भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय फार्मा क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API)। मेन्स के लिये:भारत का फार्मा क्षेत्र - संबंधित चुनौतियाँ और कदम जो इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उठाए जा सकते हैं, मूल्य की दृष्टि से भारत को विश्व की फार्मेसी बनाना। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने भारतीय फार्मा उद्योग को प्रेरित करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के लिये फार्मास्युटिकल नवाचार और उद्यमिता पर दिशा-निर्देश जारी किये।
- फार्मास्युटिकल्स विभाग ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने और उच्च-स्तर का अनुसंधान करने के लिये राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों के रूप में राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान संस्थान ( NIPERs) की स्थापना की है।
- यह विभाग जल्द ही 'भारत में फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और विकास व नवाचार को प्रेरित करने की नीति' भी लेकर आ रहा है।
नीति दिशा-निर्देशों का उद्देश्य:
- इन नीति दिशा-निर्देशों का उद्देश्य अकादमिक अनुसंधान को नवीन और व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करना है।
- उद्यमशीलता की गतिविधियों के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर आत्मनिर्भर भारत मिशन में योगदान करना।
- फैकल्टी और छात्रों को उद्यमिता के लिये प्रोत्साहित करना।
- संभावित आविष्कारकों और उद्यमियों के लिये प्री-इन्क्यूबेसन और सामान्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिये संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- बजटीय प्रावधान के अंतर्गत इस संस्थान के लिये वार्षिक बजट के निर्धारित प्रतिशत (न्यूनतम 1 प्रतिशत) का आवंटन किया जाना चाहिये, ताकि नवाचार और स्टार्टअप से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देकर इनका समर्थन किया जा सके।
- प्रदान की गई सेवाओं और सुविधाओं के बदले में एक संस्थान स्टार्टअप/स्पिन-ऑफ कंपनी में इक्विटी का एक निश्चित प्रतिशत (2 - 9.5%) प्राप्त कर सकता है, जो कर्मचारी के योगदान एवं प्रदान की गई सहायता और संस्थान की बौद्धिक संपदा के उपयोग पर आधारित होता है।
- उद्यमशीलता की पहल का मूल्यांकन नियमित आधार पर अच्छी तरह से परिभाषित प्रभाव मूल्यांकन मापदंडों जैसे कि बौद्धिक संपदा के रूप में दर्ज करना, विकसित उत्पाद और उनका व्यावसायीकरण एवं उत्पन्न रोज़गारों की संख्या तथा स्टार्टअप का उपयोग करके किया जाएगा।
- छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिये उपस्थिति में छूट प्रदान कर उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिये, भले ही उनकी उपस्थिति 75% से कम हो, ताकि वे उद्यमशीलता की गतिविधियों को भी समय दे सकें और संस्थानों से जुड़े पीएचडी के छात्रों के लिये भी नियमों में उदारता बरती जानी चाहिये।
भारतीय फार्मा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
- भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। यह विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग का 50%, अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की मांग का 40% और यूके (यूनाइटेड किंगडम) में कुल दवाओं की मांग के 25% की आपूर्ति करता है।
- भारतीय दवा बाज़ार अनुमानतः 40 अरब अमेरिकी डॉलर का है जबकि दवा कंपनियांँ 20 अरब अमेरिकी डॉलर की दवाओं का निर्यात करती हैं।
- हालांँकि यह 1.27 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक दवा बाज़ार का एक छोटा सा हिस्सा है।
- भारत विश्व स्तर पर दवा उत्पादन में मात्रा के हिसाब से तीसरे और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है।
- भारत की वैश्विक जेनेरिक दवा बाज़ार में हिस्सेदारी 30% से अधिक है लेकिन नई आणविक इकाई (New Molecular Entity- NME) में 1% से कम हिस्सेदारी है।.
- नई आणविक इकाई (NME) : एक आदर्श यौगिक जिसे पहले मनुष्यों में उपयोग के लिये अनुमोदित नहीं किया गया हो।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, अगले दशक में घरेलू बाज़ार तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है।
भारतीय फार्मा क्षेत्र की चुनौतियाँ:
- नवाचार के क्षेत्र में क्षमताओं की कमी: भारत जनशक्ति और प्रतिभा में समृद्ध है लेकिन फिर भी नवाचार के बुनियादी ढांँचे में पीछे है। सरकार को नवाचार के विकास के लिये अनुसंधान पहल और प्रतिभा में निवेश करने की आवश्यकता है।
- सरकार को कुछ नियामक निर्णय लेने में रोग विषयक परीक्षणों और व्यक्तिपरकता का समर्थन करना चाहिये।
- बाहरी बाज़ारों का प्रभाव: रिपोर्ट के अनुसार, भारत सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- API)अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है। चीन से 80% API का आयात किया जाता है।
- अतः भारत आपूर्ति में व्यवधान और अप्रत्याशित मूल्य उतार-चढ़ाव पर निर्भर है। आपूर्ति को स्थिर करने एवं बुनियादी ढांँचे के कार्यान्वयन के लिये आंतरिक सुविधाओं के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।
- गुणवत्ता अनुपालन जाँच: भारत में वर्ष 2009 के बाद से सबसे अधिक खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food And Drug Administration- FDA) निरीक्षण हुए हैं। अतः गुणवत्ता मानकों के उन्नयन हेतु निरंतर निवेश किये जाने से अन्य क्षेत्रों में विकास और वृद्धि हेतु पूंजी का अभाव के चलते विकास प्रभावित होगा।
- स्थिर मूल्य निर्धारण और नीतिगत वातावरण का अभाव: भारत में अप्रत्याशित और लगातार घरेलू मूल्य निर्धारण नीति में बदलाव के कारण चुनौती उत्पन्न हो रही है। इसने निवेश एवं नवाचारों के लिये एक अस्पष्ट वातावरण की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
फार्मा क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता:
- दृष्टिकोण बदलने के साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना समय की मांग है। यदि भारत वैश्विक फार्मास्युटिकल क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो नवाचार को व्यवसाय के मूल में अपनाने की आवश्यकता है।
- भारत नवाचार के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है, इससे न केवल देश के विकास में मदद मिलेगी बल्कि स्थायी राजस्व का एक स्रोत भी उपलब्ध होगा जो स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों हेतु नए समाधान प्रस्तुत करेगा।
- इससे भारत में रोग अधिभार में कमी आएगी (तपेदिक और कुष्ठ जैसी भारत-विशिष्ट चिंताओं के लिये दवाओं के विकास पर वैश्विक ध्यान नहीं दिया जाता है), नई उच्च-कुशल नौकरियों का सृजन और संभवतः वर्ष 2030 से लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात होगा। .
- चीन जैसे देश पहले ही जेनेरिक दवा आधारित विकास को छोड़कर आगे बढ़ चुके हैं।
सरकारी पहलें:
- फार्मास्युटिकल उद्योग के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना:
- इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 की अवधि के लिये 500 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय की घोषणा की गई थी।
- फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र का पहला वैश्विक नवाचार शिखर सम्मेलन:
- नवंबर 2021 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फार्मास्युटिकल क्षेत्र के पहले ग्लोबल इनोवेशन समिट का उद्घाटन किया, जहाँ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वक्ताओं ने पर्यावरण नियामक, नवाचार के लिये वित्तपोषण, उद्योग-अकादमिक सहयोग तथा नवाचार बुनियादी ढाँचे सहित कई विषयों पर विचार-विमर्श किया।
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना:
- PLI योजना का उद्देश्य देश में महत्त्वपूर्ण ‘की स्टार्टिंग मैटेरियल्स’ (KSM)/ ड्रग इंटरमीडिएट और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
- बल्क ड्रग पार्क योजना को बढ़ावा देना:
- सरकार का लक्ष्य देश में थोक दवाओं की निर्माण लागत और थोक दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने हेतु राज्यों के साथ साझेदारी में भारत में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क विकसित करना है।
आगे की राह
- भारत में दवा खर्च अगले पाँच वर्षों में 9-12 फीसदी बढ़ने का अनुमान है, जिससे भारत दवा खर्च के मामले में शीर्ष 10 देशों में से एक बन जाएगा।
- आगे बढ़ते हुए घरेलू बिक्री में बेहतर वृद्धि कंपनियों की क्षमता पर भी निर्भर करेगी कि वे अपने उत्पाद पोर्टफोलियो को कार्डियोवैस्कुलर, एंटी-डायबिटीज़, एंटी-डिस्पेंटेंट और कैंसर विरोधी जैसी बीमारियों के लिये पुरानी चिकित्सा हेतु संरेखित करें।
- भारत सरकार ने लागत में कमी और स्वास्थ्य देखभाल खर्च को कम करने के लिये कई कदम उठाए हैं। जेनेरिक दवाओं को बाज़ार में तेज़ी से पेश करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है तथा इससे भारतीय दवा कंपनियों को लाभ होने की उम्मीद है।
- इसके अलावा ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रमों, जीवन रक्षक दवाओं और निवारक टीकों पर ज़ोर देना भी दवा कंपनियों के लिये अच्छा संकेत है।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डब्ल्यू बोसॉन
प्रिलिम्स के लिये:कण भौतिकी का मानक मॉडल, डब्ल्यू बोसॉन, ज़ेड बोसॉन, हिग्स बोसॉन। मेन्स के लिये:वैज्ञानिक नवाचार और खोज |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका में कोलाइडर डिटेक्टर एट फर्मिलैब (CDF) सहयोग के शोधकर्त्ताओं ने घोषणा की है कि उन्होंने डब्ल्यू बोसॉन के द्रव्यमान का सटीक मापन किया है।
- कहा गया है कि यह सटीक रूप से निर्धारित मूल्य कण भौतिकी के मानक मॉडल के अनुमानों से मेल नहीं खाता।
डब्ल्यू बोसॉन क्या है?
- डब्ल्यू बोसॉन को पहली बार वर्ष 1983 में फ्रेंको-स्विस सीमा पर स्थित CERN में देखा गया था।
- फोटॉन के विपरीत डब्ल्यू बोसॉन काफी बड़े पैमाने पर होते हैं जो द्रव्यमान रहित होते हैं, अतः वे जिस कमज़ोर बल की मध्यस्थता करते हैं, वह बहुत कम होता है।
- यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) विश्व की सबसे बड़ी परमाणु एवं कण भौतिकी प्रयोगशाला है, इसे लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के संचालक के रूप में भी जाना जाता है। CERN ने वर्ष 2012 में मायावी हिग्स बोसॉन की खोज की थी।
- फोटॉन के विपरीत यह विद्युतीय रूप से उदासीन है किंतु डब्ल्यू-प्लस और डब्ल्यू-माइनस दोनों पर बड़े पैमाने पर चार्ज किये जाते हैं।
- इस प्रकार डब्ल्यू बोसॉन का आदान-प्रदान करके न्यूट्रॉन को प्रोटॉन में बदल सकते है, उदाहरण के लिये:
- यह घटना तब होती है जब सूर्य में रेडियोएक्टिव क्रिया के दौरान बीटा क्षरण होता है।
- डब्ल्यू बोसॉन उन अंतःक्रियाओं को सुगम बनाता है जो सूर्य को ज्वलनशील करने के साथ ऊर्जा उत्पादन करती हैं।
प्राथमिक कण भौतिकी मानक मॉडल:
- प्राथमिक कणों का मानक मॉडल भौतिकी में सैद्धांतिक निर्माण है जो पदार्थ के कणों और उनकी अंतःक्रियाओं का वर्णन करता है।
- इसके अनुसार विश्व के प्राथमिक कण गणितीय समरूपता से जुड़ा हुए हैं, जैसे दो वस्तुएंँ द्विपक्षीय (बाएंँ-दाएंँ) समरूपता से जुड़ी होती हैं।
- ये गणितीय समूह हैं जो एक कण से दूसरे कण में निरंतर परिवर्तन द्वारा उत्पन्न होते है।
- इस मॉडल के अनुसार, मौलिक कणों की सीमित संख्या होती है जो इन समूहों के विशिष्ट "ईजेन" (Eigen) अवस्था द्वारा दर्शायी जाती है।
- मॉडल द्वारा भविष्यवाणी किये गए कण, जैसे कि ज़ेड बोसॉन प्रयोगों में देखे गए हैं।
- वर्ष 2012 में खोजा जाने वाला आखिरी कण हिग्स बोसाॅन था जो भारी कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है।
मानक मॉडल की अपूर्णता:
- क्योंकि यह प्रकृति की चार मूलभूत शक्तियों (विद्युत चुंबकीय, कमज़ोर परमाणु, मज़बूत परमाणु और गुरुत्वाकर्षण अन्योन्यक्रिया) में से केवल तीन की एक एकीकृत परिभाषा प्रदान करता है। यह गुरुत्वाकर्षण को पूर्ण रूप से छोड़ देता है।
- इसलिये सभी बलों को एकजुट करने की योजना है ताकि एक ही समीकरण पदार्थ की सभी अन्योन्यक्रियाओं का वर्णन कर सके।
- साथ ही इसमें ‘डार्क मैटर’ कणों का विवरण शामिल नहीं है।
- अब तक इनका पता इनके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में स्थित आसपास के पदार्थ पर ही लगा है।
समरूपताओं का कणों से संबंध:
- मानक मॉडल की समरूपता को ‘गेज समरूपता’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वे "गेज परिवर्तन" द्वारा उत्पन्न होती हैं।
- ‘गेज परिवर्तन’ निरंतर परिवर्तनों का एक समूह है (जैसे- रोटेशन एक निरंतर परिवर्तन है)। प्रत्येक समरूपता गेज बोसाॅन से जुड़ी होती है।
- उदाहरण के लिये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरैक्शन से जुड़ा गेज बोसॉन फोटॉन है। कमज़ोर अंतःक्रियाओं से जुड़े गेज बोसॉन डब्ल्यू और ज़ेड बोसॉन हैं। दो डब्ल्यू बोसॉन हैं- W+ और W-।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निकट अतीत में हिग्स बोसॉन कण के अस्तिव के संसूचन के लिये किये गए प्रयत्न लगातार समाचारों में रहे हैं। इस कण की खोज का क्या महत्त्व है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर:A व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय का COP-15
प्रिलिम्स के लिये:UNCCD, COP-15, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन, सूखा, वर्ष 2019 की दिल्ली घोषणा, मरुस्थलीकरण, IWMP, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना मेन्स के लिये:मरुस्थलीकरण और इसका प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने ‘कोट डी आइवर’ (पश्चिमी अफ्रीका) में ‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय’ (UNCCD) के ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (COP) के पंद्रहवें सत्र को संबोधित किया।
COP-15 से संबंधित विभिन्न तथ्य:
- परिचय:
- COP-15 मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के खिलाफ लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- यह ‘ग्लोबल लैंड आउटलुक’ के दूसरे संस्करण के निष्कर्षों पर आधारित होगा और भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन व जैव विविधता के नुकसान की परस्पर जुड़ी चुनौतियों के लिये एक ठोस प्रतिक्रिया प्रदान करेगा।
- UNCCD का प्रमुख प्रकाशन ग्लोबल लैंड आउटलुक (GLO) भूमि प्रणाली की चुनौतियों को रेखांकित करता है एवं परिवर्तनकारी नीतियों और प्रथाओं को प्रदर्शित करता है तथा स्थायी भूमि एवं जल प्रबंधन के लिये लागत प्रभावी मार्गों को अपनाने की ओर इशारा करता है।
- शीर्ष एजेंडा:
- सूखा, भूमि की बहाली, भूमि अधिकार, लैंगिक समानता और युवा सशक्तीकरण जैसे मुद्दे।
- थीम: 'भूमि, जीवन, विरासत: अभाव से समृद्धि की ओर' (‘Land. Life. Legacy: From scarcity to prosperity')
मरुस्थलीकरण:
- परिचय:
- भूमि क्षरण को शुष्क भूमि की जैविक या आर्थिक उत्पादकता में कमी या हानि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण जलवायु परिवर्तन एवं मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप होता है।
- कारण:
- मृदा आवरण का नुकसान:
- मुख्य रूप से वर्षा और सतही अपवाह के कारण मिट्टी के आवरण का नुकसान, मरुस्थलीकरण के सबसे बड़े कारणों में से एक है।
- जंगलों को काटने से मिट्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और क्षरण की स्थिति उत्पन्न होती है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता है, संसाधनों की मांग भी बढ़ती जाती है।
- वनस्पति निम्नीकरण:
- वनस्पति निम्नीकरण को "वनस्पति आवरण के घनत्व, संरचना, प्रजातियों की संरचना या उत्पादकता में अस्थायी या स्थायी कमी" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- जल अपरदन:
- इसके परिणामस्वरूप वह स्थल बैडलैंड (अनुर्वर) में बदल जाता है जो मरुस्थलीकरण का प्रारंभिक चरण होता है।
- बैडलैंड एक प्रकार का शुष्क भूभाग होता है जहाँ नरम तलछटी चट्टानों और चिकनी मिट्टी से भरपूर मैदान का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ हो।
- वायु अपरदन:
- इस प्रकार का अपरदन वहाँ होता है जहाँ की भूमि मुख्यत: समतल, अनावृत्त, शुष्क एवं रेतीली तथा मृदा ढीली, शुष्क एवं बारीक दानेदार होती है। साथ ही वहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक (यथा-रेगिस्तानी क्षेत्र) हो।
- भारत में यह प्रक्रिया मरुस्थलीकरण के कुल 5.46% के लिये ज़िम्मेदार है।
- जलवायु परिवर्तन:
- यह तापमान, वर्षा, सौर विकिरण और हवाओं में स्थानिक एवं अस्थायी पैटर्न के परिवर्तन के माध्यम से मरुस्थलीकरण को बढ़ावा देता है।
- मृदा आवरण का नुकसान:
उठाए गए कदम:
- वैश्विक प्रयास:
- मरुस्थलीकरण को रोकने लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD): इसकी स्थापना 1994 में की गई थी, पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला यह एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- 2019 की दिल्ली घोषणा, UNCCD के 14वें CoP द्वारा हस्ताक्षरित, भूमि पर बेहतर पहुँचऔर प्रबंधन का आह्वान करती है तथा लिंग-संवेदनशील परिवर्तनकारी परियोजनाओं पर ज़ोर देती है।
- बॉन चुनौती (Bonn Challenge): यह एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
- ग्रेट ग्रीन वॉल: इसका उद्देश्य अफ्रीका की निम्नीकृत भूमि का पुनर्निर्माण करना तथा विश्व के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र, साहेल (Sahel) में निवास करने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। इस परियोजना को अफ्रीकी संघ द्वारा UNCCD, विश्व बैंक और यूरोपीय आयोग सहित कई भागीदारों के सहयोग से शुरू किया गया था।
- मरुस्थलीकरण को रोकने लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD): इसकी स्थापना 1994 में की गई थी, पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला यह एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- भूमि निम्नीकरण की जाँच के लिये भारत के प्रयास:
- भारत अपने निवासियों को बेहतर भूमि और बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए स्थानीय भूमि को स्वस्थ और उत्पादक बना कर सामुदायिक स्तर पर आजीविका सृजन हेतु स्थायी भूमि और संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- मरुस्थलीकरण को कम करने के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई कार्यक्रम 2001 में मरुस्थलीकरण की समस्याओं के समाधान के लिये उचित कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया था।
- वर्ल्ड रेस्टोरेशन फ्लैगशिप के लिये नामांकन जमा करने के वैश्विक आह्वान के बाद भारत ने छह फ़्लैगशिप का समर्थन किया जो 12.5 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि की बेहतरी का लक्ष्य रखते हैं।
- भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये कुछ प्रमुख कार्यक्रम वर्तमान में लागू किये जा रहे हैं:
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना)।
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)।
- हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (GIM)।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा)।
- नदी घाटी परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र में मृदा संरक्षण।
- वर्षा क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना (NDDPRA)।
- भोजन एवं चारा विकास योजना- घास भंडार सहित चरागाह घटक विकास।
- कमान क्षेत्र विकास एवं जल प्रबंधन (CADWM) कार्यक्रम।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना आदि।
विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न: मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का/के क्या महत्त्व है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उतर: (c) व्याख्या:
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स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन
प्रिलिम्स के लिये:नमामि गंगे कार्यक्रम, जिला गंगा समितियाँ, स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन। मेन्स के लिये:गंगा नदी के कायाकल्प में नमामि गंगे कार्यक्रम का महत्त्व, संरक्षण। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के अंतर्गत 'इग्नाइटिंग यंग माइंड्स, नदियों का कायाकल्प' पर मासिक 'विश्वविद्यालयी वेबिनार' शृंखला के छठे संस्करण का आयोजन किया गया।
- इस वेबिनार का विषय 'अपशिष्ट जल प्रबंधन' था।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG):
- परिचय:
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय परिषद द्वारा कार्यान्वित किया जाता है जिसे ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ भी कहा जाता है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसे अगस्त 2011 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
- उद्देश्य:
- मिशन में मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) को पूर्व अवस्था में लाना और बढ़ावा देना तथा सीवेज के प्रवाह की जाँच के लिये रिवरफ्रंट के निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को रोकने हेतु तत्काल अल्पकालिक कदम उठाना शामिल हैं।
- प्राकृतिक मौसम परिवर्तन में बदलाव के बिना जल प्रवाह की निरंतरता बनाए रखना।
- सतही प्रवाह और भूजल को बढ़ाना तथा उसे बनाए रखना।
- क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पतियों के पुनर्जीवन और उनका रखरखाव करना।
- गंगा नदी बेसिन की जलीय जैव विविधता के साथ-साथ तटवर्ती जैव विविधता को संरक्षित और पुनर्जीवित करना।
- नदी के संरक्षण, कायाकल्प और प्रबंधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी की अनुमति देना।
संबंधित पहलें:
- नमामि गंगे कार्यक्रम: नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा 'फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प जैसे दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
- गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा लाई गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न व घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा विषाक्त एवं औद्योगिक रासायनिक कचरे (पहचानी गई प्रदूषणकारी इकाइयों से) को नदी में प्रवेश करने से रोकना था।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा एक्शन प्लान का ही विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा एक्शन प्लान के फेज-2 के तहत गंगा नदी की सफाई करना है।
- राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA): इसका गठन भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया गया था।
- गंगा नदी को 2008 में भारत की 'राष्ट्रीय नदी' घोषित किया गया।
- स्वच्छ गंगा कोष: वर्ष 2014 में इसका गठन गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये किया गया था।
- भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गंगा नदी में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
गंगा नदी प्रणाली:
- यह उत्तराखंड में गोमुख (3,900 मीटर) के पास गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है जहाँ इसे भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
- देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है; इसके बाद इसे गंगा के रूप में जाना जाता है।
- गंगा उत्तरी मैदानों में हरिद्वार में प्रवेश करती है।
- गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है।
- यमुना और सोन दाहिने किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं और बाएँ किनारे की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी और महानंदा हैं।
- यमुना गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है और इसका स्रोत यमुनोत्री ग्लेशियर है।
- गंगा सागर द्वीप के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
आगे की राह
- कीचड़ और उपचारित पानी का मुद्रीकरण 'अर्थ गंगा' के तहत नमामि गंगे कार्यक्रम के फोकस क्षेत्रों में से एक है, जिसका अर्थ है “ब्रिज ऑफ इकोनॉमिक्स’' या अर्थव्यवस्था रूपी सेतु के माध्यम से लोगों को गंगा से जोड़ना।
- इस काम में जागरूकता पैदा करना और सामुदायिक नेतृत्व वाले प्रयास की प्रमुखता से ज़रूरत है। गंगा नदी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व के अलावा हमें नदी से मिलने वाले आर्थिक लाभों पर भी ध्यान देना चाहिये।
- नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम के लिये युवा पीढ़ी में सामाजिक और व्यावहारिक बदलाव लाना आवश्यक है तथा यह उचित संवाद द्वारा ही लाया जा सकता है।
- वांछित परिवर्तन लाने के लिये सूचना का लक्षित प्रसार किया जाना चाहिये। स्वच्छता के प्रति पीढ़ी को जागरूक बनाने की ज़रूरत है और बाकी सब स्वतः ही ठीक हो जाएगा।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013) नेशनल पार्क - पार्क के माध्यम से बहने वाली नदी
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
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स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
डिजिटल समाचार मध्यस्थों का विनियमन
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 19 मेन्स के लिये:डिजिटल समाचार मध्यस्थों को विनियमित करने की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कनाडा ने एक विधेयक पेश किया है जिसमे इंटरनेट प्लेटफॉर्म जैसे- Google और Facebook, समाचार प्रकाशकों को उनकी सामग्री के उपयोग हेतु भुगतान करने का प्रावधान किया गया है।
अंतर्निहित विचार:
- "कनाडाई डिजिटल समाचार बाज़ार में निष्पक्षता बढ़ाने और इसकी स्थिरता में योगदान हेतु यह बिल डिजिटल समाचार मध्यस्थों को विनियमित करने का प्रयास करता है।
- इस कानून से चार नतीजे आने की अपेक्षा है।
- एक ढांँचा या फ्रेमवर्क जो डिजिटल प्लेटफॉर्म और समाचार आउटलेट के बीच उचित व्यापारिक संबंधों का समर्थन करता है।
- समाचार पारिस्थितिकी तंत्र में स्थिरता।
- प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना।
- समाचार परिदृश्य में विविधता।
प्रकाशक-प्लेटफॉर्म संबंधों की प्रकृति:
- उपकरणों और रणनीतियों का उपयोग:
- हाल ही में उनका संबंध काफी हद तक इस बात से रहा है कि प्रकाशक इन प्लेटफार्मों द्वारा प्रदान की गई पहुँच का बेहतर उपयोग करने के लिये टूल और रणनीतियों का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
- गूगल और फेसबुक बहुत सारे पारंपरिक समाचार प्रकाशकों के लिये बहुत अधिक ट्रैफ़िक प्रदान करते हैं।
- धन निर्माण:
- प्रकाशकों के संघर्ष के दौरान पूरी दुनिया के प्लेटफॉर्म इस व्यवस्था से बहुत अधिक पैसा कमाने में सक्षम हैं।
- प्रकाशकों को प्लेटफॉर्म एल्गोरिथम में बार-बार होने वाले बदलावों से भी जूझना पड़ता है, जो उनके द्वारा अचानक बड़ी मात्रा में पाठकों को खोने के वास्तविक खतरा उत्पन्न करता है।
भारत के लिये ऐसे कानून का महत्त्व:
- परिचय:
- इस मुद्दे पर कनाडा के आदेश से भारत के समाचार प्रकाशकों को देश में उचित राजस्व-साझाकरण प्रणाली मिलने की संभावना बढ़ सकती है।
- दिसंबर 2021 में भारत द्वारा कहा गया कि उसकी फेसबुक और गूगल जैसे तकनीकी दिग्गजों को समाचार सामग्री हेतु स्थानीय प्रकाशकों को भुगतान करने की कोई योजना नहीं है।
- हालाँकि डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) की एक शिकायत के बाद भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने वर्ष 2022 में पहले गूगल की जाँच का आदेश दिया था।
- आदेश की प्रक्रिया में ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस में विधानों पर ध्यान दिया गया।
- विनियमित करने की आवश्यकता:
- भारत जो कभी इस सब से अलग विश्व का सबसे बड़ा देश था शीघ्र ही विश्व के सबसे बड़े इंटरनेट-सक्षम राष्ट्रों में से एक होगा, जिसमें 800 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाएगा।
- प्रौद्योगिकी हमारी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है जो हमारे कुल उत्पादन का लगभग पांँचवांँ हिस्सा है।
- अनियंत्रित सोशल और डिजिटल मीडिया एक भरोसेमंद एवं ज़िम्मेदार राष्ट्र के रूप में भारत के उदय के साथ-साथ विश्व के सबसे बड़े भारतीय लोकतंत्र के लिये भी खतरा पैदा कर सकता है।
- इन चुनौतियों का समाधान सोशल मीडिया को कुशलतापूर्वक विनियमित करके और हमारे कानूनों व संस्थानों का आधुनिकीकरण करके किया जा सकता है।
अन्य देशों में स्थिति:
- दुनिया भर में समाचार सामग्री का उपयोग करने के लिये Google और Facebook को कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है।
- वे नियामकों और प्रकाशकों के अविश्वास के मुकदमों का भी सामना करते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन,यूरोपियन यूनियन और फ्राँस में समाचार प्रकाशकों ने एक निष्पक्ष राजस्व-साझाकरण मॉडल को लागू करने के लिये कानून बनाने की योजना बनाई है, जबकि तकनीकी दिग्गज भारी राजस्व एकत्र करने के लिये अपनी कथित एकाधिकार प्रणाली को स्थापित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ओपन-आरएएन आर्किटेक्चर
प्रिलिम्स के लिए:ओपन-आरएएन आर्किटेक्चर, 5G. मेन्स के लिये:ओपन-आरएएन आर्किटेक्चर के लाभ |
चर्चा में क्यों?
संचार मंत्रालय ने ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (O-RAN) के क्षेत्र में काम कर रहे पंजीकृत स्टार्टअप, अन्वेषकों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को मैसर्स वीवीडीएन की मौजूदा लैब में अपने उत्पाद का परीक्षण कराने की सुविधा के लिये मेसर्स वीवीडीएन टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- इस तरह के परीक्षण प्रमाणन से अनुसंधान, नवाचार, घरेलू डिज़ाइन और निर्माण में तेज़ी आएगी। इसका उद्देश्य भारत को 5जी/O-RAN में एक अग्रणी के रूप में स्थापित करना है। ये परीक्षण प्रमाणन पारिस्थितिकी तंत्र भारत को एशिया का डिज़ाइन परीक्षण और प्रमाणन का प्रमुख केंद्र बना देगा।
O-RAN:
- परिचय:
- O-RAN एक तकनीक नहीं है, बल्कि मोबाइल नेटवर्क आर्किटेक्चर में एक निरंतर बदलाव है जो विभिन्न प्रकार के विक्रेताओं से उप-घटकों का उपयोग करके नेटवर्क बनाने की अनुमति देता है।
- O-RAN एकल-विक्रेता स्वामित्व आर्किटेक्चर के विपरीत मोबाइल नेटवर्क को प्रसारित करने के लिये एक ओपन, बहु-विक्रेता आर्किटेक्चर प्रणाली है।
- O-RAN विभिन्न कंपनियों द्वारा निर्मित हार्डवेयर को एक साथ काम करने में सक्षम बनाने के लिये सॉफ्टवेयर का उपयोग करता है।
- O-RAN की प्रमुख अवधारणा RAN में विभिन्न उप-घटकों (रेडियो, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर) के बीच प्रोटोकॉल एवं इंटरफेस को "खोलना" है।
- रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN):
- यह दूरसंचार प्रणाली का हिस्सा है जो रेडियो कनेक्शन के माध्यम से व्यक्तिगत उपकरणों को नेटवर्क के अन्य भागों से जोड़ता है।
- RAN उपयोगकर्त्ता उपकरण (जैसे मोबाइल फोन, कंप्यूटर या किसी दूर से नियंत्रित मशीन) और अपने कोर नेटवर्क के साथ कनेक्शन प्रदान करता है।
- रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN):
- उद्योग इसे तकनीकी मामले के रूप में अलग-अलग RAN के रूप में संदर्भित करता है।
- O-RAN एक तकनीक नहीं है, बल्कि मोबाइल नेटवर्क आर्किटेक्चर में एक निरंतर बदलाव है जो विभिन्न प्रकार के विक्रेताओं से उप-घटकों का उपयोग करके नेटवर्क बनाने की अनुमति देता है।
- RAN के तत्त्व:
- रेडियो यूनिट (RU) वह जगह है जहांँ रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल प्रसारित, प्राप्त, प्रवर्द्धित और डिजीटल होते हैं। रेडियो यूनिट एंटीना के पास स्थित या इसमें एकीकृत होती है।
- डिस्ट्रीब्यूटेड यूनिट (DU) वह जगह है जहांँ रियल-टाइम बेसबैंड प्रोसेसिंग फ़ंक्शन होते हैं। DU को केंद्रीकृत किया जा सकता है या सेल साइट के पास स्थापित किया जा सकता है।
- केंद्रीकृत इकाई (CU) वह जगह है जहांँ अल्प समय में सेंसटिव पैकेट बनने का कार्य होता है।
- O-RAN का कार्य:
- यह RU, DU और CU के बीच का इंटरफेस है जो ओपन RAN का मुख्य फोकस है।
- इन इंटरफेस (नेटवर्क में अन्य के बीच) को खोलकर और मानकीकृत कर तथा इसके कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करके नेटवर्क को एकल विक्रेता पर निर्भर हुए बिना अधिक मॉड्यूलर डिज़ाइन के साथ तैनात किया जा सकता है।
- इस तरह के परिवर्तनों से DU और CU को वेंडर-न्यूट्रल हार्डवेयर पर वर्चुअल रूप में सॉफ़्टवेयर फंक्शंस की अनुमति मिल सकती है।
- पारंपरिक RAN:
- पारंपरिक RAN सिस्टम में मुख्यतः रेडियो, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर होते हैं।
- इसका मतलब यह है कि लगभग सभी उपकरण एक आपूर्तिकर्त्ता से आते हैं। उदाहरण के लिये एक विक्रेता के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तथा दूसरे विक्रेता के रेडियो का उपयोग करके नेटवर्क स्थापित नहीं किया जा सकता।
- समस्याएँ:
- विभिन्न प्रदाताओं की ‘सेल साइट्स’ को मिलाने से आमतौर पर प्रदर्शन में कमी आती है।
- इसका परिणाम यह है कि अधिकांश नेटवर्क ऑपरेटर कई RAN विक्रेताओं का समर्थन करते हुए एक भौगोलिक क्षेत्र में एकल विक्रेता का उपयोग करके नेटवर्क स्थापित करेंगे।
- पारंपरिक RAN सिस्टम में मुख्यतः रेडियो, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर होते हैं।
O-RAN का महत्त्व:
- नवाचार और विकल्प:
- यह एक खुले वातावरण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार करता है और अधिक विक्रेताओं द्वारा बिल्डिंग ब्लॉक प्रदान करने के साथ ऑपरेटरों के लिये अधिक नवाचार आधारित विकल्प प्रदान करता है। इसमें नई सेवाएँ भी जोड़ी जा सकती हैं।
- नए अवसर:
- यह भारतीय संस्थाओं के लिये नेटवर्क उपकरण बाज़ार में प्रवेश करने के नए अवसर खोलेगा।
- पैसे की बचत:
- इस दृष्टिकोण के लाभों में बढ़ी हुई नेटवर्क दक्षता और लागत बचत भी शामिल है।
- यह 5G को अधिक लचीला और लागत प्रभावी बनाएगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मिलेगा गैस प्लांट
प्रिलिम्स के लिये:द्वीप तटीय क्षेत्र विनियमन 2019, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह। मेन्स के लिये:तटीय क्षेत्र विनियमन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तटीय क्षेत्रों के नियमन को नियंत्रित करने वाले कानूनों में छूट को मंज़ूरी दे दी है जिसने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में गैस संचालित संयंत्रों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया है।
प्रमुख बिंदु
- द्वीप तटीय क्षेत्र विनियमन (The Island Coastal Zone Regulation-ICRZ), 2019, कमजोर तटीय हिस्सों पर बुनियादी ढांँचे के विकास को सीमित करता है।
- राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (National Coastal Zone Management Authority- NCZMA) ने सिफारिश की है कि केवल 100 वर्ग किलोमीटर से अधिक भौगोलिक क्षेत्रों वाले द्वीपों पर द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र के भीतर गैस आधारित बिजली संयंत्रों की अनुमति दी जानी चाहिये।
- इससे डीज़ल और LNG दोनों से संचालित होने वाले दोहरे ईंधन वाले बिजली संयंत्र के चालू होने की उम्मीद है।
- नीति आयोग के नीतिगत प्रयासों के बाद अंडमान क्षेत्र के विकास में रुचि बढ़ी है। एक प्रस्तावित परियोजना ग्रेटर अंडमान क्षेत्र या द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी हिस्से को विकसित करने की है।
- प्रस्तावों में 22 वर्ग किलोमीटर का हवाई अड्डा परिसर, दक्षिण खाड़ी में 12,000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (TSP), तट के समांतर एक रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम, एक मुक्त व्यापार क्षेत्र तथा दक्षिण-पश्चिमी तट पर वेयरहाउसिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण शामिल हैं।
ICRZ 2019:
- केंद्र सरकार ने उक्त क्षेत्रों में कुछ तटीय क्षेत्रों की स्थापना और विस्तार, उद्योगों, संचालन एवं प्रक्रियाओं को तटीय विनियमन क्षेत्र के रूप में घोषित किया तथा प्रतिबंध लगाए।
- केंद्र सरकार को अंडमान और निकोबार प्रशासन से द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र (आईसीआरजेड) अधिसूचना के प्रावधानों के तहत समूह-I से समूह-II द्वीपों के पुन: वर्गीकरण के संबंध में अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं।
- समूह- I: भौगोलिक क्षेत्रों वाले द्वीप> 1000 वर्ग किमी. जैसे- दक्षिण अंडमान, मध्य अंडमान, उत्तरी अंडमान और ग्रेट निकोबार।
- समूह- II: भौगोलिक क्षेत्रों वाले द्वीप> 100 वर्ग किमी. लेकिन <1000 वर्ग किमी जैसे- बारातंग, लिटिल अंडमान, हैवलॉक और कार निकोबार।
- समूह- I के लिये उच्च ज्वार रेखा से समुद्र के सामने की ओर 200 मीटर और समूह- II द्वीप समूह के लिये समुद्र के किनारे के साथ भूमि की ओर 100 मीटर तक का भूमि क्षेत्र।
तटीय विनियमन क्षेत्र:
- तटीय क्षेत्र का उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मीटर तक का क्षेत्र तथा साथ ही खाड़ी, एस्चूरिज, बैकवॉटर और नदियों के किनारों को CRZ क्षेत्र माना गया है, लेकिन इसमें महासागर को शामिल नहीं किया गया है।
- उच्च ज्वार रेखा का अर्थ है उस भूमि पर स्थित रेखा जहाँ तक वसंत ज्वार के दौरान उच्चतम जलराशि पहुँचती है।
- निम्न ज्वार रेखा का अर्थ है भूमि पर वह रेखा जहाँ तक लहर की सबसे निचली रेखा वसंत ज्वार के दौरान पहुँचती है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा तटीय विनियमन क्षेत्र घोषित किये गए हैं।
- CRZ नियम केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बनाए जाते हैं, जबकि कार्यान्वयन राज्य सरकारों द्वारा अपने तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह:
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत का केंद्रशासित प्रदेश है। इस क्षेत्र को A एंड N द्वीप समूह या ANI के रूप में जाना जाता है।
- यह हिंद महासागर में बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी भाग में इंडोनेशिया और थाईलैंड के निकट स्थित है। इसमें दो द्वीप समूह शामिल हैं - अंडमान द्वीप समूह और निकोबार द्वीप समूह जो अंडमान सागर को हिंद महासागर से पूर्व में अलग करता है।
- उत्तर में स्थित अंडमान और दक्षिण में निकोबार 10° उत्तर समानांतर अक्षांश द्वारा अलग किया जाता है। इस क्षेत्र की राजधानी अंडमानी शहर पोर्ट ब्लेयर है।
- इन द्वीपों की आधिकारिक भाषाएंँ हिंदी और अंग्रेज़ी हैं। बांग्ला प्रमुख और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, यहाँ की 26% आबादी बांग्ला भाषा बोलती है।
- विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह (PTGs) जिनकी पहचान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में की गई है। वे हैं:
- जलडमरूमध्य द्वीप के ग्रेट अंडमानी
- लिटिल अंडमान के ओंगी
- दक्षिण और मध्य अंडमान के जारावा
- सेंटिनल द्वीप के सेंटिनली जनजाति
- ग्रेट निकोबार के शोम्पेंस
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. भारत के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में मैंग्रोव वन, सदाबहार वन और पर्णपाती वन एक साथ पाए जाते है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (D) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा द्वीप युग्म 'दस डिग्री चैनल' द्वारा एक-दूसरे से विभाजित होता है? (2014) (a) अंडमान और निकोबार उत्तर: (A) प्रश्न. निम्नलिखित में से कहाँ पर प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (A) प्रश्न. निम्नलिखित में से किस स्थान पर शोम्पेन जनजाति पाई जाती है? (2009) (a) नीलगिरि हिल्स उत्तर: (B) |