भूगोल
ब्रह्माण्ड में लिथियम वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ में प्रकाशित एक अध्ययन में सूर्य जैसे कम द्रव्यमान वाले तारों के कोर हीलियम (He) ज्वलन चरण के दौरान लिथियम उत्पति की परिघटना के विषय में ठोस पर्यवेक्षण साक्ष्य प्रस्तुत किये गए।
प्रमुख बिंदु
- गौरलतब है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स’ (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के वैज्ञानिकों ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर ये साक्ष्य प्रस्तुत किये है।
- वैज्ञानिकों ने ‘आकाशगंगा पुरातत्त्व परियोजना, एंग्लो-ऑस्ट्रेलियाई टेलीस्कोप, ऑस्ट्रेलिया’ (Galactic Archaeology project, Anglo-Australian Telescope, Australia- GALAH) के बड़े सर्वेक्षणों और यूरोपीय अंतरिक्ष मिशन (GAIA) से एकत्र हज़ारों तारों के स्पेक्ट्रा का उपयोग किया।
- GAIA यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की एक अंतरिक्ष वेधशाला है, जिसे 2013 में लॉन्च किया गया था।
लिथियम की उत्पत्ति
- हल्की ज्वलनशील, धातु लिथियम (Li) ने आधुनिक संचार उपकरणों और परिवहन क्षेत्र में कई परिवर्तन किये हैं। वर्तमान समय में तकनीक का एक बड़ा हिस्सा लिथियम व इसके विभिन्न प्रकारों द्वारा संचालित है किंतु लिथियम के विषय में प्रश्न यह है कि यह तत्त्व आता कहाँ से है? लिथियम के अधिकांश भाग की उत्पत्ति का पता एक ही घटना से लगाया जा सकता है- वह है बिग-बैंग, जो लगभग 13.7 अरब साल पहले घटित हुआ था जिसके द्वारा वर्तमान ब्रह्मांड का भी निर्माण हुआ था।
- समय के साथ, भौतिक ब्रह्मांड में लिथियम की मात्रा में चार गुनी वृद्धि हुई है, जिसे कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आयरन, निकेल और अन्य तत्त्वों की तुलना में काफी कम कहा जा सकता है क्योंकि इन तत्त्वों की मात्रा में एक मिलियन गुनी वृद्धि हुई है। लिथियम में अपेक्षाकृत बहुत कम मात्रा में वृद्धि हुई है।
- लिथियम की इतनी कम मात्रा का स्रोत वैज्ञानिकों के बीच बहस का विषय है। माना जाता है कि उच्च-ऊर्जा वाली ब्रह्मांडीय किरणों से इंटरस्टेलर स्पेस में कार्बन और ऑक्सीजन जैसे भारी तत्त्वों के टूटने से लिथियम का निर्माण हुआ।
- तारों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्क्षेपण और तारकीय विस्फोट भारी तत्त्वों की इस महत्त्वपूर्ण वृद्धि में प्राथमिक योगदानकर्त्ता हैं। हालाँकि लिथियम को एक अपवाद माना जाता है।
बिग बैंग संकल्पना और लिथियम:
- लिथियम (Lithium- Li) बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (Big Bang Nucleosynthesis- BBN) से उत्पन्न तीन मौलिक तत्त्वों में से एक है। अन्य दो तत्त्व हाइड्रोजन (H) और हीलियम (He) हैं।
लिथियम से संबंधित कुछ अवधारणाएँ
- आज के सर्वश्रेष्ठ मॉडलों पर आधारित वर्तमान समझ के अनुसार, हमारे सूर्य जैसे तारों में लिथियम उनके जीवनकाल में ही नष्ट हो जाता है।
- तथ्य के रूप में, सूर्य और पृथ्वी में सभी तत्त्वों की संरचना समान है। लेकिन, सूर्य में लिथियम की मात्रा पृथ्वी की तुलना में 100 गुनी कम है, हालाँकि दोनों का निर्माण एक साथ हुआ था।
- यह खोज लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देती है कि तारे अपने जीवनकाल में ही लिथियम को नष्ट कर देते हैं, जिसका अर्थ है कि सूर्य स्वयं भविष्य में लिथियम का निर्माण करेगा, जिसकी भविष्यवाणी मॉडल द्वारा नहीं की जाती है, जो दर्शाता है कि तारा-सिद्धांत में कुछ भौतिक प्रक्रिया छूटी हुई है।
अध्ययन से संबंधित कुछ अन्य तथ्य
- इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने तारे के मुख्य हाइड्रोजन-ज्वलन चरण के अंत में लिथियम उत्पादन के स्रोत के रूप में "He फ्लैश" (विस्फोट के माध्यम से तारे में HE-प्रज्वलन की शुरुआत) की भी पहचान की। यहाँ यह जानना बेहद ज़रूरी है कि हमारा सूर्य लगभग 6-7 अरब वर्षों के बाद इस चरण में पहुँचेगा।
- इस अध्ययन में तारों को लिथियम-संपन्न के रूप में वर्गीकृत करने के लिये नई सीमा (A(Li) > -0.9~dex) का भी सुझाव दिया गया है, जो अब तक इस्तेमाल की गई सीमा (A(Li) > 1.5~dex) से 250 गुना कम है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, हमारे लिये अगला महत्त्वपूर्ण कदम He-फ्लैश और मिक्सिंग मैकेनिज़्म के दौरान लिथियम के न्यूक्लियोसिंथेसिस को समझना है, जो अभी तक अनजान है। इसके साथ ही यह जानना भी ज़रूरी है कि क्या बिग-बैंग में इसके निर्माण के बाद से इसकी मात्रा में वृद्धि हुई है और क्या केवल तारों ने इस वृद्धि में योगदान दिया है?
स्रोत: PIB
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
जम्मू-कश्मीर पर UN के विशेष संचार
प्रीलिम्स के लिये:जम्मू-कश्मीर पर UN के विशेष संचार मेन्स के लिये:जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'संयुक्त राष्ट्र' (United Nations- UN) के ‘विशेष प्रतिनिधियों’ (Special Rapporteurs- SRs) ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति (अनुच्छेद 370 के तहत) को रद्द करने के निर्णय के बाद भारत को अपना तीसरा संचार (Third Communication) जारी किया है।
प्रमुख बिंदु:
- UN संचार मानवाधिकारों के उल्लंघन के समय संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई जाने वाली विशेष प्रक्रिया है।
- हाल में UN द्वारा भारत को तीसरा संचार किया गया है, इससे पूर्व में भी UN द्वारा भारत को जम्मू-कश्मीर के संबंध में दो संचार जारी किये जा चुके हैं।
UN संचार (UN Communication):
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में विशेष प्रकियाओं का अनुसरण करती है।
- इन विशेष प्रक्रियाओं के माध्यम से मानवाधिकारों के उल्लंघन के विशिष्ट आरोपों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है और देशों को संचार (तत्काल अपील और अन्य पत्र) भेजे जाते हैं।
- कभी-कभी गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को भी स्पष्टीकरण तथा आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता हैं।
जम्मू-कश्मीर के संबंध में संचार:
- अब तक 'संयुक्त राष्ट्र' मानवाधिकार परिषद के विशेष प्रतिनिधियों द्वारा जम्मू-कश्मीर के संबंध में तीन बार संचार भेजा जा चुका है।
- प्रथम संचार (First Communication):
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा 16 अगस्त, 2019 को भारत के लिये प्रथम संचार भेजा गया था।
- यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध तथा जम्मू-कश्मीर विधानसभा की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों से संबंधित था।
- द्वितीय संचार (Second Communication):
- द्वितीय संचार 27 फरवरी, 2020 भेजा गया था जिसमें केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के संबंध में लिये गए निर्णयों के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने वाले लोगों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाने से संबंधित था।
- तृतीय संचार (Third Communication):
- इसमें 5 अगस्त, 2019 (अनुच्छेद- 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति की समाप्ति) को राज्य में लगाए गए प्रतिबंधों के बाद जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति बिगड़ने पर प्रकाश डाला गया है।
तृतीय संचार के तहत उठाए गए मुद्दे:
- संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन की शीघ्र तथा निष्पक्ष जाँच करवाए अगर वह ऐसा करने में असफल रहती है तो उस पर निम्नलिखित कार्यवाही की जा सकती है।
- 'नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन' (International Covenant on Civil and Political Rights- ICCPR) के अनुच्छेद-6 के तहत आवश्यक कार्यवाही की जा सकती है।
- यह अनुच्छेद मनमानी हत्याओं, यातनाओं और गैर-इलाज के आरोपों और संदिग्ध के खिलाफ मुकदमा चलाने से संबंधित है।
UN विशेष प्रतिनिधि (UN Special Rapporteur):
- यह मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया है, जिसमें मानव अधिकारों पर रिपोर्ट और सलाह देने के लिये स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
- मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council):
- यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है।
- यह मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये कार्यरत 47 देशों से मिलकर बनी होती है। वर्तमान में परिषद में भारत भी शामिल है।
- UN विशेष प्रक्रिया में या तो स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल होते हैं (जिन्हें 'स्पेशल रैपोर्टियर' या 'इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट' कहा जाता है) या पाँच सदस्यों से मिलकर बना एक वर्किंग ग्रुप जिसमें संयुक्त राष्ट्र के पाँच क्षेत्रीय समूहों के प्रतिनिधि होते हैं।
- अधिकांश विशेष प्रक्रियाएँ मानवाधिकारों के उल्लंघन के विशिष्ट आरोपों के संबंध में जानकारी प्राप्त करती हैं और देशों को संचार (तत्काल अपील और अन्य पत्र) भेजती हैं या कभी-कभी गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को भी स्पष्टीकरण तथा आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देती हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
तीन सार्वजनिक बीमा कंपनियों के लिये सहायता राशि
प्रीलिम्स के लियेसरकार का प्रस्ताव, सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियाँ मेन्स के लियेबीमा कंपनियों के पूँजीयन की आवश्यकता और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक क्षेत्र की तीन सामान्य बीमा कंपनियों की मदद के लिये कुल 12,450 करोड़ रुपए (वर्ष 2019-20 में दिए गए 2,500 करोड़ रुपए सहित) की पूंजी देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- इन तीन सामान्य बीमा कंपनियों में शामिल हैं-
- ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
(Oriental Insurance Company Limited- OlCL) - नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
(National Insurance Company Limited- NICL) - यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
(United India Insurance Company Limited- UIICL)
- ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
- तीनों कंपनियों की सहायता के लिये दी जा रही राशि में से 3,475 करोड़ रुपए की राशि तत्काल जारी कर दी जाएगी, वहीं शेष 6,475 करोड़ रुपए की राशि बाद में जारी की जाएगी, जबकि 2,500 करोड़ रुपए की राशि वित्तीय वर्ष 2019-20 में ही जारी की जा चुकी है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस पूंजी की उपलब्धता को प्रभावी करने के लिये नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL) को 7,500 करोड़ रुपए तक जबकि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (UIICL) तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (OlCL) को 5000 करोड़ रुपए तक अधिकृत शेयर पूंजी में बढ़ोतरी को भी स्वीकृति दी है।
- इसके अलावा, मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए इनकी विलय की प्रक्रिया को भी कुछ समय के लिये रोक दिया गया है, इस विलय के स्थान पर अब इनके विकास पर ध्यान दिया जाएगा।
ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (OlCL)
- ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (OlCL) को वर्ष 1947 में निगमित किया गया था।
- वर्ष 2003 में इस कंपनी के सभी शेयर जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिये गए।
- आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 तक कंपनी के देश भर में कुल 1924 कार्यालय थे।
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL)
- नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL) को वर्ष 2006 में निगमित किया गया था।
- यह कंपनी अपने ग्राहकों को सामान्य बीमा व्यवसाय के लगभग सभी खंडों में बीमा की सेवाएँ प्रदान करती है।
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (UIICL)
- यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (UIICL) को वर्ष 1938 में निगमित किया गया था।
- भारत में सामान्य बीमा व्यवसाय के राष्ट्रीयकरण के साथ 12 भारतीय बीमा कंपनियों, 4 सहकारी बीमा समितियों और भारत में संचालित 5 विदेशी कंपनियों को यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (UIICL) के साथ मिला दिया गया।
- वर्तमान में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (UIICL) के देश भर में कुल 2080 कार्यालय हैं।
प्रभाव
- इस पूंजी प्रवाह के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की तीन सामान्य बीमा कंपनियों को अपनी वित्तीय स्थिति तथा ऋण चुकाने की क्षमता में सुधार, अर्थव्यवस्था की बीमा संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने, बदलावों को अपनाने, आवश्यक संसाधन जुटाने की क्षमता बढ़ाने और जोखिम प्रबंधन में सुधार करने में मदद मिलेगी।
कंपनियों के विलय से संबंधित चुनौतियाँ
- पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वितीय वर्ष 2018-19 के बजट में तीनों कंपनियों के विलय की घोषणा की थी, किंतु सरकार द्वारा इस योजना के कार्यान्वयन की दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण कदम नहीं उठाया गया, हालाँकि कंपनियों ने अपने स्तर पर इस संबंध में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये थे।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि तीनों कंपनियों के पास अलग-अलग तकनीक और अपना अलग IT प्लेटफॉर्म हैं, जिसके कारण इन तीनों को एक साथ एकीकृत करना सरकार के लिये काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
- इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण भी वर्तमान में इन कंपनियों का विलय संभव नहीं है।
आगे की राह
- सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही पूंजी का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं जिनका लक्ष्य इन कंपनियों में व्यावसायिक क्षमता को बढ़ाना और लाभदायक वृद्धि लाना है।
- वहीं मौजूदा स्थिति को देखते हुए इन कंपनियों के विलय की प्रक्रिया को भी रोक दिया गया है, विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम की सराहना की है, इसके माध्यम वे कंपनियाँ अपनी ऋण चुकाने की क्षमता को बढ़ाने और अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने पर दे सकेंगी।
स्रोत: पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तिब्बत-चीन विवाद और अमेरिका
प्रीलिम्स के लियेतिब्बत, चीन, तिब्बत-चीन विवाद मेन्स के लियेअमेरिका-चीन संघर्ष का हालिया घटनाक्रम, तिब्बत और भारत-चीन संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने कुछ विशिष्ट अमेरिकी नागरिकों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, गौरतलब है कि इससे पूर्व अमेरिका ने भी चीन के कुछ अधिकारियों पर तिब्बत के विषय को लेकर वीज़ा प्रतिबंध की घोषणा की थी।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में घोषणा करते हुए चीन ने कहा कि यह वीज़ा प्रतिबंध उन अमेरिकी अधिकारियों पर लागू किये जाएंगे, जिन्होंने तिब्बत से संबंधित मुद्दों पर उचित व्यवहार नहीं किया है।
- अमेरिकी अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंध अधिरोपित करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने ‘अमेरिका से तिब्बत के माध्यम से चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का आग्रह किया है।’
चीन के अधिकारियों पर अमेरिकी प्रतिबंध
- चीन के वीज़ा प्रतिबंधों से पूर्व अमेरिका ने भी चीन के उन अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंधों की घोषणा की थी, जो तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल हैं और जो अमेरिकी राजनयिकों, पत्रकारों और पर्यटकों को तिब्बत में प्रवेश करने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
- हालाँकि अभी तक अमेरिका के विदेश विभाग ने अमेरिकी गोपनीयता कानूनों का हवाला देते हुए चीन के उन अधिकारियों के नाम की घोषणा नहीं की है, जो अमेरिका के नए वीज़ा प्रतिबंधों से प्रभावित होंगे।
- अमेरिका के प्रतिबंधों को लेकर चीन का कहना है कि तिब्बत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु के कारण चीन वहाँ आने वाले आगंतुकों पर कुछ विशिष्ट प्रकार के ‘सुरक्षात्मक उपाय’ लागू करता है।
- ध्यातव्य है कि अमेरिका काफी लंबे समय से चीन पर इस प्रकार के प्रतिबंध अधिरोपित करता रहा है, इससे पूर्व अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के उल्लंघन और लाखों उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न के मुद्दे पर भी चीन पर कार्रवाई की थी।
वीज़ा प्रतिबंधों के निहितार्थ
- तिब्बत की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य कर रहीं विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने अमेरिका के कदम की सराहना की है और इस कदम को तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया है।
- अमेरिका और चीन दोनों ही देशों के वीज़ा प्रतिबंध ऐसे समय में आए हैं जब दोनों देशों के बीच पहले से ही व्यापार, तकनीक, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और हॉन्गकॉन्ग जैसे मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है।
- ऐसे में यह कदम दोनों देशों के बीच तनाव को और अधिक बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
- कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बाद से ही अमेरिका और चीन के संबंध अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गए हैं, क्योंकि चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस (COVID-19) ने अमेरिका को सबसे अधिक प्रभावित किया है।
तिब्बत के संबंध में अमेरिका का पक्ष
- गौरतलब है कि अमेरिका सदैव ही तिब्बत के लिये अधिक स्वायत्तता का पक्षधर रहा है, हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रमुख माइक पोम्पियी ने कहा था कि ‘अमेरिका तिब्बती लोगों के मौलिक अधिकारों का समर्थन करता है।
- ध्यातव्य है कि इसी वर्ष मई माह में अमेरिका ने चीन से तिब्बती बौद्ध धर्म के 11वें ‘पंचेन लामा' (Panchen Lama) को छोड़ने का आग्रह किया था, जिन्हें चीनी अधिकारियों द्वारा वर्ष 1995 में मात्र 6 वर्ष की उम्र में कैद कर लिया गया था।
चीन-तिब्बत विवाद
- चीन-तिब्बत संघर्ष को अक्सर एक जातीय और धार्मिक संघर्ष के रूप में देखा जाता है। विभिन्न विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐतिहासिक रूप से तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर अलग-अलग विचार चीन-तिब्बत संघर्ष का प्रमुख कारण है।
- जहाँ एक ओर तिब्बत के लोग मानते हैं कि बीती कई शताब्दियों में तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित रहा है, वहीं चीन का मानना है कि तिब्बत लगभग 18वीं शताब्दी में चीन के आधिपत्य में आया और 19वीं सदी के उतरार्द्ध में तब तक चीनी प्रशासन के अधीन रहा, जब तक ब्रिटेन ने तिब्बत पर आक्रमण नहीं कर दिया।
- गौरतलब है कि वर्ष 1912 से लेकर वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region-TAR) पर नियंत्रण नहीं किया था।
- वर्ष 1950 में नवगठित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए अपनी सीमाओं पुनः स्थापित करने के प्रयास शुरू किये।
- वर्ष 1951 में तिब्बत सरकार को औपचारिक रूप से तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देने वाले 17-बिंदु समझौते (Seventeen Point Agreement) पर हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर किया गया और चीन ने इस क्षेत्र पर अपनी सत्ता स्थापित कर दी।
- तिब्बती लोग तथा अन्य टिप्पणीकार चीन द्वारा किये गए इस कृत्य को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में वर्णित करते हैं।
- तिब्बत वासियों ने मार्च 1959 में चीन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया, किंतु वे इस कार्य में असफल रहे।
- चीन ने 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह को कुचल दिया, जिसने आध्यात्मिक नेता, दलाई लामा और 80,000 से अधिक तिब्बतियों को भारत और अन्य देशों में निर्वासित होना पड़ा।
- एक अनुमान के अनुसार, मार्च 1959 में तिब्बती विद्रोह के दौरान चीन की सेना ने 10 हज़ार से भी अधिक लोगों को बुरी तरह से मार दिया था।
विद्रोह का परिणाम
- वर्ष 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह के पश्चात् चीन की सरकार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती गई और तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है, इस क्षेत्र में अभी भी चीन की मनमानी जारी है।
- वर्तमान में भी तिब्बत को समय-समय पर अशांति का सामना करना पड़ता है।
तिब्बत
- तिब्बत चीन के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और भारत, नेपाल, म्याँमार (बर्मा) तथा भूटान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
- तिब्बत एशिया में तिब्बती पठार पर स्थित एक क्षेत्र है, जो लगभग 24 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है और यह चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ऑस्ट्रेलिया ने हॉन्गकॉन्ग के साथ प्रत्यर्पण संधि निलंबित की
प्रीलिम्स के लिये:प्रत्यर्पण अधिनियम- 1962 मेन्स के लिये:भारत-हॉन्गकॉन्ग संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने चीन द्वारा हॉन्गकॉन्ग में लगाए गए 'राष्ट्रीय सुरक्षा कानून' की प्रतिक्रिया में हॉन्गकॉन्ग के साथ अपनी प्रत्यर्पण संधि को निलंबित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- हॉन्गकॉन्ग चीन का एक ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ (Special Administrative Regions-SAR) है।
- यह ‘बेसिक लॉ’ (Basic Law) नामक एक मिनी-संविधान द्वारा शासित है, जो चीन की 'एक देश, दो प्रणाली' के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
- ऑस्ट्रेलिया द्वारा वर्ष 1993 में हॉन्गकॉन्ग के साथ प्रत्यर्पण संधि लागू की गई थी।
प्रत्यर्पण (Extradition):
- प्रत्यर्पण किसी देश द्वारा अपनाई जाने वाली औपचारिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को किसी दूसरे देश में अभियोजन के लिये आत्मसमर्पण करने या प्रार्थी देश के अधिकार क्षेत्र में अपराध करने वाले व्यक्ति पर अभियोग चलाने की अनुमति प्रदान करतीहै।
- इस प्रकार की संधियों को आम तौर पर द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संधि के माध्यम से लागू किया जाता है।
भारत में प्रत्यर्पण कानून:
- ‘प्रत्यर्पण अधिनियम’ (The Extradition Act)- 1962 भारत में प्रत्यर्पण के लिये विधायी आधार प्रदान करता है।
- प्रत्यर्पण अधिनियम-1962 के निर्माण का उद्देश्य भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित कानून को मज़बूत करना तथा उसमें संशोधन करना और इससे जुड़े मामलों या आकस्मिक मामलों से निपटना था।
- जिन देशों के साथ भारत ने प्रत्यर्पण संधि नहीं की है, उनके साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था का कानूनी आधार भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 की धारा 3 (4) द्वारा प्रदान किया गया है।
- भारत की वर्तमान में 43 देशों के प्रत्यर्पण संधि तथा 11 देशों के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था (Extradition Arrangement) है।
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के साथ समस्याएँ:
- पुलिस को अनियंत्रित शक्तियाँ:
- 'राष्ट्रीय सुरक्षा कानून' हॉन्गकॉन्ग में होने वाली पृथकतावादी, विध्वंसक या आतंकवादी गतिविधियों या हॉन्गकॉन्ग के मामलों में विदेशी हस्तक्षेप के रूप में देखी जाने वाली गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की शक्ति बीजिंग को देता है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:
- कानून के तहत पुलिस को बिना वारंट के खोज कार्य करने, इंटरनेट सेवाओं पर आवश्यक प्रतिबंध लगाने जैसे अधिकार दिये गए हैं। इस प्रकार यह कानून मानव अधिकारों, विशेष रूप से भाषण की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन नहीं:
- कानून को हॉन्गकॉन्ग के लोगों की सहमति के बिना लागू किया है, अत: यह हॉन्गकॉन्ग विधानसभा की स्वतंत्रता पर हमला करता है।
- बेसिक लॉ’ के अनुसार, चीन की सरकार हॉन्गकॉन्ग में तब तक कोई कानून लागू नहीं कर सकती है, जब तक कि वह कानून एनेक्स-III नामक खंड में सूचीबद्ध नहीं किया गया हो। इस प्रकार यह हॉन्गकॉन्ग के ‘बेसिक लॉ’ का भी उल्लंघन करता है।
वैश्विक प्रतिक्रिया:
- ऑस्ट्रेलिया:
- ऑस्ट्रेलिया ने दो से पाँच वर्ष के लिये वीज़ा विस्तार और स्थायी निवास वीज़ा के मार्ग की भी घोषणा की है।
- इससे पूर्व वर्ष 1989 में बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर (Beijing’s Tiananmen Square) के आसपास लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों से हुए खूनी संघर्ष के बाद चीनी नागरिकों को 'सेफ हेवन' (Safe Haven) वीज़ा प्रदान किया गया था।
- उस समय ऑस्ट्रेलिया में 27,000 से अधिक चीनी छात्रों को स्थायी रूप से रहने की अनुमति दी गई थी।
- कनाडा:
- कनाडा भी हॉन्गकॉन्ग के साथ अपनी प्रत्यर्पण संधि को वापस लेने पर विचार कर रहा है और प्रवास सहित अन्य विकल्पों पर विचार कर रहा है।
- ब्रिटेन:
- ब्रिटेन भी 'ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज़ पासपोर्ट' के लिये पात्र 3 मिलियन हॉन्गकॉन्ग वासियों के लिये रेज़िडेंसी अधिकारों का विस्तार कर रहा है।
- इस पासपोर्ट के तहत नागरिकों को पाँच वर्ष तक यू.के. में रहने और काम करने की अनुमति मिलती है।
चीन की प्रतिक्रिया:
- चीन ने हॉन्गकॉन्ग के साथ अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया को चेतावनी दी है।
- चीन ने यह भी संकेत दिया है कि इस तरह के कदम द्विपक्षीय आर्थिक समझौतों को प्रभावित कर सकते हैं।
- ऑस्ट्रेलियाई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों का अर्थव्यवस्था पर भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है तथा मुद्दा और गंभीर हो सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत उम्मीद कर रहा है कि संबंधित पक्ष गंभीरता और निष्पक्ष रूप से चिंताओं को ठीक से संबोधित करेंगे।
- हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र में बड़ा भारतीय समुदाय निवास करता हैं, अत: भारत हाल के घटनाक्रमों लगातार निगरानी रख रहा है।
आगे की राह:
- विश्लेषकों के अनुसार कानून को लागू करने से हॉन्गकॉन्ग में व्यापक विरोध प्रदर्शन एक बार फिर से शुरू हो सकते हैं, ऐसे में चीन की सरकार को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- यह देखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हॉन्गकॉन्ग स्थिति से कैसे निपटता है। बेसिक लॉ के तहत इसे दी गई स्वतंत्रता 2047 में समाप्त हो जाएगी और यह स्पष्ट नहीं है कि उसके बाद हॉन्गकॉन्ग की स्थिति क्या होगी।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
वेतन संहिता अधिनियम, 2019
प्रीलिम्स के लिये:‘वेतन संहिता अधिनियम’, 2019 के मुख्य प्रावधान मेन्स के लिये:श्रम सुधार के संदर्भ में वेतन संहिता अधिनियम का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय’ (The Union Labour and Employment Ministry) द्वारा ‘वेतन संहिता अधिनियम’, 2019 (Wages Code Act, 2019) के कार्यान्वयन के लिये तैयार किये गए मसौदे के नियमों पर विभिन्न पक्षों की राय जानने के लिये प्रकाशित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- वेतन संहिता अधिनियम, 2019 सभी को न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी प्रदान करता है।
- यह अधिनयम परिभाषित करता है कि मज़दूरी की गणना कैसे की जाए तथा सभी राज्यों के लिये एक समान मज़दूरी भुगतान का निर्धारण किस प्रकार किया जाए।
- इस मसौदे के प्रकाशित होने की तिथि (7 जुलाई) से 45 दिनों के अंदर विभिन्न पक्ष अपनी प्रतिक्रिया/राय दे सकते हैं।
- संसद द्वारा इसे अगस्त, 2019 में पारित कर दिया गया था।
- इससे देश में लगभग 50 करोड़ कामगारों को लाभ मिलेगा।
- वेतन संहिता, श्रम सुधारों का हिस्सा है और केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में उठाये गये कदम के तहत पहला कानून है।
- केंद्र सरकार 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार संहिता में समाहित करने की दिशा में कार्य कर रही है, जिनमें शामिल है-
- मज़दूरी संहिता
- औद्योगिक संबंध
- सामाजिक सुरक्षा
- व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संहिता
विशेषताएँ:
- वेतन संहिता अधिनियम-2019 में मज़दूरी, बोनस और उससे जुड़े मामलों से संबंधित कानून को संशोधित और एकीकृत किया गया है।
- इस संहिता में चार श्रम कानून को समाहित किया जाएगा, जिनमें शामिल है-
- न्यूनतम मज़दूरी कानून, 1948 (Minimum Wages Act, 1948)
- मज़दूरी भुगतान कानून, 1936 (Payment of Wages Act, 1936)
- बोनस भुगतान कानून, 1965 (Payment of Bonus Act, 1965)
- समान पारितोषिक कानून, 1976 (Equal Remuneration Act, 1976)
- वेतन संहिता अधिनियम-2019 में पूरे देश में एक समान वेतन एवं उसका सभी कर्मचारियों को समय पर भुगतान किये जाने का प्रावधान किया गया है।
- इस संहिता में न्यूनतम मज़दूरी का आकलन न्यूनतम जीवन-यापन की स्थिति के आधार पर किये जाने का प्रावधान है।
वेतन संहिता अधिनियम-2019 में परिवर्तन:
- वेतन संहिता अधिनियम- 2019 में आठ घंटे कार्य करने का प्रावधान किया गया है परंतु ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि ‘लॉकडाउन' के दौरान कुछ राज्यों में उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई के लिये कामकाजी घंटे बढ़ाए जा सकते हैं।
- दैनिक आधार पर, न्यूनतम वेतन की गणना करने के लिये आधार:
- मानक श्रमिक परिवार वर्ग, जिसमे कामगार के अलावा उसकी पत्नी या उसका पति और दो बच्चें शामिल हो।
- प्रति दिन उपभोग इकाई हेतु निवल 2,700 कैलोरी की खपत।
- मानक श्रमिक परिवार वर्ग द्वारा प्रति वर्ष 66 मीटर कपडे का प्रयोग।
- आवासीय किराया व्यय जो भोजन और वस्त्र व्यय का 10 प्रतिशत होगा।
- ईंधन, बिज़ली, और व्यय की अन्य विविध मदें जो न्यूनतम मज़दूरी की 20% होंगी।
- बच्चों की शिक्षा पर व्यय, चिकित्सा आवश्यकताएँ, मनोरंजन और अन्य आकस्मिक व्यय जो न्यूनतम मज़दूरी का 25 प्रतिशत होगा।
महत्त्व:
- वर्तमान समय में मज़दूरी के संदर्भ में विभिन्न श्रम कानूनों को अलग-अलग रुप में परिभाषित किया गया है, जिसके चलते इनके क्रियान्वयन में काफी कठिनाई के साथ कानूनी विवाद भी बढ़ जाता है।
- संहिता में विभिन्न श्रम कानूनों को सरलीकृत किया गया है जिससे इस बात की संभावना अधिक प्रबल होती है कि इससे कानूनी विवादों को कम करने में मदद मिलेगी इसके अलावा नियोक्ताओं के लिये अनुपालन लागत भी कम होगी।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
रिचार्जेबल बैटरी: UNCTAD की रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लियेव्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन मेन्स के लियेरिचार्जेबल बैटरी की आवश्यकता और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development-UNCTAD) ने 'कमोडिटीज़ एट अ ग्लांस: स्पेशल इश्यू ऑन स्ट्रेटजिक बैटरी एंड मिनरल्स' (Commodities at a glance: Special issue on strategic battery and minerals) नामक रिपोर्ट जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- आपूर्ति की अनिश्चितता: अंकटाड द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, रिचार्जेबल बैटरी का उत्पादन करने के लिये कच्चे माल की आपूर्ति अपर्याप्त है। रिचार्जेबल बैटरी के निर्माण के लिये लीथियम, प्राकृतिक ग्रेफाइट और मैंगनीज महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है।
- मांग में वृद्धि: वैश्विक परिवहन के साधनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि से रिचार्जेबल बैटरी की मांग में भी इज़ाफा हुआ है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या वर्ष 2018 में 65 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 5.1 मिलियन तक पहुँच गई है, वर्ष 2030 तक इसकी संख्या 23 मिलियन तक पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है।
- कच्चे माल की मांग में वृद्धि: इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ रिचार्जेबल बैटरी और उनमें इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की मांग भी बढ़ गई है।
- लीथियम आयन (lithium-ion) बैटरी के लिये उपयोगी कैथोड की बाज़ार हिस्सेदारी वर्ष 2018 तक 7 बिलियन डॉलर थी, जो वर्ष 2024 तक 58.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है।
- आने वाले समय में रिचार्जेबल बैटरी बनाने के लिये उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की मांग तेजी से बढ़ेगी क्योंकि ऊर्जा के अन्य स्रोत अब अधिक प्रतिस्पर्द्धी नहीं रहे हैं।
संबंधित चिंताएँ
- सीमित आपूर्तिकर्ता: आपूर्ति को सुनिश्चित करना सभी हितधारकों के लिये एक चिंता का विषय है क्योंकि कच्चे माल का उत्पादन कुछ देशों में केंद्रित है।
- विश्व में 60 प्रतिशत से अधिक कोबाल्ट कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पाया जाता है जबकि वैश्विक लीथियम का 75 प्रतिशत से अधिक खनन ऑस्ट्रेलिया और चिली में किया जाता है।
- बाज़ार अस्थिरता: आपूर्ति में किसी भी प्रकार के व्यवधान से बाज़ार में अस्थिरता, मूल्य में वृद्धि और रिचार्जेबल बैटरी की लागत में भी वृद्धि हो सकती है।
- वर्ष 2018 में कोबाल्ट की मांग वर्ष 2017 के सापेक्ष 25 प्रतिशत बढ़कर 1,25,000 टन हो गई है, जिसमें 9 प्रतिशत कोबाल्ट का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों में रिचार्जेबल बैटरी के लिये किया गया है।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 तक कोबाल्ट की मांग 1,85,000 टन तक पहुँच जाएगी।
- लीथियम की मांग में वर्ष 2015 के बाद प्रतिवर्ष 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।
लीथियम आयन बैटरी
- लीथियम-आयन बैटरी एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी है।
- ये बैटरियाँ आजकल के इलेक्ट्रॉनिक सामानों में प्रायः उपयोग की जाती हैं और पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों के लिये सबसे लोकप्रिय रिचार्जेबल बैटरियों में से एक हैं।
- लीथियम-आयन बैटरी के धनावेश और ऋणावेश पर रासायनिक अभिक्रिया होती है। इस बैटरी का विद्युत अपघट्य, इन विद्युताग्रों के बीच लीथियम आयनों के आवागमन के लिये माध्यम प्रदान करता है।
- यह सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की एक निश्चित मात्र को भंडारित करने में भी सक्षम है।
- इसके अलावा इसका सेल्फ-डिस्चार्ज निकेल-कैडमियम की तुलना में आधे से भी कम है, जिससे लीथियम-आयन आधुनिक ईंधन के अनुप्रयोगों हेतु अनुकूल है।
आगे की राह
- इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन एक पूंजी गहन (Capital Intensive) क्षेत्र है जहाँ सरकारी नीतियों में अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है अतः दीर्घकालिक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है।
- चार्जिंग स्टेशनों, ग्रिड़ स्थिरता जैसी अवसंरचनात्मक समस्याओं का समाधान शीघ्र करना चाहिये।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जुलाई, 2020
जम्मू-कश्मीर में छह पुलों का ई-उद्घाटन
जम्मू-कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा (LOC) के निकट स्थित संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों एवं पुलों की कनेक्टिविटी में एक नई क्रांति का सूत्रपात करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 6 प्रमुख पुलों को राष्ट्र को समर्पित किया है। सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण इन सभी पुलों का निर्माण कार्य सीमा सड़क संगठन (Border Road Organization-BRO) द्वारा रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया है। इन 6 पुलों में से जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले में तरनाह नाले पर दो पुल, जबकि जम्मू ज़िले में अखनूर-पल्लनवाला रोड पर कुल चार पुलों का निर्माण किया गया है, जो कि 30 से 300 मीटर तक फैले हुए हैं। सीमा सड़क संगठन (BRO) ने इन सभी पुलों का निर्माण कुल 43 करोड़ रुपए की लागत से किया है। BRO के ‘प्रोजेक्ट संपर्क’ (Project Sampark) के तहत निर्मित इन पुलों से सशस्त्र बलों को सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में आवाजाही करने में काफी सुविधा होगी। साथ ही यह पुल दूरस्थ सीमावर्ती क्षेत्रों के समग्र आर्थिक विकास में भी अहम योगदान देंगे। सीमा सड़क संगठन (BRO) रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख सड़क निर्माण एजेंसी है। इसकी स्थापना 07 मई, 1960 को की गई थी। यह संगठन सीमा क्षेत्रों में सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। गौरतलब है कि सीमा सड़क संगठन ने भूटान, म्याँमार, अफगानिस्तान आदि मित्र देशों में भी सड़कों का निर्माण किया है।
भुवनेश्वर लैंड यूज़ इंटेलिजेंस सिस्टम (BLUIS)
हाल ही में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भुवनेश्वर में सभी सरकारी ज़मीनों के अतिक्रमण की निगरानी के लिये ‘भुवनेश्वर लैंड यूज़ इंटेलिजेंस सिस्टम’ (Bhubaneshwar Land Use Intelligence System-BLUIS) लॉन्च किया है। इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, BLUIS के शुभारंभ के साथ, ओडिशा देश में पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने सार्वजनिक भूमि को अतिक्रमण से बचाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial intelligence-AI) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का दोहन किया है। गौरतलब है कि सरकारी भूमि में अतिक्रमणों का पता लगाने के लिये दशकों से जिस प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है, उसमें पर्याप्त पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है, जिसके कारणवश ओडिशा की यह प्रणाली काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यह प्रणाली राज्य सरकार को भूमि उपयोग में होने वाले बदलावों के बारे में सूचित करेगी। इस प्रणाली का उपयोग क्षेत्र के निवासियों द्वारा सार्वजनिक भूमि पर होने वाले किसी भी अनधिकृत कार्य की रिपोर्ट करने के लिये किया जाएगा। राज्य सरकार के मुताबिक भुवनेश्वर, भारत में सबसे तेज़ी से विकसित शहरों में से एक है, जो दैनिक आधार पर भूमि उपयोग में परिवर्तन महसूस कर रहा है, और इस प्रक्रिया में सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण का शिकार हो रही है।
जयंत कृष्णा
यूके इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UK India Business Council-UKIBC) ने जयंत कृष्णा को समूह का नया मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) नियुक्त किया है। गौरतलब है कि जयंत कृष्णा यूके इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) के पहले भारतीय CEO होंगे। इससे पूर्व जयंत कृष्णा, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation) के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। जयंत कृष्णा लगभग 2 दशकों तक टाटा समूह के साथ भी जुड़े रहे हैं। जयंत कृष्णा यूके इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) के वर्तमान CEO रिचर्ड हेडल (Richard Heald) का स्थान लेंगे। यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो कि भारत में व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने के लिये आवश्यक अंतर्दृष्टि, नेटवर्क और सुविधाओं के संबंध में ब्रिटेन के व्यवसायों को सहायता प्रदान करती है।
अमेज़ोनिया -1 (Amazonia -1)
ब्राज़ील द्वारा विकसित अमेज़ोनिया -1 (Amazonia -1) पृथ्वी अवलोकन उपग्रह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research and Research Organisation-ISRO) द्वारा अगले माह लॉन्च किया जाएगा। ISRO द्वारा ब्राज़ील के इस उपग्रह को PSLV के माध्यम से लॉन्च किया जाएगा। अमेज़ोनिया-1 उपग्रह को ब्राज़ील द्वारा स्थानीय स्तर पर डिज़ाइन किया गया है और इसका परीक्षण भी ब्राज़ील द्वारा ही किया गया है। ब्राज़ील के इस उपग्रह से अमेज़न वन में वृक्षों की कटाई की निगरानी करने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि बीते दिनों अमेज़न वन में लगी आग के कारण यह उपग्रह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। भारत और ब्राज़ील के बीच अंतरिक्ष सहयोग का आरंभ 2000 के दशक की शुरुआत में हुआ था जब दोनों की सरकारों के बीच इस संबंध में एक समझौता किया गया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी, यह भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी है और इसका मुख्यालय बंगलुरू में है। स्थापना के पश्चात् भारत के लिये इसरो ने कई कार्यक्रमों एवं अनुसंधानों को सफल बनाया है। इसने न सिर्फ भारत के कल्याण के लिये बल्कि भारत को विश्व के समक्ष सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।