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डेली न्यूज़

  • 12 Feb, 2020
  • 55 min read
भारतीय समाज

मानव तस्करी से प्रभावित व्यक्ति

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए लोगों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तस्करी और लैंगिक हिंसा के खिलाफ कार्य करने वाले कोलकाता स्थित एक तकनीकी संगठन ‘संजोग’ द्वारा ‘UNCOMPENSATE VICTESS’ नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • देश भर में पाँच वकीलों द्वारा दिये गए आवेदनों के आधार पर सूचना के अधिकार (Right to Information-RTI) के तहत तस्करों के चंगुल से बचाए गए लोगों को दिये गए मुआवज़े के बारे में जानकारी प्राप्त की गई।
  • उपर्युक्त रिपोर्ट में RTI के तहत दायर याचिका के जवाब में देश में मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए लोगों को दिये गए मुआवजे की खराब स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।
  • ये आँकड़े 25 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में मानव तस्करी की स्थिति के आधार पर एकत्रित किये गए हैं।

क्या कहती है NCRB की रिपोर्ट?

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 से 2018 के बीच देश में मानव तस्करी के कुल 35,983 मामले दर्ज किये गए।

‘संजोग’ द्वारा जारी रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी से छुड़ाए गए केवल 82 जीवित बचे लोगों को मुआवजा प्रदान करने की घोषणा की गई थी, जिनमें से केवल 77 व्यक्तियों को ही राहत राशि मिली।
  • इसका अर्थ है कि NCRB द्वारा बताए गए मानव तस्करी से बचे लोगों के कुल मामलों में से केवल 0.2% लोगों को पिछले आठ वर्षों में सरकार द्वारा मुआवजा प्रदान किया गया।

राज्यवार आँकड़े:

  • वर्ष 2011 और 2019 के बीच मानव तस्करी से छुड़ाए गए व्यक्तियों को दिये गए मुआवज़े के राज्यवार विवरण के अनुसार, दिल्ली में 47, झारखंड में 17, असम में 8, पश्चिम बंगाल में 3, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मेघालय में 2-2 और हरियाणा में एक व्यक्ति को मुआवजा प्रदान किया गया था।
  • इस रिपोर्ट में तस्करी से बचे लोगों की संख्या को भी दर्शाया गया है जिन्होंने पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरण में आवेदन किया था।
  • वर्ष 2011 और 2019 के बीच इस योजना के तहत 107 व्यक्तियों ने मुआवज़े के लिये आवेदन किया, जिनमें से 102 मामलों में न्यायालय ने अधिकारियों को मुआवज़ा जारी करने का निर्देश दिया।
  • पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत पश्चिम बंगाल में 28, कर्नाटक और झारखंड में 26 और असम में 14 व्यक्तियों ने मुआवज़े के लिये आवेदन किया, जबकि सात व्यक्तियों ने दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आवेदन किया।
  • दिल्ली का डेटा विसंगतिपूर्ण है क्योंकि यहाँ कुछ व्यक्तियों को घोषित मुआवज़े से अधिक मुआवज़ा मिला है।
  • मणिपुर में वर्ष 2019 की पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना में मानव तस्करी के मामले में कोई प्रविष्टि दर्ज नहीं हुई है।

दंड प्रक्रिया संहिता में प्रावधान:

  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357-A में अपराध पीड़ितों को मुआवज़ा देने का प्रावधान है।

अन्य प्रावधान:

  • निर्भया फंड (Nirbhaya Fund):
    • वर्ष 2012 में निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में राष्ट्रीय आक्रोश के बाद सरकार ने 1,000 करोड़ रूपए के फंड की घोषणा की थी जिसका उपयोग व्यक्तियों, बच्चों या वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा से निपटने के लिये किया जाता है।
    • निर्भया फंड के कुछ भाग को विक्टिम कॉम्पेंसेशन स्कीम (Victim Compensation Scheme) में प्रयोग किया जा रहा है जो कि पिछले कुछ वर्षों से बलात्कार, एसिड बर्न और ट्रैफिकिंग तथा अन्य प्रकार की हिंसा से बचे लोगों को मुआवज़ा देने की एक राष्ट्रीय योजना है।
    • मानव तस्करी के पीड़ितों को दी जाने वाली मुआवज़े की राशि अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती है।
  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी (National Legal Services Authority-NALSA) को एक मानकीकृत पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करने का निर्देश दिया था।

क्या हैं समस्याएँ?

  • पीड़ित लोगों को प्रदान किये जाने वाले मुआवज़े के संदर्भ में जानकारी में कमी और कानूनी सेवा प्राधिकरण की ओर से पहल की कमी के कारण बहुत कम लोगों की मुआवज़ा प्राप्त कर पाते हैं।
  • कानूनी सहायता पर कम सरकारी निवेश के कारण भी बहुत कम लोगों की मुआवज़े तक पहुँच स्थापित हो पाती है।
  • मानव तस्करों से छुड़ाए गए व्यक्ति अपने बचाव से पुनर्वास तक कई एजेंसियों के संपर्क में रहते हैं लेकिन उनमें से कोई भी उन्हें मुआवज़ा दिलवाने में सहायता करने के लिये कदम नहीं उठाता है।
  • राज्यों की लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी की मुआवज़े से संबंधित दावों पर प्रतिक्रिया धीमी रही है, और ये अथॉरिटी पीड़ितों पर ही सबूत एकत्रित करने का बोझ डालती हैं।

स्रोत- द हिंदू


भूगोल

गोदावरी-कावेरी लिंक परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

गोदावरी-कावेरी नदी जोड़ो परियोजना

मेन्स के लिये:

भारत में नदियों से संबंधित मामले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गोदावरी-कावेरी लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report-DPR) तैयार करने का कार्य पूरा किया गया ताकि परियोजना से संबंधित राज्य अपना पक्ष रख सकें।

मुख्य बिंदु:

  • DPR का कार्य राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) द्वारा पूरा किया गया है।

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी:

  • NWDA जल शक्ति मंत्रालय में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी।
  • इसकी स्थापना का उद्देश्य केंद्रीय जल आयोग द्वारा तैयार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National perspective plan) के प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को ठोस आकार देना है ।
  • यह प्रायद्वीपीय घटक के संबंध में विस्तृत अध्ययन, सर्वेक्षण और जाँच करता।
  • यह अंतर-बेसिन जल अंतरण अर्थात नदी जोड़ो योजना को व्यावहारिक बनता है।

परियोजना से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • गोदावरी (इनचम्पल्ली / जनमपेट) - कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक परियोजना में 3 लिंक शामिल हैं:
    1. गोदावरी (इंचमपल्ली/जनमपेट) - कृष्णा (नागार्जुनसागर)
    2. कृष्णा (नागार्जुनसागर) - पेन्नार (सोमाशिला Somasila)
    3. पेनार (सोमाशिला) - कावेरी
  • प्रारूप के अनुसार, लगभग 247 TMC (Thousand Million Cubic Feet) पानी को गोदावरी नदी से नागार्जुनसागर बाँध (लिफ्टिंग के माध्यम से) और आगे दक्षिण में भेजा जाएगा जो कृष्णा, पेन्नार और कावेरी बेसिनों की जल आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
  • यह परियोजना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम, नेल्लोर, कृष्णा, गुंटूर और चित्तूर ज़िलों के 3.45 से 5.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी।
  • परियोजना की अनुमानित लागत वर्ष 2018-19 में 6361 करोड़ रुपए थी।
  • संबंधित राज्यों की सर्वसम्मति से DPR तैयार कर आवश्यक वैधानिक मंज़ूरी प्राप्त होने के बाद ही इस परियोजना के कार्यान्वयन का चरण पूरा हो पाएगा।

परियोजना से जुड़ी नदियों का विवरण:

  • गोदावरी नदी
    • उद्गम स्थल: यह महाराष्ट्र में नासिक के पास त्रयंबकेश्वर से निकलती है।
    • अपवाह बेसिन: इस नदी बेसिन का विस्तार महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पुद्दुचेरी के कुछ क्षेत्रों में है। इसकी कुल लंबाई लगभग 1465 किमी. है।
    • सहायक नदियाँ: प्रवरा, पूर्णा, मंजरा, वर्धा, प्राणहिता (वैनगंगा, पेनगंगा, वर्धा का संयुक्त प्रवाह), इंद्रावती, मनेर और सबरी।
  • कृष्णा नदी
    • उद्गम स्थल: इसका उद्गम स्थल महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के पास होता है।
    • अपवाह बेसिन: यह नदी चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। नागार्जुनसागर बाँध इसी नदी पर स्थित है।
    • सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, मालप्रभा, कोयना, भीमा, घाटप्रभा, यरला, वर्ना, बिंदी, मूसी और दूधगंगा।
  • पेन्नार नदी
    • उद्गम स्थल: कर्नाटक के चिकबल्लापुर ज़िले में नंदी पहाड़ से।
    • अपवाह बेसिन: यह कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
    • सहायक नदियाँ: जयमंगली, कुंदरू, सागरलेरू, चित्रावती, पापाघनी और चीयरू।
  • कावेरी नदी
    • उद्गम स्थल: यह कर्नाटक में पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरी पहाड़ से निकलती है।
    • अपवाह बेसिन: यह कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह नदी एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती है, जिसे ‘दक्षिण भारत का बगीचा’ (Garden of Southern India) कहा जाता है।
    • सहायक नदियाँ: अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी, भवानी, हरंगी आदि।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक अंतराल

प्रीलिम्स के लिये

महिलाओं और बालिकाओं की पहुँच से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय दिवस

मेन्स के लिये

विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक अंतराल के संबंध में प्रमुख बिंदु व कारण

चर्चा में क्यों?

प्रतिवर्ष 11 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की पहुँच से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Women and Girls in Science) मनाया जाता है।

पृष्ठभूमि

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 22 दिसम्बर 2015 को एक संकल्प पारित कर विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की पहुँच से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय दिवस का शुभारंभ किया गया। यह विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की भूमिका का मूल्यांकन करेगा।
  • इसका क्रियान्वयन यूनेस्को और यूएन वुमेन के सहयोग से कई अन्य अंतर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं के द्वारा सामूहिक रूप से किया जा रहा है।

उद्देश्य

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की समान पहुँच एवं भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • इसके अतिरिक्त यह लैंगिक अंतराल को कम करने तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी कार्य करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व के महान वैज्ञानिक और गणितज्ञों की सूची में कुछ महिलाओं का नाम प्रमुखता से लिया जाता है परंतु उन्हें विज्ञान से जुड़े उच्च अध्ययन क्षेत्रों में शीर्ष वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल करने वाले अपने पुरुष समकक्षों के सापेक्ष कम प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
  • यूनेस्को द्वारा वैश्विक रूप से विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पर तैयार की गई वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्त्ताओं में सिर्फ 28.8% महिलाएँ हैं। यह शोधकर्त्ताओं को "नए ज्ञान की अवधारणा या निर्माण में लगे पेशेवरों" के रूप में परिभाषित करता है।
  • भारत के संदर्भ में शोध के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की भागीदारी गिरकर 13.9% पर पहुँच गई है।
  • वर्ष 1901 से 2019 के बीच भौतिकी, रसायन और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 616 विजेताओं को 334 नोबेल पुरस्कार दिये गए हैं, जिनमें से 20 नोबेल पुरस्कार सिर्फ 19 महिलाओं को प्राप्त हुए हैं।
  • वर्ष 2019 तक भौतिकी के क्षेत्र में 3 महिलाओं, रसायन के क्षेत्र में 5 महिलाओं तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 12 महिलाओं को नोबेल पुरस्कार प्रदान किये गए हैं, जिनमें मैडम क्यूरी को भौतिकी व रसायन विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
  • वर्ष 2019 में अमेरिकी गणितज्ञ केरेन उहलेनबेक (Karen Uhlenbeck) गणित के क्षेत्र का प्रतिष्ठित ‘एबेल पुरस्कार (Abel Prize)’ प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं।
  • वर्ष 1936 से 2019 के बीच 59 पुरुष समकक्षों के सापेक्ष वर्ष 2014 में फील्ड्स मेडल प्राप्त करने वाली ईरान की एकमात्र महिला गणितज्ञ मरयम मिर्जाखानी (Maryam Mirzakhani) थी।

विज्ञान के पाठ्यक्रम में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

  • यूनेस्को के अनुसार, वर्ष 2014 से 2016 के बीच केवल 30% छात्राओं ने उच्च शिक्षा में STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) से संबंधित क्षेत्रों का चयन किया है।
  • छात्राओं की नामांकन दर सूचना प्रोद्योगिकी (3%), प्राकृतिक विज्ञान, गणित, सांख्यिकी (5%) तथा इंजीनियरिंग व संबंधित क्षेत्रों (8%) में अपेक्षाकृत रूप से कम है।
  • भारत में वर्ष 2016-17 की नीति आयोग की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2015-16 तक पिछले पांँच वर्षों में विभिन्न विषयों में महिला नामांकन की तुलना की गई है।
  • वर्ष 2015-16 में स्नातक के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में 15.6% नामांकन दर के सापेक्ष छात्राओं की भागीदारी 9.3% रही। वहीं चिकित्सा विज्ञान में नामांकन दर 4.3% रही।
  • रिपोर्ट के अनुसार कला के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्राथमिकता प्रदर्शित की परंतु वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2015-16 के बीच विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ा है।
  • रिपोर्ट में ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि 620 से अधिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों (IIT, NIT, ISRO और DRDO समेत) में महिलाओं की उपस्थिति वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच 20.0%, पोस्ट-डॉक्टोरल फैलोशिप में 28.7% और पीएचडी विद्वानों के बीच 33% है।

विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक अंतराल क्यों?

  • विभिन्न अध्ययनों में यह पाया गया है कि बालिकाएँ स्कूल में गणित और विज्ञान-उन्मुख विषयों में उत्कृष्टता प्राप्त करती हैं लेकिन आत्मविश्वास की कमी के कारण इन विषयों को उच्च शिक्षा के स्तर पर नहीं अपनाती हैं, जबकि बालकों में यह आत्मविश्वास होता ​​है कि वे बेहतर कर सकते हैं। यही आत्मविश्वास उन्हें उच्च शिक्षा के स्तर पर गणित और विज्ञान-उन्मुख विषय अपनाने के लिये प्रेरित करता है।

आगे की राह

  • नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि विज्ञान उन्मुख विषयों में महिलाओं के प्रवेश की समस्या प्रत्येक क्षेत्र में एक समान नहीं है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्कूल स्तर पर बालिकाओं के बीच इंजीनियरिंग या भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान जैसे विषयों को लोकप्रिय बनाने के लिये हस्तक्षेप किया जा सकता है।
  • बालिकाओं के बीच विज्ञान उन्मुख विषयों के प्रति आत्मविश्वास को बढ़ने के लिये गैर सरकारी संगठनों की सहायता प्राप्त की जा सकती है, जिससे उनकी समय-समय पर काउंसलिंग की जा सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

चिकित्सा उपकरणों को ‘औषधि’ का दर्जा

प्रीलिम्स के लिये

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के बारे में

मेन्स के लिये

नई अधिसूचना के प्रावधान और उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अधिसूचित किया है कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (Drugs and Cosmetics Act), 1940 की धारा-3 के अनुसार, 1अप्रैल 2020 से चिकित्सीय उपकरणों को ‘औषधि (Drugs)’ का दर्जा प्रदान कर दिया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • अधिनियम की धारा-3 के अनुसार, चिकित्सा उपकरणों में इम्प्लांटेबल चिकित्सीय उपकरणों जैसे घुटने के प्रत्यारोपण (Knee Implants), सीटी स्कैन (CT Scan), MRI उपकरण (MRI Equipment), डीफिब्रिलेटर (Defibrillators), डायलिसिस मशीन (Dialysis Machine), पीईटी उपकरण (PET Equipment), एक्स-रे मशीन (X-ray Machine) आदि शामिल हैं।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को उम्मीद है कि इन मशीनों की सहायता से गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • अधिसूचना के अनुसार, सभी चिकित्सा उपकरणों के निर्माताओं को अब आयात और बिक्री के लिये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ( Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO ) से इन उपकरणों को प्रमाणित करवाने की आवश्यकता होगी।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट कार्यालय और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के अंतर्गत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, नैदानिक परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940

  • भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act, 1940) औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री तथा संवितरण को विनियमित करता है।
  • इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसेंस के बिना औषधियों का स्टाॅक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता।
  • वर्ष 1940 में इस कानून की धारा-26 को संशोधित कर मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संस्थाओं को औषधि तथा प्रसाधन सामग्री का नमूना परीक्षण तथा विश्लेषण करने के लिये अधिकृत किया गया।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत तकनीकी मामलों पर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को परामर्श देने के लिये औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

सरोगेसी विनियमन विधेयक

प्रीलिम्स के लिये:

सरोगेसी विनियमन विधेयक

मेन्स के लिये:

सरोगेसी से जुड़े प्रमुख मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक प्रवर समिति (Select Committee) ने सरोगेसी विनियमन पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

मुख्य बिंदु:

  • इस प्रवर समिति का गठन राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में किया गया था।
  • प्रवर समिति ने ‘सरोगेसी विनियमन विधेयक, 2019’ पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

समिति की प्रमुख सिफारिशें:

  • विधेयक के ‘करीबी रिश्तेदारों’ (Close Relatives) वाले खंड को हटा दिया जाना चाहिये और किसी भी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट माँ बनने की अनुमति दी जानी चाहिये। साथ ही यदि उपयुक्त प्राधिकारी ने सरोगेसी को मंज़ूरी दे दी है तो अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिये।
  • वाणिज्यिक सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
  • 35-45 वर्ष आयु-वर्ग की तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को ‘सिंगल कमीशनिंग पैरेंट’ (Single Commissioning Parent) होने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • निःसंतान विवाहित जोड़ों के लिये पाँच वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को उस स्थिति में हटा देना चाहिये यदि चिकित्सा प्रमाण-पत्र यह प्रमाणित करता है कि वे गर्भधारण करने में असमर्थ हैं।
  • भारतीय मूल के व्यक्तियों को सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • समिति ने सिंगल कमीशन पैरेंट की परिभाषा में एकल पुरुष या महिलाओं को शामिल नहीं करने की सिफारिश है। इसका मतलब है कि तुषार कपूर, करण जौहर और एकता कपूर जैसे लोग बच्चों के लिये सरोगेसी मार्ग का उपयोग करने के पात्र नहीं होंगे।
  • प्रवर समिति द्वारा यह भी सिफारिश की गई है कि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक [Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill] को सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 से पहले लाया जाना चाहिये।

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक:

  • ART विधेयक को 2008 से बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य सभी आईवीएफ(IVF) क्लीनिकों और शुक्राणु बैंकों (Sperm Banks) को विनियमित करना है।
  • यह ART क्लीनिकों और युग्मक बैंकों (Gamete Banks) को भी पृथक करेगा।

पूर्व में संसदीय पैनल द्वारा विधेयक पर दी गई सिफ़ारिशें:

  • इस विधेयक की पहले भी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा जाँच की गई थी।
  • समिति ने सिफारिश की थी कि मुआवज़े की शर्त को अधिनियम में जोड़ा जाना चाहिये और ‘परोपकारी’ (altruistic) शब्द को ‘क्षतिपूर्ति’ (Compensated) शब्द से प्रतिस्थापित कर देना चाहिये।
  • ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ को युगल (Couple) की परिभाषा में शामिल करना चाहिये और उन्हें परिवार के भीतर एवं बाहर दोनों से सरोगेट चुनने की अनुमति होनी चाहिये।
  • ‘निकट संबंधी’ प्रावधान का पितृसत्तात्मक पारिवारिक संरचना में दुरुपयोग हो सकता है जहाँ इच्छुक दंपत्ति के करीबी रिश्तेदार को सरोगेट बनने के लिये मजबूर किया जा सकता है जो वाणिज्यिक सरोगेसी की तुलना में और भी अधिक शोषणकारी होगा।
  • ART और सेरोगेसी विधेयकों को अलग-अलग पेश करने के स्थान पर एक साथ पेश करना चाहिये तथा सरोगेसी विधेयक को ART विधेयक के एक भाग के रूप में शामिल करना चाहिये।

निष्कर्ष:

प्रवर समिति ने अधिकांश वही सिफारिशें पुनः पेश की हैं जिनको सरकार पहले ही खारिज कर चुकी है। सरकार प्रवर समिति की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये स्वतंत्र है, हालाँकि मूल विधेयक जिसकी अनेक विद्वानों ने रूढ़िवादी विधेयक कहकर आलोचना की थी, में अंततः कुछ प्रगतिशील संशोधन देखें जा सकते हैं।

स्रोत:द् हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी उत्पादों के आयात में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी

मेन्स के लिये:

भारत की ऊर्जा आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत द्वारा लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी उत्पादों का आयात बढ़कर वर्ष 2016 के स्तर का चार गुना हो गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत का लिथियम-आयन बैटरी आयात बिल वर्ष 2016-2018 के दौरान बढ़कर चार गुना हो गया जबकि संबंधित उत्पादों का आयात बिल लगभग तीन गुना से अधिक हो गया।
  • मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2016 में 175 मिलियन, 2017 में 313 मिलियन, 2018 में 712 मिलियन और 1 जनवरी 2019 से 30 नवंबर 2019 तक 450 मिलियन बैटरियों का आयात किया गया।
  • इन आयातों की लागत वर्ष 2016 की 383 मिलियन डाॅलर ( 2,600 करोड़ रूपए लगभग ) से बढ़कर वर्ष 2017 में 727.24 मिलियन डाॅलर (5,000 करोड़ रूपये लगभग), 2018 में 1254.94 मिलियन डाॅलर (8,700 करोड़ रूपये लगभग ) और 2019 में बढ़कर 929 मिलियन डाॅलर (6,500 करोड़ रूपये लगभग ) हो गयी।
  • भारतीय विनिर्माता दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक हैं और वे मुख्यतया चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से आयात करते है।

लिथियम-त्रिकोण (Lithium Triangle):

  • 'लीथियम त्रिकोण' दक्षिण अमेरिका में स्थित है, जिसमें चिली, अर्जेंटीना और बोलिविया देश शामिल हैं।
  • भारत लिथियम-आयन बैटरी संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया में है।
  • लिथियम की मांग में वृद्धि को देखते हुए लिथियम त्रिकोण देशों ने भारत की बढ़ती मांग को पूरा करने की पेशकश की है।

Lithium-Triangle

भारत में लिथियम-आयन बैटरी विनिर्माण:

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ऐसी बैटरियों का विनिर्माण करता है लेकिन इसकी मात्रा सीमित हैं और वे अंतरिक्ष अनुप्रयोग के लिये प्रतिबंधित हैं।
  • जून 2018 मे केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान (Central Electro Chemical Research Institute-CECRI) जो वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific & Industrial Research-CSIR) के अधीनस्थ है तथा RAASI सोलर पावर प्राइवेट लिमिटेड ने भारत की पहली लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी परियोजना के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Agreement-MoA) पर हस्ताक्षर किये।
  • ऐसी बैटरियों के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक कार्यक्रम को मंज़ूरी दी, जिसे ‘परिवर्तनकारी गतिशीलता एवं बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage) कहा जाता है।
  • इसका उद्देश्य स्वच्छता, साझेदारी को बढ़ावा देनी वाली और सतत् और समग्र गतिशीलता संबंधी पहलों को बढ़ावा देना है।

चीन का एकाधिकार:

  • लिथियम-आयन बैटरी बाज़ार पर चीन का एकाधिकार है। ब्लूमबर्गएनईएफ (BloombergNEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, बैटरी सेल निर्माण क्षमता में लगभग तीन-चौथाई हिस्सा चीन का है और साथ ही घरेलू तथा विदेशी बैटरी कच्चे माल एवं प्रसंस्करण सुविधाओं पर चीनी कंपनियों का नियंत्रण है।

भारत में मांग का पैटर्न:

  • भारत में लिथियम-आयन बैटरी की मांग वृद्धि में इलेक्ट्रिक वाहनों की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी की होने की उम्मीद है लेकिन वर्ष 2025 तक इलेक्ट्रिक कारों की उच्च कीमत के कारण ऐसा होने की उम्मीद नहीं है।
  • दहन-इंजन आधारित (Combustion-Engine) कारों की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों काफी महंगी हैं।
  • सरकार ने इस माँग को पूरा करने और 2040 तक भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के सबसे बड़े विनिर्माण केंद्रों में से एक बनाने के लिए $ 1.4 बिलियन के निवेश की घोषणा की है।

आगे की राह:

  • इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन एक पूंजी गहन (Capital Intensive) क्षेत्र है जहाँ सरकारी नीतियों में अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है अतः दीर्घकालिक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है।
  • चार्जिंग स्टेशनों, ग्रिड़ स्थिरता जैसी अवसंरचनात्मक समस्याओं समाधान शीघ्र करना चाहिये।
  • भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है जबकि ये तत्त्व बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है, अतः इनका आयात सुनिश्चित करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल भुगतान सूचकांक

प्रीलिम्स के लिये:

डिजिटल भुगतान सूचकांक, अखिल भारतीय चेक ट्रंकेशन प्रणाली

मेन्स के लिये:

RBI का विकासात्मक एवं विनियामक नीति संबंधी वक्तव्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा जारी विकासात्मक एवं विनियामक नीति संबंधी वक्तव्य (Statement on Developmental and Regulatory Policies) में डिजिटल भुगतान संबंधी प्रावधानों की चर्चा की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • RBI द्वारा जारी इस वक्तव्य में डिजिटल भुगतानों की सीमा का प्रभावी ढंग से आकलन करने के लिये एक डिजिटल भुगतान सूचकांक (Digital Payments Index- DPI) प्रारंभ करने की घोषणा की गई है।
  • RBI द्वारा जारी यह वक्तव्य क्रेडिट प्रवाह में सुधार, मौद्रिक संचरण को सुदृढ़ करने, विनियमन और पर्यवेक्षण को मज़बूत करने, वित्तीय बाजारों को व्यापक बनाने तथा भुगतान और निपटान प्रणाली में सुधार के लिये विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीति उपायों को निर्धारित करता है।

क्या है डिजिटल भुगतान सूचकांक?

  • RBI द्वारा दिये गए विकासात्मक एवं विनियामक नीति संबंधी वक्तव्य के अनुसार, भारत में डिजिटल भुगतान तेज़ी से बढ़ रहा है। RBI समय-समय पर भुगतान के डिजिटलीकरण की सीमा का प्रभावी ढंग से आकलन करने के लिये एक समग्र ‘डिजिटल भुगतान सूचकांक’ का निर्माण करेगा।
  • DPI कई मापदंडों पर आधारित होगा और विभिन्न डिजिटल भुगतान के तरीकों की पहुँच और गहनता को सटीक रूप से आकलित करेगा।
  • DPI को जुलाई 2020 से प्रारंभ किया जाएगा।

भुगतान एवं निपटान प्रणाली संबंधी अन्य प्रावधान:

  • डिजिटल भुगतान प्रणाली के लिये स्व-विनियामक संगठन (Self-Regulatory Organisation- SRO) की स्थापना की रूपरेखा:
    • RBI द्वारा जारी विकासात्मक एवं विनियामक नीति संबंधी वक्तव्य के अनुसार, भुगतान तंत्र में डिजिटल भुगतान में पर्याप्त संवृद्धि और संस्थाओं की भुगतान प्रणाली में प्राप्त परिपक्वता सहित संस्थाओं के व्यवस्थित परिचालन के लिये स्व-नियामक संगठन होना आवश्यक है।
    • RBI धन की सुरक्षा, ग्राहक संरक्षण और मूल्य निर्धारण की सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अप्रैल 2020 तक डिजिटल भुगतान प्रणाली के लिये एक स्व-नियामक संगठन की स्थापना की रूपरेखा तैयार करेगा।
  • अखिल भारतीय चेक ट्रंकेशन प्रणाली (Pan India Cheque Truncation System-CTS):
    • चेक ट्रंकेशन प्रणाली वर्तमान में देश के प्रमुख समाशोधन गृहों में ही परिचालित है तथा इसने अच्छी तरह से स्थिर होकर दक्षता हासिल की है।
    • इसको देखते हुए एक अखिल भारतीय चेक ट्रंकेशन प्रणाली को सितंबर 2020 तक परिचालित कर दिया जाएगा।

अन्य प्रयास:

  • बैंकिंग नियामक संस्थाएँ और सरकार डिजिटल वॉलेट्स, इंटरनेट बैंकिंग, क्रेडिट और क्रेडिट कार्ड जैसी कैशलेस भुगतान प्रणालियों को अपनाने की सुविधा पर काम कर रही है।
  • सरकार ने हाल ही में रुपे डेबिट कार्ड और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के माध्यम से किये जाने वाले भुगतान पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rates-MDR) को समाप्त कर दिया है।

डिजिटल इंडिया एक ऐसा विचार है जिसको व्यावहारिक रूप में अपनाना आवश्यक है लेकिन इसके लिये कारगर उपाय करने होंगे, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को और भी अधिक गतिमान और समृद्ध बनाया जा सके।

स्रोत- लाइव मिंट


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आरओ-आधारित जल निस्यंदन प्रणाली

प्रीलिम्स के लिये:

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली

मेन्स के लिये:

रिवर्स ओस्मोसिस आधारित जल शोधन तंत्र के साथ समस्या

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ) द्वारा रिवर्स ओस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) पर आधारित जल निस्यंदन प्रणाली (RO- based Water Filtration System) को विनियमित करने हेतु मसौदा अधिसूचना (Draft Notification) प्रस्तुत की गई है।

हालिया संदर्भ:

  • यह अधिसूचना मार्च, 2019 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal- NGT) के समक्ष दिल्ली में RO वाटर फिल्टर के उपयोग को प्रतिबंधित करने से संबंधित है, क्योंकि रिवर्स ओस्मोसिस शोधन प्रक्रिया द्वारा पानी की काफी मात्रा बर्बाद हो जाती है।
  • वाटर फिल्टर निर्माताओं के संघ (Association of Water Filter Manufacturers) द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

मुख्य बिंदु:

  • यह मसौदा उन क्षेत्रों में झिल्ली-आधारित जल निस्यंदन प्रणालियों (Membrane-Based Water Filtration Systems) को विनियमित करेगा जहाँ पेयजल के स्रोत भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • यह रिवर्स ओस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) आधारित जल निस्यंदन में प्रयोग होने वाली प्रणालियों एवं नियमों को प्रभावित करेगा।
  • यह मसौदा घरों में झिल्ली आधारित जल शोधन (Membrane-Based Water Purification) यानी RO सिस्टम के प्रयोग को भी प्रतिबंधित करेगा।
  • यह अधिसूचना मुख्य रूप से वाणिज्यिक आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये बनाए गए नियमों के एकीकरण से संबंधित है जो उपभोक्ताओं को कुल घुलनशील ठोस (Total Dissolved Solids-TDS) के स्तरों के बारे में भी सूचित करती है।

रिवर्स ओस्मोसिस:

Reverse-osmosis

  • RO सिस्टम, ओस्मोसिस/परासरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, मीठे/साफ पानी की अधिक मात्रा प्राप्त करने के लिये ट्यूब पर कुछ और बाह्य दवाब (External Pressure) बढ़ाने की आवश्यकता होगी, ताकि खारे पानी की सारी मात्रा को मीठे पानी में परिवर्तित किया जा सके।
  • RO ट्यूब में बाह्य दवाब उत्पन्न करने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मोटर तथा पंप का प्रयोग किया जाता है।
  • इसमें सक्रिय कार्बन के घटकों का उपयोग किया जाता है जिनमें शामिल है-लकड़ी का कोयला (ब्लैक कार्बन) जो दूषित पदार्थों के साथ-साथ हानिकारक बैक्टीरिया और कार्बनिक पदार्थों को भी फिल्टर कर देता है।
  • परंतु यह सब फिल्टर किये जाने वाले पदार्थों और फिल्टर्स की संख्या पर निर्भर करता है जिनसे होकर नल का पानी गुज़रता है।
  • हालाँकि इसमें पानी में मिश्रित विलेय जैसे- आर्सेनिक, फ्लोराइड, हेक्सावलेंट क्रोमियम, नाइट्रेट, बैक्टीरिया इत्यादि को दूर करने के लिये एक विस्तृत झिल्ली तथा कई स्तरों पर फिल्टर का प्रयोग किया जा सकता है।
  • RO द्वारा पानी में कुल घुलनशील ठोस (Total Dissolved Solids -TDS) पदार्थों जैसे- रसायन, वायरस, बैक्टीरिया और लवण को कम करके पीने योग्य पानी का मानक स्तर प्राप्त किया जा सकता है।

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली:

  • मूल रूप से यह समुद्री जल को अलवणीकृत करने की एक विधि है जो ओस्मोसिस (Osmosis) के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • इसमें एक नलिका को ‘यू’ आकार में मोड़ते है और घुमाव वाले स्थान पर एक महीन अर्ध-पारगम्य झिल्ली (Semi-Permeable Membrane) को जोड़ा जाता है जो केवल कुछ निश्चित अणुओं को ही फिल्टर करती है।
  • अब ट्यूब को आधे खारे तथा उसके आधे हिस्से को मीठे पानी से भरते हैं। यह मीठा पानी खारे पाने वाली भुजा की तरफ तब तक जाता है जब तक कि ट्यूब की दोनों भुजाओं में पानी का अनुपात सामान न हो जाए।
  • ऐसा ओस्मोसिस प्रभाव के कारण होता है जो उच्च सांद्रता वाले विलेय को पतला/घुलनशील बना देता है (नमक के मामले में)।

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली से संबंधित समस्याएँ:

  • RO द्वारा पानी को शुद्ध किये जाने के दौरान लगभग तीन से चार गुना पानी की मात्रा बर्बाद हो जाती है जो शहरी क्षेत्रों में सरकारों के समक्ष पेयजल की चुनौती उत्पन्न करती है।
  • यह पानी में घुलनशील आवश्यक लवण जैसे- कैल्शियम, जस्ता, मैग्नीशियम को छान देता है, जो कि शरीर के लिये आवश्यक होते हैं तथा ऐसे पानी का दीर्घावधि तक सेवन करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकता है।
  • कई निर्माताओं ने पानी के ‘पोस्ट ट्रीटमेंट’ (Post Treatment) के माध्यम से इस समस्या के समाधान की बात कही है परंतु इससे पानी को साफ करने में अधिक लागत आती है। साथ ही देश के अधिकांश हिस्सों में स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिये सार्वजनिक-वित्तपोषित जल वितरण प्रणालियाँ भी हतोत्साहित हो सकती हैं।
  • ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (National Institute of Virology- NIV) के अनुसार, पानी को शुद्ध करने के लिये प्रयोग होने वाली अधिकांश निस्यंदन विधियों द्वारा हेपेटाइटिस ई वायरस (Hepatitis E virus) को खत्म नहीं किया जा सकता है।

स्वच्छ जलापूर्ति की चुनौतियाँ

  • अधिकांश देशों में पाइपलाइन द्वारा जल की आपूर्ति करने के लिये वित्त का अभाव है।
  • नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) के अनुसार, आपूर्ति किया जाने वाला 70% पानी दूषित है।
  • गैर सरकारी संगठन, वाटर एडस (Water Aid’s) द्वारा जारी जल गुणवत्ता सूचकांक-2019 में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है। सूचकांक में भारत की इस स्थिति का कारण पेयजल के स्रोतों का सीमित होना है।

भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों का निहितार्थ:

  • इस अधिसूचना का निहितार्थ, फिल्टर के प्रयोग को निषिद्ध करने से है वह भी तब जब घर में जलापूर्ति भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानकों के अनुरूप हो रही हो।
  • हालाँकि कई राज्य और शहरों के जल बोर्ड BSI मानकों को पूरा करने का दावा करते हैं फिर भी घरों में की जाने वाली जलापूर्ति निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है।
  • BSI मानदंड सार्वजनिक एजेंसियों के लिये स्वैच्छिक हैं जो पाइप द्वारा पानी की आपूर्ति करते हैं लेकिन बोतलबंद पानी के उत्पादकों के लिये ये मानदंड अनिवार्य हैं।

पानी के पाइप की गुणवत्ता:

  • प्रधानमंत्री द्वारा ‘जल जीवन मिशन’ के तहत वर्ष 2024 तक पूरे देश में पेयजल हेतु नल का पानी उपलब्ध करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
  • पिछले साल उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा भारतीय मानक ब्यूरो के माध्यम से देश में पीने के पानी की आपूर्ति हेतु प्रयोग किये जा रहे पाइप्स की गुणवत्ता को जाँचने के लिये एक अध्ययन किया गया।
  • अध्ययन में यह बात सामने आई कि देश के अधिकांश हिस्सों में पेयजल हेतु प्रयोग में लाये गए पाइप्स की गुणवत्ता अत्यधिक निम्न श्रेणी की है।
  • विभिन्न स्थानों से लिये गए नमूनों के आधार पर देखा गया कि भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित आवश्यक मानकों को पूरा नहीं किया गया है।

आगे की राह:

  • जारी मसौदा अधिसूचना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2022 के बाद उपचारित पानी का 25% से अधिक हिस्सा बर्बाद न हो जो अभी लगभग 80% है।
  • घरेलू कार्यों या फिर अन्य गतिविधियों में प्रयोग किया जाने वाला जल जो कि अपशिष्ट के रूप में बचता है, का पुनः प्रयोग किया जा सके।
  • अधिसूचना को लागू करने का प्राथमिक उद्देश्य अंतिम उपभोक्ता तक भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानकों के आधार पर गुणवत्तायुक्त पेयजल की आपूर्ति करना है।
  • विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अभी भी लाखों लोगों को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति संभव नहीं हो पाई है। वहाँ बिना किसी अतिरिक्त लागत के पेयजल की आपूर्ति की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 फरवरी, 2020

‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ अभियान

सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा देश भर में 10 फरवरी से 28 फरवरी तक ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ अभियान का आयोजन किया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य देश की विविधता में एकता को दर्शाना तथा सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से राष्‍ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देना है। एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के तहत समग्र शिक्षा अभियान द्वारा कई पहलें की जा रही हैं। इसके माध्‍यम से असम और राजस्‍थान के बीच सदियों पुराने संबंधों को प्रस्‍तुत किया जा रहा है। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के मध्य सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने का विचार प्रस्तुत किया था।

उत्तर प्रदेश में युवाओं के लिये इंटर्नशिप

उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने राज्‍य के युवाओं को इंटर्नशिप उपलब्‍ध कराने की घोषणा की है। गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में आयोजित रोज़गार मेले में राज्य सरकार के इस कदम की सूचना देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “राज्य सरकार एक योजना शुरू करेगी, जिसमें 6 महीने और 1 वर्ष की इंटर्नशिप करने वाले युवाओं को प्रतिमाह ढाई हज़ार रुपए दिये जाएंगे। इसके तहत 10वीं, 12वीं और ग्रेजुएशन करने वाले युवाओं को विभिन्न तकनीकी संस्थानों एवं उद्योगों से जोड़ा जाएगा। इंटर्नशिप के दौरान युवाओं को मिलने वाली कुल राशि (2500 रुपए) में से 1500 रुपए केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किये जाएंगे, जबकि शेष राशि (1000 रुपए) राज्य सरकार द्वारा दी जाएगी।

काम्या कार्तिकेयन

मुंबई की रहने वाली 12 वर्ष की छात्रा काम्या कार्तिकेयन अर्जेंटीना स्थित एकांकागुआ (Aconcagua) पर्वत को फतह कर दुनिया की सबसे युवा पर्वतारोही बन गई हैं। काम्या मुंबई के नेवी चिल्ड्रेन स्कूल (Navy Children School) में सातवीं कक्षा की छात्रा हैं। ज्ञात हो कि अर्जेंटीना की एंडीज़ पर्वतमाला में स्थित एकांकागुआ पर्वत दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत है, यह पर्वत कुल 6962 मीटर ऊँचा है। इसके अतिरिक्त काम्या ने 24 अगस्त, 2019 को लद्दाख में 6260 मीटर ऊँचे पर्वत मेंटोक कांग्री II पर चढ़ाई पूरी की थी। ऐसा करने वाली वह सबसे युवा पर्वतारोही थीं।

जम्मू-कश्मीर विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष परिषद

जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष परिषद (Jammu and Kashmir Science Technology and Innovation Council) का गठन हुआ है। उपराज्यपाल के अतिरिक्त परिषद में सरकार के प्रतिनिधियों में मुख्य सचिव, वित्त विभाग के प्रशासनिक सचिव, उपराज्यपाल के प्रधान सचिव, विज्ञान और तकनीकी विभाग के प्रशासनिक सचिव को शामिल किया गया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थानों के उपकुलपति भी इस परिषद के सदस्य बनाए गए हैं। यह परिषद सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के एक साधन के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्षमता का दोहन करने का प्रयास करेगा और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे नवोन्मेष केवल प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक संस्थानों तक ही सीमित न रहें बल्कि ज़मीनी स्तर पर पहुँचे, ताकि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष को रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाया जा सके।


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