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शासन व्यवस्था

समाचार चैनलों के लिये आचार संहिता

  • 24 Sep 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

हेट स्पीच,  न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन

मेन्स के लिये 

आचार संहिता की आवश्यकता क्यों? 

चर्चा में क्यों? 

न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (News Broadcasters Association-NBA) ने उच्चतम न्यायालय में दिये गए हलफनामे में दुर्भावनापूर्ण, पक्षपातपूर्ण और प्रतिगामी सामग्री के खिलाफ सभी टेलीविज़न समाचार चैनलों पर बाध्यकारी रूप से लागू अपनी आचार संहिता का निर्माण करने का सुझाव दिया है। 

पृष्ठभूमि

  • समाचार चैनलों के टेलीविज़न कार्यक्रमों की ‘आहत करने वाली’ और ‘सांप्रदायिक’ सामग्री के नियमन में NBA की कथित अपर्याप्त क्षमता को संज्ञान में लेते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने 18 सितंबर को NBA और केंद्र सरकार से सुझाव माँगे थे, जिससे NBA की स्व-नियामक शक्तियों को और अधिक सुदृढ़ बनाया जा सके।
  • जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा ​​और के.एम. जोसेफ की पीठ द्वारा सुदर्शन न्यूज़ टीवी के विवादास्पद कार्यक्रम शृंखला 'बिंदास बोल' के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने NBA को अपने नियमों को लागू करने में नरमी बरतने पर फटकार लगाई थी। पीठासीन न्यायाधीश जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने NBA को 'दंतहीन' कहा था।
  • इस कार्यक्रम पर आरोप लगाया गया था कि यह सिविल सेवाओं में मुसलमानों के प्रवेश को सांप्रदायिक रूप दे रहा था। 15 सितंबर को उच्चतम न्यायलय ने प्रथमदृष्टया अवलोकन करने के बाद कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगा दी थी।
  • NBA द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि उसके द्वारा निर्मित आचार संहिता को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा ‘केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम, 1994’ के ‘प्रोग्राम कोड के नियम- 6’ में सम्मिलित कर इसे वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिये, जिससे ये संहिता सभी समाचार चैनलों के लिये बाध्यकारी बन सके।

 केंद्र सरकार का मत

  • केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वह ‘फेक न्यूज़ या हेट स्पीच’ पर अंकुश लगाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को विनियमित करने हेतु किसी भी कवायद को शुरू न करें, क्योंकि इससे निपटने के लिये पर्याप्त नियम और दिशा-निर्देश पहले से ही मौजूद हैं।

हेट स्पीच

जेरेमी वाल्ड्रॉन, एक शोधकर्ता, ने ‘हेट स्पीच’ के बारे में दार्शनिक रक्षा पर आधारित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है-

  • ‘हेट स्पीच’ से आशय उन भाषणों/बयानों से है जो सामूहिक पहचान के आधार पर लोगों के खिलाफ जाति, नृजातीयता, धर्म, लिंग या कामुकता आदि के आधार पर हिंसा, नफरत या भेदभाव को उकसाते हैं।
  • इन मामलों में हेट स्पीच की सीमितता सुभेद्य अल्पसंख्यक वर्गों तक होनी चाहिये। इस अवधारणा के तहत केवल एक अपमानजनक बयान को हेट स्पीच के रूप में नहीं देखा जा सकता। 
  • उदाहरण के लिये, किसी धार्मिक व्यक्ति पर व्यंग्य जो उस धर्म के अनुयायियों की भावनाओं का मजाक बनाता है, उसे हेट स्पीच की परिभाषा के अंतर्गत सम्मिलित नहीं किया जा सकता। जब कोई भाषण किसी संपूर्ण समुदाय को ‘राष्ट्र विरोधी’ के रूप में सूचित करता है तो उसे हेट स्पीच की श्रेणी में रखा जाएगा।  

हेट स्पीच के संदर्भ में भारतीय कानून 

  • प्रोफेसर वाल्ड्रॉन की थ्योरी इसलिये बहुत आकर्षक है क्योंकि यह भारतीय लोकतांत्रिक विज़न के साथ मेल खाती है। यह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्त्व  के मूल्यों को दर्शाती है जिसे संविधान के निर्माताओं ने मूलभूत आवश्यकता के रूप में वर्णित किया था।  
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-153A और धारा-295 A क्रमशः विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने वाले भाषण/कार्य को अपराध घोषित करती हैं।

आचार संहिता की आवश्यकता क्यों? 

  • भारत में प्रिंट मीडिया का व्यवस्थित इतिहास 200 वर्षों से अधिक का रहा है। हाल के वर्षों में टेलीविज़न पत्रकारिता का तीव्र विस्तार हुआ है। टीवी पत्रकारिता में ‘सबसे पहले खबर दिखाने’ और ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के नाम पर ‘व्यावसायिक प्रतिबद्धता’ और ‘पेशे की बुनियादी नैतिकता’ के उल्लंघन के बढ़ते मामलों की संख्या पत्रकारिता की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।
  • दर्शकों के लिये निष्‍पक्ष, वस्‍तुनिष्‍ठ, सटीक और संतुलित सूचना प्रस्‍तुत करने के लिये पत्रकारों को पत्रकारिता के मौलिक सिद्धांत को ध्‍यान में रखते हुए द्वारपाल की भूमिका निभाने की आवश्यकता को देखते हुए टेलीविज़न चैनलों के लिये आचार संहिता बनाई जानी चाहिये।
  •  ‘फेक न्यूज़’ के मामलों के प्रकाश में आने के पश्चात् और इसके द्वारा सोशल मीडिया पर विस्तृत प्रभाव पैदा करने से वर्तमान समय में टेलीविज़न समाचार चैनलों के लिये आचार संहिता का निर्माण बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। सनसनीखेज, पक्षपातपूर्ण कवरेज़ और पेड न्यूज मीडिया का आधुनिक चलन बन गया है। किसी भी स्थिति में राय देने वाली रिपोर्टिंग को व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग नहीं कहा जा सकता है।
  • व्यापारिक समूह और यहाँ तक ​​कि राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति समाचार पत्र और टेलीविज़न चैनलों का संचालन कर रहे हैं। यह चिंताजनक होने के साथ ही इससे पत्रकारिता के मूल उद्देश्‍य समाप्त हो रहे हैं।
  • अधिकारों और कर्तव्यों को अविभाज्य नहीं माना जा सकता है।  मीडिया को न केवल लोकतंत्र की रक्षा करने के लिये प्रहरी के रूप में काम करना चाहिये बल्कि उसे समाज के वंचित वर्गों के हितों के रक्षक के रूप में भूमिका का निर्वहन करना चाहिये।
  • मोबाइल फोन/स्मार्ट फोन के आने के पश्चात् सूचनाओं को साझा करने के क्रम में क्रांति आई है। प्रत्येक स्मार्ट फोन उपयोगकर्ता एक संभावित पत्रकार बन गया है। हालाँकि इंटरनेट और मोबाइल फोन ने सूचना की उपलब्धता का लोकतांत्रिकरण किया है लेकिन फेक न्यूज़ और अफवाहों के प्रसार की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। पत्रकारों को इस तरह के समाचारों और नकली आख्यानों से बचना चाहिये क्योंकि उनका उपयोग निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिये हमारे बहुलवादी समाज में विघटन और विभाजन पैदा करने में किया जा सकता है।

न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA)

  • न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) निजी टेलीविजन समाचार और समसायिक घटनाओं के ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।
  • यह पूर्णरूप से अपने सदस्यों द्वारा वित्तपोषित एक संगठन है। NBA में वर्तमान में 26 प्रमुख समाचार और समसामयिक घटनाओं के ब्रॉडकास्टर्स (कुल 70 न्यूज़ और समसामियक घटनाओं के चैनल) इसके सदस्य हैं।
  • NBA का मिशन निजी समाचार और समसामयिक घटनाओं के प्रसारकों की आँख और कान रूप में कार्य करते हुए उनकी और से पैरवी करने और हितों के मामलों पर संयुक्त कार्रवाई के केंद्रीय बिंदु के रूप में कार्य करने के लिये भूमिका हैं।

आगे की राह

  • अपेक्षित परिवर्तन लाने के लिये भ्रष्टाचार और लैंगिक एवं जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने की आवश्यकता पर प्रिंट मीडिया और टेलीविज़न समाचार चैनलों द्वारा  जनता की राय बनाने में सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिये।
  • इस संदर्भ में न्यूज़ मीडिया ने कई बार सकारात्मक भूमिका का निर्वहन भी किया है। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को बढ़ावा देने में न्यूज़ मीडिया ने सकारात्मक भूमिका निभाई थी।

स्रोत: द हिंदू

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