डेली न्यूज़ (10 Dec, 2020)



सार्क चार्टर दिवस

चर्चा में क्यों?

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) के चार्टर दिवस की 36वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री ने अपने एक संदेश में कहा कि सार्क केवल "आतंक और हिंसा" की अनुपस्थिति में ही पूरी तरह से प्रभावी हो सकता है।

  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना 8 दिसंबर,1985 को ढाका में सार्क चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।

SAARC

प्रमुख बिंदु

  • भारत का रुख:
    • सार्क की पूर्ण क्षमता को केवल आतंक और हिंसा से मुक्त वातावरण में ही महसूस किया जा सकता है।
      • यह इस बात को इंगित करता है कि पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद पर भारत की चिंता इस शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी में एक प्राथमिक बाधा है।
      • अपने संदेशों में पाकिस्तान और नेपाल दोनों ने ही सार्क सम्मेलन को जल्द आयोजित किये जाने का आह्वान किया।
    • भारत ने सार्क देशों से "आतंकवाद का समर्थन और पोषण करने वाली ताकतों को हराने के लिये फिर से संगठित" होने का आह्वान किया।
    • भारत एक "एकीकृत, संबद्ध, सुरक्षित और समृद्ध दक्षिण एशिया" के लिये भी प्रतिबद्ध है तथा इस क्षेत्र के आर्थिक, तकनीकी, सांस्कृतिक व सामाजिक विकास का समर्थन करता है।
    • अधिक-से-अधिक सहयोग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए भारत ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये सार्क देशों के बीच प्रारंभिक समन्वय के उदाहरण का उल्लेख किया।
      • एक आपातकालीन कोविड-19 फंड बनाया गया था जिसमें भारत द्वारा 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रारंभिक योगदान दिया गया था।
  • रुकी हुई सार्क प्रक्रिया:
    • भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण सार्क की कार्यप्रणाली और गतिविधियाँ लगभग ठप हो गई हैं।
    • भारत में उरी आतंकवादी हमले के बाद से सार्क की कोविड-19 की स्थिति पर एक आभासी बैठक (मार्च में) के अलावा कोई महत्त्वपूर्ण बैठक नहीं हो सकी है क्योंकि भारत ने पाकिस्तान में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन (2016 में) का बहिष्कार कर दिया था।

आगे की राह

  • SAARC का चार्टर दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक-आर्थिक विकास में तेज़ी तथा आर्थिक उन्नति द्वारा शांति, स्थिरता व समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्र के सामूहिक संकल्प व साझा दृष्टि को दर्शाता है।
  • आज क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। महामारी से उबरने के लिये सार्क के सदस्य देशों के बीच सामूहिक रूप से ठोस प्रयास किये जाने, सहभागिता और सहयोग की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू


सत्यता और हेट स्पीच

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वतंत्र अभिव्यक्ति ( Free Speech ) की सीमाओं और हेट स्पीच पर चर्चा करते हुए कहा गया है कि “ ऐतिहासिक सत्यता (Historical Truths) का वर्णन समाज के विभिन्न वर्गों या समुदायों के मध्य बिना किसी घृणा या शत्रुता का खुलासा किये या प्रोत्साहन के किया जाना चाहिये।"

  • एक न्यूज़ शो में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पर की गई कथित टिप्पणी के लिये टीवी एंकर के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।

प्रमुख बिंदु 

‘सत्य तथ्यों' पर:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सत्यता या सत्य तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हुए तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष फैसला सुनाते हुए के.ए. अब्बास बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस 1970 का उल्लेख किया, जो कि सेंसरशिप से संबंधित था। 
    • न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि ऐतिहासिक मूल्य के संदर्भ में नरसंहार या रक्तपात को दिखाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन इस प्रकार  के दृश्यों को तभी दिखाया जा सकता है यदि टकराव के दृश्यों को एक कलात्मक चित्रण के हिस्से के रूप में व्यवस्थित किया जा सके।
  • संभाव्यता का मूल्यांकन एक स्वस्थ और उचित मानक के आधार पर किया जाना चाहिये जिससे इस स्थिति को स्वीकार किया जा सके कि ऐतिहासिक सत्य  प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है।
    • हालांँकि निश्चित रूप से ऐतिहासिक तथ्यों को इस प्रकार चित्रित किया जाना चाहिये जिससे वह विभिन्न वर्गों या समुदायों के मध्य ईर्ष्या, द्वेष अथवा शत्रुता को प्रोत्साहित न करे।
  • न्यायालय द्वारा अब्राहिम सुलेमान सैत बनाम एम.सी. मोहम्मद और अन्य मामले में वर्ष 1980 में दिये गए निर्णय को भी संदर्भित किया गया।
    • न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार, सत्य बोलना जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 123 (3A) के तहत भ्रष्ट आचरण के आरोप का प्रत्युत्तर नहीं है।
    • प्रासंगिकता केवल इस तथ्य की थी कि क्या अभिव्यक्ति ने शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा दिया था।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हाशियाकरण:

  • सत्यता और लोकप्रिय विश्वास या मत  के मध्य विचलन देखने को मिल सकता है। पीठ द्वारा कहा गया कि कई मायनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने उन लोगों को सशक्त बनाया है जो हाशिये पर थे तथा भेदभाव का सामना कर रहे थे। अत: यह कहना  पूरी तरह से गलत होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अभिजात वर्ग की अवधारणा एवं पहचान है ।

हेट स्पीच: 

  • हेट स्पीच का कोई उद्धारक उद्देश्य नहीं होता जिसका अर्थ है कि 'यह मुख्य रूप से एक विशेष समूह के प्रति घृणा के अलावा और कोई अर्थ नहीं रखता।’
    • यह आवश्यक रूप से व्यक्तिपरक है और वक्ता की ओर से सद्भाव तथा अच्छे उद्देश्य का परीक्षण किया जाना आवश्यक है।
  • हेट स्पीच की मर्यादा के संदर्भ में न्यायालय ने  कहा कि किसी के द्वारा भी जाति, धर्म, पंथ या क्षेत्रीय आधार पर भेदभाव के प्रसार की निंदा और जाँच की जा सकती है।
  • न्यायालय के अनुसार,  हेट स्पीच के अपराधीकरण का उद्देश्य गरिमा की रक्षा करना और जाति, पंथ, धर्म, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन अभिविन्यास, भाषायी वरीयता आदि की परवाह किये बिना विभिन्न तत्त्वों और समूहों के मध्य राजनीतिक एवं सामाजिक समानता सुनिश्चित करना है।
    • भारत में हेट स्पीच को किसी भी कानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। हालांँकि कुछ विधानों में किये गए विधिक प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपवाद के रूप में अभिव्यक्ति के चुनिंदा रूपों को प्रतिबंधित करते हैं।

स्व-विनियमन:

  • हर किसी को घृणित और अनुचित व्यवहार के खिलाफ सामाजिक सद्भाव और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य करना चाहिये जिसे आत्म-संयम, संस्थागत जाँच और सुधार, साथ ही स्व-विनियमन या वैधानिक नियमों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

राजनीतिक अभियक्ति:

  • लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये सरकार की नीतियों से संबंधित राजनीतिक अभिव्यक्ति को अधिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
    • खंडपीठ द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार, चुनी हुई सरकार की नीतियों  पर असहमति और उसकी आलोचना नैतिक रूप से गलत या भ्रामक पाए जाने पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
    • सरकार को क्या सही है या गलत, क्या अच्छा है या बुरा, क्या वैध है या अवैध, इन सभी पहलुओं से बचना चाहिये क्योंकि इन पहलुओं को सार्वजनिक चर्चा के लिये  छोड़ देना चाहिये।

आशय और उद्देश्य:

  • न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यह प्रभावशाली व्यक्ति या आम जन धर्म, जाति, पंथ इत्यादि से संबंधित विवादास्पद और संवेदनशील विषयों के बारे में चर्चा करते हैं या अभिव्यक्ति करते हैं तो उन्हें धमकियों और अभियोजन/मुकद्दमों के खतरे से डरना नहीं चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राजमार्ग के लिये भूमि अधिग्रहण हेतु केंद्र की शक्ति

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘चेन्नई-कृष्णगिरी-सलेम राष्ट्रीय राजमार्ग’ (Chennai-Krishnagiri-Salem National Highway) के निर्माण हेतु भूमि अधिग्रहण के लिये ‘राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956’ के तहत जारी अधिसूचनाओं को सही ठहराया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय केंद्र सरकार, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India) और कुछ भू-स्वामियों तथा कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर अपीलों की सुनवाई के दौरान आया है। 
  • गौरतलब है कि इन अपीलों को मद्रास उच्च न्यायालय के उस निर्णय के खिलाफ दायर किया गया था जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा ‘राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956’ के तहत जारी अधिसूचनाओं को ‘अवैध’ बताया गया था। 

प्रमुख बिंदु: 

  • चेन्नई-कृष्णगिरी-सलेम राष्ट्रीय राजमार्ग: 
    • यह राष्ट्रीय राजमार्ग भारतमाला परियोजना के पहले चरण का हिस्सा है।
      • भारतमाला परियोजना 24,800 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसका अनुमानित परिव्यय लगभग 5.35 लाख करोड़ रुपए है। इसका उद्देश्य देश भर में माल ढुलाई और यात्रियों की आवाजाही से संबंधित बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
  •  यह 277.3 किलोमीटर लंबी आठ-लेन की एक ग्रीनफील्ड परियोजना है, जिसका उद्देश्य चेन्नई और सलेम के बीच यात्रा में लगने वाले समय को लगभग आधा करना है अर्थात् करीब सवा दो घंटे कम करना है।
    • ‘ग्रीनफील्ड परियोजना’ का तात्पर्य ऐसी परियोजना से है जिसमें किसी पूर्व कार्य/ परियोजना का अनुसरण नहीं किया जाता है। जहाँ मौजूदा संरचना को फिर से तैयार करने या ध्वस्त करने की आवश्यकता नहीं है।
    • इस परियोजना का विरोध किसानों (भूमि खोने का डर), पर्यावरणविदों (पेड़ों की कटाई के खिलाफ) आदि कुछ स्थानीय लोगों द्वारा किया जा रहा है। यह राजमार्ग आरक्षित वन और जल निकायों के बीच से होकर गुज़रेगा।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

केंद्र की शक्तियाँ:

  • संविधान किसी राज्य के अनुभाग (अस्तित्व विहीन सड़क या मौजूदा राजमार्ग) पर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की संसद की शक्ति को सीमित नहीं करता है।
  • संविधान में उल्लेखित प्रावधान स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि किसी राजमार्ग के राष्ट्रीय राजमार्ग के रूप में नामित होने से संबंधित सभी विधायी एवं कार्यकारी शक्तियाँ संसद में निहित हैं।
  • केंद्र सरकार संबंधित क्षेत्र में लोगों के सामाजिक न्याय और कल्याण को बढ़ावा देने के लिये संविधान (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों) के भाग IV के तहत अपने दायित्वों को ध्यान में रखते हुए एक नए राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने हेतु स्वतंत्र है।

राष्ट्रीय राजमार्गों का महत्त्व:

  • राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) यात्रियों और वस्तुओं के अंतर-राज्यीय आवागमन के लिये देश की महत्त्वपूर्ण सड़कें हैं।
  • ये सड़कें देश में लंबाई और चैड़ाई में आर-पार तक फैली हुई हैं तथा राष्ट्रीय एवं राज्यों की राजधानियों, प्रमुख पत्तनों, रेल जंक्शनों, सीमा से लगी हुई सड़कों तथा विदेशी राजमार्गों को जोड़ती हैं।

परियोजना से संबंधित अन्य पहलू:

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने अधिग्रहण की कार्यवाही को गलत बताया था क्योंकि इस कार्यवाही से पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी नहीं ली गई थी।
    • SC ने कहा कि निर्दिष्ट भूमि के अधिग्रहण के लिये पहले किसी भी पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है, यह केवल तभी आवश्यक है जब वास्तविक सड़क बनाने का कार्य शुरू किया जाए।
    • निष्पादन एजेंसी (National Highway by The Executing Agency) द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग के "वास्तविक निर्माण या निर्माण कार्य" शुरू करने  से पहले पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम और 1986 के नियमों के तहत पर्यावरणीय मंज़ूरी लेनी आवश्यक है।
  • राजमार्ग के रास्ते में "परिवर्तन" के बारे में शिकायतों पर अदालत ने कहा कि इस तरह की एक परियोजना में 15% की सीमा तक परिवर्तन अनुमेय (Permissible) था।
  • भूमि उपलब्धता कारकों से संबंधित अनपेक्षित मुद्दे जैसे- भीड़ से संबंधित कारक, दूरी में कमी, परिचालन दक्षता आदि परिवर्तनों को आकर्षित करती है।

राष्ट्रीय राजमार्ग

  • भारत में प्रमुख सड़कें राष्ट्रीय (NH) और राज्य राजमार्ग (SH) हैं। NH का निर्माण, रखरखाव और वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि SH संबंधी कार्य राज्यों के सार्वजनिक विभाग द्वारा किये जाते हैं।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग सातवीं अनुसूची में शामिल संघ सूची के तहत घोषित किया जाता है।
    • अनुच्छेद 257 (2): संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को ऐसे संचार साधनों के निर्माण और उन्हें बनाए रखने के संबंध में निर्देश देने तक होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्त्व का होना उस निर्देश में घोषित किया गया है।
      • बशर्ते कि इस खंड में राजमार्गों या जलमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग या राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिये संसद की शक्ति को प्रतिबंधित करने के रूप में या संघ द्वारा घोषित राजमार्गों या जलमार्गों के संबंध में नहीं लिया जाएगा।
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मुख्य रूप से NH के विकास और रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है।
    • मंत्रालय ने सीमा क्षेत्रों के गैर-प्रमुख बंदरगाहों हेतु सड़क संपर्क सहित तटीय सड़कों का विकास, राष्ट्रीय गलियारों की दक्षता में सुधार, आर्थिक गलियारों का विकास, और भारतमाला परियाजना के तहत सागरमाला के साथ फीडर रूट का एकीकरण आदि के लिये सड़क संपर्क को विकसित करने की दृष्टि से NH नेटवर्क की विस्तृत समीक्षा की है
  • देश में NH को राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिसूचित किया गया है। 
  • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) का गठन भारतीय राष्‍ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1988 के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, अनुरक्षण और प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए किया गया।
  • NH और संबंधित उद्देश्यों के लिये भूमि अधिग्रहण राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत किया जाता है तथा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और स्थानांतरण में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता का अधिकार (RFCTLARR) अधिनियम, 2013 की पहली अनुसूची के अनुसार मुआवज़ा निर्धारित किया जाता है।
  • भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटलीकरण और स्वचालित करने के लिये वर्ष 2018 में भूमि राशि पोर्टल लॉन्च किया गया था।
  • ग्रीन हाईवे  नीति, 2015 का उद्देश्य (वृक्षारोपण, प्रतिरोपण, सौंदर्यीकरण और रखरखाव) समुदाय, किसानों, निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संगठनों तथा सरकारी संस्थानों की भागीदारी के साथ राजमार्ग गलियारों में हरियाली को बढ़ावा देना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ब्याज माफी की मांग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ऋण स्थगन अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई की है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मार्च माह में कोरोना वायरस महामारी की चुनौती के मद्देनज़र बैंकों द्वारा दिये गए ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के ऋण स्थगन की घोषणा की थी, इस अवधि को बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था। 
  • इस निर्णय का प्राथमिक उद्देश्य कोविड-19 महामारी की अवधि के दौरान उधारकर्त्ताओं को ऋण और मासिक किस्त (EMI) के भुगतान में राहत प्रदान करना था।

प्रमुख बिंदु

केंद्र सरकार का पक्ष

  • अत्यधिक लागत: अनुमान के मुताबिक, ऋण स्थगन अवधि के दौरान उधारकर्त्ताओं के ऋणों पर ब्याज को पूरी तरह से माफ किये जाने से भारतीय बैंकों को तकरीबन 6 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
  • बैंकों पर संभावित प्रभाव: यदि बैंकों को ऋण माफी का यह बोझ उठाना पड़ता है, तो इससे बैंकों के नेट वर्थ पर भारी प्रभाव पड़ेगा और उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जिससे आने वाले समय में उनके अस्तित्त्व पर भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • बैंकों की जमा v/s ऋण: यद्यपि जमाकर्त्ताओं को ब्याज का भुगतान करना बैंकों की प्राथमिक गतिविधि नहीं है, किंतु यह बैंकों की बड़ी ज़िम्मेदारी है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारत में ऐसे कई छोटे जमाकर्त्ता हैं, जिनके लिये बैंकों द्वारा दिया जाने वाला ब्याज काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
  • वित्तीय संसाधनों का उपयोग: कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता और उसके आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिये उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग किया जाना आवश्यक है।
    • केंद्र सरकार द्वारा लघु और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिये कई सेक्टर-विशिष्ट राहत उपायों को भी अपनाया गया है और भविष्य में अर्थव्यवस्था को मंदी की चपेट से बचाने के लिये ऐसे ही उपायों की आवश्यकता है, जिसके लिये वित्तीय संसाधन काफी महत्त्वपूर्ण होंगे।

सरकार द्वारा किये गए राहत उपाय

  • ऊर्जा क्षेत्र: सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को तरलता प्रदान करने के लिये 90 हज़ार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की थी। इससे बिजली वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) बिजली उत्पादक कंपनियाँ अपने बकाए का भुगतान करने में सक्षम हो जाएंगी।
  • रियल एस्टेट सेक्टर: कोरोना वायरस महामारी को एक अप्रत्याशित घटना मानते हुए रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरणों (RERAs) के तहत परियोजनाओं के पंजीकरण और समापन की तारीखों के विस्तार की अनुमति देते हुए एक एडवाइज़री जारी की गई थी।
    • किसी समझौते के दृष्टिकोण से देखें तो समझौता का अप्रत्याशित घटना वाला खंड ऐसी किसी घटना की स्थिति में एक पक्ष को समझौते के तहत अपने दायित्त्वों को पूरा न करने की छूट प्रदान करता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME): कोरोना वायरस महामारी तथा देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न संकट को कम करने के लिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को क्रेडिट प्रदान करने हेतु ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ पैकेज के एक हिस्से के रूप में आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) शुरू की गई है।
  • छोटे उधारकर्त्ता: केंद्र सरकार के निर्णय के मुताबिक, छह माह की ऋण अधिस्थगन अवधि के दौरान चक्रवृद्धि ब्याज पर राहत केवल उन उधारकर्त्ताओं को मिलेगी, जिन्होंने 2 करोड़ रुपए तक का ऋण लिया था।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 1500 करोड़ रुपए और उससे अधिक का ऋण लेने वाले लोगों को ‘बड़े उधारकर्त्ताओं’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • बड़े उधारकर्त्ता: रिज़र्व बैंक द्वारा गठित के.वी. कामथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित कुल 26 क्षेत्रों के ऋण पुनर्गठन के लिये वित्तीय मापदंडों की सिफारिश की है।
  • अन्य उपाय

स्रोत: द हिंदू


जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021 में भारत को 10वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

  • यह लगातार दूसरी बार है जब भारत इस सूचकांक में शीर्ष दस देशों की सूची में शामिल हुआ है।
  • बीते वर्ष भारत को इस सूचकांक में 9वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।

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प्रमुख बिंदु

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI)

  • प्रकाशन: जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक को जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क द्वारा वर्ष 2005 से वार्षिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है।
  • यह 57 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु संरक्षण संबंधी उपायों के प्रदर्शन पर नज़र रखने के लिये एक स्वतंत्र निगरानी उपकरण के तौर पर कार्य करता है।
    • इसके तहत शामिल सभी देश संयुक्त तौर पर 90 प्रतिशत से अधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं।
  • लक्ष्य: अंतर्राष्ट्रीय जलवायु राजनीति में पारदर्शिता को बढ़ावा देना और अलग-अलग देशों द्वारा जलवायु संरक्षण की दिशा में किये गए प्रयासों और प्रगति की तुलना करने में सक्षम बनाना।
  • मापदंड: यह सूचकांक चार श्रेणियों के अंतर्गत 14 संकेतकों पर देशों के समग्र प्रदर्शन के आधार पर जारी किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021

  • सूचकांक में पहले तीन स्थान रिक्त हैं, क्योंकि कोई भी देश शीर्ष तीन स्थानों से संबंधित मापदंडों को पूरा करने में सफल नहीं हो पाया।
  • G- 20 समूह के केवल दो ही देश यथा- भारत और ब्रिटेन जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021 में शीर्ष स्थान प्राप्त करने में सफल रहे।
  • G- 20 समूह के छह अन्य देशों (अमेरिका, कनाडा, दक्षिण कोरिया, रूस, ऑस्ट्रेलिया और सऊदी अरब) को इस सूचकांक में सबसे निम्न रैंकिंग प्राप्त हुई है।
    • यह दूसरी बार है जब अमेरिका को इस सूचकांक में सबसे निचला स्थान प्राप्त हुआ है।
  • चीन जो कि वर्तमान में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, को इस सूचकांक में 33वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

भारत का प्रदर्शन

  • समग्र प्रदर्शन: इस सूचकांक में भारत को 10वाँ स्थान (100 में से 63.98 अंक) प्राप्त हुआ है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा श्रेणी के तहत 57 देशों में से 27वें स्थान पर रखा गया है, जबकि बीते वर्ष भारत इसमें 26वें स्थान पर था।
    • सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा और वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया था।
    • भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) में वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली की हिस्सेदारी को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन तुलनात्मक रूप से निम्न स्तर पर है। इस श्रेणी में भारत को 12वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
    • BS-VI उत्सर्जन मानदंड: भारत में ऑटोमोबाइल से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये BS-VI उत्सर्जन मानदंड को लागू किया गया है। 
  • जलवायु नीति: इस श्रेणी में भारत को 13वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
    • भारत में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था। इसका उद्देश्य जन-प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों तथा इनसे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
  • ऊर्जा उपयोग: इस श्रेणी में भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है और भारत को इसमें 10वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
    • भारत ने न केवल ऊर्जा दक्षता हेतु ‘संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन’ (NMEEE) के रूप में एक व्यापक नीति तैयार की है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करते हुए उपभोक्ताओं और नगर निगमों के लिये मांग आधारित प्रबंधन कार्यक्रमों को भी सफलतापूर्वक निष्पादित किया है।

भारत के लिये सुझाव

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जलवायु परिवर्तन संबंधी रणनीति में कोविड-19 महामारी के बाद की रिकवरी योजनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिये। इनमें जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को कम करना, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण द्वारा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना शामिल है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


माओवादी खतरे से निपटने हेतु आवश्यक कदम

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में ‘सड़क आवश्यकता योजना’ (Road Requirement Plan- RRP) के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिये शेष बचे हुए अनुबंधों को छोटे पैकेटों में विभाजित करने का सुझाव दिया है जिससे स्थानीय ठेकेदार कार्यों को पूरा कर सकें।

प्रमुख बिंदु:   

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिये सड़क आवश्यकता योजना: 

  • इस योजना का कार्यान्वयन देश के 8 राज्यों के 34 वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित ज़िलों में सड़क संपर्क को मज़बूत करने के लिये केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
  • इन 8 राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
  • इस योजना के तहत वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में 5422 किमी. लंबी सड़कों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।

वर्तमान मुद्दा:

  • कुल 4 राज्यों में बचे हुए 419 किमी. सड़क में से 360 किमी. छत्तीसगढ़ में ही है।
  • इसके तहत प्रस्तावित 5422 किमी. सड़क आवश्यकता योजना के 90% कार्य को पूरा कर लिया गया है परंतु छत्तीसगढ़ में इन परियोजनाओं की प्रगति एक बड़ी चुनौती रही है।

प्रस्तावित समाधान:

  • छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र को  बचे हुए अनुबंधों को छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित करने का सुझाव दिया है, जिससे स्थानीय ठेकेदार इन कार्यों को पूरा कर सकें।
  • छत्तीसगढ़ सरकार का मत है कि स्थानीय लोग अनुबंध/ठेके लेकर कार्य को पूरा कराने के लिये बेहतर स्थिति में होंगे।  

वामपंथी अतिवाद (Left Wing Extremism- LWE):

  • LWE संगठन ऐसे समूह हैं जो हिंसक क्रांति के माध्यम से बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। वे लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ होते हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का इस्तेमाल करते हैं।
  • ये समूह देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक प्रक्रियाओं को रोकते हैं और लोगों को मौजूदा घटनाओं से अनभिज्ञ रखकर गुमराह करने की कोशिश करते हैं।
  • वामपंथी उग्रवादी संगठन दुनिया भर में माओवादी और भारत में नक्सलियों के रूप में जाने जाते  हैं।

वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिये सरकार के अन्य प्रयास:

  • ग्रेहाउंड्स: इसकी स्थापना वर्ष 1989 में एक सर्वोत्कृष्ट नक्सल विरोधी बल के रूप में की गई थी।
  • ऑपरेशन ग्रीन हंट:  ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ (Operation Green Hunt) की शुरुआत वर्ष 2009-10 के दौरान की गई थी, इसके तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी।
  • वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल टॉवर परियोजना: वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल संपर्क को बेहतर बनाने के लिये वर्ष 2014 में सरकार ने LWE प्रभावित राज्यों में मोबाइल टॉवरों की स्थापना को मंज़ूरी दी।
  • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी, इसका उद्देश्य देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े ज़िलों की पहचान कर उनके समग्र विकास में सहायता करना है। 

समाधान (SAMADHAN): 

  • S- स्मार्ट नेतृत्त्व (Smart Leadership)
  • A- आक्रामक रणनीति (Aggressive Strategy)
  • M- प्रेरणा और प्रशिक्षण (Motivation and Training)
  • A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस (Actionable Intelligence)
  • D- डैशबोर्ड आधारित ‘मुख्य प्रदर्शन संकेतक’ (Key Performance Indicators- KPI) और मुख्य परिणाम क्षेत्र (Key Result Areas- KRAs) 
  • H- प्रौद्योगिकी का सदुपयोग (Harnessing Technology)
  • A- एक्शन प्लान फॉर ईच थिएटर (Action plan for each Theatre)
  • N- वित्तीय पहुँच (उग्रवादी समूहों के संदर्भ में) को रोकना (No access to Financing)

यह सिद्धांत वामपंथी उग्रवाद की समस्या के लिये वन-स्टॉप समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई सरकार की पूरी रणनीति ( (अल्पकालिक नीति से लेकर दीर्घकालिक नीति तक) को शामिल किया गया है।

आगे की राह: 

  • यद्यपि हाल के वर्षों में वामपंथी उग्रवादी समूहों से जुड़ी हिंसा की घटनाओं में कमी आई है, परंतु ऐसे समूहों को खत्म करने के लिये निरंतर प्रयासों पर और ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • सरकार को दो चीज़ें सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता  है; (i) शांतिप्रिय लोगों की सुरक्षा और (ii) नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का विकास।  
  • केंद्र और राज्यों को विकास तथा सुरक्षा में अपने समन्वित प्रयासों के साथ आगे बढ़ना चाहिये,
  • सरकार को सुरक्षा कर्मियों के जीवन की क्षति को कम करने के लिये ड्रोन जैसे तकनीकी समाधानों के प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में महामारी के दौरान कृत्रिम बुद्धिमत्ता को अपनाने की दर में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में PwC (फर्मों का एक वैश्विक नेटवर्क) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने कोरोना वायरस फैलने के बाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) के प्रयोग में 45% की वृद्धि दर्ज की है जो विश्व में सभी देशों में सबसे अधिक है

प्रमुख बिंदु:

परिणाम:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ब्रिटेन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग में सबसे अधिक वृद्धि (45%) हुई  है।
    • कोरोना वायरस फैलने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने 35%, यूनाइटेड किंगडम ने 23% और जापान ने 28% की वृद्धि दर्ज की।
  • रिपोर्ट क्रय व्यवहार और नई व्यावसायिक चुनौतियों में परिवर्तन (Covid-19 के कारण) का श्रेय AI के अनुकरण में हुई वृद्धि को देती है
    • उदाहरण के लिये AI के उपयोग के मामलों जैसे- संपर्क रहित बिक्री और वितरण में कर्षण (Traction) की स्थिति देखी गई है। कार्यस्थल को सुरक्षित बनाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करने के लिये भी AI समाधानों का उपयोग किया जा रहा है।
  • उच्चतम COVID -19 वाले क्षेत्रों ने AI समाधानों को अधिक स्पष्ट ढंग से अपनाया। यात्रा और आतिथ्य (Hospitality) क्षेत्र में 89% फर्मों ने किसी-न-किसी रूप में AI को लागू किया है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI):

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है। इसके जनक जॉन मैकार्थी हैं।
  • यह मशीनों की सोचने, समझने, सीखने, समस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता को सूचित करती है।
    • दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता किसी कंप्यूटर या मशीन द्वारा मानव मस्तिष्क के सामर्थ्य की नकल करने की क्षमता है, जिसमें उदाहरणों और अनुभवों से सीखना, वस्तुओं को पहचानना, भाषा को समझना और प्रतिक्रिया देना, निर्णय लेना, समस्याओं को हल करना तथा ऐसी ही अन्य क्षमताओं के संयोजन से मनुष्यों के समान ही कार्य कर पाने की क्षमता आदि शामिल है। 
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर शोध की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है कृत्रिम तरीके से विकसित बौद्धिक क्षमता।
  • AI पूर्णतः प्रतिक्रियात्मक (Purely Reactive), सीमित स्मृति (Limited Memory), मस्तिष्क सिद्धांत (Brain Theory) एवं आत्म-चेतन (Self Conscious) जैसी अवधारणाओं पर कार्य करता है।
  • वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष विज्ञान, रक्षा, परिवहन और कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।

सरकार द्वारा हाल में की गई पहलें:

भारत में AI का प्रयोग:

महामारी से निपटने में:

  • राष्ट्रीय स्तर पर:
    • Covid-19 से निपटने के लिये, MyGov द्वारा संचार सुनिश्चित करने के लिये AI- सक्षम चैटबॉट का उपयोग किया गया था।
    • इसी प्रकार भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने Covid-19 पर देश भर में विभिन्न परीक्षण और नैदानिक सुविधाओं से संबंधित स्टाफ एवं डेटा एंट्री ऑपरेटरों के विशिष्ट प्रश्नों का जवाब देने के लिये अपने पोर्टल पर वाटसन असिस्टेंट (Watson Assistant) को तैनात किया है।
  • केरल में: सृष्टि रोबोटिक्स 'नाइटिंगेल -19 रोबोट' का उपयोग एक अच्छा उदाहरण है।
    • यह भोजन और दवाएँ वितरित करता है तथा डॉक्टरों एवं अन्य स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों को रोगियों के साथ बातचीत करने के लिये वीडियो इंटरेक्टिव तकनीकों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
  • इसे मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल और लोकमान्य तिलक टर्मिनल में स्थापित किया गया है। 
    • महाराष्ट्र में: FebriEye एक AI आधारित थर्मल स्क्रीनिंग प्रणाली है जो वास्तविक समय और स्वचालित, गैर-घुसपैठ निगरानी के लिये यह सुनिश्चित करता है कि प्रवेश करने वाले व्यक्ति को तेज़ बुखार न हो। 

अन्य क्षेत्रों में:

  • जल प्रबंधन, फसल बीमा और कीट नियंत्रण पर AI-आधारित समाधान भी विकसित किये जा रहे हैं। 
    • ICRISAT ने एक AI-पावर बुवाई एप विकसित किया है, जो स्थानीय फसलों की पैदावार और वर्षा तथा मौसम के मॉडल तथा आँकड़ों के बारे में अधिक सटीक पूर्व सूचना एवं स्थानीय किसानों बीज बुवाई की सलाह देता है।
  • बिहार में लागू किया गया AI- आधारित बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल अब पूरे भारत में विस्तारित किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाढ़ से संबंधित सूचना 48 घंटे पहले मिल सके। 
  • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने छात्रों में डेटा साइंस, मशीन लर्निंग और AI का बुनियादी ज्ञान और कौशल को सुनिश्चित करने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में AI को एकीकृत किया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने इस वर्ष अप्रैल में एक "रेस्पोंसिबल AI फॉर यूथ" कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें सरकारी स्कूलों के 11,000 से अधिक छात्रों ने AI में बुनियादी पाठ्यक्रम पूरा किया।

आगे की राह:

  • चूँकि AI भारत में डिज़िटल समावेशन का काम करता है, यह आर्थिक विकास और समृद्धि को प्रभावित करेगा। भारत में AI के कार्यान्वयन की गुंजाईश अधिक होने के कारण इसके लिये अत्यधिक अवसर हैं। वर्ष 2025 तक डेटा और AI के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में 500 बिलियन डॉलर और लगभग 20 मिलियन नौकरियों का समावेशन किया जा सकता है।
  • भारत AI के माध्यम से एक डेटा-समृद्ध और डेटा-संचालित समाज के निर्माण का उद्देश्य रखता है, जो समाज को बेहतर बनाने, व्यक्तियों को सशक्त बनाने और व्यापार सुगमता में वृद्धि की अपार संभावनाएँ एवं अवसर प्रदान करता है। भारत समावेशी विकास, देश की 'AI फॉर ऑल' रणनीति का प्रतिनिधित्त्व करने के लिये AI का लाभ उठा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस