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डेली न्यूज़

  • 11 Jan, 2021
  • 66 min read
भारतीय राजनीति

प्रतिबंधित विधायकों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय का नोटिस

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और भारतीय चुनाव आयोग (EC) को 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्य करार दिये गए विधायकों को सदन के बचे हुए कार्यकाल के दौरान उपचुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने से संबंधित याचिका पर जवाब देने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • मणिपुर, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे कई राज्यों की हालिया राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि में यह पाया गया है कि विधानसभा के सदस्य अपनी सदस्यता से त्यागपत्र दे देते हैं जिसकी वजह से सरकार अल्पमत की स्थिति में आ जाती है और उसका पतन हो जाता है। इसके पश्चात् ये विधायक प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पार्टी द्वारा गठित नई सरकार में फिर से मंत्री बन जाते हैं।

याचिकाकर्त्ता द्वारा दिये गए तर्क:

  • दलील में कहा गया है कि यदि 10वीं अनुसूची के तहत एक बार किसी सदन के सदस्य को अयोग्य घोषित किया जाता है तो उस व्यक्ति को  फिर से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है(संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार)।
  • यदि उसे संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन निरर्हित कर दिया जाता है तो सदन को उस अयोग्य सदस्य को संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (e) के तहत निरर्हित घोषित करना होगा और उस सदस्य को (जिसके लिये उसे चुना गया था) फिर से चुने जाने से भी वंचित होना पड़ेगा ।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

10वीं अनुसूची का पैरा 2:

  • यह सूचित करता है कि विधायकों को "सदन का सदस्य होने के लिये अयोग्य ठहराया गया है।"

अनुच्छेद 172:

  • यह सदन के 5 वर्षों के कार्यकाल के साथ सदन की सदस्यता का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 191 (1) (e):

  • 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित होने पर व्यक्ति को किसी राज्य की विधानसभा या विधानपरिषद की सदस्यता के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा।

10वीं अनुसूची:

  • संविधान में 10वीं अनुसूची को वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
  • यह उस प्रक्रिया को पूरा करता है जिसके तहत विधायकों को विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल के आधार पर अयोग्य ठहराया जा सकता है।
  • यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर लागू होता है।

निरर्हता:

  • दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को निम्नलिखित स्थितियों अयोग्य घोषित किया जा सकता है:
    • यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
    • यदि कोई निर्वाचित निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
    • यदि किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
    • यदि कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
    • छह महीने की समाप्ति के बाद यदि कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  • दल-बदल अधिनियम के अपवाद
    • यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
    • यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का विलय किसी दूसरी पार्टी में किया जा सकता है।

पीठासीन अधिकारी का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है:

  • वर्ष 1993 के किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू वाद में उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा था कि विधानसभा/लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होगा। विधानसभा/लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने माना कि 10वीं अनुसूची के प्रावधान संसद और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित सदस्यों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं करते हैं। साथ ही ये संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन भी नहीं करते।

पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्णय हेतु समयसीमा:

  • कानून के अनुसार, ऐसी कोई समयसीमा नहीं है जिसके भीतर पीठासीन अधिकारियों द्वारा अयोग्यता से संबंधित याचिका पर निर्णय लेना अनिवार्य हो।
  • अधिकारी के निर्णय लेने के पश्चात् ही न्यायालय भी इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है, इसलिये याचिकाकर्त्ता के समक्ष एकमात्र विकल्प यह होता है कि वह निर्णय होने तक प्रतीक्षा करे।
  • ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ न्यायालयों ने इस तरह की याचिकाओं में अनावश्यक देरी पर चिंता व्यक्त की है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्णय लिया कि जब तक किसी प्रकार की "असाधारण परिस्थितियाँ" विद्यमान न हों, लोकसभा अध्यक्ष को 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर निर्णय ले लेना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्राकृतिक पूंजी लेखा एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की मूल्यांकन परियोजना

चर्चा में क्यों?

प्राकृतिक पूंजी लेखा एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (Natural Capital Accounting and Valuation of the Ecosystem Services) इंडिया फोरम -2021 का आयोजन सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) द्वारा किया जा रहा है।

  • MoSPI द्वारा प्राकृतिक पूंजी लेखा एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की मूल्यांकन परियोजना के तहत कई पहलें की गई हैं, जिसका उद्देश्य भारत में इकोसिस्टम अकाउंटिंग यानी पारिस्थितिक लेखांकन के सिद्धांत और व्यवहार को आगे बढ़ाना है।

प्रमुख बिंदु

परियोजना के विषय में:

  • यूरोपीय संघ (European Union) द्वारा वित्तपोषित NCAVES परियोजना को संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (United Nations Statistics Division), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) और जैव विविधता सम्मेलन (Convention of Biological Diversity) के सचिवालय द्वारा संयुक्त रूप से लागू किया गया है।
  • भारत इस परियोजना में भाग लेने वाले पाँच देशों  (ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको) में शामिल है।
  • भारत में NCAVES परियोजना को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre) के सहयोग से सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

प्राकृतिक पूंजी लेखा:

  • प्राकृतिक पूंजी लेखा (Natural Capital Accounting) एक अम्ब्रेला शब्द है जो प्राकृतिक पूंजी के स्टॉक और प्रवाह को मापने तथा रिपोर्ट करने के लिये एक व्यवस्थित तरीका प्रदान करता है।
    • प्राकृतिक पूंजी का आशय अक्षय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों के भंडार से है जो लोगों के जीवन यापन के लिये बहुत उपयोगी होते हैं।
  • NCA के तहत व्यक्तिगत पर्यावरणीय संपत्ति या संसाधनों के जैविक और अजैविक जैसे- पानी, खनिज, ऊर्जा, लकड़ी, मछली आदि के लेखांकन के साथ-साथ पारिस्थितिक तंत्र परिसंपत्तियों, जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का भौतिक एवं मौद्रिक दोनों रूप से लेखांकन किया जाता है।
  • जैसे किसी देश के राष्ट्रीय खातों के संकलन को सिस्टम ऑफ नेशनल अकाउंट (SNA) द्वारा निर्देशित किया जाता है, वैसे ही प्राकृतिक पूंजी लेखा हेतु पर्यावरण-आर्थिक लेखा (Environmental-Economic Accounting) प्रणाली को अपनाया जाता है।
    • पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच की कड़ी को मापने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है।
    • SEEA-सेंट्रल फ्रेमवर्क को फरवरी 2012 में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय आयोग द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय मानक के रूप में अपनाया गया था।
    • यह लेखांकन प्रणाली पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संबंध को प्रत्यक्ष रूप से सामने लाती है जो आर्थिक गतिविधियों के पारंपरिक उपायों जैसे सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) के माध्यम से प्रकट नहीं हो पाते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाएँ:

  • पारिस्थितिकी तंत्र का एक भाग होने की वजह से मानव को जैव और अजैव घटकों से बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं। इन लाभों को ही सामूहिक रूप से पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के रूप में जाना जाता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
  • उपबंधित सेवाएँ: इसमें पारिस्थितिक तंत्र से प्राप्त होने वाले उत्पाद/कच्चा माल या ऊर्जा जैसे- खाद्य, पानी, दवाइयाँ आदि संसाधन शामिल हैं।
  • विनियमित सेवाएँ: इसमें ऐसी सेवाएँ शामिल हैं जो पारिस्थितिकी संतुलन को नियंत्रित करती हैं जैसे- वन, जो कि वायु की गुणवत्ता को शुद्ध और विनियमित करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ग्रीनहाउस गैसों आदि को नियंत्रित करते हैं।
  • सहायक सेवाएँ: ये विभिन्न जीवों हेतु निवास स्थान प्रदान करते हैं और जैव विविधता, पोषण चक्र तथा अन्य सेवाओं को बनाए रखते हैं।
  • सांस्कृतिक सेवाएँ: इसमें मनोरंजन, सौंदर्य, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सेवाएँ आदि शामिल हैं। अधिकांश प्राकृतिक तत्त्व जैसे कि परिदृश्य, पहाड़, गुफाएँ आदि का उपयोग सांस्कृतिक और कलात्मक उद्देश्यों के लिये किया जाता है।

लाभ:

  • इस परियोजना में भागीदारी से सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को UN-SEEA फ्रेमवर्क के अनुरूप पर्यावरणीय खातों के संकलन और वर्ष 2018 से वार्षिक आधार पर अपने प्रकाशन "एनवीस्टैट्स इंडिया" (EnviStats India) में पर्यावरणीय खातों को जारी करने में मदद मिली है।
  • इनमें से कई खाते सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं से निकटता से जुड़े हैं, जो कि उन्हें इस नीति का एक उपयोगी उपकरण बनाते हैं।
  • NCAVES परियोजना के तहत एक अन्य उपलब्धि भारत–EVL उपकरण का विकास है, जो कि अनिवार्य रूप से देश भर में किये गए लगभग 80 अध्ययनों पर आधारित देश के विभिन्न राज्यों में अनेक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यों की तस्वीर पेश करने वाला एक उपकरण है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र लेखांकन पारिस्थितिकी तंत्रों की सीमा, चयनित संकेतकों के आधार पर उनकी स्थिति और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रवाह के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

लिथियम का घरेलू अन्वेषण

चर्चा में क्यों?

परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (Atomic Minerals Directorate for Exploration and Research- AMD) के हालिया सर्वेक्षणों से कर्नाटक के मांड्या ज़िले में लिथियम संसाधनों (Lithium Resources) की उपस्थिति का पता चला है।

  • AMD, परमाणु ऊर्जा विभाग ( Department of Atomic Energy)  की सबसे पुरानी इकाई है।

प्रमुख बिंदु: 

लिथियम के बारे में:

  • गुण :
    • यह एक रासायनिक तत्त्व है जिसका प्रतीक  (Li) है 
    • यह एक नरम तथा चांदी के समान सफेद धातु है।
    • मानक परिस्थितियों में, यह सबसे हल्की धातु और सबसे हल्का ठोस तत्त्व है।
    • यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और ज्वलनशील है अत: इसे खनिज तेल में संगृहित किया जाना चाहिये।
    • यह क्षारीय एवं एक दुर्लभ धातु है।
      • क्षार धातुओं में लिथियम, सोडियम, पोटेशियम, रुबिडियम, सीज़ियम और फ्रेंशियम रासायनिक तत्त्व शामिल हैं। ये हाइड्रोजन के साथ मिलकर समूह-1 (group 1) जो आवर्त सारणी (Periodic Table) के एस-ब्लॉक (s-block) में स्थित है, का निर्माण करते हैं।
      • दुर्लभ धातुओं (Rare Metals- RM) में नायोबियम (Nb), टैंटेलम (Ta), लिथियम (Li), बेरिलियम (Be), सीज़ियम (Cs) आदि और दुर्लभ मृदा तत्त्वों  (Rare Earths- RE) में स्कैंडियम (Sc) तथा इट्रियम (Y) के अलावा लैंटेनियम (La) से लुटीशियम(Lu) तक के तत्त्व शामिल हैं।
        • ये धातुएँ अपनी सामरिक महत्त्व के कारण परमाणु और अन्य उच्च तकनीकी उद्योगों जैसे इलेक्ट्रॉनिकस, दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, रक्षा आदि में उपयोग की जाती हैं।
  • अनुप्रयोग:
    •  लिथियम धातु का अनुप्रयोग उपयोगी मिश्रित धातुओं को बनाने में किया जाता है।
      • उदाहरण के लिये- मोटर इंज़नों में सफेद धातु की बियरिंग बनाने में, एल्युमिनियम के साथ विमान के पुर्जे बनाने में तथा मैग्नीशियम के साथ आर्मपिट प्लेट बनाने में।
    • थर्मोन्यूक्लियर अभिक्रियाओं में।
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल बनाने में। 
    • इलेक्ट्रिक वाहन, लैपटॉप आदि के निर्माण में लिथियम एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

कर्नाटक में लिथियम संसाधन:

  • सर्वेक्षण में कर्नाटक के मांड्या ज़िले (Mandya District) के मार्लगल्ला-अल्लापटना (Marlagalla-Allapatna) क्षेत्र की आग्नेय चट्टानों (Igneous Rocks) में 1,600 टन लिथियम संसाधनों की मौजूदगी का पता चला है।

घरेलू अन्वेषण के लाभ:

  • आयात लागत का कम होना:
    • वर्तमान में लिथियम से संबंधित सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भारत द्वारा इसका आयात किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार,  वर्ष 2016-17 और वर्ष 2019-20 के मध्य 165 मिलियन लिथियम बैटरियों का आयात किया गया था,  जिनके आयात पर कुल खर्च 3.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है।
  • चीन पर निर्भरता में कमी:
    • चीन लिथियम-आयन ऊर्जा भंडारण उत्पादों का एक प्रमुख स्रोत है जिससे देश में लिथियम का आयात का किया जा रहा है। अतः भारत में लिथियम के भंडार मिलने से चीन से आयातित लिथियम पर निर्भरता कम होगी।

घरेलू अन्वेषण से जुड़े मुद्दे:

  • इस नई खोज को ‘इंफेरेड’ (Inferred) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
    • ‘इंफेरेड’ (‘Inferred) श्रेणी में उन संसाधनों को शामिल किया जाता है, जिनकी मात्रा और ग्रेड अथवा गुणवत्ता का अनुमान  सीमित भूगर्भीय साक्ष्यों एवं नमूनों के आधार पर लगाया जाता है।
    • बोलिविया (21 मिलियन टन), अर्जेंटीना (17 मिलियन टन), ऑस्ट्रेलिया (6.3 मिलियन टन) और चीन (4.5 मिलियन टन) में अब तक खोजे गए लिथियम भंडारों की तुलना हाल ही में भारत में खोजा गया लिथियम भंडार काफी छोटा है।
  • भारत ने लिथियम मूल्य शृंखला में काफी देरी से प्रवेश किया है, वह एक ऐसे समय में बाज़ार में प्रवेश कर रहा है, जब इलेक्ट्रिक  वाहन उद्योग अपने विकास के नए दौर में प्रवेश करने जा रहा है।
    • वर्ष 2021 में ली-आयन तकनीक में कई संभावित सुधारों के साथ बैटरी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने की संभावना है।

निष्कर्षण विधि

  • भंडार के प्रकार के आधार पर लिथियम का अलग-अलग तरीकों से निष्कर्षण किया जा सकता है। 
    • बड़े लवण जलकुंडों (Brine Pool) का सौर वाष्पीकरण।
      • एक लवणीय जलकुंड समुद्र तल अवसाद(Seafloor Depression) में एकत्र किये गए लवण की मात्रा है।
      • उदाहरण के लिये: राजस्थान की खारे पानी की सांभर और पचपदरा झील में एकत्र किये गए  लवण की मात्रा। 
    • अयस्क का हार्ड-रॉक निष्कर्षण (एक धातु-असर खनिज)
      • उदाहरण: मांड्या में पत्थर खनन

अन्य संभावित स्थान

  • राजस्थान, बिहार और आंध्र प्रदेश में मौजूद प्रमुख अभ्रक बेल्ट।
  • ओडिशा और छत्तीसगढ़ में मौजूद पैगमाटाइट (आग्नेय चट्टानें) बेल्ट।
  • राजस्थान में सांभर और पचपदरा तथा गुजरात के कच्छ के रण की खारे/लवणीय जलकुंड।

अन्य भारतीय पहलें

  • भारत ने सरकारी स्वामित्त्व वाली कंपनी ‘खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड’ के माध्यम से अर्जेंटीना, जहाँ विश्व में धातु का तीसरा सबसे बड़ा भंडार मौजूद है, में संयुक्त रूप से लिथियम की खोज करने के लिये अर्जेंटीना की एक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड का प्राथमिक कार्य विदेशों में विशिष्ट खनिज संपदा जैसे लिथियम और कोबाल्ट आदि का अन्वेषण करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोरोनावायरस का नया स्वरूप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने कोरोनावायरस के दक्षिण अफ्रीकी उपभेद/स्ट्रेन (Strain) के संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की है।  

प्रमुख बिंदु: 

क्या है कोरोनावायरस का दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन?

  • दक्षिण अफ्रीका में कोरोनोवायरस के स्पाइक प्रोटीन में N501Y उत्परिवर्तन की पुष्टि के कारण इस स्ट्रेन को 501Y.V2 का नाम दिया गया है, गौरतलब है कि कोरोनावायरस शरीर के अंदर कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिये इसी प्रोटीन का उपयोग करता है।  
    • स्पाइक प्रोटीन में यह परिवर्तन संभवतः वायरस के व्यवहार को संक्रमित करने की इसकी क्षमता, बीमारी की गंभीरता या टीके द्वारा प्राप्त प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बच जाने आदि रूपों में प्रभावित कर सकता है। 
  • यह उत्परिवर्तन यूके द्वारा WHO को अधिसूचित नए स्ट्रेन (Strain) में भी पाया गया था।
    • हालाँकि ब्रिटेन में देखे गए उत्परिवर्तित वायरस में भी N501Y उत्परिवर्तन पाया गया है परंतु जातिवृत्तीय विश्लेषण से पता चलता है कि दक्षिण अफ्रीका में पाया गया 501Y.V2 वायरस वेरिएंट अलग है।   
    • जातिवृत्तीय विश्लेषण (Phylogenetic Analysis) एक प्रजाति या जीवों के एक समूह या जीव के एक विशेष लक्षण के क्रमगत विकास का अध्ययन है। 

चिंताएँ: 

  • प्रारंभिक परीक्षणों से पता चला है कि SARS-CoV2 के खिलाफ प्रभावी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कोरोनावायरस के दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के खिलाफ कम प्रभावी हैं।

टीकाकरण का प्रभाव: 

  • वर्तमान में यूके और दक्षिण अफ्रीका की प्रयोगशालाओं में उन लोगों के सीरम का परीक्षण किया जा रहा है जिनको COVID-19 का टीका लगाया जा चुका है, ताकि इस बात की जाँच की जा सके कि क्या यह टीका दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन को  बेअसर कर सकता है या नहीं।

वायरस उत्परिवर्तन की निगरानी:

  • वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग और ‘ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फ्लूएंज़ा डेटा’ (GISAID) जैसे सार्वजनिक जीनोमिक अनुक्रम डेटाबेस WHO तथा अन्य  भागीदारों को वायरस की शुरुआत से ही इसकी निगरानी करने में सक्षम बनाता है।
    • GISAID, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा देशों को जीनोम अनुक्रम साझा करने के लिये वर्ष 2008 में शुरू किया गया एक सार्वजनिक मंच है।
    • GISAID पहल मानव वायरस से जुड़े सभी इन्फ्लूएंज़ा वायरस अनुक्रम, महामारी विज्ञान और संबंधित नैदानिक डेटा तथा एवियन एवं अन्य जानवरों  से जुड़े वायरस के भौगोलिक व प्रजाति-विशिष्ट डेटा के अंतर्राष्ट्रीय साझाकरण को बढ़ावा देता है।

भारत में उत्परिवर्ती स्ट्रेन की स्थिति:

  • भारत में ब्रिटेन के उत्परिवर्ती स्ट्रेन के 82 मामले दर्ज किये गए हैं, जबकि अभी तक दक्षिण अफ्रीका के उत्परिवर्ती स्ट्रेन का कोई मामला सामने नहीं आया है।

पूर्व के उत्परिवर्तन:

  • D614G उत्परिवर्तन: 
    • इस विशेष उत्परिवर्तन ने वायरस को मनुष्यों में ACE2 रिसेप्टर के साथ अधिक कुशलतापूर्वक जुड़ने में सहायता प्रदान की, जिससे यह अपने पूर्ववर्ती स्ट्रेन की तुलना में मानव शरीर में प्रवेश करने में अधिक सफल रहा।
    • D614G ने संक्रामकता में वृद्धि के साथ संक्रमित व्यक्ति की नाक और गले के अंदर कोशिकाओं की दीवारों से खुद को जोड़ने में उन्नत क्षमता प्रदर्शित की, जिससे वायरल लोड बढ़ गया।
  • N501Y उत्परिवर्तन: 
    • इस मामले में स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से में एकल न्यूक्लियोटाइड परिवर्तन हुआ है, इसलिये रोग की जैविक संरचना या इसके निदान पर कोई असर नहीं होगा।
    • इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि यह स्ट्रेन अधिक संक्रामक या उपचार अथवा टीकाकरण के प्रति अधिक गंभीर/प्रतिरोधी है।

उत्परिवर्तन (Mutation)

  • उत्परिवर्तन का तात्पर्य वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन से है। 
    • SARS-CoV-2 जो कि एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस है, के मामले में उत्परिवर्तन अथवा म्यूटेशन का तात्पर्य उस अनुक्रम में परिवर्तन से है जिसमें उसके अणु व्यवस्थित होते हैं।
    • SARS-CoV-2 कोविड-19 के लिये उत्तरदायी वायरस है।
    • RNA एक महत्त्वपूर्ण जैविक बृहद् अणु (Macromolecule) है जो सभी जैविक कोशिकाओं में उपस्थित होता है।
      • यह मुख्य रूप से प्रोटीन संश्लेषण में शामिल होता है। यह डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic acid- DNA) के निर्देशों द्वारा नियंत्रित होता है, इसमें जीवन के विकास एवं रक्षण हेतु आवश्यक आनुवंशिक निर्देश शामिल होते हैं।
    • डीएनए एक कार्बनिक रसायन है, जिसमें आनुवंशिक जानकारी तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिये निर्देश शामिल होते हैं। यह प्रत्येक जीव की अधिकांश कोशिकाओं में पाया जाता है।
  • RNA वायरस में उत्परिवर्तन प्रायः तब होता है जब स्वयं की प्रतिकृति बनाते समय वायरस से कोई चूक हो जाती है।
    • यदि उत्परिवर्तन/म्यूटेशन के परिणामस्वरूप प्रोटीन संरचना में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो ही किसी बीमारी के प्रकार में बदलाव हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

गृहकार्य हेतु वेतन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु की एक राजनीतिक पार्टी द्वारा अपने चुनावी अभियान प्रचार के दौरान गृहिणियों को वेतन देने का वादा किया गया।

  • इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन (International Labour Organization- ILO) की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर महिलाओं की कुल आबादी पुरुषों की तुलना में तीन गुना से भी अधिक, जो बिना वेतन कार्य करने के कुल घंटों में 76.2% हिस्सेदारी प्रदर्शित करती हैं। एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यह आंँकड़ा 80% तक है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • गृहकार्यों के लिये वेतन की मांग हेतु आंदोलन:
    •  वर्ष 1972 में इटली में इंटरनेशनल वेज़ेस फॉर हाउसवर्क कैंपेन (International Wages for Housework Campaign) को एक नारीवादी आंदोलन के रूप में शुरू किया गया, जिसने परिवार में लैंगिक श्रम की भूमिका और पूंजीवाद के तहत अधिशेष मूल्य के उत्पादन से इसके संबंध को उज़ागर किया। आगे चलकर यह आंदोलन  ब्रिटेन और अमेरिका तक फैल गया।
    • अन्य मांगों के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक समानता हेतु महिलाओं के अधिकारों का प्रचार करने वाले महिला संगठनों द्वारा घरेलू महिलाओं के ‘निजी’ गृहकार्य जिसमें बाल देखभाल तथा घर में किये जाने वाले रोज़मर्रा के कार्य शामिल हैं, का राजनीतिकरण किया।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • वर्ष 2010 में नेशनल हाउसवाइव्स एसोसिएशन (National Housewives Association) द्वारा  मान्यता प्राप्त करने हेतु  ट्रेड यूनियन (Trade Union) के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया गया जिसे ट्रेड यूनियनों के डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि गृहकार्य व्यापार या उद्योग की श्रेणी में शामिल नहीं हैं। 
    • वर्ष 2012 में तत्कालीन महिला और बाल विकास मंत्री द्वारा घोषणा की गई कि सरकार पतियों द्वारा पत्नियों को गृहकार्य हेतु आवश्यक वेतन  दिये जाने पर विचार कर रही है। इसका उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और उन्हें सम्मान के साथ जीने में मदद करना था।
      • यह प्रस्ताव कभी अमल में नहीं आया तथा वर्ष 2014 में सरकार बदलने के साथ ही इस विचार पर भी विराम लग गया।

मुद्दे:

  • गृहकार्य महिलाओं से वर्ष में 365 दिन, 24/7 श्रम की मांग करता  है,  बावजूद इसके भारतीय महिलाओं की आबादी के एक बड़े हिस्से को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • बड़ी संख्या में महिलाएंँ घरेलू हिंसा और क्रूरता को सहन करती हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर हैं, मुख्यतः अपने  पति पर।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey Organisation) द्वारा एकत्र किये गए वर्ष 2019 के टाइम-यूज़ डेटा से पता चला है कि चार-चौथाई महिलाओं की तुलना में पुरुष तथा  छह वर्ष से अधिक उम्र के बालकों की कुल एक-चौथाई संख्या अवैतनिक घरेलू कार्यों में संलग्न है।
    • प्रतिदिन एक औसत भारतीय पुरुष द्वारा एक महिला द्वारा किये गए लगभग पांँच घंटे के कार्य की तुलना में अवैतनिक घरेलू काम में प्रतिदिन 1.5 घंटे खर्च किये जाते हैं।

गृहिणियों को वेतन देने के पक्ष में तर्क:

  • अधिक सटीक राष्ट्रीय आय लेखांकन: महिलाओं के घरेलू श्रम को सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) या रोज़गार मेट्रिक्स में शामिल नहीं किया जाता है। इसे शामिल न करने का मतलब है, अर्थव्यवस्था की जीडीपी को कम करके आंँकना।
  • महिला को स्वायत्तता प्रदान करना और घरेलू हिंसा को रोकना: राज्य द्वारा महिलाओं को वेतन का भुगतान किये जाने से उन्हें उन पुरुषों से स्वायत्तता प्रदान होगी  जिन पर वे निर्भर हैं। 
    • अधिकांश महिलाएंँ एक अपमानजनक या असहनीय रिश्ते में जीवन व्यतीत करती हैं क्योंकि आर्थिक रूप से अपने साथी पर निर्भर रहने के अलावा उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है।
  • महिलाओं की भूमिका को परिभाषित करना: मूल रूप से महिलाओं के गृहकार्य हेतु वेतन संबंधी यह मांग एक वर्ग विशेष की उस धारणा का खंडन करती है, जिसके मुताबिक ‘गृहकार्य’ केवल महिलाओं का दायित्व है। इस प्रकार यह मांग महिलाओं को सौंपी गई उनकी सामाजिक भूमिका के खिलाफ एक विद्रोह जैसी स्थिति है।
  • जनसंख्या के एक बड़े अंश का कल्याण: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, घरेलू कार्यों में लगे लोगों को गैर-श्रमिक माना जाता है, जबकि 159.9 मिलियन महिलाओं ने कहा था कि "घरेलू काम" उनका मुख्य व्यवसाय था।
  • समानता हेतु पहले कदम के रूप में मान्यता: घरेलू कार्यों को मान्यता प्रदान करना महिला सशक्तीकरण हेतु प्रमुख केंद्रीय प्रक्रियाओं में से एक है। यह उन पितृसत्तात्मक भारतीय परिवारों में महिलाओं के लिये समानता का दावा करती है जिनकी पहचान केवल पुरुषों द्वारा किये गए कार्यों के कारण है।
    • एक बार मान्यता प्राप्त होने के बाद महिलाओं के वर्चस्व वाला अवैतनिक घरेलू श्रम क्षेत्र लगभग पूरी तरह से एक प्रमुख श्रम क्षेत्र में तब्दील हो सकता है जहांँ महिलाएंँ समय और ऊर्जा के संदर्भ में कुछ हद तक समानता की मांग कर सकती हैं।
  • समय का अभाव (टाइम पावर्टी): 
    • यदि कार्य हेतु भुगतान की प्रतिबद्धताओं को घर के निम्न श्रेणी के कार्यों तथा घरेलू श्रम के साथ संबद्ध कर दिया जाता है तो गरीब महिलाओं के 'टाइम पावर्टी' से पीड़ित होने की संभावना अधिक हो जाएगी अर्थात् उनके पास समय का अभाव हो जाएगा।
    • समय का अभाव मूल रूप से महिलाओं के मानव अधिकारों का हनन करता है क्योंकि यह महिला समूहों और उनके निर्माण क्षमता को कम करती है। काम का अत्यधिक बोझ महिलाओं को आगे की शिक्षा, रोज़गार के अवसरों तक उनकी पहुँच को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
  • गृहिणियों को वेतन देने के विपक्ष में तर्क:
    • ज़िम्मेदारी का बढ़ना: पुरुषों द्वारा महिलाओं को घरेलू कार्यों का भुगतान किये  जाने से पुरुषों में पुरुषत्व अधिकारों की भावना और अधिक बढ़ सकती है। इससे पुरुषों पर महिलाओं की ज़िम्मेदारी का अतिरिक्त भार डाला जा सकता है।
    • पुरुषों की स्थिति मज़बूत होना: घरेलू कार्यों हेतु  पत्नी को भुगतान करने से  भारतीय पितृसत्तात्मक परिवार की अवधारणा के और अधिक औपचारिक होने होने का खतरा हो सकता है क्योंकि इन परिवारों में पुरुष को ‘प्रदाता’ के रूप में देखा जाता है।
    • स्वीकृति और आवेदन: कानूनी प्रावधानों के बावजूद  अधिकांश महिलाओं के लिये समानता का अधिकार दूर की बात है।
    • सरकार पर बोझ: अभी भी इस मुद्दे पर बहस चल रही है कि महिलाओं द्वारा किये गए गृहकार्य का भुगतान कौन करेगा, अगर यह राज्य द्वारा किया जाना है तो इससे सरकार पर  अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा।

आगे की राह 

  • हमें महिलाओं के लिये अन्य मौजूदा प्रावधानों जैसे-पति के  घर में निवास करने का अधिकार, स्त्री धन और मुस्लिम महिलाओं को मेहर का अधिकार, हिंसा तथा तलाक के मामलों में मुफ्त कानूनी सहायता एवं रखरखाव आदि के बारे में जागरूकता फैलाने, कार्यान्वयन और उपयोग को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • दैनिक कार्यों  में महिलाओं को  अधिक सहभागी बनाने हेतु उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कार्य तक पहुँच और अवसर की समानता, लैंगिक संवेदनशीलता तथा उत्पीड़न-मुक्त कार्यस्थलों, परिवारों के व्यवहार परिवर्तन आदि के माध्यम से प्रोत्साहित एवं मदद करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मुकुंदपुरा CM2

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन ने वर्ष 2017 में जयपुर के मुकुंदपुरा गाँव में गिरे मुकुंदपुरा सीएम 2 (Mukundpura CM2) नामक एक  उल्कापिंड की खनिज विशेषताओं (Mineralogy) पर प्रकाश डाला है।

  • उल्कापिंड, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह जैसे अंतरिक्ष पिंडों के मलबे का एक ठोस टुकड़ा है, जिसकी उत्पत्ति बाह्य अंतरिक्ष में होती है।

प्रमुख बिंदु:

मुकुंदपुरा CM 2 के संबंध में:

  • मुकुंदपुरा CM2 नामक उल्कापिंड को एक कार्बनसियस कोन्ड्राइट (carbonaceous chondrite- CC) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। कार्बनसियस कोन्ड्राइट की संरचना भी सूर्य के समान है।
  • कोन्ड्राइट सिलिकेट ड्रिप बेयरिंग उल्कापिंड है और मुकुंदपुरा कोन्ड्राइट को भारत में गिरने वाला 5वाँ सबसे बड़ा कार्बनसियस उल्कापिंड माना जाता है।

उल्कापिंड का वर्गीकरण: 

  • उल्कापिंडों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है: स्टोनी  (सिलिका), आयरन (Fe-Ni मिश्र धातु) और स्टोनी आयरन (मिश्रित सिलिकेट लौह मिश्र धातु)।
  • मुकुंदपुरा CM2 एक प्रकार का स्टोनी उल्कापिंड है, जिसे सबसे प्राचीन उल्कापिंड माना जाता है और यह सौरमंडल में निर्मित पहले ठोस पिंडों का अवशेष है।

उल्कापिंड के घटक:

  • विस्तृत स्पेक्ट्रोस्कोपिक (Spectroscopic) अध्ययनों के अनुसार, उल्कापिंड में अत्यधिक मात्रा में (लगभग 90%) फाइटोसिलिकेट (Phyllosilicate) खनिज पाए गए जिसमें मैग्नीशियम और लोहा दोनों की उपस्थिति है।
  • फोर्स्टराइट (Forsterite) और FeO ओलिविन, कैल्शियम एल्युमीनियम समृद्ध समावेशित (CAI) खनिज।
  • कुछ मैग्नेटाइट्स (Magnetites), सल्फाइड्स, एल्युमीनियम कॉम्प्लेक्स और कैल्साइट्स (Calcites) भी पाए गए।

उल्कापिंड के अध्ययन का महत्त्व:

  • सौरमंडल के इतिहास को समझना
  • वर्तमान में सौरमंडल में सूर्य और ग्रहों के विकास को समझना।
  • उल्कापिंडों के प्रभाव को समझना।
  • ये अक्सर वाष्पशील और अन्य खनिजों से समृद्ध होते हैं और भविष्य में ग्रहों की खोज में सहायक हो सकते है।

उल्का और उल्कापिंड में अंतर:

  • जब उल्कापिंड तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल (या किसी अन्य ग्रह, जैसे मंगल) में जलते हुए प्रवेश करते हैं, तो ये आग के गोले या "शूटिंग सितारे" (Shooting Stars) उल्का कहलाते हैं।
  • उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बच जाता है और पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं

MukundPura

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

प्रवासी भारतीय दिवस

चर्चा में क्यों?

भारत के विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान को चिह्नित करने के लिये प्रतिवर्ष 9 जनवरी को ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ का आयोजन किया जाता है।

  • इस अवसर पर विदेश मंत्रालय और विभिन्न देशों में मौजूद भारतीय दूतावासों में अलग-अलग कार्यक्रम जैसे- प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सम्मेलन, प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार और ‘भारत को जानिये’ क्विज़ आदि का आयोजन किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि 

  • ज्ञात हो कि इसी दिन वर्ष 1915 में महात्मा गांधी, जिन्हें भारत का सबसे महान प्रवासी माना जाता है, दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत लौटे थे और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्त्व किया तथा भारतीयों के जीवन को सदैव के लिये बदल दिया।

प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सम्मेलन: इसे प्रत्येक दो वर्ष में आयोजित किया जाता है।

  • PBD 2021: इस वर्ष 16वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में वर्चुअल माध्यम से किया गया। 
  • विषय- ‘आत्मनिर्भर भारत में योगदान’।
  • मुख्य अतिथि: सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिकाप्रसाद संतोखी।

मुख्य बिंदु

  • महामारी के विरुद्ध प्रतिक्रिया
    • पीपीई किट, मास्क, वेंटिलेटर या परीक्षण किट जैसी महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता के बावजूद महामारी के दौरान भारत ने न केवल इन वस्तुओं के उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भरता हासिल की है, बल्कि भारत ने इन वस्तुओं का निर्यात भी शुरू कर दिया है।
    • ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने देश में कोरोना वायरस के विरुद्ध वैक्सीन के सीमित उपयोग के लिये ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोविशील्ड (Covishield) और भारत बायोटेक कंपनी द्वारा विकसित स्वदेशी कोवैक्सीन (Covaxin) को मंज़ूरी दे दी है।
  • तकनीक का प्रयोग
    • भारत सरकारी तंत्र में मौजूद भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये प्रोद्योगिकी के उपयोग पर ज़ोर दे रहा है, जिसमें ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ (DBT) जैसे उपाय प्रमुख हैं।
    • इसके अलावा भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम और टेक स्टार्ट-अप इकोसिस्टम वैश्विक क्षेत्र में अग्रणी है। 
  • हालिया पहलें
    • कोरोना वायरस महामारी के दौरान ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत कुल 45 लाख प्रवासी भारतीयों को भारत वापस लाया गया है। 
    • महामारी के कारण भारत वापस लौटने वाले नागरिकों का कौशल मानचित्रण करने के लिये सरकार ने एक नई पहल ‘स्‍वदेस’ (SWADES- Skilled Workers Arrival Database for Employment Support) की शुरुआत की है।
    • विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर में लगभग 3.12 करोड़ भारतीय प्रवासियों के साथ जुड़ने के लिये ‘ग्लोबल प्रवासी रिश्ता’ पोर्टल लॉन्च किया है।
  • भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ
    • प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रवासी भारतीयों और विश्व भर के अलग-अलग देशों में मौजूद भारतीय मिशनों से एक पोर्टल अथवा डिजिटल मंच तैयार करने का आग्रह किया, जहाँ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रवासी भारतीयों के योगदान को प्रलेखित किया जा सके।

प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार:

  • यह गैर-निवासी भारतीयों, भारतीय मूल के व्यक्तियों अथवा उनके द्वारा स्थापित व संचालित ऐसे संगठन या संस्थानों को प्रदान किये जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है, जिन्होंने विदेशों में भारत के प्रति बेहतर समझ विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया हो तथा सामुदायिक कार्य, स्थानीय भारतीय समुदाय का कल्याण, परोपकारी और धर्मार्थ कार्य, आदि के कारणों और चिंताओं को मूर्त रूप प्रदान करने में सहयोग दिया हो।
  • प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के दौरान भारत के राष्ट्रपति की उपस्थिति में चुनिंदा भारतीय प्रवासियों को प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
  • वर्ष 2021 के पुरस्कार विजेता: यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोगों में सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिकाप्रसाद संतोखी, कुराकाओ के प्रधानमंत्री यूजीन रघुनाथ और न्यूज़ीलैंड की मंत्री प्रियंका राधाकृष्णन शामिल हैं।

‘भारत को जानिये’ क्विज़ का तीसरा संस्करण (2021)

  • इसकी शुरुआत वर्ष 2015-16 में की गई थी, ताकि युवा प्रवासी भारतीयों (वर्ष 18-35) के साथ संबंधों को मज़बूत किया जा सके और उन्हें अपने मूल देश (भारत) के बारे में अधिक जानने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • इस क्विज़ का पहला संस्करण वर्ष 2015-16 में तथा दूसरे संस्करण का आयोजन वर्ष 2018-19 में किया गया था।
  • प्रवासी भारतीय सम्मेलन (2021) के दौरान क्विज़ के पंद्रह विजेताओं की घोषणा की गई, जिन्हें स्थितियाँ सामान्य होने के बाद (कोविड-19 महामारी के बाद) भारत यात्रा (भारत को जानिये दर्शन) हेतु आमंत्रित किया जाएगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन (NMQTA) के लिये तैयार विस्तृत परियोजना रिपोर्ट  को अंतिम रूप दिया गया है।

  • केंद्रीय बजट 2020-21 में नए लॉन्च किये गए NMQTA पर 8,000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव है।
  • वर्ष 2018 में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ‘क्वांटम-इनेबल्ड साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (QuEST) नामक एक कार्यक्रम का अनावरण किया गया और इससे संबंधित अनुसंधानों में तेज़ी लाने हेतु अगले तीन वर्षों में 80 करोड़ रुपए का निवेश करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई । 
    • इस मिशन का उद्देश्य दूसरी क्वांटम क्रांति के बीच क्वांटम कंप्यूटिंग से जुड़ी तकनीकों का विकास करना और अमेरिका तथा चीन के बाद भारत को इस क्षेत्र में विश्व के  तीसरे सबसे बड़े देश के रूप में स्थापित करना है।

Budget-2020-announced

प्रमुख बिंदु: 

क्वांटम प्रौद्योगिकी/कंप्यूटिंग: 

  • क्वांटम प्रौद्योगिकी,  क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों पर आधारित है जिसे 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में परमाणुओं और प्राथमिक कणों के पैमाने पर प्रकृति का वर्णन करने के लिये विकसित किया गया था।
  • इस क्रांतिकारी तकनीक के पहले चरण ने प्रकाश तथा पदार्थ की अंतःक्रिया सहित भौतिक जगत के बारे में हमारी समझ विकसित करने के लिये आधार प्रदान किया  और लेज़र एवं अर्द्धचालक ट्रांजिस्टर जैसे आविष्कारों को बढ़ावा दिया।
  • वर्तमान में  क्वांटम प्रौद्योगिकी की एक दूसरी क्रांति देखी जा रही है जिसका उद्देश्य कंप्यूटिंग के क्षेत्र में क्वांटम यांत्रिकी के गुणों का प्रयोग करना है।

पारंपरिक और क्वांटम कंप्यूटिंग के बीच अंतर:

bit-qubit

  • पारंपरिक कंप्यूटिंग सूचनाओं को ‘बिट्स’ या ‘1’ और ‘0’ में प्रोसेस किया जाता है, यह प्रणाली पारंपरिक भौतिकी (Classical Physics) का अनुसरण करती है जिसके तहत हमारे कंप्यूटर एक समय में '1' या '0’ को प्रोसेस कर सकते हैं। 
  • क्वांटम कंप्यूटिंग ‘क्यूबिट्स' (या क्वांटम बिट्स) में गणना करता है। वे क्वांटम यांत्रिकी के गुणों का दोहन करते हैं।
    • इसके तहत , प्रोसेसर में 1 और 0 दोनों अवस्थाएँ एक साथ हो सकती हैं, जिसे क्वांटम सुपरपोज़िशन की अवस्था कहा जाता है।
    • क्वांटम सुपरपोज़िशन में यदि एक क्वांटम कंप्यूटर योजनाबद्ध रूप से काम करता है तो यह एक साथ समानांतर रूप से कार्य कर रहे कई पारंपरिक कंप्यूटरों की नकल कर सकता है।

क्वांटम कंप्यूटिंग के गुण:

क्वांटम कंप्यूटिंग के मूल गुण सुपरपोज़िशन (Superposition), एंटैंगलमेंट (Entanglement) और इंटरफेरेंस (Interference) हैं। 

  • अध्यारोपण/सुपरपोज़िशन (Superposition):
    • यह  क्वांटम प्रणाली की एक साथ कई अवस्थाओं में होने की क्षमता को संदर्भित करता है। 
    • सुपरपोज़िशन का एक उदाहरण किसी  सिक्के का उछाला जाना है, जो लगातार  बाइनरी अवधारणा  के तहत हेड्स या टेल्स रूप में भूमि पर गिरता है। हालाँकि, जब वह सिक्का मध्य हवा में होता है,  तो यह हेड्स  और टेल्स दोनों होता है (जब तक यह जमीन पर न गिर जाए)। माप से पहले इलेक्ट्रॉन क्वांटम सुपरपोज़िशन में होते हैं।

Bit-vs-Qbits

  •  एंटैंगलमेंट (Entanglement):  

Entanglement

  • इसका अर्थ है एक जोड़ी (क्यूबिट्स) के दो सदस्य एकल क्वांटम अवस्था में मौजूद होते हैं। किसी एक क्यूबिट की स्थिति को बदलने से तुरंत दूसरे की स्थिति में भी परिवर्तन (एक पूर्वानुमानित तरीके से) होगा। ऐसा तब भी होता है जब वे बहुत अधिक दूरी पर अलग-अलग रखे हों। आइंस्टीन द्वारा इस तरह की घटना को ‘एक्शन एट ए डिस्टेंस’ का नाम दिया गया।
  • इंटरफेरेंस (Interference):  
  • क्वांटम इंटरफेरेंस बताता है कि प्राथमिक कण (क्यूबिट्स) किसी भी समय (सुपरपोज़िशन के माध्यम से) एक से अधिक स्थानों पर उपस्थित नहीं हो सकते, लेकिन यह एक व्यक्तिगत कण, जैसे कि फोटॉन (प्रकाश कण) अपने स्वयं के प्रक्षेपवक्र को पार कर अपने मार्ग की दिशा से हस्तक्षेप कर सकता है।

क्वांटम प्रौद्योगिकी का उपयोग: 

  • सुरक्षित संचार:
    • चीन ने हाल ही में स्थलीय स्टेशनों और उपग्रहों के बीच सुरक्षित क्वांटम संचार लिंक का प्रदर्शन किया।
    • यह अन्य क्षेत्रों के साथ उपग्रहों, सैन्य और साइबर सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह अपने उपयोगकर्त्ताओं को अकल्पनीय रूप से तीव्र कंप्यूटिंग और सुरक्षित एवं हैकरहित उपग्रह संचार की सुविधा प्रदान करता है।
  • अनुसंधान:
    • यह गुरुत्वाकर्षण, ब्लैक होल आदि से संबंधित भौतिकी के कुछ मूलभूत प्रश्नों को हल करने में सहायक हो सकता है।
    • इसी तरह, क्वांटम पहल जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (Genome India Project- GIP)  को एक बढ़त प्रदान कर सकती है, जो जीवन विज्ञान, कृषि और चिकित्सा में नई क्षमता को सक्षम करने के लिये 20 संस्थानों का एक साझा प्रयास है।
  • आपदा प्रबंधन: 
    • क्वांटम अनुप्रयोगों से सुनामी, सूखा, भूकंप और बाढ़  का अधिक सटीकता से पूर्वानुमान लगाए जाने की संभावनाएँ हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के संबंध में डेटा के संग्रह को क्वांटम तकनीक के माध्यम से बेहतर तरीके से सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
  • औषधि: 
    • क्वांटम कंप्यूटिंग नए अणुओं की खोज और संबंधित प्रक्रियाओं में लगने वाली समय-सीमा  (लगभग 10-वर्षों)  को घटाकर कुछ दिनों तक कर सकता है।
  • औद्योगिक क्रांति4.0 को संवर्द्धित करना: 

क्वांटम कंप्यूटिंग से संबद्ध चुनौतियाँ:

  • क्वांटम कंप्यूटिंग का नकारात्मक विघटनकारी प्रभाव क्रिप्टोग्राफिक एन्क्रिप्शन (Cryptographic Encryption) पर देखा जा सकता है जिसका उपयोग संचार और कंप्यूटर सुरक्षा में किया जाता है।
  • यह सरकार के समक्ष भी चुनौती उत्पन्न कर सकता है क्योंकि अगर यह तकनीक गलत हाथों में चली गई, तो सरकार के सभी आधिकारिक और गोपनीय डेटा के  हैक होने एवं उनका  दुरुपयोग होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।

आगे की राह: 

  • सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता  के लंबे विकास क्रम के बाद, अब उन्हें विनियमित करने की मांग की जा रही है। व्यापक रूप से उपलब्ध होने से पहले क्वांटम कंप्यूटिंग हेतु एक नियामक ढाँचा विकसित करना चाहिये।
  • परमाणु तकनीक की तरह समस्या के हाथ से निकलने से पहले ही इसे राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विनियमित करना या इसके वैध उपयोग की सीमाओं को परिभाषित करना भी बेहतर होगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव

चर्चा में क्यों?

चीन ने दक्षिण एशिया के देशों के साथ कोविड-19 से लड़ने और अपने आर्थिक एजेंडा को समन्वित करने तथा क्षेत्र में बीजिंग के आउटरीच में एक नए दृष्टिकोण को दर्शाने के उद्देश्य से एशियाई देशों के साथ तीसरा बहुपक्षीय संवाद वर्चुअल तौर पर आयोजित किया।

South-Asia

प्रमुख बिंदु

भाग लेने वाले देश:

  • इस बैठक में भारत, भूटान और मालदीव को छोड़कर क्षेत्र के सभी देशों ने हिस्सा लिया। इस बैठक का उद्देश्य "महामारी विरोधी सहयोग और गरीबी में कमी लाने हेतु सहयोग" था।
  • बैठक में वे सभी पाँच देश पाकिस्तान, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश शामिल थे जिन्होंने इसके पूर्व के संवादों में भी भाग लिया है।
  • पाकिस्तान और नेपाल ने तीनों संवादों में भाग लिया।

अन्य प्लेटफॉर्मों के माध्यम से जुड़ाव:

  • पहले अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान के साथ जुलाई में हुई चतुर्भुज वार्ता में चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा, साथ ही नेपाल के साथ एक आर्थिक गलियारे जिसे ट्रांस-हिमालयी बहु-आयामी कनेक्टिविटी नेटवर्क कहा जाता है, की योजना को आगे बढ़ाने पर भी बात की।

चीन द्वारा दक्षिण एशिया में सहयोग बढ़ाने के लिये अन्य पहलें:

  • अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर के अनुसार, चीन ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं के साथ लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया है।
  •  चीन अब मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है।

अफगानिस्तान:

  • बीजिंग, त्रिपक्षीय चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के संवाद का एक हिस्सा था जो अफगानिस्तान के घरेलू राजनीतिक सामंजस्य को सुविधाजनक बनाने, क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास में सुधार पर केंद्रित है।
  • त्रिपक्षीय चर्चा में "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)" और "CPEC को अफगानिस्तान तक बढ़ाकर कनेक्टिविटी बढ़ाने" पर भी सहमति व्यक्त की गई।

बांग्लादेश:

  • चीन और बांग्लादेश ने रक्षा सहयोग को विशेषकर “रक्षा उद्योग व व्यापार, प्रशिक्षण, उपकरण तथा प्रौद्योगिकी” के क्षेत्रों को और मज़बूत करने का संकल्प लिया।
  • चीन जो कि बांग्लादेश की सेना का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता भी है, ने वर्ष 2008 से वर्ष 2018 तक 71.8% हथियार मुहैया कराए हैं।

भूटान

  • चीन के साथ इसका कोई राजनयिक संबंध नहीं है।

मालदीव:

  • चीन का ध्यान मालदीव के विकास की आड़ में BRI के माध्यम से लाभ उठाने पर केंद्रित है ताकि वह  मालदीव के विकास के साथ-साथ यहाँ चीनी प्रभाव को बढ़ा सके और भारत के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर सके।  

नेपाल:

  • चीनी राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2019 में नेपाल की यात्रा की गई थी।
  • 23 वर्षों में किसी चीनी  राष्ट्रपति  की यह पहली यात्रा थी।
  • दोनों देशों ने नेपाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में तेज़ी लाने और उनके बीच कनेक्टिविटी में सुधार के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
  • दोनों देशों ने चीन-नेपाल सीमा पार रेलवे की व्यवहार्यता का अध्ययन शुरू करने की भी घोषणा की है।

श्रीलंका:

  • चीन का ऋण चुकाने के लिये श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर चीन को सौंप दिया। 
  • हंबनटोटा भौगोलिक रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित है, जो बीजिंग के स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को टक्कर देता है।

भारत के लिये चिंता:

सुरक्षा चिंताएँ:

  • पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ता सहयोग।
  • नेपाल और चीन के बीच बढ़ती साँठगाँठ।
  • दक्षिण एशियाई देशों द्वारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को स्वीकृति।

दक्षिण एशिया में नेतृत्व की भूमिका:

  • दक्षिण एशिया में चीनी उपस्थिति लगातार बढ़ रही है और यह देशों द्वारा चीन के ध्वज  वाहक के रूप में स्वीकृति को दर्शाता है, जिसे भारत अपने लिये चाहता है।

आर्थिक चिंताएँ:

  • पिछले एक दशक में चीन ने भारत को कई दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में प्रतिस्थापित किया है। उदाहरण के लिये वर्ष 2008 में चीन के मुकाबले मालदीव के साथ भारत के व्यापार का हिस्सा 3.4 गुना था। लेकिन वर्ष 2018 तक मालदीव के साथ चीन का कुल व्यापार भारत से थोड़ा अधिक था।
  • बांग्लादेश के साथ चीन का व्यापार भारत की तुलना में लगभग दोगुना है। नेपाल और श्रीलंका के साथ चीन का व्यापार अभी भी भारत के व्यापार की तुलना में कम है किंतु यह अंतर लगातार कम होता जा रहा है।

 आगे की राह:

  • भारत के पास चीन की तरह आर्थिक क्षमता नहीं है। इसलिये भारत को इन देशों के विकास के लिये चीन के साथ सहयोग करना चाहिये ताकि दक्षिण एशिया का विकास हो सके।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विस्तार की योजनाओं की भी कड़ी निंदा की जानी चाहिये।
  • भारत को उन दक्षिण एशियाई देशों में निवेश करना चाहिये जहाँ चीन कमज़ोर पड़ता है और और इन देशों में भारत का प्रभाव बढ़ाना चाहिये ।

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