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  • 04 Mar 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (IIT Mumbai) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि अनधिकृत शुल्क एवं उच्च Merchant Discount Rate- MDR डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया में बड़े बाधक हैं।

अध्ययन के बारे में

  • अध्ययन में कहा गया है कि 2018 में व्यापारियों पर क्रेडिट कार्ड MDR का करीब 10,000 करोड़ रुपए का अनुमानित बोझ पड़ा है।
  • यह डेबिट कार्ड एमडीआर के मद में आई कुल 3,500 करोड़ रुपए की लागत के मुकाबले काफी अधिक है।
  • जबकि मूल्य के लिहाज से क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से 2018 में लगभग 5.7 लाख करोड़ रुपए का समान लेन-देन हुआ है।

क्या है MDR?

  • MDR वह शुल्क है, जो कार्ड से भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारी बैंक को चुकाते हैं।
  • मास्टरकार्ड, वीज़ा जैसा पेमेंट गेटवे और पॉइंट ऑफ़ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन ज़ारी करने वाले बैंकों को MDR में मुआवज़ा/छूट प्राप्त होता है।
  • इसे बैंक और व्यापारी के बीच एक पूर्व निर्धारित अनुपात में साझा किया जाता है एवं लेन-देन के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
  • डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने डेबिट कार्ड, BHIM UPI या आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली के माध्यम से दिसंबर 2020 तक किये जाने वाले 2,000 रुपए तक के लेन-देन पर MDR शुल्क वहन करने का निर्णय लिया।

MDR का डिजिटल भुगतान पर प्रभाव

  • बैंक ज़्यादा-से-ज़्यादा पॉइंट ऑफ़ सेल (PoS)/कार्ड स्वाइप मशीन जारी करना चाहते हैं किंतु छोटे व्यापारियों के लिये पॉइंट ऑफ़ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन रखना ज़्यादा खर्चीला है क्योंकि उन्हें बैंकों को MDR के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है, जबकि नकद लेन-देन में ऐसी किसी राशि का भुगतान नहीं करना पड़ता है।

साधारण कार्ड उपयोगकर्त्ताओं को इन तकनीकी विषयों की कम जानकारी होती है, अत: बैंकों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह कार्ड और भीम-यू.पी.आइ. (BHIM-UPI) उपयोगकर्त्ताओं को इन अतिरिक्त शुल्कों से बचाए।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन

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