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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आयरन आयन बैटरी

  • 13 Aug 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने पहली बार एनोड के रूप में हल्के स्टील का प्रयोग करके रिचार्जेबल आयरन आयन बैटरी का निर्माण किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग को देखते हुए सस्ती बैटरी विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • भारत और विश्व में लिथियम भंडार की कमी के कारण अन्य सामग्रियों के प्रयोग का प्रयास किया जा रहा है जो लिथियम की तरह कार्य कर सके।
  • जहाँ लिथियम आयन बैटरी में लिथियम आयन आवेश वाहक होते हैं, वहीं आयरन आयन बैटरी में लौह आयन (Ferrous Ion- Fe2+) आवेश वाहक का कार्य करते हैं।
  • आयरन आयन बैटरी का सामान्य परिस्थितियों में ऊर्जा घनत्व 350 वाॅट घंटे/किलोग्राम रहा, वहीं लिथियम आयन बैटरी का ऊर्जा घनत्व 220 वाॅट घंटे/किलोग्राम होता है।
  • आयरन धातु में लिथियम जैसे भौतिक-रासायनिक गुण होते है, साथ ही आयरन आयन की रेडॉक्स क्षमता लिथियम आयन से अधिक होती है और आयरन आयन की त्रिज्या लिथियम आयन के लगभग समान होती है। लोहे के इन दो अनुकूल गुणों के माध्यम से रिचार्जेबल बैटरी बनाई जा सकती है।

रेडॉक्स क्षमता किसी रसायन की इलेक्ट्रॉनों की पकड़ने या छोड़ने की क्षमता है, इसे वोल्ट या मिलिवोल्ट्स में मापा जाता है।

  • शुद्ध लोहे में एनोड हेतु लौह आयनों का निष्कासन आसान नही है, इसलिये इसके लिये स्टील में मौजूद कार्बन की कम मात्रा का प्रयोग किया जा रहा है।
  • आयरन में अधिक स्थिरता के गुण के कारण चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान शॉर्ट-सर्किट की बहुत कम संभावना होती है।
  • आयरन आयन बैटरी में परतों के बीच बड़े अंतर के साथ ही स्तरित संरचना के कारण वैनेडियम पेंटोक्साइड (Vanadium Pentoxide) का प्रयोग कैथोड के रूप में किया जा रहा है।
  • वैनेडियम पेंटोक्साइड में स्तरित संरचना के कारण आयरन आयन आसानी से अंदर जाते हैं और कैथोड के साथ अंतःक्रिया कर पाते हैं।
  • ईथर आधारित इलेक्ट्रोलाइट का प्रयोग किया जाएगा जिसमें विघटित आयरन पेरोक्लोरेट शामिल होंगे। आयरन पेरोक्लोरेट, एनोड और कैथोड के बीच आयन माध्यम का कार्य करेगा।

आयरन आयन बैटरी की ऊर्जा संग्रहण क्षमता अधिक है लेकिन यह लागत प्रभावी है। आयरन आयन बैटरी के प्रदर्शन को और बेहतर करने पर ध्यान दिया जा रहा है, चूँकि इलेक्ट्रोलाइट को बदला नहीं जा सकता है, इसलिये शोधकर्त्ता कैथोड हेतु अलग-अलग सामग्री की खोज कर रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू

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