपनी स्वतंत्रता के बाद, भारत के साथ अपने  राजनयिक संबंध स्थापित किये है ।
  • जब से सेशेल्स को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, तब से सेशेल्स के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भारतीय नौसेना के जहाज़ INS नीलगिरि द्वारा हिस्सा लिया जा रहा है।
    • तब सेशेल्स के राष्ट्रीय दिवस समारोह में भारतीय सैन्य भागीदारी की परंपरा आज तक जारी है।
  • वर्ष 1979 में भारत द्वारा विक्टोरिया (सेशेल्स) में एक मिशन प्रारंभ किया गया जोकि ‘दार-ए-सलाम’ (तंज़ानिया) में स्थापित उच्चायुक्त के साथ समवर्ती रूप से संबद्ध था।
  • वर्ष 1987 में भारत द्वारा अपने पहले स्थायी उच्चायुक्त को सेशेल्स में नियुक्त किया गया था, जबकि सेशेल्स ने वर्ष 2008 के प्रारंभ में नई दिल्ली में अपना स्थायी मिशन खोला।

आर्थिक संबंध:

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान भारत द्वारा सेशेल्स को 84.49 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सामान का निर्यात और 5.27 मिलियन अमरीकी डॉलर के सामान का आयात किया गया है।
  • अगस्त, 2015 में भारत और सेशेल्स के मध्य कर सूचना विनिमय समझौते (Tax Information Exchange Agreement- TIEA) पर हस्ताक्षर किये गए थे। सेशेल्स भी दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (Double Tax Avoidance Agreement- DTAA) पर हस्ताक्षर करने का इच्छुक है।

ऊर्जा और पर्यावरण:

  • अगस्त 2015 में भारत और सेशेल्स के मध्य ब्लू इकोनॉमी प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • हाल ही में, भारत को हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission) के पर्यवेक्षक के रूप में स्वीकार किया गया है, सेशेल्स भी जिसका सदस्य है।
  • सितंबर 2017 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA) फ्रेमवर्क समझौते के अनुसमर्थन के साथ, सेशेल्स आधिकारिक रूप से ISA के संस्थापक सदस्यों में शामिल हो गया है।
    • ISA भारत की एक पहल है। 

सांस्कृतिक संबंध :

  • सेशेल्स में भारतीय प्रवासी की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है, जिसके कारण दो ही देशों की सरकारों के समर्थन से दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक संपर्क मुख्य रूप से समुदाय-संचालित (Community-Driven) रहे हैं।
  • सेशेल्स में भारतीय मूल के व्यक्तियों  (PIO) की पहल पर, कई भारतीय सांस्कृतिक समूह नियमित रूप से सेशेल्स में अपनी विशेष प्रस्तुति देते हैं।
  • जून 2018 में दोनों देशों के मध्य मित्रता और सद्भाव को चिह्नित करने हेतु भारत द्वारा सेशेल्स के साथ सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम (Cultural Exchange Programme- CEP) पर हस्ताक्षर किये गए थे।

भारतीय समुदाय:

  • सेशेल्स के नागरिकों के साथ यहाँ भारतीय मूल के लोगों की संख्या लगभग 10,000 (या जनसंख्या का 11%) अनुमानित है, जो सेशेल्स की  96,000 (अप्रैल 2019) की कुल आबादी के साथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • ‘गेनफुल एम्प्लॉयमेंट परमिट’ (Gainful Employment Permits) वाले लगभग 10,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से ज़्यादातर निर्माण क्षेत्र, दुकान सहायकों और कुछ व्यवसायों में कामगार  के रूप में कार्य करते हैं।

रक्षा:

  • भारत और सेशेल्स के पास रक्षा और सुरक्षा सहयोग की एक विस्तृत रूपरेखा है, जो वर्षों से सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) में बढ़ती समुद्री डकैती और अन्य आर्थिक अपराधों के साथ और अधिक मज़बूत हुई है।
  • वर्ष 2015 में भारत द्वारा सेशेल्स में तटीय सुरक्षा हेतु छह तटीय निगरानी रडार प्रणाली (Coastal Surveillance Radar Systems) स्थापित किये गए।
  • सेशेल्स सरकार द्वारा भारतीय नौ-सेना को एक ओवरसीज़ बेस के निर्माण हेतु अज़म्पसन द्वीप (Assumption Island) को पट्टे पर दिया गया है।  
    • सेशेल्स के अज़म्पसन द्वीप पर बुनियादी  ढाँचे को विकसित करना भारत की सक्रिय समुद्री रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण  हिस्सा है क्योंकि यह हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर निगरानी रखता है।
    • भारत इस द्वीप पर  बुनियादी  ढाँचे को "रणनीतिक संपत्ति" के रूप में विकसित कर रहा है।

सागर: 

  • वर्ष 2015 में सागर (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल को शुरू किया गया था। यह हिंद महासागर क्षेत्र ( Indian Ocean Region- IOR) में भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
  • SAGAR पहल के माध्यम से भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत कर उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है।
  • इसके अलावा भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित कर हिंद महासागर क्षेत्र में एक समावेशी, सहयोगी और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान सुनिश्चित करना चाहता है।
  • सागर की प्रासंगिकता तब और अधिक हो जाती है जब इसे भारत की अन्य नीतियों के साथ जोडकर देखा जाता है, जैसे- एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy), प्रोजेक्ट सागरमाला (Project Sagarmala), प्रोजेक्ट मौसम (Project Mausam) जो कि भारत द्वारा ब्लू इकोनॉमी आदि पर ध्यान केंद्रित करती है। 

आगे की राह: 

  • सेशेल्स क्षेत्र में कई प्रमुख शक्तियों के निहित स्वार्थों के कारण यह एक रणनीतिक स्थान बना हुआ है, हालांकि अन्य देशों की तुलना में सेशेल्स में भारत की छवि काफी सकारात्मक है। 
  • समकालीन समय में सेशेल्स के भू-सामरिक महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है, बल्कि आने वाले समय में यह और अधिक बढ़ेगा जिस पर चीन अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है ऐसी स्थति में भारत को सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता है।
  • समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हुए नशीले पदार्थों की तस्करी, IUU (अवैध, बिना लाइसेंस और अनियमित) मछली पकड़ने, समुद्री डकैती और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने हेतु दोनों देशों को साझा प्रयासों को मज़बूत करने की भी आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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