विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कैंसर कारक जीन उत्परिवर्तन
प्रीलिम्स के लिये: जीन उत्परिवर्तन (Gene Mutation), चालक जीन (Driver Gene) मेन्स के लिये: कैंसर और जीन चिकित्सा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेचर (Nature)’ नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित कुछ शोधपत्रों के अनुसार, वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे जीन (Gene) की पहचान की है, जिनका उत्परिवर्तन (Mutation) कई प्रकार के कैंसर रोगों का कारण बनता है।
मुख्य बिंदु:
- आमतौर पर कैंसर शब्द का प्रयोग कई बीमारियों के लिये किया जाता है, ऐसा इसलिये है क्योंकि कैंसर के बहुत से प्रकार हैं और इन सभी के इलाज का तरीका भी एक-दूसरे से काफी भिन्न होता हैं।
- हाल ही में विश्व के अनेक अंतर्राष्ट्रीय संघों के वैज्ञानिकों द्वारा ‘नेचर (Nature)’ पत्रिका में प्रकाशित कुछ शोधपत्रों में ऐसे जीन (Gene) की पहचान का दावा किया गया है जिनमें होने वाले उत्परिवर्तन (Mutation) कई प्रकार के कैंसर का कारण बनते हैं।
- शोध से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार, सामान्यतया प्रत्येक कैंसर जीनोम में 4-5 चालक जीन (Driver Gene) की पहचान की गई है। हालाँकि लगभग 5% मामलों में किसी भी चालक जीन (Driver Gene) की पहचान नहीं की जा सकी।
चालक जीन (Driver Gene):चालक जीन, वे जीन होते हैं जिनमें होने वाले उत्परिवर्तन किसी अंग या जीन के समूह में किसी रोग (इस मामले में कैंसर) के विकास/प्रसार के लिये उत्तरदायी होते हैं। |
- वैज्ञानिकों के अनुसार, उत्परिवर्तन के लगभग आधे मामले नौ जीन वाले एक ही समूह में पाए गए।
- इस अध्ययन के लिये ‘पैन-कैंसर एनालिसिस ऑफ होल जीनोम्स’ (Pan-Cancer Analysis of Whole Genomes-PCAWG), इंटरनेशनल कैंसर जीनोम कंसोर्टियम (International Cancer Genome Consortium-ICGC) और ‘द कैंसर जीनोम एटलस’ (The Cancer Genome Atlas-TCGA) जैसे संस्थानों के सहयोग से 38 प्रकार के ट्यूमरों के 2658 होल-कैंसर जीनोम (Whole Cancer Genome) और उनके स्वस्थ ऊतकों (Tissue) की तुलना की गई।
जीन उत्परिवर्तन (Gene Mutation) क्या है?
जीन या क्रोमोसोम की संरचना अथवा क्रोमोसोम की संख्या में वंशागत परिवर्तन होना उत्परिवर्तन या म्यूटेशन (Mutation) कहलाता है। म्यूटेशन से कोशिका के आनुवंशिक संदेश में परिवर्तन आ जाता है। म्यूटेशन एक अनियमित प्रक्रिया है जो कम आवृत्ति के साथ अचानक होती है। जीन म्यूटेशन दो प्रकार के होते हैं:
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चालक उत्परिवर्तन की पहचान के लाभ:
- विशेषज्ञों के अनुसार, चालक उत्परिवर्तन की पहचान से कीमोथेरेपी जैसे पारंपरिक उपचार के स्थान पर अलग-अलग व्यक्तियों के लिये लक्षित उपचार के माध्यम से कैंसर का इलाज किया जा सकेगा।
- चालक उत्परिवर्तनों और उनके लक्षणों के बारे में बेहतर जानकारी उपलब्ध होने से कैंसर के ऐसे मामलों की समय रहते पहचान की जा सकेगी।
- चालक जीन और चालक उत्परिवर्तनों की पहचान से इसके उपचार के लिये नई दवाओं और तकनीकों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
चुनौतियाँ:
- किसी रोग के लिये उत्तरदायी जीन की पहचान करने से लेकर उसकी दवा के विकास तक बहुत लंबा समय लग जाता है। उदाहरण के लिये फेफड़े के कैंसर के लिये उत्तरदायी एक चालक जीन ALK-1 (5-6% मामलों में) की वर्ष 2006-07 में पहचान किये जाने के बाद इसकी दवा के विकास में पाँच वर्ष लगे।
- संसाधनों की कमी: वर्तमान में एक सामान्य चिकित्सा प्रयोगशाला में लगभग 1,000 जीन की जाँच/अध्ययन की क्षमता होती है, जिनमें से अधिकतम 200 को कैंसर के लिये रखा जाता है और उनमें से औसतन 40 से भी कम मामलों में दवा का निर्माण हो पाता है।
- इस शोध के दौरान लगभग 5% मामलों में किसी भी चालक उत्परिवर्तन की पहचान नहीं की जा सकी, अतः ऐसे मामलों में अभी और शोध किये जाने की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष:
चालक जीन और उनके उत्परिवार्तनों की पहचान से कैंसर के उपचार के साथ ही कैंसर के संदर्भ में व्याप्त अनिश्चितताओं को दूर करने में भी सहायता प्राप्त होगी। हालाँकि कैंसर के बारे में बड़े/बृहत् स्तर पर अध्ययनों की कमी और संसाधनों के अभाव के कारण कैंसर का उपचार आज भी एक बड़ी चुनौती है। अतः चिकित्सा क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं वैश्विक संस्थाओं को साथ मिलकर इस क्षेत्र में शोध और क्षमता विकास के लिये सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिये।
और पढ़ें:
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
चुनावी प्रक्रिया में सुधार हेतु दिशा-निर्देश
प्रीलिम्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोगमेन्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोग की चुनावी प्रक्रिया में सुधार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) के नौ कार्यकारी समूहों ने चुनावी प्रक्रिया में फेरबदल करने हेतु 25 मुख्य सिफारिशें प्रकाशित कर जनता से टिप्पणी या सुझाव मांगे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- कार्यकारी समूहों के बारे में:
- लोकसभा चुनाव के बाद ECI के अधिकारियों और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के को शामिल करते हुए इन कार्यकारी समूहों का गठन किया गया था।
- इन समूहों ने कार्यक्षेत्र से आँकड़े जुटा कर मौजूदा कानून और संस्थागत ढांँचे के संदर्भ में इन आँकड़ों का विश्लेषण किया और चुनावी प्रक्रिया को सुदृढ़ करने हेतु विकल्प सुझाए।
- मुख्य सिफारिशें:
- मतदाताओं के लिये सभी सेवाओं जैसे- पंजीकरण, पते में परिवर्तन, नामों का विलोपन इत्यादि हेतु एकल फॉर्म।
- नागरिकों के लिये चुनावी सेवाओं को सुव्यवस्थित करने हेतु नेटवर्क और इलेक्टोरल सर्विस सेंटर (Electoral Service Centres-ESC)/वोटर सुविधा केंद्रों (Voter Facilitation Centres-VFC) का विस्तार करना।
- दिव्यांग (PWD) एवं वरिष्ठ (+80 वर्ष ) नागरिकों को घर पर चुनावी सेवाएँ प्रदान करना।
- 17 वर्ष की आयु वाले भावी मतदाताओं को स्कूलों/कॉलेजों में ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- बूथ लेवल ऑफिसर ( Booth Level Officer-BLO) प्रणाली में सुधार और डिजिटलीकरण हेतु तकनीकी सुविधाओं से लैस BLO को चरणबद्ध तरीके से नियुक्त किया जाना चाहिये।
- मतदाताओं के लिये e-EPIC (Electors Photo Identity Card) का प्रावधान।
- मतदाताओं के पंजीकरण हेतु एक वार्षिक तिथि (1 जनवरी) के बजाय त्रैमासिक/अर्द्ध वार्षिक तिथियों का प्रावधान।
- अग्रिम तौर पर चुनावी रूप-रेखा तैयार करने के लिये ECI, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश या जिला स्तरों पर एक “मॉडर्न ऑनलाइन इलेक्शन प्लानिंग पोर्टल (Modern Online Election Planning Portal) ” लाॅन्च करने का प्रावधान ।
- दिव्यांग या वरिष्ठ नागरिकों को शीघ्र सेवाएँ प्रदान करने हेतु ऑनलाइन पोर्टल।
- लोक सूचना के लिये संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों, विधानसभा क्षेत्रों या मतदान केंद्रों के मानचित्रण हेतु भौगोलिक सूचना तंत्र (Geographic Information System-GIS) आधारित निर्वाचन संबंधी एटलस का उपयोग।
- निर्वाचन कैलेंडर और निर्वाचन कार्यक्रम हेतु डिजिटल पोर्टल।
- राजनीतिक दलों, समाजिक संगठनों और मीडिया कर्मियों के लिये दिशा-निर्देश कार्यक्रम।
- प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया के लिये नियम।
- प्रत्याशियों का ऑनलाइन नामांकन।
- राजनीतिक पार्टियों का खर्च निर्धारित करना।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण:
- निर्वाचन संबंधी शिक्षा और जागरूकता के लिये सरकारी संगठनों, सार्वजनिक उपक्रमों और निजी व्यापार/औद्योगिक संगठनों के साथ भागीदारी।
- सभी स्कूलों/कॉलेजों में निर्वाचन साक्षरता क्लब (Electoral Literacy Clubs) स्थापित करना।
- सभी सरकारी और निजी संगठनों में मतदाता जागरूकता मंच स्थापित करना।
- मतदाता जागरूकता हेतु सभी मतदान केंद्रों में निर्वाचन पाठशाला की स्थापना करना।
- स्कूल के पाठ्यक्रमों में मतदाता-शिक्षा का समावेश।
- मतदाता शिक्षा और जागरूकता हेतु छह क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना करना।
- जनसंचार माध्यम का सुदृढ़ीकरण:
- नई तकनीक का सक्रिय उपयोग।
- मतदाताओं और अन्य हितधारकों की शिक्षा हेतु वेब टीवी और वेब रेडियो की स्थापना करना।
- मतदाताओं के लिये दूरदर्शन या रेडियो पर एक साप्ताहिक कार्यक्रम शुरू करना।
- मतदाता शिक्षा हेतु सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करना।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
कानूनी बचाव का अधिकार
प्रीलिम्स के लियेसंवैधानिक उपचारों से संबंधित प्रावधान मेन्स के लियेअभियुक्त का प्रतिनिधित्व न करने को लेकर पारित प्रस्ताव से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि न्यायालय में अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करना वकीलों के लिये अनैतिक और गैर-कानूनी है। ध्यातव्य है कि बीते महीने स्थानीय बार एसोसिएशन ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार 4 छात्रों के प्रतिनिधित्व पर आपत्ति जताते हुए प्रस्ताव पारित किया था।
संविधान में अभियुक्त के बचाव संबंधी अधिकार
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22(1) प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद के वकील द्वारा बचाव के अधिकार से वंचित न रहे।
- वहीं संविधान का अनुच्छेद 14 भारत के राज्यक्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को विधि के समक्ष समता का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 39A राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा है, जिसके अनुसार किसी भी नागरिक को आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण से न्याय पाने से वंचित नहीं किया जाना चाहिये और राज्य मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने की व्यवस्था करेगा।
इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी
- वर्ष 2010 में ए. एस. मोहम्मद रफी बनाम तमिलनाडु राज्य वाद में जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की सर्वोच्च न्यायालय की न्यायपीठ ने इस प्रकार के प्रस्तावों की अवैधता के संबंध में टिप्पणी की थी। न्यायालय ने कहा था कि ‘देश के प्रत्येक व्यक्ति को अदालत में बचाव का अधिकार है और इसी के साथ उसका बचाव करना वकील का कर्त्तव्य है। ध्यातव्य है कि ए. एस. मोहम्मद रफी बनाम तमिलनाडु राज्य मामले का ज़िक्र कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में भी किया है।
- वर्ष 2006 में कोयंबटूर में एक वकील और पुलिसकर्मियों के बीच टकराव से उत्पन्न हुए विवाद के पश्चात् वकीलों ने पुलिसकर्मियों का प्रतिनिधित्व न करने का प्रस्ताव पारित किया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए वकीलों के इस कृत्य को गैर-पेशेवर (Unprofessional) करार दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ‘इस तरह के प्रस्ताव पूर्ण रूप से अवैध, बार की परंपराओं तथा पेशेवर नैतिकता के विरुद्ध होते हैं।
वकीलों की पेशेवर नैतिकता
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पेशेवर मानकों को लेकर कुछ नियम हैं, जो कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत वकीलों द्वारा पालन किये जाने वाले व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानकों का हिस्सा हैं।
- नियमों के अनुसार, एक वकील न्यायालय या ट्रिब्यूनल में किसी भी मुकदमे को अपने निर्धारित शुल्क के अनुरूप स्वीकार करने हेतु बाध्य है।
- हालाँकि नियमों में वकीलों द्वारा किसी मुकदमे को न स्वीकार करने को लेकर कुछ ‘विशेष परिस्थितियाँ’ स्पष्ट की गई हैं।
- बीते वर्ष उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि नियमों में उल्लिखित ‘विशेष परिस्थितियाँ’ एक व्यक्तिगत अधिवक्ता (Individual Advocate) को संदर्भित करती हैं, जो किसी विशेष मामले में प्रतिनिधित्व न करने का निर्णय ले सकता है, किंतु यह संभव नहीं है कि एक व्यक्तिगत अधिवक्ता बार एसोसिएशन से अपनी सदस्यता समाप्त होने के डर से किसी मामले में प्रतिनिधित्व करने से इनकार कर दे।
संबंधित मामले
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आगे की राह
- भारतीय संविधान के अंतर्गत भारतीय राज्यक्षेत्र में मौजूद सभी लोगों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।
- ऐसे में बार एसोसिएशन द्वारा प्रतिनिधित्व करने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने का निर्णय स्पष्ट तौर पर अनुचित दिखाई देता है, किंतु कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनमें किसी अभियुक्त का प्रतिनिधित्व करना संभव नहीं होता।
- ऐसे में आवश्यक है कि इस विषय पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पेशेवर मानकों का पालन किया जाए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों को ध्यान में रखकर उचित कदम उठाया जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान
प्रीलिम्स के लिये: राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान मेन्स के लिये: NIHFW की वार्षिक बैठक के मुख्य बिंदु |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान (National Institute of Health & Family Welfare-NIHFW) के 43वें वार्षिक दिवस (Annual Day) की अध्यक्षता की गई।
मुख्य बिंदु:
- इस अवसर पर भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिये संस्थानों के बीच तालमेल एवं सहयोग की आवश्यकता पर बल देने की बात कही गई।
- साथ ही निवारक (Preventive) और सकारात्मक स्वास्थ्य (Positive Health) पर ध्यान देने के लिये भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का मुकाबला करने हेतु आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों की भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
- साथ ही इस बात पर बल दिया गया कि आयुष्मान भारत के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को मज़बूत करते हुए केंद्रों के लिये यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि वे बीपी (BP), मधुमेह (Diabetes), तीन प्रकार के कैंसर और कुष्ठ रोग (Leprosy) आदि जैसे रोगों की स्क्रीनिंग से लैस हों , क्योकिं इन रोगों के निवारण को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 में भी प्राथमिकता दी गई है।
- इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये नए दृष्टिकोण अपनाने के साथ-साथ नीतियों पर पुनर्विचार करने के आवश्यकता होगी, इसके अलावा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को मुख्य भूमिका निभानी होगी।
- इस दौरान अकादमिक पुरस्कार प्रदान किये गए और वर्ष के सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों को भी सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान:
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स्रोत: पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
विषाक्त पदार्थों से संदूषित स्थल
प्रीलिम्स के लिये: विषाक्त पदार्थ जनित संदूषण मेन्स के लिये: संदूषण का नियमन |
चर्चा में क्यों?
‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा जारी हाल ही के आँकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 324 संभावित विषाक्त पदार्थ संदूषक स्थलों में से 128 को विषाक्त और खतरनाक पदार्थों से दूषित पाया गया, जबकि 196 स्थलों के परिणामों की अभी पुष्टि की जानी है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ऐसे स्थलों की निगरानी कर रहा है तथा जिन स्थलों को दूषित पाया जाता है उनकी सफाई की व्यवस्था करता है।
- इन संदूषित स्थलों की सफाई के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का अनुपालन ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (National Green Tribunal- NGT) के निर्देशों के अनुसार होता है।
खतरनाक रासायनिक संदूषक: वे होते हैं जो-
खतरनाक संदूषकों का आयात, खरीद एवं बिक्री, भंडारण, परिवहन, लेबलिंग, रिकॉर्ड तथा बिक्री दस्तावेज़ों का रखरखाव के माध्यम से सुरक्षित रूप से निपटान किया जाता है। |
प्रमुख संदूषित स्थल:
- ऐसे संदूषित स्थलों के मामलों में पश्चिम बंगाल (27 स्थल ) तथा ओडिशा (23 स्थल) शीर्ष पर हैं।
- एजेंसियों ने 6 राज्यों- केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल , मध्य प्रदेश में ऐसे 20 स्थलों की सफाई करने के लिये एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट या कार्ययोजना ( Plan of Action) तैयार की है।
संदूषण स्थल तथा कारक:
संदूषण स्थल |
संदूषण कारक एवं कारण |
तमिलनाडु |
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एलोर (केरल) |
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रनिया (उत्तर प्रदेश) |
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मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) |
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कोडाइकनाल (तमिलनाडु), गंजम (ओडिशा) |
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रानीपेट(तमिलनाड), लोहियानगर (उत्तर प्रदेश) |
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खराब रिकॉर्ड:
- स्वतंत्र संगठनों के अनुसार, रासायनिक दुर्घटनाओं से निपटने में भारत का खराब ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।
- ‘टाॅक्सिक लिंक’ (Toxics Link) संगठन जो कि खतरनाक अपशिष्ट निपटान की दिशा में कार्य करता है, के अनुसार, वर्ष 2016-2019 के बीच औसतन प्रतिमाह चार प्रमुख रासायनिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जबकि अनेक दुर्घटनाओं को विधिवत दर्ज ही नहीं किया गया ।
- NGT द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, खतरनाक अपशिष्ट (Hazardous Waste- HW) प्रबंधन की दिशा में अब तक तैयार की गई इन्वेंट्री (पर्याप्त संसाधन) समग्र समाधान करने में कारगर नहीं है।
संदूषण के प्रमुख कारण:
- नदी जल के भारी धातु से संदूषित होने का मुख्य कारण खनन, कबाड़ उद्योग तथा धातु सतह परिष्करण उद्योग हैं जो पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की ज़हरीली धातुओं को मुक्त करते हैं।
- पिछले कुछ दशकों में नदी के पानी और तलछटों में भी इन भारी धातुओं की सांद्रता तेज़ी से बढ़ी है। नदी जल संदूषण का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ कृषि तथा औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि है।
- भारत में मौसम के आधार पर भी संदूषण के स्तर में बदलाव देखा जाता है। उदाहरण के लिये मानसून के दौरान गंगा नदी में लोहे द्वारा संदूषण अधिक देखा जाता है लेकिन गैर-मानसून अवधि के दौरान इसमें काफी गिरावट देखी जाती है।
आगे की राह:
- ऐसे उद्योग क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ रसायन एवं अपशिष्ट पदार्थ चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- संवाद शुरू करने हेतु संबंधित उद्योग क्षेत्रों, संगठनों और समूहों को संलग्न करना।
- संकट एवं जोखिमों से निपटने हेतु संचार सुनिश्चित करना, सुरक्षित विकल्पों हेतु जोखिम प्रबंधन दृष्टिकोण एवं अवसरों की पहचान करने की दिशा में कार्य करना होगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग
प्रीलिम्स के लियेप्रथम और द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग एवं उसकी सिफारिशें मेन्स के लियेन्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की न्यायपीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्पष्ट कर दिया है कि द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग द्वारा अधीनस्थ न्यायपालिका (Subordinate Judiciary) के लिये वेतन, पेंशन और भत्तों को लेकर की गई सिफारिशों को सक्रियता से लागू किया जाना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि एक आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर अधीनस्थ न्यायपालिका स्वतंत्र न्यायपालिका के अस्तित्व का आधार है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में समाज की हिस्सेदारी होती है और इसे किसी भी कीमत पर सुरक्षित किया जाना आवश्यक है।
- वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने कर्मचारियों के लिये वेतन आयोग का गठन करें तो न्यायिक अधिकारियों के वेतन ढाँचे की अलग से समीक्षा की जाए।
- वर्ष 1993 में अपने समीक्षात्मक निर्णय में न्यायालय ने कहा कि ‘न्यायिक सेवा रोज़गार के अर्थ में कोई सेवा नहीं है और न ही न्यायाधीश कोई कर्मचारी हैं।’
- तब से यह मामला अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में सुधार के लिये किये जा रहे निरंतर प्रयासों का आधार बन गया।
द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग
- दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने वेतन, पेंशन और भत्तों से संबंधित रिपोर्ट के मुख्य भाग को प्रस्तुत कर दिया है।
- दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश का पालन करते हुए किया गया था।
- विधि एवं न्याय मंत्रालय ने 16 नवंबर, 2017 को आयोग के गठन के संदर्भ में अधिसूचना जारी की थी और आयोग ने वर्ष 2018 में अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पी.वी. रेड्डी को द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।
- इसके अलावा केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर. वसंत इस आयोग के सदस्य और दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के ज़िला न्यायाधीश विनय कुमार गुप्ता आयोग के सदस्य सचिव हैं।
- ध्यातव्य है कि प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन 21 मार्च, 1996 को किया गया था।
द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशें
- वेतन
आयोग ने विभिन्न वैकल्पिक कार्य पद्धतियों पर विचार कर पे मैट्रिक्स (Pay Matrix) अपनाने की सिफारिश की जिसे वर्तमान वेतन के 2.81 के गुणक को लागू करके निकाला गया है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि के प्रतिशत के अनुरूप है। आयोग द्वारा निर्धारित संशोधित वेतन ढाँचे के अनुसार, जूनियर सिविल न्यायाधीश/प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट जिनका शुरूआती वेतन 27,700 रुपए है उन्हें अब 77,840 रुपए मिलेंगे। जबकि वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश का वेतन 1,11,000 रुपए से और ज़िला न्यायाधीश का वेतन 1,44,840 रुपये से शुरू होगा। ज़िला न्यायाधीश का अधिकतम वेतन 2,24,100 रुपए होगा। संशोधित वेतन और पेंशन 1 जनवरी, 2016 से प्रभावी होगी। अंतरिम राहत का समायोजन करने के पश्चात् वित्तीय वर्ष 2020 के दौरान बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा।
- पेंशन
प्रस्तावित संशोधित वेतनमानों के आधार पर पिछले वेतन के 50 प्रतिशत पर पेंशन की सिफारिश की गई। परिवार की पेंशन अंतिम वेतन का 30 प्रतिशत होगी। अतिरिक्त पेंशन 75 वर्ष की आयु पूरा करने पर शुरू होगी और विभिन्न चरणों पर प्रतिशत बढ़ेगा। वर्तमान में सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी और मृत्यु ग्रेच्युटी की वर्तमान सीमा 25 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी जब DA 50 प्रतिशत पर पहुँच जाएगा।
- भत्ते
वर्तमान भत्तों को उपयुक्त तरीके से बढ़ाया जाएगा और कुछ नई बातों को शामिल किया गया है। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और अदायगी की प्रक्रिया सरल बनाने की सिफारिशें की गई हैं। पेंशनधारियों और पारिवारिक पेंशन लेने वालों को चिकित्सा सुविधाएँ दी जाएंगी। कुछ नए भत्ते जैसे बच्चों की शिक्षा से जुड़े भत्ते, होम ऑर्डरली भत्ते का प्रस्ताव रखा गया है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कृषि और जल प्रौद्योगिकियों के लिये सेक्टोरल एप्लीकेशन हब
प्रीलिम्स के लिये:सेक्टोरल एप्लीकेशन हब मेन्स के लिये:साइबर फिजिकल सिस्टम के अनुप्रयोग |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology-IIT) रोपड़, पंजाब द्वारा कृषि और जल प्रौद्योगिकियों के लिये साइबर फिजिकल सिस्टम (Cyber Physical System- CPS) के आधार पर एक सेक्टोरल एप्लीकेशन हब (Sectoral Application Hub) स्थापित किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- IIT रोपड़ की यह अपने तरह की पहली परियोजना है।
- इसके माध्यम से मल प्रबंधन( Stubble Managemen), पानी की गुणवत्ता में सुधार (Water Quality Improvement) और पानी/मृदा में खतरनाक पदार्थों के मानचित्रण कर एवं उनका उपचार किया जाएगा।
- इस हब का उद्देश्य अनुवाद संबंधी शोध (Translational Research ), प्रोटोटाइप्स (Prototypes), प्रोडक्ट्स (Products) के विकास और इंप्लीमेंटेशन (Implementations) के लिये लाइन विभागों (Line Departments) के साथ मिलकर कार्य करना है।
- यह कृषि और जल प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोगों के लिये एक मंच तैयार करेगा।
साइबर फिजिकल सिस्टम:
- यह एक एकीकृत प्रणाली है जिसमें सेंसर (Sensors), संचार (Communication), एक्चुएटर (Actuators), नियंत्रण (Control), परस्पर कंप्यूटिंग नेटवर्क (Interconnected Computing Networks) और डेटा एनालिटिक्स(Data Analytics) को शामिल किया जाता हैं।
- यह देश में कृषि और जल से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये नवाचारों को बढ़ावा देने तथा वैज्ञानिक सफलताओं और तकनीकी सहायता बढ़ाने में मदद करेगा।
संभावित अनुप्रयोग:
- चालक रहित कारें, जो स्मार्ट सड़कों पर एक-दूसरे के साथ सुरक्षित रूप से संवाद करती हैं।
- सेंसर, घर में बदलती स्वास्थ्य स्थितियों का पता लगाने के लिये।
- कृषि पद्धतियों में सुधार हेतु।
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान के लिये वैज्ञानिकों को सक्षम करना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत- यूरोपीय संघ एकीकृत स्थानीय ऊर्जा प्रणाली
प्रीलिम्स के लिये: यूरोपीय संघ मेन्स के लिये: भारत-यूरोपीय संघ के मध्य एकीकृत स्थानीय ऊर्जा प्रणाली |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत स्मार्ट यूटिलिटी सप्ताह 2020 (India Smart Utility Week 2020) के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव और भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत यूगो एस्टुटो (Ugo Astuto) की उपस्थिति में भारत-यूरोपीय संघ के मध्य एकीकृत स्थानीय ऊर्जा प्रणाली से संबंधित समझौते की महत्त्वपूर्ण घोषणा की गई।
मुख्य बिंदु:
- स्वीडन और भारत ने भारत स्मार्ट यूटिलिटी सप्ताह में भारत-स्वीडन सहयोगात्मक औद्योगिक अनुसंधान और विकास कार्यक्रम की भी घोषणा की है।
- भारत-यूरोपीय संघ का यह महत्त्वपूर्ण समझौता मिशन इनोवेशन के तहत किया गया है।
- स्वीडन और भारत अपने पहले से ही मज़बूत साझेदारी पोर्टफोलियो में एक और सहयोगी कार्यक्रम जोड़ रहे हैं।
मिशन इनोवेशन:(Mission Innovation):
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- स्मार्ट ग्रिड्स इनोवेशन चैलेंज के सह-भागीदार के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 17 भारतीय और 20 विदेशी संस्थानों की साझेदारी के साथ 9 देशों में 9 इनोवेशन मिशन परियोजनाओं का समर्थन किया जा रहा है।
संभावित लाभ:
- यह महत्त्वपूर्ण समझौता भारत-यूरोप के मध्य विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों में स्थानीय भागीदारी को शामिल करते हुए एक नवीन समाधान प्रस्तुत करेगा और उच्च ऊर्जा दक्षता क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में वृद्धि करेगा।
- इस कार्यक्रम को भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा स्वीडिश ऊर्जा एजेंसी द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा जो स्मार्ट ग्रिड क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने के लिये स्वीडन और भारत के साथ विश्व स्तरीय विशेषज्ञता स्थापित करेगा।
- भारत और यूरोपीय संघ के बीच यह साझेदारी स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता करेगी और ऊर्जा अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में मज़बूती प्रदान करेगी।
- यह सहयोग ऊर्जा आपूर्ति को पारदर्शी बनाएगा, साथ ही अधिक कुशल और सभी के लिये वहनीय बनाएगा।
- विशेष रूप से उच्च अनुसंधान विकास और नवाचार के क्षेत्र में निवेश साझेदारी और सहयोग निकट भविष्य में स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों के विकास में तेज़ी ला सकते हैं।
- स्मार्ट ग्रिड क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान तीन प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड नेटवर्क वर्चुअल सेंटर स्थापित किये गए हैं तथा अनुसंधान, विकास और नवाचार के लिये 24 देशों के साथ भागीदारी की गई है।
- भारत-स्वीडन ने औद्योगिक अनुसंधान और विकास सहयोग कार्यक्रम का नेतृत्व करते हुए संयुक्त रूप से पाँच मिलियन डॉलर का निवेश किया है जो स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को एक सुरक्षित, अनुकूल, सतत् और डिजिटल रूप से सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने और सभी के लिये विश्वसनीय एवं गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा प्रदान करने में मदद करेगा।
स्वीडन तथा भारत:
- स्थायी ऊर्जा की आपूर्ति सभी के लिये एक अनिवार्य ज़रूरत है और इसलिये सभी को विद्युत् उर्जा के आधुनिक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है जो अत्यधिक मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न कर सके।
- परिवहन क्षेत्र जीवाश्म मुक्त करना भी एक ऐसा कार्य है जहाँ भारत और स्वीडन साथ-साथ एक-दूसरे के अनुभव साझा करने से लाभान्वित हो सकते हैं।
- भारत, स्वीडन का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण साझेदार है और दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अनुसंधान और नवाचार शक्तियों में से एक है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार और स्वीडिश एनर्जी एजेंसी ने एक फंडिंग मैकेनिज़्म बनाया है जिसके माध्यम से कंपनियाँ संयुक्त अनुसंधान और विकास परियोजनाओं के लिये समर्थन प्राप्त कर सकती हैं।
- भारत-स्वीडन कार्यक्रम का उद्देश्य अभिनव उत्पादों या प्रक्रियाओं के संयुक्त विकास को बढ़ावा देना तथा अन्य सहयोगियों को एक साथ लाने वाले अनुसंधान और विकास परियोजनाओं के विकास को बढ़ावा देना और उनका समर्थन करना है।
- इस परियोजना का उद्देश्य भारत और स्वीडन के बीच सहयोग के माध्यम से उन प्रौद्योगिकियों को विकसित करना है जिनका दो साल बाद व्यवसायीकरण किया जा सकता है।
- स्वीडिश ऊर्जा एजेंसी भारत के साथ स्मार्ट ग्रिड के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार सहयोग के लिये चार साल में 2.6 मिलियन डॉलर निवेश करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग औद्योगिक अनुसंधान और विकास परियोजनाओं, नए उत्पादों, प्रक्रियाओं या प्रौद्योगिकियों के लिये सह-विकास एवं नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने हेतु भारतीय भागीदारों के समर्थन के लिये 18 करोड़ रुपए निवेश निधि के रूप में प्रदान करेगा।
- उत्पाद अनुकूलन परियोजनाओं का वित्तपोषण इस नए कार्यक्रम के तहत किया जाएगा।
आगे की राह:
पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्वीडन-भारत के मध्य विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र मे भागीदारी अधिक बढ़ी है। दोनों पक्षों की उच्चस्तरीय यात्राओं ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाया है। भारत में पहली बार नवाचार नीति पर भारत-स्वीडन उच्च स्तरीय संवाद का आयोजन दिसंबर 2019 में स्वीडन के राजा और रानी की राजकीय यात्रा के दौरान नई दिल्ली में किया गया था।
स्रोत-पीआईबी
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 मार्च, 2020
हॉकी इंडिया सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह और महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल को तीसरे हॉकी इंडिया वार्षिक पुरस्कार में वर्ष 2019 के लिये सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जबकि तीन बार के ओलंपियन हरविंदर सिंह को लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान प्रदान किया गया। मनप्रीत सिंह और रानी रामपाल को इन पुरस्कारों के तहत 25-25 लाख रुपए की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई। हॉकी इंडिया ने रानी रामपाल को वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर 2019 बनने के लिये दस लाख रुपए की राशि भी प्रदान की। जबकि हरविंदर सिंह को 30 लाख रुपए प्रदान किये गए। ध्यातव्य है कि प्रसिद्ध खिलाड़ी हरविंदर सिंह ने अपने कॅरियर में एक ओलंपिक स्वर्ण और दो ओलंपिक कांस्य पदक के अलावा एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक भी जीता है।
बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा
बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा अब ‘जॉय बांग्ला’ होगा। यह फैसला बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने लिया है। उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने इस संबंध में सभी संवैधानिक पदों पर कार्यरत लोगों और राज्य के अधिकारियों को राष्ट्रीय दिवस तथा अन्य उचित अवसरों पर भाषण के अंत में ‘जॉय बांग्ला’ कहने के लिये उचित कदम उठाने को कहा है। साथ ही अधिकारियों से अध्यापकों और छात्रों को सभा के बाद ‘जॉय बांग्ला’ नारा बोलना सुनिश्चित करने को भी कहा गया है। विदित है कि ‘जॉय बांग्ला’ वर्ष 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के दौरान प्रमुख नारा था। बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान ने भी 7 मार्च, 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता के उद्घोष के बाद ‘जॉय बांग्ला’ के नारे का प्रयोग किया था।
‘विज्ञान ज्योति’ पहल
8 मार्च, 2020 को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान व मूल्यांकन परिषद (TIFAC) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ‘विज्ञान ज्योति’ पहल को लॉन्च किया है। ‘विज्ञान ज्योति’ पहल का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को विज्ञान को अपने भविष्य के रूप में चुनने के लिये प्रोत्साहित करना और STEM शिक्षा को बढ़ावा देना है। इस पहल के तहत चयनित महिलाओं को देश के NITs, IITs और अन्य प्रमुख संस्थानों में आयोजित होने वाले विज्ञान शिविरों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाएगा। STEM का पूर्ण स्वरूप विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, Mathematics) है।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल
प्रत्येक वर्ष 10 मार्च को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force-CISF) का स्थापना दिवस मनाया जाता है। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल गृह मंत्रालय के तहत कार्य करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1969 में CISF अधिनियम, 1968 के तहत की गई थी। यह एक अर्द्धसैनिक बल है, जिसका कार्य सरकारी कारखानों एवं अन्य सरकारी उपक्रमों को सुरक्षा प्रदान करना है। यह देश के विभिन्न महत्त्वपूर्ण संस्थानों की भी सुरक्षा करता है। इस बल के जवानों की संख्या लगभग 1.50 लाख है।